-डॉ.
शरद सिंह
परिवार में आर्थिक कार्यों का संचालन सदियों से कौन करता चला आ रहा है? जाहिर है कि स्त्री। पहले पुरुष का काम था धनार्जन और स्त्री का काम था उस धन का परिवार के हित में उपयोग और सही ‘इन्वेस्टमेंट’। यह प्रायः गहनों के रूप में हुआ करता था। बहरहाल, जब स्त्री को धन के संचालन की समझ हमेशा से रही तो उसे एक न एक दिन आर्थिक मामलों की विशेषज्ञ के रूप में सामने तो आना ही था। चंदा कोचर, इंदिरा नूयी, शहनाज़ हुसैन, रीता सिंह आदि वे नाम हैं जो आज भारत के आर्थिक जगत् में मील का पत्थर साबित हो रहे हैं या कहा जाए तो एक ऐसा लाईस हाऊस जिसके प्रकाश में देश की अन्य महिलाएं भी तेजी से आगे बढ़ रही हैं। अनेक भारतीय महिलाएं आर्थिक मामलों में सलाह देने का काम कर रही हैं तो कई ने पूरे आत्मविश्वास के साथ अपना व्यापार चला रखा है। आर्थिक जगत भी महिलाओं को विश्वसनीय और मेहनती निवेशक, सहयोगी अथवा कर्मचारी के रूप में स्वीकार कर चुका है। व्यापार-व्यवसाय के क्षेत्रा में महिलाएं अब आर्थिक मामलों को ले कर भयभीत नहीं रहती हैं वरन् आत्मनिर्भर होती जा रही हैं।
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रीता सिंह |
मेस्को स्टील ग्रुप की रीता सिंह के ये उद्गार मायने रखते हैं कि -‘जब मैंने अपना बिजनेस शुरू किया था तो मुझे यह भी नहीं पता था कि कर्ज लेने के लिए बिजनेस प्रपोजल किस तरह से लिखा जाता है। लेकिन मैंने कभी मुड़कर नहीं देखा।’
बैकिंग क्षेत्र में भी महिलाओं ने अपना सिक्का जमा रखा है। चंदा कोचर भारतीय उद्योग जगत और बैंकिंग के क्षेत्र में जाना माना नाम हैं। चंदा कोचर ने अपनी मेहनत, विश्वास और लगन से पुरुष प्रधान बैंकिंग व्यवसाय में अपनी एक अलग पहचान बनाई। मैनेजमेंट ट्रेनी की छोटी सी पोस्ट से बैंक के उच्चतम पद तक पहुंचने वाली चंदा की सफलता एक महिला की दृढ़ इच्छाशक्ति की कहानी कहती है। आज अनेक महिलाएं चंदा कोचर से प्रेरणा ले रही हैं।
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चंदा कोचर |
फोर्ब्स पत्रिका में दुनिया की सशक्त महिलाओं की सूची में जगह बनाने वाली चंदा का जन्म 17 नवंबर 1961 को जोधपुर, राजस्थान में हुआ था। उनकी स्कूली पढ़ाई जयपुर से हुई। इसके बाद वे मुंबई आ गईं जहां पर जय हिन्द कालेज से आर्ट्स में स्नातक की डिग्री हासिल की। सन् 1982 में स्नातक की डिग्री लेने के बाद उन्होंने मुंबई के जमनालाल बजाज इंस्टिट्यूट आफ बिजनेस स्टडी से मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री हासिल की। मैनेजमेंट स्टडी में अपनी शानदार प्रस्तुति के लिए उन्हें ‘वोकहार्ड्ट गोल्ड मेडल’ और कास्ट एकाउंटेंसी में सर्वाधिक अंक के लिए ‘जेएन बोस गोल्ड मेडल’ दिया गया। 1984 में मास्टर डिग्री लेने के बाद चंदा ने आईसीआईसीआई बैंक में मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में प्रवेश किया और अपने काम और अनुभव के साथ-साथ वे लगातार आगे बढ़ती गईं। उन्होंने बैंक को सफलता के नए आयामों तक पहुंचाया। उनके नेतृत्व में ही बैंक ने अपने रीटेल बिजनेस की शुरुआत की। बैंकिंग के क्षेत्र में अपने योगदान के कारण चंदा को कई सम्मान प्रदान किए गए जिसमें भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला ‘पद्म विभूषण’ भी शामिल है। चंदा कोचर के बारे में फार्च्यून पत्रिका ने लिखा था कि उन्होंने अपने बैंक की अंतर्राष्ट्रीय पहुंच को और विस्तार दिया है।
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नैना लाल किदवई |
फार्च्यून पत्रिका ने कारोबार जगत की सर्वाधिक 10 प्रभावशाली महिलाओं की सूची में शामिल पेप्सिको की भारतीय अमेरिकी अध्यक्ष एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी भारतीय मूल की इंदिरा नूयी और एचएसबीसी इंडिया की मुख्य कार्यकारी नैना लाल किदवई ने भी आर्थिक जगत् में अपनी विशेष जगह बना रखी है।
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इंदिरा नूयी |
28 अक्टूबर 1955 को मद्रास में जन्मी और इंदिरा नूयी ने 1974 में मद्रास क्रिष्चियन कालेज से रसायन विज्ञान में स्नातक की डिग्री और कलकत्ता के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट से प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा हासिल किया। भारत में अपने कैरियर की शुरुआत करके, नूई ने जॉनसन एंड जॉनसन और कपडे़ की फर्म मेट्टुर बिअर्डसेल में उत्पाद प्रबंधक के पद पर काम किया। सन् 1978 में वह येल स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में भर्ती हुई और सार्वजनिक और निजी प्रबंधन में मास्टर डिग्री प्राप्त किया तथा 1980 में स्नातक होकर, नूई ने बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप में काम किया। सन् 1994 में नूई, पेप्सीको में शामिल हुईं और 2001 में उन्हें अध्यक्ष और सीओ नामित किया गया। इंदिरा नूयी के बारे में फार्च्यून पत्रिका ने लिखा था कि -‘उनके नेतृत्व में पेप्सिको कम्पनी तेज प्रगति किया है। सभी संकेत सकारात्मक मिल रहे हैं। कम्पनी का राजस्व 35.1 अरब डालर पर जा पहुंचा है। वहीं कम्पनी को कुल 6.4 अरब डालर का संचालन लाभ हुआ है। कम्पनी ने पिछले साल की तुलना में इस साल प्रति शेयर तीन डालर अधिक की कमाई की है।’ आर्थिक जगत की पत्रिका फार्च्यून ने यह भी लिखा था कि ‘2001 में क्वेकर फूड्स के अधिग्रहण, जिसमें नूयी ने केंद्रीय भूमिका निभाई थी, से पेप्सिको को खास लाभ हुआ।’
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शहनाज़ हुसैन |
भारतीय महिलाएं वे सारे मिथक तोड़ती जा रही हैं जिनमें उन्हें ‘आर्थिक व्यवस्थापन’ के क्षेत्रा के योग्य नहीं समझा जाता था और उनसे पारिवारिक खर्चों के बारे में भी हिदायत दी जाती थी कि वे परिवार के पुरुषों से पूछे बिना कहीं कुछ भी खर्च न करें। आज महिलाएं आर्थिक जगत की विश्वसनीय साथी बन कर उभरी हैं।
(साभार- दैनिक ‘नेशनल दुनिया’ में 08.07.2012 को प्रकाशित मेरा लेख)