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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, October 9, 2024

चर्चा प्लस | ’आज की रात मज़ा..’ पर थिरकते बच्चियों के कदम और भयावह कल | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस 
’आज की रात मज़ा..’ पर थिरकते बच्चियों के कदम और भयावह कल 
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                            
        आज 3 से 5 पांच तक की नन्हीं बच्चियां भी सुरक्षित नहीं है। भाजपा के कद्दावर नेता पं. गोपाल भार्गव ने इस पर चिंता व्यक्त करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा कि ‘दुनिया के किसी भी देश में मुझे ऐसे समाचार देखने या पढ़ने को नहीं मिले।’ उनकी चिंता उचित है। लेकिन क्या उन माता-पिता को चिंता नहीं है जो ‘आज की रात मज़ा’ जैसे गानों पर अपने बच्चों को अश्लील हाव-भाव के साथ नृत्य कराते हैं और फिर उसे रील के रूप में सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं जिसे सारी दुनिया देखती है। बच्चों के साथ बढ़ती यौनहिंसा की दर को देखते हुए क्या ये सुरक्षित है?
         यौन अपराध और अपराधियों का दुस्साहस इस कदर बढ़ता जा रहा है कि देख कर अचम्भा होता है। अभी हाल ही में मध्यप्रदेश के छतरपुर में बलात्कार के एक आरोपी ने पीड़िता के घर में घुस कर उसके चाचा और उसे गोली मार दी तथा उसके रिश्तेदारों को भी घायल कर दिया। इसके बाद बड़े आराम से वहां से निकल गया। बलात्कार की पीड़िताओं को डराना, धमकाना और मौत के घाट उतार देना आम सी बात होती जा रही है। इस दूषित वातावरण में छोटी बच्चियां भी सुरक्षित नहीं रह गई हैं। आए दिन समाचारपत्रों में एक न एक समाचार किसी अवयस्क बच्ची के साथ यौनहिंसा की पढ़ने को मिल जाती है। सोच कर ही आश्चर्य होता है कि हमारा समाज अपराध के किस रास्ते पर चल पड़ा है? हम यह कह कर पल्ला नहीं झाड़ सकते हैं के यह सब टीवी, मोबाईल और इंटरनेट का दुष्परिणाम है। बच्चे उन्हें देख कर बिगड़ रहे हैं। अपराधी उन्हें देख कर अपराध करने को आतुर हो रहे हैं। किसी हद तक ये सही है किन्तु बहुत-सी जिम्मेदारी समाज, परिवार एवं माता-पिता की भी है जो सारे खतरों को जानते हुए भी आंख मूंदे हुए है। छतरपुर की ही उक्त घटना में आरोपी द्वारा पीड़िता को गोली मारे जाने के पूर्व आरोपी की मां पीड़िता के घर केस वापस लेने का दबाव बनाने के लिए गई थी। यह एक मां के पुत्रमोह का वह चरण था जिसकी तुलना धृतराष्ट्र के पुत्रमोह से की जा सकती है। फिर भी धृतराष्ट्र तो जन्मांध था किन्तु यहां आंख वाले सब कुछ देखते हुए भी आंख बंद किए रहते हैं। जाहिर है कि उस मां ने अपने बेटे के पहले छोटे-छोटे अपराधों पर पर्दा डाल कर उसे प्रोत्साहित किया होगा अन्यथा नौबत यहां तक नहीं आती। बहरहाल, यह तो हुआ अपराधी का पक्ष जो अपनी विकृत मानसिकता के कारण युवतियों को ही नहीं वरन नन्हीं अबोध बच्चियों को भी अपनी हवस का शिकार बना लेते हैं। कुछ वर्ष पूर्व मध्यप्रदेश के सागर शहर में एक छोटी बच्ची सुबह पूजा के लिए फूल तोड़ने घर से निकली और एक वहशी दरिंदे का शिकार बन गई। उस वहशी ने उस बच्ची के साथ दुव्र्यवहार तो किया ही, साथ ही उसे जान से मारने का प्रयास किया। वह बच्ची महीनों तक गहरे सदमें रही। 

आज 3 से 5 पांच तक की नन्हीं बच्चियां सुरक्षित नहीं है। भाजपा के कद्दावर नेता पं. गोपाल भार्गव ने इस पर चिंता व्यक्त करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा कि ‘दुनिया के किसी भी देश में मुझे ऐसे समाचार देखने या पढ़ने को नहीं मिले।’ उनकी चिंता उचित है लेकिन क्या उन माता-पिता को चिंता नहीं है जो ‘आज की रात मज़ा’ जैसे गानों पर अपने बच्चों को अश्लील हाव-भाव के साथ नृत्य कराते हैं और फिर उसे रील के रूप में सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं जिसे सारी दुनिया देखती है। बच्चों के साथ बढ़ती यौनहिंसा की दर को देखते हुए क्या ये सुरक्षित है?

जब वातावरण दूषित हो, अपराधयुक्त हो तो सावधानी में ही सुरक्षा है। लेकिन सोशलमीडिया के द्वारा कमाई के नशे ने गोया माता-पिता की चेतना को भी सुला दिया है। इन दिनों बाॅलीवुड की एक फिल्म का एक गाना बेहद चर्चित है -आज की रात मज़ा इश्क़ का...’’। गाने में कोई दोष नहीं है लेकिन उस गाने पर अत्यंत मादक नृत्य किया गया है। यदि फिल्मी गाने के रूप में उस पर विचार किया जाए तो उसके नृत्य पर भी आपत्ति की जा सकती है कि उसमें नृत्य मुद्राएं शालीन तो नहीं है किन्तु वह किसी नाबालिग बच्ची पर नहीं फिल्माया गया है। उस नृत्य के कामुक हाव-भाव को जब छोटी-छोटी बच्चियां करती हुई दिखाई देती हैं तो बहुत वीभत्स लगता है तथा इस बात की चिंता होती है कि सोशल मीडिया पर डाली गई उन रील्स को सभी तरह के लोग देखते हैं। कुछ दिनों पहले शिक्षा दिवस की एक रील बहुत चर्चा में रही जिसमें एक छोटी बच्ची ने इसी गाने को शिक्षक दिवस के मंच पर प्रस्तुत किया था। हद तो ये कि उसे कपड़े भी ठीक उसी तरह के पहनाए गए थे जो फिल्म में उस गाने में अभिनेत्री ने पहने है। क्या उस बच्ची के माता-पिता कोई उस पर कोई आपत्ति नहीं हुई? क्या उस विद्यालय के शिक्षकों को ज़रा भी शर्म नहीं आई? जब वह नृत्य रील के रूप में सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो क्या उस बच्ची के प्रति किसी आपराधिक मनोवृत्ति वाले व्यक्ति की नीयत खराब नहीं हुई होगी? ये सारे विचारणीय प्रश्न है। 
माता-पिता अपनों बच्चों के टैलेंट को दुनिया के सामने रखना चाहते हैं। यह स्वाभाविक है। इसकी शुरुआत वहीं से हो जाती है जब घर में किसी अतिथि के आने पर माता-पिता अपने बच्चे से कहते हैं कि बेटा/बेटी अंकल, आंटी को पोएम सुनाओ! कभी-कभी नृत्य कर के दिखाने को भी कहते हैं। लेकिन एक बैठक के कमरे में किया जाने वाले नृत्य और मंच किए जाने वाले नृत्य में अंतर होता है। उस पर सोशल मीडिया पर पोस्ट किए जाने वाले नृत्य तो और भी विचारणीय होते हैं। माता-पिता द्वारा इस तरह अनदेखी किए जाने की यह कोई इकलौती घटना नहीं है। कुछ वर्ष पूर्व न जाने कितने बच्चों ने अपने माता-पिता के प्रोत्साहन पर ‘‘शीला की जवानी’’ गाने पर डांस किया। यहां तक कि गणेशोत्सव के पंडाल में भी बच्चों द्वारा जब यह डांस प्रस्तुत किया गया तब कुछ लोगों को चिंता हुई और तय किया गया कि ऐसे डांस धार्मिक अवसरों के आयोजनों में न किए जाएं। लेकिन सोशल मीडिया पर तो स्वयं माता-पिता को ही ध्यान रखना होगा। 

    यह आवश्यक नहीं है कि जिस बच्ची का वीडियो सोशल मीडिया पर डाला गया, मात्र उसी के लिए खतरा हो। रील देख कर सभी यह नहीं जान सकते हैं कि वह बच्ची किस शहर की है, वह कहां हैं लेकिन उसी के शहर के उसको पहचानने वालों से उसे खतरा हो सकता है। उस रील को देख कर आतुर हो उठे विकृत मानसिकता वाले व्यक्ति वह बच्ची नहीं तो दूसरी बच्ची को अपना शिकार बना सकता है। कहने का आशय यही है कि यदि बच्चों के प्रति यौन अपराध को रोकना है तो जिस प्रकार सरकार ने इंटरनेट पर पोर्न फिल्म देखने के विरुद्ध कड़ा कदम उठाया है, उसी प्रकार माता-पिता एवं बच्चों के परिजन को सोशल मीडिया पर छोटी बच्चियों के अश्लील एवं कामुक हाव-भाव वाले नृत्यों को रोकना होगा। वैसे भी छोटे बच्चों को इस प्रकार के नृत्य करने के लिए प्रोत्साहित करना भी नहीं चाहिए। वे मासूम हैं। उन्हें न तो उन बोलों का अर्थ पता होता है और न उन हाव-भाव का। वे तो बस, काॅपी करते हैं और प्रस्तुत कर देते हैं इस आशा में कि इससे उन्हें शाबाशी मिलेगी। इस बर्ष भी गणेशोत्सव पर हुए अनेक कार्यक्रमों जहां एक ओर कुछ बच्चों ने गणेश वंदना पर नृत्य किया तो वहीं कुछ बच्चों ने ‘‘काटी रात मैंने खेतों में तू आई नहीं’’ गाने को पेश किया। 08-15 साल के बच्चे अपने माता-पिता और परिचितों के सामने यह नृत्य करते रहे और तालियां बजती रहीं। वे बच्चे उस गाने का सही-सही अर्थ भी नहीं जानते हैं लेकिन उनके माता-पिता तो अर्थ जानते हैं। जब यही बच्चे बड़े हो कर इन्हीं हरकतों को दोहराएंगे तब माता-पिता होश में आ कर बवाल मचाएंगे। घर से भागने वाला लड़का दोषी ठहराया जाएगा कि वह लड़की को बहला-फुसला कर भगा ले गया और घर से भागने वाली लड़की तो जीवनपर्यंत ‘घर से भागी हुई’ कहलाएगी। उस समय उस ओर कोई नहीं देखेगा कि इस घटना का बीजारोपण कब हो गया था।

यह भी उचित नहीं है कि अपराध के भय से बच्चों को घर में कैद कर दिया जाए लेकिन उचित यह भी नहीं है कि बच्चों को अपनी लालसा के चलते किसी खतरे में डाल दिया जाए। जितनी भड़कदार रील, उतने, लाईक, रील की उतनी लोकप्रियता और उतने ही रील से मिलने वाले पैसे। लेकिन क्या पैसा बच्चों की सुरक्षा से अधिक कीमती है? इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि ‘आज की रात मज़ा..’ पर थिरकते बच्चियों के कदम कहीं उनके भयावह कल की ओर तो नहीं ले जा रहे हैं। वस्तुतः जब नन्हीं बच्चियों के प्रति यौनहिंसा दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही हो तो अपराधियों की इस प्रकार की खुली दावत देना उचित नहीं है। माता-पिता तथा अभिभावकों को इस बात की गंभीरता को समझना होगा।          
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