चर्चा प्लस | अपनी समसामयिक महत्ता एवं प्रासंगिकता है भागवत कथा आयोजनों की | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर
चर्चा प्लस
अपनी समसामयिक महत्ता एवं प्रासंगिकता है भागवत कथा आयोजनों की
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
इन दिनों भागवत कथा का आयोजन लगभग हर गांव, शहर, कस्बे में होता रहता है। भागवत कथा सुनाने के लिए कथा वाचकों को आमंत्रित किया जाता है। सामर्थ्य के अनुसार प्रसिद्धिवान कथावाचक बुलाए जाने का चलन है। जिस स्थान पर कथा होती है, वहां से कई-कई किलोमीटर दूर से श्रवणकर्ता भागवत कथा सुनने आते हैं। वे श्री कृष्ण की कथाएं सुनते हैं। कथावाचक द्वारा गाए जाने वाले भक्तिमय गानों पर झूमते-थिरकते हैं। हमारी सांस्कृतिक परंपराओं के अनुरूप होता है उत्सवी वातावरण। किन्तु धर्म का मर्म कितने लोग समझ पाते हैं यह कहना कठिन है।
अभी हाल ही में मेरे शहर में भागवत कथा का बहुत बड़ा आयोजन हुआ। जिसमें सुप्रसिद्ध कथावाचक ने सात दिन तक कथा सुनाई। अपार जनसमूह उमड़ा रहा। इसी प्रकार के पिछले वर्ष के आयोजन में मैं भी कथा सुनने तथा उत्सवी वातावरण को महसूस करने कथा-स्थल पर गई थी। इस बार कतिपय कारणोंवश जाना नहीं हो सका। मेरे एक परिचित को जब यह ज्ञात हुआ कि मैं नहीं जा पाई तो उन्होंने भारी शोक प्रकट किया। उन्होंने इस प्रकार मुझे जताने का प्रसास किया कि मैंने जीवन का एक बहुत सुनहरा अवसर गवां दिया है। अफसोस मुझे भी था किन्तु जीवन के अन्य जरूरी काम भी छोड़े नहीं जा सकते हैं। फिर वह आयोजन स्थल मेरे घर से बहुत दूर था, शहर के दूसरे छोर पर। मैंने जब उन सज्जन से ढेर सारे उलाहने सुन लिए तब उकता कर मैंने उनसे पूछा कि क्या प्रहलाद चरित्र भी सुनाया गया था? यदि सुनाया गया था तो किस दिन? उनका उत्तर था, ‘‘अब ये तो याद नहीं है। बाकी, कथावाचक बड़े सुंदर ढंग से कथा कह रहे थे।’’
‘‘हर कथावाचक सुंदर ढंग से कथा कहते हैं, फिर ये तो बहुत प्रसिद्ध कथावाचक थे। मैं तो यह जानना चाहती हूं कि आपने क्या सुना और क्या गुना?’’ मैंने सीधे-सीधे पूछा।
‘‘अब हम सुनबे खों गए रहे, रटबे खों थोड़ी?’’ वे सज्जन खिसिया कर बुंदेली में बोले।
मैंने इसके आगे उनसे कुछ नहीं कहा। मुझे लगा कि चलो कथा न सही उत्सव का सुख तो इन्होंने पा ही लिया है, यही बहुत है। फिर मुझ लगा कि जो भी जन भागवत कथा सुनने जाते हैं क्या वे भागवत कथा का सही अर्थ समझ पाते हैं? या भक्ति के वातावरण में मात्र डुबकी लगा कर चले आते हैं? आखिर क्या है भागवत कथा?
वस्तुतः भागवत कथा, श्रीमद्भागवत पुराण पर आधारित 7 दिवसीय एक धार्मिक आयोजन है, जिसमें एक कथावाचक भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं और शिक्षाओं को सुनाते हैं। इसका मुख्य विषय भक्ति योग है, जिसमें भगवान कृष्ण को सर्वोपरि देव माना गया है। कथा के माध्यम से ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का संदेश दिया जाता है। यह भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का मार्ग दर्शाती है, जिसके श्रवण से आध्यात्मिक विकास और मन की शांति प्राप्त होती है। इस आयोजन का उद्देश्य भक्तों को भगवान कृष्ण के जीवन से जोड़ना और उन्हें जीवन के कष्टों से मुक्ति दिलाना है। यह आध्यात्मिक उत्थान और मन की शांति लाती है। इसे धार्मिक दृष्टि से कलियुग में पापों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति का एक सरल साधन माना जाता है। यह भगवान के प्रति भक्ति को गहरा करती है और जीवन के उद्देश्य की समझ बढ़ाती है।
श्रवण मात्र से ही पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इससे भी बढ़ कर यह जीवन जीने की एक अद्भुत शैली सिखाती है। बशर्ते कोई इसके वास्तविक मर्म को समझ ले।
पुराण का अर्थ है - जो प्राचीन होते हुए भी सदा नवीन है अर्थात “पुरा अपि नवं इति प्रमाणं”। पुराण में 5 लक्षण होते हैं परन्तु श्रीमद्भागवत पुराण नहीं, अपितुय महापुराण है, जो सर्गादि 10 लक्षणों से युक्त है। इसमें गायत्री का महाभाष्य, जिसमें वृत्रासुर के वध की कथा है ।
यत्राधिक्षुत्र गायत्रीं वर्ण्यते धर्म विस्तर।
वृत्रासुर वधोपेतं तदवै भागवतं विदुः।।
इसमें जीवन जीने की एक अद्धभुत शैली है। यह महापुराण विशिष्ट है। श्रीमद्भागवत महापुराण को भगवान श्रीकृष्ण का शब्दमय विग्रह, आध्यात्मिक रस की अलौकिक सरिता, असंतोष जीवन को शान्ति प्रदान करने वाला दिव्य संदेश तथा नर को नारायण बनाने वाली दिव्य चेतना से युक्त माना गया है । इसमें 12 स्कन्ध एवं 335 अध्याय हैं। इसे श्रीमद्भागवतं या केवल भागवतं भी कहा जाता है। ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का यह महान ग्रन्थ है। श्रीमद्भागवत महापुराण में भगवान नारायण के अवतारों का ही वर्णन है।
नैमिषारण्य में शौनकादि ऋषियों की प्रार्थना पर लोमहर्षण के पुत्र उग्रश्रवा सूत जी ने श्रीमद्भागवत महापुराण के माध्यम से श्रीकृष्ण के चैबीस अवतारों की कथा कही है। श्रीमद्भागवत महापुराण में श्रीकृष्ण के ईश्वरीय और अलौकिक रूप का ही वर्णन किया गया है। यह माना जाता है कि इसके पठन एवं श्रवण से भोग और मोक्ष तो सुलभ हो ही जाते हैं, मन शुद्ध होता है और चेतना जाग्रत होती है।
एक कथा के अनुसार एक बार भगवान् श्रीकृष्ण के सखा उद्धवजी ने श्री कृष्ण से एक प्रश्न किया कि ‘‘हे श्रीकृष्ण! जब आप सदेह अपने धाम चले जायेंगे, तब आपके भक्त इस धरती पर कैसे रहेंगे? वे किसकी उपासना करेंगे?’’ इस पर श्री कृष्ण ने उत्तर दिया कि ‘‘निर्गुण की उपासना करेंगे।’’ तब उद्धव ने पूछा,‘‘ भगवान! निर्गुण की उपासना में बहुत कष्ट है, अतः हे भगवन ! इस विषय में भली प्रकार से आप विचार करें।’’
मान्यता है कि उद्धव की बात का स्मरण करते हुए भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य देह के तेज को श्रीमद्भागवत महापुराण के ग्रन्थ में प्रवेश कर प्रतिष्ठित दिया और ‘‘पद्मपुराणान्तर्गत श्रीमद्भागवत माहात्म्य’’ के अनुसार उसी दिन से श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान श्री कृष्ण का ही शरीर माना जाता है-
स्वकीयं यद्भवेत्तेजसतच्च भागवतेदधात् ।
तिरोधाय प्रविष्टोऽयं श्रीमद्भागवतार्णवम।।
सात दिन चलने वाली भागवत कथा में प्रत्येक दिन के लिए विषय निर्धारित रहते हैं।-
प्रथम दिन - श्रीगणेश पूजन, श्रीमद्भागवत माहात्म्य, मंगलाचरण, भीष्म-पाण्डवादि चरित्र, परीक्षित जन्म एवं श्री शुकदेव प्राकट्य की कथाएं।
दूसरे दिन - ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, भगवान् विराट का प्राकट्य, विदुर-मैत्रेय संवाद, कपिलोपाख्यान
तीसरे दिन -सती चरित्र, ध्रुव चरित्र, जड़भरत व प्रह्लाद चरित्र की कथाएं।
चौथे दिन - गजेंद्र मोक्ष, समुद्र मंथन, वामन अवतार, श्रीराम चरित्र एवं श्रीकृष्ण प्राकट्योत्सव
पांचवें दिन - श्रीकृष्ण बाल लीलायें, श्रीगोवर्धन पूजा एवं छप्पनभोग का आनन्द।
छठें दिन - महारासलीला, श्रीकृष्ण मथुरा गमन, गोपी-उद्धव संवाद एवं रुक्मिणी मंगल।
सातवें दिन - सुदामा चरित्र, श्रीशुकदेव विदाई, व्यास पूजन, कथा विश्राम एवं हवन पूर्णाहुति।
- इस प्रकार सात दिनों के लिए कथाओं तथा अनुष्ठानों का निर्धारण किया जाता है। कथावाचक कथाओं की निरंतरा से उत्पन्न होने वाली बोरियत को दूर रखने के लिए भक्ति गीतों का सहारा लेते हैं जिससे रोचकता बनी रहती है तथा श्रवणकर्ताओं में उत्साह बना रहता है।
भागवत कथा की अपनी समसामयिक प्रासंगिकता है जिसे स्वीकार करना अनेक प्रगतिवादी व्यक्तियों के लिए कठिन होगा किन्तु यदि मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो साहित्य चाहे धार्मिक हो अथवा सामाजिक, पुरातन हो अथवा अधुनातन, दोनों की अपनी-अपनी मूल्यवत्ता होती है। जिसे सुन कर, पढ़ कर मन शांति, आनन्द एवं सदमार्ग को चुने जाते हैं जो श्रवणीय ही होती हैं। आज जब समाज से नैतिकता घटती जा रही है, ऐसे कठिन समय में यदि एक कथावाचक भागवत कथा के द्वारा नैतिक और व्यावहारिक मार्गदर्शन देता है तो, भागवत कथा की उपादेयता को नकारा नहीं जा सकता है। कथावाचक समकालीन मुद्दों को सामने रखकर प्राचीन शिक्षाओं को प्रासंगिक बनाते हैं, जिससे श्रोता अपने जीवन में समानताएं खोज सकते हैं। भागवत की शिक्षाएं इच्छाओं पर नियंत्रण रखना सिखाती हैं तथा स्वार्थरहित होकर करने कर्तव्य करने के लिए प्रेरित करती हैं। भागवत कथा मानसिक शांति प्रदान करती है। कथा परिसर का उत्सवी वातावरण नैराश्य भरे जीवन में उत्साह का संचार करता है। जीवन के प्रति राग उत्पन्न करता है तथा अतिशयता की स्थिति में बुरे कर्मों के प्रति वैराग्य भी उत्पन्न करता है। ऐसे आयोजन आज के युग में भौतिकवाद और आध्यात्मिक विवाद के दौर में उचित विचार-विमर्श की क्षमता जगाते हैं। भागवत कथाएं कभी भी धार्मिक कट्टरता को स्थान नहीं देती हैं वरन उनका आयोजन समरसता का वातावरण गढ़ता है, बशर्ते कट्टरता अथवा अतिप्रगतिवाद के चश्में को परे रख कर इन आयोजनों की ओर देखा जाए। इन्हें सुनने वाले भी यदि मन लगा कर कथाओं का मर्म आत्मसात करें तो जीवन सरस और सार्थक प्रतीत होगा।
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(दैनिक, सागर दिनकर में 26.11.2025 को प्रकाशित)
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