Friday, May 10, 2024

शून्यकाल | जो हुआ, श्यामा प्रसाद मुखर्जी वह कभी नहीं चाहते थे | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | नयादौर

दैनिक नयादौर में मेरा कॉलम "शून्यकाल"

जो हुआ, श्यामा प्रसाद मुखर्जी वह कभी नहीं चाहते थे
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह                                                                              
        हमारे देश की स्वतंत्रता उस आग के दरिया से गुज़र का पार लगी है जिसे हम विभाजन की विभीषिका के रूप में जानते हैं। उस दौरान लगभग 30 लाख लोग मारे गये, कुछ दंगों में, तो कुछ यात्रा की कठिनाइयों के कारण। इस जानहानि की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन विभाजन के पूर्व ही जो भयावह संकेत मिलने लगे थे उसे श्यामाप्रसाद मुखर्जी भांप गए थे। वे मुस्लिम लीग की गतिविधियों पर अंकुश लगाना चाहते थे। वे भारत को अखण्ड देखना चाहते थे। वे शांति चाहते थे। उन्होंने प्रयास भी किए लेकिन....
सही-सही आंकड़े आज भी किसी को पता नहीं हैं। लेकिन जो अनुमान लगाए जाते हैं और तत्कालीन छायाचित्रों में शरणार्थियों की बाढ़ का जो दृश्य दिखाई देता है, वह अपने आंकड़े खुद ही बयान कर देता है।  यह माना जाता है कि देश के विभाजन दौरान पाकिस्तान से भारत और भारत से पाकिस्तान आने-जाने वाले शरणार्थियों में लगभग 30 लाख लोग मारे गये, कुछ दंगों में, तो कुछ यात्रा की कठिनाइयां न झेल पाने के कारण। विभाजन के बाद के महीनों में दोनों नए देशों के बीच विशाल जन स्थानांतरण दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा जनस्थानांतरण माना जाता है। भारत की जनगणना 1951 के अनुसार विभाजन के एकदम बाद 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और 72,49,000 हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए। लेकिन इन सबसे परे अनुमानित मौतों के आंकड़े आज तक पीड़ा देते हैं। सुदृढ़ भारत के स्वप्नद्रष्टा डाॅ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को इस दुरास्वप्न के संकेत मिलने लगे थे। दुर्भाग्यवश उनके विचारों को उस समय गंभीरता से नहीं लिया गया। जिसका दंश कश्मीर की अशांति के रूप में अकसर हमें कष्ट पहुंचाता रहता है। 
डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी  ने अल्प आयु में ही बहुत बड़ी राजनैतिक ऊंचाइयों को पा लिया था। भविष्य का भारत उनकी ओर एक आशा भरी दृष्टि से देख रहा था। जिस समय लोग यह अनुभव कर रहे थे कि भारत एक संकटपूर्ण स्थिति से गुजर रहा है, उन्होंने अपनी दृढ़ संकल्पशक्ति के साथ भारत के विभाजन की पूर्व स्थितियों का डटकर सामना किया। देश भर में विप्लव, दंगा-फसाद, साम्प्रदायिक सौहाद्र्य बिगाड़ने के लिये भाषाई एवं दलीय आधार पर खूनी संघर्ष की घटनाओं से पूरा देश आक्रान्त था किन्तु इन विषम परिस्थितियों में भी डटकर, सीना तानकर ‘एकला चलो’ के सिद्धान्त का पालन करते हुए डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी अखण्ड राष्ट्रवाद का पावन नारा लेकर महासमर में संघर्ष करते रहे।
डाॅ. मुखर्जी ने यह अनुमान लगा लिया था कि यदि मुस्लिम लीग को निरंकुश रहने दिया गया तो उससे बंगाल और हिन्दू हितों को भयंकर क्षति पहुंचेगी। इसलिए उन्होंने मुस्लिम लीग सरकार का तख्ता पलटने का निश्चय किया और बहुत से गैर कांग्रेसी हिन्दुओं की मदद से कृषक प्रजा पार्टी से मिलकर प्रगतिशील गठबन्धन का निर्माण किया। इस सरकार में वे वित्तमन्त्री बने। इसी समय वे वीर सावरकर के प्रखर राष्ट्रवाद के प्रति आकर्षित हुए और हिन्दू महासभा में सम्मलित हुए। 
डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धान्तवादी थे। इसलिए उन्होंने सक्रिय राजनीति कुछ आदर्शों और सिद्धान्तों के साथ प्रारम्भ की थी। तत्कालीन शासन व्यवस्था में सामाजिक-राजनैतिक परिस्थितियों के विशद जानकार के रूप में उन्होंने समाज में अपना विशिष्ट स्थान अर्जित कर लिया था। एक राजनीतिक दल की मुस्लिम तुष्टीकरण नीति के कारण जब बंगाल की सत्ता मुस्लिम लीग की झोली में डाल दी गई और सन् 1938 में आठ प्रदेशों में अपनी सत्ता छोड़ने की आत्मघाती और देश-विरोधी नीति अपनायी गयी तब डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने स्वेच्छा से देशप्रेम और राष्ट्रप्रेम का अलख जगाने के उद्देश्य से राजनीति में प्रवेश किया और राष्ट्रप्रेम का सन्देश जन-जन में फैलाने की अपनी पावन यात्रा का श्रीगणेश किया। 
मुस्लिम लीग की राजनीति से बंगाल का वातावरण दूषित हो रहा था। वहां साम्प्रदायिक विभाजन की नौबत आ रही थी। साम्प्रदायिक लोगों को ब्रिटिश सरकार प्रोत्साहित कर रही थी। ऐसी विषम परिस्थितियों में उन्होंने यह सुनिश्चित करने का बीड़ा उठाया कि बंगाल के हिन्दुओं की उपेक्षा न हो। अपनी विशिष्ट रणनीति से उन्होंने बंगाल के विभाजन के मुस्लिम लीग के प्रयासों को पूरी तरह से विफल कर दिया। उनके प्रयत्नों से हिन्दुओं के हितों की रक्षा हुई। सन् 1942 में जब ब्रिटिश सरकार ने विभिन्न राजनैतिक दलों के छोटे-बड़े सभी नेताओं को जेलों में ठूंस दिया और देश नेतृत्वहीन और दिशाहीन दिखाई देने लगा। ऐसी कठिन परिस्थितियों में डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बंगाल के पक्ष मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देकर भारत को नयी दिशा दी।
डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी इस धारणा के प्रबल समर्थक थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से हम सब एक हैं। इसलिए धर्म के आधार पर वे विभाजन के कट्टर विरोधी थे। वे मानते थे कि विभाजन सम्बन्धी उत्पन्न हुई परिस्थिति ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से थी। वे मानते थे कि आधारभूत सत्य यह है कि हम सब एक हैं। हममें कोई अन्तर नहीं है। हम सब एक ही रक्त के हैं। एक ही भाषा, एक ही संस्कृति और एक ही हमारी विरासत है। परन्तु उनके इन विचारों को अन्य राजनैतिक दल के तत्कालीन नेताओं ने अन्यथा रूप से प्रचारित-प्रसारित किया। वहीं मोहम्मद अली जिन्ना ने 16 अगस्त 1946 को एक अलग राष्ट्र के लिए मुस्लिम समुदाय के समर्थन के प्रदर्शन के रूप में प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस के रूप में घोषित किया। कलकत्ता और बॉम्बे के शहरों में दंगे फैल गए जिसके परिणामस्वरूप लगभग 5000-10,000 लोग मारे गए और 15,000 घायल हो गए। 9 दिसंबर 1946 को मुस्लिम लीग ने, जिसने पहले कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया था, अब इस आधार पर अपना समर्थन वापस ले लिया कि विधानसभा में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के अधिकारों की उचित सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं थी। ब्रिटिश सरकार की भारत विभाजन की गुप्त योजना और षडयंत्र को कुछ नेताओं ने अखण्ड भारत सम्बन्धी अपने वादों को ताक पर रखकर स्वीकार कर लिया। उस समय डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बंगाल और पंजाब के विभाजन की मांग उठाकर प्रस्तावित पाकिस्तान का विभाजन कराया और आधा बंगाल और आधा पंजाब खण्डित भारत के लिए बचा लिया। महात्मा गांधी और सरदार पटेल के अनुरोध पर वे खण्डित भारत के पहले मंत्रिमंडल में शामिल हुए। राष्ट्रीय हितों की प्रतिबद्धता को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानने के कारण उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने प्रतिपक्ष के सदस्य के रूप में अपनी भूमिका निर्वहन को चुनौती के रूप में स्वीकार किया और शीघ्र ही अन्य राष्ट्रवादी दलों और तत्वों को मिलाकर एक नई पार्टी बनायी जो उस समय विरोधी पक्ष के रूप में सबसे बडा दल था। 
डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय जम्मू कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था। वहां का मुख्यमन्त्री वजीरे-आजम अर्थात् प्रधानमंत्री कहलाता था। संसद में अपने ऐतिहासिक भाषण में डाॅ. मुखर्जी ने धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। वे जानते थे कि यदि आज एक राज्य पृथक्करण का रास्ता थाम लेगा तो अन्य प्रांतों में भी अलगाव की आग धधक उठेगी और देश का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि ‘‘या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूंगा।’’ 
उन्होंने तात्कालीन नेहरू सरकार को चुनौती दी तथा अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहे। अपने संकल्प को पूरा करने के लिये वे 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहां पहुंचते ही उन्हें गिरफ़्तार कर नज़रबन्द कर लिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। इस प्रकार देश की एकता और अखण्डता के लिए समर्पित डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूप में एक राष्ट्रवादी व्यक्तित्व सदा के लिए सो गया किन्तु उनके द्वारा जलाई गई देशप्रेम की अलख आज भी सतत् रूप से जल रही है। 
उल्लेखनीय है कि मैंने अपनी पुस्तक ‘‘राष्ट्रवादी व्यक्तित्व: श्यामा प्रसाद मुखर्जी’’ में उनके जीवन और विचारों पर विस्तृत शोधात्मक तथ्य प्रस्तुत किए हैं। यह पुस्तक दिल्ली के सामयिक प्रकाशन से 2015 में प्रकाशित हुई थी। यह पुस्तकालयों, पुस्तक की दुकानों तथा ऑनलाईन भी उपलब्ध है। दरअसल, मुझे लगता है कि युवा पीढ़ी को अतीत के उन तथ्यों से परिचित होना चाहिए जिन पर वर्तमान की स्थितियां टिकी हुई हैं। साथ ही इन तथ्यों को बिना किसी पूर्वाग्रह के, बिना किसी राजनीतिक चश्में के पढ़ा जाना चाहिए तभी हम अपने अतीत की भूलों को भी पहचान कर उन्हें वर्तमान में सुधार सकेंगे।   
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Thursday, May 9, 2024

बतकाव बिन्ना की | रामधई ! कित्तो सूनो सो लग रओ | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम


बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
रामधई ! कित्तो सूनो सो लग रओ 
   - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
       मैं भैयाजी के इते पौंची तो भैयाजी औ भौजी दोई उदासे से दिखाने।
‘‘का हो गओ आप ओरन खों? ऐसे उदासे काय बैठे?’’ मैंने दोई से पूछी।
‘‘कछू नईं।’’ दोई ने एक संगे कई।
‘‘कछू कैसे नईं? आप ओरन को उतरो भओ मों बता रओ के कछू तो बात आए। अब मोय नई बताने होय सो बात दूसरी।’’ मैंने दोई से कई।
‘‘अरे, ऐसो कछू सीक्रेट नईयां!’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो बता देओ।’’ मैंने कई।
‘‘तनक सूनो-सूनो सो लग रओ!’’ अब के भौजी ने कई।
‘‘हऔ भौजी! ऐसो कभऊं-कभऊं होत आए। ई बात मोसे ज्यादा औ कोन समझ सकत आए? मैं आप ओरन को गम्म समझ सकत हौं।’’ मैंने उने सहूरी बंधाते हुए कई।
‘‘हऔ बिन्ना! अब का बताएं के कैसो लग रओ?’’ भैयाजी लम्बी सांस भरत भए बोले।
‘‘हऔ, ऐसो लग रओ मनो, अभई बिटिया को ब्याओ कर के बिदा करी होय। जी सो फट रओ।’’ भौजी सोई बिसुरत भईं बोलीं।
‘‘ऐसो जी छोटो ने करो! कछू कऊं से कोनऊं खबर आई का?’’ मोय लगो के कऊं कोनऊं परेसानी वारी खबर तो ने आई? काय से भैयाजी को बेटा और बिटिया दोई बाहरे रैत आएं। सो मैंने पूछई लई,‘‘उते बच्चा हरें तो सब मजे में आएं न?’’
‘‘हऔ, बे ओरे तो मजे में आएं। बे अपनी-अपनी जिनगी में मगन आएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘तो फेर काय को गम मना रए। जो बे ओरें ठीक आएं, तो आप ओरे बी ठीक रओ।’’ मैंने दोई खों समझाई।
‘‘अरे, हम ओरें उन ओरन खों ले के दुखी नोईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो फेर का भओ?’’ मैंने पूछी।
‘‘होने का आए? अब तो ऊं दिना लों कछू नई होने, जोन दिना चुनाव को रिजल्ट ने आ जाए।’’ भौजी फेर के बिसुरत सी बोलीं।
‘‘का मतलब?’’ अब मोरी मुंडी चकरानी। जे ओरें कोन बात को ले के दुखी दिखा रए? चुनाव के रिजल्ट से इनको का लेने-देने? जे तो ठाड़े नई भए। रई उम्मींदवार की तो बात, सो बा जीतहे तो जे ओरें खुशी मना लेहें, ने तो ऊको तनक कोस लेहें। मगर आज काय के लाने गमी मना रए? मोय कछू समझ में ने आई।
‘‘ज्यादा ने सोचो बिन्ना! हम ओरन खों देख के तुमाओ मों सोई उतरो जा रओ।’’ भैयाजी ने मोय समझाओ। मोय सोचत भओ देख के बे तनक सम्हरे।
‘‘अब का करो जाए? आप ओरें कछू साफ-साफ बताई नईं रए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘साफ का बताने ईमें? सबई तो खुलो डरो। देख नईं रईं, के जब लौं अपने इते वोटिंग ने भई रई तब लौं कित्ती चहल-पहल रई। बई-बई चर्चा चलत्ती। सबरे दल वारे एक-दूसरे पे कछू ने कछू उल्टो-सुल्टो बोल रए हते। टीवी खोलो सो, औ अखबार खोलो सो, सबई में जोई रैत्तो के उन्ने उनके लाने भौतई बुरौ कओ औ फेर माफी सोई मांग लई। एक कैत्ते के बे तुमसे बा छीन लैंहें औ जा कैत्ते के बा तुमसे जा छीन लैंहे। खूबई मजो आउत्तो। अब वोटिंग हो गई, सो सन्नाटो सो खिंच गओ। सबई ऊ डेट खों परखे बैठे, जोन दिनां रिजल्ट को पतो परहे। तब लौं ऐसोई सूनो रैने।’’ भैयाजी ने मोय समझाई।
‘‘हऔ बिन्ना! जेई से तो भौतई सूनो लग रओ। अब तो अगले चुनाव लौं कोनऊं पूछहे ई नईं।’’ भौजी उदास होत भईं बोलीं।
‘‘इत्तो गम ने करो भौजी! जे तो हमेसई को हाल रओ। चुनाव के पैले हो-हल्ला औ चुनाव के बाद झार दओ पल्ला। सो, अपनो जी छोटो ने करो।’’ मैंने भौजी खों समझाओ।
‘‘हऔ, मनो सूनो तो लगई रओ।’’ भौजी बोलीं।
‘‘कल ने लगे सूनो।’’ मैंने कई।
‘‘काय? कल का हो रओ?’’ अब के भैयाजी ने पूछी।
‘‘कल अक्ती आए। पुतरा-पुतरियन को ब्याओ होने। आप ओरें भूलई गए?’’ मैंने दोई खों याद कराई।
‘‘अरे हऔ तो, काल तो अक्ती आए। बा मऊरानीपुर वारी की नातिन ने मोसे कई रई के ऊकी पुतरिया के लाने घांघरों बना दइयो। मोय तो बिसरई गओ। अच्छी याद करा दई। आजई बना दैहों, ने तो बा मोड़ी बुरौ मान जैहे।’’ भौजी तुरतईं चहक परीं।
‘‘बा कैसे मनान लगी अक्ती? ऊकी मताई तो बड़ी मार्डन ठैरी, औ बा मोड़ी खुदई अंग्रेजी स्कूल में पढ़त आए।’’ भैयाजी अचरज करत भए भौजी से पूछन लगे।
‘‘हऔ, जब ऊने हमसे कई रई, सो हमें सोई अचरज भओ रओ। मनो, फेर मोड़ी ने बताओ की ऊकी दादी ने कई आए के बे बताहें के पुतरा-पुतरिया को ब्याओ कैसे कराओ जात आए। सो स्कूल से लौट के बा अक्ती मनाहे।’’ भौजी ने बताई।
‘‘ऊकी मताई ने ऊको टोंको नईं?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘अरे बा तो टोंकती, मनो ऊकी सास बाई, मने मऊरानीपुर वारी ने ऊको उल्लू बना दओ।’’ भौजी हंसत भई बोलीं।
‘‘उल्लू बना दओ? का मतलब?’’ मोए औ भैयाजी दोई को अचरज भओ।
‘‘औ का! मऊरानीपुर वारी ने अपनी बहू से कई के जो तुम बालिका वधू घांई सीरियल देखत्तीं, औ ई टाईप के और सीरियल देखत आओ, सो तुमें तो समझ में आ जात आएं। मनो तुमाई बिटिया जा सब कैसे समझ पैहे, जो ऊको जेई ने पतो हुइए के पुतरा-पुतरिया को ब्याओ कैसे होत आए? तुमने तो ऊके हाथ में मोबाईल फोन पकरा दओ। जो पुतरा-पुतरियों को ब्याओ करन देओ तो बा कछू अपने रीत-रिवाज समझे। बस, फेर का हती, ऊकी बहू मान गई। मगर कैन लगी के जो कछू करने होय ऊके स्कूल से लौटबे के बाद करियो। हम ऊको छुट्टी ने करन दैंहे। सो मामलो पट गओ। अब ऊ दिनां से बा मोड़ी बड़ी खुश आए के ऊको पुतरा-पुतरिया को ब्याओ करबे खों मिलहे। ऊने तो गूगल पे अक्ती के बारे में सर्च कर के पढ़ बी डारो।’’ भौजी ने बताई।
‘‘गूगल पे सर्च कर के? गजब! जे आजकाल के बच्चा बी कम नोंईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे, आप जे सोचो के बाप-मताई अपने रीत-रिवाज से भगे फिर रए औ उनके मोड़ा-मोड़ी जानबो चात आएं। ने तो आपई सोचो के बा मोड़ी गूगल पे काय ढूंढती के अक्ती कैसे मनाई जाती आए?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सई कई बिन्ना! जे हमाए ज्यादई सयाने ज्वान मताई-बाप बिदेश की नकल कर-कर के मरे जा रए, जबके उनके बच्चा हरें अपने इते के रिवाज जानबो चात आएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘ऐसोई होत आए भैयाजी! जोन चीज नई सी होय सो अच्छी सी लगत आए। बा मोड़ी के लाने अक्ती नई सी चीज आए। आप ओरें सोई चुनाव को पुरानो मामलो समझ के एक तरफी धरो औ अक्ती खों इंज्वाय करो। औ भौजी, जो पुतरा-पुतरिया की ब्याओ की पंगत करियो, सो मोय सोई न्योतियो!’’ मैंने हंस के कई।    
‘‘हऔ, जरूर!’’ भौजी हंसत भईं बोलीं।
मैंने देखी के दोई के मों पे हंसी खेलन लगी हती। चुनाव गुजरबे की उदासी दूर हो गई रई। सो मैं उते से चल परी, मनो उते से बढ़तई साथ मोय सूनो लगन लगो। काय से के मोरी नजर ऊ बैनर औ झंडा पे पर गई जो वोटिंग के पैले तने धरे हते औ अब मरे चोखरवा से लटक रए हते। मगर अब करो का जा सकत आए? बारों मईना तो चुनाव हुइएं नईं। बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
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Wednesday, May 8, 2024

चर्चा प्लस | पाॅक्सो एक्ट की जानकारी दे सकती है बच्चों को सुरक्षित माहौल | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
पाॅक्सो एक्ट की जानकारी दे सकती है बच्चों को सुरक्षित माहौल
    - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                        
      चाणक्य ने कहा था कि ‘‘दण्ड के भय के बिना कोई समाज सुरक्षित नहीं रह सकता है।’’ आजकल आए दिन नाबालिगों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं घटित हो रही हैं। इन घटनाओं के संबंध में पाॅक्सो एक्ट के अंतर्गत अपराध पंजीबद्ध किए जाते हैं। किन्तु कानून संबंधी आवश्यक ज्ञान की कमी के कारण अधिकांश लोग नहीं जानते हैं कि पाॅक्सो एक्ट क्या है और इसके अंतर्गत क्या प्रावधान रखे गए हैं? वर्तमान में बच्चियों के विरुद्ध बढ़ती आपराधिक गतिविधियों के चलते प्रत्येक व्यक्ति को पाक्सो एक्ट जैसे कानून के बारे में जानकारी होनी चाहिए। इससे अपराधियों को भी सोचना होगा कि वे अपराध कर के बच नहीं सकेंगे।
बच्चों के साथ आए दिन यौन अपराधों के समाचार समाज को लज्जित करते रहते हैं। बच्चे न घर में सुरक्षित हैं और न ही खुले आसमान के नीचे। विकास के दावों के बीच भारत के अनुभव और ज़मीनी सच्चाई बच्चों की असुरक्षा की अलग कहानी कहती है। स्कूल से घर लौटती बच्ची को फुसला कर ले जाना और उसे अपनी हवस का शिकार बनाना, घर के आंगन में माता-पिता के बीच सो रही बच्ची को चुपचाप अगुवा कर लेना और उसके साथ गलत काम करना, ये वे घटनाएं हैं जो आजकल अकसर समाचार पत्रों के किसी न किसी पन्ने पर आए दिन देखने को मिल जाती हैं। मात्र बच्चियां ही नहीं, छोटो मासूम बच्चे भी ऐसे अपराधियों के शिकार बनने लगे हैं। यदि इस बात का अधिक से अधिक प्रचार किया जाए कि पाक्सो एक्ट की धाराएं कितनी कठोर हैं तो शायद अपराधी अपराध करने से एक बार हिचकेगा। चाणक्य ने सही कहा था कि ‘‘दण्ड के भय के बिना कोई समाज सुरक्षित नहीं रह सकता है।’’  
छोटे बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध की बढ़ती संख्या देखकर ही सरकार ने वर्ष 2012 में एक विशेष कानून बनाया था। जो बच्चों को छेड़खानी, बलात्कार और कुकर्म जैसे मामलों से सुरक्षा प्रदान करता है। उस कानून का नाम पॉक्सो एक्ट। इस पाॅक्सो एक्ट का पूरा नाम है - ‘‘प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट’’। महिला और बाल विकास मंत्रालय ने पाॅक्सो एक्ट-2012 को बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न और यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए बनाया था। वर्ष 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है। जिसका कड़ाई से पालन किया जाना भी सुनिश्चित किया गया है। इस अधिनियम की धारा 4 के तहत वो मामले शामिल किए जाते हैं जिनमें बच्चे के साथ दुष्कर्म या कुकर्म किया गया हो. इसमें सात साल सजा से लेकर उम्रकैद और अर्थदंड भी लगाया जा सकता है।
पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के अधीन वे मामले लाए जाते हैं जिनमें बच्चों को दुष्कर्म या कुकर्म के बाद गम्भीर चोट पहुंचाई गई हो। इसमें दस साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है और साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वो मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के प्राईवेटपार्ट से छेडछाड़ की गई हो। इस धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध हो जाने पर पांच से सात साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
पॉक्सो एक्ट की धारा 3 के तहत पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट को भी परिभाषित किया गया है। जिसमें बच्चे के शरीर के साथ किसी भी तरह की हरकत करने वाले शख्स को कड़ी सजा का प्रावधान है। दरअसल, 18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का यौन व्यवहार इस कानून के दायरे में आ जाता है। यह कानून लड़के और लड़की को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है। इस कानून के तहत पंजीकृत होने वाले मामलों की सुनवाई विशेष अदालत में होती है।
पाॅक्सो एक्ट लागू किए जाने के बाद बारह वर्ष से कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म में फांसी की सजा का प्रावधान रखा गया था,  किन्तु बाद में अनुभव किया गया कि बालकों को भी इस एक्ट के तहत न्याय दिए जाने की व्यवस्था होनी चाहिए। इसीलिए एक्ट में संशोधन किया गया और  बालकों को भी यौन शोषण से बचाने और उनके साथ दुराचार करने वालों को फांसी की सजा का प्रावधान तय किया गया। इसके अंतर्गत केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने लड़की-लड़कों दोनों यानी बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के बाल यौन अपराध संरक्षण कानून (पाॅस्को) 2012 में संशोधन को मंजूरी दे दी। संशोधित कानून में 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ दुष्कर्म करने पर मौत की सजा तक का प्रावधान है। इसके अलावा बाल यौन उत्पीड़न के अन्य अपराधों की भी सजा कड़ी करने का प्रस्ताव है।
बच्चों के हित संरक्षित करने और बाल यौन अपराध को रोकने के उद्देश्य से लाया जा रहा पोस्को संशोधन विधेयक  के संबंध में तत्कालीन महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने स्पष्ट कहा था कि सभी बच्चों को इससे बचाने के लिए जेन्डर न्यूट्रल कानून पोस्को में संशोधन किया जाएगा। संशोधित कानून में पोस्को कानून की धारा 4, 5, 6, 9, 14, 15 और 42 में संशोधन करने का प्रस्ताव है। धारा 6 एग्रीवेटेड पेनीट्रेटिव सैक्सुअल असाल्ट पर सजा का प्रावधान करती है। अभी इसमें न्यूनतम 10 वर्ष की कैद है जो कि बढ़कर उम्रकैद व जुर्माना तक हो सकती है। प्रस्तावित संशोधन में न्यूनतम 20 वर्ष की कैद जो बढ़ कर जीवन पर्यन्त कैद और जुर्माने के अलावा मृत्युदंड तक का प्रावधान किया गया है। धारा 5 में संशोधन करके जोड़ा जाएगा कि अगर यौन उत्पीड़न के दौरान बच्चे की मृत्यु हो जाती है तो उसे एग्रीवेटेड पेनीट्रेटिव सैक्सुअल असाल्ट माना जाएगा। इसके अलावा प्राकृतिक आपदा के शिकार बच्चे का यौन उत्पीड़न भी इसी श्रेणी का अपराध माना जाएगा।
धारा चार में संशोधन करके 16 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ पेनीट्रेटिव सैक्सुअल असाल्ट में न्यूनतम सात साल की सजा को बढ़ा कर न्यूनतम 20 साल कैद करने का प्रस्ताव है जो कि बढ़ कर उम्रकैद तक हो सकती है। पैसे के बदले यौन शोषण और बच्चे को जल्दी बड़ा यानी वयस्क करने के लिए हार्मोन या रसायन देना भी एग्रीवेटेड सैक्सुअल असाल्ट माना जाएगा। धारा 15 में संशोधन होगा जिसमें व्यवसायिक उद्देश्य से बच्चों की पोर्नोग्राफी से संबंधित सामग्री एकत्रित करने पर न्यूनतम तीन साल की सजा का प्रावधान किया जा रहा है इससे ये धारा गैर जमानती अपराध की श्रेणी में आ जाएगी।
भारतीय दंड संहिता में धारा 376 में बलात्कार के अपराधी को सजा दी जाती है। लेकिन अगर बलात्कार पीड़िता कोई नाबालिग हो, तो उसके साथ एक और धारा बढ़ जाती है। उसे बलात्कार के अलावा पाक्सो एक्ट के तहत भी सजा दी जाती है. 27 दिसंबर, 2018 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली कैबिनेट ने इसी पॉक्सो ऐक्ट को और भी कड़ा कर दिया। जिसके बाद इस ऐक्ट के तहत दोषी लोगों को फांसी तक की सजा हो सकती है। इस ऐक्ट को बच्चों को यौन अपराधों से बचाने, यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी से बचाने के लिए लागू किया गया था. 2012 में ये ऐक्ट इसलिए बनाया गया था, ताकि बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराधों का ट्रायल आसान हो सके और अपराधियों को जल्द सजा मिल सके. इस ऐक्ट में 18 साल से कम उम्र वाले को बच्चे की कैटेगरी में रखा जाता है। 2012 से पहले बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को लेकर कोई खास नियम-कानून नहीं था।
यदि पीड़ित बच्चा अथवा बच्ची मानसिक रूप से बीमार है या बच्चे से यौन अपराध करने वाला सैनिक, सरकारी अधिकारी या कोई ऐसा व्यक्ति है, जिस पर बच्चा भरोसा करता है, जैसे रिश्तेदार, पुलिस अफसर, टीचर या डॉक्टर, तो इसे और संगीन अपराध माना जाएगा। अगर कोई किसी नाबालिग लड़की को हॉर्मोन्स के इंजेक्शन देता है, ताकि वक्त के पहले उनके शरीर में बदलाव किया जा सके, तो ऐसे भी लोगों के खिलाफ पॉक्सो ऐक्ट के तहत केस दर्ज किया जाता है।
इस ऐक्ट ने यौन अपराध को रिपोर्ट करना अनिवार्य कर दिया है। यानी अगर आपको किसी बालिका के साथ होने वाले यौन अपराध की जानकारी है, तो ये आपकी कानूनी ज़िम्मेदारी है कि उस संबंध में रिपोर्ट की जाए। ऐसा न करने पर अपराध की जानकारी छिपाने के अपराध में 6 महीने की जेल और जुर्माना हो सकता है। ऐक्ट के अनुसार किसी केस के स्पेशल कोर्ट के संज्ञान में आने के 30 दिनों के अंदर क्राइम के सबूत इकट्ठे कर लिए जाने चाहिए और स्पेशल कोर्ट को ज़्यादा से ज़्यादा से एक साल के अंदर ट्रायल पूरा कर लिया जाना चाहिए। बालिका का मेडिकल 24 घंटे के भीतर हो जाना चाहिए। ऐक्ट के तहत स्पेशल कोर्ट को सुनवाई कैमरे के सामने करने की कोशिश करनी चाहिए। साथ ही, कोर्ट में बालिका के माता-पिता या कोई ऐसा व्यक्ति उपस्थित होना चाहिए, जिस पर पीड़ित बालिका भरोसा करती हो।
पाॅक्सो ऐक्ट अनुसार केस जितना गंभीर हो, सज़ा उतनी ही कड़ी होनी चाहिए। बाकी कम से कम 10 साल जेल की सज़ा तो होगी ही, जो उम्रकैद तक बढ़ सकती है और जुर्माना भी लग सकता है. बच्चों के पॉर्नॉग्राफिक मटीरियल रखने पर तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है। अप्रैल 2018 में  केंद्र सरकार ने पॉक्सो में एक अहम बदलाव किया। जिसके तहत प्रावधान रखा गया कि 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार करने पर मौत की सज़ा दी जाएगी अर्थात् इस ऐक्ट की कुछ धाराओं में दोषी पाए जाने पर मौत की सजा तक का प्रावधान कर दिया गया है। इस ऐक्ट में कहा गया है कि अगर कोई आदमी चाइल्ड पोर्नोग्राफी को बढ़ावा देता है, तो उसके खिलाफ भी पॉक्सो ऐक्ट के तहत कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। इस ऐक्ट की धारा 4, धारा 5, धारा 6, धारा 9, धारा 14, धारा 15 और धारा 42 में संशोधन किया गया है। धारा 4, धारा 5 और धारा 6 में संशोधन के बाद अब अपराधी को इस ऐक्ट के तहत मौत की सजा दी जा सकती है।
बच्चों को नृशंस अपराधों से बचाने के लिए तथा उन्हें न्याय दिलाने के लिए सभी को यह जानकारी होनी चाहिए कि पाक्सो एक्ट क्या है और उसके तहत कौन से प्रावधान हैं क्योंकि कानून की जानकारी अपराध का विरोध करने की शक्ति देती है। जैसे हर व्यक्ति को पता है कि हत्या के अपराध की सजा आजीवन कारावास से ले कर मृत्युदण्ड तक होती है तो व्यक्ति अपराध करने से पहले सौ बार सोचता है। इसी तरह यदि सभी को पाक्सो एक्ट के अंतर्गत निर्धारित कड़ी सजाओं का पता हो तो व्यक्ति छोटे बच्चों पर कृदुष्टि डालने से पहले एक बार ठिठकेगा जरूर। इसीलिए इस एक्ट का भरपूर प्रचार, प्रसार जरूरी है, ताकि बच्चे सुरक्षित माहौल पा सकें।   
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Tuesday, May 7, 2024

पुस्तक समीक्षा | ये नवगीत विगत धारा से आगे का आयाम रचते हैं | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

प्रस्तुत है आज 07.05.2024 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई डॉ श्यामसुंदर दुबे जी के नवगीत संग्रह  "ठौर-कुठौर" की समीक्षा।
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पुस्तक समीक्षा     
ये नवगीत विगत धारा से आगे का आयाम रचते हैं
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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नवगीत संग्रह - ठौर-कुठौर
कवि         - श्यामसुंदर दुबे
प्रकाशक     - बिम्ब-प्रतिबिम्ब पब्लिेकेशंस, शाॅप नं.4, ट्रेकऑन कोरियर, फगवाड़ा, पंजाब-01
मूल्य        - 350/-
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हिन्दी साहित्य जगत में डाॅ. श्यामसुंदर दुबे एक स्थापित नाम हैं। वे संस्कृतिविद हैं, प्रकृति के संवादी हैं और गद्य-पद्य दोनों विधा में समान अधिकार से सृजन करते हैं। वे अपने ललित निबंधों के लिए भी जाने जाते हैं। डाॅ. श्यामसुंदर दुबे ने नवगीत भी लिखे हैं। एक श्रेष्ठ नवगीतकार के रूप में भी उनकी पहचान है। ‘‘ठौर-कुठौर’’ उनका पांचवां नवगीत संग्रह है। इसमें वे नवगीत भी हैं जो कोरोनाकाल के बाद लिखे गए, इसलिए उनकी भावभूमि मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी है। नवगीत के उद्भव का उद्देश्य भी यही रहा है कि उसमें यथार्थ का अधिक समावेश हो किन्तु सम्पूर्ण कोमलता के साथ।
नवगीत को आधुनिक युग की काव्य धारा कहा जाता है। सन 1948 में अज्ञेय के संपादन में ‘‘प्रतीक’’ का ‘‘शरद अंक’’ आया, जिसमें अघोषित रूप से नवगीत विद्यमान थे। उस समय जो नए गीत आ रहे थे, वे पारम्परिक गीतों के मानक को तोड़ रहे थे और अपना अलग विधान रच रहे थे। सन 1958 में राजेन्द्र प्रसाद सिंह के संपादन में ‘‘गीतांगिनी’’ का प्रकाशन हुआ। ‘‘गीतांगिनी’’ में राजेन्द्र प्रसाद सिंह ने गीत की इस नूतन विधा को ‘‘नवगीत’’ का नाम दिया। इसी के साथ इस विधा का तात्विक विवेचन भी किया गया। राजेद्र प्रसाद सिंह की ‘आईना’ पत्रिका ने नवगीत को प्रमुखता से प्रकाशित किया गया। नवगीत अपने विकास के साथ-साथ अपनी कहन के विषय स्वयं निर्धारित करता गया। इसमें जहां ग्राम्य जीवन की विषमताओं का आरेखन था वहीं नगरीय यांत्रिकता भरी विडम्बनाओं का विवरण था। शंभुनाथ सिंह, रामदरश मिश्र, देवेद्र शर्मा इंद्र, कुंवर बेचैन, अनुप अशेष, वीरेद्र मिश्र, जहीर कुरेशी, महेश्वर तिवारी, ठाकुरप्रसाद सिंह, उमाकांत मालवीय, बुद्धिनाथ मिश्र, श्रीरामसिंह शलभ, नचिकेता, राजेन्द्र गौतम, नईम आदि वे नवगीतकार रहे जिन्होंने इस विधा को शिखर पर पहुंचा दिया। वीरेन्द्र आस्तिक के शब्दों में -‘‘अर्थात्मक दृष्टि से आज नवगीत गद्य कविता से किसी मायने में कम नहीं है।’’
डाॅ. श्यामसुंदर दुबे के नवगीतों में जीवन की विषमताओं एवं कठोरता का चित्रण है, किन्तु लालित्य भी है। वे अपनी बात सहजता से कहते हैं। उनके गीतों में आंतरिक तथा बाह्य प्रति संवेदनाओं का एक संतुलित स्वरूप दिखाई देता है। ‘‘ठौर-कुठौर’’ में श्यामसुंदर दुबे के संग्रहीत 77 नवगीतों में से कुछ की चर्चा बानगी के रूप में की जा सकती है। जैसे संग्रह का पहला नवगीत है ‘‘इस सुरंग में’’। इस नवगीत में कर्ज़, मंहगाई और लाचारी का वह दृश्य है जो सेाचने को विवश कर देता है कि हम किस वातावरण में जी रहे हैं, जहां भूख है, संत्रास है और छल-कपट है-
दिन भारी है
आरी के भीतर आरी है
कैसी ये पहरेदारी है
रातों लूटे चोर, दिनों में जेब कतराता
मिठबोला बेपारी है!
पुरखिन पूंजी
हाटों बिक गई
सूने घर की भूख बड़ी है
यह कैसी इमदाद
ऊंट के मुंह में जीरा जैसी
इजलासों में भीड़ खड़ी है!

गरीबी किसी जाति, धर्म अथवा समाज को नहीं चुनती है अपितु वह सिर्फ़ उस घर में कब्ज़ा किए रहती है जहां विपन्नता हो। फिर भी घोर विपन्नता में भी पास्परिक संबंधों की उष्मा उम्मीद की किरण और खुशी का एक कण संजोने की ताकत रखती है। ‘‘घर हिलता है’’ में इसी भाव को देखिए-
रिश्तों के पर्दों को
अब्बू की सुई जैसे सिल रही
घर की दीवार
इधर वर्षों से हिल रही
नींव का पत्थर क्या खिसका है
छप्पर की छाती कर्कश आवाजों की
छैनी से छिल रही !
पौर के कोने तक
कुछ धूप अभी बाकी है,
तमाम कालिखों के बीच
झिलमिल-सी बिटिया, दिया बाती है!

डाॅ. श्यामसुंदर दुबे अपने नवगीतों में उन नबीन बिम्बों को चुनते हैं जो हमारे बीच, हमारे समाज में मौजूद हैं और हम कहीं न कहीं उन्हीं की तरह अपने आप को जी कर खुद को पहचान सकते हैं। ‘‘धुनिया’’ शीर्षक नवगीत में कवि ने एक धुनिया यानी रुई धुनने वाले की तरह जीवन जीने का आह्वान करते हैं ताकि विषमताओं के कारण मन में जमते जा रहे नैराश्य को धुन कर अलग किया जा सके। नवगीत का एक अंश देखिए-
तुम ही कुछ कहो
और केवल हम सुने
धुनिया बन
अपने ही भीतर की रूई को धुनें
रूई जो/प्रवादों के फाहों में
लिपट-लिपट गर्द और गुबार हुई,
अपनी ही आबरू
विचारों की पींजन में
चिन्दी-चिन्दी उडी और तार-तार हुई!
कौन सी/दिशा में मुड़ें
कब किससे हम जुड़ें
दोगले समय में आओ हम राह चुनें!

जब बुंदेलखंड के आधुनिक साहित्य की बात आती है तो बांदा निवासी चर्चित कवि केदारनाथ अग्रवाल के स्मरण के बिना चर्चा अधूरी रहती है। वहीं बुंदेलखंड की चर्चा आते ही इस भू-भाग से किसानों और श्रमिकों के पलायन का ज्वलंत बिन्दु भी जाग उठता है। श्यामसुंदर दुबे ने केदारनाथ का स्मरण करते हुए किसानों और श्रमिकों के पलायन की समस्या को बड़ी सहजता से प्रस्तुत किया है। ‘‘सूना है बुंदेलखंड’’ शीर्षक का यह पूरा नवगीत अपने-आप में अद्भुत है, जिसका एक अंश है -  
अब होते जो
अगर कवि जी
तो किससे कहते
करबी काटो/पत्थर तोड़ो
भरी भुजाओं से/मजदूरों
अड़ियल पथ के रूख को मोड़ो ।
सूना है बुंदेलखंड
मजदूर-किसानों से
हुआ पलायन इतना भारी
इक्के-दुक्के यहां गांव में अब वे दिखते।
श्यामसुंदर दुबे के नवगीतों में विषय की विविधता एवं संवेदनाओं का विस्तार है। वे समष्टि से व्यष्टि और व्यष्टि से समष्टि तक विचरण करते हैं। गोया वे भावनाओं के रेशे-रेशे को अपने नवगीत में बुन देना चाहते हैं। ‘‘आसक्तियों का अपरंपार’’ इसका एक अच्छा उदाहरण है- ‘‘समय की धार ने/कुछ चिह्न छोड़े/जीवन-नदी के इन पठारी तटों पर/अब बचा है-रेत का विस्तार!/बांचता हूं/इन्हें चश्मा चढ़ाकर/आंख पर/किसी पक्षी की कथा के/चित्र उभरे/एक टूटी पांख पर/नापता आकाश था जो/पेड़ जिसको न्यौतते थे/व्याघ का शर चुभा था जिसे/वह क्रौंच में ही था/सिमट आया चिलाचिलाती रेत पर/जिसका ब्यथा संसार।’’
वस्तुतः ‘‘ठौर-कुठौर’’ नवगीत संग्रह में डाॅ श्यामसुंदर दुबे के नवगीत एक ऐसा संसार रचते हैं जहां भावनाओं की गहराई है और जीवन का सच है। इसमें भाषाई सौम्यता है, निर्झरणी के प्रवाह-सी शैली है तथा वैचारिक गाम्भीर्य है। ये नवगीत भावनाप्रधान होते हुए भी बौद्धिक चेतना से ओतप्रोत हैं। ये नवगीत विगत धारा से आगे का आयाम रचते हैं। निःसंदेह यह नवगीत संग्रह हिन्दी काव्य को समृद्ध करने वाली कृति है।                    -------------------------
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Monday, May 6, 2024

टॉपिक एक्सपर्ट | पत्रिका | कछू करियो, ने करियो, मतदान जरूर करियो | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

पत्रिका | टॉपिक एक्सपर्ट | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली में
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टाॅपिक एक्सपर्ट
कछू करियो, ने करियो, मतदान जरूर करियो
    - डॉ (सुश्री) शरद सिंह
      जे सई के अपने इते भौत कमी आए। मुतके काम ऐसे डरे के कभऊं-कभऊं लगत आएं के जे अपन की जिनगी में तो कभऊं पूरे ने हुइयें। कछू काम चल रए, सो उनकी स्पीड देख के चिटियां सोई शरमां जाएं। उत्तई नईं, गजब की बात तो जे आए के बनी-बनाई सड़क खोदबे को काम में कोनऊं अलाली नईयां। अभईं रजाखेड़ी रोड पे गई रई, सो देखी के रोड खुदी डरी। पूछबे पे पतो परो के उते पाईप लाईन डरने। सो, का प्लानिंग वारे भैया हरें साजी रोड बनबे खों तके बैठे हते, जो पैले पाईप लाईन ने डार पाए। जे सोई सांची आए के अपने इते अच्छे औ सस्ते इलाज के लाने बाहरे भगने परत आए। जे सोई सई आए के अपने इते रेलगाड़ियां कम आएं। चीलगाड़ी मने हवाई जहाज की तो बातई छोड़ो। अपने इते के तला की का कएं, ऊपे बनो कारीडोर फटो जा रओ। ऊपे दरारें दिखन लगीं। सो, इते समस्याएं तो मनो कुल्ल आएं, इत्ती के गिनाबे बैठो सो उंगरियां दुखन लगें।
     मनो, ईको मतलब जे नोईं के अपन मतदान करबे खों ने जाएं। एक भैया मिले सो कैन लगें के कोनऊं कछू नईं करत, हम काए जाएं मतदान करबे? अब जे का बात भई? अरे, अपन ओरन खों गुस्सा है अधिकारियन पे, अपने नेता हरों पे सो तब तो मतदान करबे और पौंचो चाइए। अपनों मतदान को पावर दिखा दओ चाइए। जोन उम्मीदवार ठीक लगे, उनको जिताओ औ अपनों पावर दिखाओ। घरे बैठ के गरियाबे से कछू ने हुइए। जेई तो टेम आए बताबे को के आप का चात हो? सो, हमाई मानो तो कछू करियो, चाए ने करियो, मनो मतदान जरूर करियो। ईसे सबको भलो हुइए।
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Thank you Patrika 🙏
Thank you Dear Reshu Jain 🙏
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Friday, May 3, 2024

डॉ वर्षा सिंह की तृतीय पुण्यतिथि पर डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा संजीवनी बालाश्रम में भोजन कराया गया

आज तीसरे वर्ष ... वर्षा दीदी की स्मृति में आज संजीवनी बालाश्रम में बच्चों को भोजन कराया... दीदी को बच्चों से बहुत प्रेम था.... 
  इस बालाश्रम को निराश्रित बच्चों को आश्रय देने के लिए स्व.श्रीमती सत्यभामा अरजरिया जी ने आरम्भ किया था। उनके बाद से उनकी बहू श्रीमती प्रतिमा अरजरिया उनके दायित्व का बखूबी निर्वहन कर रही हैं।
       मुझे यह देखकर सुखद लगा कि वहां रहने वाली कई बच्चियां मुझे पहचानने लगी है और मेरे पहुंचने पर वे बहुत खुश हुईं ... दरअसल, व्यर्थ आडंबर में पढ़ने के बजाय बच्चों को दो पल कघ खुशी देना मुझे ज्यादा अच्छा लगता है क्योंकि मुझे पता है कि यदि दीदी होती तो वे भी यही करतीं।
 🚩 हार्दिक आभार प्रिय बहन प्रतिमा जी 🙏
  🚩हार्दिक आभार दीदी के प्रति सम्मान एवं स्नेह रखने वाले श्री पंकज शर्मा जी, जो  निःस्वार्थ भाव से सदा सहयोग करते हैं 🙏

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मेरी दीदी डॉ वर्षा सिंह की तृतीय पुण्यतिथि

03 मई 2021... कोरोना का वह भयानक दौर... 5 दिनों का जीवन संघर्ष... उस दौर का अकेलापन मेरी जिंदगी का अकेलापन बन गया ... यही वह तारीख़ है जिसने मुझसे मेरी वर्षा दीदी को छीन लिया... बस, हर पल यही लगता है कि मुझे उनकी जगह होना चाहिये था... और मेरे बदले उन्हें यहां होना चाहिए था... दुनिया के लिए वे डॉ Varsha Singh थीं... कवयित्री थ़ी... ग़ज़लकार थीं... लेकिन मेरे लिए तो मेरी वह "दीदू" थीं जिनकी उंगली पकड़ कर मैंने चलना सीखा था... जिनसे हंसना, मुस्कुराना सीखा था... आज दीदी के बिना ज़िंदगी... ज़िंदगी नहीं लगती है...
 😢 दीदी! तुम्हारा साक्षात मेरे साथ न होना मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी कमी है... बस, तुम्हारे साथ होने के अहसास के सहारे ज़िंदा हूं...अपनी इस अभागी "बेटू" को याद रखना😞😢🥺
Love you Didu ❤️ 
& Miss you lot 💔
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