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My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, December 3, 2024

पुस्तक समीक्षा | बुंदेलखंड की आधुनिक चर्चित हिन्दी कहानियों का संकलन | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

आज 03.12.2024 को 'आचरण' में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई अभिषेक ऋषि जी द्वारा संपादित कहानी संग्रह की समीक्षा।
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पुस्तक समीक्षा  
बुंदेलखंड की आधुनिक चर्चित हिन्दी कहानियों का संकलन
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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कथा संग्रह   - रामसजीवन की मां
संपादक      - अभिषेक ऋषि
प्रकाशक     - समीक्षा प्रकाशन,एक्स/3284ए, गली नं. 4, रघुबरपुरा नं. 2, गांधीनगर, दिल्ली-110031
मूल्य        - 600/- 
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       यूं तो कहानी चाहे किसी भी क्षेत्र की हो, कहानी ही रहती है किन्तु उसमें अपने क्षेत्र विशेष का आस्वाद उसे अन्य क्षेत्रों की कहानी से अलग बनाता है। हर भौगोलिक क्षेत्र की अपनी अलग विशेषताएं होती हैं, अलग संस्कृति होती है और अलग समस्याएं होती हैं। इन्हीं सब पर कहानियों का ताना-बाना बुना होता है। बुंदेलखंड पौराणिक काल से कथा साहित्य का धनी रहा है। वह चाहे शिव और काली के विवाह की कालंजर की कथा हो या दर्शाणराज नरेश की पुत्री हिरण्यमयी और शिखंडी की कथा अथवा चंद्रदेव और हेमवती के परस्पर प्रेम से जन्मे चंद्रवर्मन की कथा जिसने खजुराहो में मंदिरों की रचना कराई आदि कथाओं के रूप में बुंदेलखंड को पुराणों में स्थान मिला है। बुंदेलखंड के लोकसाहित्य में लोक कथाओ के साथ काव्य-कथाओं का भी वर्चस्व रहा। हिन्दी साहित्य का आधुनिक काल आने पर कथासम्राट प्रेमचंद ने भी बुंदेलखंड के राजा हरदौल का बलिदान की कथा को अपने अपनी कहानी के रूप में ‘‘राजा हरदौल’’ के नाम से ढाला। बुंदेलखंड आर्थिक रूप से भले ही पिछड़ा हुआ क्षेत्र हो किन्तु साहित्य की दृष्टि से उर्वर रहा है। डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर (मध्य प्रदेश) में हिन्दी अनुवादक के रूप में कार्यरत अभिषेक ऋषि ने बुंदेलखंड की आधुनिक काल की चर्चित कहानियों का संकलन एवं संपादन किया है जिसका नाम है- ‘‘रामसजीवन की मां’’।

बुंदेलखंड के निम्न-मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे अभिषेक ऋषि ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई राठ जिला हमीरपुर (उत्तर प्रदेश) से की। फिर इलाहाबाद, वर्धा और सागर में रहते हुए एम.ए. (अंग्रेजी, हिंदी), अनुवाद में स्नातकोत्तर डिप्लोमा व एम.फिल. (अंग्रेजी) आदि की पढ़ाई की। समाज, साहित्य और संस्कृति से जुड़े विमर्शों और हलचलों में गहरी रुचि रखने वाले अभिषेक ऋषि ने कथाकार उर्मिला शिरीष की चुनिंदा कहानियों के संग्रह ‘‘चीख’’ का सम्पादन कर चुके हैं। कविताएं लिखने एवं काव्यपाठ में भी रुचि है। डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर की राजभाषा उन्नयन की पत्रिका ‘‘भाषा भारती’’ के सहायक सम्पादक हैं तथा अपना कार्य-दायित्व निभाते हुए अनुवाद कार्य करते रहते हैं। ‘‘राम सजीवन की मां’’ उनकी वह प्रथम कृति है जिसमें उन्होंने समग्र बुंदेलखंड के कथा स्वर को सहेजने का प्रयास किया है। बुंदेलखंड का क्षेत्र अपने-आप में बहुत विस्तृत है। यह मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश दो भागों में फैला हुआ है। जब कथा अथवा काव्य के इस प्रकार के संकलन तैयार किए जाते हैं तो वे प्रायः या तो मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड तक सीमित होते हैं या फिर उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड तक। यह सुखद है कि अभिषेक ऋषि ने दोनों प्रदेशों में विस्तृत बुंदेलखंड के कथाकारों की चर्चित कहानियों को एक ज़िल्द में संग्रहीत किया है। संग्रह के आरंभ में ‘‘बुंदेली भूमि की बहुरंगी कथायात्रा’’ के शीर्षक से लगभग सोलह पृष्ठों की विस्तृत भूमिका लिखी है जिसकी शुरुआत बुंदेलखंड के सांस्कृतिक-साहित्यिक संक्षिप्त परिचय तथा उसके बाद संग्रह के कथाकारों सहित उनकी कहाानियों का परिचय दिया है।

संग्रह की प्रथम कहानी है कथा सम्राट प्रेमचंद की ‘‘राजा हरदौल’’। यह इतिहास की कथा है जिसे उन्होंने प्रेमचंद के कहानी संग्रह ‘‘नवनिधि’’ से लिया है। संपादक अभिषेक ऋषि ने कथानक का परिचय देते हुए लिखा है कि ‘‘राजा हरदौल बुंदेलखंड के सर्वाधिक लोकप्रिय नायकों में से एक लाला हरदौल पर केन्द्रित है। मुगलकाल में बुंदेलखंड का ओरछा राज्य बुंदेलों का गौरव रहा है। कहानी के पात्र उसी कालखंड के इतिहास का हिस्सा हैं। बुंदेलखंड में शायद ही कोई हो जो जुझार सिंह और हरदौल जैसे वीर-बुंदेलों की वीरता से परिचित न हो। आत्मदानी लाला हरदौल तो लोक में रचे-बसे एक ऐसे नायक हैं जिनको याद किए बिना कोई वैवाहिक कार्यक्रम सम्पन्न होना सम्भव नहीं है। बहुगुणी हरदौल लोक में इस तरह बसे हैं कि हर गाँव-शहर में उनके चबूतरे मिलेंगे। हरदौल की इस लोक-स्वीकृति का कारण क्या है? कहानी में वही प्रसंग है। प्रेमचंद की लेखनी और राजा हरदौल का आत्मदानी व्यक्तित्व इस कहानी के प्राण हैं।’’

कुल सत्रह कहानियों में दूसरी कहानी है ‘‘शरणागत’’। यह बुंदेलखंड के मऊरानीपुर (झांसी) में जन्मे मूर्धन्य उपन्यासकार और लेखक वृंदावनलाल वर्मा की कहानी है। एक ऐसे बागी बुंदेले की कहानी है जो अपनी शरण में आए राहगीर की रक्षा के लिए अपनों के विरुद्ध जाने में भी संकोच नहीं करता। कहानी का नायक ठाकुर साहब ऐसे व्यक्ति का चरित्र है जिसमें शरणागत धर्म की रक्षा का बहुत महान् गुण है। शरणागत की रक्षा उनका एक ऐसा गुण है जो उनके सभी अवगुणों पर भारी पड़ता है। इसमें मानवीय प्रेम के सिद्धान्त के महत्त्व को प्रतिपादित किया गया है। तीसरी कहानी ‘‘मानुषी’’ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी के छोटे भाई चिरगाँव (झाँसी) में जन्मे  सियाराम शरण गुप्त की है। सामाजिक और पारिवारिक समस्याओं के इर्द-गिर्द बुनी गई यह कहानी का आरंभ और अंत पौराणिक आख्यान की तरह शिव-पार्वती संवाद से हुआ है। कहानी की नायिका श्यामा आदर्श पत्नी है जो अपने पति मनोहरलाल की स्वभावगत कमियों को नजरंदाज करते हुए अन्तिम समय तक सेवा करती है। इतना ही नहीं अपने पति के स्वर्गवासी होने के बाद भी त्याग के उच्चादर्श प्रस्तुत करती है। स्वयं पार्वती भी श्यामा को जीवित तीर्थ के समान पवित्र मानती हैं। यह एक पारंपरिक स्वर की आदर्शवादी कहानी है। चौथी कहानी वल्लभ सिद्धार्थ की ‘‘खजुराहो’’ है। यह कहानी पति-पत्नी के रिश्तों पर केन्द्रित है। पति प्रकाश और पत्नी सुनंदा। उनकी शादी को अभी बहुत समय नहीं बीता है पर जितना भी बीता है, अधिक लगता है। संपादक के शब्दों में -‘‘विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल खजुराहो भी एक रूपक के रूप में पाठकों के समक्ष उपस्थित है, जो प्रेम के सच्चे स्वरूप को अभिव्यक्त करता है। प्रेम नैसर्गिक और सर्वव्यापी है, जरूरत है तो बस अपने अंतर्मन में झाँकने की। नायक और उसकी सुलक्षणा पत्नी के प्रेम के बीच एक छद्म दीवार है, नायिका के अतीत की। दोनों ओर बराबर की गाँठ है। गिरह खुले तो जीवन चले। पर्दे हटें तो पिया मिलें। खजुराहो तो बस इतना कहना चाहता है कि अगर मूर्ति की कला और सौन्दर्य को पारखी न मिले तो उपेक्षा-अपमान शिल्पकार को सहना होता है।’’

‘‘छछिया भर छाछ’’ कहानी ग्वालियर जिले के बिल्हैटी में जन्मे कथाकार महेश कटारे की है। यह मानवीय संवेगों की विशिष्ट कथा है जिसमें कथा नायक को बलिष्ठ शरीर का होते हुए भी थर्डजेंडर समझा जाता है। इस समझ के व्यूह को तोड़ने के लिए वह विवाह करता है। पत्नी गर्भवती होती है किन्तु समस्याएं यहां ख़त्म नहीं होती हैं। यह पाठक को बांधे रखने वाली कहानी है। ‘‘रामसजीवन की मां’’ बांदा में जन्मे गोविंद मिश्र की कहानी है। कहानी में बुंदेलखंड के एक छोटे-से कस्बे मऊ के मुहल्ले का परिवेश है। मन में परस्पर दुश्मनी पाले दो पड़ोसी उस समय आत्मीय हो उठते हैं जब उनमें से एक की बेटी के विवाह के बाद विदाई का क्षण आता है। 

स्त्रीविमर्श की चर्चित कथाकार मैत्रेयी पुष्पा की ‘‘राय प्रवीण’’ संग्रह की सातवीं कहानी है। मैत्रेयी पुष्पा का आरम्भिक जीवन झांसी जिले के खिल्ली गांव में व्यतीत हुआ। यह कहानी बुंदेलखंड की चर्चित नर्तकी नायिका राय प्रवीण की कथा पर आधारित है। आठवीं कहानी ‘‘खिड़की’’ झांसी के कथाकार बृजमोहन की है।  झाँसी शहर के एक मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी है। कहानी के मुख्य पात्र एकनाथ का सपना शहर में अपना एक ऐसा घर बनाने का है जिसमें एक बड़ी-सी खिड़की हो। बैंक से रिटायर एकनाथ के इस सपने के पूरा होने की राह में वे सारी बाधाएँ हैं जिनसे एक मध्यमवर्गी को अक्सर दो-चार होना होता है। ‘‘प्यास’’ कहानी ललितपुर जिले के पिपराई में जन्मे महेश कटारे ‘‘सुगम’’ की कहानी है। कहानी में भारतीय ग्रामीण समाज में व्याप्त जातिभेद जैसी विसंगतियों को लक्ष्य किया गया है। ‘‘पोटली’’ कहानी की लेखिका चिरगाँव, झाँसी में जन्मी रजनी गुप्त हैं। यह कहानी बुंदेलखंड की कृषक समस्या पर आधारित है। एक किसान अपनी जमीन होते हुए भी किस तरह जीवन के लिए संघर्ष करता है, इसमें मार्मिक विवरण है। ‘‘हानियां’’ झांसी में जन्मे कथाकार विवेक मिश्र की कहानी है। इसमें चंअल के बीहड़ से ले कर प्रशासनिक जंगलराज तक की परतें उजागर की गई हैं। ‘‘सो जा वारे वीर’’ महोबा जिले के कुलपहाड़ में जन्मे तथा थर्डजेंडर लिखे अपने कथा साहित्य के लिए चर्चित महेन्द्र भीष्म की कहानी है। ‘‘सो जा वारे वीर’’ बालमनोविज्ञान को सामने रखती कहानी है। इसका बालनायक चंचल है, थोड़ा उद्दंड भी। जिससे उसकी मां परेशान हो कर उसे अपने से दूर कर देती है ताकि वह सुधर जाए। उस बालनायक को तब मां का महत्व पता चलता है। 

‘‘मरद’’ कहानी मध्यप्रदेश के पन्ना में जन्मीं और सागर शहर की निवासी डॉ. शरद सिंह की कहानी है।  अछूते-अनूठे विषयों पर अपनी कलम चलाने के लिए चर्चित शरद सिंह के उपन्यास ‘‘पिछले पन्ने की औरतें’’ को आलोचक परमानंद श्रीवास्तव ने रिपोतार्ज शैली का प्रथम मौलिक हिन्दी उपन्यास कहा है। ‘‘मरद’’ कहानी ग्रामीण अंचल में स्त्रियों के शौच के लिए घर से बाहर एकांत में जाने की विविशता तथा उस दौरान बलात्कार जैसी घटनाओं की त्रासदी पर आधारित है। ऐसी ही एक घटना के बाद विचलित हो कर कथानायिका अपने पति को धिक्कारती हुई स्वयं ‘मरद’ का दायित्व निभा कर इस समस्या से छुटकारे की घोषणा करती है। यह स्त्रीविमर्श की सश्सक्त कहानी है। ‘‘चम्पा महाराज, चेलम्मा और प्रेमकथा’’ के लेखक अशोकनगर कथाकार राजनारायण बोहरे की कहानी है जो सामंती सोच से उपजी विसंगतियों को पूरी विश्वसनीयता से रेखांकित करती है। ‘‘सगाई’’ हमीरपुर जिले के गाँव इटैलिया (बाजा) के लेखक लखनलाल पाल की कहानी है। इस कहानी में ग्रामीण परिवेश के लोकाचार को आधार बनाया गया है। ‘‘चपेटे’’ मध्य प्रदेश के दतिया जिले में जन्मी चर्चित लेखिका उर्मिला शिरीष की कहानी है। कहानी का शीर्षक ‘‘चपेटे’’ बुंदेलखंड के एक प्रसिद्ध खेल से लिया गया है जिसे वर्षा ऋतु में लड़कियाँ अपनी सहेलियों के साथ खेलती हैं। संपादक के अनुसार ‘‘कहानी की सूत्रधार ने अपनी प्रिय सहेली (नायिका रामबती) के संघर्षों की गाथा कहते-कहते नायिका के जीवन में झाँकने की कोशिश तो की ही है साथ ही समाज की उन चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला है जिनसे किसी भी नारी को रूबरू होना पड़ता है।’’ संग्रह की अंतिम कहानी है ‘‘गुड़ की डली’’ जिसकी लेखिका हैं दतिया में जन्मी इंदिरा दांगी। कहानी में लड़कियों के जीवन से जुड़ी चुनौतियों को मुद्दा बनाया गया है जो वर्तमान समाज की मानसिकता पर करारा प्रहार करती है।

संपादक अभिषेक ऋषि ने बुंदेलखंड की चर्चित कथाओं का एक बेहतरीन संग्रह संपादित किेया है। बस, संग्रह के नाम को ले कर अड़चन पैदा होती है क्योंकि यह संग्रह की एक कहानी का शीर्षक है जो कि समवेत संग्रह के लिए अनुपयुक्त ठहरता है। संग्रह का नाम ‘‘बुंदेलखंड की चर्चित हिन्दी कहानियां’’ ही रखा जाना चाहिए था जिसे आवरण में टैगलाईन के रूप में दिया गया है। शेष, यह कथा संग्रह बुंदेलखंड के कथा के विकास एवं विषय की विविधता को बाखूबी प्रस्तुत करता है। पाठकों एवं शोधार्थियों दोनों के लिए यह संग्रह उपयोगी है। इसे अवश्य पढ़ा जाना चाहिए।     
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