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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, April 30, 2020

ऋषि कपूर के निधन पर त्वरित टिप्पणी- बहुमुखी अभिनेता एवं साहसी व्यक्तित्व को विनम्र श्रद्धांजलि! - डॉ (सुश्री) शरद सिंह,

Dr. Sharad Singh
 कल इरफान खान और आज ऋषि कपूर...😢 ऋषि कपूर के निधन पर मेरी त्वरित टिप्पणी वेब मैगजीन 'युवा प्रवर्तक' ने प्रकाशित की है... लिंक है..
http://yuvapravartak.com/?p=30896

हार्दिक आभार 'युवा प्रवर्तक' 🙏

ऋषि कपूर के निधन पर त्वरित टिप्पणी-

       बहुमुखी अभिनेता एवं साहसी व्यक्तित्व को विनम्र श्रद्धांजलि!
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार

     विश्वास करना कठिन है कि हमने ऋषि कपूर को खो दिया। कल ही तो इरफान खान को अंतिम विदाई दी और आज ऋषि कपूर के जाने का समाचार.....धैर्य की परीक्षा कठिन से कठिनतर होती जा रही है।
       ऋषि कपूर एक वर्सेटाईल अभिनेता थे। कपूर खानदान की कसावट में पले-बढ़े होने के बावजूद उन्होंने जिन्दगी को अपने ढंग से जिया। ‘श्री 420’ में चाईल्ड आर्टिस्ट के रूप में रूपहले पर्दे पर पहली बार आने वाले ऋषि कपूर जब ‘बॉबी’ में ‘राजा’ के रोल में पहली बार हीरो बने तो वे सही मायने में यूथ आईकॉन बन गए। भला कौन भुला सकता है ‘अमर, अकबर, एंथोनी’ के ‘अकबर इलाहाबादी’ को या ‘कर्ज’ के ‘मोण्टी’ या ‘प्रेमरोग’ के ‘देवधर देव’ को। फिल्म ‘मंटो’ के ‘प्रोड्यूसर’ और ‘मुल्क’ के ‘मुराद अली मोहम्मद’ को भी भुलाया नहीं जा सकता है। ऋषि कपूर द्वारा अभिनीत पात्र इस तरह अमर हो गए हैं कि स्वयं ऋषि कपूर भी सदा बसे रहेंगे हमेशा अपने प्रशंसकों के दिलों में। उनके अभिनय की ही नहीं बल्कि उनकी बुद्धिजीविता का लोहा भी सभी मानते थे। ट्विटर पर उनकी राजनीतिक टिप्पणियां खलबली मचा दिया करती थीं। वे अपनी मन की कहने से कभी हिचकते नहीं थे। बॉलीवुड को विविधतापूर्ण अभिनय और राजनीतिक टिप्पणियां करने का साहस देने वाले अभिनेता ऋषि कपूर को विनम्र श्रद्धांजलि!
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सागर (मध्यप्रदेश)



फिल्म अभिनेता इरफान खान को श्रद्धांजलि...‘मैं मरा नहीं, बस सोया हूं’ -डॉ शरद सिंह

Dr. Sharad Singh
फिल्म अभिनेता इरफान खान को श्रद्धांजलि स्वरूप मेरा लेख जो आज वेब मैगजीन युवा प्रवर्तक ने दिनांक 30.04.2020 को प्रकाशित किया है...आप भी पढ़िए और इस लिंक पर भी विजिट कीजिए... http://yuvapravartak.com/?p=30886
हार्दिक आभार युवा प्रवर्तक 🙏
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 श्रद्धांजलि स्वरूप लेख-

जाना एक संघर्षशील, भावप्रवण अभिनेता इरफान खान का

‘मैं मरा नहीं, बस सोया हूं’         
                       -डॉ शरद सिंह
         सिनेमा के रुपहले पर्दे पर एक कलाकार जितनी बार मरता है, वह उतनी ही सदियां जोड़ता जाता है अपने जीवन में। सच तो यह है कि एक संवेदनशील, भावप्रवण अभिनेता कभी मरता नहीं हैं, अपने चाहने वालों के दिलों में जिन्दा रहता है सदियों तक। इरफान खान नामक इंसान की दैहिक मृत्यु भले ही हो गई किन्तु अभिनेता इरफान खान अपने अभिनय के नाना रूपों में आज भी ज़िन्दा हैं और हमेशा रहेंगे। इरफान खान ने मुंबई के अस्पताल में अंतिम सांस ली। एक लंबे समय से बीमारी से जूझ रहे इरफान खान को बीते दिनों ही अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। इरफान का जाना बॉलीवुड को स्तब्ध कर गया है। यह संवेदनशील कलाकार देश में सुख और शांति चाहता था। कश्मीर में 2013 में हैदर फिल्म की शूटिंग के दौरान इरफान क्रू मेंबर से चर्चा करते हुए कहा करते थे कि  इतनी खूबसूरत जगह को कैसे हिंसा की आग में झोंक दिया गया।
यूं तो इरफान खान को सन् 2018 में न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर से पीड़ित होने का पता चला था। एक भयावह बीमारी। मगर इरफान भयभीत नहीं हुए। उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में हंस कर कहा था,‘‘यह बीमारी मुझे मार भले ही दे लेकिन डरा नहीं सकती है।’’ यह आत्मविश्वास ही था जो उन्हें लंदन में ईलाज के दौरान अवसाद से घिरने नहीं दिया। वे लगभग स्वस्थ हो कर लौटे और फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ को पूरी करने में जुट गए। वे ‘शो ऑफ’ करने वाले अभिनेता नहीं थे। हॉलीवुड निर्देशक कॉलिन ट्रेवोर ने भी ट्वीट कर इरफान को श्रद्धांजलि दी है। 'इरफान खान को खोने का गहरा दुख है। एक विचारशील व्यक्ति जिसे आस-पास की दुनिया यहां तक कि दर्द में भी खूबसूरत लगती थीं।’ इरफान खान ने ट्रेवोर के निर्देशन में बनी फिल्म जुरासिक वर्ल्ड में सीईओ और मालिक साइमन मसरानी की भूमिका निभाई थीं। उन्होंने इस बात का बढ़-चढ़ कर ढिंढोरा नहीं पीटा कि उन्होंने हॉलीवुड की ‘‘जुरासिक वर्ल्ड’’ में लीड रोल किया था। वे सादगी पसंद थे। हंसमुख और किसी हद तक अंतर्मुखी। वे अपने दुख-कष्ट को दूसरों के सामने रोना पसंद नहीं करते थे। उनका उसूल था कि खुशी बांटने से खुशी मिलती है, तो खुशी ही बांटी जाए, दुख नहीं।
इरफान खान जन्म 7 जनवरी 1967 को जयपुर (राजस्थान) में हुआ था। उनके पिता का टायर का कोराबार किया करते था। इरफान ने एमए की पढ़ाई के दौरान ही दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप हासिल कर ली थी। इरफान सन् 1984 से ही अभिनय के क्षेत्र से जुड़ गए। इरफान खान का अभिनय का सफ़र दिल्ली में थिएटर से आरम्भ हुआ। इसके बाद इरफान ने दिल्ली से मुंबई का सफर तय करने का फैसला लिया। मुंबई पहुंचकर ’चाणक्य’, ’भारत एक खोज’, ’सारा जहां हमारा’, ’बनेगी अपनी बात’, ’चंद्रकांता’ और ’श्रीकांत’ जैसे सीरियल में काम किया। थिएटर और टीवी सीरियल्स में काम करके इरफान अपनी पहचान हासिल कर ही रहे थे तभी फिल्ममेकर मीरा नायर ने अपनी फिल्म ’सलाम बॉम्बे’ में एक कैमियो रोल दिया, लेकिन जब फिल्म रिलीज़ हुई तो उनका शॉट काट दिया गया था।
इरफान खान का बॉलीवुड में कभी कोई गॉड फादर नहीं था। और ना ही उन्हें किसी और का कोई सपोर्ट था। इरफान ने अपने शुरुआती कैरियर में टेलीविजन धारावाहिकों से पहचान बनाई थी। लेकिन एनएसडी से पढ़ाई करने के बाद इरफान के सपने धारावाहिकों तक ही सीमित नहीं थे। उन्हें विश्व में ख्याति प्राप्त करना थी जिसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की और अपना मुकाम हासिल किया।
इरफान खान का कहना था कि उनके कैरियर में उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती उनका चेहरा था। अपने एक पुराने इंटरव्यू में इरफान ने खुद इस बारे में कहा था। इरफान ने बताया था कि शुरुआती दौर में उनका चेहरा लोगों को विलेन की तरह लगता था। वो जहां भी काम मांगने जाते थे, निर्माता और निर्देशक उन्हें खलनायक का ही किरदार देते। जिसके चलते उन्हें कैरियर के शुरुआती दौर में सिर्फ निगेटिव रोल ही मिले। लेकिन उनकी मेहनत और दमदार एक्टिंग ने इस चुनौती का सामना किया। इसके लिए उन्होंने छोटी बजट की फिल्मों में हाथ आजमाया जहां उन्हें हीरो के रूप में पहचान बनाने का मौका मिला।
इसके बाद साल 1990 में इरफान ने फिल्म ’एक डॉक्टर की मौत’ में काम किया। जिसेकी समीक्षाकारों  ने बहुत प्रशंसा की। उसके बाद इरफान ने ’द वॉरियर’ और ’मकबूल’ जैसी फिल्मों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने पहली बार 2005 की फिल्म ’रोग’ में लीड रोल किया। उसके बाद फिल्म ’हासिल’ के लिए इरफान खान को उस साल का ’बेस्ट विलेन’ का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला। इरफान खान ने ’स्लमडॉग मिलियनेयर’ फिल्म में भी पुलिस इंस्पेक्टर का विशेष रोल निभाया। इस फिल्म को कई अवार्ड मिले। इसके बाद इरफान के लिए हॉलीवुड के दरवाज़े भी खुल गए। जहां उन्होंने तीन फिल्में कीं जिनमें एक थी ‘‘जुरासिक वर्ल्ड’’। इस बीच इरफान ने 23 फरवरी 1995 को एनएसडी ग्रेजुएट सुतपा सिकदर से शादी की और उनके दो बेटे बाबिल और अयान हुए।
इरफान खान ने अपने 30 साल के फिल्मी कैरियर में 50 से अधिक हिंदी फिल्मों में काम किया है। इरफान खान ने कई यादगार किरदारों को निभाया और हाल ही में उनकी फिल्म ’अंग्रेजी मीडियम’ रिलीज हुई थी। इरफान खान के कुछ खास रोल हैं जिनके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। जैसे सन् 2001 में फिल्म ‘‘द वॉरियर’’ में इरफान खान की इस ब्रिटिश इंडियन फिल्म की कहानी सामंती राजस्थान के योद्धा की है जो युद्ध से मुंह मोड़ने की कोशिश करता नजर आता है. इस फिल्में उनका स्टाईल लोगों को बहुत भाया। सन् 2012 में ‘‘पान सिंह तोमर’’ में एथलीट से डैकेत बने एक शख्स की कहानी में उनका किरदार इतना जानदार था कि उसने बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाकर रख दी। यह फिल्म एक ऐसे व्यक्ति के जीवन पर आधारित थी जो प्रतिभावान होते हुए भी परिस्थितियों के हाथों की कठपुतली बनता चला गया। मध्यप्रदेश के मुरैना में जन्में पान सिंह तोमर ने भारतीय सेना में नौकरी की। सूबेदार पद पर रहा। मगर घर, परिवार और गांव के प्रपंच ने उसे ऐसा फंसाया कि वह बागी डकैत बन कर चम्बल के बीहड़ों में उतर गया। उसे पकड़ने के लिए जब तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने पुलिस फोर्स को आदेश दिया था तब पानसिंह ने भी अर्जुन सिंह को चुनौती दे डाली थी। एथलीट पान सिंह तोमर, सात बार भारतीय राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। वह राष्ट्रीय स्तर का एथलीट था मगर उसकी किस्मत में लिखा था पुलिस एन्काउन्टर में मारा जाना। ऐसे पानसिंह तोमर का किरदार निभाने के लिए इरफान स्वयं चम्बल के बीहड़ों में गए। पान सिंह के रिश्तेदारों एवं परिचितों से मिले। उन्हें लगा कि ऐसे जीवट चरित्र को निभाने के लिए सिर्फ़ स्क्रिप्ट का सहारा नहीं लिया जा सकता है। यदि पात्र को जीवन्त करना है तो उसकी ज़मीन से जुड़ना होगा। उसके अनुभवों को महसूस करना होगा। बॉलीवुड में ऐसे विरले अभिनेता हैं जो अपने अभिनय के लिए अनुभव जुटाने निकल पड़ते हैं। इरफान की मेहनत रंग लाई। फिल्म ‘‘पानसिंह तोमर’’ सुपरहिट रही। इरफान खान को फिल्म ’पान सिंह तोमर’ के लिए नेशनल अवॉर्ड से सरफराज़ किया गया और साथ ही उन्हें भारत सरकार की तरफ से पद्मश्री अवॉर्ड भी दिया गया।
इरफान ने सन् 2013 में फिल्म ‘‘किस्सा’’ में एक ऐसा शख्स का रोल किया जो अपने वंश को आगे बढ़ाना चाहता है। इसके लिए वह कुछ भी कर गुजरने को तैयार है। इससे एकदम अलग, सन् 2013 में ‘‘द लंच बॉक्स’’ में उन्होंने ऐसे व्यक्ति का जीवन प्रस्तुत किया जिसकी पत्नी का निधन हो चुका है, और उसे वाया लंच बॉक्स एक विवाहिता से प्रेम हो जाता है। विलेन जैसे चेहरे वाले इरफान के लिए प्रेम का अंतर्द्वन्द्व अभिनीत करना बहुत बड़ी चुनौती थी लेकिन इस चुनौती को उन्होंने न केवल स्वीकार किया बल्कि रोल में ऐसी जान डाल दी कि हर मध्यमवर्गीय नौकरीपेशा व्यक्ति अपने आप में उस प्रेमी को तलाशने लगा।
’स्लमडॉग मिलेनियर’ में भी इरफान अपने अभिनय के दम पर सब पर छाए रहे। बहुत ही संवेदनशील घटना आरुषी हत्याकांड पर आधारित फिल्म ‘‘तलवार’’ में सन् 2015 में इरफान खान ने सीबीआई अफसर का किरदार बहुत ही कमाल के अंदाज में निभाया और इस पात्र को अविस्मरणीय बना दिया। यह एक सेमी निगेटिव रोल था मगर इरफान ने इसे बहुत ही पॉजिटिव तरीके से निभाया।
लंदन में ईलाज के दौरान अपने अनुभवों को इरफान लिखते रहे और अपने मित्रों, परिचितों से भी साझा करते रहे। उसी दौरान उन्होंने अपने थिएटर के जमाने के एक डॉयलॉग को ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि जब मुझे मरने का एक सीन दिया गया तो उसे मैंने किया। उस पर समीक्षक ने लिखा कि ‘इरफान बहुत अच्छे ढंग से मरे।’ तब मैंने उन्हें फोन किया और कहा कि ‘‘मैं मरा नहीं, बस सोया हूं।’’ आज ऐसा प्रतीत होता है कि गोया इरफान खान अपने चाहने वालों के आंसू पोंछते हुए यही कह रहे हों कि ‘‘मैं मरा नहीं, बस सोया हूं।’’ निसंदेह इरफान खान अपने चाहने वालों के दिलों में हमेशा रहेंगे जीवित, क्योंकि अभिनेता कभी मरता नहीं है, वह जिन्दा रहता है अपने किरदारों में।
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*सागर (मध्यप्रदेश)*







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Wednesday, April 29, 2020

चर्चा प्लस ... वे सबक जो हमें याद रखने होंगे कोरोना के बाद भी - डाॅ शरद सिंह


Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस  
वे सबक जो हमें याद रखने होंगे कोरोना के बाद भी
- डाॅ शरद सिंह
      कोरोना लाॅकडाउन अभी ख़त्म नहीं हुआ है और कोरोना संकट भी। लेकिन एक न एक दिन इसपर विजय जरूर मिलेगी। तब हमें उन सारे सबक पर अमल करना होगा जो हमें इस दौरान मिले हैं। प्रकृति ने हमारे जैसे इंसानों द्वारा ही हम इंसानों को सबक सिखाया है। यदि हम ऐसी आपदा दुबारा देखना नहीं चाहते हैं तो इनमें से कुछ सबक तो हमें याद रखने ही होंगे ।
       कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव व सुरक्षा के लिए पहले लाॅकडाउन-एक, फिर लॉकडाउन-टू और अब लॉकडाउन- थ्री की बारी है। यदि आरम्भिक ग़लतियों से ही हम सीख ले लेते तो टू और थ्री की बारी नहीं आती। एक बार फिर सागर नगर का ही उदाहरण लें तो यह शहर 10 अप्रैल के पहले तक कोरोना से मुक्त था लेकिन 10 अप्रैल के बाद पूरा शहर सकते में आ गया जब पहला कोरोना पाॅजिटिव पाया गया। मरीज की काॅन्टेक्ट हिस्ट्री भी खंगाली गई जिससे उसके ऐसे दोस्त का भी पता चला जो संक्रमित था। यह जानते हुए भी कि कोरोना संक्रमण की श्रृंखला से फैलता है, लाॅकडाउन लागू होने पर भी उन युवकों द्वारा लापरवाही बरती गई और अनेक लोगों के जान से खिलवाड़ की गई। समाचारों की मानें तो अभी पी-1 अपने नागरिक  कर्तव्य नहीं बल्कि दोस्ती निभा रहा है और अपने उन दोस्तों के नाम नहीं बता रहा है जिनमें से कुछ संक्रमित भी निकल सकते हैं। वह शादीशुदा युवक कोई बच्चा नहीं है कि वह स्थिति की गंभीरता को न समझे। कहीं कोई भ्रम की स्थिति अभी भी शेष है। बहरहाल, हमें उन सबकों के बारे में सोचना चाहिए जो लाॅकडाउन के दौरान हमें मिले हैं और अत्यंत बुनियादी हैं।
Charcha Plus Column of Dr (Miss) Sharad Singh, 29.04.2020

सबक 1-खांसने और छींकने के दौरान मुंह पर कपड़ा या हाथ रखना जरूरी होता है जो हम अधिकांश भारतियों के लिए अब तक गैरजरूरी रहा है।

सबक 2-खांसने या छींकने के बाद अपने हाथ अच्छे से धोंए, उसके बाद ही किसी से हाथ मिलाने की सोचें।

सबक 3-साफ़-सफ़ाई से रहने की आदत डालें, चाहे घर पर हों, दफ़्तर पर हों या शहर में हों। उस हवा को साफ़ रखना हमारी अपनी जिम्मेदारी है जिसमें हम सांस लेते हैं।

सबक 4-बड़े रोचक तरीके से यह बात सामने आ रही है कि दिल्ली वालों ने बरसों बाद आसमान में तारे देखे। ज़ाहिर है कि जहां शाम के चार बजते-बजते प्रदूषण का धुंधलका फैल जाता हो वहां आसमान में तारे नज़र ही कहां आएंगे? इस मामले में एक बात और भी है कि दिल्ली वालों को लाॅकडाउन से पहले आसमान देखने की फ़ुर्सत भी कहां मिली? लाॅकडाउन ने उन्हें शाम के बाद की होटलिंग, पब और पार्टियों से दूर जो कर दिया। अब फ़ुर्सत मिली तो अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ उन्होंने आसमान में चांद-तारों की ओर देखा। यानी सबक की बात यह कि दिल्ली के साथ ही सभी शहर प्रदूषणमुक्त रहें और लोग पैसों या चमक-दमक के पीछे भागने के बजाए अपने परिवार को समय देने की आदत बनाए रखें, कोरोनाबंदी के बाद भी।

सबक 5- अकारण गाड़ियां दौड़ाना भी बंद रखें। गाड़ियों की अनावश्यक दौड़ से ध्वनि और वायु का प्रदूषण-स्तर बढ़ता है, ट्रैफिक व्यवस्था जटिल हो जाती है और कीमती डीज़ल-पेट्रोल की क्षति होती है। सरकारें कभी कार-पूल का आग्रह करती हैं तो कभी ऑड-ईवेन की व्यवस्था लागू करती हैं। वे पब्लिक ट्रांसपोर्ट को भी बढ़ावा देती हैं लेकिन हमारी दिखावा पसंद फितरत हमें घर के हर सदस्य के लिए दो पहिया या चार पहिया गाड़ी लेने को उकसाती है। जिस युवा उम्र में सायकिल चलाना सेहत को दुरुस्त रख सकता है, उस उम्र में चार पहिया या नए माॅडल की धांसू दो पहिया पर चढ़ कर हम जिम के चक्कर लगाते नज़र आते हैं। कोरोनाबंदी के बाद हमें चुनना होगा अपनी सेहत और दिखावे में से किसी एक को।

सबक 6- कोरोनाबंदी यानी लाॅकडाउन ने हमें सिखाया कि बताया कि हम अपने बुजुर्गों के लिए कितने जरूरी हैं या यूं कहा जाए कि कोरोनाबंदी ने हमें हमारे बुजुर्गों से एक बार फिर जोड़ दिया है। इस जुड़ाव को कोरोना के बाद भी हमें यूं ही बनाए रखना है। हमें याद रखना होगा कि बुजुर्गों को युवाओं की और युवाओं को बुजुर्गों की जरूरत है।

सबक 7- हमें अपनी लपरवाहियों और ढिठाई पर काबू पाना होगा। कोरोनाबंदी के बीच मिली छूटों का बेजा लाभ उठाते हुए नियमों की धज्जियां उड़ाने की अनेक घटनाएं देश भर में सामने आईं। तो कोरोना के बाद भी हमें जरूरी नियमों का पालन करने की आदत को मजबूत करना होगा। यह हमारी हर प्रकार की सुरक्षा के लिए जरूरी है।

सबक 8- भीड़ के बजाए कतार के अनुशासन को अपनाए रखना होगा कोरोनाकाल के बाद भी। जीवन में अनुशासन ही संवेदनाओं को भी बढ़ाता है और हम संवेदनशील संस्कृति का अहम हिस्सा हैं।

सबक 9- कोरोना आपदा ने उस भावना को पुनः जगा दिया जो धीरे-धीरे कम सोती जा रही थी, परस्पर एक-दूसरे की मदद की भावना। स्थिति यहां तक जा पहुंची थी कि लोग घायल को सम्हालने के बजाए मोबाईल पर उसके कष्टों की वीडियो बनाने को पागल हो उठते थे। यह घातक प्रवृत्ति समाज से संवेदना को तेजी से घटा रही थी। कोरोना आपदा के दौरान लोग जिस प्रकार विस्थापित मजदूरों, बुजंर्गों और बच्चों की मदद के लिए आगे आए वह एक सुखद अहसास है। परेशान लोगों की मदद की यह भावना कोरोना संकट के बाद भी बनाए रखनी है।

सबक 10- कोई भी आपदा जाति, धर्म अथवा सम्प्रदाय में भेद नहीं करती है, यह कोरोना आपदा ने याद दिला दिया है। अतः कोरोना आपदा के बाद भी हमें जाति, धर्म अथवा सम्प्रदाय से ऊपर उठ कर मानवीय भावनाओं को बनाए रखना होगा। उद्दंड किसी भी जाति, धर्म में हो सकते हैं। अतः ऐसे लोगों के मंसूबों को हवा देने के बजाए आपसी भाईचारे पर ही डटे रहना होगा, जैसा कि कोरोनाबंदी के दौरान हमने किया।  
          बहुत सारे सबकों में से ये कुछ सबक हैं जो कोरोना आपदा ने हमें सिखाए हैं और इन सबकों को हमें कोरोना आपदा के बाद भी याद रखना होगा। यह अच्छी बात है कि अन्य देशों की अपेक्षा हमारे हालात बहुत बेहतर रहे। इन्हें हमें और बेहतर बनाते जाना है।
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(दैनिक सागर दिनकर में 29.04.2020 को प्रकाशित)
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Monday, April 27, 2020

लॉकडाउन है हमारा सुरक्षा-कवच - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह, दैनिक 'स्वदेश ज्योति' में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh
 27.04.20, दैनिक 'स्वदेश ज्योति' में प्रकाशित मेरा लेख, आप भी पढ़िए...
हार्दिक धन्यवाद #स्वदेशज्योति 🙏🌷🙏
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लॉकडाउन है हमारा सुरक्षा-कवच
    - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह  
    यह आपदा का ऐसा अवसर है जो जिंदगी के मायने समझा रहा है। जिस सामाजिकता से हम दूर होते जा रहे थे आज सोशल डिस्टेंसिंग ने हमें सामाजिकता के महत्व की मूल्यवत्ता समझा दी है। यानी परिवार के सदस्यों को परस्पर एक-दूसरे के और अधिक करीब ला दिया है। इसने न केवल परिवार के सदस्यों को वरन समस्त देशवासियों को परस्पर करीब ला खड़ा किया है। हम सभी एक ही भावना को जी रहे हैं कि हमें लाॅकडाउन को सफल बनाना है और कोरोना की आपदा को अपने देश से मिटाना है।
लॉकडाउन है हमारा सुरक्षा-कवच  - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह, दैनिक 'स्वदेश ज्योति' में प्रकाशित 
        अभी 26 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' के जरिये देश को संबोधित किया और कोरोना को लेकर अतिआत्मविश्वास से बचने को कहा। कोरोना वायरस कहर के बीच रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत में कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई देश की जनता लड़ रही है। उन्होंने कहा कि भले ही कारोबार हो, कार्यालय की संस्कृति हो, शिक्षा हो या चिकित्सा क्षेत्र हो, हर कोई कोरोना वायरस महामारी के बाद की दुनिया में बदलावों के अनुरूप ढल रहा है। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया का अनुभव हमें बहुत कुछ सीखा रहा है, इसलिए हमें  अति-आत्मविश्वास नहीं पालना चाहिए, क्योंकि कोरोना से सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी।
         सागर शहर के पहले कोरोना पॉजिटिव का पूर्ण स्वस्थ हो कर अपने घर सकुशल लौटना राहत की सांस दे गया लेकिन जैसाकि प्रधानमंत्री ने आगाह किया है कि संकट अभी टला नहीं है। कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव व सुरक्षा के लिए लॉकडाउन-टू लागू है। संक्रमित जिलों में कर्फ्यू की स्थिति बनी हुई है, लेकिन अनेक गांव, शहर, तहसीलें ऐसी हैं, जहां लॉकडाउन लागू होने के बाद भी लोगों की चहलकदमी थमी नहीं है। कोई भी कानून नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाया जाता है और आपदा की स्थिति में यह और अधिक जरूरी हो जाता है कि कानून का गंभीरता से पालन किया जाए। मगर होता उल्टा है, जब भी लाॅकडाउन में रियायात बरती जाती है कुछ लोग अपना संयम खो बैठते हैं और वहीं किराना, फल व अन्य दुकानों में शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करना भूल जाते हैं। जब कि यह सभी को पता है कि कोरोना अति संक्रामक वायरस है। इसके चपेट में जो भी आएगा वह स्वयं तो मौत से टकराएगा ही, साथ ही अपने मित्र, रिश्तेदारों और परिचितों के अलावा अपना ईलाज करने वालों के प्राणों के लिए भी खतरा बन बैठेगा। लेकिन ऐसे ढीठ किस्म के लोग स्थिति की गंभीरता को गोया समझना ही नहीं चाहते हैं। गोया उन्हें दो ही बातों की प्रतीक्षा रहती है कि या तो संक्रमण लग जाए या फिर पुलिस का डंडा पड़ जाए।
            सागर नगर का ही उदाहरण लें तो यह शहर 10 अप्रैल के पहले तक कोरोना से मुक्त था लेकिन 10 अप्रैल के बाद पूरा शहर सकते में आ गया जब पहला कोरोना पाॅजिटिव पाया गया। नगर के शनिचरी क्षेत्र से पाया गया पहला कोरोना पाॅजिटिव मरीज तब दो दिन पहले बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया था। संदेह के आधार पर उसका जांच सैंपल लिया गया और जांच में वह पाॅजिटिव निकला। कोरोना पाॅजिटिव मिलने की पुष्टि होते ही उसके निवास क्षेत्र के तीन किलोमीटर के दायरे को सील कर दिया गया। उसके परिवार के कुल पांच सदस्यों को भी क्वारंटीन किया गया। उसके आस-पड़ोस के व्यक्तियों की भी जांच की गई। मरीज की काॅन्टेक्ट हिस्ट्री भी खंगाली गई जिससे उसके ऐसे दोस्त का भी पता चला जो संक्रमित था। यह जानते हुए भी कि कोरोना संक्रमण की श्रृंखला से फैलता है, लाॅकडाउन लागू होने पर भी उन युवकों द्वारा लापरवाही बरती गई और अनेक लोगों के जान से खिलवाड़ की गई। ‘टिकटॉक स्कूल’ के छात्र कानून तोड़ना ‘डेयरिंग’ यानी दुस्साहस या रोमांच का काम समझते हैं जबकि हकीकत में यह सिर्फ और सिर्फ अपराध होता है। कोई भी कानून नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाया जाता है और आपदा की स्थिति में यह और अधिक जरूरी हो जाता है कि कानून का गंभीरता से पालन किया जाए। सरकार जानती है कि लाॅकडाउन लागू करने से किस-किस तरह के नुकसान हो सकते हैं। मिल, कारखाने, दूकानें सभी बंद हैं। उत्पादन थम-सा गया है। बिक्री के लिए सामानों की उपलब्धता लड़खड़ाने लगी है। कुटीर उद्योग और लघु उद्योग पूरी तरह बैठ चुके हैं। आपदा खत्म होने के बाद उन्हें एक तगड़े स्टार्टअप की जरूरत पड़ेगी। किसान चिंतित हैं, दूकानदार चिंतित हैं, बेघर-बेरोजगार मजदूर चिंतित हैं और इन सब के लिए चिंतित है सरकार। मगर किसी भी आपदा के लिए कभी कोई पूर्व तैयारी नहीं की जा सकती है। आपदा का मतलब ही है कि अचानक कोई बड़ा संकट आ खड़ा होना। हमारा देश समूचे विश्व की भांति आपदा के दौर से गुज़र रहा है। मगर अन्य देशों की तुलना में हमारे देश में स्थिति कई गुना बेहतर है क्योंकि यहां समय रहते आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू कर दिया गया। देश के प्रधानमंत्री ने स्वयं लगातार देश की आमजनता से संवाद बनाए रखा। इस सकारात्मकता ने ही हौसला दे रखा है कोरोना वारियर्स को। फिर भी जो ढीठ किस्म के लोग इन सब बातों को अनदेखा करते रहते हैं और लाॅकडाउन के नियमों को धता बताने की ताक में रहते हैं उन्हें आपदा प्रबंधन अधिनियम के बारे में जरूर जान लेना चाहिए यानी जो बातों से नहीं मानेंगे उनके ऊपर डंडे चलाने का अधिकार रखता है प्रत्येक स्थानीय प्रशासन। जीवन की सुरक्षा के लिए कानून के डंडे भी जरूरी होते हैं।  लाॅकडाउन के नियमों का पालन करते हुए जिस संकट से बड़ी आसानी से निपटा जा सकता है, उसे नियमों को तोड़ कर बढ़ावा देना स्वयं को हत्यारा बनाने के समान है। धैर्य, सुरक्षा और शांति से ही टल सकता है यह संकट। यह समझना ही होगा कि ढीठ बनना कोई बुद्धिमानी नहीं है।  
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Thursday, April 23, 2020

विश्व पुस्तक दिवस पर विशेष लेख - किताबों की जादुई दुनिया - डॉ (सुश्री) शरद सिंह


विश्व पुस्तक दिवस पर web magazine युवा प्रवर्तक ने आज मेरा लेख  "किताबों की जादुई दुनिया"अपने  दिनांक 23.04. 2020 के अंक में प्रकाशित किया है। 
🚩युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
आप इस Link पर भी मेरे इस लेख को पढ़ सकते हैं ... 
http://yuvapravartak.com/?p=30057
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विश्व पुस्तक दिवस (23अप्रैल) पर विशेष लेख -
 किताबों की जादुई दुनिया
   - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

       जिसने भी चार अक्षर का ज्ञान प्राप्त कर लिया हो वह किताबों की दुनिया में प्रवेश कर ही जाता है भले ही वह किताब आठ-दस पन्नों की  बुकलेट जैसी दुबली पतली किताब हो या कोर्स की जटिल अथवा साहित्य की मोटी-सी किताब हो । स्कूल के दिनों में अपनी किताबें होना बहुत सुखद अनुभूति देता है। स्कूल के दिनों में अपनी किताबों पर बड़े जतन से कवर चढ़ाना और उस पर अपना और अपनी कक्षा का नाम लिखना बहुत अच्छा लगता है। बचपन के दिन  स्कूली किताबों के अलावा  कॉमिक्स  और  बाल साहित्य  की पुस्तकों से  जुड़े रहते हैं। किताबों की दुनिया हमारे बचपन से ही हमें अपने आगोश में ले लेती है।  वह पुचकारती है, दुलारती है,  हमारी कल्पना शक्ति का विकास करती है  और हमें नित नई दुनिया से परिचित कराती है। वही समय होता है जब हम राजा-रानी के किस्से पढ़ते हैं, भूतों-प्रेतों के किस्से पढ़ते हैं, बहादुरी के किस्से पढ़ते हैं और अपने भय पर विजय पाते हुए अपने भीतर एक साहसी संसार गढ़ते हैं।
      स्कूल का समय पीछे छोड़ते हुए जब हम महाविद्यालय में पहुंचते हैं तो उस समय किताबों से भरे बस्ते का बोझ पीछे छूट जाता है और मिल जाती है किताबों की एक नई दुनिया, जो हमें पुस्तकालयों की ओर आकर्षित करती है। वह चाहे परंपरागत पुस्तकालय हो या आजकल के ऑनलाइन डिजिटल पुस्तकालय। किताबें पढ़ने की इच्छा कभी समाप्त नहीं होती। भले ही हम काग़ज़ पर छपी हुई पुस्तकें पढ़ें या कम्प्यूटर अथवा मोबाईल की स्क्रीन पर किताबें पढ़ें। भले ही हम समय अभाव में कम ही पढ़ पाएं, लेकिन अवसर मिलते ही किताबों की दुनिया में प्रवेश करने को उद्यत हो उठते हैं। महाविद्यालय जीवन वह फेज़ होता है जब हम रूमानियत से परिचित होते हैं। उस दौर में पढ़ाई की जरूरी किताबों के अलावा प्रेम और जासूसी से भरी रूमानियत वाली किताबें हमारी भावनाओं को कोमलता से परिपक्व बनाती रहती हैं। जिसका उस समय तो हमें अहसास नहीं होता है लेकिन वैचारिक परिपक्वता आने पर हमें अनुभव होता है कि हमने जो रूमानियत भरी किताबें अपने कॉलेज के जीवन में पढ़ी थीं उन्होंने हमें प्रेम से परिचित कराया और प्रेम को समझने तथा प्रेम को निभाने की क्षमता हमारे भीतर पैदा की। यह किताबें ही तो हैं जो जीवन की विभिन्न अनुभूतियों को हमारे भीतर जगाती हैं, पल्लवित-पुष्पित करती हैं और हमें विचार पूर्ण बनाती हैं। या यूं कहा जाए कि हमारे भीतर एक वैचारिक क्षमता पैदा करती हैं। ग़लत-सही को जांचने, जीवन को सुंदरतम रूप प्रदान करने की भावना भी हमें किताबों से ही मिलती है। पढ़ाई से जुड़ी किताबें जैसे कानून की किताबें हमें कानून सिखाती हैं, विज्ञान से जुड़ी किताबें हमें वैज्ञानिक तथ्यों से परिचित कराती हैं, इतिहास की किताबें हमें अपने अतीत से परिचित कराती हैं, उसी प्रकार साहित्यिक किताबें हमें भावनाओं और सम्वेदनाओं के साथ जीना सिखाती हैं।
          पाठकों के लिए किताबें अछूती अनुभूतियों का तिलस्म रचती हैं और उन्हें एक समानांतर दुनिया जीने का अवसर देती हैं। वहीं, एक लेखक (लेखिका) के लिए उसकी किताबें उसकी आकलन, अन्वेषण और अनुभूतिजनित अभिव्यक्ति का ख़जाना होती हैं। किताबें अकेलेपन को दूर करने वाली सच्ची  मित्र होती हैं। किताबों की दुनिया किसी जादुई दुनिया की तरह हमेशा हमें अपनी ओर आकर्षित करती है। किताबें वे हैं जिन्हें हम बैठ कर, लेट कर किसी भी मुद्रा में पढ़ सकते हैं, उनका आनंद उठा सकते हैं।  एक बार नाता जुड़ जाने के बाद किताबों से नाता  कभी नहीं टूटता है और यह नाता कभी तोड़़ना भी नहीं चाहिए ।
     अंत में सारांशतः मैं अपनी कविता की चंद पंक्तियों में किताबों की महत्ता व्यक्त कर रही हूं-
*बहुत  खूबसूरत  क़िताबों  की दुनिया*
*सवालों  में  जैसे   जवाबों  की दुनिया*
*है  सच्चाई  इसमें  जो  सारे  जहां की*
*इनमें ही शामिल है ख़्वाबों की दुनिया*
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सागर, मध्यप्रदेश

विश्व पुस्तक दिवस (23अप्रैल) पर विशेष लेख - किताबों की जादुई दुनिया - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

web portal magazine हरमुद्दा.कॉम ने आज विश्व पुस्तक दिवस पर मेरा लेख "किताबों की जादुई दुनिया" अपने  दिनांक 23.04. 2020 के अंक में प्रकाशित किया है।
🚩हरमुद्दा.कॉम के प्रति हार्दिक आभार 🙏
आप इस Link पर भी मेरे इस लेख को पढ़ सकते हैं ...
https://harmudda.com/?p=17604
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#विश्वपुस्तकदिवस
#worldbookday
विश्व पुस्तक दिवस (23अप्रैल) पर विशेष लेख -

*किताबों की जादुई दुनिया*
   *- डॉ (सुश्री) शरद सिंह*

       जिसने भी चार अक्षर का ज्ञान प्राप्त कर लिया हो वह किताबों की दुनिया में प्रवेश कर ही जाता है भले ही वह किताब आठ-दस पन्नों की  बुकलेट जैसी दुबली पतली किताब हो या कोर्स की जटिल अथवा साहित्य की मोटी-सी किताब हो । स्कूल के दिनों में अपनी किताबें होना बहुत सुखद अनुभूति देता है। स्कूल के दिनों में अपनी किताबों पर बड़े जतन से कवर चढ़ाना और उस पर अपना और अपनी कक्षा का नाम लिखना बहुत अच्छा लगता है। बचपन के दिन  स्कूली किताबों के अलावा  कॉमिक्स  और  बाल साहित्य  की पुस्तकों से  जुड़े रहते हैं। किताबों की दुनिया हमारे बचपन से ही हमें अपने आगोश में ले लेती है।  वह पुचकारती है, दुलारती है,  हमारी कल्पना शक्ति का विकास करती है  और हमें नित नई दुनिया से परिचित कराती है। वही समय होता है जब हम राजा-रानी के किस्से पढ़ते हैं, भूतों-प्रेतों के किस्से पढ़ते हैं, बहादुरी के किस्से पढ़ते हैं और अपने भय पर विजय पाते हुए अपने भीतर एक साहसी संसार गढ़ते हैं।
      स्कूल का समय पीछे छोड़ते हुए जब हम महाविद्यालय में पहुंचते हैं तो उस समय किताबों से भरे बस्ते का बोझ पीछे छूट जाता है और मिल जाती है किताबों की एक नई दुनिया, जो हमें पुस्तकालयों की ओर आकर्षित करती है। वह चाहे परंपरागत पुस्तकालय हो या आजकल के ऑनलाइन डिजिटल पुस्तकालय। किताबें पढ़ने की इच्छा कभी समाप्त नहीं होती। भले ही हम काग़ज़ पर छपी हुई पुस्तकें पढ़ें या कम्प्यूटर अथवा मोबाईल की स्क्रीन पर किताबें पढ़ें। भले ही हम समय अभाव में कम ही पढ़ पाएं, लेकिन अवसर मिलते ही किताबों की दुनिया में प्रवेश करने को उद्यत हो उठते हैं। महाविद्यालय जीवन वह फेज़ होता है जब हम रूमानियत से परिचित होते हैं। उस दौर में पढ़ाई की जरूरी किताबों के अलावा प्रेम और जासूसी से भरी रूमानियत वाली किताबें हमारी भावनाओं को कोमलता से परिपक्व बनाती रहती हैं। जिसका उस समय तो हमें अहसास नहीं होता है लेकिन वैचारिक परिपक्वता आने पर हमें अनुभव होता है कि हमने जो रूमानियत भरी किताबें अपने कॉलेज के जीवन में पढ़ी थीं उन्होंने हमें प्रेम से परिचित कराया और प्रेम को समझने तथा प्रेम को निभाने की क्षमता हमारे भीतर पैदा की। यह किताबें ही तो हैं जो जीवन की विभिन्न अनुभूतियों को हमारे भीतर जगाती हैं, पल्लवित-पुष्पित करती हैं और हमें विचार पूर्ण बनाती हैं। या यूं कहा जाए कि हमारे भीतर एक वैचारिक क्षमता पैदा करती हैं। ग़लत-सही को जांचने, जीवन को सुंदरतम रूप प्रदान करने की भावना भी हमें किताबों से ही मिलती है। पढ़ाई से जुड़ी किताबें जैसे कानून की किताबें हमें कानून सिखाती हैं, विज्ञान से जुड़ी किताबें हमें वैज्ञानिक तथ्यों से परिचित कराती हैं, इतिहास की किताबें हमें अपने अतीत से परिचित कराती हैं, उसी प्रकार साहित्यिक किताबें हमें भावनाओं और सम्वेदनाओं के साथ जीना सिखाती हैं।
          पाठकों के लिए किताबें अछूती अनुभूतियों का तिलस्म रचती हैं और उन्हें एक समानांतर दुनिया जीने का अवसर देती हैं। वहीं, एक लेखक (लेखिका) के लिए उसकी किताबें उसकी आकलन, अन्वेषण और अनुभूतिजनित अभिव्यक्ति का ख़जाना होती हैं। किताबें अकेलेपन को दूर करने वाली सच्ची  मित्र होती हैं। किताबों की दुनिया किसी जादुई दुनिया की तरह हमेशा हमें अपनी ओर आकर्षित करती है। किताबें वे हैं जिन्हें हम बैठ कर, लेट कर किसी भी मुद्रा में पढ़ सकते हैं, उनका आनंद उठा सकते हैं।  एक बार नाता जुड़ जाने के बाद किताबों से नाता  कभी नहीं टूटता है और यह नाता कभी तोड़़ना भी नहीं चाहिए ।
     अंत में सारांशतः मैं अपनी कविता की चंद पंक्तियों में किताबों की महत्ता व्यक्त कर रही हूं-
*बहुत  खूबसूरत  क़िताबों  की दुनिया*
*सवालों  में  जैसे   जवाबों  की दुनिया*
*है  सच्चाई  इसमें  जो  सारे  जहां की*
*इनमें ही शामिल है ख़्वाबों की दुनिया*
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सागर, मध्यप्रदेश


विश्व पुस्तक दिवस (23 अप्रैल) पर प्रकाशित फीचर में डॉ. शरद सिंह


Dr (Miss) Sharad Singh with her Books
विश्व पुस्तक दिवस (23 अप्रैल) पर आज नवदुनिया द्वारा सागर नगर के तीन प्रमुख साहित्यकारों से उनके जीवन में पुस्तकों के महत्व के बारे में एक फीचर प्रकाशित किया गया जिसमें मैं डॉ. शरद सिंह और मेरी दीदी डॉ. वर्षा सिंह भी शामिल हैं। 😊 पढ़िए आप भी यह रोचक फीचर-
हार्दिक धन्यवाद ‘‘नवदुनिया’’ !!!
Navdunia, Vishwa, Pustak Diwas, 23.04.2020.- Dr Sharad Singh
Dr (Miss) Sharad Singh
 पुस्तकों ने मेरे जीवन को सार्थकता दी
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह, वरिष्ठ लेखिका एवं उपन्यासकार

एक साहित्यिक परिवार की होने के कारण बचपन से साहित्यिक पुस्तकों से जुड़ाव रहा। जब छोटी थी तो पंचतंत्र और चार्ल्स डिकेंस की कहानियां पढ़ती थी। कॉलेज के दिनों में टॉलस्टॉय, गोर्की, काफ्का, शेक्सपियर, प्रेमचंद और जयशंकर प्रसाद की किताबें पढ़ीं। आज मैंने एक लेखिका के रूप में पचास से अधिक किताबें लिखी हैं जिनमें मेरे चार बेस्टसेलर उपन्यास भी शामिल हैं, तो इन सबके पीछे उन सैंकड़ों किताबों का योगदान है जिनको पढ़ कर मैं अपना अलग दृष्टिकोण और अपनी अलग लेखन शैली विकसित कर सकी। निकोलाई आस्त्रोवस्की की 'अग्निदीक्षा' ने जहां मुझे जीवन के संघर्षों से जूझने का हौसला दिया, वहीं शिवाजी सावंत की 'मृत्युंजय' ने पात्रों के मनोभावों को अभिव्यक्ति देने की मेरी समझ को मांजा। एक लेखिका और पाठक दोनों रूप में पुस्तकों ने मेरे जीवन को सार्थक बनाया है, उनके बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकती हूं।
     ………………..

"नवदुनिया" पहेली में विजेता होने का आनंद - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
हुर्रे !!! पहेली में विजेता होने का आनंद अद्वितीय होता है...तो मित्रो, मुझे विजेता होने की बधाई दीजिए  लॉकडाउन के इस कठिन समय को सहज बनाने के उद्देश्य से "नवदुनिया", सागर संस्करण द्वारा पाठकों से प्रतिदिन एक रोचक तस्वीर पहेली पूछी जा रही है। इसमें सागर शहर के किसी एक स्थान की तस्वीर प्रकाशित की जाती है और पूछा जाता है कि यह स्थान कहां पर स्थित है। कल पूछी गई पहेली में मेरा जवाब सही जवाबों में चुना गया है। 🥇
और मैं दे रही हूं नवदुनिया को हार्दिक धन्यवाद जिसने इस उत्साह को अनुभव करने का रोचक अवसर दिया !  - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
Thank you #Navdunia 🎉     
Navdunia, 23.04.2020 - Photo quiz - Dr (Miss) Sharad Singh


Wednesday, April 22, 2020

लेख - कोरोना के इस दौर में प्राणघातक हो सकता है ढीठ बनना - डाॅ शरद सिंह - हरमुद्दा.कॉम में प्रकाशित

web portal magazine हरमुद्दा. कॉम ने मेरा लेख अपने  दिनांक 22.04. 2020 के अंक में प्रकाशित किया है। 
🚩हरमुद्दा. कॉम के प्रति हार्दिक आभार 🙏
आप इस Link पर भी मेरे इस लेख को पढ़ सकते हैं ... 
https://harmudda.com/?p=17568
*लेख*
*कोरोना के इस दौर में प्राणघातक हो सकता है ढीठ बनना*
*- डाॅ शरद सिंह*
         
*‘सोशल मीडिया स्कूल’ के छात्र कानून तोड़ना ‘डेयरिंग’ यानी दुस्साहस या रोमांच का काम समझते हैं जबकि हक़ीकत में यह सिर्फ़ और सिर्फ़ अपराध होता है। कोई भी कानून नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाया जाता है और आपदा की स्थिति में यह और अधिक जरूरी हो जाता है कि कानून का गंभीरता से पालन किया जाए।*

         कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव व सुरक्षा के लिए लॉकडाउन-टू लागू है। संक्रमित जिलों में कर्फ्यू की स्थिति बनी हुई है, लेकिन अनेक गांव, शहर, तहसीलें ऐसी हैं, जहां लॉकडाउन लागू होने के बाद भी लोगों की चहलकदमी थमी नहीं है। जब भी लाॅकडाउन में रियायात बरती जाती है कुछ लोग अपना आपा खो बैठते हैं और वहीं किराना, फल व अन्य दुकानों में शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करना भूल जाते हैं। जब कि यह सभी को पता है कि कोरोना अति संक्रामक वायरस है। इसके चपेट में जो भी आएगा वह स्वयं तो मौत से टकराएगा ही, साथ ही अपने मित्र, रिश्तेदारों और परिचितों के अलावा अपना ईलाज करने वालों के प्राणों के लिए भी खतरा बन बैठेगा। लेकिन ऐसे ढीठ किस्म के लोग स्थिति की गंभीरता को गोया समझना ही नहीं चाहते हैं। गोया उन्हें दो ही बातों की प्रतीक्षा रहती है कि या तो संक्रमण लग जाए या फिर पुलिस का डंडा पड़ जाए।
            सागर नगर का ही उदाहरण लें तो यह शहर 10 अप्रैल के पहले तक कोरोना से मुक्त था लेकिन 10 अप्रैल के बाद पूरा शहर सकते में आ गया जब पहला कोरोना पाॅजिटिव पाया गया। नगर के शनिचरी क्षेत्र से पाया गया पहला कोरोना पाॅजिटिव मरीज दो दिन पहले बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया था। संदेह के आधार पर उसका जांच सैंपल लिया गया और जांच में वह पाॅजिटिव निकला। कोरोना पाॅजिटिव मिलने की पुष्टि होते ही उसके निवास क्षेत्र के तीन किलोमीटर के दायरे को सील कर दिया गया। उसके परिवार के कुल पांच सदस्यों को भी क्वारंटीन किया गया। उसके आस-पड़ोस के व्यक्तियों की भी जांच की गई। मरीज की काॅन्टेक्ट हिस्ट्री भी खंगाली गई जिससे उसके ऐसे दोस्त का भी पता चला जो संक्रमित था। यह जानते हुए भी कि कोरोना संक्रमण की श्रृंखला से फैलता है, लाॅकडाउन लागू होने पर भी उन युवकों द्वारा लापरवाही बरती गई और अनेक लोगों के जान से खिलवाड़ की गई। ‘सोशल मीडिया स्कूल’ के छात्र कानून तोड़ना ‘डेयरिंग’ यानी दुस्साहस या रोमांच का काम समझते हैं जबकि हकीकत में यह सिर्फ और सिर्फ अपराध होता है। कोई भी कानून नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाया जाता है और आपदा की स्थिति में यह और अधिक जरूरी हो जाता है कि कानून का गंभीरता से पालन किया जाए। सरकार जानती है कि लाॅकडाउन लागू करने से किस-किस तरह के नुकसान हो सकते हैं। मिल, कारखाने, दूकानें सभी बंद हैं। उत्पादन थम-सा गया है। बिक्री के लिए सामानों की उपलब्धता लड़खडाने लगी है। कुटीर उद्योग और लघु उद्योग पूरी तरह बैठ चुके हैं। आपदा खत्म होने के बाद उन्हें उन्हें एक तगड़े स्टार्टअप की जरूरत पड़ेगी। किसान चिंतित हैं, दूकानदार चिंतित हैं, बेघर-बेरोजगार मजदूर चिंतित हैं और इन सब के लिए चिंतित है सरकार। मगर किसी भी आपदा के लिए कभी कोई पूर्व तैयारी नहीं की जा सकती है। आपदा का मतलब ही है कि अचानक कोई बड़ा संकट आ खड़ा होना। हमारा देश समूचे विश्व की भांति आपदा के दौर से गुज़र रहा है। मगर अन्य देशों की तुलना में हमारे देश में स्थिति कई गुना बेहतर है क्योंकि यहां समय रहते आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू कर दिया गया। देश के प्रधानमंत्री ने स्वयं लगातार देश की आमजनता से संवाद बनाए रखा। इस सकारात्मकता ने ही हौसला दे रखा है कोरोना वारियर्स को। फिर भी जो ढीठ किस्म के लोग इन सब बातों को अनदेखा करते रहते हैं और लाॅकडाउन के नियमों को धता बताने की ताक में रहते हैं उन्हें आपदा प्रबंधन अधिनियम के बारे में जरूर जान लेना चाहिए यानी जो बातों से नहीं मानेंगे उनके ऊपर डंडे चलाने का अधिकार रखता है प्रत्येक स्थानीय प्रशासन। जीवन की सुरक्षा के लिए कानून के डंडे भी जरूरी होते हैं।  
               इस वर्ष मार्च महीने के आरम्भ में भारत सरकार ने 123 साल पुराने ब्रिटिश सरकार में बनाए गए एपिडेमिक डिजिज एक्ट 1897 लागू किया था। इस कानून को अंग्रेजों ने फरवरी 1897 में तब के मुंबई शहर में फैल रहे प्लेग महामारी को कंट्रोल करने के लिए बनाया था। इसमें ब्रिटिश सरकार के पास शक्ति थी कि वो देश में कहीं भी ज्यादा लोगों के जुटने पर रोक लगा सकती थी। चूंकि ये कानून राज्य सरकारों को महामारी की प्रकृति को देखते हुए नए नियम बनाने की सहूलियत देता है ऐसे में ये फैसला राज्य सरकारों को लेना होता है कि वह अपने राज्य में क्या नए नियम-कायदे महामारी के प्रकोप को रोकने के लिए बनाना चाहती है। यहां एक बात स्पष्ट रहनी चाहिए कि यह कानून किसी भी प्रकार के आपदा के लिए है जबकि इसके साथ ही एक और कानून है जो एपिडेमिक डिजिज एक्ट 1897 कहलाता है लेकिन इन दोनों कानूनों में परस्पर थोड़ा अंतर है।
            आपदा प्रबंधन अधिनियम को दिसंबर, 2005 में लागू किया गया था। ये एक राष्ट्रीय कानून है जिसका इस्तेमाल केंद्र सरकार करती है ताकि किसी आपदा से निपटने के लिए एक देशव्यापी योजना बनाई जा सके। इस एक्ट के दूसरे भाग के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के गठन का प्रवधान है. जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। इसके अलावा इसके अधिकतम नौ सदस्य हो सकते हैं जिसका चुनाव प्रधानमंत्री के सुझाव पर होता हैं। इसके तहत केंद्र सरकार के पास अधिकार होता है कि वह दिए गए निर्देशों का पालन ना करने वाले पर कार्रवाई कर सकती है। इस कानून के तहत राज्य सरकारों को केंद्र की बनायी योजना का पालन करना होता है। इस कानून की सबसे विशेष बात यह है कि इसमें राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण आदेशों का पालन नहीं करने पर किसी भी राज्य के अधिकारी के साथ-साथ प्राइवेट कंपनियों के अधिकारी पर भी कार्रवाई कर सकती है। ये कानून किसी प्राकृतिक आपदा और मानव-जनित आपदा की परिस्थिति पैदा होने पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
             लाॅकडाउन के नियमों का पालन करते हुए जिस संकट से बड़ी आसानी से निपटा जा सकता है, उसे नियमों को तोड़ कर बढ़ावा देना स्वयं को हत्यारा बनाने के समान है। धैर्य, सुरक्षा और शांति से ही टल सकता है यह संकट। यह समझना ही होगा कि ढीठ बनना कोई बुद्धिमानी नहीं है।  
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सागर, मध्यप्रदेश

लेख - कोरोना के इस दौर में प्राणघातक हो सकता है ढीठ बनना - डाॅ शरद सिंह - युवा प्रवर्तक में प्रकाशित

web magazine युवा प्रवर्तक ने मेरा लेख अपने  दिनांक 22.04. 2020 के अंक में प्रकाशित किया है। 
🚩युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
आप इस Link पर भी मेरे इस लेख को पढ़ सकते हैं ... 
http://yuvapravartak.com/?p=29967

*लेख*
*कोरोना के इस दौर में प्राणघातक हो सकता है ढीठ बनना*
*- डाॅ शरद सिंह*
         
*‘सोशल मीडिया स्कूल’ के छात्र कानून तोड़ना ‘डेयरिंग’ यानी दुस्साहस या रोमांच का काम समझते हैं जबकि हक़ीकत में यह सिर्फ़ और सिर्फ़ अपराध होता है। कोई भी कानून नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाया जाता है और आपदा की स्थिति में यह और अधिक जरूरी हो जाता है कि कानून का गंभीरता से पालन किया जाए।*

         कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव व सुरक्षा के लिए लॉकडाउन-टू लागू है। संक्रमित जिलों में कर्फ्यू की स्थिति बनी हुई है, लेकिन अनेक गांव, शहर, तहसीलें ऐसी हैं, जहां लॉकडाउन लागू होने के बाद भी लोगों की चहलकदमी थमी नहीं है। जब भी लाॅकडाउन में रियायात बरती जाती है कुछ लोग अपना आपा खो बैठते हैं और वहीं किराना, फल व अन्य दुकानों में शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करना भूल जाते हैं। जब कि यह सभी को पता है कि कोरोना अति संक्रामक वायरस है। इसके चपेट में जो भी आएगा वह स्वयं तो मौत से टकराएगा ही, साथ ही अपने मित्र, रिश्तेदारों और परिचितों के अलावा अपना ईलाज करने वालों के प्राणों के लिए भी खतरा बन बैठेगा। लेकिन ऐसे ढीठ किस्म के लोग स्थिति की गंभीरता को गोया समझना ही नहीं चाहते हैं। गोया उन्हें दो ही बातों की प्रतीक्षा रहती है कि या तो संक्रमण लग जाए या फिर पुलिस का डंडा पड़ जाए।
            सागर नगर का ही उदाहरण लें तो यह शहर 10 अप्रैल के पहले तक कोरोना से मुक्त था लेकिन 10 अप्रैल के बाद पूरा शहर सकते में आ गया जब पहला कोरोना पाॅजिटिव पाया गया। नगर के शनिचरी क्षेत्र से पाया गया पहला कोरोना पाॅजिटिव मरीज दो दिन पहले बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया था। संदेह के आधार पर उसका जांच सैंपल लिया गया और जांच में वह पाॅजिटिव निकला। कोरोना पाॅजिटिव मिलने की पुष्टि होते ही उसके निवास क्षेत्र के तीन किलोमीटर के दायरे को सील कर दिया गया। उसके परिवार के कुल पांच सदस्यों को भी क्वारंटीन किया गया। उसके आस-पड़ोस के व्यक्तियों की भी जांच की गई। मरीज की काॅन्टेक्ट हिस्ट्री भी खंगाली गई जिससे उसके ऐसे दोस्त का भी पता चला जो संक्रमित था। यह जानते हुए भी कि कोरोना संक्रमण की श्रृंखला से फैलता है, लाॅकडाउन लागू होने पर भी उन युवकों द्वारा लापरवाही बरती गई और अनेक लोगों के जान से खिलवाड़ की गई। ‘सोशल मीडिया स्कूल’ के छात्र कानून तोड़ना ‘डेयरिंग’ यानी दुस्साहस या रोमांच का काम समझते हैं जबकि हकीकत में यह सिर्फ और सिर्फ अपराध होता है। कोई भी कानून नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाया जाता है और आपदा की स्थिति में यह और अधिक जरूरी हो जाता है कि कानून का गंभीरता से पालन किया जाए। सरकार जानती है कि लाॅकडाउन लागू करने से किस-किस तरह के नुकसान हो सकते हैं। मिल, कारखाने, दूकानें सभी बंद हैं। उत्पादन थम-सा गया है। बिक्री के लिए सामानों की उपलब्धता लड़खडाने लगी है। कुटीर उद्योग और लघु उद्योग पूरी तरह बैठ चुके हैं। आपदा खत्म होने के बाद उन्हें उन्हें एक तगड़े स्टार्टअप की जरूरत पड़ेगी। किसान चिंतित हैं, दूकानदार चिंतित हैं, बेघर-बेरोजगार मजदूर चिंतित हैं और इन सब के लिए चिंतित है सरकार। मगर किसी भी आपदा के लिए कभी कोई पूर्व तैयारी नहीं की जा सकती है। आपदा का मतलब ही है कि अचानक कोई बड़ा संकट आ खड़ा होना। हमारा देश समूचे विश्व की भांति आपदा के दौर से गुज़र रहा है। मगर अन्य देशों की तुलना में हमारे देश में स्थिति कई गुना बेहतर है क्योंकि यहां समय रहते आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू कर दिया गया। देश के प्रधानमंत्री ने स्वयं लगातार देश की आमजनता से संवाद बनाए रखा। इस सकारात्मकता ने ही हौसला दे रखा है कोरोना वारियर्स को। फिर भी जो ढीठ किस्म के लोग इन सब बातों को अनदेखा करते रहते हैं और लाॅकडाउन के नियमों को धता बताने की ताक में रहते हैं उन्हें आपदा प्रबंधन अधिनियम के बारे में जरूर जान लेना चाहिए यानी जो बातों से नहीं मानेंगे उनके ऊपर डंडे चलाने का अधिकार रखता है प्रत्येक स्थानीय प्रशासन। जीवन की सुरक्षा के लिए कानून के डंडे भी जरूरी होते हैं।  
               इस वर्ष मार्च महीने के आरम्भ में भारत सरकार ने 123 साल पुराने ब्रिटिश सरकार में बनाए गए एपिडेमिक डिजिज एक्ट 1897 लागू किया था। इस कानून को अंग्रेजों ने फरवरी 1897 में तब के मुंबई शहर में फैल रहे प्लेग महामारी को कंट्रोल करने के लिए बनाया था। इसमें ब्रिटिश सरकार के पास शक्ति थी कि वो देश में कहीं भी ज्यादा लोगों के जुटने पर रोक लगा सकती थी। चूंकि ये कानून राज्य सरकारों को महामारी की प्रकृति को देखते हुए नए नियम बनाने की सहूलियत देता है ऐसे में ये फैसला राज्य सरकारों को लेना होता है कि वह अपने राज्य में क्या नए नियम-कायदे महामारी के प्रकोप को रोकने के लिए बनाना चाहती है। यहां एक बात स्पष्ट रहनी चाहिए कि यह कानून किसी भी प्रकार के आपदा के लिए है जबकि इसके साथ ही एक और कानून है जो एपिडेमिक डिजिज एक्ट 1897 कहलाता है लेकिन इन दोनों कानूनों में परस्पर थोड़ा अंतर है।
            आपदा प्रबंधन अधिनियम को दिसंबर, 2005 में लागू किया गया था। ये एक राष्ट्रीय कानून है जिसका इस्तेमाल केंद्र सरकार करती है ताकि किसी आपदा से निपटने के लिए एक देशव्यापी योजना बनाई जा सके। इस एक्ट के दूसरे भाग के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के गठन का प्रवधान है. जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। इसके अलावा इसके अधिकतम नौ सदस्य हो सकते हैं जिसका चुनाव प्रधानमंत्री के सुझाव पर होता हैं। इसके तहत केंद्र सरकार के पास अधिकार होता है कि वह दिए गए निर्देशों का पालन ना करने वाले पर कार्रवाई कर सकती है। इस कानून के तहत राज्य सरकारों को केंद्र की बनायी योजना का पालन करना होता है। इस कानून की सबसे विशेष बात यह है कि इसमें राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण आदेशों का पालन नहीं करने पर किसी भी राज्य के अधिकारी के साथ-साथ प्राइवेट कंपनियों के अधिकारी पर भी कार्रवाई कर सकती है। ये कानून किसी प्राकृतिक आपदा और मानव-जनित आपदा की परिस्थिति पैदा होने पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
             लाॅकडाउन के नियमों का पालन करते हुए जिस संकट से बड़ी आसानी से निपटा जा सकता है, उसे नियमों को तोड़ कर बढ़ावा देना स्वयं को हत्यारा बनाने के समान है। धैर्य, सुरक्षा और शांति से ही टल सकता है यह संकट। यह समझना ही होगा कि ढीठ बनना कोई बुद्धिमानी नहीं है।  
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सागर, मध्यप्रदेश

चर्चा प्लस … प्राणघातक हो सकता है ढीठ बनना - डाॅ शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस … 

प्राणघातक हो सकता है ढीठ बनना
- डाॅ शरद सिंह

         ‘सोशल मीडिया स्कूल’ के छात्र कानून तोड़ना ‘डेयरिंग’ यानी दुस्साहस या रोमांच का काम समझते हैं जबकि हक़ीकत में यह सिर्फ़ और सिर्फ़ अपराध होता है। कोई भी कानून नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाया जाता है और आपदा की स्थिति में यह और अधिक जरूरी हो जाता है कि कानून का गंभीरता से पालन किया जाए।
         कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव व सुरक्षा के लिए लॉकडाउन-टू लागू है। संक्रमित जिलों में कर्फ्यू की स्थिति बनी हुई है, लेकिन अनेक गांव, शहर, तहसीलें ऐसी हैं, जहां लॉकडाउन लागू होने के बाद भी लोगों की चहलकदमी थमी नहीं है। जब भी लाॅकडाउन में रियायात बरती जाती है कुछ लोग अपना आपा खो बैठते हैं और वहीं किराना, फल व अन्य दुकानों में शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करना भूल जाते हैं। जब कि यह सभी को पता है कि कोरोना अति संक्रामक वायरस है। इसके चपेट में जो भी आएगा वह स्वयं तो मौत से टकराएगा ही, साथ ही अपने मित्र, रिश्तेदारों और परिचितों के अलावा अपना ईलाज करने वालों के प्राणों के लिए भी खतरा बन बैठेगा। लेकिन ऐसे ढीठ किस्म के लोग स्थिति की गंभीरता को गोया समझना ही नहीं चाहते हैं। गोया उन्हें दो ही बातों की प्रतीक्षा रहती है कि या तो संक्रमण लग जाए या फिर पुलिस का डंडा पड़ जाए।
Charcha Plus Column of Dr (Miss) Sharad Singh Dainik Sagar Dinkar, 22.04.2020
                 सागर नगर का ही उदाहरण लें तो यह शहर 10 अप्रैल के पहले तक कोरोना से मुक्त था लेकिन 10 अप्रैल के बाद पूरा शहर सकते में आ गया जब पहला कोरोना पाॅजिटिव पाया गया। नगर के शनिचरी क्षेत्र से पाया गया पहला कोरोना पाॅजिटिव मरीज दो दिन पहले बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया था। संदेह के आधार पर उसका जांच सैंपल लिया गया और जांच में वह पाॅजिटिव निकला। कोरोना पाॅजिटिव मिलने की पुष्टि होते ही उसके निवास क्षेत्र के तीन किलोमीटर के दायरे को सील कर दिया गया। उसके परिवार के कुल पांच सदस्यों को भी क्वारंटीन किया गया। उसके आस-पड़ोस के व्यक्तियों की भी जांच की गई। मरीज की काॅन्टेक्ट हिस्ट्री भी खंगाली गई जिससे उसके ऐसे दोस्त का भी पता चला जो संक्रमित था। यह जानते हुए भी कि कोरोना संक्रमण की श्रृंखला से फैलता है, लाॅकडाउन लागू होने पर भी उन युवकों द्वारा लापरवाही बरती गई और अनेक लोगों के जान से खिलवाड़ की गई। ‘सोशल मीडिया स्कूल’ के छात्र कानून तोड़ना ‘डेयरिंग’ यानी दुस्साहस या रोमांच का काम समझते हैं जबकि हकीकत में यह सिर्फ और सिर्फ अपराध होता है। कोई भी कानून नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाया जाता है और आपदा की स्थिति में यह और अधिक जरूरी हो जाता है कि कानून का गंभीरता से पालन किया जाए। सरकार जानती है कि लाॅकडाउन लागू करने से किस-किस तरह के नुकसान हो सकते हैं। मिल, कारखाने, दूकानें सभी बंद हैं। उत्पादन थम-सा गया है। बिक्री के लिए सामानों की उपलब्धता लड़खडाने लगी है। कुटीर उद्योग और लघु उद्योग पूरी तरह बैठ चुके हैं। आपदा खत्म होने के बाद उन्हें उन्हें एक तगड़े स्टार्टअप की जरूरत पड़ेगी। किसान चिंतित हैं, दूकानदार चिंतित हैं, बेघर-बेरोजगार मजदूर चिंतित हैं और इन सब के लिए चिंतित है सरकार। मगर किसी भी आपदा के लिए कभी कोई पूर्व तैयारी नहीं की जा सकती है। आपदा का मतलब ही है कि अचानक कोई बड़ा संकट आ खड़ा होना। हमारा देश समूचे विश्व की भांति आपदा के दौर से गुज़र रहा है। मगर अन्य देशों की तुलना में हमारे देश में स्थिति कई गुना बेहतर है क्योंकि यहां समय रहते आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू कर दिया गया। देश के प्रधानमंत्री ने स्वयं लगातार देश की आमजनता से संवाद बनाए रखा। इस सकारात्मकता ने ही हौसला दे रखा है कोरोना वारियर्स को। फिर भी जो ढीठ किस्म के लोग इन सब बातों को अनदेखा करते रहते हैं और लाॅकडाउन के नियमों को धता बताने की ताक में रहते हैं उन्हें आपदा प्रबंधन अधिनियम के बारे में जरूर जान लेना चाहिए यानी जो बातों से नहीं मानेंगे उनके ऊपर डंडे चलाने का अधिकार रखता है प्रत्येक स्थानीय प्रशासन। जीवन की सुरक्षा के लिए कानून के डंडे भी जरूरी होते हैं।  
               इस वर्ष मार्च महीने के आरम्भ में भारत सरकार ने 123 साल पुराने ब्रिटिश सरकार में बनाए गए एपिडेमिक डिजिज एक्ट 1897 लागू किया था। इस कानून को अंग्रेजों ने फरवरी 1897 में तब के मुंबई शहर में फैल रहे प्लेग महामारी को कंट्रोल करने के लिए बनाया था। इसमें ब्रिटिश सरकार के पास शक्ति थी कि वो देश में कहीं भी ज्यादा लोगों के जुटने पर रोक लगा सकती थी। चूंकि ये कानून राज्य सरकारों को महामारी की प्रकृति को देखते हुए नए नियम बनाने की सहूलियत देता है ऐसे में ये फैसला राज्य सरकारों को लेना होता है कि वह अपने राज्य में क्या नए नियम-कायदे महामारी के प्रकोप को रोकने के लिए बनाना चाहती है। यहां एक बात स्पष्ट रहनी चाहिए कि यह कानून किसी भी प्रकार के आपदा के लिए है जबकि इसके साथ ही एक और कानून है जो एपिडेमिक डिजिज एक्ट 1897 कहलाता है लेकिन इन दोनों कानूनों में परस्पर थोड़ा अंतर है।
            आपदा प्रबंधन अधिनियम को दिसंबर, 2005 में लागू किया गया था। ये एक राष्ट्रीय कानून है जिसका इस्तेमाल केंद्र सरकार करती है ताकि किसी आपदा से निपटने के लिए एक देशव्यापी योजना बनाई जा सके। इस एक्ट के दूसरे भाग के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के गठन का प्रवधान है. जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। इसके अलावा इसके अधिकतम नौ सदस्य हो सकते हैं जिसका चुनाव प्रधानमंत्री के सुझाव पर होता हैं। इसके तहत केंद्र सरकार के पास अधिकार होता है कि वह दिए गए निर्देशों का पालन ना करने वाले पर कार्रवाई कर सकती है। इस कानून के तहत राज्य सरकारों को केंद्र की बनायी योजना का पालन करना होता है। इस कानून की सबसे विशेष बात यह है कि इसमें राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण आदेशों का पालन नहीं करने पर किसी भी राज्य के अधिकारी के साथ-साथ प्राइवेट कंपनियों के अधिकारी पर भी कार्रवाई कर सकती है। ये कानून किसी प्राकृतिक आपदा और मानव-जनित आपदा की परिस्थिति पैदा होने पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
             लाॅकडाउन के नियमों का पालन करते हुए जिस संकट से बड़ी आसानी से निपटा जा सकता है, उसे नियमों को तोड़ कर बढ़ावा देना स्वयं को हत्यारा बनाने के समान है। धैर्य, सुरक्षा और शांति से ही टल सकता है यह संकट। यह समझना ही होगा कि ढीठ बनना कोई बुद्धिमानी नहीं है।  
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(दैनिक सागर दिनकर में 22.04.2020 को प्रकाशित)
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Wednesday, April 15, 2020

चर्चा प्लस - लाॅकडाउन 2.0 यानी सुरक्षा की सप्तपदी - डाॅ शरद सिंह


Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस


लाॅकडाउन 2.0 यानी सुरक्षा की सप्तपदी
- डाॅ शरद सिंह

लॉकडाउन अब 3 मई तक कर दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि 3 मई तक हम सभी को, हर देशवासी को लॉकडाउन में ही रहना होगा, इस दौरान हमें अनुशासन का उसी तरह पालन करना है, जैसे हम करते आ रहे हैं। हिन्दू धर्म में विवाह के दौरान सात फेरे लिए जाते हैं जिन्हें सप्तपदी कहते हैं। यह सात वचन दाम्पत्य जीवन को खुशहाल और सफल बनाने हेतु होते हैं। अर्थात् आने वाली पीढ़ी के सुखद भविष्य को सुनिश्चित करता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी यह भली-भांति समझते हैं कि जब वर्तमान पीढ़ी सुरक्षित रहेगी तभी भावी पीढ़ी की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी। इसीलिए उन्होंने आमजनता से सप्तपदी के साथ वचनों की भांति कोरोना से रक्षा के लिए सात वचन का पालन करने का आह्वान किया है।
कोरोना वायरस के छाए हुए खतरे को ध्यान में रखते हुए भारत में लॉकडाउन 3 मई 2020 तक बढ़ा दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि 3 मई तक हम सभी को, हर देशवासी को लॉकडाउन में ही रहना होगा। इस दौरान हमें अनुशासन का उसी तरह पालन करना है, जैसे हम करते आ रहे हैं। सभी का यही सुझाव है कि लॉकडाउन को बढ़ाया जाए। कई राज्य तो पहले से ही लॉकडाउन को बढ़ाने का फैसला कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि सारे सुझावों को ध्यान में रखते हुए ये तय किया गया है कि भारत में लॉकडाउन को अब 3 मई तक और बढ़ाना पड़ेगा। अगले एक सप्ताह में कोरोना के खिलाफ लड़ाई में कठोरता और ज्यादा बढ़ाई जाएगी। 20 अप्रैल तक हर कस्बे, हर थाने, हर जिले, हर राज्य को परखा जाएगा, वहां लॉकडाउन का कितना पालन हो रहा है, उस क्षेत्र ने कोरोना से खुद को कितना बचाया है, ये देखा जाएगा। लॉकडाउन से सभी को असुविधा हुई है और अब आगे भी होगी लेकिन यह असुविधा जीवन रक्षा से बढ़ कर नहीं है, यह कहा प्रधानमंत्री मोदी ने।
सबके मन में सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर लॉकडाउन को 3 मई तक क्यों बढ़ाया गया है? वस्तुतः एक मई को सार्वजनिक अवकाश है, दो मई को शनिवार और तीन मई को रविवार। यही कारण है कि केंद्र सरकार ने लॉकडाउन को तीन मई तक बढ़ाने का फैसला किया है। राज्य सरकारों ने केंद्र सरकार से लॉकडाउन को 30 अप्रैल तक बढ़ाने की अपील की थी, लेकिन केंद्र सरकार ने छुट्टियों को देखते हुए इसे 3 मई तक बढ़ा दिया है। सरकारी सूत्रों के अनुसार तीन दिन की छुट्टियों के कारण लोग अधिक संख्या में घर से बाहर निकलेंगे और सोशल डिस्टेनसिंग को लेकर दिक्कत आएगी। इसीलिए लॉकडाउन को 3 मई तक बढ़ाया गया है।
प्रधानीमंत्री मोदी ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान जो क्षेत्र इस अग्निपरीक्षा में सफल होंगे, जो हॉटस्पॉट (संवेदनशील स्थानों) में नहीं होंगे, और जिनके हॉटस्पॉट में बदलने की आशंका भी कम होगी, वहां पर 20 अप्रैल से कुछ जरूरी गतिविधियों की अनुमति दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि मेरी सभी देशवासियों से ये प्रार्थना है कि अब कोरोना को हमें किसी भी कीमत पर नए क्षेत्रों में फैलने नहीं देना है। स्थानीय स्तर पर अब एक भी मरीज बढ़ता है तो ये हमारे लिए चिंता का विषय होना चाहिए। इस दौरान हमें अनुशासन का उसी तरह पालन करना है, जैसे हम करते आ रहे हैं। नए हॉटस्पॉट का बनना, हमारे लिए और चुनौती खड़ी करेगा। हम धैर्य बनाकर रखेंगे, नियमों का पालन करेंगे तो कोरोना जैसी महामारी को भी परास्त कर पाएंगे। प्रधानमंत्री ने कहा कि जो लोग रोज कमाते हैं, रोज की कमाई से अपनी जरूरतें पूरी करते हैं, इनके जीवन में आई मुश्किल को कम करना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में एक है। उन्होंने कहा कि देश में दवाओं और राशन का पर्याप्त भंडार है।

पीएम मोदी ने कहा, अगले एक सप्ताह में कोरोना के खिलाफ लड़ाई में कठोरता और ज्यादा बढ़ाई जाएगी. 20 अप्रैल तक हर कस्बे, हर थाने, हर जिले, हर राज्य को परखा जाएगा, वहां लॉकडाउन का कितना पालन हो रहा है, उस क्षेत्र ने कोरोना से खुद को कितना बचाया है, ये देखा जाएगा। जो क्षेत्र इस अग्निपरीक्षा में सफल होंगे, वहां पर 20 अप्रैल से कुछ जरूरी गतिविधियों की अनुमति दी जा सकती है। इसलिए, न खुद कोई लापरवाही करनी है और न ही किसी और को लापरवाही करने देना है।
मांगे सात वचन...जहां रहें, वहीं रहें, सुखी रहें। हिन्दू धर्म में विवाह के दौरान सात फेरे लिए जाते हैं जिन्हें सप्तपदी कहते हैं। सप्तपदी के सात वचन होते हैं जिन्हें वर और वधु को निभाना होता है। कन्या यह वचन अपने होने वाले पति से मांगती है। यह सात वचन दाम्पत्य जीवन को खुशहाल और सफल बनाने हेतु होते हैं। अर्थात् आने वाली पीढ़ी के सुखद भविष्य को सुनिश्चित करता है। सप्तपदी में पहला पग भोजन व्यवस्था के लिए, दूसरा शक्ति संचय, आहार तथा संयम के लिए, तीसरा धन की प्रबंध व्यवस्था हेतु, चैथा आत्मिक सुख के लिए, पांचवां पशुधन संपदा हेतु, छठा सभी ऋतुओं में उचित रहन-सहन के लिए, अंतिम सातवें पग में कन्या अपने पति का अनुगमन करते हुए सदैव साथ चलने का वचन लेती है तथा प्रत्येक कार्य में सहयोग देने की प्रतिज्ञा करती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी यह भली-भांति समझते हैं कि जब वर्तमान पीढ़ी सुरक्षित रहेगी तभी भावी पीढ़ी की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी। इसीलिए उन्होंने आमजनता से सप्तपदी के साथ वचनों की भांति कोरोना से रक्षा के लिए सात वचन का पालन करने का आह्वान किया है। ये सुरक्षा की सप्तपदी के सात वचन हैं-

पहला- बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखें। जिससे वे कोरोना वायरस के चपेट में ना आएं।
दूसरा- लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। घर में बने फेस कवर और मास्क का अनिवार्य रूप से उपयोग करें।
तीसरा- इम्युनिटी बढ़ाने के लिए आयुष मंत्रालय की गाइडलाइन का पालन करें।
चौथा- आरोग्य सेतु ऐप जरूर डाउनलोड करें, दूसरों की भी डाउनलोड कराएं।
पांचवां- गरीब परिवारों की मदद करें।
छठवां- उद्योगों में अपने साथ काम करने वाले लोगों को नौकरी से ना निकालें। उनके प्रति संवेदनाएं रखें।
सातवां- डॉक्टर, नर्स, मेडिकल कर्मी, पुलिस, सफाई कर्मी का सम्मान करें।


लाॅकडाउन 2.0 का समर्थन करते हुए रेलवे ने स्पष्ट किया है कि 3 मई की मध्य रात्रि यानी रात 12 बजे तक सभी यात्री सेवाएं बंद रहेंगी। नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने भी सभी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को निलंबित करने का ऐलान कर दिया है कि अगले 3 मई रात 12 बजे तक सभी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ाने निलंबित रहेंगी। प्रधानमंत्री ने सरकार की ओर से सुरक्षा की पहल कर दी है अब नागरिकों का दायित्व हैकि लॉकडाउन 2.0 को सफल बनाएं और प्रधानमंत्री द्वारा मांगे गए सप्तपदी वचनों का पालन करते हुए कोरोना की इस वैश्विक आपदा से स्वयं को और अपने देश को बचाएं।
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(दैनिक सागर दिनकर, 15.04.2020)

Wednesday, April 1, 2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता

सोमवार 10 फरवरी को मुझे यानी आपकी इस मित्र डॉ. (सुश्री) शरद सिंह को अवसर मिला संस्कृति विभाग मध्यप्रदेश शासन की साहित्य अकादमी द्वारा नवगठित पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी में अध्यक्षता करने का। स्थान था शासकीय उत्कृष्टता विद्यालय का पुस्तकालय और पुस्तक थी कवि विष्णु खरे की कविताओं का संकलन - "सेतु समग्र" जिसकी भूमिका मंगलेश डबराल द्वारा लिखी गई है।
डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पाठक मंच सागर की प्रथम गोष्ठी की अध्यक्षता, 10.02.2020