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My Editorials - Dr Sharad Singh

Friday, July 31, 2020

प्रेमचंद की कहानियों में मौजूद है बुंदेलखंड - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह, प्रेमचंद जयंती (31 जुलाई) पर विशेष

Dr (Miss) Sharad Singh

प्रेमचंद जयंती (31 जुलाई) पर विशेष :              




 प्रेमचंद की कहानियों में मौजूद है बुंदेलखंड


         - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह



     31 जुलाई 1880 को जन्मे प्रेमचंद को हिन्दी साहित्य का ‘कथा सम्राट’ कहा जाता है। प्रेमचंद ने ‘‘नवाबराय’’ के नाम से उर्दू में साहित्य सृजन किया। यह नवाबराय नाम उन्हें अपने चाचा से मिला था जो उनके बचपन में उन्हें लाड़-प्यार में ‘‘नवाबराय’’ कह कर पुकारा करते थे। किन्तु अंग्रेज सरकार के कारण उन्हें अपना लेखकीय नाम ‘‘नवाबराय’’ से बदलकर ‘‘प्रेमचंद’’ करना पड़ा। हुआ यह कि उनकी ’सोज़े वतन’ (1909, ज़माना प्रेस, कानपुर) कहानी-संग्रह की सभी प्रतियां तत्कालीन अंग्रेजी सरकार ने ज़ब्त कर लीं। उर्दू अखबार “ज़माना“ के संपादक मुंशी दयानरायण निगम ने उन्हें सलाह दी कि वे सरकार के कोपभाजन बनने से बचाने के लिए ‘‘नबावराय’’ के स्थान पर ’प्रेमचंद’ लिखने लगें। इसके बाद वे ‘‘प्रेमचंद’’ के नाम से लेखनकार्य करने लगे।
Article of Dr (Miss) Sharad Singh on Premchand Jayanti in Sagar Dinkar

प्रेमचंद ने भारतीय समाज की विशेषताओं और अन्तर्विरोधों को एक कुशल समाजशास्त्री की भांति गहराई से समझा। इसलिए उनके साहित्य में भारतीय समाज की वास्तविकता स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। स्त्रियों, दलितों सहित सभी शोषितों के प्रति प्रेमचंद ने अपनी लेखनी चलाई। प्रेमचंद मात्र एक कथाकार नहीं वरन् एक समाजशास्त्री भी थे। उनकी समाजशास्त्री दृष्टि सैद्धांतिक नहीं बल्कि व्यवहारिक थी। इसीलिए वे उस सच्चाई को भी देख लेते थे जो अकादमिक समाजशास्त्री देख नहीं पाते हैं। उन्होंने जहां एक ओर कर्ज में डूबे किसान की मनोदशा को परखा वहीं समाज के दोहरेपन की शिकार स्त्रियों की दशा का विश्लेषण किया। उन्होंने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य की कहानियां भी लिखीं और उनके लिए प्रेमचंद ने बुंदेलखंड के कथानकों को चुना। बुंदेलखंड पर आधारित उनकी दो कहानियां हैं- -‘राजा हरदौल’ और ‘रानी सारंधा’।
Raja Hardaul - Premchand
‘राजा हरदौल’ बुंदेलखंड की लोकप्रिय कथा है। इस बहुचर्चित कथा का बुंदेलखड के सामाजिक जीवन में भी बहुत महत्व है। यह कथा ओरछा के राजा जुझार सिंह की अपने छोटे भाई हरदौल सिंह के प्रति प्रेम और संदेह की कथा है जिसने ओरछा के इतिहास को प्रभावित किया। जुझार सिंह मुगल शासक शाहजहां के समकालीन थे। वे साहसी थे, वीर थे किन्तु उनकी संदेही प्रवृत्ति उनके इन गुणों को लांछित कर गई। इस वास्तविक घटना का सारांश यह है कि जब जुझार सिंह अपने दक्षिण भारत के अभियान पर गए तब उनका छोटा भाई हरदौल अपनी भाभी रानी कुलीना के साथ राज्य सम्हाल रहा था। दोनों का रिश्ता माता-पुत्र जैसा था। किन्तु कुछ ईष्र्यालुओं ने जुझार सिंह के वापस आते ही रानी और हरदौल के मध्य अनैतिक संबंधों की चर्चा कर के जुझाार सिंह को भ्रमित कर दिया। संदेही जुझार सिंह अपने भाई और अपनी पत्नी की पवित्रता को नहीं देख सका और उसने अपनी पत्नी रानी कुलीना को आदेश दिया कि वह अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए हरदौर को विष खिला दे। रानी स्तब्ध रह गई। अपने पुत्र समान देवर को जहर देना उसके लिए कठिन था। तब हरदौल ने अपनी भाभी को समझाया की सम्मान से बड़ा जीवन नहीं होता है, वे विष मिला भोजन परोस दें। अंततः रानी के द्वारा विष मिले भोजन को खा कर हरदौल ने अपना बलिदान दे दिया। यह भी कथा है कि जुझार सिंह ने रानी द्वारा भोजन में विष न दे पाने के कारण रानी से ही विष मिला पान का बीड़ा बनवा कर हरदौल को खिला दिया था जिससे हरदौल की मृत्यु हो गई थी। ओरछा में लाला हरदौल की समाधि आज भी मौजूद है और यह परम्परा है कि बुंदेलखंड में विवाह का पहला कार्ड लाला हरदौल का नाम लिख कर उनकी समाधि पर पहुंचाया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से लाला हरदौल वधूपक्ष के घर वधू के मामा के रूप में आते हैं और विवाह निर्विघ्न सम्पन्न होता है।
प्रेमचंद ने पान में विष मिला कर देने की कथा को अपनी कहानी में पिरोया है। उन्होंने ‘राजा हरदौल’ कहानी इन पंक्तियों से आरम्भ की है, ‘‘बुंदेलखंड में ओरछा पुराना राज्य है। इसके राजा बुंदेले हैं। इन बुंदेलों ने पहाड़ों की घाटियों में अपना जीवन बिताया है।’’
वे बुंदेलों के चरित्र की विशेषताओं को सामने रखते हुए हरदौल की ओर से यह संवाद लिखते हैं कि ‘खबरदार, बुंदेलों की लाज रहे या न रहे; पर उनकी प्रतिष्ठा में बल न पड़ने पाए- यदि किसी ने औरों को यह कहने का अवसर दिया कि ओरछे वाले तलवार से न जीत सके तो धांधली कर बैठे, वह अपने को जाति का शत्रु समझे।’ वहीं जुझार सिंह युद्ध के लिए विदा लेते समय अपनी रानी से कहता है, ‘प्यारी, यह रोने का समय नहीं है। बुंदेलों की स्त्रियां ऐसे अवसर पर रोया नहीं करतीं।’ इसी कहानी में पे्रमचंद ने एक ऐसी स्त्री के मनोभावों को बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है जो अपने पुत्र, अपने भाई सरीखे देवर को विष देने के लिए विवश की जा रही है- ‘‘ रानी सोचने लगी, क्या हरदौल के प्राण लूं? निर्दोष, सच्चरित्र वीर हरदौल की जान से अपने सतीत्व की परीक्षा दूं? उस हरदौल के खून से अपना हाथ काला करूं जो मुझे बहन समझता है? यह पाप किसके सिर पड़ेगा? क्या एक निर्दोष का खून रंग न लाएगा? आह! अभागी कुलीना! तुझे आज अपने सतीत्व की परीक्षा देने की आवश्यकता पड़ी है और वह ऐसी कठिन? नहीं यह पाप मुझसे नहीं होगा। यदि राजा मुझे कुलटा समझते हैं, तो समझें, उन्हें मुझ पर संदेह है, तो हो। मुझसे यह पाप न होगा। राजा को ऐसा संदेह क्यों हुआ? क्या केवल थालों के बदल जाने से? नहीं, अवश्य कोई और बात है। आज हरदौल उन्हें जंगल में मिल गया। राजा ने उसकी कमर में तलवार देखी होगी। क्या आश्चर्य है, हरदौल से कोई अपमान भी हो गया हो। मेरा अपराध क्या है? मुझ पर इतना बड़ा दोष क्यों लगाया जाता है? केवल थालों के बदल जाने से? हे ईश्वर! मैं किससे अपना दुख कहूं? तू ही मेरा साक्षी है। जो चाहे सो हो, पर मुझसे यह पाप न होगा।’’

Rani Sarandha - Premchand
बुंदेलखंड पर आधारित दूसरी कहानी ‘रानी सारंधा’ बुंदेलखंड गौरव कहे जाने वाले महाराज छत्रसाल की मां रानी सारंधा की कथा है। रानी सारंधा ओरछा के राजा चम्पतराय की पत्नी थीं। चम्पतराय के संबंध में प्रेमचंद ने अपनी कहानी में लिखा है कि ‘राजा चम्पतराय बड़े प्रतिभाशाली पुरुष थे। सारी बुन्देला जाति उनके नाम पर जान देती थी और उनके प्रभुत्व को मानती थी। गद्दी पर बैठते ही उन्होंने मुगल बादशाहों को कर देना बन्द कर दिया और वे अपने बाहुबल से राज्य-विस्तार करने लगे। मुसलमानों की सेनाएं बार-बार उन पर हमले करती थीं पर हार कर लौट जाती थीं।’

‘रानी सारंधा कहानी के आरम्भ में वे बुंदेलखंड उस रियासत का वर्णन करते हैं जहां रानी सारंधा का जन्म हुआ था। वे लिखते हैं-‘शताब्दियां व्यतीत हो गयीं बुंदेलखंड में कितने ही राज्यों का उदय और अस्त हुआ मुसलमान आए और बुंदेला राजा उठे और गिरे-कोई गांव कोई इलाका ऐसा न था जो इन दुरवस्थाओं से पीड़ित न हो मगर इस दुर्ग पर किसी शत्रु की विजय-पताका न लहरायी और इस गांव में किसी विद्रोह का भी पदार्पण न हुआ। यह उसका सौभाग्य था।’ यह कथा रानी सारंधा के जीवन के साथ ही बंुदेलखंड के परिवेश से परिचित कराती है। कहानी के आरंभ में ही वे लिखते हैं-‘‘ अंधेरी रात के सन्नाटे में धसान नदी चट्टानों से टकराती हुई ऐसी सुहावनी मालूम होती थी जैसे घुमुर-घुमुर करती हुई चक्कियां। नदी के दाहिने तट पर एक टीला है। उस पर एक पुराना दुर्ग बना हुआ है जिसको जंगली वृक्षों ने घेर रखा है। टीले के पूर्व की ओर छोटा-सा गांव है। यह गढ़ी और गाँव दोनों एक बुंदेला सरकार के कीर्ति-चिह्न हैं। शताब्दियां व्यतीत हो गयीं बुंदेलखंड में कितने ही राज्यों का उदय और अस्त हुआ मुसलमान आये और बुंदेला राजा उठे और गिरे-कोई गांव कोई इलाका ऐसा न था जो इन दुरवस्थाओं से पीड़ित न हो मगर इस दुर्ग पर किसी शत्रु की विजय-पताका न लहरायी और इस गाँव में किसी विद्रोह का भी पदार्पण न हुआ। यह उसका सौभाग्य था।’’ प्रेमचंद ने बुंदेलखंड की स्त्री के आत्मसम्मान को बखूबी परखा और फिर उसे इन शब्दों में व्यक्त किया-‘‘ वायुमण्डल में मेघराज की सेनाएँ उमड़ रही थीं। ओरछे के किले से बुन्देलों की एक काली घटा उठी और वेग के साथ चम्बल की तरफ चली। प्रत्येक सिपाही वीर-रस से झूम रहा था। सारंधा ने दोनों राजकुमारों को गले से लगा लिया और राजा को पान का बीड़ा दे कर कहा-बुन्देलों की लाज अब तुम्हारे हाथ है।’’
प्रेमचंद ने रानी सारंधा की श्रेष्ठता को स्थापित करते हुए इस तथ्य को अपनी कहानी में सुंदर ढंग से पिरोया है कि रानी सारंधा ने राजा चम्पतराय के मन में स्वाभिमान को पुनःजाग्रत किया। उन्होंने लिखा है-‘‘ सारंधा-ओरछे में मैं एक राजा की रानी थी। यहां मैं एक जागीरदार की चेरी हूं। ओरछे में वह थी जो अवध में कौशल्या थीं यहां मैं बादशाह के एक सेवक की स्त्री हूँ। जिस बादशाह के सामने आज आप आदर से सिर झुकाते हैं वह कल आपके नाम से कांपता था। रानी से चेरी हो कर भी प्रसन्नचित्त होना मेरे वश में नहीं है। आपने यह पद और ये विलास की सामग्रियां बड़े महंगे दामों मोल ली हैं।’’ चम्पतराय के नेत्रों पर से एक पर्दा-सा हट गया। वे अब तक सारंधा की आत्मिक उच्चता को न जानते थे। जैसे बे-मां-बाप का बालक मां की चर्चा सुन कर रोने लगता है उसी तरह ओरछे की याद से चम्पतराय की आंखें सजल हो गयीं। उन्होंने आदरयुक्त अनुराग के साथ सारंधा को हृदय से लगा लिया।’’
Premchand
प्रेमचंद ने जहां अपनी कहानियों में दुखी, दलित, शोषित और दुर्बल चरित्रों को महत्व दिया, वहीं बुंदेलखंड के इतिहास के तथ्यों और चरित्रों को भी अपनी कहानियों में स्थान दिया। कथा सम्राट प्रेमचंद के कथा साहित्य में बुंदेलखंड के कथानकों का पाया जाना इस बात का द्योतक है कि वे बुंदेली संस्कृति, परम्पराओं एवं इसके गौरवशाली इतिहास से प्रभावित थे।  
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 (दैनिक सागर दिनकर में 31.07.2020 को प्रकाशित)
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Thursday, July 30, 2020

कथासम्राट प्रेमचंद और उनके सृजन पर पत्रकार एवं साहित्यकार अरुण सिंह द्वारा लिया गया मेरा साक्षात्कार --- Dr Miss Sharad Singh's Interview on Premchand Literature





Dr (Miss) Sharad Singh
कथासम्राट प्रेमचंद और उनके सृजन पर पत्रकार एवं साहित्यकार अरुण सिंह द्वारा लिया गया मेरा साक्षात्कार Radio Spice Box Chicago से प्रसारित हुआ था लीजिए आप भी सुनिए...

विशेष लेख : लापरवाहियां भारी पड़ सकती हैं अनलाॅक-3 में - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह, दैनिक जागरण में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh





"लापरवाहियां भारी पड़ सकती हैं अनलाॅक-3 में " ... आज 30.07.20 #दैनिक_जागरण में प्रकाशित मेरा यह लेख ...


हार्दिक आभार "दैनिक #जागरण"🙏

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विशेष लेख :

लापरवाहियां भारी पड़ सकती हैं अनलाॅक-3 में

- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

       अनलॉक-2 की अवधि 31 जुलाई को पूरी होने वाली है और उसके बाद अनलॉक-3 लागू किया जाएगा। अनलाॅक-3 के सामने एक और बड़ी चुनौती है आगामी त्यौहारों की। बकरीद और रक्षाबंधन जैसे त्योहार 31 जुलाई के बाद आने वाले हैं। ऐसे में त्योहार को लेकर बाजार में भीड़-भाड़ बढ़ने की पूरी संभावना है। अगर लरपरवाहियां नहीं छोड़ी गईं तो संक्रमण और ज्यादा तेजी से फैल सकता है। अभी की ताज़ा स्थिति पर गौर करें तो बाज़ारों में सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियों उड़ती दिखाई देती हैं। राजनीतिक सभाओं एवं संपर्कों के दौरान कोरोना गाईडलाईन अनके स्तरों पर तोड़ी गईं। बड़े रसूखदार व्यक्ति भी जिनसे समझदारी की उम्मींद की जाती है, वे भी मास्क लगाने में लापरवाही बरतते हैं। या तो मास्क लगाते ही नहीं हैं और यदि लगा लिया तो उसे ठोढ़ी या गले में फंसाए रखते हैं। मानो कोरोना वायरस का संक्रमण नाक से नहीं गले या ठोढ़ी से प्रवेश करेगा। ऐसी ही चूक का परिणाम है कि आज प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। जाहिर है कि इस महामारी का संबंध किसी विशेष जाति, धर्म, संप्रदाय राजनीतिक दल या व्यक्ति से नहीं है। इसके लिए हर इंसान टारगेट है। एक कुली भी इसका शिकार बन सकता है और मुंबई के सबसे पाॅश इलाके में रहने वाले अमिताभ बच्चन भी इसकी ग़िरफ़्त में आ सकते हैं। अब जबकि अनलाॅेक-3 के बारे में कयास लगाया जा रहा है कि इसमें और अधिक छूटे मिलेंगी तो और अधिक सतर्कता जरूरी हो जाती है।
Dr (Miss) Sharad Singh article in Dainik Jagaran

        पिछले दिनों भावी उपचुनावों को लेकर हुई सभाओं में कोरोना गाईड लाईन को ताक में रख दिया गया था। बाज़ारों में फिजिकल डिस्टेंसिंग को तो लगभग भुला ही दिया गया। माॅर्निंगवाॅक और ईवनिंगवाॅक के दौरान बिना मास्क के घूमने वालों की कोई कमी नहीं है। ऐसे लोगों को भी डिस्टेंसिंग का ध्यान नहीं रहता है। बहरहाल, समाचारपत्रों एवं अन्य मीडिया द्वारा सभाओं में बरती गई लापरवाहियों पर कोई कड़ी कार्यवाही नहीं किए जाने का परिणाम यह हुआ है कि शैक्षणिक संस्थाओं में फिजिकल डिस्टेंसिंग को भुला कर कथित वेबिनार किए जा रहे हैं। जबकि वेबिनार का कंसेप्ट ही है कि वेब अथवा इंटरनेट द्वारा परस्पर चर्चा एवं संवाद। कुर्सी से कुर्सी जोड़ कर यदि पांच व्यक्ति बैठे हैं तो यह वेबिनार नहीं बल्कि संक्रमण को दावत देना ही कहलाएगा। अधिक उत्साह में आ कर व्याख्यान और सम्मान कार्यक्रम किया जाना भी ख़तरे को दावत देने के समान है। क्योंकि ऐसे आयोजन में शामिल होने वालों की कार्यक्रम-पूर्व कोरोना जांच की कोई चाक-चैबंद व्यवस्था तो होगी नहीं, लिहाज़ा इस बात की गारंटी नहीं ली जा सकती है कि आयोजन में उपस्थित सभी व्यक्ति ‘‘कोरोना मुक्त’’ हैं। सागर जिला प्रशासन एक बार ऐसी चूक कर चुका है जब प्रशासन ने एक मुनिश्री को अन्यत्र जाने की अनुमति दी और साथ ही भीड़ जुड़ने का अनुमान नहीं लगा सका। उस चूक से सीख लिया जाना चाहिए था। अनलाॅक-1 और अनलाॅक-2 में मिली छूटों में आमजन भी लापरवाही बरतने में पीछे नहीं रहे हैं, नतीज़ा यह कि हर शहर में कोरोना के नए संक्रमितों की संख्या आए दिन पंद्रह से बीस के बीच बरामद होती है। यदि आंकड़ों पर ध्यान दें तो केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 24 घंटे में 47,704 नए मामले सामने आए हैं और 654 लोगों की मौत हुई है। इसके बाद देशभर में कोरोना पॉजिटिव मामलों की कुल संख्या 14,83,157 हो गई है। जिनमें से 4,96,988 सक्रिय मामले हैं, 9,52,744 लोग ठीक हो चुके हैं या उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है और अब तक 33,425 लोगों की मौत हो चुकी है। दुनिया भर में कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों की सूची में भारत तीसरे स्थान पर आ गया है।
अनलॉक-3 के साथ जहां लोगों के लिए सुविधाओं में बढ़ोतरी होगी वहीं कोरोना के प्रसार को लेकर डर भी बना हुआ है। अनलॉक-3 के लिए जनता में भी उत्सुकता है। लोग यह जानने को उत्सुक हैं कि सरकार किन-किन चीजों में ढील देने वाली है।  25 से 50 फीसदी दर्शकों के साथ खुल सकते हैं मल्टीप्लेक् अनलॉक-3 में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ सिनेमा हॉल को खोलने पर विचार किया जा रहा है। सिनेमा हॉल खोलने के लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय की ओर से गृह मंत्रालय को एक प्रस्ताव भेजा जा चुका है। सिनेमाघर मालिकों और सूचना प्रसारण मंत्रालय की बैठक में मंत्रालय ने सिनेमाघरों के मालिकों के सामने प्रस्ताव रखा है कि वह 25 से 50 फीसदी दर्शकों के साथ मल्टीप्लेक्स, सिंगल विंडो सिनेमाघर खोल सकते हैं। इस पर सवाल उठता है कि क्या सिनेमाघर संचालक इतने कम दर्शकों यानी इतने बड़े घाटे के साथ अपना सिनेमाघर चला सकेंगे? यदि किसी तरह चला भी लें तो क्या वे कोरोना गाईडलाईन के नियमों का पालन करा सकेंगे? एक ही हाॅल में बैठे दर्शकों की सांसों से फैल सकने वाले संक्रमण को वे कैसे नियंत्रित रख सकेंगे? क्या नियमों के पालन में वे निरंतर सख़्ती और सजगता बनाए रख सकेंगे? क्या यह वहीं सिगरेट या शराब वाला उदाहरण होगा कि ‘‘स्वास्थ्य के लिए हानिकारक’’ की सूचना छाप पर उपभोक्ताओं के विवेक पर छोड़ दिया जाएगा कि उन्हें मनोरंजन प्यारा है अथवा अपना जीवन? शराब की दूकाने खोलने की अनुमति के बाद उन दूकानों पर नियमों की धज्जियां उड़ाती भीड़ की अनके तस्वीरें आंखों के सामने से गुज़री हैं। ऐसे में बड़ी चुनौती होगी सिनेमाघरों को खोलना। हमारे देश में नियम और सूचनाओं का क्या हश्र होता है वह तो अनलाॅक-2 के दौरान खुले बाज़ारों और चुनावी सभाओं में देखा ही है। बस, ट्रेन, हवाई जहाज को सर्शत छूट दिए जाने पर भी स्कूलों को बंद रखा गया है जो कि एक उचित निर्णय है। अनलाॅक-3 में भी स्कूल्स बंद रखे जाने की संभावना है।
अनलॉक-2 के बाद मध्य प्रदेश में कोरोना बेकाबू हो गया। जो स्थिति लाॅकडाउन के समय थी, उसके विपरीत अनलाॅक में स्थिति बिगडती ही गई है। आगामी त्योहारों के सीज़न को ध्यान में रख कर यह गाईडलाईन दोहराई गई है कि धार्मिक स्थलों, उपासना स्थलों पर एक बार में 5 से अधिक व्यक्ति इकट्ठे नहीं होंगे। घर पर ही आगामी त्यौहार मनाना होगा। देव प्रतिमा घर पर ही स्थापित कर पूजा-अर्चना करना होगा। सार्वजनिक स्थलों पर प्रतिमा स्थापित करने, त्योहार मनाने की अनुमति नहीं होग। जुर्माने के प्रावधान के साथ इन नियमों का पालन कराया जाएगा। अनलाॅक-3 में छूटे बढ़ाई जानी सामान्य जीवन को व्यवस्थित करने के लिए महत्वपूर्ण होंगी लेकिन उतनी भी ख़तरनाक भी। इसलिए एक अगस्त से संभावित अनलाॅक-3 में लापरवाहियां छोड़ कर सतर्कता को अपनाना होगा वरना संक्रमण के बढ़ते आंकड़ों को देखते हुए भारी पड़ेंगी लापरवाहियां।       
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(दैनिक जागरण में 30.07.2020 को प्रकाशित)

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Wednesday, July 29, 2020

चर्चा प्लस - 31 जुलाई के बाद अनलाॅक-3 और उसकी चुनौतियां - डाॅ शरद सिंह


Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस

31 जुलाई के बाद अनलाॅक-3 और उसकी चुनौतियां 

 - डाॅ शरद सिंह

     कोरोना महामारी के भारत में प्रवेश के बाद लाॅकडाउन, अनलाॅक-1 फिर अनलाॅक-2 से आमजन को गुज़रना पड़ा है। अब 31 जुलाई के बाद अनलाॅक-3 का चरण शुरू होगा। कैसा होगा यह चरण? और अधिक छूटों का या और अधिक बंदिशों का? जो भी हो मगर यह चरण बेहद जोखिम भरा होगा क्योंकि लापरवाहियों के अनेक उदाहरण हर दिन सामने आ रहे हैं और आगे है त्यौहारों का समय। अर्थात् चुनौतियां विकट हैं। 
         देश में कोरोना वायरस का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है. रोजाना हजारों की संख्या में कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं। वहीं अनलॉक-2 की अवधि 31 जुलाई को पूरी होने वाली है और अनलॉक-3 लागू किया जाएगा। देश में कोरोना वायरस का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है. रोजाना हजारों की संख्या में कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं। अनलॉक-3 के साथ जहां लोगों के लिए सुविधाओं में बढ़ोतरी होगी वहीं कोरोना के प्रसार को लेकर डर भी बना हुआ है।
             अनलॉक-3 के लिए जनता में भी उत्सुकता है। लोग यह जानने को उत्सुक हैं कि सरकार किन-किन चीजों में ढील देने वाली है।  25 से 50 फीसदी दर्शकों के साथ खुल सकते हैं मल्टीप्लेक् अनलॉक-3 में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ सिनेमा हॉल को खोलने पर विचार किया जा रहा है। सिनेमा हॉल खोलने के लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय की ओर से गृह मंत्रालय को एक प्रस्ताव भेजा जा चुका है। सिनेमाघर मालिकों और सूचना प्रसारण मंत्रालय की बैठक में मंत्रालय ने सिनेमाघरों के मालिकों के सामने प्रस्ताव रखा है कि वह 25 से 50 फीसदी दर्शकों के साथ मल्टीप्लेक्स, सिंगल विंडो सिनेमाघर खोल सकते हैं। इस पर सवाल उठता है कि क्या सिनेमाघर संचालक इतने कम दर्शकों यानी इतने बड़े घाटे के साथ अपना सिनेमाघर चला सकेंगे? यदि किसी तरह चला भी लें तो क्या वे कोरोना गाईडलाईन के नियमों का पालन करा सकेंगे? एक ही हाॅल में बैठे दर्शकों की सांसों से फैल सकने वाले संक्रमण को वे कैसे नियंत्रित रख सकेंगे? क्या नियमों के पालन में वे निरंतर सख़्ती और सजगता बनाए रख सकेंगे? क्या यह वहीं सिगरेट या शराब वाला उदाहरण होगा कि ‘‘स्वास्थ्य के लिए हानिकारक’’ की सूचना छाप पर उपभोक्ताओं के विवेक पर छोड़ दिया जाएगा कि उन्हें मनोरंजन प्यारा है अथवा अपना जीवन? हमारे देश में नियम और सूचनाओं का क्या हश्र होता है वह तो अनलाॅक-2 के दौरान खुले बाज़ारों और चुनावी सभाओं में देखा ही है। बस, ट्रेन, हवाई जहाज को सर्शत छूट दिए जाने पर भी स्कूलों को बंद रखा गया है जो कि एक उचित निर्णय है। अनलाॅक-3 में भी स्कूल्स बंद रखे जाने की संभावना है। 
         सरकारी आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश में अब तक 28,589 से अधिक संक्रमित मिल चुके हैं। अनलॉक 2 के बाद मध्य प्रदेश में कोरोना बेकाबू हो गया। जो स्थिति लाॅकडाउन के समय थी, उसके विपरीत अनलाॅक में स्थिति बिगडती ही गई है। इसका संक्रमण लगातार बढ़ गया। प्रदेश स्तर पर 31 जुलाई तक हर शनीवार और रविवार लॉकडाउन करने के निर्णय के बाद भी स्थानीय प्रशासन को कोरोना संक्रमण बढ़ने की चुनौती मिलती जा रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं कोरोना के चपेट में आ गए। यद्यपि उन्होंने कहा है कि प्रदेश में कोरोना संक्रमण रोकने के लिए उत्सवों पर सार्वजनिक झाकियां नहीं लगाई जाएंगी। धार्मिक स्थलों, उपासना स्थलों पर एक बार में 5 से अधिक व्यक्ति इकट्ठे नहीं होंगे। कोरोना संक्रमण रोकने के लिए घर पर ही आगामी त्यौहार मनाएं। देव प्रतिमा घर पर ही स्थापित कर पूजा-अर्चना करें। सार्वजनिक स्थलों पर प्रतिमा स्थापित करने, त्योहार मनाने की अनुमति नहीं होगी। जुर्माने के प्रावधान के साथ इन नियमों का पालन कराया जाएगा। लेकिन वहीं दूसरी ओर चुनावी सभाओं और जनसंपर्क के लिए कोई स्पष्ट निर्देश नहीं हैं। 
      अनलाॅक-3 के सामने एक और बड़ी चुनौती है आगामी त्यौहारों की। बकरीद और रक्षाबंधन जैसे त्योहार 31 जुलाई के बाद आने वाले हैं। ऐसे में त्योहार को लेकर बाजार में भीड़ भाड़ बढ़ने की पूरी संभावना है। अगर लॉकडाउन खत्म किया गया तो संक्रमण और ज्यादा तेजी से फैल सकता है। अभी की ताज़ा स्थिति पर गौर करें तो बाज़ारों में सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियों उड़ती दिखाई देती हैं। नतीज़ा यह कि हर शहर में कोरोना के नए संक्रमितों की संख्या आए दिन पंद्रह से बीस के बीच बरामद होती है। यदि आंकड़ों पर ध्यान दें तो केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 24 घंटे में 47,704 नए मामले सामने आए हैं और 654 लोगों की मौत हुई है। इसके बाद देशभर में कोरोना पॉजिटिव मामलों की कुल संख्या 14,83,157 हो गई है। जिनमें से 4,96,988 सक्रिय मामले हैं, 9,52,744 लोग ठीक हो चुके हैं या उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है और अब तक 33,425 लोगों की मौत हो चुकी है। दुनिया भर में कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों की सूची में भारत तीसरे स्थान पर आ गया है। इस सूची में 44 लाख से ज्यादा संक्रमितों के साथ अमेरिका पहले, ब्राजील (24 लाख 43 हजार से ज्यादा) दूसरे और भारत (14 लाख 82 हजार) तीसरे स्थान पर है। देश में वर्तमान में कोरोना वायरस कोविड-19 के संक्रमण के पॉजिटिव मामले आने की दर (पाॅजिटिविटी दर) 8.07 प्रतिशत है और केंद्र सरकार राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेश के साथ मिलकर इसे पांच प्रतिशत से कम करने के लिये प्रयासरत है। 

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक उद्घाटन कार्याक्रम के दौरान अपने एक संबोधन में कहा था कि आने वाले समय में कई सारे त्योहार आने वाले हैं। इस दौरान हमें काफी सावधान रहने की जरूरत है। जब तक कोरोना का इलाज नहीं मिल जाता तब तक हमें सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क का प्रयोग आदि के द्वारा ही कोरोना से बचना होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा पूरे देश में आज 1300 से अधिक लैब्स काम कर रही हैं। आज भारत में पांच लाख से ज्यादा टेस्ट हर रोज हो रहे हैं। आने वाले हफ्तों में इसे 10 लाख प्रतिदिन करने की कोशिश हो रही है। इस महामारी के दौरान हर कोई सभी भारतीयों को बचाने के संकल्प से जुड़ा है। भारत ने जो किया वो एक सफल कहानी है। एक समय भारत में पीपीई किट्स नहीं बनता था। लेकिन छह महीने में भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा पीपीई किट्स उत्पादक देश बन गया है। हमारे यहां प्रत्येक दिन हर रोज पांच लाख से ज्यादा पीपीई किट्स बन रहे हैं। आज भारत में तीन लाख से ज्यादा एन-95 मास्क हर रोज बन रहे हैं। जबकि पहले हम दूसरे देशों से मंगा रहे थे। पहले भारत वेंटिलेटर के लिए भी दूसरे देशों पर निर्भर था। लेकिन आज हमलोग एक साल में तीन लाख वेंटिलेटर्स बना सकते हैं। सभी के सामूहिक प्रयासों की वजह से लोगों का जीवन भी बच रहा है साथ ही आयात करने वाले चीजों का निर्यात कर पा रहे हैं।
         काश, पीपीई किट्स, मास्क, वेंटिलेटर के क्षेत्र में उत्पादन और निर्यात की इस प्रगति के बदले हमारे पास कोरोना महामारी के मरीजों के निरंतर घटते आंकड़े होते। जब प्रश्न जीवन और मृत्यु से जुड़ा हो तो हर प्रगति जीवन की कसौटी पर ही कसा जाएगा। प्रधानमंत्री की चिन्ता वाजिब है। अनलाॅक-1 और अनलाॅक-2 के दौरान हुई लापरवाहियां अनलाॅक-3 में नहीं दुहराई जाएंगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है। ऐसे में अनलाॅेक-3 की चुनौतियों को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। 

नियम को ताक में रखकर जो आगे बढ़ रहेहैं
नये  ख़तरे, नई  मुश्क़िल   वही  तो गढ़ रहे हैं
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   (दैनिक सागर दिनकर में 29.07.2020 को प्रकाशित)

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Thursday, July 23, 2020

एकरूपता हो नियमों के पालन में - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह, दैनिक जागरण में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh
"संक्रमितों के नामों को प्रकाशित न किए जाने का नियम सेलीब्रटीज़ पर लागू क्यों नहीं किया जाता " ... आज #दैनिक_जागरण में प्रकाशित मेरा यह लेख ...
❗हार्दिक आभार "दैनिक #जागरण"🙏
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विशेष लेख:
एकरूपता हो नियमों के पालन में
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
          कोरोना गाईड लाईन के अनुसार कोरोना संक्रमित व्यक्ति का नाम मीडिया पर सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। संक्रमित व्यक्तियों के सिर्फ क्षेत्र की सूचना दी जाती है। 'पी1', 'पी2' के छद्म नाम के साथ। ऐसे कई मामले प्रकाश में आते रहे हैं जिनमें अज्ञानतावश संक्रमितों के संपर्क में आ कर अन्य कई लोग संक्रमित हुए हैं। बेशक यह तर्क माना जा सकता है कि संक्रमितों को किसी भी तरह की अवहेलना से बचाने के लिए उनके नामों की गोपनीयता रखी जाती है। तो फिर संक्रमितों के नामों को प्रकाशित न किए जाने का नियम सेलीब्रटीज़ पर लागू क्यों नहीं किया जाता है? चाहे वे राजनीति के ख्यातिलब्ध नाम हों अथवा फिल्मी दुनिया के। आम जनता और सेलेब्स के लिए एक ही नियम का दो तरह से पालन?
Dr (Miss) Sharad Singh article in Dainik Jagaran
    यहां सवाल व्यक्ति के पद-प्रतिष्ठा का नहीं है, सवाल है नियमों के एक समान पालन का। कहा तो यही जाता है कि नियम सबके लिए बराबर होते हैं। तो फिर इस मुद्दे पर समानता दिखाई क्यों नहीं देती है? उल्लेखनीय है कि मई के अंतिम सप्ताह में भाजपा के कद्दावर नेता और बेबाक प्रवक्ता संबित महापात्रा को कोरोना के लक्षण दिखाई देने पर गुरुगांव के मेदांता अस्पताल में भर्ती करवाया गया थ। संबित महापात्रा के ट्विटर पर 4.4 मिलियन फालोअर्स हैं और न्यूज चैनल की डिबेट में वो भाजपा की ओर से विपक्षी दलों को करारा जबाव देने के लिए जाने जाते हैं। वे एक सेलेब्स की भांति हैं और उनके कोरोना संक्रमित होने का समाचार सुर्खियां बटोरता रहा। इसके बाद बाॅलीबुड के शाहनशाह एवं सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के संक्रमित होने की ख़बर ने तहलका मचा दिया। बच्चन परिवार के 54 कर्मचारी क्वारंटीन में रखे गए। पहले जहां अमिताभ बच्चन के कोरोना संक्रमित होने की खबर सामने आई तो उसके बाद अभिषेक भी पॉजिटिव निकले। वहीं बाद में ऐश्वर्या राय बच्चन और आराध्या के भी संक्रमित होने की खबर मिली। अमिताभ बच्चन के फैंस शहंशाह के साथ ही अभिषेक बच्चन, ऐश्वर्या राय बच्चन और आराध्या के लिए भी प्रार्थना कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर कई ऐसे पोस्ट देखने को मिल रहे हैं, जहां पर फैंस बच्चन परिवार के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। स्वाभाविक है। कोई भी व्यक्ति अपने प्रिय लगने वाले व्यक्ति को कोरोना जैसे संकट में फंसा हुआ नहीं देखना चाहता है तथा उसके शीघ्र स्वस्थ होने के लिए दुआएं करने लगता है। लेकिन यदि अमिताभ बच्चन सदी के महानायक नहीं होते और एक आमजन होते तो क्या उनका अथवा उनके परिवार के सदस्यों का नाम प्रकाशित किया जाता? 

इसी तरह आगामी उपचुनावों के परिप्रेक्ष्य में मध्य प्रदेश का ही उदाहरण लें तो अनलॉक 2 के बाद मध्य प्रदेश में कोरोना बेकाबू हो गया है। इसका संक्रमण लगातार बढ़ रहा है, प्रदेश स्तर पर 31 जुलाई तक हर रविवार लॉकडाउन करने के निर्णय के बाद अब स्थानीय प्रशासन भी शहरों और जिलों को फिर लॉकडाउन करने की तरफ बढ़ रहे हैं। हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने कहा है कि प्रदेश में कोरोना संक्रमण रोकने के लिए उत्सवों पर सार्वजनिक झाकियां नहीं लगाई जाएंगी। धार्मिक स्थलों, उपासना स्थलों पर एक बार में 5 से अधिक व्यक्ति इकट्ठे नहीं होंगे। शादी, सगाई आदि में दोनों पक्षों के 10-10 व्यक्ति से अधिक सम्मिलित नहीं होंगे। जन्मदिन आदि उत्सवों में 10 से अधिक व्यक्ति शामिल नहीं होंगे। मुख्यमंत्री ने कहा है कि कोरोना संक्रमण रोकने के लिए घर पर ही आगामी त्यौहार मनाएं। देव प्रतिमा घर पर ही स्थापित कर पूजा-अर्चना करें। सार्वजनिक स्थलों पर प्रतिमा स्थापित करने, त्योहार मनाने की अनुमति नहीं होगी। ऐसी दशा में आगामी उपचुनाव की चुनावी सभाओं का क्या होगा?

एक ओर कोविड संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए मप्र फिर लॉकडाउन की तरफ बढ़ रहा है। राज्य में रविवार को पूरी तरह लॉकडाउन लागू करने के बाद अब एक दिन और गतिविधियां प्रतिबंधित की जा रही हैं। यह दिन रविवार के पहले शनिवार या बाद के सोमवार को होगा। भोपाल में शनिवार और रविवार को लॉकडाउन रहेगा। इस दौरान अत्यावश्यक सेवाओं को ही मंजूरी रहेगी। इसके अलावा सभी जिलों में कर्फ्यू रात 8 बजे से सुबह 5 बजे तक रहेगा। राज्य सरकार ने सख्ती दिखाते हुए यह भी साफ कर दिया है कि यदि किसी निजी दफ्तर या व्यापारिक संस्थान में कोई कोरोना पॉजिटिव मिला तो उसे सात दिन के लिए बंद कर दिया जाएगा। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए यह निर्णय लिया गया है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि संक्रमण मुक्त जिलों को छोड़कर बाकी जिलों में राज्य और केंद्र सरकार के सभी दफ्तरों में अधिकारियों व कर्मचारियों की संख्या 30 से 50 फीसदी ही रहेगी। अधिकारी शत-प्रतिशत आएंगे। निजी कार्यालय एवं व्यापारिक प्रतिष्ठान भी 30 से 50 प्रतिशत क्षमता में संचालित होंगे। निजी दफ्तर तथा व्यापारिक संस्थानों में कोई कोरोना पॉजीटिव मिलने पर उसे 7 दिन के लिए बंद कर दिया जाएगा।  
फिलहाल इस बात के आसार नजर नहीं आ रहे हैं कि सितंबर अंत तक स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में आ जाएगी। चुनाव आयोग ने पोलिंग बूथ पर सोशल डिस्टेंसिंग के लिए खाका तैयार किया है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि चुनाव प्रचार में कोरोना गाइडलाइन के पालन की जिम्मेदारी कौन लेगा? सरकार ने सभी प्रकार के सामूहिक आयोजनों पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। तो क्या किसी भी प्रकार की चुनावी सभा इसी प्रतिबंध के दायरे में आएगी? पहले ही ऐसे मामले प्रकाश में आ चुके हैं जब संभावित उम्मींदवारों के समर्थक जनसभा में शामिल हुए और उन्होंने न तो सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखा और न मास्क लगाने का। जब से चुनाव के निकट आने की संभावना बढ़ी तभी से कोरोना से बचाव के नियमों की धज्जियां उड़ाने वाली अनेक तस्वीरें समाचारपत्रों के मुखपृष्ठों पर अपनी जगह बना चुकी हैं। इस स्थिति में कोरोना गाइडलाइन का पालन सुचारु रूप से कैसे हो पाएगा, यह सबसे बड़ी चिंता का प्रश्न है। इसी परिप्रेक्ष्य में नियमों के समान रूप से पालन किया और कराया जाना प्राथमिक जरूरत है ताकि आमजन सजग और सतर्क रह कर कोरोना से अपनी रक्षा कर सके। 
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(दैनिक जागरण में 23.07.2020 को प्रकाशित)
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Wednesday, July 22, 2020

चर्चा प्लस - कोरोना के साए में चुनाव की चुनौती - डाॅ शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस
कोरोना के साए में चुनाव की चुनौती
- डाॅ शरद सिंह

दहशत पर दहशत फैलाए कोरोना- विस्फोट
उस पर देखो आ गया फिर चुनाव,फिर वोट
भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कहा है कि मध्य प्रदेश में उपचुनाव सितंबर महीने के अंत तक हो जाएंगे। उन्होंने संकेत दिए कि रक्षाबंधन से पहले चुनाव की तारीखों की घोषणा की जा सकती है। इधर कोरोना संक्रमण थमने का नाम नहीं ले रहा है। उस पर चुनाव सितंबर के अंत तक कराए जाने की घोषणा ने एक और बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।
मध्यप्रदेश में इन दिनों कोरोनावायरस का संक्रमण तेजी से फैल रहा है। विगत कुछ सप्ताह से संक्रमण के आंकड़े प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। चाहे रतलाम हो या टीकमगढ़ अथवा सागर हर शहर में हर दिन 20-21 संक्रमितों के आंकड़े सामने आते हैं। बेशक़ यह स्थिति अनलाॅक में लोगों द्वारा लापरवाही बरतने के कारण बनी है। सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क का ध्यान नहीं रखने के कारण ही लोग संक्रमण के कैरियर बन रहे हैं। फिलहाल इस बात के आसार नज़र नहीं आ रहे हैं कि सितंबर अंत तक स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में आ जाएगी। चुनाव आयोग ने पोलिंग बूथ पर सोशल डिस्टेंसिंग के लिए खाका तैयार किया है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि चुनाव प्रचार में कोरोना गाइडलाइन के पालन की जिम्मेदारी कौन लेगा? सरकार ने सभी प्रकार के सामूहिक आयोजनों पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। तो क्या किसी भी प्रकार की चुनावी सभा इसी प्रतिबंध के दायरे में आएगी? पहले ही ऐसे मामले प्रकाश में आ चुके हैं जब संभावित उम्मींदवारों के समर्थक जनसभा में शामिल हुए और उन्होंने न तो सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखा और न मास्क लगाने का। जब से चुनाव के निकट आने की संभावना बढ़ी तभी से कोरोना से बचाव के नियमों की धज्जियां उड़ाने वाली अनेक तस्वीरें समाचारपत्रों के मुखपृष्ठों पर अपनी जगह बना चुकी हैं। इस स्थिति में कोरोना गाइडलाइन का पालन सुचारु रूप से कैसे हो पाएगा, यह सबसे बड़ी चिंता का प्रश्न है।
Charcha Plus a column of Dr ( MIss) Sharad Singh
.    अनलॉक 2 के बाद मध्य प्रदेश में कोरोना बेकाबू हो गया है। इसका संक्रमण लगातार बढ़ रहा है, प्रदेश स्तर पर 31 जुलाई तक हर रविवार लॉकडाउन करने के निर्णय के बाद अब स्थानीय प्रशासन भी शहरों और जिलों को फिर लॉकडाउन करने की तरफ बढ़ रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने कहा है कि प्रदेश में कोरोना संक्रमण रोकने के लिए उत्सवों पर सार्वजनिक झाकियां नहीं लगाई जाएंगी। धार्मिक स्थलों, उपासना स्थलों पर एक बार में 5 से अधिक व्यक्ति इकट्ठे नहीं होंगे। शादी, सगाई आदि में दोनों पक्षों के 10-10 व्यक्ति से अधिक सम्मिलित नहीं होंगे। जन्मदिन आदि उत्सवों में 10 से अधिक व्यक्ति शामिल नहीं होंगे। मुख्यमंत्री ने सोमवार को मंत्रालय में वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से प्रदेश में कोरोना की स्थिति एवं व्यवस्थाओं की समीक्षा कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने कहा है कि कोरोना संक्रमण रोकने के लिए घर पर ही आगामी त्यौहार मनाएं। देव प्रतिमा घर पर ही स्थापित कर पूजा-अर्चना करें। सार्वजनिक स्थलों पर प्रतिमा स्थापित करने, त्योहार मनाने की अनुमति नहीं होगी। ऐसी दशा में चुनावी सभाओं का क्या होगा?
कोविड संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए मप्र फिर लॉकडाउन की तरफ बढ़ रहा है। राज्य में रविवार को पूरी तरह लॉकडाउन लागू करने के बाद अब एक दिन और गतिविधियां प्रतिबंधित की जा रही हैं। यह दिन रविवार के पहले शनिवार या बाद के सोमवार को होगा। भोपाल में शनिवार और रविवार को लॉकडाउन रहेगा। इस दौरान अत्यावश्यक सेवाओं को ही मंजूरी रहेगी। इसके अलावा सभी जिलों में कर्फ्यू रात 8 बजे से सुबह 5 बजे तक रहेगा। राज्य सरकार ने सख्ती दिखाते हुए यह भी साफ कर दिया है कि यदि किसी निजी दफ्तर या व्यापारिक संस्थान में कोई कोरोना पॉजिटिव मिला तो उसे सात दिन के लिए बंद कर दिया जाएगा। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए यह निर्णय लिया गया है। सोमवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने कोरोना की समीक्षा में सभी जिलों को ताकीद कर दी है। रविवार के अलावा शनिवार या सोमवार को लॉकडाउन का फैसला जिला क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप से चर्चा के बाद लिया जाएगा। भोपाल में जिला प्रशासन शनिवार की तैयारी में है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि संक्रमण मुक्त जिलों को छोड़कर बाकी जिलों में राज्य और केंद्र सरकार के सभी दफ्तरों में अधिकारियों व कर्मचारियों की संख्या 30 से 50 फीसदी ही रहेगी। अधिकारी शत-प्रतिशत आएंगे। निजी कार्यालय एवं व्यापारिक प्रतिष्ठान भी 30 से 50 प्रतिशत क्षमता में संचालित होंगे। निजी दफ्तर तथा व्यापारिक संस्थानों में कोई कोरोना पॉजीटिव मिलने पर उसे 7 दिन के लिए बंद कर दिया जाएगा।
मध्य प्रदेश की 26 सीटों पर उपचुनाव होना है। निर्धारित नियम के अनुसार सितंबर माह के अंत तक चुनाव संपन्न हो जाना चाहिए परंतु सभी नियम सामान्य परिस्थितियों के लिए बनाए गए थे। आपातकाल की स्थिति में जबकि महामारी फैली हो, मौत का खतरा मंडरा रहा हो, नियमों को शिथिल कर दिया जाता है। मध्यप्रदेश विधानसभा का बजट सत्र स्थगित कर दिया गया फिर उप चुनाव स्थगित करने में क्या समस्या है। मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा द्वारा मध्य प्रदेश में उपचुनाव समय पर कराए जाने के संकेत दिए जाने के बाद दोनों ही राजनीतिक दलों को इस बात की चिंता सताने लगी है कि कोरोना की बढ़ती संख्या और दलों के अंदर पनप रहे असंतोष के बीच उपचुनाव की चुनौती को कैसे पार करेंगे। यदि समय पर चुनाव हुए तो सितंबर के आखिर सप्ताह में चुनाव हो जाएंगे। दरअसल, मध्यप्रदेश में इस समय कोरोना महामारी तेजी से पैर पसार रही है। ऐसे में 2 दिन का लॉकडाउन सप्ताह में घोषित किया गया है। रात्रि कर्फ्यू लगाया जा रहा है। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के लिए खड़ी निर्देश दिए जा रहे हैं। ऐसे में यदि चुनाव घोषित होते हैं तो फिर राजनीतिक दलों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होंगे। पोलिंग बूथ पर सोशल डिस्टेंसिंग लेकिन चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी कौन लेगा? प्रचार और जनसंपर्क में सुरक्षा नियमों का पालन कैसे हो सकेगा? सभी उम्मीदवारों के लिए जीत-हार से कहीं अधिक नैतिक एवं मानवीय जिम्मेदारी होगी समर्थकों और मतदाताओं को संक्रमण से बचाए रखने की।
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 (दैनिक सागर दिनकर में 22.07.2020 को प्रकाशित)
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Thursday, July 16, 2020

डॉ शरद सिंह की माताजी वरिष्ठ साहित्यकार डॉ विद्यावती मालविका के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर बायोपिक यूट्यूब एवं पिंट्रेस्ट पर

Dr (Miss) Sharad Singh with her mother Dr Vidyawati Malvika
प्रिय ब्लॉग साथियों,
    कृपया देखिए इस वीडियो को जो मेरी माता जी डॉ विद्यावती "मालविका" के व्यक्तित्व - कृतित्व पर केंद्रित है। इस वीडियो में मेरी माता जी ने अपनी कविताएं, अपने गीत अपने स्वर में रिकॉर्ड कराए हैं और इस वीडियो को प्रस्तुत किया है प्रधाननामा यूट्यूब चैनल ने। जिसे 15.07.2020 को Youtube पर रिलीज़ किया गया।  - डॉ. शरद सिंह
Dr Vidyapati Malvika Biopic


यह है यूट्यूब की लिंक....
https://youtu.be/CNeoV6EM9Rw

इसे आप Pinterest पर भी देख सकते हैं...
https://pin.it/6au56hP

बुंदेलखण्ड में अभी भी उपेक्षित हैं महिला मुद्दे - . (सुश्री) शरद सिंह, दैनिक जागरण में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh
बुंदेलखण्ड में अभी भी उपेक्षित हैं महिला मुद्दे - डॉ.(सुश्री) #शरद_सिंह
आज #दैनिक_जागरण में प्रकाशित मेरा यह लेख ...
❗हार्दिक आभार "दैनिक #जागरण"🙏
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विशेष लेख : बुंदेलखण्ड में अभी भी उपेक्षित हैं महिला मुद्दे 
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
      दशकों से लम्बित पड़े हैं बुंदेलखंड के अनेक महिला-मुद्दे। जब भी कोई चुनाव करीब आता है तो आशा बंधती है कि इस बार महिलाओं की समस्याओं पर समुचित ध्यान दिया जाएगा। इस बार के उपचुनाव में भी यह कयास लगाया जा रहा है कि क्षेत्र की महिलाओं के लिए स्वास्थ्य, रोजगार एवं अन्य बुनियादी मुद्दों पर ध्यान दिया जाएगा। यह बात अलग है कि इन दिनों स्वयु राजनीति में महिलाएं लड़-झगड़ कर अपने अधिकार हासिल कर पा रही हैं। बुंदेलखंड की राजनीति में महिलाओं का प्रतिशत यूं भी पुरुषों की तुलना में कम ही रहा है लेकिन विभिन्न स्तरों पर पैदा होने वाले राजनीतिक समीकरण उन गिनती की राजनीतिक महिलाओं को भी दूसरी पंक्ति में धकेलने लगते हैं। आज भी ग्रामीण क्षेत्र में तथा निचली बस्तियों की महिलाएं खुले में शौच के लिए जाती हैं, आज भी बालविवाह की शिकार हैं, आज भी महिलाएं-बच्चिएं मानवतस्करी की गिरफ़्त में और महिलाओं के साथ घटित होने वाले अपराध भी कम नहीं हुए हैं खहे मामला दहेज का हो, बलात्कार का हो अथवा घरेलू हिंसा का हो।
  • Dr (Miss) Sharad Singh
इसमें कोई संदेह नहीं है कि बुंदेलखण्ड ने अपनी स्वतंत्रता एवं अस्मिता के लिए लम्बा संघर्ष किया है और इस संघर्ष के बदले बहुत कुछ खोया है। जब कोई क्षेत्र विकास की दृष्टि से पिछड़ा रह जाता है तो उसका सबसे बुरा असर पड़ता है वहां की स्त्रियों के जीवन पर। अतातायी आक्रमणकारी आए तो स्त्रियों को पर्दे और सती होने का रास्ता पकड़ा दिया गया। उसे घर की दीवारों के भीतर सुरक्षा के नाम पर कैद रखते हुए शिक्षा से वंचित कर दिया गया। यह बुंदेलखण्ड की स्त्रियों के जीवन का सच है। मानो अशिक्षा का अभिशाप पर्याप्त नहीं था जो उसके साथ दहेज की विपदा भी जोड़ दी गई। नतीजा यह हुआ कि बेटी के जन्म को ही पारिवारिक कष्ट का कारण माना जाने लगा। जब बेटियां ही नहीं होंगी तो बेटों के लिए बहुएं कहां से आएंगी? अन्य प्रदेशों की भांति बुंदेलखण्ड में भी ओडीसा तथा आदिवासी अंचलों से अनेक लड़कियां  को विवाह करके लाया जाता हैं। यह विवाह सामान्य विवाह नहीं है। ये अत्यंत गरीब घर की लड़कियां होती हैं जिनके घर में दो-दो, तीन-तीन दिन चूल्हा नहीं जलता है, ये उन घरों की लड़कियां हैं जिनके मां-बाप के पास इतनी सामर्थ नहीं है कि वे अपनी बेटी का विवाह कर सकें, ये उन परिवारों की लड़कियां हैं जहां उनके परिवारजन उनसे न केवल छुटकारा पाना चाहते हैं वरन् छुटकारा पाने के साथ ही आर्थिक लाभ कमाना चाहते हैं। ये गरीब लड़कियां कहीं संतान प्राप्ति के उद्देश्य से लाई जा रही हैं तो कहीं मुफ्त की नौकरानी पाने की लालच में खरीदी जा रही हैं। इनके खरीददारों पर उंगली उठाना कठिन है क्योंकि वे इन लड़कियों को ब्याह कर ला रहे हैं। इस मसले पर चर्चा करने पर अकसर यही सुनने को मिलता है कि क्षेत्र में पुरुष और स्त्रियों का अनुपात बिगड़ गया है। लड़कों के विवाह के लिए लड़कियों की कमी हो गई है।  
बुंदेलखण्ड में  पिछले दशकों में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का अनुपात तेजी से घटा और इसके लिए कम से कम सरकारें तो कदापि जिम्मेदार नहीं हैं। यदि कोई जिम्मेदार है तो वह परम्परागत सोच कि बेटे से वंश चलता है या फिर बेटी पैदा होगी तो उसके लिए दहेज जुटाना पड़ेगा। बुंदेलखण्ड में औरतों को आज भी पूरी तरह से काम करने की स्वतंत्रता नहीं है। गांव और शहरी क्षेत्र, दोनों स्थानों में आर्थिक रूप से निम्न तथा निम्न मध्यम वर्ग के अनेक परिवार ऐसे हैं जिनके घर की स्त्रियां आज भी तीज-त्यौहारों पर ही घर से बाहर निकलती हैं और वह भी घूंघट अथवा सिर पर साड़ी का पल्ला ओढ़ कर। जिन तबकों में शिक्षा का प्रसार न्यूनतम है, ऐसे लगभग प्रत्येक परिवार की एक ही कथा है कि आमदनी कम और खाने वाले अधिक। आर्थिक तंगी के कारण अपने बच्चों को शिक्षा के बदले काम में लगा देना इस प्रकार के अधिकांश व्यक्ति अकुशल श्रमिक के रूप में अपना पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं। ठीक यही स्थिति इस प्रकार के समुदाय की औरतों की रहती है। ऐसे परिवारों की बालिकाएं अपने छोटे भाई-बहनों को सम्हालने और अर्थोपार्जन के छोटे-मोटे तरीकों में गुजार देती हैं। इन्हें शिक्षित किए जाने के संबंध में इनके माता-पिता में रुझान रहता ही नहीं है। ‘लड़की को पढ़ा कर क्या करना है?’ जैसा विचार इस निम्न आर्थिक वर्ग पर भी प्रभावी रहता है। हाल ही में अनेक ऐसे मामले पकड़े गए जिनमें नाबालिग लड़कियों का विवाह किया जा रहा था। समय रहते पुलिस और अधिकारियों द्वारा हस्तक्षेप कर इन विवाहों को रोका गया। इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक के अंत में भी बालविवाह की घटनाएं सबूत है इस बात का कि बुंदेलखंड में महिलाओं की दशा अभी भी सुधरी नहीं है।

विगत वर्ष किए गए एक सर्वे के अनुसार प्रति हजार लड़कों के अनुपात में लड़कियों की संख्या पन्ना में 507, टीकमगढ़ में 901, छतरपुर में 584, दमोह में 913 तथा सागर में 896 पाया गया। यह आंकड़े न केवल चिंताजनक हैं अपितु इस बात का भी खुलासा करते हैं कि बुंदेलखंड अंचल में ओडीसा से लड़कियां ब्याह कर क्यों लाई जा रही हैं। दरअसल, जब परिवार की स्त्री पढ़ी-लिखी होगी, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होगी तो वह अपने बच्चों के उचित विकास के द्वारा आने वाली पीढ़ी को एक विकसित दृष्टिकोण दे सकेगी। इसी विचार के साथ ‘बेटी बचाओ’ और ‘बालिका शिक्षा’, ‘जननी सुरक्षा’ जैसे सरकारी अभियान चलाए जा रहे हैं। फिर भी बुंदेलखंड में स्त्रियों के विकास की गति धीमी है। बुंदेलखण्ड का वास्तविक विकास तभी हो सकता है जब बेटियों के अस्तित्व को बचाया जाए और उन्हें एक गरिमापूर्ण सुरक्षित वातावरण प्रदान किया जाए। इसके लिए सभी राजनीतिक दलों को स्त्री-सुरक्षा एवं महिला रोजगार को अपने ऐजेंडा में प्रमुखता से जोड़ना होगा और चुनाव के बाद उन पर ईमानदारी से अमल भी करना होगा। तभी इस क्षेत्र की महिलाओं की समस्याएं दूर हो सकेंगी।
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(दैनिक जागरण में 16.07.2020 को प्रकाशित)
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Wednesday, July 15, 2020

चर्चा प्लस - वर्तमान राजनीति का चाल, चेहरा और चरित्र- डाॅ शरद सिंह



Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस
वर्तमान राजनीति का चाल, चेहरा और चरित्र
- डाॅ शरद सिंह

राजनीति का  रंग  बदलता देखो तो
कैसे सब कुछ है अब चलता देखो तो

पहले ही निवेदन कर दूं कि मेरे इस लेख का उद्देश्य किसी दल अथवा व्यक्ति पर आक्षेप लगाना नहीं है अपितु भारतीय राजनीति के तेजी से बदलते स्वरूप का आकलन करना है। अतः इसके उद्देश्य के मर्म को ध्यान में रखें। 

आज भारतीय राजनीति का जो रंग देखने को मिल रहा है वह रोज ही एक न एक चौंकाने वाले तथ्य परोसता रहता है। राजनीति मानो सुविधाभोगी क्लब बन गया है। ऐसा नहीं है कि सभी राजनेता दोषी हैं लेकिन दोषियों की संख्या बढ़ना चिंताजनक है। विशेष रूप से उन राजनेताओं के पक्ष में जो अपने राजनीतिक दल एवं अपने राजनीतिक मूल्यों पर हर हाल में डटे रहते हैं। राजनीतिक दल के उसूल और राजनेता का स्वयं का व्यक्तित्व दोनों मिल कर ही एक बेहतर राजनेता की छवि गढ़ते हैं। चुनाव के समय बेशक़ दोनों पक्ष प्रबल होते हैं-व्यक्तिगत प्रभाव और दल का प्रभाव। दोनों पक्ष मिल कर उम्म्ीदवार को गारंटेड विजय दिलाते हैं। मगर उस मतदाता का क्या? जिसने ‘अ’ पार्टी का उम्मीदवार मान कर चुनाव जिताया और कुछ समय बाद वह विजयी नेता ‘ब’ पार्टी के खेमे में जा खड़ा हुआ। कार्पोरेट जगत में इस तरह कंपनी बदलने वाले को हमेशा संदेह की दृष्टि से देखा जाता है लेकिन राजनीति में अब यह आम हो चला है। बात किसी एक राजनीतिक दल की नहीं है। आजकल कब कौन किधर चल दे, इसका ठिकाना नहीं है। जबकि देश में दल-बदल रोकने वाले कानून का भी प्रावधान है।
Charcha Plus Column of Dr (Miss) Sharad Singh in Sagar Dinkar daily, 15.07.2020
.      दल बदलना कोई अपराध नहीं है। वैचारिक मतभेद होने पर यह एक स्वाभाविक कदम है। यदि किसी नेता को अपने मूल दल में कोई कमी, कोई खोट दिखाई पड़ती है तो उसे उजागर किया जाना भी कोई गलत बात नहीं है। लेकिन जब कभी यही कदम जब व्यक्तिगत लाभ को ध्यान में रख कर उठाया जाने लगता है तो राजनीति की चारित्रिक छवि घूमिल पड़ने लगती है। लोकतांत्रिक व्यवस्था के वास्तविक कर्णाधर देश के राजनीतिक नेता ही होते हैं। भारतीय लोकतंत्र के सभी महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर जनता द्वारा चुने गये राजनीतिक नेता ही कार्यरत है। देश और जनता की प्रगति एवं कल्याण के लिए नीतियों और योजनाओं का निर्माण करना इनका दायित्व है। इसके लिए इन्हें निजी स्वार्थों से परे होकर कार्य करना जरूरी है। लेकिन दुर्भाग्यवश भारतीय राजनीति आज व्यक्ति केन्द्रित हो गयी है। सत्ता से प्राप्त होनेवाली सुख सुविधाओं ने वर्तमान राजनीति को भ्रष्ट कर दिया है। फलस्वरूप आम जनता का लोकतंत्र व्यवस्था से विश्वास खोता जा रहा है। 1985 में अधिनियमित दसवीं अनुसूची के दल-बदल प्रावधानों को कड़ा बनाने के लिये 2003 में संविधान में 91वां संशोधन लाया गया। यह संशोधन उन सभी राजनीतिक दलों के सदस्यों -चाहे व्यक्तिगत रूप से या सामूहिक तौर पर यह अनिवार्य बना देता है कि वे वैधानिक सदस्यता से त्याग-पत्र दे दें। अब यदि वे दल बदलते हैं तो उन्हें पुनः चुनाव लड़ना पडेगा और ऐसे दलों के सदस्यों की एक तिहाई संख्या द्वारा दल-बदल अथवा लगातार दल बदलने के कारण वे पद पर बने नहीं रह सकते। यह संशोधन विधायकों द्वारा दल-बदल के बाद भी लाभ के पद पर बने रहने पर रोक लगाता है, बशर्ते इसे कड़ाई से लागू किया जाए। यूं भी दल बदल कर लाभ प्राप्त करने से उन राजनेताओं एवं कार्यकर्ताओं के मनोबल को ठेस पहुंचती है जो अपने दल के प्रति समर्पित भाव से काम करते रहते हैं और ‘प्रमोशन’ पाने का व्यवहारिक अधिकार रखते हैं। ऐसे नेता और कार्यकर्ता भी आगे चल कर दल बदल का मन बनाने लगते हैं क्यों कि दलबदल के फायदें उन्हें अपने सामने चरितार्थ होते दिखाई देते रहते हैं। देश की स्वतंत्रता के बाद और पिछली सदी के उत्तरार्द्ध तक नाराज़गी के चलते अपने मूल दल से अलग हो कर नया दल गठित कर लेने का चलन था। मगर इस सदी के इन आरम्भिक दशकों में सीधे विरोधी दल के पाले में जा बैठने का चलन बढ़ गया है। इससे न तो लोकतंत्र का भला होता है और न लोक का। यदि भला होता है तो दलबदलने वालों को। यह प्रवृत्ति राजनीतिक चाल और चरित्र को तेजी से बदलती जा रही है।
हमारे देश में बहुदलीय व्यवस्था है। आज किसी एक दल के लिये यह कठिन हो चला है कि वह विधानमंडल या संसद में स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर सके। ऐसे में गठबंधन की राजनीति जरूरी हो जाती है। गठबंधन सरकार को उचित ठहराए जाने के लिये गठबंधन करने वाले दलों हेतु यह आवश्यक है कि वे यह सुनिश्चित करने के लिये व्यापक रूप से बनाए गए कार्यक्रमों पर आधारित एक सोच बना लें कि सामाजिक-आर्थिक विकास के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके। यद्यपि गठबंधन सरकार की नैतिकता तब खतरे में पड़ जाती है, जब ये मिले-जुले दल बीच में ही अपने साझेदारों को बदल लेते हैं और सामाजिक-आर्थिक विकास के लक्ष्य को पाने के लिये उनकी सहमति से बनाए गए साझा न्यूनतम कार्यक्रम की अवहेलना करते हुए मुख्य रूप से अवसरवादिता का लाभ उठाने और सत्ता पाने की लालसा से नए दल से गठबंधन कर लेते हैं। मतदाता की अपेक्षाओं को बनाए रखने के लिये आवश्यक है कि यह सुनिश्चित करने के लिये एक नैतिकता का ढांचा बनाया जाना जरूरी हो चला है जिससे कि चुनावों के बीच पुनः गठबंधन जैसे अवसरवादिता को रोका जा सके।  
राजनीति में आज जो ट्रेंड चल रहा है वह है कि ‘राजनीति में सब कुछ जायज़ है’। विधायकों को बंधक या ‘मेहमान’ बना कर होटलों के कमरों में तब तक बंद रखना जब तक अपना बहुमत प्रदर्शित न हो जाए, क्या इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया माना जाना चाहिए? क्योंकि कई बार यह समझना कठिन हो जाता है कि इस तरह की प्रक्रिया के पीछे प्रलोभन, दबाव अथवा स्वेच्छा किसने सक्रिय भूमिका निभाई। इस तरह के कदम अब अकसर उठाए जाने लगे हैं इसलिए अब जरूरी हो चला है कि इस मुद्दे पर राष्ट्रव्यापी बहस की जाए और किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुंचा जाए। वर्तमान राजनीति की चाल, चेहरा और चरित्र सेवा के स्थान पर लाभ की राजनीति के सांचे में ढलता जा रहा है जो लोकतंत्र को कहीं धीरे-धीरे अवसरतंत्र में न बदल दे।

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 (दैनिक सागर दिनकर में 15.07.2020 को प्रकाशित)
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Thursday, July 9, 2020

अब तो विकास होना चाहिए जब सितारा बुलंदी पर हो - डॉ.(सुश्री) शरद सिंह, दैनिक जागरण में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh

अब तो विकास होना चाहिए जब सितारा बुलंदी पर हो - डॉ.(सुश्री) #शरद_सिंह

आज #दैनिक_जागरण में प्रकाशित मेरा यह लेख ...

हार्दिक आभार "दैनिक जागरण" 🙏
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विशेष लेख :

अब तो विकास होना चाहिए जब सितारा बुलंदी पर हो 
- डॉ.(सुश्री) शरद सिंह

बुंदेलखंड के सितारे इन दिनों बुंलंदी पर हैं। शिवराज सरकार के मंत्रिमण्डल के नए विस्तार में पहली बार तीन नेताओं को एक साथ मंत्रीमंडल में स्थान दिया गया है। बुन्देलखण्ड अंचल से अब कुल चार मंत्री हो गए जिनमे भूपेंद्र सिंह, गोविंद सिंह राजपूत, बृजेन्द्र प्रताप सिंह एवं पं. गोपाल भार्गव शामिल है। एक साथ तीन नेताओं को मंत्रीपद मिलना बुंदेलखंड के विकास के लिए शुभसंकेत माना जा सकता है। बशर्ते ये तीनों-चारों मंत्री अपने विधान सभा क्षेत्रों के अलावा समूचे बुंदेलखंड के विकास पर मिल कर महत्वपूर्ण कदम उठाएं।

Dainik Jagaran, Article of Dr (Miss) Sharad Singh, 09.07.2020

इनमें से विधायक गोपाल भार्गव बुंदेलखंड के ही नहीं वरन् एमपी विधानसभा के सबसे सीनियर नेता हैं और अब वरिष्ठ  मंत्री भी बन गए हैं। पंडित भार्गव को प्रदेश राजनीति का एक लम्बा अनुभव है। वे उमा भारती से लेकर शिवराज सिंह के चैथे मंत्रिमण्डल तक में शामिल रहने वाले भार्गव सागर जिले की गढाकोटा विधानसभा क्षेत्र से लगातार आठवीं दफा चुनाव जीत चुके हैं जो कि अपने आप में एक रिकाॅर्ड है। पूर्व गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह को दूसरी दफा मंत्री बनने का मौका मिला है। सीएम शिवराज सिंह के सबसे करीबियों में से एक भूपेंद्र सिंह छह बार चुनाव लड़े है। चार बार जीते है। वे एक कद्दावर नेता के रूप में प्रदेश राजनीति में अपनी साख स्थापित कर चुके हैं। ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह पन्ना से चुनाव से चुनाव जीत कर आए हैं और एक कर्मठ नेता के रूप में उनकी छवि है। कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल होने वाले सुरखी विधान सभा क्षेत्र के चिरपरिचित नेता गोविंद सिंह राजपूत को मंत्रीमंडल में शामिल किए जाने से उनका वह पक्ष मजबूत हो गया है जिसमें यह माना जा रहा था कि भाजपा खेमें के कुछ लोग उनसे नाखुश हैं। यद्यपि अभी गोविंद सिंह राजपूत को उपचुनाव का सामना करना है लेकिन मंत्रीपद मिल जाने से उनकी साख में जो वृद्धि हुई है वह चुनाव परिणाम उनकी झोली में आसानी से डाल सकती है। यूं भी गोविंद सिंह राजपूत की अपने सुरखी विधान सभा क्षेत्र में अच्छी पकड़ है और वे इलेक्ट्राॅनि माध्यमों द्वारा भी अपने क्षेत्र की जनता से संपर्क बनाए रखते हैं।
इतिहास गवाह है कि जब भी कोई मंत्रीमंडल बनता है अथवा मंत्रीमंडल का विस्तार किया जाता है तो कहीं खुशी, कहीं ग़म का माहौल बन ही जाता है। मध्यप्रदेश विधान में बुंदेलखंड के तीन नेताओं को एक साथ मंत्रीपद मिलने से जहां खुशी की लहर दौड़ गई वहीं नाराज़गी भी उभर कर सामने आई। सागर नगर विधान सभा क्षेत्र के विधायक जो भाजपा को लगातार विजयी बनाते आ रहे हैं, मंत्रीमंडल के इस विस्तार में वंचित रह गए। जिससे उनके समर्थकों में निराशा की लहर दौड़ गई। निराश समर्थकों ने विधायक शेलेन्द्र जैन को मंत्री बनाने की मांग को ले कर ने जल सत्याग्रह करके विरोध जताया। मगर एक कुशल राजनीतिज्ञ की भांति विधायक शैलेन्द्र जैन ने अपने समर्थकों के विरोध को शांत करने के लिए बाकायदा एक सार्वजनिक अपील की। उल्लेखनीय है कि पिछली विधान सभा चुनावों के पूर्व टिकटों की घोषणा नहीं होने पर भी शैलेन्द्र जैन जनसंपर्क में जुटे रहे थे जबकि उस समय यह सुनिश्चित नहीं था कि टिकट उन्हें मिलेगा भी या नहीं। उनकी यही खूबी उन्हें एक लोकप्रिय नेता बनाती है और इसका दूसरा पक्ष यह भी कि ऐसे समर्पित नेता को मंत्रीमंडल में लिए जाने का कयास जोर पर था।
नरयावली विधान सभा के विधायक प्रदीप लारिया भी मंत्रीपद से वंचित रह गए। लेकिन उन्होंने भी अनुशासन का परिचय दिया। अर्थात् जब माहौल शांत हो और मिलजुल कर काम करने की प्रवृत्ति दिखाई दे रही हो तो यह आशा की जा सकती है कि अब समूचे बुंदेलखंड नहीं तो कम से कम सागर संभाग के पांचों जिलों बुनियादी समस्याएं दूर हो सकेंगी। बुंदेलखंड के अनेक अंचल ऐसे हैं जो आज भी रेल सुविधा की बाट जोह रहे हैं। जिन्हें रेल मार्ग मिल गया है उन्हें गिनती की रेलें मिली हैं।

शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, परिवहन और स्वच्छता में पिछड़े हुए इन पांचों जिलों को विकास करने का समुचित अवसर मिल सकेगा। रोजगार के संदर्भ में युवाओं द्वारा कई बार मांग उठाई जा चुकी है कि बुंदेलखंड में आईटी सेक्टर की स्थापना की जाए ताकि युवाओं को अच्छे रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में न भटकना पड़े। किन्तु बात वहीं आवागमन के साधनों की कमी पर आ कर अटकती है। कोई भी मल्टीनेशनल कंपनी आईटी सेक्टर मंे तभी निवेश करने का मन बनाएगी जब विदेशों से आने वाले उनके प्रतिनिधियों को आवागमन की बेहतर सुविधाएं सुलभ होंगी। समूचे बुंदेलखंड में एकमात्र खजुराहो ही ऐसा हवाई अड्डा है जहां से यात्री उड़ाने भरी जाती हैं किन्तु वह भी गिनती की हैं और वहां से सभी महत्वपूर्ण शहरों के लिए उड़ानों की कमी है। इस स्थिति में जरूरी हो जाता है कि ऐसे हवाई अड्डे स्थापित किए जाएं जहां सस्ती उड़ान सेवाएं सुलभ हो सकें और बुंदेलखंड के निवासी देश के अन्य क्षेत्रों से हवाई मार्ग द्वारा जुड़ सकें। बुंदेलखंड में चिकित्सा साधनों की भी कमी यथावत बनी हुई है। ग्रामीण क्षेत्र एवं गरीब तबका आज भी नीम हकीमों के हाथों अपनी जान का खतरा उठाता रहता है। विकास की दर कछुआ चाल से ही चलती रही है। इस प्रकार की अनेक छोटी-बड़ी समस्याएं हैं जो क्षेत्र के विकास में बाधा बनती रहती हैं। इन बाधाओं को दूर करने का सुनहरा अवसर आ गया है जब क्षेत्र के चारों मंत्री मिल कर संभाग का नया उज्ज्वल भविष्य लिख सकते हैं।

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(दैनिक जागरण में 09.07.2020 को प्रकाशित)
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Wednesday, July 8, 2020

चर्चा प्लस - मध्य प्रदेश की राजनीति में ‘जंगल बुक’ का धमाल - डाॅ शरद सिंह


Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस 

मध्य प्रदेश की राजनीति में ‘जंगल बुक’ का धमाल
         - डाॅ शरद सिंह

सियासत में बदलते ये ज़रा किरदार तो देखो
‘जंगलबुक’ में ढलता जा रहा दरबार तो देखो 

इन दिनों मध्यप्रदेश की राजनीति में ‘द जंगलबुक’ छाई हुई है। बेशक शिवराज सरकार के जनहित वाले राज को जंगलराज तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन स्वयं शिवराज सरकार के समर्थकों से ले कर वरिष्ठ नेता तक शिवराज सिंह के लिए ‘टाईगर अभी ज़िंदा है’ जैसे जुमले उछाल रहे हैं वहीं वरिष्ठ नेत्री उमा भारती ने स्वयं की तुलना ‘मोगली’ से कर दी। 

रुडयार्ड किपलिंग ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनकी किताब ‘द जंगल बुक’ एक दिन मध्यप्रदेश की राजनीति में चरितार्थ होने लगेगी। वरिष्ठ से वरिष्ठ राजनीतिज्ञ स्वयं को ‘द जंगल बुक‘ के किरदार साबित करने पर आमादा हो जाएंगे। वैसे ‘द जंगल बुक’ के बारे में कौन नहीं जानता। सन् 1894 में लिखी रुडयार्ड किपलिंग की इस किताब ने पूरी दुनिया मोह लिया। इस कहानी पर आधारित धारावाहिक में गुलजार का गीत ‘‘चड्डी पहन के फूल खिला है..’’आज भी सबको याद है। रुडयार्ड किपलिंग सबसे कम उम्र में नोबेल पुरुस्कार प्राप्त करने वाले लेखक थे। 1907 में जब उन्हें यह पुरस्कार मिला तो उनकी उम्र 41 साल थी। उन्होंने और भी किताबें लिखीं किन्तु ‘द जंगल बुक’ ने उन्हें विश्वप्रसिद्ध बना दिया। रुडयार्ड किपलिंग बॉम्बे में पैदा हुए थे। उनके पिता जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स में वास्तुकला पढ़ाते थे। अपने जंगल के अनुभवों का सहारा लेते हुए किपलिंग ने ‘द जंगल बुक’ की रचना की थी। बहरहाल, वे आजकल के लेखक होते तो हैशटैग पर ट्रेंड होते देख कर खुश हो रहे होते।
Charcha Plus Column of Dr (Miss) Sharad Singh, 08.07.2020

    राजनीतिक बोल भी बड़े ग़ज़ब के होते हैं। कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने विगत 2 जुलाई को हुए कैबिनेट विस्तार की हलचल के बीच कांग्रेस के पुराने साथियों कमलनाथ और दिग्विजय सिंह पर निशाना साधते हुए सिंधिया ने कहा- ‘‘मैं उन दोनों को कहना चाहता हूं, कमलनाथ जी और दिग्विजय सिंह जी, आप दोनों सुन लीजिए, टाइगर ज़िंदा है।’’ 

‘टाइगर ज़िंदा है’ का ये फिल्मी डायलॉग 2017 में आई सलमान खान एक फिल्म का था। फिल्म तो कोई ख़ास नहीं चली लेकिन यह डायलाॅग शिवराज सिंह ने बोल कर इसे सियासी जुमला बना दिया। दिसंबर, 2018 में सत्ता से बाहर होने के बाद शिवराज जब बीजेपी कार्यकर्ताओं की बैठकों में जाते थे तो कांग्रेस पर निशाना साधते हुए स्वयं के लिए कहते थे कि, ‘वो ये ना भूलें कि टाइगर अभी ज़िंदा है।’

शिवराज सरकार के 100 दिन पूरे होने के बाद मंत्रिमंडल में किए गए विस्तार में शपथ लेने वाले 28 विधायकों में से 9 सिंधिया खेमें के हैं।  शेष में से 16 उस ग्वालियर-चंबल इलाके से आते हैं जो सिंधिया मजबूत गढ़ माना जाता है। दरअसल थोड़े ही वक्त के अंतर पर सिंधिया ने ‘टाइगर’ वाला बयान दो बार दिया। पहली बार बिना किसी का नाम लिए और दूसरी बार कमलनाथ और दिग्विजय का नाम लेकर। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सिंधिया पर पलटवार कर सुर्खियां अपनी तरफ मोड़ लीं। कमलनाथ ने चुटकी लेते हुए कहा-‘‘देखना होगा कागज का टाइगर है या सर्कस का टाइगर कौन सा टाइगर अभी जिंदा है।’’ 

कांग्रेस के एक और वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय ने जरा तीखा तीर चलाया। उन्होंने ट्वीट किया-‘‘जब शिकार प्रतिबंधित नहीं था, तब मैं और श्रीमंत माधवराव सिंधिया जी शेर का शिकार किया करते थे। इंदिरा जी के वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन एक्ट लाने के बाद से मैं अब सिर्फ शेर को कैमरे में उतारता हूं।’’ लेकिन इसके लगभग दो घंटे बाद उन्होंने लड़ते हुए दो बाघों की तस्वीर के साथ एक और ट्वीट किया- ‘‘शेर का सही चरित्र आप जानते हैं? एक जंगल में एक ही शेर रहता है!!’’

बात यहीं पर आ कर थम गई होती तो भी गनीमत थी। कई महीनों से शांत बैठी उमा भारती ने भी अपना मौन तोड़ते हुए स्वयं को ‘मोगली’ जैसा कह दिया। तीन दिवसीय शैव महोत्सव के समापन कार्यक्रम में शामिल हुईं उमा भारती ने उज्जैन में कहा कि वे वर्तमान दौर की राजनीति में ‘‘मोगली’’ हैं। तीन दिवसीय शैव महोत्सव के समापन अवसर पर मंच संचालक ने जब साध्वी उमा भारती का परिचय श्प्रखर वक्ताश् के रूप में दिया, तो उमा ने मोगली का किस्सा सुना डाला। उमा भारती ने कहा, ‘‘किसी के बारे में ऐसी चर्चा हो जाती है कि वह ऐसा है और यह बात आगे चलती रहती है, इसी तरह मेरे साथ हुआ। कहीं प्रवचन दिए तो लोगों ने प्रखर वक्ता कह दिया और आज भी वह कहा जा रहा है। वास्तव में मैं प्रखर वक्ता हूं नहीं।’’ उन्होंने आगे कहा कि ‘‘मैं तीन-चार दिन पहले अपने बारे में सोच रही थी, तभी मुझे मोगली की कहानी याद आ गई। यह मनगढ़ंत कहानी नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश की ही घटना है। मोगली भेड़ियों के पास से वापस आ जाता है। मैं सोचती हूं कि अगर मोगली राजनीति में आ जाए तो वह क्या-क्या करेगा, वही मैं भी करती हूं। कभी कुछ कह दिया, बाद में लगता है कि अरे यह क्या कह दिया।’’

मध्यप्रदेश की राजनीति में ताल ठोंकते नेतागण ‘द जंगल बुक’ का किरदार बनते-बनते कहीं मध्यप्रदेश की राजनीति को जंगलराज में न बदल दें, यह ध्यान रखना होगा स्वयं शिवराज सरकार को। 
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  (दैनिक सागर दिनकर में 08.07.2020 को प्रकाशित)
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Thursday, July 2, 2020

कम क्यों हैं बुंदेलखंड में महिला पत्रकार- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह , दैनिक जागरण में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh

कम क्यों हैं बुंदेलखंड में महिला पत्रकार - डॉ.(सुश्री) शरद सिंह
आज दैनिक जागरण में प्रकाशित मेरा यह लेख 
हार्दिक आभार दैनिक जागरण🙏

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 कम क्यों हैं बुंदेलखंड में महिला पत्रकार
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
                     
बुंदेलखंड की महिलाओं से संबंधित पिछले दिनों प्रकाशित मेरे एक विशेष लेख को जब मैंने अपनी फेसबुक वाॅल पर शेयर किया तो उस पर सुरखी की पूर्व विधायक पारुल साहू की टिप्पणी मुझे झकझोर गई। उन्होंने लिखा था कि ‘‘रानी लक्ष्मीबाई की कर्मभूमि में महिलाओं की राजनीति में भागीदारी जीरो है एक भी महिला विधानसभा या लोकसभा में बुंदेलखंड से नहीं है।’’ यह पढ़ कर मुझे लगा कि सिर्फ़ राजनीति नहीं पत्रकारिता में भी लगभग यही दशा है। बुंदेलखंड के मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में फैले लम्बे-चौड़े भू-भाग में पुरुष पत्रकार तो अनेक हैं किन्तु महिला पत्रकारों को उंगलियों पर गिना जा सकता है। इस तारतम्य में मुझे वह समय याद आता है जब स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद ही मैंने पन्ना जैसे छोटे से जिले में पत्रकारिता में कदम रखा था। उस समय पन्ना में ही एक और महिला पत्रकार हुआ करती थीं प्रभावती शर्मा उनके पति एक टेबलाईड अखबार प्रकाशित किया करते थे। उन दिनों प्रिंट मीडिया में एक उत्साहजनक वातावरण था। उस दौर में जबलपुर से प्रकाशित होने वाले समाचारपत्र दैनिक ‘नवीनदुनिया’ में ‘जोगलिखी’ काॅलम में पन्ना की समस्याओं पर मेरी रिपोर्ट्स प्रकाशित हुआ करती थीं। वहीं से प्रकाशित होने वाले दैनिक ‘ज्ञानयुग प्रभात’ में मैंने विशेष संवाददाता का कार्य किया। ‘जनसत्ता’ एवं ‘पांचजन्य’ के लिए रिपोर्टिंग की। उन दिनों पन्ना में बहुचर्चित ‘भदैंया कांड’ हुआ था जिसमें भदैंया नामक ग्रामीण की कुछ दबंगों ने आंखें छीन ली थीं। इस लोमहर्षक कांड पर मेरी कव्हरेज को ‘जनसत्ता’ ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था। पन्ना की खुली जेल में रह रहे दस्यु पूजा बब्बा से मैंने साक्षात्कार लिया था। डकैत चाली राजा के आत्मसमर्पण तथा कुछ डकैतों के इन्काउंटर पर भी मैंने रिपोर्टिंग की थी। आज मैं पीछे मुड़ कर देखती हूं तो तब से अब तक समूचे बुंदेलखंड में जमीनी पत्रकारिता से जुड़ी सक्रिय महिला पत्रकार गिनती की ही दिखाई देती हैं, उनमें भी अधिकांश स्थानीय समाचारपत्रों से ही संबद्ध हैं। 
Dainik Jagaran, Article of Dr (Miss) Sharad Singh, 02.07.2020
आज बुंदेलखंड  में ज़मीनी स्तर पर महिला पत्रकार औसतन उतनी संख्या में नहीं हैं जितनी कि महानगरों में हैं। जबकि उन महानगरीय पत्रकारों में अनेक महिलाओं ने बुंदेलखंड में ही पत्रकारिता की शिक्षा पाई है। सागर की प्रिंट पत्रकारिता जगत में यदि नाम लिया जाए तो दो महिला पत्रकार सक्रिय दिखाई देती हैं- वंदना तोमर और रेशू जैन। ये दोनों महिलाएं अपने-अपने दायित्वों में लगन से कार्य करती रहती हैं। दोनों का दायरा परस्पर अलग-अलग है किंतु कर्मठता लगभग एक-सी है। बात की जाए यदि उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड की तो वहां कुछ समय पूर्व एक धमाका हुआ था जब ‘खबर लहरिया’ नाम का अखबार प्रकाशित होना शुरू हुआ। आकलनकर्ताओं ने इसे ‘वैकल्पिक मीडिया’ कहा। ‘खबर लहरिया’ ग्रामीण मीडिया नेटवर्क में अपनी पहचान बनाने में सफल रहा क्योंकि कई जिलों में इसके लिए सिर्फ़ महिला रिपोटर्स रखी गईं।  
इस अख़बार से पत्रकार के रूप में महिलाओं का जुड़ाव होने पर भी जो पुरुष-मानसिकता सामने आई वह चौंकाने वाली थी क्योंकि इन महिला पत्रकारों को अनजान नंबरों से लगातार अश्लील संदेश और धमकियां मिलने लगीं। इस तथ्य का पता चलने पर मुझे लगा कि जिन दिनों मैं जमीनी पत्रकारिता से जुड़ी हुई थी, उन दिनों बुंदेलखंड के लिए महिला पत्रकारिता अपवाद का विषय होते हुए भी सकारात्मक माहौल लिए हुए था। प्रशासन से ले कर समस्याग्रस्त क्षेत्र तक सम्मान और सहयोग मिलता था। या फिर मध्यप्रदेशीय बुंदेलखंड में आज भी वह माहौल है जहां महिला पत्रकारों को इस प्रकार की ओछी बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ता है। वैसे यहां प्रश्न क्षेत्र का नहीं मानसिकता का है क्योंकि उत्तरप्रदेशीय बुंदेलखंड में ही एक ऐसी महिला पत्रकार हुईं जिन्होंने अपने पति की बात को झुठलाते हुए दबंग पत्रकारिता की और जेल भी गईं। बांदा की पहली महिला पत्रकार के रूप में विख्यात मधुबाला श्रीवास्तव एक दबंग व्यक्तित्व की महिला रहीं। वे अपने संस्मरण सुनाती थीं कि एक बार जब वे मंदिर गईं तो वहां यह चर्चा आई कि शहर में कोई महिला पत्रकार नहीं है। यह बात उनके पति ने इस भाव से कही थी कि गोया महिलाएं पत्रकारिता कर ही नहीं सकती हैं। तब वे आगे आ कर बोलीं कि ‘‘हम हैं महिला पत्रकार।’’ इस तरह उन्होंने पत्रकारिता जगत में कदम रखा। एक बार उन्होंने अपने पत्रकार पति के विरुद्ध भी भाषण दिया था। मधुबाला श्रीवास्तव ने ‘अमर नवीन’, ‘क्रांति कृष्णा’ तथा ‘पायोनियर’ के लिए भी पत्रकारिता की। मीसा एक्ट के तहत उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। किंतु उन्हें भी अश्लील संदेशों अथवा ऊटपटांग धमकियों का सामना नहीं करना पड़ा था। 

इसका अर्थ यही है कि बुंदेलखंड को जहां आज समय के साथ चलते हुए जमीनी पत्रकारिता में महिलाओं की बहुसंख्या दिखनी चाहिए थी वहां अल्पसंख्यक स्थिति है। लिहाज़ा उन कारणों का आकलन करना होगा जो बुंदेलखंड की पत्रकारिता में महिलाओं की संख्या को अल्प बनाए हुए है। उम्मींद की जानी चाहिए कि आने वाले दिनों में जमीनी पत्रकारिता की ओर सुशिक्षित, प्रशिक्षित और दबंग महिला पत्रकारों की नई खेप कदम रखेगी।   
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(दैनिक जागरण में 02.07.2020 को प्रकाशित)
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