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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, November 24, 2021

चर्चा प्लस | एक गंभीर चूक बनाम पाक्सो एक्ट | डाॅ शरद सिंह

चर्चा प्लस
एक गंभीर चूक बनाम पाक्सो एक्ट
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
     कई बार एक कानूनी चूक एक ग़लत नज़ीर बन कर अनेक अपराधियों के बच निकलने का रास्ता जरूर बना देती है। यह तो गनीमत कि महाराष्ट्र सरकार, राष्ट्रीय महिला आयोग और अटॉर्नी जनरल ने अपील दायर की और सुप्रीम कोर्ट ने बाॅम्बे हाई कोर्ट के फ़ैसले को ख़ारिज कर के पीड़ित को न्याय दिलाने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया। बच्चों को नृशंस अपराधों से बचाने के लिए तथा उन्हें न्याय दिलाने के लिए आम जनता को भी पाक्सो एक्ट की जानकारी होनी चाहिए क्योंकि कानून की जानकारी अपराध का विरोध करने की शक्ति देती है।
सन् 2012 में बच्चों को यौनहिंसा से बचाने के लिए और अपराधियों को दंड देने के लिए एक कानून बनाया गया। जिसे ‘‘पाक्सो एक्ट’’ ( प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट) के नाम से जाना जाता है। इसका आशय ही है कि बच्चों को हर तरह की यौन हिंसा से बचाना। लेकिन यह कानून कमजोर पड़ गया जब बॉम्बे हाई कोर्ट ने ‘‘स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट’’ न होने के आधार पर अपराधी को दोषमुक्त करार दे दिया। लेकिन जो मामले निचली अदालतों में या हाईकोर्ट में लड़खडा जाते हैं उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में ही पहुंच कर न्याय मिलता है। इस मामले में भी यही हुआ। कानून बॉम्बे हाई कोर्ट की ओर से रेप केस को लेकर दिए स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट वाले फैसले को 2021,नवम्बर के दूसरे सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। उच्च न्यायालय के इस फैसले को लेकर विवाद खड़ा हो गया था। हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि पॉक्सो एक्ट के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध तभी माना जा सकता है, जब आरोपी और पीड़िता के बीच स्किन कॉन्टेक्ट हुआ हो। अदालत के इस फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार, राष्ट्रीय महिला आयोग और अटॉर्नी जनरल ने अपील दायर की थी। इस पर सुनवाई करते हुए ही जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस. रविंद्र भट और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की बेंच ने फैसले को खारिज कर दिया है। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने हाई कोर्ट के फैसले को बेतुका बताते हुए साफ़ शब्दों में कहा कि ‘‘पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध मानने के लिए फिजिकल या स्किन कॉन्टेक्ट की शर्त रखना हास्यास्पद है और इससे कानून का मकसद ही पूरी तरह से खत्म हो जाएगा, जिसे बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए बनाया गया है।’’ कोर्ट ने कहा कि इस परिभाषा को माना गया तो फिर दस्ताने पहनकर रेप करने वाले लोग अपराध से बच जाएंगे। यह बेहद अजीब स्थिति होगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि नियम ऐसे होने चाहिए कि वे कानून को मजबूत करें न कि उनके मकसद को ही खत्म कर दें। इस तरह कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कर दिया कि यौन उत्पीड़न के मामले में स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट के बिना भी पॉक्सो एक्ट लागू होता है।
दरअसल, बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया गया था कि नाबालिग के निजी अंगों को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना टटोलना पॉक्सो एक्ट के तहत नहीं आता। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने इस मुद्देे को सुप्रीम कोर्ट में उठाया था। सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले को बदलते हुए ये फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया कि सेक्सुअल मंशा से शरीर के सेक्सुअल हिस्से का स्पर्श पॉक्सो एक्ट का मामला है। यह नहीं कहा जा सकता कि कपड़े के ऊपर से बच्चे का स्पर्श यौन शोषण नहीं है। ऐसी परिभाषा बच्चों को शोषण से बचाने के लिए बने पॉक्सो एक्ट के मकसद ही खत्म कर देगी।
महिला और बाल विकास मंत्रालय ने पॉक्सो एक्ट-2012 को बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न और यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए बनाया गया था। वर्ष 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है। जिसका कड़ाई से पालन किया जाना भी सुनिश्चित किया गया है। इस अधिनियम की धारा 4 के तहत वो मामले शामिल किए जाते हैं जिनमें बच्चे के साथ दुष्कर्म या कुकर्म किया गया हो। इसमें सात साल सजा से लेकर उम्रकैद और अर्थदंड भी लगाया जा सकता है।
पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के अधीन वे मामले लाए जाते हैं जिनमें बच्चों को दुष्कर्म या कुकर्म के बाद गम्भीर चोट पहुंचाई गई हो। इसमें दस साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है और साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वो मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के प्राईवेटपार्ट से छेडछाड़ की गई हो। इस धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध हो जाने पर पांच से सात साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है। पॉक्सो एक्ट की धारा 3 के तहत पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट को भी परिभाषित किया गया है। जिसमें बच्चे के शरीर के साथ किसी भी तरह की हरकत करने वाले शख्स को कड़ी सजा का प्रावधान है। दरअसल, 18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का यौन व्यवहार इस कानून के दायरे में आ जाता है। यह कानून लड़के और लड़की को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है। इस कानून के तहत पंजीकृत होने वाले मामलों की सुनवाई विशेष अदालत में होती है। पॉक्सो एक्ट लागू किए जाने के बाद बारह वर्ष से कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म में फांसी की सजा का प्रावधान रखा गया था, किन्तु बाद में अनुभव किया गया कि बालकों को भी इस एक्ट के तहत न्याय दिए जाने की व्यवस्था होनी चाहिए। इसीलिए एक्ट में संशोधन किया गया और बालकों को भी यौन शोषण से बचाने और उनके साथ दुराचार करने वालों को फांसी की सजा का प्रावधान तय किया गया। इसके अंतर्गत केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने लड़की-लड़कों दोनों यानी बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के बाल यौन अपराध संरक्षण कानून (पॉस्को) 2012 में संशोधन को मंजूरी दे दी। संशोधित कानून में 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ दुष्कर्म करने पर मौत की सजा तक का प्रावधान है। इसके अलावा बाल यौन उत्पीड़न के अन्य अपराधों की भी सजा कड़ी करने का प्रस्ताव है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने लड़की-लड़कों दोनों यानी बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के बाल यौन अपराध संरक्षण कानून (पॉक्सो) 2012 में संशोधन को मंजूरी दी है। इस संशोधित कानून में 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ दुष्कर्म करने पर मौत की सजा तक का प्रावधान है। इसके अलावा बाल यौन उत्पीड़न के अन्य अपराधों की भी सजा कड़ी करने का प्रस्ताव भी रखा गया है।
पाक्सो एक्ट के अन्तर्गत मीडिया के लिए विशेष दिशा निर्देश (प्रावधान) हैं-
1. धारा 20 के अनुसार मीडिया किसी बालक के लैंगिक शोषण संबंधी किसी भी प्रकार की सामग्री जो उसके पास उपलब्ध हो, वह स्थानीय पुलिस को उपलब्ध करायएगा। ऐसा ना करने पर यह कृत्य अपराध की श्रेणी में माना जाएगा।
2. कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार के मीडिया या स्टूडियों या फोटोग्राफी सुविधाओं से पूर्ण और अधिप्रमाणित सूचना के बिना किसी बालक के सम्बन्ध में कोई रिपोर्ट या उस पर कोई टिप्पणी नहीं करेगा, जिससे उसकी प्रतिष्ठा हनन या उसकी गोपनीयता का उल्लंघन होता हों।
3. किसी मीडिया से कोई रिपोर्ट बालक की पहचान जिसके अन्तर्गत उसका नाम, पता, फोटोचित्र परिवार के विवरणों, विधालय, पङौसी या किन्हीं अन्य विवरण को प्रकट नहीं किया जायेगा।
4. परन्तु ऐसे कारणों से जो अभिलिखित किये जाने के पश्चात सक्षम विशेष न्यायालय की अनुमति प्राप्त कर किया जा सकेगा यदि उसकी राय में ऐसा प्रकरण बालक के हित में है।
5. मीडिया स्टूडियों का प्रकाशक या मालिक संयुक्त रूप से और व्यक्तिगत रूप से अपने कर्मचारी के कार्यों के किसी कार्य के लिए उत्तरदायी होगा। इन प्रावधानों का उल्लंघन करने पर 6 माह से 1 वर्ष के कारावास या जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जायेगा।
पॉक्सो एक्ट में मेडिकल जांच के लिए निर्देश है कि पीड़ित का मामला 24 घंटो के अन्दर बाल कल्याण समिति के सामने लाया जाए। जिससे पीड़ित की सुरक्षा के लिए जरुरी कदम उठाये जा सके। इसके साथ ही बच्चे की मेडिकल जाँच करवाना भी अनिवार्य हैं । ये मेडिकल परीक्षण बच्चे के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में किया जायेगा जिस पर बच्चे का विश्वास हो और पीड़ित अगर लड़की है तो उसकी मेडिकल जांच महिला चिकित्सक द्वारा ही की जानी चाहिए।
पाक्सो अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं हैं कि इस अधिनियम में बच्चों को 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों के रूप में परिभाषित किया गया है।यह अधिनियम लिंग तटस्थ है, इसका अर्थ यह है कि अपराध और अपराधियों के शिकार पुरुष, महिला या तीसरे लिंग हो सकते हैं। यह एक नाबालिग के साथ सभी यौन गतिविधि को अपराध बनाकर यौन सहमति की उम्र को 16 साल से 18 साल तक बढ़ा देता है। अधिनियम में यह भी बताया गया है कि यौन शोषण में शारीरिक संपर्क शामिल हो सकता है या शामिल नहीं भी हो सकता है। अधिनियम बच्चे के बयान को दर्ज करते समय और विशेष अदालत द्वारा बच्चे के बयान के दौरान जांच एजेंसी द्वारा विशेष प्रक्रियाओं का पालन करता है। सभी के लिए अधिनियम के तहत यौन अपराध के बारे में पुलिस को रिपोर्ट करना अनिवार्य है, और कानून में गैर-रिपोर्टिंग के लिए दंड का प्रावधान शामिल किया गया है। इस अधिनियम में यह सुनिश्चित करने के प्रावधान हैं कि एक बच्चे की पहचान जिसके खिलाफ यौन अपराध किया जाता है, मीडिया द्वारा खुलासा नहीं किया जायेगा। बच्चों को पूर्व-परीक्षण चरण और परीक्षण चरण के दौरान अनुवादकों, दुभाषियों, विशेष शिक्षकों, विशेषज्ञों, समर्थन व्यक्तियों और गैर-सरकारी संगठनों के रूप में अन्य विशेष सहायता प्रदान की जाए। बच्चे अपनी पसंद या मुफ्त कानूनी सहायता के वकील द्वारा कानूनी प्रतिनिधित्व के हकदार हैं। इस अधिनियम में पुनर्वास उपाय भी शामिल हैं, जैसे कि बच्चे के लिए मुआवजे और बाल कल्याण समिति की भागीदारी शामिल है।
कई बार एक कानूनी चूक एक ग़लत नज़ीर बन कर अनेक अपराधियों के बच निकलने का रास्ता जरूर बना देती है। यह तो गनीमत कि महाराष्ट्र सरकार, राष्ट्रीय महिला आयोग और अटॉर्नी जनरल ने अपील दायर की और सुप्रीम कोर्ट ने बाॅम्बे हाई कोर्ट के फ़ैसले को ख़ारिज कर के पीड़ित को न्याय दिलाने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया। बच्चों को नृशंस अपराधों से बचाने के लिए तथा उन्हें न्याय दिलाने के लिए आम जनता को भी पाक्सो एक्ट की जानकारी होनी चाहिए क्योंकि कानून की जानकारी अपराध का विरोध करने की शक्ति देती है।
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