Wednesday, November 28, 2018

हां, आज मैंने मतदान किया ...डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh today Voted in Madhya Pradesh Legislative Assembly Election 2018, 28 November
 मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 में मैंने अपनी दीदी डॉ. वर्षा सिंह के साथ जाकर मतदान किया और मध्यप्रदेश के विकसित भविष्य की कामना की।
Dr (Miss) Sharad Singh today Voted in Madhya Pradesh Legislative Assembly Election 2018, 28 November

I am Voted in Madhya Pradesh Legislative Assembly Election 2018
Dr (Miss) Sharad Singh today Voted in Madhya Pradesh Legislative Assembly Election 2018, 28 November

Dr Varsha Singh today Voted in Madhya Pradesh Legislative Assembly Election 2018, 28 November

Dr (Miss) Sharad Singh and Dr Varsha Singh today Voted in Madhya Pradesh Legislative Assembly Election 2018, 28 November

Dr (Miss) Sharad Singh and Dr Varsha Singh today Voted in Madhya Pradesh Legislative Assembly Election 2018, 28 November


Dr (Miss) Sharad Singh today Voted in Madhya Pradesh Legislative Assembly Election 2018, 28 November

चर्चा प्लस .. आज है मध्यप्रदेश का लोक (तंत्र) पर्व - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस ...
    आज है मध्यप्रदेश का लोक (तंत्र) पर्व
         - डॉ. शरद सिंह
    जीवन में पर्व और उत्सव उत्साह का संचार करते हैं और भावी कार्यों के लिए ऊर्जा प्रदान करते हैं। ठीक इसी प्रकार लोकतांत्रिक जीवन में मतदान दिवस सबसे बड़ा पर्व होता है। यह प्रत्येक नागरिक को अहसास कराता है कि वह एक स्वतंत्र और मौलिक अधिकारों से परिपूर्ण राजनीतिक वातावरण में सांस ले रहा है, जहां वह अपने मनचाहे उम्मीदवार का चुनाव कर इच्छानुसार शासन को स्वरूप प्रदान कर सकता है। दरअसल, मतदान का अधिकार हर नागरिक को उसके सशक्त होने का स्मरण कराता है। तो आज है मध्यप्रदेश का लोक (तंत्र) पर्व यानी मध्यप्रदेश का मतदान दिवस।                                 
चर्चा प्लस .. आज है मध्यप्रदेश का लोक (तंत्र) पर्व  - डॉ. शरद सिंह , Charcha Plus Column of Dr (Miss) Sharad Singh in Daily Sagar Dinkar News Paper
    सन् 2018 के इस अंतिम दो माह में कुल पांच राज्यों में मतदान की तिथि घोषित है- मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम ओर तेलंगाना। छत्तीसगढ़ में दो चरणों का मतदान हो भी चुका है। आज 28 नवम्बर 2018 को मध्यप्रदेश में मतदान है।
मध्यप्रदेश उन भाग्यशाली राज्यों में से एक है जिसकी देश के स्वतंत्र होने के लगभग ढाई वर्ष बाद ही मध्यप्रदेश के नवीन स्वरूप की प्रक्रिया आरम्भ हो गई थी। सन् 1950 में सर्वप्रथम मध्यप्रांत और बरार को छत्तीसगढ़ की रियासतों के साथ मिलकर मध्यभारत का गठन किया गया। तब इसकी राजधानी नागपुर हुआ करती थी। इसके बाद 1 नवंबर 1956 को मध्य भारत, विंध्य प्रदेश तथा भोपाल राज्यों को (विदर्भ क्षेत्र को छोड़ कर) मिला कर मध्यप्रदेश का गठन हुआ। जानकारों के अनुसार पहले जबलपुर को राज्य की राजधानी के रूप में चिन्हित किया जा रहा था, परन्तु अंतिम क्षणों में इस निर्णय को बदलकर भोपाल को राज्य की नवीन राजधानी घोषित किया गया। एक बार फिर अर्थात् 1 नवंबर 2000 को मध्य प्रदेश का पुनर्गठन हुआ, और छत्त्तीसगढ़ मध्य प्रदेश से अलग होकर भारत का 26 वां राज्य बन गया। इसके पूर्व मध्य प्रदेश 1 नवंबर, 2000 तक क्षेत्रफल के आधार पर भारत का सबसे बड़ा राज्य था। छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के साथ ही मध्यप्रदेश के 14 जिले इससे अलग छत्तीसगढ़ राज्य के अंग बन गए। वैसे मध्य प्रदेश की सीमाएं पांच राज्यों की सीमाओं से मिलती है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश, पूर्व में छत्तीसगढ़, दक्षिण में महाराष्ट्र, पश्चिम में गुजरात, तथा उत्तर-पश्चिम में राजस्थान है। वर्तमान में मध्य प्रदेश 52 जिले हैं जिनमें टीकमगढ़ जिले को विभाजित कर 1 अक्टूबर 2018 को निवाड़ी को प्रदेश का 52 वां जिला घोषित किया गया।
मध्यप्रदेश प्राकृतिक सौंदर्य और संपदा का धनी है। विन्ध्य-सतपुड़ा, मैकल-कैमूर की पर्वतश्रृंखलाओं तथा नर्मदा, सोन, सिन्ध, चम्बल, बेतवा, केन, धसान, तवा, ताप्ती, शिप्रा, काली सिंध आदि नदियों से भरा-पूरा मध्यप्रदेश विशिष्ट लोकसंस्कृतियों की जन्मस्थली है। यहां मुख्यरूप से पांच सांस्कृतिक क्षेत्र हैं - बुन्देलखण्ड, बघेलखण्ड, निमाड़, मालवा और चंबल। मध्यप्रदेश वह भू-भाग है जिसे प्रागैतिहासिक काल में भी मनुष्य ने अपने जीवनयापन के स्थान के रूप में चुना था। आबचंद (सागर), भीमबैठका (भोपाल) और रायसेन जिले के भित्तिचित्र इसके सबूत हैं। प्रदेश के तीन स्थलों को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया जा चुका है- सन् 1986 में खजुराहो के मंदिर, सन् 1989 में सांची के स्तूप और सन् 2003 में भीमबेटका की रॉक शेल्टर। प्रदेश के अजयगढ़, अमरकंटक, असीरगढ़, बांधवगढ़, बावनगजा, भोपाल, विदिशा, चंदेरी, चित्रकूट, धार, ग्वालियर, इंदौर, जबलपुर, बुरहानपुर, महेश्वर, मंडलेश्वर, मांडू, ओंकारेश्वर, ओरछा, पचमढ़ी, शिवपुरी, सोनागिरि, मण्डला, उज्जैन, तुमैन आदि में धर्म, स्थापत्य एवं प्रकृति के आकर्षक स्थल हैं। मध्य प्रदेश में अपनी शास्त्रीय और लोक संगीत के लिए विख्यात है। विख्यात हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत घरानों में मध्य प्रदेश के मैहर घराने, ग्वालियर घराने और सेनिया घराने शामिल हैं। संगीत सम्राट कहे जाने वाले संगीतकार तानसेन और बैजू बावरा वर्तमान मध्य प्रदेश के ग्वालियर के पास जन्मे थे। प्रसिद्ध ध्रुपद गायक अमीनुद्दीन डागर इंदौर में, गुंदेचा ब्रदर्स और उदय भवालकर उज्जैन में जन्मे थे। पार्श्व गायक किशोर कुमार का खंडवा और स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का इंदौर जन्मस्थान है। मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक संपदा आज भी फल-फूल रही है।
इतिहास और संस्कृति के सुसम्पन्न राज्य में गौरवशाली राजनीतिक परम्पराएं भी रही हैं। यहां चाहे विधानसभा चुनाव हो या संसदीय चुनाव माहौल में कभी इतनी कड़वाहट नहीं आई कि चुनाव के बाद उम्मींदवार एक-दूसरे के प्रति बदले की भावना ले कर घूमें। हिन्दी भाषी अन्य राज्यों की अपेक्षा मध्यप्रदेश में चुनावी माहौल शांत और सौहार्द भरा ही रहा है। मध्यप्रदेश की शांतिप्रिय जनता मतदान के अपने कर्त्तव्य को भी एक उत्सव की तरह उत्साहपूर्वक मनाती आई है।
चुनाव आयोग के अनुसार 31 जुलाई 2018 को प्रारंभिक मतदाता सूची में मतदाताओं की संख्या चार करोड़ 94 लाख 99 हजार 897 थी, जो 27 सितंबर 2018 को पांच करोड़ तीन लाख 94 हजार 86 हो गई। अर्थात् सन् 2013 विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार आठ प्रतिशत (लगभग 38 लाख) मतदाता बढ़े हैं। चुनाव आयोग ने सूची में 36 लाख 13 हजार नए नाम जोड़े हैं तो 35 लाख 71 हजार अपात्रों के नाम हटाए भी गए। इसमें साढ़े सात लाख मतदाता वे थे, जिनकी मृत्यु हो चुकी है। चुनाव आयोग के अनुसार, सबसे ज्यादा मतदाता इंदौर में है। यहां की पांच विधानसभा में तीन लाख 67 हजार 979 मतदाता हैं। जबकि सबसे कम मतदाता अनूपपुर की कोतमा विधानसभा क्षेत्र में दर्ज हैं। यहां कुल एक लाख 49 हजार 589 मतदाता हैं। चुनाव आयोग के मुताबिक, पुरुष मतदाताओं की संख्या में तीन लाख छह हजार 31 की वृद्धि हुई है। तो महिलाओं मतदाताओं में यह बढ़ोतरी पांच लाख 88 हजार 34 रही। जबकि थर्ड जेंडर मतदाता भी 124 बढ़े हैं।
मध्यप्रदेश का मतदाता भी यह भली-भांति जानते हैं कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मतदान अत्यंत आवश्यक है। यह जरूरी है कि समस्त योग्य नागरिक मतदाता के रूप में पंजीकृत हों तथा समझदारी व नैतिक आधार पर बिना किसी लालच व प्रलोभन के अपने मताधिकार का प्रयोग करें तभी लोकतंत्र सुरक्षित रहता है। इसीलिए लोकतांत्रिक देश में मत का प्रयोग एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया के साथ संवैधानिक अधिकार माना गया है। इसलिए मत का प्रयोग करना प्रत्येक नागरिक का नैतिक कर्तव्य बन जाता है। मतदान में किसी प्रकार के पक्षपात का भय नहीं रहता है। चुनाव के दौरान मतदाता मतदान का महत्व समझते हुए अपने मत का प्रयोग करना लोकतंत्र को मजबूत बनाने में स्पष्ट जनभागीदारी होती है। यदि अतीत में झांक कर देखें तो मध्यप्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां नागरिकों द्वारा बिना किसी भेदभाव के थर्ड जेंडर के उम्मीदवार को भी अपने प्रतिनिधि के रूप में विभिन्न राजनीतिक पदों के चुना जा चुका है। अर्थात् यहां का मतदाता समझदार और स्व-विवेकी है। 
इस बार चुनाव आयोग और शासन-प्रशासन की ओर से भी चुनाव को उत्सवी बनाने में कोई कसर नहीं रखी गई। निर्वाचक नामावली एवं मतदान केंद्रों में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने पर पूरा ध्यान दिया गया। ईवीएम तथा वीवीपैट, स्वीप अभियान तथा विभिन्न प्रशिक्षण, निर्वाचन व्यय निगरानी, आदर्श आचरण संहिता का क्रियान्वयन तथा पालन, कानून-व्यवस्था तथा सुरक्षा प्रबंधों की जिलेवार समीक्षा की जाती रही है। मतदाताओं को जागरूक करने के लिए चलाए जा रहे स्वीप अभियान पर केंद्रित कॉफी टेबल बुक का प्रकाशन और विमोचन भी किया गया। यह सुनिश्चित किया गया कि मतदान केन्द्रों में बिजली सप्लाई बाधित न हो। केन्द्रों में पंखों की भी व्यवस्था की जाए।  बीएलओ घर-घर जाकर मतदाता पर्ची वितरित करें और जिले के मतदाताओं को पीले चावल भेंटकर मतदान के लिये आमंत्रित करें। महिला मतदाताओं के लिए अलग से मतदान केन्द्र भी बनाए गए हैं। निःशक्तजन के लिए विशेष व्यवस्थाएं रखी गई हैं ताकि वे आराम से मतदान कर सकें।
मध्यप्रदेश में आज 28 नवम्बर 2018 को हो रहे मतदान रूपी लोकतांत्रिक पर्व में प्रत्येक मतदाता पूरे उत्साह से भागीदार बन रहा है और मतदान समय समाप्त होने के बाद से प्रतीक्षा रहेगी परिणामों की। दिसम्बर 2018 की 11 तारीख चुनाव परिणाम और मतदाताओं के निर्णय के रूप में इस लोकतांत्रिक पर्व में एक अध्याय और जोड़ेगी।         
              -------------------------
(दैनिक ‘सागर दिनकर’, 28.11.2018)
#शरदसिंह #सागरदिनकर #दैनिक #मेराकॉलम     #Charcha_Plus #Sagar_Dinkar #Daily
#SharadSingh #MadhyaPradesh #Politics #Election #Voteing #LokParv #Festival_of_Democracy #LoktantraParv #लोकतंत्र_पर्व #राजनीति #चुनाव #मतदान #मध्यप्रदेश #लोक_पर्व

Tuesday, November 27, 2018

डॉ शरद सिंह राजस्थानी बांधनी साड़ी में... Dr Sharad Singh in Rajasthani Bandhani Saree

Dr Sharad Singh in Rajasthani Bandhani Saree
#राजस्थानी_बांधनी_सिल्क_साड़ी पहनी हो तो #Photo_Click भी ज़रूरी है... सच कहा न मैंने ?
तो ये है मेरी #Favorite #Saree ...
Dr Sharad Singh in Rajasthani Bandhani Saree
#Rajasthani_Bandhani_Saree
#Sharad_Singh
Dr Sharad Singh in Rajasthani Bandhani Saree

Dr Sharad Singh in Rajasthani Bandhani Saree

Dr Sharad Singh in Rajasthani Bandhani Saree

Friday, November 23, 2018

दैनिक भास्कर टॉक शो में डॉ शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh in Dainik Bhaskar Talk Show
प्रिय मित्रो,  "दैनिक भास्कर" सागर संस्करण द्वारा चुनावी माहौल के चलते स्थानीय मुद्दों पर आयोजित टॉक शो में भाग लेते हुए मैंने अपने विचार प्रकट किए जो आज 23.11.2018 के अंक में प्रकाशित हुए हैं। इसे आप भी पढ़िए...
Dr (Miss) Sharad Singh in Dainik Bhaskar Talk Show

Dr (Miss) Sharad Singh in Dainik Bhaskar Talk Show

Dr (Miss) Sharad Singh in Dainik Bhaskar Talk Show

Dr (Miss) Sharad Singh in Dainik Bhaskar Talk Show

गुरु नानक जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं !

Dr (Miss) Sharad Singh
Wish U Very Happy Guru Nanak Jayanti Friends 🙏
Shrestha Sikh Kathayen - A Story Book of Dr Sharad Singh

  यदि सिख धर्म की ज्ञानवर्द्धक रोचक कथाएं पढ़ना चाहते हैं तो मेरी पुस्तक 'श्रेष्ठ सिख कथाएं' amazon, flipcart और pustakorg की निम्नलिखित लिंक्स से मंगा कर पढ़ सकते हैं -

http://dl.flipkart.com/dl/shreshtha-sikh-kathayen/p/itmf4fkemu8vbyjp?pid=RBKF4FCXZ4GRQUFE&cmpid=product.share.pp

https://www.amazon.in/dp/818806081X/ref=cm_sw_r_wa_apa_i_3lS9BbZBTB1AK

https://www.pustak.org/index.php/books/bookdetails/10860/Shrestha%20Sikh%20Kathayein

इस किताब को लिखने की प्रेरणा ...
मुझे सबसे पहले जिस गुरुद्वारे में शीश झुकाने का सुअवसर मिला वह था ग्वालियर का ‘दाता बंदीछोर गुरुद्वारा। संयोगवश वह दशहरे के सात-आठ दिन पूर्व का समय था। मैं अपनी दीदी डॉ. वर्षा सिंह और पारिवारिक मित्र के साथ आगरा से ग्वालियर होते हुए सड़क मार्ग से लौट रही थी। आगरा से ग्वालियर के बीच अकालियों, निहंगों के जत्थे के जत्थे ट्रकों पर सवार हो कर ग्वालियर की ओर जाते दिखे।
‘ये लोग इधर कहां जा रहे हैं... मन में प्रश्न जागा। अधिकांश सिख पुरुष गहरे नीले रंग का लम्बा कुर्ता और पगड़ी पहने हुए थे। उनके चेहरे से प्रसन्नता फूट पड़ रही थी। उनका उत्साह देखते ही बनता था। कई जत्थे पंजाबी में जोशीले गीत गाते जा रहे थे। मुझे पंजाबी भाषा का कामचलाऊ ज्ञान है जबकि उनके गीत आंचलिक शैली की छाप लिए हुए थे अतः मुझे ठीक से समझ में नहीं आए।
जब हम लोग ग्वालियर पहुंचे तो वहां सबसे पहले ग्वालियर का किला घूमने का मन हुआ। किले में पहुंच कर दाता बंदीछोर गुरुद्वारे का पता चला। गुरुद्वारा परिसर में मैं यह देख कर दंग रह गई कि सिखों के जो जत्थे रास्ते में दिखे थे, उनमें से अधिकांश वहां मौजूद हैं। वहां मेले-सा माहौल था। कई सिख सपरिवार थे। उन्हीं में से एक सिख परिवार से मैंने जत्थों की इस यात्रा के बारे में पूछा। वे ठीक से हिन्दी न तो बोल पा रहे थे और न समझ पा रहे थे। वे पंजाबी के अलावा और कोई भाषा ठीक से बोलना-समझना नहीं जानते थे। फिर भी मेरा आशय समझ कर पति-पत्नी दोनों ने उमंग से भर कर बताया कि वे लोग ग्वालियर में मत्था टेकने के बाद नांदेड़ के लिए रवाना हो जाएंगे। उनकी गुडि़या जैसी प्यारी दो बेटियां थीं- हरमन और सिमरन।
वे जत्थे भी नांदेड़ जा रहे थे।
मैंने भी गुरुद्वारे में मत्था टेका, प्रसाद चढ़ाया और एक रागी से गुरुद्वारे का इतिहास जाना। वैसे मैंने सिख इतिहास पढ़ते समय गुरु हरगोबिन्द देव के जीवन से जुड़े ग्वालियर के गुरुद्वारे के बारे में पढ़ा था किन्तु जब मुझे भान हुआ कि ये तो वही गुरुद्वारा है तो मेरा मन रोमांचित हो उठा।
‘दाताबंदी छोर, गुरुद्वारे से लौट कर मैंने सबसे पहले सिख धर्म के इतिहास और परम्पराओं के विकास के बारे में पुनः अध्ययन किया। मैं जितना पढ़ती गई, जानती और समझती गई, उतना ही मेरा मन आन्दोलित होता गया। आज भी मेरे मन को यह प्रश्न कुरेदता है कि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के प्रति इतना नृशंस कैसे हो सकता है कि उसे खौलते तैल में डाल दे या उस पर जलती हुई रेत डाल दे... या फिर मासूम नन्हें बच्चों को दीवार में जीवित चुनवा दे... सचमुच सिख धर्म का विकास मर्मान्तक पीड़ा की आग में तप कर खरा सोना बनने की प्रक्रिया है। सिख धर्म को समझने के लिए जरूरी है कि व्यक्ति पहले अपने धर्म के चश्मे को उतार कर दूर रख दे।
‘पटना साहिब वह दूसरा गुरुद्वारा है जहां मत्था टेकने का मुझे सौभाग्य मिला। यह भी धर्म के साथ-साथ ऐतिहासिक महत्व का गुरुद्वारा है। ‘पटना साहिब गुरुद्वारे की विशालता और भव्यता देखते ही बनती है। यूं भी प्रत्येक गुरुद्वारे की सुव्यवस्था और सर्वधर्मप्रियता अनुकरणीय है।
‘पटना साहिब गुरुद्वारे के दर्शन करने के बाद सागर लौट कर मैंने परिचित सिख परिवारों के बड़े-बुजुर्गों से गुरुग्रंथ साहिब के बारे में और जानकारी प्राप्त की। इसी के दौरान सुप्रचलित सिख कथाओं को सुनने और जानने का अवसर मिला।........परिणामस्वरूप ‘श्रेष्ठ सिख कथाएं’ पुस्तक का रूप ले सकीं।

Thursday, November 22, 2018

चर्चा प्लस .. बुंदेलखण्ड में राजनीति, चुनाव और महिलाएं - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस ... 

बुंदेलखण्ड में राजनीति, चुनाव और महिलाएं
- डॉ. शरद सिंह 

बात आती है महिला वोट उगाहने की तो महिलाओं के हित में बड़ी-बड़ी घोषणाएं होने लगती हैं और बड़ी तत्परता से अलग महिला बूथ भी बनाए जाने लगते हैं। वहीं दूसरी ओर राजनीति में महिला आरक्षण को दरकिनार कर दिया जाता है। ऐसी दशा में बुंदेलखण्ड जैसा क्षेत्र जहां महिलाएं अपने बहुमुखी विकास के लिए अभी भी अनुकूल वातावरण की बाट जोह रही ह
ैं, राजनीतिक दलों द्वारा अविश्वास की शिकार हो रही हैं। बड़ी विचित्र स्थिति है। इस स्थिति से उबरने के लिए स्वयं महिलाओं को अभी लम्बा संघर्ष करना होगा और इसके लिए जरूरी है कि वे इस बार के चुनाव में बिना किसी प्रलोभन में आए सही उम्मीवार को चुन कर अपने भविष्य की रूपरेखा तय करें। यह आशा कठिन है लेकिन असंभव नहीं।
चर्चा प्लस .. बुंदेलखण्ड में राजनीति, चुनाव और महिलाएं - डॉ. शरद सिंह Charcha Plus a column of Dr (Miss) Sharad Singh in Sagar Dinkar, Daily, Sagar M.P.
चुनावों की टिकट वितरण के पूर्व मैंने अपने इसी कॉलम में विगत 08 अगस्त 2018 को लिखा था -‘‘चुनावों के निकट आते ही सबसे पहले प्रश्न उठते हैं, किसको टिकट मिलेगी और किसको नहीं? कौन-सा राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों में महिलाओं का प्रतिशत बढ़ाएगा? लेकिन क्या महिला उम्मीदवारों के आंकड़े बढ़ने से ही राजनीति में महिलाओं की पकड़ बढ़ जाएगी? सच तो यह है कि चुनाव निकट आते ही महिलाओं की तरफ़दारी करने वाले बयानों की बाढ़ आ जाती है किन्तु चुनाव होते ही किए गए वादे ठंडे बस्तों में बंधने लगते हैं, विशेषरूप से राजनीति में महिलाओं के प्रतिशत को ले कर। बुंदेलखंड के संदर्भ में देखा जाए तो बहुत ही विचित्र स्थिति दिखाई देती है। बुंदेलखंड जो दो राज्यों मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में फैला हुआ है, दोनों की एक साथ बात की जाए तो आंकड़ों के अनुसार राजनीति में महिलाओं की स्थिति काफी बेहतर दिखाई देती है। लेकिन ज़मीनी सच्चाई आंकड़ों के परिदृश्य से अलग ही तस्वीर दिखाती है। .... इस बार आमसभा चुनावों में कौन-सा राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों की सूची में महिलाओं का प्रतिशत बढ़ाएगा? यह एक अहम प्रश्न है जिसका उत्तर सूची जारी होने पर ही मिलेगा।’’
जब टिकटों की घोषणा हुई तो यह देख कर अत्यंत निराशा हुई कि किसी भी राजनीतिक दल ने महिला उम्मींदवारों पर विश्वास नहीं किया। उनकी संख्या आश्चर्यजनक आंकड़ों तक सीमित है। अतीत में झांक कर देखें तो 1957 से लेकर 2012 तक हुए पन्द्रह विधान सभा चुनावों में बुंदेलखण्ड के उत्तरप्रदेश वाले भाग में से लगभग 15 महिलाएं विधायक रही हैं। इनमें भी 11 दलित वर्ग से, 3 पिछड़े वर्ग से और एक सामान्य वर्ग से। यह आंकड़ा उस प्रदेश के बुंदेली भू-भाग का है जहां की मायावती के रूप में एक महिला मुख्यमंत्री के पद पर रह चुकी है और साबित कर चुकी है कि महिलाएं राजनीति में अपना सिकका जमा सकती हैं। सन् 1957 में हुए विधानसभा चुनाव में पहली बार कांग्रेस की बेनीबाई झांसी जिले की मऊरानीपुर (अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित) सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा में अपनी आमद दर्ज कराई थी। इसके बाद 1962 में इसी दल की सियादुलारी ने बांदा जिले की मऊ-मानिकपुर (अब चित्रकूट जिला) सीट से और बेनीबाई दोबारा मऊरानीपुर से विधायक बनी थीं। सन् 1967 में बेनीबाई तीसरी बार चुनी गईं और 1969 के चुनाव में कांग्रेस की ही सियादुलारी दोबारा अपनी सीट से विधायक चुनी गईं.। 1974 के चुनाव में जहां बेनीबाई चौथी बार चुनाव जीतीं। वहीं जेपी आंदोलन के चलते उन्हें 1977 में हार का सामना भी करना पड़ा। वर्ष 1980 के चुनाव में बेनीबाई झांसी की बबीना सीट से जीत दर्ज की और छठीं बार वह इसी सीट से 1985 के चुनाव में विधायक बनीं। इस प्रकार कांग्रेस के टिकट पर वह छह बार विधायक बनीं। वर्ष 1989 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सियादुलारी मऊ-मानिकपुर सीट से तीसरी बार विधायक चुनी गईं। साल 2002 के चुनाव में अंब्रेस कुमारी समाजवादी पार्टी के टिकट पर महोबा जिले की चरखारी सुरक्षित सीट से विधायक चुनी गईं थी और 2012 के चुनाव में झांसी के मऊरानीपुर (अनुसूचित जाति सुरक्षित) सीट से सपा की डॉ. रश्मि आर्या चुनी गईं थी। वर्ष 1977 में जेएनपी के टिकट पर सूर्यमुखी शर्मा झांसी सीट से चुनाव जीता था और 2012 के चुनाव में भाजपा की उमा भारती चरखारी सीट और हमीरपुर सीट से भाजपा की ही साध्वी निरंजन ज्योति ने चुनाव जीता था। वर्ष 2015 में चरखारी सीट में हुए उप चुनाव में सपा की उर्मिला राजपूत ने जीत हासिल कर के अपने राजनीतिक दखल को साबित किया था। ये आंकड़े और इतिहास था बुंदेलखण्ड के उत्तर प्रदेश के भू-भाग का। मध्यप्रदेश के बुंदेली भू-भाग की दशा इससे अलग नहीं है।
बुंदेलखंड के संदर्भ में कहा जाता है कि मंच पर महिलाओं को लुभाने की बातें करना, योजनाएं बनाना अलग बात है और चुनाव जीतकर सत्ता पाना अलग। महिलाओं को पर्याप्त संख्या में चुनाव में उम्मीदवार न बनाया जाना अपने आप में राजनीतिक दलों के महिला हितों के दावों पर प्रश्नचिन्ह लगाने लगता है। मध्यप्रदेश में भी टीकमगढ़ ऐसा क्षेत्र है जहां से उमा भारती के रूप में महिला मुख्यमंत्री प्रदेश को मिली। उनका अल्पकालिक कार्यकाल भी इस मायने में महत्वपूर्ण है कि उनके कार्यकाल में ‘पंचज’ योजना (जल, जंगल, जमीन, जन और जानवर) पर ध्यान दिया गया। इसके बावजूद किसी भी राजनीतिक दल ने राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए विधानसभा चुनावों में महिला उम्मींदवार नहीं बढ़ाए। वर्तमान में मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना और चंबल संभाग में दतिया एवं शिवपुरी की 30 विधानसभा सीटों में से भाजपा के पास 22 और कांग्रेस के पास आठ सीटें हैं।
पिछले चुनाव में पन्ना से कुसुम सिंह मेहदेले चुनाव जीतीं और मंत्री पद भी उन्हें प्रदान किया गया। जहां तक बुंदेलखण्ड के मध्यप्रदेशीय सम्भागीय मुख्यालय सागर का प्रश्न है तो यहां का इतिहास महिलाओं की दृष्टि से गौरवपूर्ण रहा है। केंद्र में बनीं अंतरिम सरकार में सागर की विदुषी कलावती दीक्षित को सदस्य मनोनीत किया गया था। केंद्र की अंतरिम सरकार में सागर सपूत डा. हरीसिंह गौर सदस्य थे। 25 दिसंबर 1948 को उनके आकस्मिक निधन के बाद कलावती दीक्षित को संविद सरकार में सदस्य बनाया गया था। इस तरह सागर से सांसद बनने वाली वे पहली महिला थीं। इसके बाद गोवा क्रांति में गोली खाकर भी तिरंगा थामने वाली सहोद्राबाई राय सागर से 1957 में पहली बार सांसद बनीं। वे सागर से तीन बार सांसद चुनी गईं। बुंदेलखंड से उमा भारती ने 2003 में मुख्यमंत्री का पद संभाला। वे इस क्षेत्र से मुख्यमंत्री पद पर पहुंचने वाली पहली महिला थीं। 1993 में सागर से सुधा जैन विधायक निर्वाचित हुईं। वे भी 1998 और 2003 में लगातार सागर से विधायक चुनी गईं।
विगत चुनाव में भाजपा टिकट से पारुल साहू ने सुरखी विधान सभा से चुनाव जीता था किन्तु इस बार उन्होंने स्वयं ही चुनाव न लड़ने का फैसला किया। सवाल इस बात का नहीं है वे किस पार्टी से संबंद्ध हैं, सवाल यह है कि एक तो महिलाओं को राजनीति में यूं भी कम स्थान दिया जाता है उस पर एक सुशिक्षित, कर्मठ महिला का चुनाव से पीछे हटना दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा। पिछले चुनाव में पृथ्वीपुर विधान सभा की अनितानायक चुनाव जीत कर विधायक बनीं। छतरपुर की ललिता यादव को इस बार उनका पिछला क्षेत्र बदल कर बड़ामलहरा क्षेत्र दे दिया गया। ज़मीनी तौर पर देखा जाए तो अकेले सागर में कई ऐसी महिलाएं हैं जो विभिन्न दलों में रहती हुई निरंतर सक्रिय रहती हैं फिर भी टिकट के समय उन्हें समीकरण से बाहर ही रखा गया। रेखा चौधरी, इन्दु चौधरी, लता वानखेड़े, शारदा खटीक, कुसुम सुरभि, रंजीता राणा आदि ऐसी कई महिलाएं हैं जिनकी राजनीतिक सक्रियता अख़बारों की सुर्खियों में रहती है और इनमें से कुछ तो राजनीतिक परिवारों से भी हैं। राजनीतिकदल चाहते तो इन महिलाओं को ले कर भी चुनावी समर लड़ सकते थे, क्यों कि जीत का शत प्रतिशत दावा तो कोई भी उम्मीदवार नहीं कर सकता है। यही तो लोकतंत्र की विशेषता है।
चुनाव आते ही स्टारप्रचारक और राष्ट्रीय स्तर के नेता बड़ी-बड़ी बातें ले कर हाजिर होने लगते हैं। फिर बात आती है महिला वोट उगाहने की तो महिलाओं के हित में बड़ी-बड़ी घोषणाएं होने लगती हैं और बड़ी तत्परता से अलग महिला बूथ भी बनाए जाने लगते हैं। वहीं दूसरी ओर राजनीति में महिला आरक्षण को दरकिनार कर दिया जाता है। ऐसी दशा में बुंदेलखण्ड जैसा क्षेत्र जहां महिलाएं अपने बहुमुखी विकास के लिए अभी भी अनुकूल वातावरण की बाट जोह रही हैं, राजनीतिक दलों द्वारा अविश्वास की शिकार हो रही हैं। बड़ी विचित्र स्थिति है। इस स्थिति से उबरने के लिए स्वयं महिलाओं को अभी लम्बा संघर्ष करना होगा और इसके लिए जरूरी है कि वे इस बार के चुनाव में बिना किसी प्रलोभन में आए सही उम्मीवार को चुन कर अपने भविष्य की रूपरेखा तय करें। यह आशा कठिन है लेकिन असंभव नहीं।
-------------------------
(दैनिक ‘सागर दिनकर’, 21.11.2018)

#शरदसिंह #सागरदिनकर #दैनिक #मेराकॉलम #Charcha_Plus #Sagar_Dinkar #Daily
#SharadSingh #Women #Bundelkhand #Politics #Election #WomenCandidate #बुंदेलखण्ड #राजनीति #चुनाव #महिलाएं #महिला_उम्मीदवार

Friday, November 16, 2018

अपनी मां डॉ. विद्यावती ‘मालविका’ जी के साथ केन्द्रीय विश्वविद्यालय घूमने का सुखद अवसर - डॉ. शरद सिंह

From left : Dr Laxmi Pandey, Dr Anand Prakash Tripathi, Dr Vidyawati Malavika, Dr Varsha Singh, Dr Sharad Singh, Dr Rajendra Yadav and bihind Dr Ashutosh Mishra at front of Hindi Department of Dr Hari Singh Gour Central University Sagar
कल (15.11.2018) मेरी माताश्री डॉ. विद्यावती "मालविका" जी ने, डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के हिंदी विभाग में जाने की इच्छा प्रकट की । उन्होंने कहा कि मैं आज विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में जाना चाहती हूं जहां आचार्य नंददुलारे बाजपेई, आचार्य रामरतन भटनागर, डॉ. भागीरथ प्रसाद मिश्र, प्रेम शंकर, डॉ. कांति कुमार जैन सरीखे प्रकांड विद्वानों से अनेक अवसरों, आयोजनों में मिलना हुआ करता था। अतः मैं और दीदी डॉ. वर्षा सिंह उन्हें विश्वविद्यालय लेकर गए जहां हिन्दी विभाग के वर्तमान विभागाध्यक्ष डॉ आनंद प्रकाश त्रिपाठी तथा विद्वत स्टाफ डॉ. आशुतोष मिश्रा, डॉ राजेंद्र यादव, डॉ. लक्ष्मी पांडे इत्यादि से उनकी आत्मीय मुलाकात हुई। सभी ने माताश्री का बड़ी आत्मीयता से स्वागत किया। चर्चा के दौरान माता जी ने अपनी पी.एचडी. उपाधि और डॉ. गौर से संबंधित संस्मरण साझा किये। जिसमें उन्होंने याद करते हुए यह भी कहा कि पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उनका वाईवा लिया था।
तत्पश्चात माताश्री को बुंदेली पीठ, हिन्दी विभाग की पत्रिका " ईसुरी" के सम्पादक एवं बुंदेली पीठ के सचिव डॉ. राजेन्द्र यादव ने बुंदेली लोकगीतों पर एकाग्र पत्रिका का ताज़ा अंक भेंट किया।
विश्वविद्यालय से लौटते हुए सिविल लाइन स्थित अमूल रेस्टोरेंट में हमने काफी पी।
कल का दिन उनके लिए थका देने वाला, किन्तु अत्यंत सुखद रहा।
From left : Dr Rajendra Yadav, Dr Ashutosh Mishra, Dr Anand Prakash Tripathi, Dr Vidyawati Malavika, Dr Varsha Singh, Dr Sharad Singh, and Dr Laxmi Pandey in the Hindi Department of Dr Hari Singh Gour Central University Sagar

Dr Vidyawati Malavika and Dr Varsha Singh in the Hindi Department of Dr Hari Singh Gour Central University Sagar

Dr Vidyawati Malavika and Dr Varsha Singh in the Hindi Department of Dr Hari Singh Gour Central University Sagar


Isuri Magazine

Isuri Magazine

Dr ( Miss) Sharad Singh and Dr Varsha Singh in the Hindi Department of Dr Hari Singh Gour Central University Sagar

Dr ( Miss) Sharad Singh and Dr Varsha Singh in the Hindi Department of Dr Hari Singh Gour Central University Sagar

Dr Varsha Singh in the Hindi Department of Dr Hari Singh Gour Central University Sagar

Dr ( Miss) Sharad Singh and Dr Varsha Singh in the Hindi Department of Dr Hari Singh Gour Central University Sagar

Dr ( Miss) Sharad Singh and Dr Varsha Singh in the Hindi Department of Dr Hari Singh Gour Central University Sagar

Dr Varsha Singh at Amul Restaurant, Civil Lines, Sagar

Dr (Miss) Sharad Singh, Dr Varsha Singh and Dr Vidyawati Malavika at Amul Restaurant, Civil Lines, Sagar

Dr (Miss) Sharad Singh, Dr Varsha Singh and Dr Vidyawati Malavika at Amul Restaurant, Civil Lines, Sagar


Dr (Miss) Sharad Singh, Dr Varsha Singh and Dr Vidyawati Malavika at Amul Restaurant, Civil Lines, Sagar

Dr Varsha Singh at Amul Restaurant, Civil Lines, Sagar

Dr (Miss) Sharad Singh at Amul Restaurant, Civil Lines, Sagar

Dr Varsha Singh and Dr Vidyawati Malavika at Amul Restaurant, Civil Lines, Sagar

Dr Varsha Singh and Dr Vidyawati Malavika at Amul Restaurant, Civil Lines, Sagar

Dr Varsha Singh and Dr Vidyawati Malavika at Amul Restaurant, Civil Lines, Sagar

Dr (Miss) Sharad Singh, Dr Varsha Singh and Dr Vidyawati Malavika at Amul Restaurant, Civil Lines, Sagar

Dr (Miss) Sharad Singh at Amul Restaurant, Civil Lines, Sagar

Dr Varsha Singh at Amul Restaurant, Civil Lines, Sagar

Wednesday, November 14, 2018

चर्चा प्लस ... बाल दिवस विशेष : क्या उपहार दे रहे हैं हम अपने बच्चों को ? - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस ... 
बाल दिवस विशेष :
क्या उपहार दे रहे हैं हम अपने बच्चों को ?
- डॉ. शरद सिंह 
 
हर साल बालदिवस का उत्सव मनाना आसान है लेकिन अपने गिरेबान में झांकना कठिन हैं जहां हम स्वयं को कटघरे में खड़ा पाते हैं। यदि हम अपने बच्चों को अच्छा स्वास्थ्य नहीं दे सकते, अच्छी शिक्षा नहीं दे सकते, अच्छे संस्कार नहीं दे सकते, समुचित सुरक्षा नहीं दे सकते हैं, तो क्या हम दावा कर सकते हैं कि हम अपने बच्चों को अच्छा भविष्य दे रहे हैं? गरीबी, बेरोजगारी, मंहगाई, भ्रष्टाचार, प्रदूषण और अपराध के दलदल का उपहार देते हुए बच्चों को कैसे कहें ‘हैप्पी बालदिवस’? हमारे ये उपहार बच्चों को न तो अच्छा वर्तमान दे सकते हैं और न अच्छा भविष्य।
Charcha Plus a column of Dr (Miss) Sharad Singh in Sagar Dinkar, Daily, Sagar M.P.
पीठ पर लदा भारी-भरकम स्कूल बैग, कोचिंग क्लासेस के लिए भागमभाग कुल मिला कर बेइंतहा तनाव में जीते बच्चे। यदि बच्चा खेलना चाहता है तो उससे उस खेल को खेलने के लिए बाध्य किया जाता है जिसमें आगे चल कर वह कैरियर बना सके और लाखों कमा सके। यदि बच्चे को नाचने या गाने में रुचि है तो उसकी इस रुचि में भी टेलेण्ट-हण्ट वाले टी.वी. शोज़ में सहभागिता की चमक-दमक दिखाई देने लगती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो बच्चे की रुचि में कमाई का जरिया देखने की हमारी आदत बनती जा रही है। जब यह तस्वीर है वर्तमान की तो भविष्य कैसा होगा? जब कि हम अपने बच्चों के भविष्य के लिए न तो स्वच्छ वातावरण छोड़े रहे हैं और न र्प्याप्त प्राकृतिक संसाधन। जैसे एक जुआरी पिता जुआ खेलने के लिए कर्ज लेता चला जाता है और इस बात का कतई ध्यान नहीं रखता है कि उसके बच्चे उस कर्ज को कैसे चुकाएंगे, कुछ ऐसी ही दशा की ओर बढ़ रहे हैं हम और हमारे बच्चे।
दिल्ली जैसे महानगरों में प्रदूषण का स्तर इतना अधिक है कि अस्थमा जैसी सांस की बीमारियों से ग्रस्त बच्चों की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है। नाक पर नक़ाब लगा कर सांस लेने को मज़बूर बच्चे और बाज़ारवाद के शिकार होते उनके माता-पिता सब कुछ देख कर भी मानो कुछ नहीं देख पा रहे हैं। जो नक़ाब ऑपरेशन थियेटर में पहने जाते थे, वे नक़ाब अब घर से निकलते ही लगाने की नौबत है। गोया समूचा शहर ही ऑपरेशन थियेटर में बदल गया हो। बस, अंतर यही है कि ऑपरेशन थियेटर के अन्दर का वातावरण स्वच्छ रहता है और उस स्वच्छता को बनाए रखने के लिए दस्ताने और नक़ाब पहने जाते हैं लेकिन शहर में गंदगी से बचने के लिए नक़ाब पहनने की जरूरत पड़ने लगी है।
जो गंदगी भरा वातावरण हम अपने बच्चों को दे रहे हैं उसी का परिणाम है कि आज पालने में झूलने वाले नन्हें बच्चे जीका वायरस से जूझ रहे हैं। यह वायरस देश के लगभग हर राज्य में फैलता जा रहा है। मध्यप्रदेश में यहां तक कि सागर जैसे कम विकसित शहर में भी इसके मरीज़ मिलने लगे हैं। ज़ीका वायरस दिन में एडीज मच्छरों के काटने से फैलता है। इस बीमारी में बुखार के साथ जोड़ों में दर्द और सिरदर्द जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। इसका कोई टीका नहीं है, न ही कोई ख़ास उपचार है। ये मच्छरों से ही फैलता है। ये वायरस दिन में ज्यादा सक्रिय रहता है। पाया गया है कि विशेष रूप से गर्भावस्था में महिलाएं इससे ज्यादा संक्रमित होती हैं। इससे प्रभावित बच्चे का जन्म आकार में छोटे और अविकसित दिमाग के साथ होता है। ये गर्भावस्था के दौरान वायरस के संक्रमण से होता है। इसमें शिशु दोष के साथ पैदा हो सकता है। नवजात का सिर छोटा हो सकता है। उसके ब्रेन डैमेज की ज्यादा आशंका होती है। साथ ही जन्मजात तौर पर अंधापन, बहरापन, दौरे और अन्य तरह के दोष दे सकता है। इसका सिंड्रोम शरीर के तंत्रिका तंत्र पर हमला करता है और इसके चलते लोग लकवा का शिकार हो जाते हैं। ये न्यूरोलॉजिकल जटिलताएं भी दे सकता है। जीका वायरस कोई नया नहीं है। इसकी पहचान पहली बार सन् 1947 में हुई थी। जिसके बाद ये कई बार अफ्रीका व साउथ ईस्ट एशिया के देशों के कुछ हिस्सों में फैला था। अभी तक कैरेबियाई ,उत्तर व दक्षिणी अमेरिका के 21 देशों में ये वायरस फैल चुका है। भारत में इसके फैलने का सबसे बड़ा कारण है ऐसी गंदगी जहां मच्छर पलते रहते हैं। किसी भी स्वच्छता मिशन का सरकारी स्वरूप आने वाली पीढ़ी को स्वच्छ वातावरण नहीं दे सकता है। इसके लिए प्रत्येक नागरिक को स्वच्छता को जीवनचर्या बनाना होगा। भले ही वह नागरिक करोड़ों के भवनों में रह रहा हो या झोपड़पट्टी में रहता हो। खुद के लिए नही ंतो अपने बच्चों के लिए यह जरूरी है। आज जीका वायरस है तो कल कुछ और इससे भी भयावह वायरस आ जाएगा, यदि आज हम नहीं सम्हले तो।
आपराधिक स्तर पर भी बच्चे अपराध से घिरे हुए दिखाई देने लगे हैं। जब अवयस्क युवा बलात्कार जैसा घिनौना अपराध करने लगें या फिर तीन-चार साल की नन्हीं बच्चियों को हवस का शिकार बनाया जाने लगे तो इसे अच्छी सामाजिक दशा तो हरगिज नहीं कहा जा सकता है। अपराध और अपराधियों से आज बच्चे सुरक्षित नहीं हैं। विकास के दावों के बीच यह एक कड़वा सच है कि हमने अपराधों में कहीं अधिक विकास कर लिया है। हमारे बच्चे न तो घर-परिवार में सुरक्षित हैं, न मोहल्ले में और न स्कूलों में। कोई दुश्मनी भी नहीं, मात्र व्यक्तिगत आनन्द के लिए बच्चों को शिकार बनाया जा रहा है। भारत सरकार द्वारा बच्चों से बलात्कार के मामलों में फांसी की सज़ा दिए जाने का प्रावधान किए जाने के बाद भी घटनाएं थम नहीं रही हैं।
देश के विकास की दिशा में यूं तो लक्ष्य रखा गया है बच्चों के प्रति दुराचार, उनका शोषण, तस्करी, हिंसा और उत्पीड़न समाप्त करना। किन्तु सच तो यह है कि हमारी व्यवस्थाएं नहीं बचा पा रही हैं अपने बच्चों को। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अध्ययन ‘चाइल्ड एब्यूज़ इन इंडिया’ के अनुसार भारत में 53.22 प्रतिशत बच्चों के साथ एक या एक से ज़्यादा तरह का यौन दुर्व्यवहार और उत्पीड़न हुआ होता है। गृह मंत्रालय के मुताबिक, सन् 2016 में अगवा बच्चों के 40.4 प्रतिशत मामलों में ही आरोप पत्र दाखिल हुआ। वहीं, 2016 में देश में बच्चों के विरुद्ध अपराध के 1,06,958 मामले दर्ज हुए, जबकि सन् 2015 में इनकी संख्या 94,172 थी। बच्चों की तस्करी, बंधुआ मज़दूरी, बेगारी, यौनशोषण और विवाह के लिए बच्चों के अपहरण के मामलों में बहुत वृद्धि हुई है। भारत में सन् 2016 में बच्चों के अपहरण के 54,723 मामले दर्ज हुए, जबकि सन् 2001 में ऐसे दर्ज मामलों की संख्या 2,845 थी। अर्थात् सोलह सालों में बच्चों के अपहरण के मामलों में 1,823 प्रतिशत की वृद्धि हुई। सन् 2016 में बच्चों के अपहरण के 54,723 मामलों में से 39,842 लड़कियां थीं। इन आंकड़ों को देख कर चिंता होने लगती है कि जब हम बचचों को उनका सुरक्षित वर्तमान नहीं दे पा रहे हैं तो एक सुरक्षित भविष्य कहां से देंगे?
दिनों-दिन बढ़ते हुए बाल-अपराध हमारे सामाजिक जीवन के लिए एक चुनौती हैं। छोटे-छोटे बच्चों में अपराधी प्रवृत्तियां एक गंभीर समस्या बन गई है। बाल जीवन में बढ़ती जा रही हिंसा, क्रूरता, गुण्डागर्दी, नशेबाजी, आवारापन मानव-समाज के लिए एक गंभीर समस्या है। बाल अपराध इस तरह बढ़ रहे हैं कि उनका अनुमान कर सकना मुश्किल है। यूं तो बाल अपराधों के लिए सर्वेक्षण होता रहता है किन्तु कहीं की भी पूरे आंकड़े सामने नहीं आ पाते हैं। माता-पिता अपने बच्चों के अपराधों पर पर्दा डालते रहते हैं। अपने बच्चों के आपराधिक कारनामों को छिपाने के लिए माता-पिता जितनी ऊर्जा खर्च करते हैं, यदि उससे आधी ऊर्जा भी बच्चों की गतिविधियों पर ध्यान देने में लगाएं तो बच्चों के अच्छे संस्कार खोने नहीं पाएंगे। बच्चों का दिमाग़ तो कोरी स्लेट के समान होता है, उसमें यदि आपराधिक प्रवृत्तियां लिख दी जाएं तो वहीं जीवन भर लिखी रहेंगी। आज बच्चे अगर अपने माता-पिता या मेहमानों को पलट कर जवाब देते हैं या बेअदबी से पेश आते हैं तो इसमें दोष बच्चों का नहीं, उन माता-पिता का है जिन्होंने हंस कर बढ़ावा दिया और अपराधी बनने की पहली सीढ़ी यानी ढिठाई पर चढ़ा दिया। आज 80 प्रतिशत बच्चे स्कूली शिक्षा पूरी करते ही कैरियर वाली पढ़ाई के चक्कर में अपने घर से दूर पराये शहरों में चले जाते हैं। इसके बाद उनकी हमेशा के लिए अपनी घर वापसी बहुत कम हो पाती है। जो लौटते भी हैं वे फ्रस्टेशन से ग्रस्त रहते हैं। यह फ्रस्टेशन भी उन्हें उसी वातावरण से मिलता है जो हमने आर्थिक दबाव के रूप में रच दिया है। कमाऊ युवाओं के उदाहरणों से घिरे बेरोजगार युवा पारिवारिक दबाव में आ कर गलत कदम उठाने लगते हैं। या तो वे आत्मघाती हो उठते हैं या फिर अपराधी बन जाते हैं।
हर साल बालदिवस का उत्सव मनाना आसान है लेकिन अपने गिरेबान में झांकना कठिन है,ं जहां हम स्वयं को कटघरे में खड़ा पाते हैं। यदि हम अपने बच्चों को अच्छा स्वास्थ्य नहीं दे सकते, अच्छी शिक्षा नहीं दे सकते, अच्छे संस्कार नहीं दे सकते, समुचित सुरक्षा नहीं दे सकते हैं, तो क्या हम दावा कर सकते हैं कि हम अपने बच्चों को अच्छा भविष्य दे रहे हैं? गरीबी, बेरोजगारी, मंहगाई, भ्रष्टाचार, प्रदूषण और अपराध के दलदल का उपहार देते हुए बच्चों को कैसे कहें ‘हैप्पी बालदिवस’? हमारे ये उपहार बच्चों को न तो अच्छा वर्तमान दे सकते हैं और न अच्छा भविष्य।
-------------------------
( सागर दिनकर, 14.11.2018)
#शरदसिंह #सागरदिनकर #दैनिक 

Tuesday, November 13, 2018

एक दिल तोड़ने वाली यात्रा ... - डॉ शरद सिंह

A Heartbreaking Journey - Dr Sharad Singh

 एक दिल तोड़ने वाली यात्रा ... पन्ना (मध्य प्रदेश) की मेरी संक्षिप्त यात्रा ... किसी तरह से समय निकाल कर उस हिरणबाग कॉलोनी में पहुंची जहां मैं पैदा हुई, जहां मेरा बचपन बीता और जहां मैंने ज़िन्दगी को समझना शुरू किया। हिरणबाग का वह कैम्पस तो है लेकिन उसमें इतना दुखद परिवर्तन हो चुका है कि मैं देख कर अवाक् रह गई। एक पॉश कॉलोनी का कैसे सत्यानाश हो सकता है, यह देख कर मैं रो पड़ी... मेरे वह प्यारे घर (जो पी डब्ल्यू डी का सरकारी आवास था) का नक्शा ही बदल चुका है। अब लगता ही नहीं कि वहां कभी सुंदर और व्यवस्थित क्वार्टर्स रहे होंगे। वह विशाल कुआ जिसके पास हम बच्चों को जाने की मनाही थी, अवहेलना का दंश सहते हुए जर्जर हो चुका है ... आंसू आ गए यह सब देख कर... हां, पन्ना शहर ने कांक्रीट की सड़कों और घरों के रूप में विस्तार अवश्य कर लिया है किन्तु वह अपने अतीत की संपदा को खोता जा रहा है... अफ़सोस ....
 
Ruined Birth Place of Dr (Miss) Sharad Singh, Hiranbag, Panna (Madhya Pradesh)
Ruined Birth Place of Dr (Miss) Sharad Singh, Hiranbag, Panna (Madhya Pradesh)
Campus of Hiranbag, Panna (Madhya Pradesh)
Campus of Hiranbag, Panna (Madhya Pradesh)
Old Deep Well, Campus of Hiranbag, Panna (Madhya Pradesh)