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My Editorials - Dr Sharad Singh

Friday, August 19, 2022

बतकाव बिन्ना की | भैयाजी को नओ गठबंधन | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | साप्ताहिक प्रवीण प्रभात


 "भैयाजी को नओ गठबंधन"  मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम-लेख "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात (छतरपुर) में।
🌷हार्दिक धन्यवाद "प्रवीण प्रभात" 🙏
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बतकाव बिन्ना की          
भैयाजी को नओ गठबंधन                             
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
     ‘‘काए भैयाजी! का हो गओ? जो आपको मों चोखरवा सो काए दिखा रओ?’’ भैयाजी खों मों देख के ऐसो लग रओ हतो मनो बे कोनऊ बड़ी मुसीबत में आएं। भैयाजी ने मोरी बात खों कछु जवाब नई दओ।
‘‘का हो गओ?’’
‘‘का कहौं बिन्ना, मों से बोल नई फूट रए।’’ भैयाजी बोले, ‘‘काल संझा से कछु खाबे को नई मिलो। पेट में हरूड़ी सी पड़ रई।’’ भैयाजी मरी-डरी आवाज में बोले।
‘‘ऐं? काए? तबीयत सो ठीक आए?’’ मैंने पूछी।
‘‘हऔ! तबीयत को का होने? बा सो ठीक आए।’’ भैयाजी ने कही।
‘‘सो, कहूं भौजी की तबीयत तो नईं बिगर गई?’’ अब मोए औरई चिंता भई।
‘‘अरे, नईं! उनको का होने! बे सो ऊंसई टन्न-मन्न धरीं।’’ भैयाजी तनक चिढ़त भए बोले। सो, मोए समझ में आ गई के कछु ने कछु भैयाजी औ भौजी में रार भई आए।
‘‘सो, लड़ आए हमाई भौजी से!’’ मोरे मों से निकरई गओ।
‘‘पैलऊं कछु खाबे खों लाओ, फेर पूछियो!’’ भैयाजी बिनती करत सी बोले।
‘‘अरे, लेओ, अभई ला रई!’’ मैंने कही औ भीतरे किचन में गई। भैयाजी के लाने थाली परस लाई। बाकी थाली परसबे खों मतलब जो नोई के ऊमें पूरो भोजन होय। मैंने अपने दोई टेम के लाने सब्जी औ दाल डार के दलिया पकाई रही, सो बोई ले आई। हंा, बाकी छतरपुर वारी भौजी ने जो अचार औ पापड़ भेजे रए, ऊंमें से आम को अचार रख दओ औ पापड़ तल दए।
भैयाजी ने जी भर के खाओ। फेर हाथ धोत भए बोले,‘‘जी जुड़ा गओ बिन्ना! तुमें का बताएं के हमें काल से खाबे के लाने कछु नई मिलो। ने तो काल ब्यारी परसी गई औ ने आज कलेवा मिलो। सच्ची, ऐसी जल्लाद लुगाई कोनऊं खों न मिले।’’ भैयाजी भौजी खों कोसत भए बोले।
‘‘हमाई भौजी खों ने कोसो, भैयाजी! आपई ने कछू ऐसो करम करो हुइए के उन्ने आपको हुक्का-पानी बंद कर दओ।’’ मैंने भौजी को पक्ष लओ।
‘‘अब तुम ने गुस्सा करो! एक तो तुमाई भौजी ने भूको मार डारो, अब तुम गुस्सा हो जे हो सो हम सो भूक से बिलकुलई टें बोल जेहें।’’ भैयाजी ऐसे बोले के मोए हंसी फूट परी।
‘‘चलो बोलो, का भओ?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अरे कछु नईं, बात तनक सी हती, हाथी की पूंछ घांई। मनो तुमाई भौजी ने ऊको पूरो हाथी बना दओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘का मतलब?’’
‘‘मतलब जे के आजकाल तुम सोई देख रईं के इते से उते होबे खों सीजन आ गओ आए। बिहार में नई देखी का, के कैसे सबरे नाए से मांए हो गए औ इके पैलऊं महाराष्ट्र में अपन ओंरें देखई चुके।’’
‘‘सो?’’ मैंने पूछी।
‘‘सो, जे के नऔ-नऔ गठबंधन होत में भौतई लाभ रैत आए। बे अपने नितीश कुमार भैया खों देखो कैसे फेर के मुख्यमंत्री बन गए। औ उत्तई नईं, उनके सेवक हरों को सोई मलाई छानबे खों मिल गई।’’
‘‘जे तो आप राजनीति को हाल सुनान लगे। ई सब से हमाई भौजी को का?’’
‘‘गम्म खाओ बिन्ना, बेई पे आ रए। भओ का, के काल संझा खों तुमाई भौजी गैसचूला पे भरता के लाने भंटा भूंज रई हतीं, तभई हमने उनसे कही के हम सोच रए के हम सोई नओ गठबंधन कर लें। बस, इत्तो सुनो के बे सो बमक परीं। कैन लगीं के तुमाई टांगे ने तोड़ देबी, कर के दिखाओ नओ गठबंधन! हमने कही के अरी मोरी दुलैया, तनक समझो तो के हम का कै रए? कभऊं सो हमाई पूरी बात सुन लेओ करे।’’
‘‘फेर?’’
‘‘फेर का, बे काए खों सुनबे वारीं! उन्ने भंटा पटको उतई जमीन पे औ अपने पैरन से कुचर-कुचर के सत्यानास कर दओ ऊको! हमने कही के जे का कर रईं? जे भंटा खों काए कुचर रईं? सो बोलीं के अबे सो हम तुमें सोई ऐसई कुचरबी! तुम दूसरो गठबंधन कर के सो दिखाओ! इत्तई पे बे ने रुकीं औ कैन लगीं के हम सो जानत हते के तुमाओ कहूं और नैन-मटक्का चल रओ। तभई तो बिन्ना सोई कै रई हती के आजकाल भैयाजी कम दिखात आएं। अब भैयाजी खों नैन-मटक्का से फुरसत मिले सो कहूं दिखाएं।’’ भैयाजी बतात जा रए हते।
‘‘हऔ परों के रोज हमने भौजी से कही सो रई। काए से के आप दो-तीन दिनां से दिखे नईं रए।’’ मैंने भैयाजी खों बताओ।
‘‘बड़ो अच्छो करो!’’ भैयाजी खिसियात भए बोले।
‘‘बाकी आगे बोलो के फेर का भओ!’’ मैंने तुरतईं पूछी।
‘‘होने का हतो? तुमाई भौजी कभऊं हमाई पूरी बात सुनतई नइयां! उन्ने समझी के हम उनके रैत भए कोनऊं और लुगाई से गठबंधन करबे जा रए, औ बे सो ठठिया पटकन लगीं। हम कछु बोलबे की कोसिस करें के उन्ने स्टील को गिलास हमाए मूंड पे दे मारो। बा तो हम ऐन मौका पे एक ओरे झुक गए ने तो अबे हम अस्पताल के पलकां पे डरे होते औ उतई हमें देखबे के लाने तुमे आनो परतो।’’
‘‘सो उनको गुस्सा ठंडो भओ के नईं?’’ मैंने पूछी।
‘‘काए को ठंडो होने? उन्ने ने तो ब्यारी बनाई औ ने हमें कराई। हमें सो भूके सोने परो। भुनसारे हमें आस हती के रात भरे में उनको गुस्सा ठंडो हो गओ हुइए औ कछु कलेवा मिल जेहे। पर काए को, बे सो फनफनात भई ठाड़ी हतीं। हमने पूछी के काए कलेवा बना लओ? रात से कछु नईं खाव आए, भूक के मारे पेट में हरूड़ी सी पड़ रई। सो बे चिंचियात भई बोलीं के अब अपनी नई वारी से कहियो, बेई तुमें कलेवा कराहें। मनो तुम ले के सो आओ, दोई खों सिल-बट्टा पे ने पीस दओ सो हमाओ नांव बदल दइयो।’’
‘‘माने मामलो गंभीर कहानो!’’
‘‘भौतई गंभीर, बिन्ना! अरे, हम कै रए हते के अभई के चुनाव में अपने इते को निर्दलीय उम्मीदवार जीतो रहो। अबे लो ऊने कोनऊं पार्टी ने पकरी, सो हम काए अपनो टेम खराब करें? हमें सो कोनऊ नोनी सी पार्टी पकर लेओ चाइए। ऊंसई ई पार्टी से ऊ पार्टी आबे-जाबे खों सीजन चल रओ। नओ गठबंधन करबे से हमाओ सोई कछु भलो हो जेहे। कछु नईं सो रुतबा ई बढ़ जेहे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो जे सब चर्चा भौजी से काए करी? औ जो करनी हती तो सो पैलऊं अपने नितीश कुमार भैया की बात करते, फेर अपनी पे आते। आप सीधे गठबंधन पे कूंद परे, सो जे तो होनई तो।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘हऔ बिन्ना! बात सो तुम सांची कै रईं। हमें सोई जे रिलाईज भओ के हमने गलती कर दई आए। बाकी एक बात सो है के जो तुमाई भौजी जैसीं कोनऊं पार्टी में होंए सो ऊ पार्टी से कोनऊं नाएं से माएं नईं हो सकत। काए से के तुमाई भौजी के आगूं चाए एकनाथ शिंदे होंए, के नितीश कुमार होंए, कोनऊं कछु ने कर पाते। इते तो तुमाई भौजी ने कछु ठीक से सुनोई नईयां औ घरे संसद घांई दोंदरा मचा दओ। बाकी संसद में दोंदरा देन वारे खुदई बाहरे भगत आएं औ इते हमें भगा दओ जात आए।’’ भैयाजी अपनी दुर्दसा बतात भए बोले।
‘‘मनो, अब सो आप जाओ औ भौजी खों मनाओ। कहूं उन्ने अपनो नओ गठबंधन करबे की ठान लई सो आप धरे के धरे रै जेहो।’’ मैंने हंसत भई कही।       
‘‘हंस लेओ, हंस लेओ!’’ कैत भए भैयाजी निकर परे।
बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। अब चाए कोनऊं नांए से माएं होय, चाए मांए से नांए होय, मोए का? अपन ओरन खों ससुरी मैंगाई डायन से छुटकारा सो मिलने नइयां। बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(18.08.2022)
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