Wednesday, April 27, 2016

चर्चा प्लस ...... जल प्रबंधन और सूखे का समीकरण - डाॅ. शरद सिंह

मेरा कॉलम 'चर्चा प्लस’ "दैनिक सागर दिनकर" में (27. 04. 2016) .....
My Column “ Charcha Plus” in "Dainik Sagar Dinkar" .....


यदि आप अपने गांव, अपने शहर, अपने प्रदेश और अपनी धरती को सूखे के संकट से बचाना चाहते हैं तो यह लेख अवश्य पढ़ें ....


चर्चा प्लस ...... 
जल प्रबंधन और सूखे का समीकरण
- डाॅ. शरद सिंह
 
भविष्य का सबसे डरावना सच अगर आज कोई है तो वह है जल का अभाव। शहरी क्षेत्रों में दम तोड़ते जलस्तरों वाले जल स्रोतों के पास लम्बी कतारें और पानी के लिए आपस में झगड़ते लोगों को देखा जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में दृश्य और अधिक भयावह होते हैं। वहां मिट्टी और रेत में गढ़े बना कर और गहरी खाइयों में उतर कर जान जोखिम में डाल कर जिन्दा रहने लायक पानी मिल पाता है। दुख तो यह है कि पानी और सूखे के जिस पारस्परिक संबंध के बारे में हम अपने बचपन से पढ़ते, सुनते और समझते आ रहे हैं, उसे ही भुला बैठे हैं। पानी नहीं रहेगा तो सूखा पड़ेगा और सूखा पड़ेगा तो पानी उपलब्ध होने का प्रश्न ही नहीं उठता। स्थिति भयावह है। मौसम विज्ञानी भविष्यवाणी कर रहे हैं कि आगामी मानसून बहुत अच्छा रहेगा और अच्छी बारिश होगी लेकिन यदि हमने जल प्रबंधन पर समय रहते ध्यान नहीं दिया तो अच्छी बारिश का लाभ भी हम नहीं ले सकेंगे। अभी हाल ही में ‘मन की बात’ के 19वें कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सूखे के संकट पर अपने विचार रखे और कहा कि जल संकट से निपटने के लिए सामूहिक प्रयत्नों की जरूरत है।
आज भारत ही नहीं, तीसरी दुनिया के अनेक देश सूखा और जल संकट की पीड़ा से त्रस्त हैं। भारत सहित अनेक विकासशील देशों के अनेक गांवों में आज भी पीने योग्य शुद्ध जल उपलब्ध नहीं है। आर्थिक विकास, औद्योगीकरण और जनसंख्या विस्फोट से जल का प्रदूषण और जल की खपत बढ़ने के कारण सब कुछ गड़बड़ा गया है। पर्यावरण की क्षति तथा जल प्रबंधन के प्रति लापरवाही के कारण देश के महाराष्ट्र, तेलंगाना और मध्यप्रदेश जैसे कई राज्य जल संकट की त्रासदी से गुज़र रहे हैं। उचित जल प्रबंधन न होने के कारण बारिश के जल को हम इस तरह नहीं सहेज पाए हैं कि वह आज हमारे काम आ पाता। हैण्डपंप, कुओं और बावडि़यों का रख-रखाव सही ढंग से न होने के कारण या तो वे सूख गई हैं या फिर उनका पानी इतना दूषित हो गया है कि हम उसे काम में ही नहीं ला पा रहे हैं।
हमारे देश में 15 प्रतिशत वर्षा जल का उपयोग होता है, शेष जल बहकर समुद्र में चला जाता है। उस पर शहरों एवं उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ नदियों के जल को प्रदूषित करके पीने योग्य नहीं रहने देते। जल की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है। प्रति व्यक्ति मीठे जल की उपलब्धि जो सन् 1994 में 6000 घन मीटर थी, घटकर सन् 2000 में मात्र 2300 घन मीटर रह गई है और यही उपलब्धता सन् 2014 में लगभग 1600 रह गई। अब तो यह भविष्यवाणी की जाने लगी है कि यदि उपयोगी जल की उपलब्धता इसी तरह कम होती गई तो सन् 2050 में देश को विदेशों से पेयजल आयातित करना पड़ेगा। जब देश में ही बिकने वाला बोतलबंद पानी गरीब आदमी की पहुंच से दूर रहता है तो विदेशों से आयातित पानी गरीबों को देखने को नसीब होगा भी या नहीं, इसमें संदेह है।
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper

ऐसा नहीं है कि सरकारी स्तर पर जलनीति निर्धारकों ने देश को सूखे से बचाने के लिए जल प्रबंधन की अच्छी नीतियां नहीं बनाईं। राष्ट्रीय जलनीति 1987 में जल को प्रमुख प्राकृतिक संसाधन माना गया। इस राष्ट्रीय जलनीति में स्पष्ट कहा गया कि पानी मनुष्य की बुनियादी आवश्यकता है और बहुमूल्य संपदा है। संभावित जल संकट को ध्यान में रखते हुए बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) में बढ़ती जनसंख्या की उभरने वाले पानी से जुड़ी चुनौतियों पर भी ध्यान दिया गया है। बारहवीं पंचवर्षीय योजना के मुताबिक शहरी विकास के बावजूद देश के महानगरों में ज्यादातर लोग नाली व्यवस्था से जुड़े नहीं है। योजना के मुताबिक शहरों का विकास करते वक्त शौचायलों और अपशिष्ट जल प्रशोधन व्यवस्था को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसके अलावा बारहवीं पंचवर्षीय योजना में भूजल के घटते स्तर पर चिंता जताई गई है। योजना में भूजल स्तर बढ़ाने के लिए कदमों को उठाए जाने की सिफारिश की गई है, जिसमें भूजल जमा करने वाले पत्थरों का इस्तेमाल भी शामिल है। संभावना है कि वर्ष 2031 में पानी की मांग वर्तमान मांग से 50 फीसदी अधिक हो जाएगी। अगर देश को आर्थिक विकास के अनुमानित लक्ष्य को हासिल करना है तो पानी की इस बढ़ती मांग को पूरा करना जरूरी है। पानी के अतिरिक्त भंडारण और भूजल स्तर को कायम रखने के लिए कदम उठाए जाने से 20 फीसदी मांग को पूरा किया जा सकता है। बाकी मांग को पूरा करने के लिए पानी का संयम से उपयोग करना होगा। कुछ ऐसे कारण है जो जल के संरक्षण और संवर्द्धन में बाधा बने हुए हैं जैसे कि हमारे देश में भूमि के स्वामी को उसकी भूमि पर मौजूद जलस्रोत का स्वामित्व रहता है, जो जल उपलब्ध है वह प्रदूषण का शिकार होता जा रहा है। दरअसल जल संरक्षण, जल का उचित उपयोग और भूजल की रिचार्जिंग भी जरूरी है।
अतिदोहन के कारण भूजल स्तर जो वर्ष 1984 में 9 मीटर था, अब 17 मीटर हो चुका है। वहीं वर्ष 1984 में भूजल के मात्र 17 प्रतिशत दोहन की तुलना में आज हम 138 प्रतिशत दोहन कर रहे हैं। यदि यही स्थिति रही तो वर्ष 2020 तक भूजल भंडार रीत जाएंगे। इस स्थिति को उचित भूजल प्रबंधन के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। ये प्रबंधन घरेलू, कृषि, औद्योगिक और सामुदायिक स्तर पर किया जा सकता है। घरेलू क्षेत्र में वर्षा जल संचयन संरचना बनाकर, पेयजल के उचित प्रयोग एवं निष्कासित जल का अन्य कार्यों में प्रयोग कर, कृषि में बूंद बूंद सिंचाई, कम जल में होने वाली फसलें एवं उचित मात्रा में खाद और कीटनाशकों का प्रयोग कर, उद्योगों में जल को रिसाइकिल कर तथा भूजल पुनर्भरण संरचनाएं बनाकर एवं सामुदायिक स्तर पर जल संरक्षण के प्राचीन स्रोतों का जीर्णोद्धार कर इस गंभीर खतरे को टाला जा सकता है।
भारत के विकास के लिए जल संरक्षण को प्राथमिकता दिए जाने के साथ ही रिपोर्ट में अपशिष्ट जल प्रबंधन पर भी खासा जोर दिया गया है। शहरी इलाकों के लिए बढ़ती आबादी की कारण से पानी की कमी की बुनियाद में एक बड़ी चुनौती अपशिष्ट जल के प्रबंधन की है। शहरों में अवैध इमारतें और झुग्गियों के निर्माण से ये कठिनाई और भी बढ़ जाती है, क्योंकि ये शौचालयों और नालियों से नहीं जुड़ी होती हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुमान के मुताबिक भारत के पास इकट्ठा होने वाले कुल अपशिष्ट जल के सिर्फ 30 फीसदी का ही प्रशोधन करने की क्षमता है। अर्थात् शेष 70 फीसदी अपशिष्ट जल झीलों, नदियों और बोरवेल के भूमिगत स्रोत में मिलकर उन्हें प्रदूषित करता रहता हैै। अपशिष्ट जल प्रबंधन के साथ ही हमें इस ओर ध्यान देना ही होगा कि वर्षा के कितने भाग का हम प्रयोग करते हैं, और कितने भाग को हम बेकार जाने देते हैं। बारिश के पानी को जितना ज्यादा हम जमीन के भीतर जाने देकर भूजल संग्रहण करेंगे उतना ही हम जल संकट को दूर रखेंगे और मृदा अपरदन रोकते हुए देश को सूखे और अकाल से बचा सकेंगे। भू-वैज्ञानिकों के अनुसार यदि हम अपने देश के थलीय क्षेत्रफल में से मात्र 5 प्रतिशत वर्षा के जल का संग्रहण कर सके तो एक बिलियन लोगों को 100 लीटर पानी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन मिल सकता है। वर्तमान में वर्षा का 85 प्रतिशत जल बरसाती नदियों के रास्ते समुद्र में बह जाता है। इससे निचले इलाकों में बाढ़ आ जाती है। यदि इस जल को भू-गर्भ की टंकी में डाल दिए जाए तो दो तरफा लाभ होगा। एक तो बाढ़ का समाधान होगा, दूसरी तरफ भूजल स्तर बढ़ेगा। अतः जल संग्रहण के लिए ठोस नीति एंव कदम की आवश्यकता है।
यदि जल के अभाव और सूखे के संकट से निपटना है तो जल प्रबंधन और सूखे के समीकरण को समझना होगा। इसके साथ ही कुछ आवश्यक कदम भी उठाने होंगे। जैसे- जल की शिक्षा अनिवार्य विषय के रूप में स्कूली पाठ्यक्रम में जोड़ी जाए, जल संवर्धन एवं संरक्षण कार्य को सामाजिक तथा धार्मिक संस्कारों से जोड़ा जाए, भूजल दोहन अनियंत्रित एवं असंतुलित ढंग से न हो, इसे सुनिश्चित किया जाए, तालाबों और अन्य जल संसाधनों पर समाज का सामूहिक अधिकार हो, जलस्रोतो को प्रदूषण से बचाने का हरसंभव प्रयास किया जाए तथा नदियों और नालों पर चैक डैम बना वर्षा जल को संग्रहीत किया जाए। इन सबके साथ जन संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए जन जागरूकता अभियान को नागरिक मुहिम के रूप में चलाया जाए, जिसमें प्रत्येक नागरिक की किसी न किसी स्तर पर सहभागिता हो। इससे नागरिकों में जन संरक्षण के प्रति अपने दायित्वों का बोध होगा तथा वे भविष्य के भयावह जल संकट के यथार्थ को भली-भांति समझ सकेंगे।
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Saturday, April 23, 2016

Happy Book Day

Dr (Miss) Sharad Singh and her books ... Happy Book Day

Wednesday, April 20, 2016

चर्चा प्लस ...... जल संकट पर हमें अब चेतना ही होगा ... - डाॅ. शरद सिंह

Charcha Plus - Column of  Dr Sharad Singh

My Column “ Charcha Plus” published in today's "Dainik Sagar Dinkar"

आज के "दैनिक सागर दिनकर" में प्रकाशित मेरा कॉलम 'चर्चा प्लस’
(20. 04. 2016) .....








Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper

चर्चा प्लस 
जल संकट पर हमें अब चेतना ही होगा 
- डाॅ. शरद सिंह
गर्मी का मौसम आते ही पानी की किल्लत सिर चढ़कर बोलने लगती है। गिरते हुए जलस्तर वाले स्रोतों के पास महिलाओं और लड़कियों की भीड़ उस जल-कथा को कहते हैं जिसमें पीने के पानी के लिए अथक संघर्ष का दृश्य अपने चिन्ताजनक रूप में दिखाई देता है। जल ही तो जीवन हैं। यदि जल नही ंतो जीवन कहां? स्वतंत्र भारत में अनेक बांधों के निर्माण के बाद भी लापरवाही, अव्यवस्था और सजगता के अभाव के कारण जल-संकट निरन्तर बढ़ता गया है। पहले औरतों को अपने घर से कुछ मीटर की दूरी से पानी लाना पड़ता था, अब यह दूरी मीलों में फैल गई है। आज देश के नौ राज्य ओडि़शा, राजस्थान, असम, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, हरियाणा, बुन्देलखण्ड, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड और गुजरात भीषण जल संकट का सामना कर रहे हैं। भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण भूजल का स्तर निरन्तर तेजी से गिरता जा रहा है। जलस्रोत तेजी से सूखते जा रहे हैं।
क्या कभी किसी ने सोचा था कि एक दिन देश ऐसी भी स्थिति आएगी कि पानी के लिए धारा 144 लगाई जाएगी अथवा पेयजल के स्रोतों पर बंदूक ले कर चैबीसों घंटे का पहरा बिठाया जाएगा? किसी ने नहीं सोचा। पिछले दशकों में पानी की किल्लत पर गंभीरता से नहीं सोचे जाने का ही यह परिणाम है कि शहर, गांव, कस्बे सभी पानी की कमी से जूझते दिखाई पड़ रहे हैं। देश के कई हिस्सों में पानी की समस्या अत्यंत भयावह है। महाराष्ट्र में कृषि के लिए पानी तो दूर, पीने के पानी के लाले पड़ गए हैं। जलस्रोत सूख गए हैं। जो हैं उन पर जनसंख्या का अत्यधिक दबाव है। सबसे शोचनीय स्थिति लातूर की है। पीने के पानी के लिए हिंसा और मार-पीट की इतनी अधिक घटनाएं सामने आने लगीं कि वहां के पांडुरंग पोल को इलाके में प्रशासन को धारा 144 लगानी पड़ी। कलेक्टर ने लातूर में 20 पानी की टंकियों के पास 5 से अधिक लोगों के एकसाथ जमा होने पर प्रतिबंध लगा दिया। यह आदेश 31 मई 2016 तक के लिए जारी किया गया तथा इसके अंतर्गत टैंकर भरने की जगह, सार्वजनिक कुएं, टैंकरों के आने-जाने का मार्ग और भंडारित टैंकों की जगह शामिल रखी गईं। लातूर के शेष क्षेत्रों में सार्वजनिक कुओं पर पानी भरने के लिए लोगों की बड़ी भीड़ जमा होती है। कुएं सूख जाने पर प्रशासन द्वारा टैंकरों से इनमें पानी भरवाया जाता है। महाराष्ट्र में ज्यादातर कुएं सूख गए हैं तथा जल संकट और भी गंभीर स्तर पर पहुंचता जा रहा है। औरंगाबाद, जालना, बीड़, उस्मानाबाद, और लातूर में हालात सबसे ज्यादा खराब हैं। मराठवाड़ा के 14 बड़े बांधों में जरूरत का पानी नहीं है। जयकवाडी, पूर्णा, मांजरा, पेनगंगा में भी पानी कम है। इन बांधों में जरूरत का सिर्फ 5 फीसदी पानी ही बचा है। अगर पूरे महाराष्ट्र राज्य की बात करें तो उसकी जरूरत का सिर्फ 24 फीसदी पानी ही बचा है। महाराष्ट्र के 16 जिलों में भयंकर सूखा पड़ा हुआ है। महाराष्ट्र के 43000 गांवों में से 15000 सूखाग्रस्त हैं। राज्य की 125 तहसीलों में गंभीर जल संकट है। सूखाग्रस्त इलाकों में लोगों का पलायन हो रहा है। जबकि लातूर, उस्मानाबाद, बीड़ में इंडस्ट्री ठप पड़ गई है। लातूर में पूरे गर्मी के मौसम में सभी कोचिंग संस्थाएं बंद रखे जाने का आदेश दिया गया है। वहां ट्रेन से पानी मुहैया कराने की व्यवस्था भी की गई।
वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों में सूखे पर केंद्र से जवाब-तलब किया। स्वराज अभियान की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 9 राज्य सूखे की चपेट में हैं और केंद्र कुछ नहीं कर रहा। साथ ही कोर्ट ने मनरेगा फंड में देरी पर फटकार लगाई। मनरेगा पर सुप्रीम कोर्ट ने की केंद्र की खिंचाई करते हुए कहा है कि मनरेगा के तहत 150 दिन की जगह सिर्फ 25 दिन रोजगार मिल रहा है। केंद्र की वजह से राज्यों को फंड में देरी हो रही है। आदालत का कहना है कि राहत में 6 से 7 महीने की देरी बर्दाश्त नहीं की जा सकती। अतिरिक्त फंड की मांग अभी तक पूरी नहीं हुई है।
इधर मध्यप्रदेश में पानी का भीषण संकट मुंह बाए खड़ा है। मध्यप्रदेश में 32 हजार हैंडपम्प बंद हो चुके हैं। 12 हजार से अधिक नल-जल योजनाएं सीधे तौर पर बंद हो गई हैं। प्रदेश की करीब 200 तहसीलों सूखाग्रस्त और 82 नगरीय निकायों में भी गम्भीर पेयजल संकट का सामना कर रहे हैं। मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में और भी अजीब स्थिति है। वहां की नगर पालिका के चेयरमैन के अनुसार किसान पानी न चुरा पाएं, इसलिए नगरपालिका की ओर से लाइसेंसी हथियार शुदा 10 गार्ड तैनात किए हैं।
पानी जैसे बुनियादी तत्व को ले कर हम कितने लापरवाह हैं, यह हाल ही के आईपीएल विवाद में सामने आ गया। हमारे लिए खेल जरूरी है या पानी? अपने-अपने ड्राइंगरूम और सोशलमीडिया पर भले ही सबने कहा हो कि खेलों से अधिक जरूरी है पानी, लेकिन इस उत्तर को ले कर कहीं कोई लामबंदी नहीं दिखी। आईपीएल के रूप में बाज़ार एक बार फिर पानी पर भारी पड़ गया। आईपीएल की टिकटें बिक चुकी हैं, यही विवशता बताई गई आयोजकों द्वारा। टिकट खरीदने वालों के लिए भी पानी से कहीं अधिक महत्वपूर्ण था आईपीएल का मैच। इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने का भी भरपूर प्रयास किया गया जबकि होना चाहिए था कि सभी राजनीतिक दल इस जलसंकट के विषय पर एकजुट हो जाते।
आज शहरी क्षेत्र और ग्रामीण क्षेत्र दोनों ही जलस्रोतों की कमी से जूझना रहे है। जो आर्थिक रूप से समर्थ होते हैं, वे टैंकरों से पानी प्राप्त कर लेते हैं। और अधिक समर्थ मिनरल वाटर की बोतलों से प्यास बुझाते हैं। यह कोई स्थायी विकल्प नहीं है। जब तक जलस्रोतों में पानी है तभ्ी तक टैंकर और मिनरल वाटर की बोतले हैं। इसके साथ ही उन लोगों की पीड़ा को भी समझना जरूरी है जिन्हें एक घड़ा या एक बाल्टी पानी के लिए लम्बी कतारों में खड़े रह कर घंटों प्रतीक्षा करनी पड़ती है या फिर जिन्हें पानी के लिए मीलों की दूरी तय करनी पड़ती है। समाचारपत्रों में आए दिन यह समाचार पढ़ने को मिल जाता है कि फलां जगह पानी भरने के लिए मार-पीट हुई। यह संघर्ष केवल पानी का संषर्घ नहीं बल्कि जि़न्दा रहने का संषर्घ है। भला पानी के बिना कोई जीवित रह सकता है? आज जब इस संघर्ष की चिंगारियां भड़कने लगी हैं तो अब हमारा चेतना जरूरी है।
अखबारों में जलप्रदाय में होने वाले लीकेज और अपव्यय के समाचार मुस्तैदी से छपते रहते हैं लेकिन न तो प्रशासन को होश आता है और न नागरिकों को। सड़क के किनारे से गई हुई पाईप लाईन की ‘चाबी’ से लगातार पानी बहता रहता है लेकिन सड़क से गुज़रने वाले उसकी ओर न तो स्वयं घ्यान देने हैं और न प्रशासन का ध्यान उस ओर खींचने को कोई प्रयत्न करते हैं। रहा सवाल प्रशासन का तो हर बार एक ही जवाब दोहराया जाता है कि,‘‘देखते हैं, किसकी गलती है। जल्दी ही उसे सुधार दिया जाएगा।’’ परिणाम यह कि उनकी ‘जल्दी’ की घड़ी आती ही नहीं है और गैलनों पानी व्यर्थ बह कर बर्बाद होता रहता है। लीकेज के कारण उपयोग से कहीं अधिक बर्बादी होती है पानी की।
आवास निर्माण के नाम पर न जाने कितने कुए, बावडि़यां और तालाब सुखा दिए गए। जो सूखाए जाने से बचे रहे उनके रखरखाव की ओर ध्यान नहीं दिया गया। तालाबों और बावडि़यों में कचरा डाल-डाल कर हमने उन्हें सुखा दिया या उनका पानी गंदा कर दिया। नदियों में को भी गंदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हैंण्डपंपों के पुर्जे निकालने अथवा सार्वजनिक नलों से टोंटियां चुराने कोई अंतरिक्षवासी नहीं आता है। जल की यह दुर्दशा हम नागरिकों की ही लापरवाहियों का दुष्परिणाम है। हमने जाने-अनजाने जल संकट को उस मोड़ तक पहुंचा दिया है ‘‘तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा’’ जैसे वाक्य उछलने लगे हैं। क्या हम अपनी अगली पीढ़ी को पानी के लिए युद्ध की सौगात दे कर छोड़ कर जाना चाहते हैं? यदि हमने अभी भी जल संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया तो अगली पीढ़ी क्या, इसी पीढ़ी में पानी को ले कर त्राहि-त्राहि करना होगा। यदि अभी भी एक व्यवस्थित जल-प्रबंधन को लागू नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब एक-एक बूंद के लिए तरसना होगा। इस जल-प्रबंधन में पानी की बेतहाशा हो रही बर्बादी को रोकना, जल संरक्षण, जलस्रोतों का विस्तार और जनजागरूकता को शामिल करना होगा। यदि आज हम जल की रक्षा करेंगे तो कल जल हमारे और हमारी आने वाली पीढि़यों के जीवन की रक्षा करेगा। हमें अपनी लापरवाहियों से सबक लेते हुए स्वीकार करना होगा कि जल और जलस्रोतों को बचाना सामूहिक जिम्मेदारी है।
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Thursday, April 14, 2016

"प्रखर राष्ट्रवाद और महानायक" .... पुस्तक समीक्षा ... "आउटलुक"

Dr Sharad Singh's books review in the "Outlook" magazine, 25. 04. 2016
‘‘आउटलुक’’ के 25 अप्रैल 2016 के अंक में मेरी तीन किताबों की समीक्षा प्रकाशित हुई है। ‘‘आउटलुक’’ की आभारी हूं। आप भी इस समीक्षा को पढ़ें और जानें मेरी किताबों के बारे में..
  A review of my three books have been published '' Outlook '' issue of April 25, 2016. I am grateful for '' Outlook ''. You can also read this review and know about My books...

Cover of "Outlook" magazine, 25. 04. 2016

Wednesday, April 13, 2016

चर्चा प्लस .... स्त्री अस्मिता पर छिपे हुए कैमरे से हमला ..... डॉ. शरद सिंह

Charcha Plus - Column of Dr Sharad Singh
My Column “ Charcha Plus” published in  "Dainik Sagar Dinkar" , 13. 04. 2016
मेरा कॉलम 'चर्चा प्लस’ दिनांक
13. 04. 2016 के  "दैनिक सागर दिनकर" (सागर, मध्य प्रदेश) में प्रकाशित ....

Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper
 
चर्चा प्लस  

           स्त्री अस्मिता पर छिपे हुए कैमरे से हमला   

                                                                                                        
                                    - डॉ. शरद सिंह
दुनिया में विश्वास से बढ़ कर और कुछ भी नहीं होता। रिश्ते-नाते, प्रेम-व्यवहार आदि सब कुछ विश्वास पर टिका होता है। विश्वास गया तो सब कुछ गया। बाज़ार की दुनिया में वायदा-बाज़ार का मुख्य आधार ही विश्वास होता है। बाज़ार ही तो है जो अपने ग्राहकों को सब कुछ बेहतर देने का विश्वास दिलाता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो विश्वास ग्राहकी को बढ़ाने का अचूक नुस्खा होता है। किन्तु मध्यप्रदेश के सागर नगर के मुख्य बाज़ार में स्थित एक जानी-मानी कपड़े की दूकान में हुई 'चूक ने अपनी स्त्री ग्राहकों का विश्वास तोड़ दिया। शहर एक गारमेंट शॉप पर एक छात्रा अपनी सहेली के साथ कपड़े खरीदने गई। छात्रा ने तीन चार कपड़े पसंद किए और चेंजिंग रूप चली गई। इसी दौरान उसे एहसास हुआ कि कोई मोबाइल से वीडियो बनाने की कोशिश कर रहा है। छात्रा ने अपने परिवारजन को इसकी सूचना दी जो जिले की देवरी तहसील में रहते हैं। शाम को छात्रा व उसकी सहेली परिजनों के साथ उस गारमेंट शॉप पहुंची। आरोपी लड़का जो दूकान में ही काम करता है, वहीं मौजूद था। संभवतः उसे आशा नहीं थी कि वह छात्रा साहस से काम लेगी। आरोपी का कहना था कि चेंजिंग रूम के पीछे गोदाम है। वह सामान उठाने वहां गया था वीडियो बनाने नहीं। वहीं दूकानमालिक का कहना था कि चेंजिंग रूम की दीवार पर ट्यूबलाईट हटाने के कारण छेद बना रह गया था। स्थान की संवेदनशीलता को देखते हुए दूकानदार को सजग रहना चाहिए था। यूं भी, अस्थाईतौर पर ऐसे छेद तो कागज से भी भरे जा सकते थे। रिपोर्ट लिखने में देरी होने पर छात्रा के परिजनों ने भाजपा जिलाध्यक्ष से बात की। वे थाने पहुंचे। सीएसपी से बात की। इसके बाद केस दर्ज हो गया।
ठीक साल भर पहले इसी तरह की घटना गोवा में भी घटी थी। मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को रेडीमेड कपड़ों वाली कंपनी 'फैब इंडिया के गोवा स्थित आउटलेट के चंेजिंग-रूम में छिपे कैमरे का मिलना उनके भीतर की स्त्री को बौखला देने का लिए पर्याप्त था। हुआ यह था कि 3 अप्रैल 2015 को स्मृति ईरानी अपने पति के साथ गोवा में छुट्टियां मनाने गई थीं और वे फैबइंडिया के कैडोलिम स्थित स्टोर में खरीदारी करने गई थी। उसी स्टोर में उन्होंने गुप्त कैमरा देखा। इसके बाद उन्होंने स्थानीय विधायक संपर्क किया जिन्होंने एफआईआर दर्ज करवाई। पुलिस ने स्टोर के खिलाफ महिलाओं के अपमान के लिए शिकायत दर्ज की। स्थानीय विधायक के अनुसार,'हमने सीसीटीवी का कुछ फुटेज देखा है। इसमें स्पष्ट है कि कितनें लोगों को ट्रायल रूम में कैमरे में कैद किया गया है। ये चिंता की बात है। कैमरे को जिस तरह पोजीशन किया गया है उससे साफ है कि नीयत अच्छी नहीं थी।
बाद में फैबइंडिया ओवरसीज प्राइवेट लिमिटेड ने आज केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री स्मृति ईरानी से माफी मांगी, लेकिन शोरूम में कहीं भी कोई छिपा कैमरा लगा होने से इंकार कर दिया। फिर एक बयान में कंपनी ने कहा है कि अनजाने में हुई असुविधा के लिए हम माननीय मंत्री स्मृति ईरानी से माफी मांगते हैं। उसने हालांकि कैंडोलिम के स्टोर में छिपे कैमरे के सवाल पर कहा कि वह कैमरा निगरानी तंत्र का एक हिस्सा है और शोरूम के शॉपिंग एरिया में लगा है। उसने कहा कि स्टोर में ट्रायल रूम सहित कहीं पर भी छिपा कैमरा नहीं लगा है। जो भी कैमरे हैं, वे पूर्ण सार्वजनिक एरिया में लगे हैं और इस तरह के निगरानी कैमरे सभी स्टोर्स में लगे होते हैं। फैबइंडिया ने कहा कि 'यह एक महिला केंद्रित कंपनी है, जहां 70 फीसदी महिला कर्मचारी हैं। हमारे उत्पाद देश और दुनियाभर की महिलाओं द्वारा पसंद किए जाते हैं। हम महिलाओं की मर्यादा का सम्मान करते हैं और इसके लिए खड़े हैं। ग्राहक ही हमारे लिए सबकुछ हैं।
प्रथम दृष्टया मामले को सुलटाने का प्रयास किया गया था किन्तु कंपनी के उच्चाधिकारी जानते थे कि ऐसे मामले को सुलटाना उचित नहीं है। यदि छानबीन नहीं की गई और मामले की तह तक नहीं पहुंचा गया तो स्त्री ग्राहक आष्वस्त नहीं हो सकेंगी। जहां विश्वास नहीं वहां दूकानदारी नहीं जम सकती। इस घटना के विरोध में तीखी प्रतिक्रिया सामने आई। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मॉल्स, शोरूम व दुकानों में स्थित ट्राॅयल रूम या चेन्ज रूम में गुप्त कैमरों व वीडियो रिकॉर्डिंग की घटनाओं के पाए जाने पर सम्बन्धित थानाध्यक्ष के खिलाफ कड़ी कार्रवाई किए जाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि 'ऐसी घटनाएं सभ्य समाज के लिए कलंक हैं, जिन्हें हर हाल में रोका जाना चाहिए। ऐसी घटनाओं के पाए जाने पर सम्बन्धित थानाध्यक्ष को जिम्मेदार मानते हुए उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
वर्तमान इलेक्ट्रॉनिक प्रगति ने जहां स्त्रियों को अनेक सहूलियतें दी हैं वहीं उनकी अस्मिता के लिए नए तरह के संकट बढ़ा दिए हैं। उन्हें सबसे अधिक भय कैमरे का रहता है। वह कैमरा कोई भी हो सकता है। चेंजिंग रूम में चुपके से लगाया गया हिडेन कैमरा या फिर मोबाईल फोन का चलता-फिरता कैमरा। लगभग हर माह एक न एक घटना समाचार के रूप में पढ़ने-सुनने को मिल जाती है। चेंजिंग रूम में लड़कियों या महिलाओं की वीडियो बनाने का अपराध बड़े शहरों से छोटे शहरों तक आ पहुंचा है। यह स्त्री की निजता पर ही नहीं व्यवसाय जगत के प्रति विश्वास पर भी कठोर आघात है। 
मोबाईल फोन के कैमरे ने स्त्री अस्मिता पर हमलावरों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि कर दी है। प्रेमालाप के नाम पर नवयुवक अपनी साथी युवतियों के एम.एम.एस. बना लेते हैं और उसे इन्टरनेट पर सार्वजनिक करने की धमकी दे कर उन्हें ब्लैकमेल करने लगते हैं।
गल्र्स हॉस्टल के बाथरूम, सार्वजनिक आउटलेट, होटल के कमरे आदि में छिपे कैमरे कई बार पकड़े जा चुके हैं। सितम्बर 2014 में नोएडा के प्रतिष्ठित जे.एस.एस. कॉलेज में उस वक्त सनसनी फैल गई जब लड़कियों के हॉस्टल में लगे हिडेन कैमरे पर एक छात्रा की नजर पड़ी। कैमरे की जानकारी होते ही पूरे कॉलेज में हड़कंप मच गया। कॉलेज में यह घिनौना खेल विगत दो साल से चल रहा था। गर्ल्स हॉस्टल के एक ही बाथरूम में अलग-अलग एंगल से तीन कैमरे लगाए गए थे। संभवतः इन कैमरों की मदद से वीडियो क्लिप भी बनाई गई। मौके पर पहुंची पुलिस ने तीनों कैमरे और उनमें लगे दो मेमोरी कार्ड भी बरामद किए। दिसम्बर 2014 में मध्यप्रदेश के रायसेन में एक पेट्रोल पंप के लेडीज टॉयलेट में हिडेन कैमरा पकड़ा गया है। इस बात का खुलासा उस वक्त हुआ जब एक छात्रा पेट्रोल पंप के टॉयलेट में गई तो वहां उसके मोबाइल नेटवर्क ने काम करना बंद कर दिया। इस बात से उसे शक हुआ। लड़की ने चारों तरफ देखा तो उसे वहां पर एक कैमरा लगा दिखाई दिया। उसने इसकी खबर फौरन बाहर खड़े अपने परिवार को दी। इसकी सूचना फौरन पुलिस को दी गई। जिसके बाद दीवार को पत्थर से तोड़ा गया और जो नजारा सामने था उससे सब हैरान थे। दीवार तोड़े जाने के कम्प्यूटर पर बैठा हुआ व्यक्ति वीडियो को डिलीट कर वहां से भागने लगा। जांच में जुटी टीम ने पंप मालिक के बेटे को गिरफ्तार किया गया। कैमरे को पुलिस ने जब्त कर लिया। बरामद किए गए कम्प्यूटर से कुछ अश्लील वीडियो भी मिले है। ये कैमरा टॉयलेट मे नल के पास छिपाकर लगाया गया था और इसके तार पेट्रोल पम्प के पीछे बने एक कमरे मे थे जहां कम्प्यूटर मे इसका कनेक्शन किया गया था।
अभी अप्रैल माह में ही जयपुर के जवाहर सर्किल थाना क्षेत्र स्थित एक मॉल में कपड़े की दुकान के चेंजिंग रूम में छुपा हुआ कैमरा पाए जाने पर पुलिस ने दुकान में काम करने वाले तीन सेल्समेन को गिरफ्तार किया है। पुलिस जांच अधिकारी के अनुसार एक युवती की ओर से दर्ज करवायी गई शिकायत के हवाले से बताया कि एक दुकान में बुधवार रात कपड़े खरीदने के दौरान युवती कपड़ों की फिटिंग जांचने के लिए चेंजिंग रूम में गई। लेकिन वहां उसे छुपा हुआ कैमरा दिखाई दिया तो उसने दुकान की संचालिका को शिकायत की और रिकॉर्डिंग को हटाने का आग्रह किया, लेकिन उसने रिकार्डिंग नहीं हटाई। तब पुलिस ने हस्तक्षेप किया और ममला दर्ज करके दुकान के तीन सैल्समेन को सीआरपीसी की धारा 151 के तहत गिरफ्तार कर लिया।
स्त्री अस्मिता पर इस तरह कैमरे के द्वारा हमले की घटनाओं का निरंतर बढ़ना चिन्ताजनक है। स्त्री अस्मिता के मामले में पूरी दुनिया संवेदनशील रहती है। कोई भी देष स्त्रियों की गरिमा के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं देता है। ऐसे मामलों को रोकने के लिए जहां स्त्रियों की जागरूकता जरूरी है वहीं कठोर कानून भी आवश्यक हैं। त्वरित जांच और कड़ी सजा ही ऐसे अपराधियों के हौसले तोड़ सकती हैं।
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Wednesday, April 6, 2016

लिंग, धर्म और बहस का खूंटा ... इंडिया इन साइड (वामा) ... डॉ. शरद सिंह

India Inside, March 2016 -Dr Sharad Singh's Article


‘इंडिया इन साइड’ के March 2016 अंक में ‘वामा’ स्तम्भ में प्रकाशित मेरा लेख 
वामा
        लिंग, धर्म और बहस का खूंटा
                   - डॉ. शरद सिंह
भ्रूण के लिंग परीक्षण पर पाबंदी लगाए जाने के लगभग 20 साल बाद केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी मेनका ने बालिका भ्रूण हत्या रोकने के लिए भ्रूण के लिंग परीक्षण को अनिवार्य करने की जरूरत बताकर इस मुद्दे पर बहस छेड़ दी। यह इतना संवेदनशील मुद्दा है कि इस पर वाद-विवाद होना स्वाभाविक था। उस पर आईएमए ने मेनका गांधी के बयान के आधार पर संकेत दे दिया कि भ्रूण के लिंग परीक्षण पर लगी पाबंदी हट सकती है। उन्होंने इस मसले पर मंत्रालय की ओर से संबंधित पक्षों की ओर से रखी गई बात को ही आगे बढ़ाया है। हर गर्भधारण रजिस्टर किया जाए और भ्रूण का लिंग उसके माता-पिता को बता दिया जाए। यदि पेट में बच्ची पल रही है कि तो डिलीवरी को ट्रैक और रिकॉर्ड किया जा सकता है। इस संबंध में यह भी कहा गया कि मंत्रालय ने कोई औपचारिक प्रस्ताव नहीं भेजा है। यह सिर्फ एक सुझाव है, जिस पर बहस होनी चाहिए। आईएमए इस विषय पर मंत्री का समर्थन करता है। तर्क यह भी था कि यदि भ्रूण बालिका का हो तो उसकी उचित देख-भाल की जा सकती है। यह तर्क भी विवादास्पद। भला बालक-भ्रूण की क्या अवहेलना की जाएगी, फिर इसकी क्या गारंटी की बालिका भ्रूण होने पर कानूनी, गैरकानूनी तरीके से गर्भपात का प्रयास नहीं किया जाएगा, जिन अस्पतालों में बच्चे बदले जा सकते हैं वहां क्या ट्रैक और रिकॉर्ड तैयार नहीं किया जा सकता है।
बहुत से प्रश्न खड़े हो जाना स्वाभाविक था और हुए भी। इस बहस में भाग लेते हुए अभिनेत्री एवं राजनीतिज्ञ नगमा ने महत्वपूर्ण तर्क दिया कि गर्भ में कन्या-भ्रूण के होने का पता चलने पर, भले ही उस भ्रूण को न मारा जा सके किन्तु उस गर्भवती को अपने परिवाजन से नौ महीने तक जो असंख्य प्रताड़नाएं सहनी पड़ेंगी, उसका कौन जिम्मेदार होगा, यहां राजनीति के पक्ष को छोड़ दिया जाए तो एक स्त्री के नाते नगमा का तर्क खरा उतरता है। जिस समाज में बेटी पैदा करने वाली माताओं को अपने परिवार से जीवन भर ताने सुनने पड़ते हैं और यातनाएं सहनी पड़ती हैं, उस समाज में परिवार द्वारा अनचाहे गर्भ को अपनी कोख में रखने वाली गर्भवती को न जाने कितनी यातनाओं से गुज़रना पड़ेगा। जबकि गर्भवती होने की अवस्था वह अवस्था है जिसमें एक स़्त्री को भरपूर देखभाल की आवश्यकता होती है। उसे मानसिक एवं पारिवारिक सुखद वातावरण की आवश्यकता होती है। क्या विपरीत परिस्थितियों में उसे ऐसा सुखद वातावरण मिल सकेगा।   
भ्रूण परीक्षण केन्द्रों पर पाबंदी लगाए जाने के बाद पिछले दस वर्ष के आंकड़े बताते हैं कि पहले की अपेक्षा उन राज्यों में कन्या जन्म दर में अपेक्षित सुधार आया, जिन राज्यों में कन्या भ्रूण की जन्म दर तेजी से घट रही थी। ऐसी दशा में भू्रण के लिंग परीक्षण को वैध बनाना क्या उचित होगा। यह कटु सत्य है कि लड़का होने पर उस भ्रूणके  साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होती, किंतु लड़की की इच्छा न होने पर उस भ्रूणसे छुटकारा पाने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। चिकित्सकीय दृष्टि से अत्यावश्यक होने पर ही लिंग परीक्षण किया जाए, यह व्यवस्था ही वर्तमान सामाजिक परिवेश में उचित जान पड़ती है। इस दृष्टि से भ्रूण का लिंग शिशु के जन्म के पूर्व पता न लगने देना, उस भू्रण के प्रति मानवीय कदम होगा जो परीक्षण के बाद भेदभाव का शिकार बन सकता है। समाज की सोच अभी इतनी नहीं बदली है कि पुत्र और पुत्री में भेदभाव समाप्त हो गया हो। 
दूसरा मुद्दा महाराष्ट्र के शिंगणपुर के शनि मंदिर में स्त्रियों द्वारा पूजा के अधिकार का रहा। महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर में एक महिला के शनिदेव को तेल चढ़ाने से विवाद शुरू हो गया है। यह मंदिर महाराष्ट्र में शिरडी के पास ही स्थित है। शनि भगवान की स्वयंभू मूर्ति काले रंग की है। 5 फुट 9 इंच ऊँची व 1 फुट 6 इंच चैड़ी यह मूर्ति संगमरमर के एक चबूतरे पर धूप में ही विराजमान है। लगभग तीन हजार जनसंख्या के शनि शिंगणापुर गांव में किसी भी घर में दरवाजा नहीं है। कहीं भी कुंडी तथा कड़ी लगाकर ताला नहीं लगाया जाता। इतना ही नहीं, घर में लोग आलीमारी, सूटकेस आदि नहीं रखते। लोग घर की मूल्यवान वस्तुएं, गहने, कपड़े, रुपए-पैसे आदि रखने के लिए थैली तथा डिब्बे या ताक का प्रयोग करते हैं। केवल पशुओं से रक्षा हो, इसलिए बांस का ढंकना दरवाजे पर लगाया जाता है। यहां पर कभी चोरी नहीं हुई। यहां आने वाले भक्त अपने वाहनों में कभी ताला नहीं लगाते।
मंदिर में शनि महाराज की शिला खुले में रखी गई है। वहां दूर से दर्शन होते हैं। चबूतरे के पास तक सिर्फ पुरुष जा सकते थे। कहा जाता है कि लगभग 400 वर्षों से इस मंदिर के भीतर महिला के पूजा की परंपरा नहीं रही है, ऐसे में महिला द्वारा मंदिर के चबूतरे पर चढ़कर शनि महाराज को तेल चढ़ाने पर पुजारियों ने मूर्ति को अपवित्र घोषित कर दिया। मंदिर प्रशासन ने छः सेवादारों को निलंबित कर दिया है और मूर्ति का शुद्धिकरण किया गया है। बढ़ते विवाद को देखते हुए जहां पूजा करने वाली महिला ने यह कहते हुए प्रशासन से माफी मांगी है कि उसे परंपरा की जानकारी नहीं थी। इसके बाद मूर्ति को अपवित्र मानते हुए मंदिर प्रशासन ने शनिदेव का दूध से प्रतिमा का अभिषेक किया। इस घटना के विरोध में समूचे देश के कोने-कोने से विरोध के स्वर फूट पड़े। ग्राम सभा ने घटना पर कार्रवाई करते हुए जहां छः सेवादारों को निलंबित कर दिया, वहीं घटना के विरोध में शनि शिंगणापुर में बंद का एलान भी किया गया। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति की सदस्य रंजना गवांदे ने आगे आते हुए कहा कि जब देश में महिला-पुरुषों को बराबरी हासिल है तो कई मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी क्यों है? शनि शिंगणापुर में यह क्रांतिकारी घटना हुई है। इस पर राजनीति न हो और मंदिर को महिलाओं के लिए खोला जाए।
आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर ने विवाद सुलझाने के लिए सुझाव दिया कि पुरुषों को भी पवित्र चबूतरे पर चढ़ने नहीं दिया जाए। भूमाता ब्रिगेड ने भी इस बात का समर्थन किया कि जब महिलाओं को  तेल चढ़ाने का अधिकार नहीं है तो पुरुषों को भी अधिकार नहीं होना चाहिए। उल्लेखनीय है कि लगभग 15 वर्ष पूर्व भी शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध का विरोध हुआ था, तब जानेमाने रंगकर्मी डॉ. श्रीराम लागू भी महिलाओं के पक्ष में मुहिम से जुड़े थे।
तो ये रहा 21वीं सदी के दूसरे दशक के बीच का परिदृश्य। स्त्री आज भी अपने जीवन-अस्तित्व के लिए जूझ रही है और धार्मिक मंच पर अपना अधिकार ढूंढ रही है, ठीक उसी तरह जैसे 18 वीं और 19 वीं सदी में जूझती रही। स्त्री की प्रगति की डोर मानो बहस के उस खूंटे से बंधी है जहां लिंग और धर्म ही हमेशा ज्वलंत मुद्दा रहा है। सदियां बदल गईं लेकिन हमारी सामाजिक सोच इनसे आगे बढ़ ही नहीं पाई है। इन दोनों विवादों को देख कर यही लगता है, गोया -
             रास्ते खोए हुए, मंजि़ल गुमी जैसे कहीं
             चले थे हम जहां से, आ गए हैं फिर वहीं
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चर्चा प्लस .... घटती संवेदनाएं और तमाशबीन बनता समाज .... डॉ. शरद सिंह


Charcha Plus - Column of Dr Sharad Singh
My Column “ Charcha Plus” published in  "Dainik Sagar Dinkar" , 06. 04. 2016मेरा कॉलम 'चर्चा प्लस’ दिनांक 06. 04. 2016 के  "दैनिक सागर दिनकर" (सागर, मध्य प्रदेश) में प्रकाशित ....
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper

चर्चा प्लस    

              घटती संवेदनाएं और तमाशबीन बनता समाज

-    डॉ. शरद सिंह

                                               

हाल ही में घटित घटनाएं दर्शाती हैं कि किस तरह समाज में संवेदनाओं का तेजी से क्षरण होता जा रहा है और तमाशबीन बनने की प्रवृति बढ़ती जा रही है तथा सोशल मीडिया का मोह किस तेजी से सामाजिकता को ग्रहण लगा रहा है। यह अत्यंत चिन्ताजनक है और इस पर प्रत्येक व्यक्ति को इस कल्पना के साथ विचार करना चाहिए कि कहीं ऐसा न हो कि किसी दिन इस तरह की कोई घटना उनके साथ अथवा उनके किसी अपने के साथ भी घटित हो तब वे सहायता के लिए आवाज लगाते रहें और कोई उनकी सहायता न करे बल्कि सिर्फ मोबाईल पर वीडियो बनाता रहे।



समाज की संरचना इसीलिए की गई कि प्रत्येक व्यक्ति परस्पर एक-दूसरे के सुख-दुख का हिस्सा बन सके। कुछ दशक पहले तक यह होता भी था कि यदि मोहल्ले में किसी एक व्यक्ति या एक परिवार पर कोई संकट आता था तो पूरा मोहल्ला उसकी सहायता के लिए दौड़ पड़ता था। एकल परिवार के चलन में यह भावना और सुदृढ़ होनी चाहिए थी, जहां परिवार के सदस्यों की कमी मोहल्ले के लोगों से पूरी होनी चाहिए किन्तु ऐसा नहीं हो रहा है। ऐसा लगने लगा है जैसे किसी को किसी की पीड़ा अथवा कष्टों से कोई लेना-देना नहीं है। यदि पड़ेास में कोई घटना घटित होती है तो लोग तमाशबीन बन कर इस बात की प्रतीक्षा करते रहते हैं कि कब इलेक्ट्रानिक मीडिया वाला आएं और उनसे उनका साक्षात्कार ले ताकि वे अपना चेहरा छोटे पर्दे पर दिखा सकें।

दिल्ली देश की राजधानी ही नहीं तेजी से विकास करते भारतीय समाज का प्रतिनिधित्व भी करती है। इस दिल्ली में क्रिकेट की बॉल लगने से क्रोधित हो कर एक डॉक्टर को युवकों का एक समूह ने उसके घर में घुस कर उसके बेटे के सामने ही उसे पीट-पीट कर मार डाला। कोई पड़ोसी उस डॉक्टर को बचाने नहीं दौड़ा। किसी ‘‘कन्हैया’’ ने सुर्खियां बटोरने वाला भाषण नहीं दिया इस असंवेदनशीलता के विरोध में किसी बुद्विजीवी ने अपने पुरस्कार या सम्मान वापस नहीं किए और न ही कोई कद्दावर नेता ढाढस बंधाने उस डॉक्टर के घर पहुंचा।      

राजनीतिक क्षेत्र में असहिष्णुता और असंवेदनशीलता को ले कर ढेरों वाद-विवाद होते रहते हैं। इस मुद्दे को ले कर संसद की कार्यवाहियां बाधित कर दी जाती हैं। पक्ष-विपक्ष परस्पर स्वयं को संवेदनशील और दूसरे को संवेदनहीन साबित करने का प्रयास करता रहता है। जिन घटनाओं को ले कर ये वाद-विवाद होते हैं, उनके निपटारे के लिए जांच आयोग गठित कर दिए जाते हैं। इस पर ध्यान देना जरूरी है कि लोकतंत्र के नाम पर कुछ अधिक ही छूट लेते हुए कहीं हम अपने नैतिक दायित्वों से भी विमुख तो नहीं होते जा रहे हैं, दुख तो इस बात का भी है कि इस प्रकार की असंवेदनशीलता और तमाशबीन प्रवृति महानगरों के साथ-साथ छोटे शहरों और गांवों में भी अपने पैर पसारने लगी है।

एक स्त्री नौ माह गर्भ धारण करती है और अपार पीड़ा सह कर संतान को जन्म देती है। इसमें उस संतान के माता-पिता की खुशियां, सपने और उम्मींदें भी जुड़ी होती हैं। संतान के माता पिता एवं परिवार के सदस्य उसके जन्म की प्रतीक्षा किस उद्विग्नता के साथ करते हैं इसे शब्दों में वर्णित करना कठिन ही नहीं, असंभव है। अब जरा सोचिए कि एक गर्भवती प्रसव पीड़ा के अंतिम चरण में सरकारी अस्पताल में भर्ती न की जाए और उसे एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल जाने को विवश किया जाए, वह भी अपने पैरों पर चल कर तो उस गर्भवती की पीड़ा का अंदाज़ा भला कोई लगा सकता है, उस गर्भवती की विडम्बना यही थी कि वह अत्यंत गरीब परिवार की थी। उसे स्ट्रेचर भी नहीं दिया गया। उसके प्रति सिर्फ़ इमरजेंसी सेवा 108 ने ही दया भावना दिखाई जो उसे जिला अस्पताल तक पहुंचा गई। किन्तु जिला अस्पताल पहुंचते ही उसके दुर्भाग्य का सिलसिला शुरू हो गयां। जिला अस्पताल से उसे मेडिकल कॉलेज ‘रिफर’ कर दिया गया। लेकिन मेडिकल कॉलेज तक पहुंचने का साधन उसके पास नहीं था। पति के सहारे गिरती-पड़ती पैदल चल कर मेडिकल कॉलेज पहुंचीं। जहां से उसे वापस जिला अस्पताल भेज दिया गया। प्रसव पीड़ा से कराहती वह गर्भवती किसी तरह घिसटती हुई वापस जिला अस्पताल पहुंची और वहां फर्श पर उसका प्रसव हो गया। इस सारी पीड़ा और अमानवीयता के बीच शायद उस बच्चे ने आंखें खोलना उचित नहीं समझा, शायद वह बच्चा अपनी मां की दुर्दशा देख नहीं पाता, शायद उस बच्चे को अपने पिता की लाचारी सहन नहीं होती, शायद इसीलिए उस बच्चे ने आंखें खोलते ही अपनी आंखें मूंद लीं और इस दुनिया से विदा ले लिया। यह कोई कपोल कल्पित घटना नहीं है। यह मध्यप्रदेश के सागर जिला मुख्यालय की घटना है। जिस समय वह गर्भवती अपनी होने वाली संतान को दुनिया में लाने के लिए मर्मांतक पीड़ा सहती हुई भटक रही थी, उस समय न तो अस्पताल के कर्मचारियों ने मानवता का परिचय दिया और न अस्पताल परिसर में मौजूद किसी भी इंसान ने उसकी सहायता की।

प्रश्न प्रशासनिक लापरवाहियों एवं असंवेदनशीलता का ही नहीं है बल्कि उस असंवेदनशीलता का है जो पूरे समाज को अपने शिकंजे में कसती जा रही है। जबलपुर से इटारसी के बीच घटित घटना इस एक रोगटें खड़ा कर देने वाला उदाहरण है। एक युवक ने अपने सहयात्री युवकों के मना करने पर भी उनकी पानी की बोतल से पानी पी लिया। इस पर नाराज़ युवकों ने ट्रेन की बोगी की खिड़की के सींखचों से उस युवक के पैर बांध कर बाहर लटका दिया और उसे इटारसी पहुंचते तक निरंतर मारते रहे। स्पष्ट है कि बोगी खाली तो नहीं थी। उसमें अनेक यात्री थे। उनमें से न तो किसी ने उस युवक को इस दरिंदगी से बचाने का प्रयास किया और न ही पुलिस को तत्काल सूचना देने का कष्ट किया। इसके विपरीत उनमें से कई लोग अपने-अपने मोबाईल से उस नृशंसता की वीडियो बनाने में व्यस्त हो गए। उन्हें उस युवक के प्राणों की परवाह नहीं थी, यदि चिन्ता थी तो जल्दी से जल्दी वीडियो बना कर उसे इन्टरनेट पर अपलोड करने की।

इस घटना की एक और कड़ी सामने आयी। वह भी कम चैंकाने वाली नहीं थी। ट्रेन में दरिंदगी का शिकार हुआ वह युवक गुजरात में बड़ोदरा के निकट एक महिला का सिर फोड़ने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया। पुलिस के अनुसार वह युवक एक घर में चोरी की नीयत से घुसा। घर की देखरेख करने वाले परिवार की महिला उसकी आहट पा कर जाग गई तो उस युवक ने उस महिला के सिर पर डंडे से वार कर दिया जिससे उस महिला का सिर फूट गया। वह युवक वारदात को अंजाम दे कर वहां से भागा लेकिन गांव वालों के द्वारा पकड़ा गया। जो युवक चार दिन पहले स्वयं दरिंदगी का शिकार हुआ हो वह चार दिन बाद एक महिला का सिर फोड़ देता है। यह भी चिन्तनीय है।

असंवेदनशीलता की एक घटना और है जो इससे पहले भी अलग-अलग स्थानों में अनेक बार घटित हुई। एक युवक को कुछ लोगों ने चोरी के संदेह में सरेआम भरी सड़क, भरे चैराहे पर पीट-पीट कर मार डाला। उस युवक को बचाने के लिए कोई आगे नहीं आया। उस युवक की हत्या का वीडियो बनाने वाले पूरे जोश से जुटे रहे। इसी तरह एक अन्य युवक को पेड़ से उल्टा लटका कर बेतहाशा पीटा गया। वहां भी उसे बचाने वाला कोई नहीं था लेकिन उस नृशंसता का वीडियो बनाने वाले अवश्य मौजूद थे। जो भी उदाहरण यहां दिए गए हैं उनमें एक बात तो तय है कि कानून को अपने हाथ में लेने की प्रवृति पर अंकुश लगाया जाना बहुत जरूरी है।

एक डॉक्टर को पीट-पीट कर मार डालना, एक गर्भवती को प्रसव के अंतिम समय में भटकाना और उसके शिशु से उसका जीवन छीन लेना, ट्रेन में युवक को लटका कर पीटते रहना और ऐसी ही तमाम घटनाएं  सोचने को विवश करती हैं कि भारतीय समाज किस दिशा में जा रहा है, ये जो भी दिशा है, कम से कम वो तो नहीं है जिसमें ‘‘वसुधैवकुटुम्बकम’’ की अवधारणा थी। यदि हम अपने परिवार, अपने समाज के प्रति ही आत्मीयता और संवेदनाएं नहीं सम्हाल पा रहे हैं तो समूची दुनिया को गले लगाने की बात किस आधार पर कर सकते हैं, हाल ही में घटित घटनाएं दर्शाती हैं कि किस तरह समाज में संवेदनाओं का तेजी से क्षरण होता जा रहा है और तमाशबीन बनने की प्रवृति बढ़ती जा रही है तथा सोशल मीडिया का मोह किस तेजी से सामाजिकता को ग्रहण लगा रहा है। यह अत्यंत चिन्ताजनक है और इस पर प्रत्येक व्यक्ति को इस कल्पना के साथ विचार करना चाहिए कि कहीं ऐसा न हो कि किसी दिन इस तरह की कोई घटना उनके साथ अथवा उनके किसी अपने के साथ भी घटित हो तब वे सहायता के लिए आवाज लगाते रहें और कोई उनकी सहायता न करे बल्कि सिर्फ मोबाईल पर वीडियो बनाता रहे। यदि ऐसे भयावह दुःस्वप्न से बचना है तो समय रहते चेतना होगा और सामूहिक रूप से उठ खड़े होना होगा ऐसे असंवेदनशील लोगों के विरुद्ध जो मानवता को आए दिन तार-तार करते रहते हैं। जो लोग राजनीतिक बहाव में बह कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं, उन्हें संवेदनाओं को बचाने के लिए भी आगे आना होगा। सिर्फ चंद लोगों को ही नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को  इस तथ्य को समझना ही होगा कि अपने नैतिक दायित्व से विमुख होते हुए केवल तमाशबीन बनने से अपराधियों के हौसले बढ़ते रहेंगे।

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