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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, August 31, 2016

चर्चा प्लस ... लेना होगा रियो ओलम्पिक से सबक .... डाॅ. शरद सिंह

Dr Sharad Singh
मेरा कॉलम  "चर्चा प्लस"‬ "दैनिक सागर दिनकर" में (24. 08. 2016) .....


 


My Column Charcha Plus‬ in "Dainik Sagar Dinkar" .....
लेना होगा  रियो ओलम्पिक से सबक
- डॉ. शरद सिंह
        सवा सौ करोड़ की जनसंख्या की ओर से 119 खिलाड़ी रियो ओलम्पिक में शामिल हुए। इन 119 खिलाड़ियों में से मात्र दो खिलाड़ियों ने पदक जीते। वह भी कांस्य और रजत। पदकों के अकाल के बीच छाई घनी अंधियारी में दो महिला खिलाड़ियों ने भारत की लाज बचाई और भारत की खाली झोली में दो पदक डाले। पी. वी. सिंधु ने रजत पदक और साक्षी मलिक ने कांस्य पदक जीता। लेकिन खुश होने के लिए दो पदक प्र्याप्त नहीं हैं। हमें पदकों का यह अकाल क्यों झेलना पड़ा इसकी समीक्षा भी जरूरी है। लेना होगा रियो ओलम्पिक से सबक तभी टोक्यो में कुछ हासिल कर पाएंगे।
  चार साल की तैयारी के दौरान देशवासियों को बड़ी आशा थी कि इस बार देश को पदक तालिका में सम्मानजनक स्थान मिलेगा। भारत ने 2012 में पिछले लंदन ओलंपिक में दो रजत और चार कांस्य सहित छह पदक जीते थे जबकि 2008 के बीजिंग ओलंपिक में भारत ने एक स्वर्ण और दो कांस्य सहित तीन पदक जीते। इस बार भारत के लिये भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) ने दस से 15 पदक का दावा किया था लेकिन परिणाम रहा दो पदकों में सिमटा हुआ। वह तो गनीमत है कि सिंधू और साक्षी ने 24 घंटे के अंतराल में दो पदक जीतकर देश के सम्मान को सहारा दिया। अन्यथा 12 दिनों का खेल हो जाने पर भी भारत का खाता न खुल पाने पर यही लगने लगा था कि पदक तालिका में देश को जगह मिल ही नहीं पाएगी। जनसंख्या के हिसाब से विश्व के दूसरे नंबर का देश होने पर भी पदक तालिका में शून्य रहना भारत के लिए सबसे शर्मनाक बात होती। लेकिन दो बैसाखियों के सहारे पदक तालिका में पहुंच ही गए। पहले हरियाणा की साक्षी ने ऐतिहासिक कांस्य पदक जीता और फिर हैदराबाद की सिंधू ने ऐतिहासिक रजत पदक जीत लिया। सवा सौ करोड़ की जनसंख्या की ओर से 119 खिलाड़ी रियो ओलम्पिक में शामिल हुए। इन 119 खिलाड़ियों में से मात्र दो खिलाड़ियों ने पदक जीते। वह भी कांस्य और रजत। पदकों के अकाल के बीच छाई घनी अंधियारी में दो महिला खिलाड़ियों ने भारत की लाज बचाई। लेकिन खुश होने के लिए दो पदक प्र्याप्त नहीं हैं। हमें पदकों का यह अकाल क्यों झेलना पड़ा इसकी समीक्षा भी जरूरी है।
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper

जीते नहीं पर उल्लेखनीय रहे 


साक्षी और सिंधु ने न केवल अच्छा प्रदर्शन किया बल्कि पदक भी जीत कर दिखाया लेकिन कुछ खिलाड़ी ऐसे भी रहे जो पदक तो नहीं जीत सके लेकिन उनके प्रदर्शन को इस उम्मी में अच्छा माना जा सकता है कि ये चार साल बाद टोक्यों ओलम्पिक में पदकों की कमी को दूर कर दिखाएंगे। महिला जिमनास्ट दीपा करमाकर का वॉल्ट फाइनल में चैथा स्थान हासिल करना, निशानेबाज अभिनव बिंद्रा का दस मीटर एयर राइफल स्पर्धा में चैथे स्थान पर रहना, एथलीट ललिता बाबर का 3000 मीटर स्टीपलचेका में दसवें नंबर पर रहना, सानिया मिर्जा और रोहन बोपन्ना का कांस्य पदक मुकाबले में हारना, किदांबी श्रीकांत का बैडमिंटन के पुरुष क्वार्टरफाइनल में हारना, पुरुष तीरंदाज अतानु दास का क्वार्टरफाइनल तक पहुंचना, मुक्केबाज विकास कृष्णन यादव का भी क्वार्टरफाइनल में पहुंचना, 18 वर्षीय महिला गोल्फर अदिति अशोक का 41वां स्थान हासिल करना और युवा निशानेबाज जीतू राय का 10 मीटर एयर पिस्टल में आठवें स्थान पर रहना इस निराशाजनक अभियान के बीच कुछ उल्लेखनीय प्रदर्शन रहे। 

जिनसे बहुत उम्मीदें थीं

यूं तो जितने भी खिलाड़ी ओलम्पिक में भेजे जाते हैं उनसे बड़ी उम्मीदें रहती हैं। क्योंकि वे अच्छे खिलाड़ी ही होते हैं जिनका ओलम्पिक के लिए देश के भीतर चयन किया जाता है फिर चार साल का विशेष अभ्यास और उसके बाद क्वालीफाईंग प्रदर्शन के बाद ही कोई खिलाड़ी ओलम्पिक के मैदान पर उतर पाता है। फिर भी कई दिग्गजों के सुपर फ्लॉप प्रदर्शन के बीच भारत का रियो ओलंपिक में अभियान रिकॉर्ड 119 सदस्यीय दल उतारने के बावजूद मात्र दो पदकों के साथ समाप्त हो गया। टेनिस में सानिया मिर्जा और बैडमिंटन में सायना नेहवाल से बहुत आशाएं थीं। ओलम्पिक से बाहर इनका प्रदर्शन सदैव अच्छा रहा है। भारत को 31वें ओलम्पिक खेलों में पुरुष खिलाड़ियों ने सर्वाधिक निराश किया। बीजिंग ओलम्पिक 2008 में स्वर्ण पदक जीतने बाले निशानेबाज अभिनव बिंद्रा कांस्य पदक के बिल्कुल नजदीक पहुंचकर लड़खड़ा गए। उनसे भी एक बार फिर इतिहास दोहराए जाने की आशा थी। भारोत्तोलकों और धावकों ने भी खासा निराश किया। कुश्तीमें भारत के पदक की उम्मीद योगेश्वर दत्त क्वालिफिकेशन राउंड में ही हार गए। योगेश्वर वल्र्ड नंबर 6 गांजोरिग के खिलाफ कोई दांव नहीं लगा पाए। एक बार अटैक की कोशिश भी की, लेकिन खुद ही पटकनी खा गए। मैराथन में टी गोपी 39वें, खेता राम 52वें और नितेंद्र सिंह 93वें स्थान पर रह गए। योगी की हार के साथ ही 31वें ओलिंपिक में भारत का अभियान खत्म हो गया। भारत ने रियो में सिर्फ दो मेडल जीते। पीवी सिंधु ने सिल्वर और साक्षी ने ब्रॉन्ज जीता। यह पिछले तीन ओलिंपिक यानी आठ साल में भारत का सबसे कमजोर प्रदर्शन है। भारत ने बीजिंग में तीन और लंदन में छह मेडल जीते थे। अमेरिका 45 गोल्ड समेत 120 पदक के साथ मेडल टैली में टॉप पर रहा। यह दूसरा अवसर है जब हमारी सिर्फ महिला खिलाड़ी मेडल जीत सकीं। इससे पहले 2000 में सिडनी ओलिंपिक में एकमात्र मेडल कर्णम मल्लेश्वरी ने दिलाया था। पिछले 12 साल में यह पहला मौका है जब हमारा कोई भी पुरुष खिलाड़ी मेडल नहीं जीत पाया। अब तक का अपना सबसे बड़ा ओलम्पिक दल भेजने के बावजूद भारत पिछले प्रदर्शन से भी फिसड्डी रहा।
विनेश चोटिल होकर बाहर, तीरंदाजी में अतानु,दीपिका, बोंबायला प्री क्वार्टर में हारे। महिला टीम क्वार्टर फाइनल शूटआॅफ में हारी, एथलेटिक्समें पुरुष एथलीट पहले राउंड से आगे नहीं बढ़ पाए। ललिता फाइनल खेलने वाली एकमात्र एथलीट रहीं। बॉक्सिंग में विकासक्वार्टर, मनोज प्री क्वार्टर और शिवा थापा पहला मैच ही हारे। हॉकी में पुरुषटीम क्वार्टर में हारी। महिला टीम आखिरी स्थान पर रही। गोल्फ में एसएसपीचैरसिया 50वें, अनिर्बाण 57वें और अदिति 41वें स्थान पर रहीं। जिम्नास्टि में दीपावॉल्ट में 0.15 अंक से ब्रॉन्ज चूकीं। जूडो में अवतारपहले राउंड में रिफ्यूजी खिलाड़ी से हारे। रोइंग में दत्तू क्वार्टर में हारे। शूटिंग में सिर्फअभिनव बिंद्रा और जीतू राय ही फाइनल में पहुंचे।स्वीमिंग में साजन और शिवानी हीट से आगे नहीं बढ़े। टेनिस में मिक्स्डडबल्स में ब्रॉन्ज मेडल मैच में हारी सानिया-बोपन्ना की जोड़ी। वेटलिफ्टिंग में एससतीश और चानू फाइनल में ही प्रवेश नहीं कर पाए। 


सुविधाओं की कमी का रोना

5 से 21 अगस्त 2016 तक चलने वाले रियो ओलम्पिक में खराब प्रदर्शन के बाद कई खिलाड़ियों ने सुविधाओं की कमी का रोना रोया। यदि सुविधाओं में सचमुच बहुत कमी थी तो साक्षी और सिंधू को वह कमी क्यों नहीं रोक पाई? या फिर हमारे खिलाड़ी भी अधिक सुविधाभोगी और पैसों के पीछे भागने वाले बनते जा रहे हैं। सुविधा में कमी का रोना रोने वाले खिलाड़ी और उनके समर्थक अकसर क्रिकेट का उदाहरण देते हैं और तर्क देते हैं कि क्रिकेटरों की भांति उन पर भी पैसों की बरसात क्यों नहीं होती है? उस समय वे भूल जाते हैं कि 20-20 खेलने वाले खिलाड़ी ‘निजी मालिकों’ की ‘सम्पत्ति’ बन कर खेलते हैं जो पैसों की दृष्टि से बेहतर होता है लेकिन सम्मान की दृष्टि से देश का प्रतिनिधि बन कर खेलना कहीं अधिक सम्मानजनक होता है। ओलम्पिक जैसे वैश्विक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व करने से मिलने वाले सम्मान को पैसों में नहीं तौला जा सकता है। जहां तक सुविधाओं का सवाल है तो बहुत से आफ्रिकी देश जिनके खिलाड़ियों ने ओलम्पिक में भाग लिया, बुनियादी सुविधाओं के अभाव से गुज़र रहे हैं। वहां के खिलाड़ियों को न तो भरपेट पौष्टिक भोजन मिलता है और ने बेहतरीन जूते। फिर भी वे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं। टर्की जैसा देश अपनी आंतरिक अस्थिरता और तख़्तापलट से बाल-बाल बचा। फिर भी वहां के खिलाड़ियों ने बेहतर प्रदर्शन किया।
भारतीय खिलाड़ियों को और कितनी और कैसी सुविधाएं चाहिए इस पर उनसे खुल कर राय मंगाई जानी जरूरी है। लेकिन क्या सुविधाओं के बदले वे यह आश्वासन दे सकेंगे कि वे देश के लिए पदक ला कर ही रहेंगे? जब मुकाबला विश्वस्तर का हो तो सुविधाओं से कहीं अधिक लगन और आत्मबल की आवश्यकता होती है। इस बात को सिंधु और साक्षी ने साबित भी कर दिया है। 


टोक्यो ओलम्पिक के लिए मंथन जरूरी

जो हुआ सो हुआ। रियो ओलम्पिक के परिणाम बदले नहीं जा सकते हैं। ओलम्पिक के इतिहास में भारत दो पदकों के साथ अंकित हो गया है और रियो ओलम्पिक का नाम आते ही ये दो पदक ही आंसू पोंछने का रूमाल बनेंगे। लेकिन कहा गया है न कि ‘‘बीती बात बिसारिए, आगे की सुध लेय’’, तो अब आगे टोक्यो ओलम्पिक के लिए हमें उन स्थितियों की समीक्षा करनी ही होगी जिनके कारण हम रियो में पदक पाने से वंचित रह गए। खिलाड़ियों के चयन से ले कर उनकी सुविधाओं तक ध्यान देते हुए खिलाड़ियों को भी इस बात के लिए तैयार करना होगा कि वे अपने प्रदर्शन को व्यक्तिगत प्रदर्शन नहीं बल्कि देश का प्रदर्शन मान कर अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए तत्पर रहें। यदि वे ऐसा नहीं कर सकते हैं तो ईमानदारी से पीछे हट जाएं और दूसरे खिलाड़ियों को मौका दें, जो उनसे बेहतर खेल सकते हों। अब टोक्यो ओलम्पिक में कुछ कर दिखाना है तो रियो में मिली असफलताओं का मंथन करना ही होगा।
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