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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, August 8, 2024

बतकाव बिन्ना की | जब लौं कोनऊं मरे नईं, इते जूं नईं रेंगत | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
जब लौं कोनऊं मरे नईं, इते जूं नईं रेंगत
 - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
       ऊ दिनां से जी में पीरा सी हो रई जोन दिनां नौ ठईयां बच्चा हरों की दीवार से दब के मरबे की खबर पढ़ी। नौ घरों के नौ दिया बुझ गए। का दोष हतो उन ओरन को? कछू नईं। बे तो दीवार के लिंगे बैठ के शिवजी की बटियां बना रए हते। उने का पतो रओ के ने तो उनकी बटियां बन पैहें औ ने उने सिरा पैहें। जे घटना से जी ऐसो उदास भओ के कोनऊं से बतकाव करबे को मन ने कर रओ हतो। मनो जोन के बीच रोज की बतकाव होत होय औ दो-चार दिनां आपस में ने मिल पाएं सो फिकर होन लगत आए। भैयाजी औ भौजी खों मोरी फिकर होन लगी। भौजी ने मोय फोन लगाओ। मैंने उनको फोन तो उठाओ, बाकी बे मोरी आवाज से ताड़ गईं के मोरे संगे कछू गड़बड़ आए। 
कछू देर में भैयाजी औ भौजी मोरे दोरे पे ठाड़े दिखाने।
‘‘का हो गओ? तुमाई आवाज सुनी सो लगो के तुम कछू दुखी आओ।’’ भौजी मोय देखत साथ बोलीं।
‘‘का हो गओ बिन्ना? तुमाई भौजी ने बताओ, सो मोय सोई फिकर हो आई। कछू चिंता की बात तो नोईं?’’ भैयाजी घबड़ात भए पूछन लगे।
‘‘कछू नईं! आओ आप ओरें! बैठो।’’ मैंने दोई खों भीतरे बुलाओ।
‘‘चलो अब बताओ के का हो गओ?’’भौजी सोफा पे बैठत भईं पूछन लगीं।
‘‘मोय कछू नईं भओ, बाकी बा बच्चा हरों के मरबे की खबर जबेसे पढ़ी, तभईं से जी मरोड़ सो रओ।’’ मैंने भौजी खों बताई।
‘‘हऔ बिन्ना! बा तो सई में भौतई बुरई खबर रई। बा अखबार में बच्चा हरों की फोटो देख के रोबो सो आ गओ रओ। कित्ते लोहरे बच्चा रए।’’ मोरी बात सुन के भौजी सोई दुखी हो गईं।
‘‘अरे बिन्ना जे तो अखबार में बच्चा हरों की फोटो देख के रोन लगी हतीं। हमने समझाई के ने रोओ। तुमाए रोबे से कछू नई होने। ने तो बे बच्चा लौटहें औ ने जे प्रशासन सुधरहे। हमने इने खूब समझाई, तब कऊं जा के इने सहूरी बंधी।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे बच्चा तो बच्चा होत आएं! चाए कोनऊं के होंय। हमें तो उनके बाप-मताई की सोच के रोबो आत आए। औ बे बैन हरें। बे उन पे का बीत रई हुइए। अबई राखी आई जा रई। उन ओरन पे का गुजरहे? रामधई! ऐसो कोनऊं के संगे ने होय!’’ कैत-कैत भौजी को गलो भर आओ।
‘‘कलेक्टर औ एसपी को ट्रांसफर तो करो गओ आए। जोन की दीवार हती उनपे गैरइरादतन हत्या को केस करो गओ आए। और बी दोषी हरों खों निलंबित करो गओ आए।’’ मैंने कई।
‘‘सो ईसे का हुइए? का बे बच्चा हरों की जिनगी लौट आहे?’’ भैयाजी बिगरत भए बोले।
‘‘आप सई कै रए! ईसे औ तो कछू ने हुइए, मनो कछू तो तसल्ली भई के दोषियन खों कछू सजा सो मिली।’’ मैंने कई।
‘‘काय की सजा? जे सजा आए? सजा सो उन मताई-बाप खों मिली आए जोन के कलेजा के टुकड़ा दीवार में दब के मर गए। बे अपने मोड़ा खों याद कर-कर के जिनगी भर रोहें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अब का करो जाए, सब होनी को खेल आए।’’ भौजी लंबी सांस भरत भईं बोलीं।
‘‘जे होनी को खेल नोईं, लापरवाई को खेल आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ भैयाजी! आप सांची कै रए। जब लौं कोनऊं मरे नोंईं इते जूं नईं रेंगत। का बा दीवार कोनऊं खों ने दिखत रई हती? औ सई बात तो जे आए के उते शाहपुर में अकेले काए, इते, उते सबई जांगा ऐसे मुतके घर औ मुतकी दीवारें आएं जोन खों कब की गिरा दई जाने चाइए, मनो बे आज बी मूड़ पे गिरबे के लाने छोड़ रखी गई आएं।’’ मैंने कई। मोरो भौतई जी करला रओ हतो।
‘‘औ का बिन्ना! इते तो जेई होत आए के जबलौं कोनऊं की बलि ने चढ़ जाए तब लौं प्रशासन पल्ली ओढ़ के सोउत रैत आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे, दीवार औ घरों की का? मुतकी रोडें ऐसी आएं जां लोग कैत रैत आएं के इते कछू व्यवस्था करो जीमें कोनऊं हादसा ने होय। मनो तब लौं कछू नईं करो जात आए जब लौं कोनऊं बड़ो हादसो ने हो जाए। अबई देख लेओ, जब से जे बरसात सुरू भई औ मोड़ा-मोड़ी पिकनिक मनाबे खों कऊं वाटर फाल औ कऊं बंधान में जान लगे, सो उते एक ने एक डूब के मरबे की खबर मिलन लगी। अबई कछू दिनां पैले राजघाट में एक मोड़ा डूब के मर गओ। बे उते पानी लों पोंच कैसे पाऊंत आएं? उते ऐसी व्यवस्था काए नईं करी जाती के पानी लों कोनऊं ने पौंच पाए। बस, दूर से देखे औ मजे करे। मनो एक-दो के मरे से इते कछू इंतेजाम सो करो ने जाहे, जबें ज्यादा लोग मरहें तब कछू करो जाहे।’’ भौजी बोलीं।
‘‘जेई तो बात आए, के ऐसो लगत आए के जे अधिकारियन खों कोनऊं की जान की फिकर नइयां। कोऊ मरे सो मरत रए। अबईं बड़ो बजट पाने के लाने नंबरन को खेल हुइए, सो सबई चैकन्ने दिखाहें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अब तो जेई लगत आए के जे ओरें पब्लिक के सर्वेंट नोईं बल्कि पब्लिक के मालिक आएं। बा बी जमींदारी के जमाने के। जबें टैक्स ने देबे वारों पे जुलम करो जात्तो।’’ भौजी बोलीं।
‘‘सो का? टैक्स ने भरबे वारे बड़े चोट्टन खों को पकर रओ? बड़े-बड़े लोगन के बकाया टैक्स के बारे में पढ़ो सो आंखे फटन लगत आएं। औ उतई जो छोटे लोग आएं उने गला पकर-पकर के टैक्स भरवाओ जात आए।’’ भैयाजी बमकत भए बोले।
‘‘कां-कां की कई जाए भैयाजी? इते तो सबई जांगा गड़बड़ आए। मनो औ कछू जो होने होय सो होत नए, पर ऐसो हादसा ने होय!’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ बिन्ना! मनो अबई दो-चार दिनां की चिल्ला-चोंट रैहे, औ फेर बोई निल बटा सन्नाटा हो जैहे। देखत नईयां का के कछू बरस से बोरवेल में बच्चन के गिरबे की कित्ती घटनाएं हो रईं। शासन-प्रशासन ने कई बी के बोरवेल खों ढांक के रखो जाए, मनो बे कै के फुरसत हो जात आएं। एक आदेस निकारो, ऊपे अपनी चिड़िया बिठाई औ हो गई जै राम जी की! ने तो जो तनक सख्ती बरती जाए तो एकऊं बोरवेल खुले ने मिलें। मनो जे देख को रओ? कोनऊं खों फुरसत नइयां।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे भैयाजी! अपने इते तो ने जाने कित्ते सरकारी स्कूलें ऐसी आएं जोन की बिल्डिंग कभऊं बी गिर सकत आए। मनो ने तो उनको सुधारो जा रओ औ ने तो गिराओ जा रओ। जब कोनऊं दिनां कोऊं बड़ो हादसो होय, सो फेर ऊ दिनां से गिनी जैहें ऐसी गिरत भई स्कूलें।’’ मैंने भैयाजी खों याद दिलाई।
‘‘हऔ, बच्चा हरों से जा तो खूब कओ जात आए के स्कूल चलो-स्कूल चलो, मनों जो स्कूल की बिल्डिंग गिरबे-गिरबे की होय सो, उने कओ चाइए के मरबे चलो-मरबे चलो!’’ भौजी सोई बोल परीं।
‘‘मोय तो जे लगत आए भौजी, के जोन बे बच्चा हरों के मरबे के लाने जिम्मेवार आएं, का कभऊं उने चैन की नींद आ पाहे?’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘खूब नींद आहे बिन्ना! काय से के जो बे ओरें ऐसे इंसानियत वारे होते तो पैलई ने सब ठीक कर देते? ऐसी घटना घटतई काय खों?’’ भौजी बोलीं।
सई कई जाए तो भौजी की जे बात को जवाब मोरे पास ने हतो। कछू देर हम तीनोईं चुपचाप बैठे रए। काय से के हमें पतो रओ के हम ओरें बोल-बोल के अपने जी की भड़ास निकार रए, बाकी हमाई को सुन रओ? मनो एक बात आए, के हमें सोई अपने औ अपने बच्चन के लाने चौकन्नो रओ चाइए। जो कोनऊं गिरत भई दीवार होय, घर होय सो चार जने मिल के ऊको गिराबे के लाने आगे आओ चाइए। जो कऊं खतरो वालो वाटर फाल औ बंधान होय सो बच्चा हरों खो अकेले जाबे से कड़ाई से रोको चाइए। कऊं खुलो बोरवेल दिखाए, सो खुदई ढंाक देओ। ने तो ऊकी शिकायत करो। काय से के जो कोनऊं बुरई घटना घट जाए सो सबसे बड़ो नुकसान अपनोईं होत आए। ऐसो नुकसान जो कभऊं ठीक नईं करो जा सकत। बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
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