Friday, May 29, 2020

विशेष लेख : परीक्षा, प्रमोशन और पाॅलिटिक्स - डाॅ शरद सिंह


Dr (Miss) Sharad Singh
विशेष लेख    
परीक्षा, प्रमोशन और पाॅलिटिक्स
           - डाॅ शरद सिंह
             स्कूल से लेकर काॅलेज तक की परीक्षाओं को ले कर घमासान छिड़ा हुआ है। कुछ स्टूडेंट्स फेडरेशन चाहते हैं कि कोरोना लाॅकडाउन और कोरोना के संकट को देखते हुए छात्रों को परीक्षा में जरनल प्रमोशन दे दिया जाए। वहीं प्रशासन, अभिभावक और विद्यार्थियों का एक बड़ा प्रतिशत चाहता है कि परीक्षाएं होनी चाहिए। मध्यप्रदेश में जरनल प्रमोशन के पक्षधर ‘‘हैशटैग जरनल प्रमोशन टू एम पी स्टूडेंट्स’’ पर समर्थन में सोशल मीडिया अभियान चला रहे हैं। वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री ने परीक्षाएं कराए जाने का निर्णय ले लिया है। तारीखें भी तय कर दी गई हैं। ऐसे में राजनीति न गरमाए, यह हो नहीं सकता। ज़ाहिर है कि एक बार फिर प्रतिभाशाली छात्र राजनीति के दो पाटों के बीच खड़े दिखाई दे रहे हैं। 

इन दिनों कुछ स्टूडेंट्स फेडरेशन सोशल मीडिया पर ‘‘हैशटैग जरनल प्रमोशन टू एम पी स्टूडेंट्स’’ ट्रेंड कराकर सुरक्षा की दृष्टि से और अलग-अलग परेशानियां बताकर जनरल प्रमोशन की मांग कर रहे हैं। यह सीएम और राज्यपाल को बताना चाह रहे हैं कि आईआईटी बॉम्बे जैसे संस्थानों ने स्टूडेंट्स को जनरल प्रमोशन देने का निर्णय लिया है। यह सभी की सुरक्षा के लिए बेहतर है। छात्र बड़ी संख्या में अपनी बात रख रहे हैं। उनके पास बड़े ठोस तर्क हैं। उनमें सबसे बड़ा तर्क है कोरोना वायस के संक्रमण का। इस बीच मध्यप्रदेश शासन के उच्च शिक्षा विभाग एवं माध्यमिक शिक्षा मंडल, मध्य प्रदेश ने यूजी और पीजी तथा 12वीं, हायर सेकेंडरी के बचे हुए पेपर कराने का फैसला लिया है। तारीखें घोषित कर दी गई है। इस निर्णय पर सलाह-मशविरा करने को सीएम शिवराज सिंह चैहान अधिकारियों के साथ राज्यपाल लालजी टंडन से मिलने पहुंचे थे। इसके बाद निर्णय को अंतिम रूप दिया गया कि मध्यप्रदेश की यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में किसी भी कक्षा में जनरल प्रमोशन नहीं दिया जाएगा। कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन को लेकर सभी परीक्षाओं को आगे बढ़ा दिया गया था। परीक्षा के दौरान शारीरिक दूरी के साथ अन्य नियमों का पालन भी करवाया जाएगा।
Charcha Plus Column of Dr (Miss) Sharad Singh, 29.05.2020
      राज्यपाल लालजी टंडन से मुलाकात के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने इसके लिए सहमति दी है। अब उच्च शिक्षा विभाग जल्द ही निर्देश जारी करेगा। तकनीकी विश्वविद्यालय की परीक्षा 16 से 30 जून के बीच होगी। फर्स्ट ईयर में नए प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों का शिक्षण सत्र अक्टूबर से प्रारंभ होगा। प्रथम और द्वितीय वर्ष से द्वितीय और तृतीय वर्ष में जाने वाले विद्यार्थियों का शैक्षणिक सत्र 1 सितंबर से प्रारंभ होगा। मध्य प्रदेश में स्नातक अंतिम वर्ष और स्नातकोत्तर अंतिम वर्ष की परीक्षाएं 29 जून से 31 जुलाई के बीच होंगी। बाकी परीक्षाएं कोरोना संक्रमण ठीक होने के बाद आयोजित की जाएंगी। किसी भी कक्षा में जनरल प्रमोशन नहीं दिया जाएगा। शैक्षणिक सत्र जुलाई के बाद शुरू हो जाएगा। वैसे एमपी बोर्ड ने तो संशोधित टाइम टेबल भी जारी कर दिया है लेकिन जैसे-जैसे परीक्षा की तारीख नजदीक आ रही है स्टूडेंट्स भड़कते जा रहे हैं। वह किसी भी कीमत पर परीक्षा देने को तैयार नहीं है। उनका कहना है कि यदि परीक्षा कक्ष में बैठने के कारण कोरोनावायरस का इंफेक्शन हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा?

उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देश में लॉकडाउन किया गया। लोगों का अपने घरों से बाहर निकलना सुरक्षित नहीं था। ऐसे में छात्रों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए और कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए सभी राज्यों की तरह मध्यप्रदेश सरकार ने भी मार्च-अप्रैल में होने वाले शिक्षा कार्यक्रमों और परीक्षाओं को स्थगित कर दिया था। अब परिस्थितियों का आकलन करते हुए परीक्षा कराए जाने का निर्णय लिया गया। परीक्षा और जरनल प्रमोशन पर राजनीति करने वालों को सबसे बड़ा सहारा इस बात का मिला है कि परीक्षा के निर्णय को ले कर सभी राज्यों में एकरूपता नहीं है। महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में अलग-अलग नीतियां निर्धारित की जा रही हैं जिससे पक्ष-विपक्ष दोनों को अपने-अपने मतलब की सनद मिल रही है। मसलन वे उदाहरण दे-दे कर अपने तर्क प्रस्तुत कर रहे हैं। दरअसल छत्तीसगढ़ सरकार ने माध्यमिक शिक्षा के अध्य्यनरत छात्रों को जनरल प्रमोशन दिया हैं। एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष ने विश्वव्यापी महामारी कोविड 19 को मद्देनजर रखते हुए प्रदेश में सभी कॉलेजों के छात्रों को जनरल प्रमोशन दिए जाने को लेकर ज्ञापन सौंपा। इसके पहले छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के छात्र संगठनों ने भी जनरल प्रमोशन देने की मांग की थी। एबीवीपी छात्र नेता व पं. रविशंकर शुक्ल विवि के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष ने भी जनरल प्रमोशन देने की मांग उठाई थी।

इस बीच एक और मंथन चलता रहा। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से जारी दिशा निर्देशों के अनुसार अंतिम वर्ष के छात्रों को जनरल प्रमोशन नही दिया जाएगा, उन्हें भी इस महामारी में राहत दिलाने के लिए छात्रों ने परीक्षाओं का आयोजन होने पर इन छात्रों को परीक्षावार कोरोना बोनस अंक देने की मांग की है। इसके अंतर्गत जनरल प्रमोशन सिर्फ प्रथम और द्वितीय वर्ष के बीए, बीकॉम, बीएससी, बीबीए आदि कक्षाओं में दे सकते हैं। रहा मध्यप्रदेश में परीक्षाओं और पढ़ाई के सत्र का प्रश्न तो अब ग्रेजुएशन फाइनल ईयर और पोस्टग्रेजुएशन फाइनल ईयर की परीक्षाएं 29 जून से 31 जुलाई के बीच होंगी। किसी भी कक्षा में जनरल प्रमोशन नहीं दिया जाएगा। इधर सीबीएसई ने छात्रों को अपने निकट का परीक्षा सेंटर चुनने का विकल्प दे दिया है।

अब ध्यान दें परीक्षा पर पाॅलिटिक्स के प्रश्न पर, तो विचारणीय है कि जो दल छत्तीसगढ़ में जरनल प्रमोशन की मांग उठा रहे हैं वही दल मध्यप्रदेश में मांग क्यों नहीं उठा रहे हैं ? दरअसल, छात्रों को अपना भला-बुरा स्वयं तय करना चाहिए। उन्हें सरकारी व्यवस्थाओं पर भरोसा है और वे यह मानते हैं कि कोरोना संक्रमण से बचाव के सभी नियमों का पालन करते हुए सरकार उनकी परीक्षा ले सकती है तो उन्हें सरकार के क़दम का स्वागत करना चाहिए। यदि उन्हें सरकारी सुरक्षा व्यवस्थाओं पर संदेह है तो परीक्षा तिथियां बढ़वाने की मांग करनी चाहिए, जरनल प्रमोशन की नहीं। जरनल प्रमोशन कोई सम्मानजनक स्थिति नहीं है। जरनल प्रमोशन से आगे बढ़े हुए छात्रों की योग्यता पर निजी क्षेत्र शंका की दृष्टि से देखेंगे। यदि जरनल प्रमोशन होता है तो उन छात्रों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा जो पढ़ाकू हैं और जिन्होंने इस कोरोना लाॅकडाउन के दौरान घर में रह कर जम कर पढ़ाई की है। आमतौर पर वे छात्र ही जरनल प्रमोशन की मांग के पक्ष में हैं जिन्होंने ढंग से पढ़ाई नहीं की है और अब जरनल प्रमोशन की बहती गंगा में नहा कर बिना परीक्षा के अगली कक्षा में पहुंच जाना चाहते हैं। छात्रों के भावी कैरियर के लिए जरनल प्रमोशन उचित नहीं ठहरता है। किन्तु जीवन की सुरक्षा से बढ़ कर कुछ नहीं होता है अतः यदि छात्रों को अपनी सुरक्षा का डर है तो उन्हें खुल कर अपनी बात प्रदेश सरकार के आगे स्वयं रखनी होगी। लेकिन जरनल प्रमोशन के मायाजाल को भुला कर। छात्रों को याद रखना ही होगा कि परीक्षाएं ही योग्यता को साबित करने का अवसर होती हैं और यह अवसर उन्हें राजनीतिक ‘‘तू-तू, मैं-मैं’’ में पड़ कर नहीं गंवाना चाहिए।          
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(दैनिक सागर दिनकर में 29.05.2020 को प्रकाशित)
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Thursday, May 28, 2020

इम्तिहां और भी हैं ....कोरोना की कबड्डी उस पर टिड्डी - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह


Dr (Miss) Sharad Singh
इम्तिहां और भी हैं ....
कोरोना की कबड्डी उस पर टिड्डी
         - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
 #दैनिक_जागरण में प्रकाशित मेरा यह लेख बढ़ते संकटों पर ... आप भी पढ़िए...
हार्दिक आभार "दैनिक जागरण"🙏
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इम्तिहां और भी हैं ....
कोरोना की कबड्डी उस पर टिड्डी
  - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
           जब भी लगता है कि हालात से समझौता करना हमें आ गया है उसी दौरान एक न एक नया संकट खड़ा हो जाता है। कोरोना वायरस की कबड्डी चल ही रही थी कि टिड्डी दल आ धमका। खेत के खेत चट कर जाने वाले टिड्डी दल के कहर से बुंदेलखंड भी नहीं बचा। वह तो गनीमत है कि ग्रामीण और किसान अपने स्तर पर पहले से ही तैयार थे इस संकट से जूझने के लिए। इसलिए फिलहाल उतने बड़े पैमाने पर नुकसान नहीं हुआ जितने की आशंका थी। ग्रामीणों और किसानों ने शोर मचा कर, धुंआ कर टिड्डी दल को अपने इलाके से निकालने में सफलता पाई। यद्यपि यह कहा जा रहा है कि पाकिस्तान भारत के सीमाक्षेत्र में टिड्डियों की ब्रीडिंग कर रहा है। अर्थात् यह संकट फिर आएगा। उधर बुहान की ‘बेटलेडी’ कहलाने वाली वैज्ञानिक का कहना है कोरोना से भी अधिक भयानक वायरस का सामना करना पड़ सकता है। ऐसा लगता है कि देश के दोनों पड़ोसियों ने तय कर लिया है कि भारतीयों को चैन से नहीं रहने देना है। एक कोरोना भेज रहा है तो दूसरा टिड्डियां। और हमारे यहां दशा यह है कि लगभग चार माह से सैनेटाईज़र का उपयोग करते रहने के बाद अनुसंधान का कथित परिणाम बताया जाता है कि चालीस दिन तक लगातार सैनेटाईज़र उपयोग करने से शरीर को नुकसान पहुंचता है। इतना ही नहीं इस कोरोनाकाल में अनेक घटनाएं ऐसी हुईं जिनमें सीधे मनुष्यों पर सैनेटाईज़र का छिड़काव कर दिया गया। अभी हाल ही में एक कंटेनमेंट एरिया में स्त्रियों और बच्चों पर सैनेटाईज़र का स्प्रे कर दिया गया जिससे उन्हें आंखों और शरीर में जलन होने लगी। गोया टिड्डियों से निपटने के लिए स्प्रे नहीं है लेकिन मनुष्यों पर इस्तेमाल करने के लिए हानिकारक स्प्रे है।
Dainik Jagaran, Article of Dr (Miss) Sharad Singh, 28.05.2020
.     इसी वर्ष जनवरी के अंतिम सप्ताह में यह सूचना जारी की गई थी कि भारत में केरल में कोरोना वायरस का पहला मरीज मिला है। वह मरीज चीन के वुहान प्रांत में मेडिकल स्टूडेंट था और वहां से अन्य भारतीयों के साथ वापस भारत लाया गया था। पहले मरीज पाए जाने की यह घटना वर्षों पुरानी प्रतीत होती है क्योंकि तब से अब तक लगभग चार माह में कोरोना के आतंक के अनेक रंग सभी लोग देख चुके हैं। कोरोना ने बीमार किया, कोरोना ने क्वारंटाईन कराया, कोरोना ने लाॅकडाउन कराया, कोरोना ने मौत दी और कोरोना ने हजारों मजदूरों को बेघर, बेरोजगार बना दिया। कोरोना ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी। बुंदेलखंड ने भी यह सब झेला है और आज भी झेल रहा है। बुंदेलखंड देश का वह इलाका है जो हमेशा विकास की बाट जोहता रहता है। यहां बड़े उद्योगों का अभाव है। यहां बड़ी मंडी का अभाव है। यहां शिक्षा का स्तर अभी भी पिछड़ा हुआ है। यहां जलप्रबंधन की समुचित व्यवस्था नहीं है। यहां के मजदूर किसान पलायन के लिए विवश रहते हैं। विगत वर्षों में सैंकड़ों छोटे किसानों ने अपनी खेती गंवाई और मजदूरी करने के लिए मजबूर हो गए। अपने क्षेत्र में काम की कमी के कारण उन्होंने महानगरों का रूख किया। मगर कोरोना संकट ने उनके लिए वह संकट खड़ा किया जिसके बारे में उन्होंने सोचा भी नहीं होगा। वे सारे प्रतिष्ठान, मिल, कारखाने आदि बंद हो गए जहां वे काम करते थे, वे सड़कें आॅटो, टैक्सी से खाली करा ली गईं जहां वे आॅटो, टैक्सी चला कर आजीविका कमाते थे। काम नहीं तो दाम नहीं। और दाम नहीं तो सिर पर छत नहीं। एक झटके में वे सारे श्रमिक मजदूर, कामगार हर चीज से बेदखल हो गए जो प्रवासी थे। जी हां, वे प्रवासी ही थे क्यों कि वे काम के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान भटकते थे। वे उन शहरों के निवासी नहीं थे। वहां उनका अपना घर नहीं था, अपनी पक्की रोज़ी नहीं थी। इसीलिए जब उन्हें महानगरों से बाहर धकेला गया तो वे अपने गांवों की ओर वापस चल पड़े। पैदल, सायकिल में, आॅटो में, पशुओं की भांति ट्रकों में। कहीं तो ठिकाना चाहिए था उन्हें।

बुंदेलखंड में भी सैंकड़ों मजदूर, कामगार वापस लौट आए हैं। निजी संस्थाओं और जनसेवकों ने उन्हें जिन्दा रहने के लिए दाना-पानी दिया, सहारा दिया। सरकार उन्हें मनरेगा के अंतर्गत काम दे रही है। 45 डिग्री की तपती धूप में सड़क बनाने, तालाब खोदने जैसा जीवट काम। पेट सब कुछ करा देता है। अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए जी तोड़ मेहनत करने में 45 डिग्री की धूप उन्हें डरा नहीं सकती है। बुंदेलखंड का हरेक प्रवासी मज़दूर अपने कटु अनुभवों के आधार पर यही कहता है कि वह अब कभी उन महानगरों में काम करने वापस नहीं जाएगा। उनका यह निश्चय उन्हें हौसला दे रहा है 45 डिग्री की जलती गरमी में। उस पर एक फूहड़ मैसेज व्हाट्सएप्प पर वायरल किया गया था जिसमें कुछ इस तरह की बातें थीं कि ‘अब मज़दूर मज़दूर बहुत हो गया। मजदूर तो अपने घर पहुंच ही जाएंगे और उन्हें मनरेगा के पैसे मिलेंगे और वे आराम से रहेंगे।’ आदि-आदि इसी तरह की ऊटपटांग शब्दावली थी। इस मैसेज को जिसने बनाया और जिन्होंने मुस्तैदी से फार्वर्ड किया उन्हें मानसिक बीमार ही कहा जा सकता है। वरना ऐसे मैसेज के पक्षधरों को 45 डिग्री के तापमान में काम कराना तो दूर, मात्र दिन भर खड़ा रख कर मनरेगा से दूने पैसे भी दिए जाएं तो वे मनरेगा और मैसेज सब कुछ भूल जाएंगे। 

जब स्थिति संकटों से घिरी हुई हो यानी पहले कोरोना और अब टिड्डी दल, तो हौसला ही उबार सकता है सारे संकट से। यह हौसला विवेक और आपसी सद्भावनापूर्ण विचार तथा व्यवहार से ही पैदा होगा। यह भ्रमित होने का समय नहीं वरन् हर तरह की परीक्षाओं में पास होने का समय है। अगर शायर अल्लामा इकबाल इस दौर में भारत में होते तो यही कहते- 
मुसीबत से आगे जहां और भी हैं 
अभी तो कई  इम्तिहां और भी हैं 
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(दैनिक जागरण में 28.05.2020 को प्रकाशित)
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Wednesday, May 27, 2020

चर्चा प्लस ..कोरोना संकट : डर के आगे जीत है - डाॅ शरद सिंह


Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस ..
कोरोना संकट : डर के आगे जीत है

- डाॅ शरद सिंह

        समय  विपरीत है  लेकिन
        न  टूटे   हौसला   देखो
        न बढ़ने  पाए  संकट का
        कि अब ये सिलसिला देखो

सागर में आंकड़ा सौ तक पहुंचना ही इस बात का साबूत है कि कहीं न कहीं चूक हुई है। वह भी जिम्मेदार लोगों से चूक हुई है। जिसमें आमजनता में मौजूद जिम्मेदार व्यक्ति भी शामिल हैं। लाॅक डाउन में ज़रा-सी छूट मिलते ही सड़कों पर भीड़ के रूप में निकल पड़ना। दूसरे शहर जाना और फिर लौट कर अपनी जांच कराने में कोताही बरतना। यह जानते हुए भी कि यदि व्यक्ति संक्रमित हो गया है तो वह स्वयं के ही नहीं अपने सगे-संबंधियों और परिचितों के लिए भी संकट का कारण बना रहा है। एक गैरजिम्मेदाराना हरक़त यह भी कि कन्टेन्मेंट क्षेत्र से सपरिवार पलायन कर दूसरे मोहल्ले में जा कर रहने लगना, वह भी पार्षद जैसे महत्वपूर्ण पद पर होते हुए। एक मोहल्ले में पार्षद की भूमिका उस मोहल्ले के पालक अथवा अभिभावक की भांति होती है। अब यदि अभिभावक ही लाॅकडाउन या कन्टेन्मेंट के नियमों का पालन नहीं करेगा तो उस मोहल्ले में किसी से धैर्य की आशा कैसे की जा सकती है?
Charcha Plus, Column of Dr (Miss) Sharad Singh in Dainik Sagar Dinkar, 27.05.2020

इस दौरान ज़िलास्तर पर प्रशासनिक फेरबदल भी हो गया है। अभी तक के कोरोना कार्यकाल में कार्यरत महिला कलेक्टर का स्थानांतरण भोपाल कर दिया गया और भोपाल से एक अन्य अनुभवी कलेक्टर ने आ कर कार्यभार सम्हाल लिया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि महिला कलेक्टर ने कोरोना प्रभावित क्षेत्रों में भी जा कर स्थितियों को संज्ञान में लिया। आमजनता ने भी उनके इस साहसिक कार्यप्रणाली को पसंद किया। उनके जाने पर शोक भी मनाया। किन्तु अपनी प्रिय कलेक्टर का कहना कितना माना इसके लिए अपने ग़िरेबांम में झंाकना होगा। जब भी लाॅकडाउन में छूट दी गई तो आमजनता से कलेक्टर की यही अपेक्षा रही कि लोग डिस्टेंसिंग का पालन करें, अति आवश्यक होने पर ही घर से निकलें और कोरोना के विरुद्ध सारे सुरक्षा नियमों का पालन करें। यदि इस अपेक्षा का ध्यान रखा गया होता तो सागर में कोरोना पीड़ितों की संख्या शून्य से बढ़ कर सौ तक न जा पहुंचती। कहने का आशय है कि प्रशासनिक फेरबदल को ले कर शोक मनाने अथवा प्रसन्न होने से कहीं अधिक जरूरी है कोरोना के विरुद्ध सुरक्षा नियमों का पालन करना। कतिपय लोग ऐसे भी हैं जिन्हें प्रशासनिक अथवा जनहित कार्यों के लिए लाॅकडाउन में निकलने का जो पास मिला हुआ है, उसका बेज़ा उपयोग कर के जोखिम पैदा करते रहते हैं। चार पहिया वाहन में एक ड्राईवर और दो सवारी के नियम का उल्लघंन करते हुए परिवार के चार से छः सदस्यों को गाड़ी में बिठा कर निकल पड़ते हैं। यदि कोई रोकता है तो सरकारी पास की धौंस तो है ही। ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि उनकी यह ‘ठसक’ एक दिन उनके सहित अनेक लोगों को मुसीबत में डाल सकती है।    

जहां तक कोरोना संक्रमण के शहर में निरंतर बढ़ने का प्रश्न है तो यह मानना होगा कि हर स्तर पर एक न एक चूक होती जा रही है। शहर में एक नर्स कोरोना पाॅजिटिव निकली। हिस्ट्री टटोलने पर पता चला कि उस नर्स ने एक डिलेवरी करायी थी। जांच की कड़ी जब प्रसूता तक पहुंची तब वह प्रसूता भी कोरोना पाॅजिटिव निकली। यह प्रकरण कई प्रश्न खड़े कर गया कि क्या डाॅक्टर और नर्स को प्रसूता में कोरोना के लक्षण दिखाई नहीं दिए अथवा कहीं कोई और चूक हुई? क्या नर्स के संपर्क में आए सभी लोग कोरोना निगेटिव पाए गए हैं या यहां भी कोई कड़ी छूट रही है?

भले ही यह प्रशासन की गाईडलाईन है कि कोरोना प्रभावित का नाम उजागर नहीं किया जाए लेकिन इस गाईड लाईन का प्रत्यक्ष असर यही है कि किसी मोहल्ले में एक भी कोरोना पाॅजिटिव केस सामने आता है तो अफ़वाहों और दहशत का बाज़ार गर्म हो जाता है। आपसी चर्चा के दम पर जब तक लोगों को कोरोना पाॅजिटिव का पता चला पाता है तब तक उससे संपर्क में आए लोग सावधान नहीं हो पाते हैं। यदि कोरोना पाॅजिटिव का नाम आधिकारिक तौर पर नहीं छिपाया जाए तो उसके संपर्क में आए लोग तत्काल चैकन्ने हांे सकेंगे और तत्काल अपनी जांच करवा सकेंगे। यूं भी इस संक्रमण के बारे में सभी को पता है। संक्रमित होना कोई लज्जाजनक स्थिति नहीं है। कोई भी व्यक्ति कभी भी स्वयं संक्रमित नहीं होना चाहेगा। अतः सभी को कोरोना संक्रमित के प्रति सहानुभूति रहती है और रहेगी। संक्रमण के प्रति समय रहते अलर्ट होने की दिशा में नाम छिपाने की गाईडलाईन पर जनहित में पुनः विचार किए जाने की आवश्यकता है।

जहां भय का संचार होता है वहां व्यक्ति से गलतियां भी होती हैं। जैसी कि उन तमाम लोगों से हुई जो सीधे कोरोना जांच कराने के बजाए झोलाछाप डाॅक्टर की शरण में गए। निश्चितरूप से उन्हें लगा होगा कि चुपचाप ईलाज करा कर काम चल जाए तो अच्छा है। कोरोना टेस्ट कराने के बाद वे कहीं किसी झमेले में न फंस जाएं। यदि यही सोच रही उनकी तो फिर मानना होगा कि अभी भी अनेक लोग डर के साए में जी रहे हैं और उनमें से कुछ संक्रमित भी पाए जा सकते हैं। यही स्थिति संक्रमण को रोकने के बजाए निरंतर बढ़ा रही है। जैसे भय के कारण पार्षद ने अपने परिवार सहित मोहल्ला बदल लिया। यदि वह या उसके परिवार का एक भी सदस्य संक्रमित हो चुका होगा तो वह कितने ही मोहल्ले बदल ले, संकट से बच नहीं सकता है। अतः जरूरी है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने मोहल्ले, अपने घर में साहस से डटा रहे और अपने डर पर काबू रखे। वह कहावत है न कि-‘‘डर के आगे जीत है’’। तो, हम सभी अपने डर पर काबू पाएं, कोरोना के विरुद्ध सुरक्षा नियमों का पालन करें तो जल्दी ही संक्रमितों का यह आंकड़ा सौ से वापस शून्य पर पहुंच सकेगा।  
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(दैनिक सागर दिनकर में 27.05.2020 को प्रकाशित)
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Monday, May 25, 2020

वीर योद्धा महाराणा प्रताप एवं महाराज छत्रसाल जयंती - डॉ शरद सिंह

वीर योद्धा महाराणा प्रताप एवं महाराज छत्रसाल जयंती आज 25.05.2020 को मैंने भी परंपरागत ढंग से दीप जला कर मनाई ... 
🚩आप सभी को शुभकामनाएं 🙏
-डॉ शरद सिंह

Thursday, May 21, 2020

विशेष लेख - कोरानाकाल के कलंक : धिक्कार है ऐसे लोगों को - डाॅ शरद सिंह


 Dr (Miss) Sharad Singh
विशेष लेख 
 कोरानाकाल के कलंक : 
           धिक्कार है ऐसे लोगों को
              - डाॅ शरद सिंह
      कोरोनाकाल समूची मानवजाति के लिए एक अभिशाप की तरह है। प्रत्येक व्यक्ति जब इससे जूझ रहा हो, डर के साए में जी रहा हो, ऐसे वातावरण में भी अपराधी मनोवृत्ति के लोग अपराध करने से बाज नहीं आ रहे हैं। यह उनके मानव होने को भी कलंकित करती है।  
      हाल ही में एक 24 वर्षाीय महिला जिसे कोरोना की संभावना के चलते क्वारंटाईन किया गया था घृणित अपराध की शिकार हो गई। जिस परिसर में उसे क्वारंटाईन किया गया था वहां नहाते समय दो युवकों ने उसकी वीडियो बना ली। इसके बाद वे युवक उस महिला पर अवैध शारीरिक संबंध बनाने के लिए दबाव बनाने लगे। साथ ही उन्होंने धमकी दी कि यदि उस महिला ने उनकी यह बात नहीं मानी तो वे वीडियो वायरल कर देंगे। यह अच्छी बात है कि उस महिला ने साहस की परिचय दिया और पुलिस के पास जा कर रिपोर्ट लिखा दी। इस घटना का अमानवीय पक्ष यह है कि एक कोरोना संभावित महिला जो स्वयं भयावह मानसिक दशा से गुज़र रही हो, उसे ब्लैकमेल करने का प्रयास किया गया। जबकि उसके प्रति सहानुभूति भरा दृष्टिकोण होना चाहिए था। दूसरा पक्ष यह भी कि उन हवस के अंधे युवकों को यह भी नज़र नहीं आया कि यदि कल को वह महिला कोरोना पाॅजिटिव निकलती है तो क्या वे उससे अवैध संबंध बनाने के बाद संक्रमण से अछूते रह जाएंगे? शायद ऐसे ही मानसिकता कें लोग छोटी बच्चियों को भी अपनी हवस का शिकार बनाते हैं। जिन्हें अपनी हवस के आगे उम्र, स्थिति, परिस्थिति, मानवता आदि कुछ भी दिखाई नहीं देती है। लानत है ऐसे लोगों को।
Charcha Plus, Column of Dr (Miss) Sharad Singh in Dainik Sagar Dinkar,  20.05.2020 
.         लाॅकडाउन के कारण अपराध का ग्राफ कुछ तो नीचे आया क्योंकि इस दौरान अधिकांश घर सूने नहीं रहे। लेकिन दूकानें चोरों कें लिए आसान निशाना रहीं। इस दौरान एक और तरह का अपराध तेजी से बढ़ा है। राष्ट्रीय महिला आयोग के आंकड़ों के अनुसार, फरवरी और मार्च की तुलना में अप्रैल में महिलाओं संबंधी साइबर क्राइम की संख्या बढ़ी है। 25 मार्च से 25 अप्रैल तक साइबर अपराध की कुल 412 शिकायतें मिली हैं जिनमें 396 शिकायतें अश्लील प्रदर्शन, अश्लील वीडियो, धमकी, फिरौती की मांग से लेकर ब्लैकमेल करना तक की थीं।  महिलाओं की तस्वीरों में छेड़-छाड़ कर उनकी मॉर्फ्ड तस्वीरों को इंटरनेट पर अपलोड करने की धमकी दिए जाने संबंधी शिकायतें मिलीं। जब पूरा देश बंद है, लोग घर से काम कर रहे हैं और इंटरनेट पर काफी समय बिता रहे हैं तो साईबर अपराधी भी सक्रिय हो गए हैं। हर किसी को जो इंटरनेट से जुड़ा है उसे भी सतर्क रहना होगा।

लाॅेकडाउन 1.0, 2.0, 3.0 और अब 4.0 में आम जन-जीवन की अधिकांश गतिविधियां बंद रहीं लेकिन अपराधियों की गतिविधियां इस दौरान भी ज़ारी रहीं। चरित्र पर संदेह के कारण हत्या, आपसी रंजिश के कारण हत्या, बेटे द्वारा पिता की हत्या, प्रेमियों द्वारा आत्महत्या, आर्थिक तंगी से परेशान हो कर आत्महत्या, बलात्कार, मारपीट, चोरी-डकैती थमी नहीं।

सागर शहर के भगवानगंज इलाके में आॅटोपार्टस और हार्डवेयर की कई छोटी-बड़ी दूकानें हैं। उनमें से एक दूकान में पिछवाड़े से दरवाज़ा तोड़ कर अज्ञात बदमाश घुस गए। उन्होंने दूकान के लाॅकर में रखे एक लाख सत्तर हज़ार रुपयों पर हाथ साफ़ कर दिया। भगवानगंज से ही लगे हुए इलाके सदर में एक सूने मकान से चोरों ने लगभग 80 हज़ार रुपए के सोने-चांदी के ज़ेवर चुरा लिए। उल्लेखनीय है कि यह सदर क्षेत्र इनदिनों कोरोना ब्लास्ट का केन्द्र होने और कंटनमेंट जोन बनने के कारण 24 घंटे पुलिस की सख्त निगरानी में है। जिनके घर से जेवर चोरी गए वे दम्पत्ति पिछले दो माह से शहर से बाहर थे। इसी सप्ताह घर लौटने पर उन्हें वरदात का पता चला।

चोरों के हौसले इतने बुलंद हैं कि उन्होंने सागर शहर के ही मोतीनगर थाना क्षेत्र में एक दालमिल के निकट के एक मंदिर के ताले तोड़ कर दानपेटी में रखी नगदी उड़ा दी। विडम्बना यह कि एक ओर मंदिर पुजारी संघ मंदिरों पर ताले डल जाने के कारण उत्पन्न अपने आर्थिक संकट के बारे में सरकार से गुहार लगाने को विवश हो गया और वहीं दूसरी ओर चोर-मंडली मंदिरों की दानपेटियों पर धावा बोल रही है।

बात अपराधियों के हौसलों की कही जाए तो दमोह के गैसाबाद थाना के हिनौता कला में एटीएम में की गई डकैती की चर्चा आएगी ही। हिनौता कला में रात 9.05 बजे एटीएम बूथ में लूट की वारदारत को फिल्मी स्टाईल अंजाम दिया गया। एटीएम बूथ में लूट की वारदात को अंजाम देने के लिए पहुंचे बदमाशों ने पहले बूथ में डायनामाइट फिट किया फिर उसमें बाइक से तार जोड़कर विस्फोट किया। शायद उन्हें इस बात की जानकारी थी कि बैंक के सीसीटीवी कैमरे बंद हैं। विस्फोट के कारण एटीएम में रखे रुपए हवा में उड़ने लगे। अपराधी उन्हें बटोरने में जुट गए। उसी दौरान ग्रामीणों ने विस्फोट की आवाज़ सुन कर एटीएम की ओर रुख किया लेकिन डकैतों ने माउजर लहरा कर ग्रामीणों को धमकाया और वहां से रुपए ले कर निकल गए।

कोरोना महामारी से बढ़ कर इस समय कोई संकट नहीं है। यह एक ऐसा संकट है जिसने सभी लोगों को एक ही नाव पर सवार कर दिया है। सोशल डिक्टेंसिंग, प्रवासी मजदूरों का सैंकड़ों की तादाद में सागर, दमोह, टीकमगढ़ से हो कर गुरज़ना। शहर के भीतरी तबके में कोरोना ब्लास्ट। कुलमिला कर संकटों की कोई कमी नहीं। लम्बे हो चले लाॅकडाउन से उकताई हुई जनता। बिना थके डटे हुए कोरोना वारियर्स। इस सारे परिदृश्य के बीच निरंतर बढ़ते अपराध के आंकड़े देख कर अपराधियों को कोसने का मन करता है। एक तो लोग पहले से परेशान हैं और उस पर आए दिन चोरों के धावे। इन चोरों, अपराधियों को शर्म भी नहीं आती है क्या? पुलिसतंत्र जनता की सुरक्षा हेतु लाॅकडाउन को टूटने से बचाने, आमजन की मदद करने में व्यस्त है। अब महाराष्ट्र तथा अन्य राज्यों से उत्तर प्रदेश के लिए सागर से हो कर गुज़रने वाले प्रवासी श्रमिकों को सुरक्षित उत्तर प्रदेश की सीमा तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी पुलिस पर ही है। अब वे कोरोना से जुड़ी व्यवस्थाएं सम्हालें या चोरों और अपराधियों के पीछे भागें? जब पूरा शहर, पूरा समाज, पूरी मानवता जीवन-संकट के दौर से गुज़र रही हो तब अपराध घटित होना मानवता पर दाग़ लगने के समान है। धिक्कार है ऐसे लोगों को जो मानवता के लिए संकट की घड़ी में अपराध जैसे अमानवीय कृत्य कर रहे हैं।
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(दैनिक सागर दिनकर में 20.05.2020 को प्रकाशित)
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Wednesday, May 20, 2020

लोग कोरोना त्रस्त, अपराधी अपराध में मस्त - डाॅ. शरद सिंह, दैनिक जागरण में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh

लेख 

लोग कोरोना त्रस्त, अपराधी अपराध में मस्त
  - डाॅ. शरद सिंह

         बुंदेली में एक कहावत है कि ‘एक तो दूबरे ऊपे से दो असाढ़ें’। यानी एक तो पहले ही बड़ा गहरा संकट और उस पर एक और संकट आ जाना। कोरोना महामारी से बढ़ कर इस समय कोई संकट नहीं है। यह एक ऐसा संकट है जिसने सभी लोगों को एक ही नाव पर सवार कर दिया है। सोशल डिक्टेंसिंग, प्रवासी मजदूरों का सैंकड़ों की तादाद में सागर, दमोह, टीकमगढ़ से हो कर गुरज़ना। शहर के भीतरी तबके में कोरोना ब्लास्ट। कुलमिला कर संकटों की कोई कमी नहीं। लम्बे हो चले लाॅकडाउन से उकताई हुई जनता। बिना थके डटे हुए कोरोना वारियर्स। इस सारे परिदृश्य के बीच निरंतर बढ़ते अपराध के आंकड़े देख कर अपराधियों को कोसने का मन करता है। एक तो लोग पहले से परेशान हैं और उस पर आए दिन चोरों के धावे। इन चोरों, अपराधियों को शर्म भी नहीं आती है क्या? पुलिसतंत्र जनता की सुरक्षा हेतु लाॅकडाउन को टूटने से बचाने, आमजन की मदद करने में व्यस्त है। अब महाराष्ट्र तथा अन्य राज्यों से उत्तर प्रदेश के लिए सागर से हो कर गुज़रने वाले प्रवासी श्रमिकों को सुरक्षित उत्तर प्रदेश की सीमा तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी पुलिस पर ही है। अब वे कोरोना से जुड़ी व्यवस्थाएं सम्हालें या चोरों और अपराधियों के पीछे भागें? जब पूरा शहर, पूरा समाज, पूरी मानवता जीवन-संकट के दौर से गुज़र रही हो तब अपराध घटित होना मानवता पर दाग़ लगने के समान है। 
सागर शहर के भगवानगंज इलाके में आॅटोपार्टस और हार्डवेयर की कई छोटी-बड़ी दूकानें हैं। उनमें से एक दूकान में पिछवाड़े से दरवाज़ा तोड़ कर अज्ञात बदमाश घुस गए। उन्होंने दूकान के लाॅकर में रखे एक लाख सत्तर हज़ार रुपयों पर हाथ साफ़ कर दिया। भगवानगंज से ही लगे हुए इलाके सदर में एक सूने मकान से चोरों ने लगभग 80 हज़ार रुपए के सोने-चांदी के ज़ेवर चुरा लिए। उल्लेखनीय है कि यह सदर क्षेत्र इनदिनों कोरोना ब्लास्ट का केन्द्र होने और कंटनमेंट जोन बनने के कारण 24 घंटे पुलिस की सख्त निगरानी में है। जिनके घर से जेवर चोरी गए वे दम्पत्ति पिछले दो माह से शहर से बाहर थे। इसी सप्ताह घर लौटने पर उन्हें वरदात का पता चला। चोरों के हौसले इतने बुलंद हैं कि उन्होंने सागर शहर के ही मोतीनगर थाना क्षेत्र में एक दालमिल के निकट के एक मंदिर के ताले तोड़ कर दानपेटी में रखी नगदी उड़ा दी। विडम्बना यह कि एक ओर मंदिर पुजारी संघ मंदिरों पर ताले डल जाने के कारण उत्पन्न अपने आर्थिक संकट के बारे में सरकार से गुहार लगाने को विवश हो गया और वहीं दूसरी ओर चोर-मंडली मंदिरों की दानपेटियों पर धावा बोल रही है। 
टीकमगढ़ में तो शराबी सीधे पुलिस से ही भिड़ गए। हुआ यूं कि लाॅकडाउन के कारण लोग अपने-अपने घरों में थे मगर कुंवरपुरा रोड स्थित ब्राह्मण कॉलोनी के सामने एक मकान में कुछ युवक शराब पीकर मोहल्ले में गाली-गलौज करने लगे। मना करने पर वे युवक लड़ने के लिए उतारू हो गए तो मोहल्ले के लोगों ने डायल 100 को सूचना दी। पुलिस ने मौके पर पहुंच कर उन्हें थाने चलने को कहा तो वे पुलिस से ही भिड़ गए।

बात अपराधियों के हौसलों की कही जाए तो दमोह के गैसाबाद थाना के हिनौता कला में एटीएम में की गई डकैती की चर्चा आएगी ही। हिनौता कला में रात 9.05 बजे एटीएम बूथ में लूट की वारदारत को फिल्मी स्टाईल अंजाम दिया गया। एटीएम बूथ में लूट की वारदात को अंजाम देने के लिए पहुंचे बदमाशों ने पहले बूथ में डायनामाइट फिट किया फिर उसमें बाइक से तार जोड़कर विस्फोट किया। शायद उन्हें इस बात की जानकारी थी कि बैंक के सीसीटीवी कैमरे बंद हैं। विस्फोट के कारण एटीएम में रखे रुपए हवा में उड़ने लगे। अपराधी उन्हें बटोरने में जुट गए। उसी दौरान ग्रामीणों ने विस्फोट की आवाज़ सुन कर एटीएम की ओर रुख किया लेकिन डकैतों ने माउजर लहरा कर ग्रामीणों को धमकाया और वहां से रुपए ले कर निकल गए।
लाॅकडाउन के कारण अपराध का ग्राफ कुछ तो नीचे आया क्योंकि इस दौरान अधिकांश घर सूने नहीं रहे। लेकिन दूकानें चोरों कें लिए आसान निशाना रहीं। इस दौरान एक और तरह का अपराध तेजी से बढ़ा है। राष्ट्रीय महिला आयोग के आंकड़ों के अनुसार, फरवरी और मार्च की तुलना में अप्रैल में महिलाओं संबंधी साइबर क्राइम की संख्या बढ़ी है। 25 मार्च से 25 अप्रैल तक साइबर अपराध की कुल 412 शिकायतें मिली हैं जिनमें 396 शिकायतें अश्लील प्रदर्शन, अश्लील वीडियो, धमकी, फिरौती की मांग से लेकर ब्लैकमेल करना तक की थीं।  महिलाओं की तस्वीरों में छेड़-छाड़ कर उनकी मॉर्फ्ड तस्वीरों को इंटरनेट पर अपलोड करने की धमकी दिए जाने संबंधी शिकायतें मिलीं। जब पूरा देश बंद है, लोग घर से काम कर रहे हैं और इंटरनेट पर काफी समय बिता रहे हैं तो साईबर अपराधी भी सक्रिय हो गए हैं। हर किसी को जो इंटरनेट से जुड़ा है उसे भी सतर्क रहना होगा। 

लाॅेकडाउन 1.0, 2.0, 3.0 और अब 4.0 में आम जन-जीवन की अधिकांश गतिविधियां बंद रहीं लेकिन अपराधियों की गतिविधियां इस दौरान भी ज़ारी रहीं। चरित्र पर संदेह के कारण हत्या, आपसी रंजिश के कारण हत्या, बेटे द्वारा पिता की हत्या, प्रेमियों द्वारा आत्महत्या, आर्थिक तंगी से परेशान हो कर आत्महत्या, बलात्कार, मारपीट, चोरी-डकैती थमी नहीं। क्योंकि लोग कोरोना से त्रस्त है और अपराधी अपराध में मस्त हैं। 
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(दैनिक जागरण में 20.05.2020 को प्रकाशित)
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चर्चा प्लस - कोरोना ब्लास्ट: लाॅकडाउन की हिल गई चूलें - डाॅ शरद सिंह


Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस  ..... 
कोरोना ब्लास्ट: लाॅकडाउन की हिल गई चूलें   
- डाॅ शरद सिंह

      ‘ग्रीनजोन’ से  ‘रेड’ में  पहुंचे,  
       और करेंगे कितनी भूलें
        संकट में है शहर समूचा, 
         लाॅकडाउन की हिल गई चूलें
    मध्यप्रदेश के अधिकांश शहर जहां ग्रीन जोन में पहुंच गए है वहीं सागर शहर रेड जोन में जा खड़ा हुआ है। सागर शहर में कोरोना पाॅज़िटिव की संख्या जिस तरह बढ़ती गई वह शहर के लोगों कंे लिए किसी सदमें से कम नहीं है। जहां आरम्भ में एक भी कोरोना पाॅज़िटिव मरीज नहीं था वहीं अब संख्या 40 के पार जा रही है। रेड जोन का धब्बा सागर शहर के माथे पर लग चुका है। चंद लोगों की लापरवाहियों ने पूरे शहर को संकट में डाल दिया है। लाॅकडाउन के चैथे चरण में पहुंचते-पहुंचते जहां छूट मिलने की उम्मींद जागी थी वह एक ही झटके में बिखर गई। बेशक़ हर कोरोना मरीज़ सहानुभूति का पात्र है क्यों कि कोई नहीं चाहता है कि उसे इस त्रासदी की चपेट में आना पड़े किन्तु दुख इस बात का है कि जो पढ़े-लिखे हैं, परिपक्व आयुवर्ग के हैं उनसे यह लापरवाहियां हुईं। या तो वे अतिरिक्त आत्मविश्वास में थे कि ‘‘हमें कोरोना छू भी नही  सकता है’’ या फिर वे भयभीत थे कि ‘‘कहीं कोरोना पाॅज़िटिव निकल आए तो क्या होगा?’’ एक झोलाछाप डाॅक्टर से इलाज कराते रहना, वह भी इस घातक समय में, आत्मघात से कम नहीं है। लापरवाही उस डाॅक्टर से भी हुई जिसने वर्तमान परिस्थितियों की गंभीरता को नहीं समझा। समय रहते न तो उसने बीमार को कोरोना जांच के लिए जिला अस्पताल जाने की सलाह दी और न स्वयं प्रशासन को सूचना दी।  
Charcha Plus, Column of Dr (Miss) Sharad Singh in Dainik Sagar Dinkar, 
          एक कोरोना पाॅज़िटिव की लापरवाही को किस श्रेणी में रखा जाए यह तय करना कठिन है। इसे मूर्खता, लापरवाही या ढिठाई कहां जाए कि जिस व्यक्ति को क्वारंटाईन कर के रखा गया था और उसका जांच सैंपल जांच के लिए भेजा जा चुका था, वह व्यक्ति जांच रिजल्ट आने से पहले चुपके से अपनी रिश्तेदारी में एक शादी समारोह में शामिल हो आया। जब रिजल्ट पाॅजिटिव आया तब उसके क्वारंटाईन नियमों के तोड़ने का भी पता चला। पूछे जाने पर उसने भोलेपन से उत्तर दिया कि वह गांव गया था। वहां उसने शादी अटैंड की। चाय-नाश्ता किया और वापस आ गया। वहां वह किसी से मिला नहीं, किसी के निकट नहीं गया। सोचने की बात है कि क्या यह संभव है कि विवाह-समारोह में शामिल होने वाला व्यक्ति बिना किसी से मिले चाय-नाश्ता भी कर ले और चुपचाप वापस आ जाए। इस व्यक्ति ने अपने उन सगे लोगों के पास दुख का तोहफा पहुंचा दिया जहां वह उनकी खुशी में शामिल होने गया था। यदि वहां इससे लोगों को संक्रमित कर दिया होगा तो आंकड़े और अधिक पीड़ादायक हो जाएंगे। 
        कोरोना वारियर्स पहले ही असीमित दबाव में काम करते हुए डटे हुए हैं, उनके लिए भी इस तरह और अधिक जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ाने को यदि लापरवाही कही जाए तो अपने परिवारजन, अपने संबंधियों, मित्रों और परिचितों को संक्रमण के दायरे में लाना किसी अपराध से कम नहीं है। हाल ही में शहर में कोरोना ब्लास्ट में 40 का जो आंकड़ा सामने आया उसमें एक छोटी बच्ची भी शामिल है। वह निरपराध, मासूम बच्ची अब किसी की लापरवाही का दण्ड भुगतेगी। 
अब अनेक लोग लाॅकडाउन के प्रति उकताहट जताने लगे हैं लेकिन यह सभी को समझना होगा कि यदि लाॅकडाउन से छुटकारा पाना है तो कोरोना से बचे रहना होगा। यह तभी संभव है जब कोरोना से बचाव के नियमों का पालन किया जाए। मगर देखने में यही आ रहा है कि लाॅकडाउन में थोड़ी सी छूट मिलते ही लोग सड़कों पर टूट पड़ते हैं। दूकाने खुलते ही भीड़ लगाने लगते हैं। जिससे प्रशासन को बार-बार कड़ाई बरतनी पड़ती है। अतः यदि लाॅकडाउन से आजादी चाहिए तो धैर्य तो रखना ही होगा। सिर्फ़ प्रशासन को कोसने से कुछ हासिल नहीं होने वाला है। जब प्रदेश के लगभग 42 जिले ग्रीन जोन में चले गए तब सागर शहर रेड जोन की परिधि में आ गया। यह दुख, संकट और शर्म तीनों की बात है।
          इन दिनों जब सबका ध्यान उन प्रवासी मज़दूरों की ओर केन्द्रित रहा है जो महाराष्ट्र तथा अन्य राज्यों से उत्तर प्रदेश में अपने-अपने घरों के लिए सागर से हो कर गुज़र रहे हैं। कोरोना संक्रमण की संभावनाएं उनकी ओर से सबसे अधिक थी। किन्तु ताज़ा संकट उन मुसीबत के मारों की ओर से नहीं बल्कि शहर के भीतर से ही आया। अब यह और अधिक न बढ़े, इसके लिए शहरवासियों को धैर्य, नियमों का पालन और अपनी किसी भी बीमारी के प्रति जागरूकता का परिचय देना होगा वरना ‘‘कोरोना ब्लास्ट’’ के बाद नौबत ‘‘कोरोना सुनामी’’ की भी आ सकती है।   
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(दैनिक सागर दिनकर में 20.05.2020 को प्रकाशित)
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प्रगतिशील लेखक संघ सागर की ऑनलाइन गोष्ठी में डॉ शरद सिंह का काव्य पाठ किया

Dr (Miss) Sharad Singh
प्रगतिशील लेखक संघ सागर की रविवार 18.05.2020 को ऑनलाइन सम्पन्न हुई गोष्ठी में मैंने कोरोनाकाल के दुखों से विषयांतर करते हुए अपनी प्रेम कविता पढ़ी जिसकी कुछ पंक्तियां थीं- 
"शब्द खो देते हैं
जब अपनी ध्वनियां
और मुखर हो उठता है अव्यक्त मौन
ठीक वहीं से 
चल पड़ती है अंतर्मन की स्वर-वायु
और गूंज उठता है
प्रेम का अनहद नाद..."
🚩साहित्यिक सरोकारों को प्रमुखता देने के लिए हार्दिक धन्यवाद दैनिक भास्कर 🙏
दिनांक 20.05.2020
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Tuesday, May 19, 2020

Sahitya Sagar Ep 11 | Dr. Sharad Singh reciting her poems | |Pradhan Nama |



Dr (Miss) Sharad Singh

लॉकडाउन और मेरा साहित्य सृजन - डॉ शरद सिंह, दैनिक भास्कर में प्रकाशित


Dr (Miss) Sharad Singh
दैनिक भास्कर में "लॉकडाउन और मेरा साहित्य सृजन" के रूप में मेरी रचनात्मकता के बारे में मुझसे की गई चर्चा प्रकाशित हुई है, जो मेरे उस लेखन पर केंद्रित है जिसे मैं विगत चार-पांच वर्षों से पूरा करना चाह रही थी लेकिन समयाभाव में कर नहीं पा रही थी अब लॉकडाउन की इस अवधि में मिले पर्याप्त समय में मैंने जिनमें सबसे महत्वपूर्ण जिसे कहा जा सकता है वह है.. संस्मरण लेखन कार्य। इसे मैंने पूरा कर लिया है। ... मैं धन्यवाद देती हूं दैनिक भास्कर को, जिसने लॉकडाउन के दौरान की मेरी इस उपलब्धि को अपने पाठकों के साथ साझा करने का मुझे अवसर प्रदान किया।
हार्दिक धन्यवाद #दैनिकभास्कर 🙏
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"जी हां, कोरोना लॉकडाउन की स्थिति को मैंने विराम नहीं बल्कि जीवन के एक नये आयाम की भांति स्वीकार किया है। लॉकडाउन के इस लम्बी अवधि में मैंने वो बहुत सारे काम पूरे कर लिए हैं, जिन्हें मैं साहित्यिक, सामाजिक आदि व्यस्तताओं के कारण पूरा नहीं कर पा रही थी। जिनमें सबसे महत्वपूर्ण जिसे कहा जा सकता है वह है.. संस्मरण लेखन कार्य। जो पिछले 5-6 वर्षों से अत्यंत धीमी गति से आगे बढ़ने के कारण पूरा नहीं हो पा रहा था, उसे मैंने पूरा कर लिया है। इसमें मैंने बचपन से कॉलेज लाईफ तक की उन यादों को सहेजा है जिनके बारे में मुझे लगता है कि इसे पढ़ कर मेरी और आने वाली पीढ़ी के लोग समझ सकेंगे कि हमने पर्यावरण शुद्धता, सोशल बाऊंडिंग में बहुत कुछ खो दिया है फिर भी अगर कोशिश करें तो उनमें से बहुत कुछ वापस पाया जा सकता है। जीवन से जुड़े जो मुहावरे आज सिर्फ़ शाब्दिक और बेजान है वे पहले जीवित थे और मैंने उनके साथ अपने आरम्भिक जीवन का एक हिस्सा बिताया है। ...और इसीलिए मैंने अपने संस्मरणों के संकलन को नाम दिया है - "ज़िन्दा मुहावरों का समय"। 
              दैनिक भास्कर के सुधी पाठकों के लिए प्रस्तुत है, मेरी ताज़ा संस्मरणात्मक पुस्तक 'ज़िंदा मुहावरों का समय' की पांडुलिपि से एक अंश....
       *यह पीढ़ी तो 'कोल्हू के बैल' जैसे मुहावरों को भी नहीं जानती है। 'रंगरेज़' के मौलिक संस्करण से कोसों दूर है। इस तमाम चिन्तन-मनन ने अचानक मुझे मेरे बचपन की ओर धकेल दिया। उस बचपन की ओर जो मध्यप्रदेश के एक बहुत ही छोटे से क़स्बेनुमा ज़िला मुख्यालय में व्यतीत हुआ था। उस क़स्बेनुमा शहर का नाम था पन्ना। मैं जानती हूं कि ऐसा शहर जो अभी भी मौज़ूद हो उसके नाम के साथ ‘‘था’’ का प्रयोग करना सरासर ग़लत है, लेकिन क्या करूं ... पन्ना शहर आज मेरा वाला पन्ना तो रहा नहीं, वह तो अतीत के पन्नों में सिमट कर रह गया है। मेरे वाले पन्ना शहर में बहुत सी ऐसी चीजें थीं जो आज नहीं है। मेरा जन्म पन्ना में हुआ। मैंने दुनिया को जाना तो सरकारी आवास के उस छोटे से घर से जो मेरी शिक्षिका मां डॉ. विद्यावती के नाम अलॉट था। लेकिन मेरा वह घर जिस परिसर में था वह हिरणबाग कहलाता था। राजाओं के जमाने का था वह। कभी वहां हिरण पाले जाते थे। फिर जब शासकीय मनहर कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय स्थापित हुआ तो स्थानांतरण पर बाहर से पन्ना आने वाली शिक्षिकाओं के लिए सुरक्षित आवास की समस्या को दूर करने के लिए हिरणबाग की चारदीवारी के भीतर छः क्वार्टर बनाए गए। एक-दूसरे से सटे हुए। परस्पर इतने नज़दीक कि कोई एक आवाज़ दे तो बाकी पांचों घरों से मदद दौड़ पड़े। वैसे सुरक्षा के लिए मुख्य प्रवेश द्वार पर एक बड़ा-सा फाटक तो था ही। हिरणबाग के उस परिसर में खेलने की जगह ही जगह थी। वह परिसर अपने-आप में किसी शहर से कम नहीं लगता था। वह हम बच्चों की अपनी ही एक दुनिया थी। हम दो बहनें मैं और मेरी दीदी वर्षा सिंह और हमारे घर से चार घर छोड़ कर रहने वाली शेवड़े आंटी के दो बेटे राजू और अज्जू  हम चारों कांच के कंचों से ले कर ‘‘अंधेर नगरी चौपट राजा’’ नाटक तक खेलते। शेवड़े आंटी भी मेरी मां के साथ शिक्षिका थीं। इसी निश्चिंत बचपन में मैंने देखा था कोल्हू का बैल। "
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दिनांक 19.05.2020

Thursday, May 14, 2020

तीन पहियों पर सवार जीने की ज़द्दोज़हद- डाॅ. शरद सिंह, दैनिक जागरण में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh
तीन पहियों पर सवार जीने की ज़द्दोज़हद
- डाॅ. शरद सिंह
मित्रो, आज दैनिक जागरण में प्रकाशित मेरा यह लेख जो समर्पित है लॉकडाउन में मुबंई से उ.प्र. ऑटो से घर लौटते मज़दूरों की दुर्दशा को...
❗हार्दिक आभार "दैनिक जागरण" 🙏
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लेख- 
प्रवासी मजदूरों की घर वापसी :
तीन पहियों पर सवार जीने की ज़द्दोज़हद
- डाॅ. शरद सिंह                                                                
      दृश्य 1:- सागर के भैंसा नाका के पास लम्बी कतार सोशल डस्टेंसिंग के साथ भोजन पाने के लिए। गुरुद्वारा कमेटी का लंगर भरसक प्रयास में जुटा हुआ है कि कोई भी मजदूर और उसका परिवार वहां से भूखा न गुज़रे। प्रतिदिन 10 से 12 हज़ार प्रवासी मज़दूर सागर से गुज़र रहे हैं जो महाराष्ट्र से उत्तर प्रदेश की ओर जा रहे हैं। सायकिल और पैदल के साथ ही सैंकड़ों आॅटोरिक्शा से भरी हुई हैं हाईवे। जिस हाईवे पर लम्बी दूरी की आॅटोरिक्शा चलने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, उस हाईवे पर महाराष्ट्र के रजिस्ट्रेशन वाली आॅटोरिक्शा की लम्बी कतार देख कर अपनी आंखों पर यक़ीन करना कठिन हो जाता है। 
Dainik Jagaran, Article of Dr (Miss) Sharad Singh, 14.05.2020
      दृश्य 2:- सागर के लेहदरा नाके पर लगभग दो घंटे से अधिक समय तक लगी रही लम्बी कतार। लगभग एक-सी कहानी है सागर से हो कर गुज़रते हर मजदूर परिवार की, चाहे वह किसी फैक्ट्री में काम करता रहा हो, वह होटल में बरतन धोता रहा हो, साग-सब्जी की रेहड़ी लगाता रहा हो या फिर आॅटोरिक्शा चलाता रहा हो। 
जगप्रसाद मुंबई में आॅटो चलाते थे। लाॅकडाउन लागू होते ही उनकी आॅटो चलना बंद हो गई। लाॅकडाउन के पहले चरण में इस उम्मींद में वे वहीं टिके रहे कि शायद संकट जल्दी टल जाए। पर ऐसा हुआ नहीं। अपनी कमाई का आधा हिस्सा वे पहले ही अपने गंाव सीतापुर (उ.प्र.) भेज चुके थे। बचे हुए पैसों से कुछ दिन जैसे तैसे कटे। मुंबई जैसे शहर में जहां बिना पैसों और बिना रोजगार के एक पल टिकना कठिन हो वहां अपने चार बच्चे और पत्नी के साथ जगप्रसाद भला कितने दिन काट पाते। जमापूंजी खत्म होते-होते उन्होंने अपने साथियों की सलाह मानी और मुंबई छोड़ कर अपने गांव लौटने का फैसला किया। तब तक बस, ट्रेन पर लाॅडडाउन पूरी तरह लागू हो चुका था। कुछ ट्रकें चोरी-छिपे मजदूरों को महाराष्ट्र से बाहर पहुंचा रही थीं। लेकिन वे जितने पैसे मांगती थीं उतने जगप्रसाद के पास नहीं थे। सौभाग्य से जगप्रसाद का अपना आॅटोरिक्शा था। वे और उनके पांच साथी अपने-अपने आॅटोरिक्शा पर अपने परिवार ले कर मुंबई से निकल पड़े। वहां से निकलना आसान नहीं था। निकलने के पहले खोली (एक कमरे का मकान) मालिक ने खोली का किराया मांगा। उसने शर्त रखी कि या तो वे आॅटोरिक्शा छोड़ जाएं या फिर किराया चुका दें। जगप्रसाद और उसके साथियों ने किराया चुकाना उचित समझा। नतीजन उनके पास बच्चों के लिए दूध खरीदने के पैसे भी नहीं बचे। जो बचे थे उसे बचा कर रखना था आॅटोरिक्शा के ईंधन के लिए। चार छोटे बच्चे और उन बच्चों की कमजोर-सी मां। पांचों का दायित्व जगप्रसाद पर। मगर घर पहुंच कर अपने परिवार की जान बचाने की ललक ने उन्हें जीवटता प्रदान की और वे अपने ईष्टदेव का नाम ले कर मुंबई से निकल पड़े। जगप्रसाद ने मीडिया को बताया कि मध्यप्रदेश में प्रवेश करने के बाद उन्हें जगह-जगह पर सहायता मिली और भोजन-पानी मिलता रहा। सागर के बाद वे उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश कर जाएंगे। उन्हें पूरी उम्मींद है कि वे अपने गांव सकुशल पहुंच जाएंगे। वहां पहुंचने के बाद उनकी रोजी-रोटी का क्या होगा, इस सवाल का उत्तर फिलहाल उनके पास नहीं है क्योंकि घर लौटने वालों की संख्या अधिक है और गांव वही हैं जिन्हें वे रोजगार न मिलने के कारण छोड़ कर मुंबई गए थे। अब मुंबई ने उन्हें छोड़ दिया है, शायद गंाव उन्हें अपना ले। देश के प्रधानमंत्री द्वारा घोषित पैकेज के बारे में अभी उन्हें कोई जानकारी नहीं है लेकिन शायद अपने गांव पहुंचने पर उन्हें कोई सहारा मिल जाए। अभी तो एक-एक आॅटो में पांच से सात लोग सवार हो कर दूरियां तय कर रहे हैं इनके साथ कई दुधमुंहे बच्चे भी हैं जिन्होंने अभी दुनिया को ठीक से देखा ही नहीं है।

सागर से गुज़रने वाले सैकड़ों आॅटोरिक्शा में सभी आॅटो मालिक नहीं हैं कुछ जान-परिचय में ‘लिफ्ट’ ले कर साथ चल पड़े हैं। ऑटो से उत्तर प्रदेश जाने वाले मजदूरों ने पत्रकारों को बताया कि महाराष्ट्र की बाॅर्डर पर चेक पोस्ट पर ऑटो नहीं निकलने दे रहे हैं। कुछ ऑटो में पुलिस ने लाठी मारी तो लौट गए, हम लोग यह सोचकर निकल आए कि यहां कोरोना से मरें या घर पहुंचने की ज़द्दोजहद में भूख-प्यास से मरें। एक बार किस्मत आजमा कर देख लें। शायद खुद को और अपने परिवार को बचा पाएं।  तन और मन की टूटन के आगे हार रहे हैं कुछ मजदूर। निजी और प्रशासनिक सहायता भी उनकी हताशा को सम्हाल नहीं पा रही है। वेे घर से निकले थे अपना गांव छोड़ कर। कुछ अपनों को साथ ले कर तो कुछ अपनों को वहीं छोड़ कर। मुंबई, देश की औद्यौगिक राजधानी का दर्ज़ा रखने वाली मुंबई। सपनों को पूरा करने वाली नगरी मुंबई। उसी मुंबई की ‘लाईफ लाईन’ का एक बड़ा अभिन्न हिस्सा वहां से विस्थापित हो गया है। वे जहां से भी गुज़रते हैं, वहां ऐसा दृश्य निर्मित हो जाता है मानो किसी एक देश के शराणार्थी किसी दूसरे देश जा रहे हों। गनीमत यही है कि इन विस्थापितों को दूसरे देश में नहीं अपितु अपने ही देश में प्रवासी मजदूर के रूप में दूरी नापनी पड़ रही है। अपना देश, अपने लोग होने के कारण उन्हें रास्ते में सहायता भी मिल रही है। कहीं भोजन, तो कहीं पानी तो कहीं दवाएं। लेकिन ये सब सहायताएं उनके घाव पर ठंडक तो रख रही हैं लेकिन घाव नहीं भर पा रही हैं। नाकाफी है यह सब कुछ इन प्रवासी मजदूरों की संख्या के सामने।  

जिस मुंबई ने उन्हें सहारा दिया था उसी ने उन्हें बेसहारा कर दिया। यह चुभन उनके दिल के घाव को नासूर बनाती जा रही है। फिर भी यह अच्छी बात है कि हौसला देने वाले उन्हें हौसला दे रहे हैं कदम-कदम पर सहायता के रूप में।      
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(दैनिक जागरण में 14.05.2020 को प्रकाशित)
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Wednesday, May 13, 2020

चर्चा प्लस ... पेट के सवाल का जानलेवा जवाब - डाॅ शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस

पेट के सवाल का जानलेवा जवाब
  - डाॅ शरद सिंह 

   पेट की ख़ातिर घर से निकले, 
   पेट की ख़ातिर धोखा खाया।
   पेट ने जब न साथ दिया, तब, 
   मौत ने आ कर गले लगाया।
आज अपनी ही ग़ज़ल की यह लाईनें मुझे झकझोर रही हैं। मेरी आंखों के सामने घूमती रहती है  लाॅकडाउन के दौरान राज्यों, शहरों और गांवों के बीच मज़दूरों की भीड़। चप्पलें टूट चुकी हैं। जेबें खाली हो चुकी हैं। पांव थक चले हैं लेकिन हौसले खत्म नहीं हुए है। मन में उम्मींद है वापस अपने गांव पहुंच जाने की। वे उस गांव की ओर जा रहे हैं जिसे उन्हें छोड़ना पड़ा था पेट की ख़ातिर। गांव उनके परिवार का पेट नहीं भर पा रहा था। काम का अभाव उन्हें महानगरों की ओर खींच ले गया। मेहनत-मजदूरी करने पर बहुत तो नहीं, मगर इतना तो मिल ही जाता था कि अपने दो वक़्त की रोटी के लिए बचाकर बाकी अपने गांव अपने परिवार के पास भेज सकें। बहुत से मजदूर तो दस-बीस साल पहले ही अपना गंाव छोड़ कर दिल्ली, मुंबई आदि महानगरों में अपना पसीना बहा रहे थे। उनके साथ उनकी पत्नी और बच्चे भी वहीं थे। किसी-किसी के बूढ़े मां-बाप भी उनके साथ थे। लाॅकडाउन शुरू हुआ तो मिल, फैक्ट्री और कारखाने बंद हो गए। निर्माणकार्य थम गए। हजारों मजदूर एक झटके में बेरोज़गार हो गए। मालिकों और ठेकेदारों ने उनसे मुंह मोड़ लिए। पूरी तरह दोषी वे भी नहीं हैं क्योंकि यदि आमदनी नहीं है तो वे मजदूरी कहां से दें? लाॅकडाउन ने उन्हें कठोर और निर्दयी बना दिया। ठीक यही रवैया अपनाया मकानमालिकों ने। उन्होंने मजदूरों से उनकी खोलियां और कमरे खाली करवा लिए। यह भी नहीं सोचा कि बेरोजगार मजदूर अपना परिवार ले कर कहां जाएगा? यह भी नहीं सोचा कि उनके द्वारा खाली करवाए गए कमरों और खोलियों में रहने के लिए इस दौरान कोई दूसरा किराएदार भी नहीं आएगा। मजदूरों को बाहर धकेल दिया गया उनकी किस्मत के सहारे। उस किस्मत के सहारे जो पहले ही उनका साथ छोड़ चुकी है। 
Charcha Plus Column of Dr (Miss) Sharad Singh, 13.05.2020 
सरकार ने ट्रेन और बसें चलाईं लेकिन मज़दूरों की तादाद के आगे यह नाकाफी निकलीं। अफ़वाहों की गर्म हवाओं ने चिलचिलाती धूप को भी फ़ीका कर दिया। मज़दूरों से यात्री किराया वसूले जाने की बात, क्वारंटाईन किए जाने का भय और चैकपोस्ट पर चैकिंग से उपजे अज्ञात भय ने उन्हें धकेल दिया जंगलों, खेतों और रेल की पटरियों की ओर। उन्हें लगा कि जो रेल की पटरियां उन्हें उनके गांव से महानगर की ओर ले गई थीं, वे ही पटरियां वापस उन्हें उनके गंाव पहुंचा देंगी। रेल और रेल की बेजान पटरियां मजदूरों की भावनाओं को समझ नहीं सकीं और आए दिन एक न एक मजदूर के कट कर मरने के समाचार आने लगे। सन्नाटा तब छा गया जब औरंगाबाद की घटना हुई। जिसमें कई मजदूर एक साथ रेल से कट कर मर गए। वे सैंकड़ों किलोमीटर का सफ़र तय कर के अपने गंाव लौट रहे थे। रास्ते में स्वयंसेवियों के सौजन्य से कुछ रोटियां मिल गईं। जिनमें से कुछ रोटियां खाईं और कुछ आगे के रास्ते के लिए अपने सीने पर बंाध लीं। थकान से टूट चला शरीर और रोटी के चंद निवालों का सुकून। उन्हें रेल की पटरी पर ही नींद आ गई। वे गहरी नींद में सो गए। रेल आई तो उन्हें काटती हुई गुज़र गई। रोटियां सीने पर बंधी रह गईं और इहलीला समाप्त हो गई। घटनास्थल पहुंच कर जिसने भी वह हृदयविदारक दृश्य देखा वह सकते में आ गया। पेट का सवाल उन मजदूरों की दर्दनाक मौत के रूप में अपना उत्तर दे चुका था। 
12 साल की एक नन्हीं-सी लड़की अपने मजदूर मां-बाप के साथ तेलंगाना से पैदल छत्तीसगढ़ अपने गांव जा रही थी। लगभग 150 किमी लंबे रास्ते पर वह तीन दिनों से चल रही थी और घर पहुंचने से महज 14 किलोमीटर पहले उसने दम तोड़ दिया। वह भी हल नहीं कर पाई अपने पेट का सवाल।
रोंगटे खड़े कर देने वाली हृदयविदारक घटनाओं के अनवरत सिलसिले में एक घटना मध्यप्रदेश के सागर जिले की बंडा तहसील की भी जुड़ गई। उस अभागे मजदूर का नाम था रामबलि। सिद्ध़ार्थनगर उत्तर प्रदेश का रहने वाला। वह मुंबई के पालघर जिले में एक ठेकेदार के टोल नाके पर मजदूरी करता था। मुंबई से निकले अन्य मजदूरों की भांति रामबलि भी अपने घर सिद्ध़ार्थनगर के लिए पैदल ही निकल पड़ा था। बंडा से गुज़रते समय वह अचानक गिर पड़ा और मर गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार रामबलि की मौत डी-हाइड्रेशन के चलते हुई। पैसे तो दूर, पीने का पानी भी नहीं था उसके पास। वह नहीं झेल पाया अपनी थकान, भूख और प्यास। हाड़ तोड़ मेहनत करने वाला एक मजदूर पेट के इस सवाल पर फेल हो गया। परिणाम में मिली उसे मौत।
देश के बंटवारे के दौरान जिस आग के दरिया के दर्दनाक किस्से पढ़े हैं, कुछ वैसी ही आग की आंच अब महसूस होने लगी है सभी को। जो महानगरों से लौट कर सकुशल अपने गंाव-घर पहुंच रहे हैं, वे क्वारंटाईन के बाद क्या अपने और परिवार के पेट का सवाल एक बार फिर हल कर पाएंगे? यह एक बहुत बड़ा और चुनौती भरा सवाल मुंह बाए खड़ा है प्रशासन और मजदूरों दोनों के सामने। जिसका जवाब समय रहते पाना होगा वरना मौत निगलती रहेगी संभावनाओं को।               ------------------------------
(दैनिक सागर दिनकर में मेरे चर्चा प्लस कॉलम में 13.05.2020 को प्रकाशित)
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घर लौट रहे प्रवासी मजदूर... वे मज़बूर हैं ... क्योंकि मज़दूर हैं, मौत क़रीब है और घर दूर है - डॉ. शरद सिंह, दैनिक जागरण में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh
घर लौट रहे प्रवासी मजदूर... वे मज़बूर हैं ... क्योंकि मज़दूर हैं, मौत क़रीब है और घर दूर है - डॉ. शरद सिंह
       दैनिक जागरण में प्रकाशित मेरा यह लेख जो समर्पित है लॉकडाउन में घर लौटते मज़दूरों की दुर्दशा को ...
❗हार्दिक आभार "दैनिक जागरण" 🙏
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लेख-
घर लौट रहे प्रवासी मजदूर....
वे मज़बूर हैं...क्योंकि मज़दूर हैं, मौत क़रीब है और घर दूर है
- डॉ. शरद सिंह
         वे इंसान हैं, वे इस देश के नागरिक हैं, वे मतदाता हैं लेकिन आज वे हज़ारों की तादाद में हज़ारों किलोमीटर के सफ़र में निकल पड़े हैं, अपने छोटे-छोटे बच्चों से ले कर 90-95 साल के माता-पिता को साथ ले कर। वे न तो एक शहर से निकले हैं और ही उन्हें किसी एक गांव जाना हैं। फिर भी सब की एक कहानी है। वे देश के विभिन्न नगरों-महानगरों से निकले हैं और लौट रहे हैं अपने-अपने घरों की ओर। दिल में सिर्फ़ एक उम्मींद लिए कि वे एक दिन अपने गांव, अपने लोगों के पास पहुंच जाएंगे। जिस दिन दुनिया ‘मदर्स डे’ मना रही थी ठीक उसी दिन ‘मदर्स डे’ से अनजान एक प्रौढ़ अपनी नब्बे साल की मां को सायकिल पर बिठा कर हजारों किलोमीटर की यात्रा कर रहा था ताकि अपनी बूढ़ी मां को वापस गांव ले जा सके। उसे न ट्रेन मिली, न बस, उसने अपनी जमापूंजी से सायकिल खरीदी और जीवन के एक और संघर्ष में कूद पड़ा। वह नहीं जानता है कि वह इस संषर्ष में जीतेगा या हारेगा? किन्तु वह यह जरूर जानता है कि हार का मतलब है मौत।

अधिकतर मजदूर अन्य राज्यों में या तो औद्योगिक प्रतिष्ठानों में काम कर रहे थे, घरेलू कार्यों में लगे थे या फिर प्राइवेट कंपनियों में नौकरी कर रहे थे। वहीं दिल्ली की एक मिल में काम करने वाले चित्रकूट के निवासी पन्नालाल को जो भूख और अपमान दिल्ली में मिला उसने उसे दिल्ली छोड़ने को विवश कर दिया। पन्नालाल के मन में तड़प इस बात की है कि जहां वह दस साल से काम कर रहा था, अपने मालिक को लाभ पहुंचा रहा था, उसी मालिक ने हाथ खड़े कर दिए कि जब मिल ही बंद हो गई तो अब मैं तुम्हें पैसे कहां से दूं? मालिक का कहना भी दुरुस्त था लेकिन पन्नालाल को जब उसके उस 10 गुना 10 के कमरे से भी धक्केमार कर बाहर निकाल दिया गया जहां वह अन्य आठ मजदूरों के साथ रहता था, तब उसे अहसास हुआ कि अब तो वह बेरोजगार, बेघर और दाना-पानी से मोहताज़ हो गया है। वह मात्र चार सौ रुपए की अपनी कुल जमापूंजी के सहारे पैदल ही निकल पड़ा दिल्ली से चित्रकूट के लिए। यह स्थिति मात्र पन्नालाल की नहीं है, अपितु उन हज़ारों मजदूरों की है जो सड़कों, खेतों, जंगलों और रेल की पटरियों के रास्ते अपने घरों की ओर निकल पड़े हैं।
एक और मजदूर, उसका नाम रामबलि था। वह मुंबई के पालघर जिले में एक ठेकेदार के टोल नाके पर मजदूरी करता था। मुंबई से निकले अन्य मजदूरों की भांति रामबलि भी अपने घर सिद्धार्थनगर, उ.प्र. के लिए पैदल ही निकल पड़ा था। मुंबई से मध्यप्रदेश के बंडा तहसील तक की यात्रा उसने अपार कष्ट सहते हुए भी सफलतापूर्वक तय कर ली थी। लेकिन बंडा से गुजरते समय वह अचानक गिर पड़ा और उसके प्राण पखेरू उड़ गए। रिपोर्ट के अनुसार रामबलि की मौत डी-हाइड्रेशन के चलते हुई। उसकी खाली जेब से बस एक आधार कार्ड बरामद हुआ जो तेलगू़ भाषा में था। जो बयान कर रहा था कि पेट की खातिर रामबलि कभी आंध्र प्रदेश भी गया था।    
दुर्दिन भोग रहे इन मज़दूरों में से अनेक ऐसे हैं कि रोटियां भी जिनकी जान नहीं बचा पा रही हैं। औरंगाबाद की रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना इस बात का सबूत है। हजारों किलोमीटर का सफर तय करते हुए थक कर चूर मजदूर रेल की पटरी पर ही सो गए। तब उन्हें क्या पता था कि रेल आएगी और उन्हें कभी जागने नहीं देगी। वे रोटियां भी उनकी जान नहीं बचा पाएंगी जो उन्होंने अपने सीने पर बांध रखी थीं। क्षत-विक्षत शवों पर कपड़ों में बंधी हुई रोटियां जिसने भी घटनास्थल पर पहुंच कर देखीं, वह लौट कर अपने हलक से रोटी का निवाला नहीं उतार सका। उसके आंसू भी उसके गले को इतना तर नहीं कर सके कि निवाला हलक से उतर सके।

इससे पहले 12 साल की एक लड़की की मौत की खबर सबने पढ़ी थी। जो तेलंगाना से पैदल छत्तीसगढ़ अपने गांव आ रही थी। करीब 150 किलोमीटर लंबे रास्ते पर वह तीन दिनों से चल रही थी और घर पहुंचने से महज 14 किलोमीटर पहले उसने दम तोड़ दिया था। अभी हाल ही में नरसिंहपुर जिले की सीमा पर एक बड़े सड़क हादसे में पांच मजदूरों की मौत हो गई। नरसिंहपुर जिले के मुंगवानी थाना क्षेत्र के पास आम से भरा एक ट्रक अनियंत्रित होकर पलट गया. इस हादसे में 5 मजदूर मारे गए जबकि 11 मजदूर घायल हो गए। ट्रक में करीब 20 मजदूर सवार थे। पुलिस के मुताबिक आम के ट्रक में सवार 20 मजदूरों में से 11 मजदूर झांसी के रहने वाले थे जबकि 9 एटा के थे। सभी मजदूर हैदराबाद से अपने घर जाने के लिए निकले थे।
मेहनत कर के पेट भरने वाले मजदूरों की दशा आज भिखारियों और शराणार्थियों जैसी हो गई है। वे आज समाजसेवी संगठनों एवं स्थानीय प्रशासनों की उदारता पर निर्भर हैं। लेकिन चैकिंग और क्वारंटाईन किए जाने को ले कर उनके मन में जो अविश्वास है, उसके चलते वे रेल की पटरियों और जंगलों के रास्ते चुन रहे हैं। जिससे उन्हें हर तरह की सहायता से वंचित होना पड़ रहा है। खाली पेट-खाली जेब सैंकडों किलोमीटर पैदल सफर की असंभव सी दूरियां तय करने निकल पडे हैं वे, सिर्फ़ अपने हौसले के दम पर। जरूरत है उन्हें विश्वास दिलाए जाने की और बड़े पैमाने पर वह सुविधा मुहैया कराने की जिससे वे अपने गंतव्य पर सकुशल पहुंच सकें। अन्यथा लाॅकडाउन के दौरान हो रहे इस विस्थापन के मौत के तांडव को याद कर अनेक सदियां सिहरती रहेंगी।
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(दैनिक जागरण में 12.05.2020 को प्रकाशित)
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Wednesday, May 6, 2020

चर्चा प्लस - कोरोनाकाल की ‘रामायण’ - डाॅ शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस   

कोरोनाकाल की ‘रामायण’
  - डाॅ शरद सिंह

           स्व. रामानंद सागर जी ने यह सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनका ‘रामायण’ धारावाहिक एक दिन दर्शकों का बहुत बड़ा सहारा बनेगा। आज सामान्य व्यक्ति से ले कर बुद्धिजीवी वर्ग तक ‘रामायण’ देखकर अपना समय व्यतीत कर रहा है, और विशेष बात तो यह है कि धारावाहिक के आधार पर मूल ‘रामायण’ और तुलसीकृत ‘रामचरित मानस’ की रामकथा की अपने अलग ढंग से व्याख्या कर रहा है गोया वह कोरोनाकाल की नई ‘रामायण लिख देना चाहता हो।
    एक लम्बा समय हो चला है कोरोना से बचाव के लिए लाॅकडाउन में समय व्यतीत करते। कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव व सुरक्षा के लिए पहले लाॅकडाउन-एक, फिर लॉकडाउन-टू और अब लाॅेकडाउन- थ्री की बारी है। कोरोना लाॅकडाउन के दौरान घर में क़ैद रहने वालों के मनोरंजन का पूरा ध्यान रखा सरकार और टीवी चैनल वालों ने। अपने समय के बहुचर्चित और अत्यंत लोकप्रिय धारावाहिकों का पुनःप्रसारण कर मनोरंजन के साथ ही धर्म और विचार की भावना को भी जगा दिया जिससे कोरोना के आतंक से उपजने वाला भय तनिक कम हो जाए। स्व. रामानंद सागर का ‘रामायण’ धारावाहिक ऐसा पहला धारावाहिक था जिसने चलती बसों के पहिए जाम कर दिए थे। इस धारावाहिक के प्रसारण के समय स्वतः स्वघोषित लाॅकडाउन हो जाता था। जो जहां रहता, वहीं ठहर जाता और धारावाहिक देख कर ही आगे बढ़ता। यहां तक कि बसयात्री भी बस वहीं रुकवा लेते जहां उन्हें यह धारावाहिक देखने को मिल सके। धार्मिक कथानक पर आधारित होते हुए भी यह धारावाहिक धर्म से परे धर्मनिरपेक्ष था। हर धर्म के लोग इसे बड़े चाव से देखते। श्रीराम का अभिनय करने वाले अरुण गोविल और सीताजी का अभिनय करने वाली दीपिका चिखलिया हर दर्शक के मन-मस्तिष्क में बस गए थे। बाॅक्स आॅफिस पर धमाका करने वाली मार-धाड़, रोमांस से भरपूर काॅमर्शियल फिल्में बनाने वाले रामानंद सागर भी यह देख कर दंग रह गए थे कि उनका यह धार्मिक संदर्भ का धारावाहिक सफलता के सारे रिकाॅर्ड तोड़ता चला गया। इस संबंध में उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में कहा था-‘‘ये सब श्रीराम की कृपा है!’’ संभवतः इसके अतिरिक्त उनका कोई उत्तर हो भी नहीं सकता था।

78 एपीसोड्स के ‘रामायण’ धारावाहिक की पहली कड़ी 25 जनवरी 1987 को प्रसारित की गई थी तथा इसकी अंतिम कड़ी 31 जुलाई 1988 को प्रसारित हुई थी। लगभग डेढ़ साल से अधिक चलने वाले ‘रामायण’ धारावाहिक ने दर्शकों को मानो सम्मोहित किए रखा। एक बार फिर यह सम्मोहन शत प्रतिशत नहीं तो साठ प्रतिशत तक सिर चढ़ कर बोल रहा है। दिलचस्प बात यह है कि आज जो दर्शक उससे जुड़े हैं वे टेलीविजन धारावाहिकों के संबंध में मानसिक परिपकवता को प्राप्त कर चुके हैं। एकता कपूर के रंगारंग, चटकीले, रंगेचुंगे ग्लैमरस धारावाहिकों के सामने फीके रंगों वाला यह ‘रामायण’ धारावाहिक आज भी प्रासंगिक बन गया है। इससे भी अधिक दिलचस्प बात यह है कि सोशल मीडिया पर रामकथा के जानकारों, मीमांसाकारों ओर व्याख्याकारों की भीड़ उमड़ पड़ी है। जिसे सोशल मीडिया की ही भाषा में कहें तो इन दिनों रामकथा पर चर्चा ‘‘ट्रेंड’’ पर है। हर व्यक्ति स्वयं को रामकथा का जानकार साबित करना चाहता है गोया रामकथा की जानकारी इससे उसे थी ही नहीं। वही राम, वही सीता लेकिन ट्रेंडिंग रामकथा के नित नए समीकरणों की। कोई लिख रहा है कि श्रीराम को कटघरे में खड़ा किया जाए क्यों कि उन्हीं के कारण सीता को दुख और परित्याग झेलना पड़ा तो कोई इसके उलट पोस्ट करता है कि सीता का दुख ही प्रमुख क्यों? श्रीराम का दुख प्रमुख क्यों नहीं? यह कमाल है सोशलमीडिया कमेंट बटोरो अभियान का कि बहुपरिचित रामकथा पर अनर्गल टिप्पणियां भी की जा रही हैं। ऐसा लगता है जैसे सब कमर कसे हुए हैं एक ‘‘नई रामायण’’ लिखने के लिए। जिसमें स्त्री विमर्श वाले बुद्धिजीवी श्रीराम के व्यक्तित्व पर आक्रमण करते मिलेंगे तो वहीं दूसरी ओर पुरुष विमर्श वाले कैकयी और सीता को एक ही पलड़े पर बिठा कर दोनों को समान रूप से कोसते हुए, दोषी ठहराते हुए श्रीराम को ‘बेचारा’ और ‘सहानुभूति का पात्र’ बताते नज़र आएंगे। यह ‘टाईमपास’ तक सीमित हो तो कोई बात नहीं लेकिन यदि इसी के आधार पर आगे चल कर ‘कोरोनाकाल की रामायण’ का सृजन कर दिया गया तो रामकथा का भगवान ही मालिक है। 

रामकथा केवल एक आख्यान नहीं है, वह श्रीराम और सीता के माध्यम से मानव-जीवन के उच्च नैतिक आदर्शों को, मर्यादाओं को दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करने का माध्यम भी है। श्रीराम को एक आदर्श के रूप में उत्तर से लेकर दक्षिण तक जनमानस ने स्वीकार किया है। उनका चरित्र लोकतंत्र का प्रहरी और निर्माता भी है। वहीं सीता का एक स्त्री के रूप में त्याग और स्वाभिमान का अद्भुत चरित्र सामने आता है जो स्त्री के सम्पूर्ण गुणों को सामने रखता है। श्रीराम और सीता के आदर्शों का जनमानस पर प्रभाव इतना गहरा है, जो युगों-युगों तक रहेगा। भारतीय संस्कृति के व्याख्याकार डाॅ श्रीराम परिहार रामकथा की उपादेयता और प्रासंगिकता की चर्चा करते हुए कहते हैं कि ‘‘विदेश में रहने वाला अप्रवासी भारतीय रामनवमी के दिन अपने देश को याद करता है। अपने परिजनों को याद करता है। एकता का तार देश-विदेश के व्यक्ति को जोड़ता है। रामकथा की सांस्कृतिक यात्रा मंदाकिनी की तरह वेगवती होकर बह रही है। अनवरत बह रही है।’’ अतः रामकथा पर बौद्धिकता की अनावश्यक परत चढ़ाने से पहले गहन अध्ययन किया जाना चाहिए। यह नहीं भूलना चाहिए कि साक्ष्य और सटीक तर्क से कही गई बातें ही मान्यता प्राप्त करती हैं। अतः कोरोनाकाल की रामकथा पर विवेक का अंकुश जरूरी है, कहीं अतिरेक करोड़ों लोगों की भावनाओं को ठेस न पहुंचाने लगे।        
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(दैनिक सागर दिनकर में 06.05.2020 को प्रकाशित)
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Friday, May 1, 2020

प्रलेस की ऑनलाइन कविगोष्ठी में डॉ शरद सिंह का काव्य पाठ

लॉकडाउन के चलते ऑनलाइन कविगोष्ठी की प्रगतिशील लेखक संघ की मकरोनिया (सागर) इकाई ने, जिसमें मैं भी शामिल हुई। इस गोष्ठी का समाचार वेब मैगजीन युवा प्रवर्तक ने आज प्रकाशित किया है। इसे आप इस लिंक पर भी पढ़ सकते हैं...http://yuvapravartak.com/?p=30923