"नौ दिनां कछू गल्त ने करबी" मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात (छतरपुर) में।
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बतकाव बिन्ना की
नौ दिनां कछू गल्त ने करबी
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘बिन्ना! तनक साजी सी चाय सो पिला देओ!’’ भैयाजी आतई साथ बोले। मोए समझ में आ गई के कोनऊं सल्ल बींध गई हुइए जो आतई साथ भैयाजी चाय के लाने बोल रए।
‘‘हऔ! अभईं लो!’’ मैंने कही। फेर तुरतईं चाय बना लाई।
‘‘अब तनक अच्छो लगो!’’ चाय सुड़कत भए भैयाजी बोले।
‘‘का हो गऔ? काय की सल्ल बींध गई?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अरे ने पूछो!’’
‘‘अरे कछू तो बताओ आप!’’ मैंने सोई जिद पकर लई।
‘‘अरे बो आए न, अपन ओरने के इते को नेता!’’
‘‘को? कौन की कै रए?’’ मोए कछु समझ में ने आई।
‘‘अरे बोई जमुना, जमुना पार्षद!’’
‘‘अरे, उनकी कह रै! का कर दओ जमुना भेया ने?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अरे तुम सोई, ऊको भैया-वैया ने कहो!’’
‘‘काए? ईमें का बुराई दिखा रई?’’
‘‘बुराई तुमाए कैबे में नई दिखा रई, बो आदमई बुरौ कहानो!’’ भैयाजी चिड़कत भए बोले।
‘‘अब बे काए के लाने बुरै बन गए? काल तक तो आप ई ऊकी तारीफ करत फिरत्ते।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘हऔ, मोए का पता रओ को जमुना सोई ऐसो निकरहे।’’ भैयाजी गुस्सा दिखात भए बोले।
‘‘मनो ऐसो का कर दओ उन्ने?’’ मैंने पूछी।
‘‘हमने कही न, के ऊके लाने इज्जत से ने बोलो! बो ई के काबिल नइयां! औ फेर ऊ तो ऊंसई तुमसे लोहरो ठैरो, सो तुम तो ऊको आप-वाप ने कहो करो।’’ भैयाजी मोय समझान लगे।
‘‘हऔ, हमें पतो आए के कौन से कैसे बात करी जात आए। आप सो अपनी कहो के ऊने आपके कौन से खेत काट लए?’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘बो का हमाओ खेत काटहे? अगली बेरा आन देओ चुनाव, चार से ज्यादा वोटें ने मिल पाहें ऊको!’’ भैयाजी तिन्नात भए बोले।
‘‘चार? चार कौन-कौन की? एक आपकी, एक भौजी की....!’’
‘‘हम काए खों देबी?’’ मोरी बात काटत भए भैयाजी बोल परे।
‘‘सो, औ को देहे?’’ मैंने पूछी।
‘‘एक मताई की, एक बापराम की, एक लुगाई की औ एक ऊकी खुद की! ई चार से पांचवीं वोट ऊको मिल जाए सो हमाओ नांव बदल दइयो!’’ भैयाजी उखड़त भए बोले।
‘‘ऐसो का कर दओ ऊने? चलो अब आपई बता देओ!’’ अब मोए से रओ नई जा रओ हतो।
‘‘भओ का, के कुल्ल दिनां से हमाओ एक काम अटको डरो आए नगरपालिका में। सो हम सोचई रै हते के कोई दिनां जमुना मिल जेहे सो ऊसे कै देबी के हमाओ जल्दी काम करा देओ। अभईं आज संकारे जमुना हमें दिखा गओ। हमने ऊसे कहीं के हमाओ काम नगरपालिका में अटको परो आए, सो तुम तनक जल्दी करा देओ।’’
‘‘सो का कही ऊने? करा देहे जल्दी?’’ मैंने बीचई में पूछ लई।
‘‘अरे काय खों, ऊ ससुरो कहन लगो के अभई नौरातें चल रईं सो हम कछु ऐसो-वैसो काम नईं करा सकत आएं। काए से हम नौरातें में गल्त काम नईं करत।’’ भैयाजी बतान लगे।
‘‘ऐं? ऊने ऐसी कही? पर आपको तो गल्त काम नइयां, मोए पतो आए।’’ मोरे मों से निकर परो।
‘‘औ का! हमाओ काम ठक्का-ठाई आए! एकदम सांचो!’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो ऊने ऐसी काए कई?’’ मोए अचरज भओ।
‘‘हमने सोई ऊसे पूछी, के भैया जमुना तुमाओ मुंडा सो ठिकाने पे आए के नईं? हम कोनऊ गल्त काम कराबे खों नईं कै रए, जो तुम हमाए लाने भाव दिखा रए। सो बो कैन लगो के अरे नईं भैयाजी आपको काम सो सांचो आए मनो जो आपको काम कराबी सो दस जने औ आ जेहें अपनों काम ले के। अब सबको काम सांचो सो रैहे ने, औ ई नौरातें चलत में हम गल्त काम ने करत आएं औ ने करात आएं।’’ भैयाजी ने बताई।
‘‘जे का बात भई? मने नौरातें के आगूं-पांछू बो गल्त करत रैत आए?’’ मोए बड़ो अचरज भओ जे सुन के।
‘‘औ का! तभईं सो हमाओे मुंडा खराब हो गओ। हमई ने सो ऊको जिताबे के लाने तरे-ऊपरे एक करो रओ और जे देखो! ऊ समै कैत रओ के अब कछु ने गल्त करबी औ ने गल्त होने देबी, औ अब देखो! हमें सो अभई की ऊकी बात सुन के जी में आओ रओ के ससुरे को एक लपाड़ा दे दें, बाकी हम गम्म खा के रै गए के मोहल्ला वारे का कैहें? हमाओ बकरा, हमई खों सींग दिखा रओ।’’ भैयाजी खदबदात भए बोले।
भैयाजी की कहनात सुन के मोए हंसी फूट परी -‘‘हमाओ बकरा, हमई खों सींग दिखा रओ।’’
‘‘भैयाजी, मनो अब सो ऊने सो आपई खों बकरा बना दओ।’’ मोसे हंसी रोकत ने बनीं। मोरी हंसी सुन के भैयाजी सोई हंसन लगे। मनो ईसे उनको मूड ठीक हो गओ।
‘‘भैयाजी आप तो जे सोचो के बो कम से कम नौरातें को तो लिहाज कर रओ, ने तों आजकाल नेता हरें एकऊं रातन को लिहाज नईं करत आएं। उनको सो चैबीसों घंटा औ सातो दिनां गल्त-सल्त करबे में जी लगो रैत आए।’’ मैंने भैयाजी खों समझाई।
‘‘हऔ, सो कोनऊं किरपा कर रओ का? ऊको सो पूरे बारहों मईना ईमानदारी से काम करो चाइए। चुनाव से पैलऊं खुदई कैत रओ के मोए सो कभऊं गल्त नहीं करने।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जेई सो नेता औ जनता में फरक आए भैयाजी! उने बेवकूफ बनात बनत आए औ जनता खों सिरफ बेवकूफ बनबो आत आए।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘ठीक कही बिन्ना तुमने, मनो जे बताओ के ऐसे में देवी मैया ऊपे कैसे के किरपा करहें? ऐसो ध्रम-करम कोनऊं काम खों नईंया।’’ भैयाजी ने कही।
‘‘देवी मैया की सो पतो नइयां भैयाजी, पर जे सो पक्को कहानो के अगली चुनाव में आप ऊपे किरपा ने करहो!’’ मैंने हंसत भए कही।
‘‘रामधईं! कभऊं ने करबी। ससुरो लबरा कहीं को।’’ भैयाजी सोई हंसन लगे। फेर कहन लगे,‘‘अब चलन देओ मोए, एकाध चक्कर खुदई लगाने पड़हे नगरपालिका को।’’
‘‘अभई उते ने जाओ भैयाजी! अभईं बे ओरें देवी पूजा में बिजी हुइएं।’’ मैंने भैयाजी खों समझाई।
‘‘काए? जे आॅफिस के टेम पे काए बिजी हुइएं?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘आप सो ऐसे पूछ रए मनो आप कोनऊं औरई ग्रह से आए हो! जे कओ के आप खों पैले काम नई परो सो आप खों पतो नइयां मनो...!’’
‘‘हऔ-हऔ, आ गई समझ में!’’ भैयाजी मुस्कात भए बोले औ चलबे खों ठाड़े हो गए।
बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। अब चाए अगली चुनाव में जमुना भैया रैं जाए गंगा भैया, मोए का करने? अगली चुनाव में सो ऊंसई मुतको समै ठैरो, तब लों सो इन्हईं खों झेलने परहे। सो आप ओरें सोई सहूरी राखो! अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(29.09.2022)
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