आज 17.06.2025 को 'आचरण' में प्रकाशित - पुस्तक समीक्षा
पुस्तक समीक्षा
कटाक्ष का तीव्र पैनापन है इन कविताओं में
- समीक्षक डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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कविता संग्रह - स्वर्ग और नर्क
कवि - बद्री लाल ‘‘दिव्य’’
प्रकाशक-जीएस पब्लिशर डिस्ट्रीब्यूटर्स, एफ-7, गली नं. 1,पंचशील गार्डन एक्स., नवीन शाहदरा, दिल्ली-110032
मूल्य - 350/-
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‘‘स्वर्ग और नर्क’’ काव्य संग्रह में कुल 51 कविताएं हैं। जिसमें हास्य, व्यंग तथा कटाक्ष तीनों भाव मौजूद हैं किन्तु कटाक्ष प्रभावी है। इस संग्रह के कवि बद्रीलाल ‘‘दिव्य’’ बिगड़ी हुई व्यवस्थाओं के प्रति चिंता का अनुभव करते हैं और इसीलिए वे अव्यवस्थाओं को सुधारना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि समाज और राजनीति में सब कुछ जनहित का हो जाए। यद्यपि उन्हें इस बात का भी अहसास है कि उनकी अभिलाष दुरूह है। जिस समाज की रग-रग में भ्रष्टाचार समा चुका हो उस समाज में एक स्वच्छ वातावरण स्थापित होते देखना, जागती आंखों से देखने वाले सपने के समान है। किंतु वे निराश नहीं हैं। उन्हें आशा है कि लोग अपनी विडंबनाओं के यथार्थ को समझेंगे और उन्हें सुधारने का प्रयास करेंगे। बद्रीलाल ‘‘दिव्य’’ की रचनाओं में तीव्र सामाजिक सरोकार होता है। वे हिन्दी और राजस्थानी में समान रूप से लिखते हैं। अपनी माटी और अपनी बोली के प्रति लगाव उन्हें सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति सजग रखता है। अब तक उनकी सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है जिनमें तीन काव्य संग्रह राजस्थानी में है।
संग्रह का नाम ‘‘स्वर्ग और नर्क’’ रखे जाने की सार्थकता इसमें संग्रहीत कविताओं को पढ़ने के बाद स्वतः स्पष्ट हो जाती है। वैसे स्वर्ग और नर्क की कल्पना मनुष्य ने स्वयं की अनियमितताओं पर अंकुश लगाने के लिए की है। जैसा कि कहा जाता है कि जो अच्छे काम करता है वह मरणोपरांत स्वर्ग जाता है, वहीं बुरे काम करने वाले को नर्क में जगह मिलती है। इस धारणा का विस्तृत वर्णन वेदव्यास कृत ‘‘महाभारत’’ में मौजूद है। यह संकल्पना मनुष्य को गलत काम करने से रोकने के आधार पर तय की गई। किंतु गलत कार्यों में लिप्त मनुष्य एक ढीठ व्यक्ति की भांति यही सोचता है कि स्वर्ग और नरक किसने देखा है अतः जो इच्छा हो वह करना चाहिए चाहे वह सही हो या गलत। स्वर्ग और नरक की इसी संकल्पना पर आधारित है संग्रह की शीर्षक कविता ‘‘स्वर्ग और नर्क’’-
किसी ने कहा -
नर्क में कौन जाता है
और स्वर्ग में कौन ?
मैंने कहा सिर्फ
वो आदमी ही
नर्क का भागीदार है।
जिसका भ्रष्टाचार, चोरी, घोटाला
अन्याय, दुराचार, हत्या, धोखाधड़ी
बलात्कार आदि /तत्वों पर
पूरा-पूरा अधिकार है।
शेष सभी पर
स्वर्ग/बरकरार है।
संग्रह की प्रथम कविता ‘‘दुल्हन ही दहेज है’’ एक चुटीली किंतु मंचीय शैली की कविता है। जो चुटकी लेती है, आईना दिखाती है और हंसाती भी है किंतु वह गहरा प्रभाव नहीं छोड़ती जो संग्रह की अन्य कविताओं में है। कुछ पंक्तियां देखिए -
मैंने कहा
दुल्हन ही दहेज है।
एक बोला-
‘‘लेकिन मुझे इससे परहेज है।’’
मैंने कहा ‘‘क्यों?’’
कहने लगा
मेरे एक ही लड़का है जो वकील है।
और तिजोरी की /बंद सील है।
मैंने कहा- भाई साहब !
इसमें फिर क्यों ढील है ?
इसे जानवरों के मेले में
ले जाइये।
और वहां बांध आइये।
वहां मुंह मांगा दाम
मिल जायेगा।
और बिना कमाए
जीवन भर का काम
चल जाएगा।
‘‘बेटी का बाप’’ कविता भी एक उम्दा कथ्य लिए हुए कमजोर कविता है। वहीं ‘‘आदमी से आदमियत तक’’ शीर्षक कविता अपने शिल्प और कथ्य दोनों दृष्टि से प्रभावी है-
कभी-कभी आदमी
अहर्निश लिप्त रहता है
अपनी जन्मजात/आदतों में ।
कर्म की प्रधानता से हटकर
आदमी कर देता है
अपनी हदें पार।
उसके हृदय में
लगा रहता है
कुटिलताओं का अम्बार ।
कोटा के वरिष्ठ साहित्यकार महेन्द्र नेह ने उचित लिखा है कि ‘‘कवि दिव्य की कविताएँ तीक्ष्ण व्यंग्य-बाणों से बेधने के साथ-साथ सामाजिक विसंगतियों के समाधान की दिशा भी निरूपित करती है। ... श्दिव्यश् के काव्य-लोक की पहचान मूलतः लोक भाषा और शैली से उद्भूत रही है। लोक में यदि आनंद की व्याप्ति है तो वहाँ पीड़ा और करुणा के स्वरों का आर्तनाद भी है, इसके साथ-साथ लोक में अभिजात-संसार के प्रति गहरे उपहास और व्यंग्य की सुक्तियों, चुटकुलों, किस्सों, कथाओं और गीतों की एक अविरल धारा भी अविरल बहती रहती है, ‘स्वर्ग और नर्क’ में शामिल कविताओं को पढ़ते हुए मुझे लगा कि कवि ने अपने परम्परा से प्राप्त लोक-अनुभवों और दृष्टि को एक नए आकार में ढालने की, अपने विचारों और चिंतन को एक नई दिशा में मोड़ने की सचेत पहल की है।’’
कवि बद्रीलाल ‘‘दिव्य’’ समाज में लड़कियों के प्रति बढ़ते अपराधों को देख कर वर्तमान दौर के किसी भी जिम्मेदार रचनाकार की भांति चिंतित एवं आक्रोशित हो उठते हैं। उनकी कविता है -‘‘दरिन्दों से हिसाब’’। इसमें उन्होंने व्यवस्था के खोखलेपन को भी खुल कर ललकारा है। कविता का एक अंश देखिए-
आजकल लड़कियों की
व्यथा को
समझना ही भारी है।
जो नहीं समझता
वो तो स्वयं ही
अत्याचारी है।
आज देश में लड़कियाँ
नहीं है सुरक्षित।
लूट लेते है अस्मत
अपने ही घर में भक्षित।
राष्ट्र के रखवाले
ये कैसी रक्षा कर रहे हैं।
शायद दुष्कर्मी भेड़ियों से
डर रहे हैं।
वर्दी तो हमारी स्वयं ही
लाचार है।
सुरक्षा के नाम पर
केवल थोथा प्रचार है।
कवि बद्रीलाल ‘‘दिव्य’’ के काव्य संग्रह ‘‘स्वर्ग और नर्क’’ की कविताओं से हो कर गुज़रना अव्यवस्था को ले कर उनके भीतर के आक्रोश के ताप को महसूस करने के समान हैं। वे कहीं भी सीमाओं का उल्लंघन नहीं करते किन्तु उनके आक्रोश की तीव्रता की धार बहुत पैनी है। वे खुले शब्दों में ललकारते हैं लापरवाह एवं भ्रष्टाचारी लोगों को। कविताओं की शैली व्यंजनात्मक है। भाषा आम बोलचाल की है, सहज, सुगम्य और संवादी। एक-दो कमजोर कविताओं को छोड़ दिया जाए तो पूरा संग्रह समृद्ध एवं प्रभावपूर्ण है। ये कविताएं भावनाओं एवं विचारों को आंदोलित करने में सक्षम हैं।
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कटाक्ष का तीव्र पैनापन है इन कविताओं में
- समीक्षक डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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कविता संग्रह - स्वर्ग और नर्क
कवि - बद्री लाल ‘‘दिव्य’’
प्रकाशक-जीएस पब्लिशर डिस्ट्रीब्यूटर्स, एफ-7, गली नं. 1,पंचशील गार्डन एक्स., नवीन शाहदरा, दिल्ली-110032
मूल्य - 350/-
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‘‘स्वर्ग और नर्क’’ काव्य संग्रह में कुल 51 कविताएं हैं। जिसमें हास्य, व्यंग तथा कटाक्ष तीनों भाव मौजूद हैं किन्तु कटाक्ष प्रभावी है। इस संग्रह के कवि बद्रीलाल ‘‘दिव्य’’ बिगड़ी हुई व्यवस्थाओं के प्रति चिंता का अनुभव करते हैं और इसीलिए वे अव्यवस्थाओं को सुधारना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि समाज और राजनीति में सब कुछ जनहित का हो जाए। यद्यपि उन्हें इस बात का भी अहसास है कि उनकी अभिलाष दुरूह है। जिस समाज की रग-रग में भ्रष्टाचार समा चुका हो उस समाज में एक स्वच्छ वातावरण स्थापित होते देखना, जागती आंखों से देखने वाले सपने के समान है। किंतु वे निराश नहीं हैं। उन्हें आशा है कि लोग अपनी विडंबनाओं के यथार्थ को समझेंगे और उन्हें सुधारने का प्रयास करेंगे। बद्रीलाल ‘‘दिव्य’’ की रचनाओं में तीव्र सामाजिक सरोकार होता है। वे हिन्दी और राजस्थानी में समान रूप से लिखते हैं। अपनी माटी और अपनी बोली के प्रति लगाव उन्हें सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति सजग रखता है। अब तक उनकी सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है जिनमें तीन काव्य संग्रह राजस्थानी में है।
संग्रह का नाम ‘‘स्वर्ग और नर्क’’ रखे जाने की सार्थकता इसमें संग्रहीत कविताओं को पढ़ने के बाद स्वतः स्पष्ट हो जाती है। वैसे स्वर्ग और नर्क की कल्पना मनुष्य ने स्वयं की अनियमितताओं पर अंकुश लगाने के लिए की है। जैसा कि कहा जाता है कि जो अच्छे काम करता है वह मरणोपरांत स्वर्ग जाता है, वहीं बुरे काम करने वाले को नर्क में जगह मिलती है। इस धारणा का विस्तृत वर्णन वेदव्यास कृत ‘‘महाभारत’’ में मौजूद है। यह संकल्पना मनुष्य को गलत काम करने से रोकने के आधार पर तय की गई। किंतु गलत कार्यों में लिप्त मनुष्य एक ढीठ व्यक्ति की भांति यही सोचता है कि स्वर्ग और नरक किसने देखा है अतः जो इच्छा हो वह करना चाहिए चाहे वह सही हो या गलत। स्वर्ग और नरक की इसी संकल्पना पर आधारित है संग्रह की शीर्षक कविता ‘‘स्वर्ग और नर्क’’-
किसी ने कहा -
नर्क में कौन जाता है
और स्वर्ग में कौन ?
मैंने कहा सिर्फ
वो आदमी ही
नर्क का भागीदार है।
जिसका भ्रष्टाचार, चोरी, घोटाला
अन्याय, दुराचार, हत्या, धोखाधड़ी
बलात्कार आदि /तत्वों पर
पूरा-पूरा अधिकार है।
शेष सभी पर
स्वर्ग/बरकरार है।
संग्रह की प्रथम कविता ‘‘दुल्हन ही दहेज है’’ एक चुटीली किंतु मंचीय शैली की कविता है। जो चुटकी लेती है, आईना दिखाती है और हंसाती भी है किंतु वह गहरा प्रभाव नहीं छोड़ती जो संग्रह की अन्य कविताओं में है। कुछ पंक्तियां देखिए -
मैंने कहा
दुल्हन ही दहेज है।
एक बोला-
‘‘लेकिन मुझे इससे परहेज है।’’
मैंने कहा ‘‘क्यों?’’
कहने लगा
मेरे एक ही लड़का है जो वकील है।
और तिजोरी की /बंद सील है।
मैंने कहा- भाई साहब !
इसमें फिर क्यों ढील है ?
इसे जानवरों के मेले में
ले जाइये।
और वहां बांध आइये।
वहां मुंह मांगा दाम
मिल जायेगा।
और बिना कमाए
जीवन भर का काम
चल जाएगा।
‘‘बेटी का बाप’’ कविता भी एक उम्दा कथ्य लिए हुए कमजोर कविता है। वहीं ‘‘आदमी से आदमियत तक’’ शीर्षक कविता अपने शिल्प और कथ्य दोनों दृष्टि से प्रभावी है-
कभी-कभी आदमी
अहर्निश लिप्त रहता है
अपनी जन्मजात/आदतों में ।
कर्म की प्रधानता से हटकर
आदमी कर देता है
अपनी हदें पार।
उसके हृदय में
लगा रहता है
कुटिलताओं का अम्बार ।
कोटा के वरिष्ठ साहित्यकार महेन्द्र नेह ने उचित लिखा है कि ‘‘कवि दिव्य की कविताएँ तीक्ष्ण व्यंग्य-बाणों से बेधने के साथ-साथ सामाजिक विसंगतियों के समाधान की दिशा भी निरूपित करती है। ... श्दिव्यश् के काव्य-लोक की पहचान मूलतः लोक भाषा और शैली से उद्भूत रही है। लोक में यदि आनंद की व्याप्ति है तो वहाँ पीड़ा और करुणा के स्वरों का आर्तनाद भी है, इसके साथ-साथ लोक में अभिजात-संसार के प्रति गहरे उपहास और व्यंग्य की सुक्तियों, चुटकुलों, किस्सों, कथाओं और गीतों की एक अविरल धारा भी अविरल बहती रहती है, ‘स्वर्ग और नर्क’ में शामिल कविताओं को पढ़ते हुए मुझे लगा कि कवि ने अपने परम्परा से प्राप्त लोक-अनुभवों और दृष्टि को एक नए आकार में ढालने की, अपने विचारों और चिंतन को एक नई दिशा में मोड़ने की सचेत पहल की है।’’
कवि बद्रीलाल ‘‘दिव्य’’ समाज में लड़कियों के प्रति बढ़ते अपराधों को देख कर वर्तमान दौर के किसी भी जिम्मेदार रचनाकार की भांति चिंतित एवं आक्रोशित हो उठते हैं। उनकी कविता है -‘‘दरिन्दों से हिसाब’’। इसमें उन्होंने व्यवस्था के खोखलेपन को भी खुल कर ललकारा है। कविता का एक अंश देखिए-
आजकल लड़कियों की
व्यथा को
समझना ही भारी है।
जो नहीं समझता
वो तो स्वयं ही
अत्याचारी है।
आज देश में लड़कियाँ
नहीं है सुरक्षित।
लूट लेते है अस्मत
अपने ही घर में भक्षित।
राष्ट्र के रखवाले
ये कैसी रक्षा कर रहे हैं।
शायद दुष्कर्मी भेड़ियों से
डर रहे हैं।
वर्दी तो हमारी स्वयं ही
लाचार है।
सुरक्षा के नाम पर
केवल थोथा प्रचार है।
कवि बद्रीलाल ‘‘दिव्य’’ के काव्य संग्रह ‘‘स्वर्ग और नर्क’’ की कविताओं से हो कर गुज़रना अव्यवस्था को ले कर उनके भीतर के आक्रोश के ताप को महसूस करने के समान हैं। वे कहीं भी सीमाओं का उल्लंघन नहीं करते किन्तु उनके आक्रोश की तीव्रता की धार बहुत पैनी है। वे खुले शब्दों में ललकारते हैं लापरवाह एवं भ्रष्टाचारी लोगों को। कविताओं की शैली व्यंजनात्मक है। भाषा आम बोलचाल की है, सहज, सुगम्य और संवादी। एक-दो कमजोर कविताओं को छोड़ दिया जाए तो पूरा संग्रह समृद्ध एवं प्रभावपूर्ण है। ये कविताएं भावनाओं एवं विचारों को आंदोलित करने में सक्षम हैं।
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