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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, January 10, 2019

लेखिका डॉ. शरद सिंह की पुस्तक ‘‘थर्ड जेंडर विमर्श’’

Third Gender Vimarsh - The  Book of Dr Sharad Singh
‘थर्ड जेंडर विमर्श’ पुस्तक पर 09.01.2019 को दैनिक ‘‘आचरण’’ में प्रकाशित समाचार एवं डॉ. शरद सिंह (मुझसे) पुस्तक के संबंध में की गई बातचीत ....
 Third Gender Vimarsh - Book Release of Dr Sharad Singh at World Book Fair Delhi,  Aacharan, Sagar Edition, 09.01.2019
              लेखिका डॉ. शरद सिंह की पुस्तक ‘‘थर्ड जेंडर विमर्श’’ .....

सागर। नगर की हिन्दी की चर्चित लेखिका एवं स्त्रीविमर्शकार डॉ. (सुश्री) शरद सिंह नवीन विषयों पर अपने लेखन के लिए साहित्य जगत में विशेष पहचान बना चुकी हैं। उनकी नवीन पुस्तक ‘‘थर्ड जेंडर विमर्श’’ का दिल्ली में चल रहे विश्वपुस्तक मेला में देश की अकादमी सम्मान से सम्मानित ख्यातिलब्ध वरिष्ठ साहित्यकार चित्रा मुद्गल ने लोकार्पण किया। शरद सिंह की यह पुस्तक समाज के सबसे उपेक्षित वर्ग किन्नरों अर्थात् थर्ड जेंडर के जीवन के विभिन्न पक्षों पर आधारित है। नवीन विषयों में रुचि रखने वालों, समीक्षकों एवं विश्वविद्यालयीन शोधार्थियों के बीच यह पुस्तक अपने प्रकाशन के साथ ही चर्चित हो चली है। उल्लेखनीय है कि शरद सिंह के उपन्यासों ‘पिछले पन्ने की औरतें’, ‘पचकौड़ी’ तथा ‘कस्बाई सिमोन’ पर देश के अनेक विश्वविद्यालयों द्वारा शोध कार्य कराया जा चुका है। डॉ. शरद सिंह ने महिला जागरूकता एवं सशक्तिकरण विषयों पर अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी हैं जिनके लिए उन्हें राष्ट्रीय एवं प्रदेशिक स्तर पर सम्मानित भी किया जा चुका है तथा अब तक इनकी की विभिन्न विषयों पर पचास से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। अपनी पुस्तक ‘थर्ड जेंडर विमर्श’ के बारे में चर्चा करते हुए लेखिका शरद सिंह ने बताया कि ‘‘थर्ड जेंडर के पक्ष में कई साहित्यकार लगभग पिछले एक दशक से सक्रियता से आवाज़ उठा रहे हैं लेकिन वह विमर्श खड़ा नहीं हो पा रहा है जिसकी आवश्यकता है। बस, इसीलिए मुझे लगा कि हिन्दी साहित्य में पिछले एक-डेढ़ दशक में जो महत्वपूर्ण लेखन किया गया है उस पर आधारित सामग्री एक प्लेटफार्म पर लाई जाए और यह एक पुस्तक के रूप में पाठकों के लिए अधिक उपयोगी साबित होगी।’’
‘थर्ड जेंडर विमर्श’ पुस्तक में किस तरह की सामग्री है उस पर प्रकाश डालते हुए डॉ. शरद सिंह ने बताया कि ‘‘इस पुस्तक में थर्ड जेंडर के जीवन और मनोदशा का विश्लेषण करने वाला बहुचर्चित उपन्यास ‘‘पोस्ट बॉक्स 203 नाला सोपारा’’ पर केन्द्रित सामग्री है। आपको बता दूं कि ‘व्यास सम्मान’ प्राप्त लेखिका चित्रा मुद्गल को इसी उपन्यास के लिए तथा साहित्य अकादमी सम्मान से सम्मानित किया किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त निर्मला भुराड़िया, नीरजा माधव, महेन्द्र भीष्म, सुधा अरोड़ा, तबस्सुम जहां आदि के महत्वपूर्ण आलेख तथा किन्नरों से लिए गए साक्षात्कारों को भी मैंने इसमें सहेजा है। दरअसल, यह पुस्तक उन सभी के लिए बहुउपयोगी साबित होगी जो थर्ड जेंडर के जीवन बारे में गहराई से जानना चाहते हैं।’’
अपनी पुस्तक के विषय के संदर्भ में शरद सिंह कहती हैं कि ‘‘समय आ गया कि समाज और थर्ड जेंडर के बीच की दूरी मिटाई जाए। इसीलिए साहित्यकार इसके लिए साहित्यिक सेतु बनाने लगे हैं जो थर्ड जेंडर विमर्श के रूप में आकार ले चुका है। यह जो समामाजिक व्यवस्था है कि हिजड़ा, किन्नर, ख़्वाजासरा, छक्का...अनेक नाम उस मानव समूह को दिए जा चुके हैं, जो न तो स्त्री हैं, न पुरुष और उन्हें स्वयं समाज विचित्र दृष्टि से देखता है। जबकि वही समाज अपने परिवार की खुशी, उन्नति और उर्वरता के लिए उनसे दुआएं पाने के लिए लालायित रहता है किन्तु उनके साथ पारिवारिक संबंध नहीं रखना चाहता। उनके पास सम्मानजनक रोजगार नहीं है। अनेक परिस्थितियों में उन्हें यौन संतुष्टि का साधन बनना और वेश्यावृत्ति में लिप्त होना पड़ता है। समाज का दायित्व था कि वह थर्ड जेंडर के रूप में पहचाने जाने वाले इस तृतीयलिंगी समूह को अंगीकार करता। दुर्भाग्यवश ऐसा हुआ नहीं। फिर साहित्यकारों का ध्यान इस ओर गया। हिन्दी कथा साहित्य में थर्ड जेंडर की पीड़ा को, उसके जीवन के गोपन पक्ष को दुनिया के सामने लाया जाने लगा। लोगों में कौतूहल जागा, भले ही शनैः शनैः। ‘यमदीप’, ‘किन्नरकथा’, ‘तीसरी ताली’, ‘गुलाम मंडी’, ‘पोस्ट बॉक्स नं. 203 नाला सोपारा’ जैसे उपन्यास लिखे गए। स्वयं थर्ड जेंडर ने आत्मकथाएं लिखीं। शिक्षा, समाज, राजनीति और धर्म के क्षेत्र में थर्ड जेंडर ने अपनी योग्यता को साबित किया। समाज के लिए भी अपनी संकीर्ण मानसिकता के खोल से बाहर आना और थर्ड जेंडर के प्रति एक नया नज़रिया अपनाना जरूरी है।’’
शरद सिंह का मानना है कि ‘‘साहित्यकारों को हमेशा उन मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए जो समाज के उपेक्षित वर्गों से जुड़े हुए हैं और जिन्हें विमर्श बनने से पहले ही अकसर टाल दिया जाता है। साहित्य वह सशक्त माध्यम है जिसमें निष्पक्ष भाव से मुद्दे का विश्लेषण किया जा सकता है और जिसका दूरगामी प्रभाव रहता है।’’ सामाजिक सरोकारों से जुड़ी शरद सिंह समाचारपत्रों में सामाजिक व समसामयिक विषयों पर नियमित कॉलम लिखती हैं तथा चर्चित साहित्यिक पत्रिका ‘सामयिक सरस्वती’ की कार्यकारी संपादक हैं। उन्हें स्त्री विमर्श, भारतीय संस्कृति और हिन्दी साहित्य पर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारों में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया जाता है। पावस व्याख्यानमाला, भोपाल में जुलाई 2016 में  ‘समकालीन उपन्यासों में थर्ड जेंडर की सामाजिक उपस्थिति’ विषय पर अपना महत्वपूर्ण व्याख्यान दे चुकी हैं। महिलाओं के पक्ष में ज़मीन से जुड़ कर कार्य करने के साथ ही वे सोशल मीडिया पर भी वे अपनी सक्रियता बनाए रखती हैं।
उल्लेखनीय है कि उनकी यह पुस्तक अपने प्रकाशन के साथ ही नवीन विषयों में रुचि रखने वालों, समीक्षकों एवं विश्वविद्यालयीन शोधार्थियों के बीच चर्चित हो रही है।
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