Showing posts with label Navbharat. Show all posts
Showing posts with label Navbharat. Show all posts

Friday, May 24, 2019

बुंदेलखंड की जैव विविधता पर गहराता संकट - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह - नवभारत में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh
 
समाचारपत्र नवभारत में प्रकाशित मेरा लेख "बुंदेलखंड की जैव विविधता पर गहराता संकट" प्रकाशित हुआ है, इसे आप भी पढ़ें....
हार्दिक धन्यवाद नवभारत !!!


- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

वन, वन्यपशु और वनोपज का धनी बुंदेलखंड आज जैव विविधता(बायोडायवर्सिटी) पर गहराते संकट के दौर से गुज़र रहा है। प्रत्येक वर्ष 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता संरक्षण दिवस मनाए जाने के दौरान समूचे विश्व में जैव विविधता के आकलन की एक स्वाभाविक प्रक्रिया होती है। विगत वर्ष यह तथ्य सामने आया था कि भारत में 450 प्रजातियों को संकटग्रस्त अथवा विलुप्त होने की कगार पर हैं। लगभग 150 स्तनधारी एवं 150 पक्षियों का अस्तित्व खतरे में है, और कीटों की अनेक प्रजातियां विलुप्ति-सूची में दर्ज़ हो चुकी हैं। सन् 2018 में ही यह भयावह सत्यता भी सामने आई कि विगत 10 वर्ष में बुंदेलखंड का तापमान औसत से डेढ़ डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है जोकि बुंदेलखंड की जैव विविधता के लिए संकट का सूचक है। वैसे यह तापमान अपने-आप नहीं बढ़ा है, इसके लिए जिम्मेदार स्वयं बुंदेलखंड के निवासी हैं जो प्रकृति को हानि पहुंचते देख कर भी मौन रहते आए हैं।
बुंदेलखंड की जैव विविधता पर गहराता संकट - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह - नवभारत में प्रकाशित Navbharat - Bundelkhand Ki Jaiv Vividhta Pr Gahrata Sankat - Dr Sharad Singh,
         बुंदेलखंड में नदियों से रेत का बेतहाशा अवैध खनन जैव विविधता को चोट पहुंचाने का एक सबसे बड़ा कारण है। कानून को धता बता कर मशीनों द्वारा जिस तरह रेत खनन किया जाता है उससे बेतवा, केन और यमुना में रहने वाले जीव-जंतुओं की प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर पहुंच रही हैं। जबकि एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण) की साफ गाईड लाइन है कि मशीनों से खनन नहीं किया जाएगा। फिर भी इस गाईड लाईन की अवहेलना की जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि बुंदेलखंड में केन और बेतवा और यमुना बड़ी नदियों में एक हैं और इनमें कुल 15 किस्म की मछलियों की 35 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से कई प्रजातियां मिलना दूभर है लेकिन अवैध खनन से ये प्रजातियां संकट में पड़ गई हैं। बड़ी मशीनों से रेत निकालने से सबसे अधिक हानि जैव विविधता की होती है। इससे जलीय जीव-जंतु मारे जाते हैं। इनमें से कई अब विलुप्त होते जा रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार अवैध खनन के कारण केन नदी में मछलियों की 35 प्रजातियों में कई विलुप्त हो चुकी हैं। केन और बेतवा में पाई जाने वाली निमेकाइलस, रीटी गोगरा, सिराइनस, रीबा आदि मछलियां लुप्त प्राय हैं।

मेरा स्वयं का एक दिलचस्प अनुभव है। मेरी कॉलोनी में एक भवन निर्माण के लिए डम्पर से रेत लाई गई। दूसरे दिन अचानक मुझे अपने घर में एक विचित्र जीव दिखाई पड़ा जिसकी चाल और आकृति सर्प की भांति थी किन्तु उसके चार पैर थे। ऐसा अजीब रेप्टाईल उससे पहले मैंने कभी नहीं देखा था। मैंने हिम्मत कर के उसे घर से बाहर भगाने का प्रयास किया किंतु ग़ज़ब का फुर्तीला वह जीव घर से निकलने का नाम नहीं ले रहा था। अंततः मुझे भवन निर्माण स्थल में काम करने वाले मज़दूरों को बुलाना पड़ा। उन लोगों ने उस जीव को देख कर मुझे बताया कि वह नदी की रेत में रहने वाला जीव है जिसे बुंदेलखंड में ‘चौगोड़ा’ (उसके चार पैरों के कारण) कहते हैं। वह डम्पर की रेत के साथ वहां आ पहुंचा था। चूंकि मेरा घर रेत के निकट था और घर में लगे पेड़ पौधों की ठंडक से आकर्षित हो कर वह घर में आ छिपा था। उन मजदूरों ने उसे पलक झपकते मार दिया। इससे मुझे बहुत दुख हुआ। मैं उसे मारना नहीं चाहती थी। वह तो स्वयं विस्थापित था। हम मनुष्यों के द्वारा उसे अपने प्राकृतिक आवास से अलग होना पड़ा था। वह इस प्रकार की मृत्यु का हकदार कतई नहीं था। उसके मारे जाने से मुझे अहसास हुआ कि आए दिन न जाने कितने जलजीव इसी तरह काल का ग्रास बन रहे हैं।

जितना संकट जलजीवों पर है उतना ही वनों की अवैध कटाई के कारण वन्य जीवों पर संकट है। जनपद महोबा में 5.45 प्रतिशत वन क्षेत्र है और यहां तेंदुआ, भेड़िया, बाज विलुप्त होने की कगार पर हैं। कहा जाता है कि वहां पहले काला हिरन भी पाया जाता था जो कि अब दिखाई नहीं देता है। महोबा के निकट के वनों में पाई जाने वाली सफेद मूसली, सतावर, ब्राम्ही, गुड़मार, हरसिंगार, पिपली आदि वन्य औषधियां भी विलुप्ति की कगार में जा पहुंची हैं।

राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार किसी भी भू-भाग में 33 प्रतिशत वन क्षेत्र होना चाहिए किंतु बांदा जनपद में आज कुल वन क्षेत्र 1.21 प्रतिशत ही बचा है। यहां विलुप्त होने वाले जीवां में चील, गिद्ध, गौरेया व तेंदुआ है। वर्ष 2009 में दुर्लभ प्रजाति के काले हिरन की संख्या जनपद बांदा में लगभग 59 थी। जनपद चित्रकूट में 21.8 प्रतिशत वन क्षेत्र है। यहां का रानीपुर वन्य जीवन विहार 263.2283 वर्ग किमी के बीहड़ व जंगली परिक्षेत्र में फैला है जिसे कैमूर वन्य जीव प्रभाग मिर्जापुर की देखरेख में रखा गया है। इसीलिए वर्ष 2009 की गणना के अनुसार यहां काले व अन्य हिरनों की कुल संख्या 1409 थी। संरक्षित क्षेत्र होने के कारण यहां पाई जाने वाली अतिमहत्वपूर्ण वन औषधियां गुलमार, मरोड़फली, कोरैया, मुसली, वन प्याज, सालम पंजा, अर्जुन, हर्रा, बहेड़ा, आंवला और निर्गुड़ी भी अभी सुरक्षित हैं।

जनपद हमीरपुर में कुल 3.6 प्रतिशत ही वन क्षेत्र शेष हैं यहां भालू, चिंकारा, चीतल, तेंदुआ, बाज, भेड़िया, गिद्ध जैसे वन्य जीव आज शिकारियों के कारण विलुप्त होने की कगार पर हैं। दुर्लभ प्रजाति का काला हिरन यहां के मौदहा कस्बे के कुनेहटा के जंगलों में ही पाया जाता है। इनकी संख्या अत्यंत सीमित है। जनपद जालौन में 5.6 प्रतिशत वन क्षेत्र है और यहां पर काले हिरन अब नज़र नहीं आते हैं। झांसी जनपद की भी लगभग यही स्थिति है कि शहर फैल रहे हैं और वनक्षेत्र सिकुड़ रहे हैं।


वन, वनोपज और वन्यजीवों की दृष्टि से पन्ना नेशनल पार्क के वनक्षेत्र की दशा संतोषजनक है। यहां संरक्षित वातावरण में जैव विविधता बनी हुई है। इसी प्रकार सागर जिले के नौरादेही अभ्यारण्य में वनक्षेत्र सुरक्षित है। जहां संरक्षित क्षेत्र हैं वहीं जैव विवधिता अभी शेष है। किंतु क्या वनों और जैवविविधता की रक्षा करना सिर्फ कानून और दण्ड का दायित्व है? आम नागरिकों का भी तो यह दायित्व बनता है कि वे कम से कम उस जैव विविधता को बचाए रखने के लिए सजग रहें जो पृथ्वी पर मानव जीवन के भविष्य के लिए जरूरी है। मानवीय लापरवाहियों एवं अवैध कार्यों के कारण गिरते हुए जलस्तर, बढ़ते हुए तापमान, घटते हुए वन के साथ दुर्लभ प्रजाति के वन जीवों का विलुप्त होना और पहाड़ों के खनन से उनका विस्थापन जैव विविधता के लिए संकट सूचक है।

---------------------

( नवभारत, 24.05.2019 )


Friday, March 15, 2019

बुंदेलखंड की जनता जानती है अपने बुनियादी मुद्दे - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह Published in Navbharat

Dr (Miss) Sharad Singh
आज (15.03.2019 ) को #नवभारत  में प्रकाशित बुंदेलखंड के चुनावी मुद्दों पर मेरा लेख....इसे आप भी पढ़िए !
🙏 हार्दिक धन्यवाद नवभार

  बुंदेलखंड की जनता जानती है अपने बुनियादी मुद्दे
 - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
                     
बुंदेलखंड में राजनीति की फसल हमेशा लहलहाती रही है। यहां सूखे और भुखमरी पर हमेशा राजनीति गर्म रहती है। कभी सूखा राजनीति का मुद्दा बन जाता है तो कभी पीने का पानी, वाटर ट्रेन और घास की रोटियां। इस राजनीति में केंद्र और राज्य सरकारों के साथ सभी पार्टियों के नेता कूद पड़ते हैं। यह बात अलग है कि बुंदेलखंड के लोगों को सूखे और भूखमरी से भले कोई राहत न मिली हो लेकिन इन मुद्दों पर राजनीति खूब होती है। चुनाव जीतने के लिए भले ही जातीय समीकरण फिट किए जा रहे हों, लेकिन जनसभाओं में सभी नेता इन मुद्दों को हवा देते रहते हैं।
बुंदेलखंड की जनता जानती है अपने बुनियादी मुद्दे    - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह Published in Navbharat
बुंदेलखण्ड के विकास के लिए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों राज्यों में वर्षों से पैकेज आवंटित किए जा रहे हैं जिनके द्वारा विकास कार्य होते रहते हैं किन्तु विकास के सरकारी आंकड़ों से परे भी कई ऐसे कड़वे सच हैं जिनकी ओर देख कर भी अनदेखा रह जाता है। जहां तक कृषि का प्रश्न है तो औसत से कम बरसात के कारण प्रत्येक दो-तीन वर्ष बाद बुंदेलखंड सूखे की चपेट में आ जाता है। कभी खरीफ तो कभी रबी अथवा कभी दोनों फसलें बरबाद हो जाती हैं। जिससे घबरा कर कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या जैसा पलायनवादी कदम उठाने लगते हैं। इन सबके बीच स्त्रियों की दर और दशा पर ध्यान कम ही दिया जाता है। उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में फैला बुंदेलखंड आज भी जल, जमीन और सम्मानजनक जीवन के लिए संघर्षरत है। दुनिया भले ही इक्कीसवीं सदी में कदम रखते हुए विकास की नई सीढ़ियां चढ़ रहा है लेकिन बुंदेलखंड आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रहा है।
आर्थिक पिछड़ेपन का दृष्टि से बुंदेलखंड आज भी सबसे निचली सीढ़ी पर खड़ा हुआ है। विगत वर्षों में बुन्देलखण्ड में किसानों द्वारा आत्महत्या और महिलाओं के साथ किए गए बलात्कार की घटनाएं यहां की दुरावस्था की कथा कहती हैं। भूख और गरीबी से घबराए युवा अपराधी बनते जा रहे हैं। यह भयावह तस्वीर ही बुंदेलखंड की सच्ची तस्वीर है। यह सच है कि यहां की सांस्कृतिक परम्परा बहुत समृद्ध है किन्तु यह आर्थिक समृद्धि का आधार तो नहीं बन सकती है। आर्थिक समृद्धि के लिए तो जागरूक राजनैतिक स्थानीय नेतृत्व, शिक्षा का प्रसार, जल संरक्षण, कृषि की उन्नत तकनीक की जानकारी का प्रचार-प्रसार, स्वास्थ्य सुविधाओं की सघन व्यवस्था और बड़े उद्योगों की स्थापना जरूरी है। वन एवं खनिज संपदा प्रचुर मात्रा में है किन्तु इसका औद्योगिक विकास के लिए उपयोग नहीं हो पा रहा है। कारण की अच्छी चौड़ी सड़कों की कमी है जिन पर उद्योगों में काम आने वाले ट्राले सुगमता से दौड़ सकें। रेल सुविधाओं के मामले में भी यह क्षेत्र पिछड़ा हुआ है। सड़क और रेल मार्ग की कमी औद्योगिक विकास में सबसे बड़ी बाधा बनती है। स्वास्थ्य और शिक्षा की दृष्टि से बुंदेलखंड की दशा औसत दर्जे की है।
लगभग साल-डेढ़ साल पहले बुंदेलखंड के अंतर्गत आने वाले मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के कांग्रेसी राहुल गांधी के साथ प्रधानमंत्री से मिले थे और राहत राशि के लिये विशेष पैकेज और प्राधिकरण की मांग रखी थी। एक पैकेज की घोषणा भी हुई लेकिन यह स्थायी हल साबित नहीं हुआ। यूं भी, इस क्षेत्र के उद्धार के लिये किसी तात्कालिक पैकेज की नहीं बल्कि वहां के संसाधनों के बेहतर प्रबंधन की आवश्यकता है। साथ ही इस बात को समझना होगा कि मात्र आश्वासनों और परस्पर एक-दूसरे को कोसने वाली राजनीति से इस क्षेत्र का भला होने वाला नहीं है।
सिर्फ बुन्देलखण्ड में ही लगभग आधा दर्जन नदी आस-पास से होकर गुजरती है लेकिन किसी भी नदी में 10 फीसदी से ज्यादा जल नहीं है। सरकार चाहे लखनऊ की हो, भोपाल की या दिल्ली की, किसी की शघ्र निदान वाली कोई कार्ययोजना नहीं है। बुन्देलखण्ड में लोग बूंद-बूंद को तरसते हैं और सरकारें राजनीति करती रहती हैं। बुन्देलखण्ड में स्थिति बेहद चिंताजनक हो रही है। सन् 1999 से 2008 के बीच के वर्षों में यहां बारिश के दिनों की संख्या 52 से घट कर 23 पर आ गई है। इस बार भी अनुमानतः टीकमगढ़ में 56 फीसदी, छतरपुर में 54 फीसदी, पन्ना में 61 फीसदी, सागर में 52 फीसदी, दमोह में 61 फीसदी, दतिया में 38 फीसदी कम बारिश हुई।
’हीरों और वीरों की धरती’ कहा जाने वाला बुंदेलखंड आज बेरोजगारी और पलायन से जूझ रहा है। बुंदेलखंड का समूचा भूभाग उत्तर प्रदेश के बांदा, चित्रकूट, महोबा, उरई-जालौन, झांसी व ललितपुर और मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दतिया, पन्ना व दमोह जिलों में विभाजित है। यह क्षेत्र पिछले कई सालों से प्राकृतिक आपदाओं का दंश झेल रहा है और किसान कर्ज का बोझ ढोते रहते हैं। बेशक़ किसानों का कर्जा माफ़ कर के उन्हें जीने का एक और मौका दिया गया लेकिन स्थायी हल भी जरूरी है। नदियों और प्राकृतिक जलस्रोतों वाले इस क्षेत्र में मैनेजमेंट न होने के कारण लोग बूंद-बूद पानी के लिए तरसते रहते हैं। पिछले साल 2016 में यहां पीने के पानी की ऐसी समस्या हुई कि केंद्र सरकार को ‘‘वाटर ट्रेन’’ भेजनी पड़ी। यद्यपि इस पर खूब राजनीति हुई। आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां 10 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर से पीने का पानी लाना पड़ता है। अवैध खनन के कारण भी बुंदेलखंड हमेशा चर्चा में रहा है। हर साल सैकड़ों करोड़ रुपये का अवैध खनन होता है। अवैध खनन के लिए खनन माफिया ने कुछ नदियों तक का रुख ही मोड़ दिया।
 पिछले चुनावों में लगभग सभी राजनीतिक दल किसानों के लिए झूठी हमदर्दी जताते रहे, लेकिन यहां से पलायन कर रहे किसानों के मुद्दे को ’चुनावी मुद्दा’ नहीं बनाया गया। समूचे बुंदेलखंड में स्थानीय मुद्दे लगभग गायब रहे। इस बार भी अभी तक का परिदृश्य यही है कि सीमा सुरक्षा और आतंकवाद उन्मूलन को तूल दिया जा रहा है जबकि जल, ज़मीन, जंगल, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे स्थानीय मुद्दों को पीछे किया जा रहा है। वहीं यह भी अकाट्य सत्य है कि सामान्य जनता इन्हीं बुनियादी मुद्दों पर अपना वोट देगी। स्त्री-बच्चों की सुरक्षा, अपराधों पर लगाम, रोजगार के अवसरों में वृद्धि, जल प्रबंधन, रेत के अवैध खनन पर रोक, शिक्षा का वास्तविक विस्तार और स्वास्थ सुविधाओं में वृद्धि आदि ऐसे मुद्दे हैं जिनसे सामान्य जनता का लगभग प्रतिदिन आमना-सामना होता है। यह तो तय है कि राजनीतिदल भले ही इन मुद्दों को दरकिनार कर दे लेकिन जनसामान्य इन्हीं को ध्यान में रख कर मतदान करेगा।
            ---------------------

Friday, March 1, 2019

बुंदेलखंड में अपराध का बढ़ता ग्राफ - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ... ' नवभारत ' में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh
आज ( 01.03.2019 )को #नवभारत " में प्रकाशित #बुंदेलखंड में बढ़ते अपराधों पर केंद्रित मेरा लेख....इसे आप भी पढ़िए !
🙏 हार्दिक धन्यवाद #नवभारत

बुंदेलखंड में अपराध का बढ़ता ग्राफ
   - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह                    
         सतना के दो जुड़वा बच्चों की नृशंस हत्या ने हर व्यक्ति के मानस को झकझोर दिया है। यूं तो सतना बघेलखंड में है लेकिन बुंदेलखंड से लगा हुआ है। उस पर जिन अपराधियों ने इस घटना को अंजाम दिया उनमें से मुख्य आरोपी बुंदेलखंड के हैं और जिस स्थान यानी चित्रकूट में घटना घटित हुई वह भी बुंदेलखंड में है। इस हृदयविदारक घटना के लिए कोई पुलिस व्यवस्था को जिम्मेदार ठहरा रहा है तो कोई उस सीमारेखा को जिससे बुंदेलखंड बंटा हुआ है और दशकों से वही चूहा-बिल्ली का खेल खेला जा रहा है जो प्रत्येक दो राज्यों की सीमा पर स्थित इलाकों में खेला जाता रहा है। अपराधी एक राज्य में अपराध कर के दूसरे राज्य में जा छिपते हैं और पुलिस कानूनी मसलों में उलझी रह जाती है। इस नृशंस घटना में कहां चूक हुई यह तो जांच पूरी होने पर ही पता चलेगा लेकिन इतना तो स्पष्ट दिख रहा है कि बुंदेलखंड में अपराधों का ग्राफ बढ़ता जा रही है। बहरहाल, मध्य प्रदेश के चित्रकूट में पांच वर्षीय दो जुड़वा भाइयों की हत्या से हर कोई सदमे में है। 20 लाख रुपये फिरौती लेकर भी बच्चों की निर्मम हत्या ने हर किसी को हिलाकर रख दिया है। इस वारदात पर बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं के बीच सियासी जंग भी तेज हो गई है।
बुंदेलखंड में अपराध का बढ़ता ग्राफ - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ... ' नवभारत ' में प्रकाशित  An article of Dr (Miss) Sharad Singh in ' Navbharat ' on Crime in Bundelkhand
                  जुड़वां बच्चों की हत्या का घाव अभी आंखों के सामने आया ही था कि छतरपुर जिले में एक किशोरी पर एक युवक ने सिर्फ़ इसलिए जानलेवा हमला कर दिया कि उसने उस युवक का प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया था। लगता यही है कि शासन किसी भी दल का रहे, अपराधियों कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। अपराधों के बहीखातों के पिछले कुछ पन्ने पलटें तो देख सकते हैं कि सन् 2010 की 04 मार्च को 18 वर्षीया संध्या रिछारिया को उनके पड़ोस में रहने वाले चार लड़कों ने बलात्कार के प्रयास के बाद मिट्टी का तेल डालकर जला दिया था। सागर जिले के छिरारी गांव में विजय रैकवार ने साढ़े सात साल की बच्ची की सात दिसम्बर 2012 को बलात्कार के बाद हत्या कर दी। छतरपुर के महाराजपुर थानांतर्गत ग्राम पुर के भागचंद पटेल ने 11 अक्टूबर 2015 को अपने सगे भाई ठाकुरदास और देवकी प्रसाद के साथ भतीजे अखिलेश की हत्या कर दी। 07 दिसम्बर 2017 को सागर के भानगढ़ थाने की 14 वर्षीय नाबालिग को देवल गांव में रब्बू उर्फ सर्वेश सेन ने अपनी हवस का शिकार बनाया । लड़की पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी। नाबालिग की अस्पताल में सात दिन बाद मौत हो गई। बुंदेलखंड में अपराध इतना बढ़ता जा रहा है की चोरी और हत्या आम बात हो गयी है

छतरपुर-दमोह में जहां देशी कट्टे और पिस्टल से जानलेवा हमले का चलन बढ़ा है तो सागर पिछले एक साल में चाकू-कटरबाजी की दर्जनों वारदातें हुईं। विगत वर्ष किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार शस्त्र संबंधी अपराधों में सबसे ज्यादा 236 प्रतिशत अपराध छतरपुर और दूसरे क्रम पर 203 प्रतिशत अपराध दमोह जिले के पुलिस थानों में दर्ज किए गए। सागर संभाग के पांच जिलों में 75 प्रतिशत वृद्धि के साथ शस्त्र संबंधी प्रकरणों में तीसरे नंबर पर और पन्ना जिले में पिछले तीन सालों 17 प्रतिशत वृद्धि देखी गई। उत्तरप्रदेश के हिस्से में फैले बुंदेलखंड के बांदा, कर्वी जैसे जिलों में मामूली बात में हथियारों का प्रयोग किया जाना आम बात है।  लड़कियों, महिलाओं और बच्चों की तस्करी के भी आंकड़े बुंदेलखंड के माथे पर जब तब दाग लगाते रहते हैं। देह व्यापार का बोलबाला भी कम नहीं है। बुंदेलखंड से तो लड़कियां महानगरों में भेजी ही जा रही हैं, वहीं महानगरों से लड़कियां देहव्यापार के लिए बुलाई भी जाती हैं।
बुंदेलखंड का ग्रामीण अंचल आज भी अशिक्षा और असुरक्षा के जाल में इस तरह जकड़ा हुआ हैकि वह अपने विरुद्ध होने वाले अपराधों के लिए आवाज़ भी बुलंद नहीं कर पाता है। उस पर अवैध हथियारों का दबाव उन्हें मुंह बंद रखने को विवश करता रहता है। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में सिर्फ़ राजनीतिक हल्ला बोल कर दशा नहीं सुधारी जा सकती है।  बुंदेलखंड में अपराधों के आंकड़े हमेशा स्थिति की गंभीरता की ओर संकेत करते रहे हैं, लेकिन उन लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा, जो इस दशा के लिए जिम्मेदार हैं। राजनीतिक शोर और चुनावी मुद्दों के बीच रह जाने वाली अपराधों की बढ़त की  समस्या आज भी जस के तस है। अब आशा यही की जानी चाहिए कि मासूम जुड़वा बच्चे प्रियांश और श्रेयांश का दुखद अंत वह जागरुकता ला सके जिससे इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो और अपराधों पर अंकुश लगे।             
            ---------------------
( नवभारत, 01.03.2019 )
#नवभारत #शरदसिंह #बुंदेलखंड #अपराध #crime #Navbharat #SharadSingh #Bundelkhand #Twins #HumenTrafficking

Thursday, January 31, 2019

गुम हो रहे बुंदेलखंड से बच्चे और बेख़बर हम - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

Dr (Miss)Sharad Singh
'नवभारत' , 31.01.2019 में #बुंदेलखंड से गुम होते बच्चों पर मेरा प्रकाशित लेख ... इसे आप भी पढ़िए...
🙏हार्दिक आभार #नवभारत 🙏

  गुम हो रहे बुंदेलखंड से बच्चे और बेख़बर हम              - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
    देश में प्रतिदिन औसतन चार सौ महिलाएं और बच्चे लापता हो जाते हैं और इनमें से अधिकांश का कभी पता नहीं चलता। हर साल घर से गायब होने वाले बच्चों में से 30 फीसदी वापस लौटकर नहीं आते। नाबालिगों की गुमशुदगी का आंकड़ा साल दर साल बढ़ रहा है। बुंदेलखंड इससे अछूता नहीं है। बच्चों के गुम होने के आंकड़े बुंदेलखंड में भी बढ़ते ही जा रहे हैं। सागर के अलावा टीकमगढ़, दमोह और छतरपुर जिलों से भी कई बच्चे गुम हो चुके हैं। चंद माह पहले सागर जिले की खुरई तहसील में एक किशोरी को उसके रिश्तेदार द्वारा उसे उत्तर प्रदेश में बेचे जाने का प्रयास किया गया। वहीं बण्डा, सुरखी, देवरी, बीना क्षेत्र से लापता किशोरियों का महीनों बाद भी अब तक कोई पता नहीं है। इन मामलों में ह्यूमेन ट्रेफिकिंग की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।
गुम हो रहे बुंदेलखंड से बच्चे और बेख़बर हम - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह, Gum ho rahe Bundelkhand se Bachhe aur Bekhabar Hum - An Article of Dr (Miss) Sharad Singh in Navbharat, 31.01.2019 
सागर, टीकमगढ़, दमोह और छतरपुर जिलों से जनवरी 2018 से अगस्त 2018 के बीच 513 किशोर-किशोरी लापता हुए हैं। इनमें से करीब 362 बच्चे या तो स्वयं लौट आए या पुलिस द्वारा उन्हें विभिन्न स्थानों से दस्तयाब किया गया। लेकिन अब भी 151 से ज्यादा बच्चों को कोई पता ही नहीं चला है। वर्ष 2018 में जिले में किशोर-किशोरियों की गुमशुदगी के आंकड़ों में पहले की अपेक्षा बहुत अधिक है। कुल 178 गुमशुदगी दर्ज हुए मामलों में किशोरों की संख्या लगभग 55 थी और किशोरियों 123 थी।  वर्ष 2015 में गुमशुदगी का आंकड़ा 136 था जो 2016 में 167 और पिछले साल 2017 में 215 तक पहुंच गया था। इन आंकड़ों को देखते हुए इस वर्ष 2018 के दिसम्बर तक यह संख्या ढाई सौ के आसपास पहुंच गई थी। लापता होने वालों में सबसे ज्यादा 14 से 17 आयु वर्ग के किशोर-किशोरी होते हैं। इनमें भी अधिकांश कक्षा 9 से 12 की कक्षाओं में पढ़ने वाले स्कूली बच्चे हैं।
आखिर महानगरों के चौराहों पर ट्रैफिक रेड लाइट होने के दौरान सामान बेचने या भीख मांगने वाले बच्चे कहां से आते हैं? इन बच्चों की पहचान क्या है? अलायंस फॉर पीपुल्स राइट्स (एपीआर) और गैर सरकारी संगठन चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राइ) द्वारा जब पड़ताल की गई तो पाया गया कि उनमें से अनेक बच्चे ऐसे थे जो भीख मंगवाने वाले गिरोह के सदस्य थे। माता-पिता विहीन उन बच्चों को यह भी याद नहीं था कि वे किस राज्य या किस शहर से महानगर पहुंचे हैं। जिन्हें माता-पिता की याद थी, वे भी अपने शहर के बारे में नहीं बता सके। पता नहीं उनमें से कितने बचचे बुंदेलखंड के हों। बचपन में यही कह कर डराया जाता है कि कहना नहीं मानोगे तो बाबा पकड़ ले जाएगा। बच्चे अगवा करने वाले कथित बाबाओं ने अब मानो अपने रूप बदल लिए हैं और वे हमारी लापरवाही, मजबूरी और लाचारी का फायदा उठाने के लिए नाना रूपों में आते हैं और हमारे समाज, परिवार के बच्चे को उठा ले जाते हैं और हम ठंडे भाव से अख़बार के पन्ने पर एक गुमशुदा की तस्वीर को उचटती नज़र से देख कर पन्ने पलट देते हैं। यही कारण है कि बच्चों की गुमशुदगी की संख्या में दिनोंदिन बढ़ोत्तरी होती जा रही है। बच्चों के प्रति हमारी चिन्ता सिर्फ अपने बच्चों तक केन्द्रित हो कर रह गई है।
मध्यप्रदेश राज्य सीआईडी के किशोर सहायता ब्यूरो से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार हाल ही के वर्षों में बच्चों के लापता होने के जो आंकड़ें सामने आए हैं वे दिल दहला देने वाले हैं।  2010 के बाद से राज्य में अब तक कुल 50 हजार से ज़्यादा बच्चे गायब हो चुके हैं। यानी मध्यप्रदेश हर दिन औसतन 22 बच्चे लापता हुए हैं। एक जनहित याचिका के उत्तर में यह खुलासा सामने आया। 2010-2014 के बीच गायब होने वाले कुल 45 हजार 391 बच्चों में से 11 हजार 847 बच्चों की खोज अब तक नहीं की जा सकी है, जिनमें से अधिकांश लड़कियां थीं। सन् 2014 में ग्वालियर, बालाघाट और अनूपुर ज़िलों में 90 फीसदी से ज़्यादा गुमशुदा लड़कियों को खोजा ही नहीं जा सका। ध्यान देने वाली बात ये है कि लड़कों की अपेक्षा लड़कियों के लापता होने की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है जो विशेषरूप से 12 से 18 आयु वर्ग की हैं। निजी सर्वेक्षकों के अनुसार लापता होने वाली अधिकांश लड़कियों को ज़बरन घरेलू कामों और देह व्यापार में धकेल दिया जाता है। पिछले कुछ सालों में एक कारण ये भी सामने आया है कि उत्तर भारत की लड़कियों को अगवा कर उन्हें खाड़ी देशों में बेच दिया जाता है। इन लड़कियों के लिए खाड़ी देशों के अमीर लोग खासे दाम चुकाते हैं। बदलते वक्त में अरबों रुपए के टर्नओवर वाली ऑनलाइन पोर्न इंडस्ट्री में भी गायब लड़कियों-लड़कों का उपयोग किया जाता है। इतने भयावह मामलों के बीच भिक्षावृत्ति तो वह अपराध है जो ऊपरी तौर पर दिखाई देता है, मगर ये सारे अपराध भी बच्चों से करवाए जाते हैं।
बच्चों के लापता होने के पीछे सबसे बड़ा हाथ होता है मानव तस्करों का जो अपहरण के द्वारा, बहला-फुसला कर अथवा आर्थिक विपन्ना का लाभ उठा कर बच्चों को ले जाते हैं और फिर उन बच्चों का कभी पता नहीं चल पाता है। इन बच्चों के साथ गम्भीर और जघन्य अपराध किए जाते हैं जैसे- बलात्कार, वेश्यावृत्ति, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, बंधुआ मजदूरी, भीख मांगना, देह या अंग व्यापार आदि। इसके अलावा, बच्चों को गैर-कानूनी तौर पर गोद लेने के लिए भी बच्चों की चोरी के मामले सामने आए हैं। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चे मानव तस्करों के आसान निशाना होते हैं। वे ऐसे परिवारों के बच्चों को अच्छी नौकरी देने के बहाने आसानी से अपने साथ ले जाते हैं। ये तस्कर या तो एक मुश्त पैसे दे कर बच्चे को अपने साथ ले जाते हैं अथवा किश्तों में पैसे देने का आश्वासन दे कर बाद में स्वयं भी संपर्क तोड़ लेते हैं। पीड़ित परिवार अपने बच्चे की तलाश में भटकता रह जाता है।
सच तो यह है कि बच्चे सिर्फ़ पुलिस, कानून या शासन के ही नहीं प्रत्येक नागरिक का दायित्व हैं और उन्हें सुरक्षित रखना भी हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है, चाहे वह बच्चा किसी भी धर्म, किसी भी जाति अथवा किसी भी तबके का हो।
            ---------------------
(दैनिक ‘नवभारत’, 31.01.2019)
#शरदसिंह #नवभारत #दैनिक #Navbharat #Daily
#SharadSingh #Bundelkhand #Children #बुंदेलखंड #बच्चे #गुम_होते_बच्चे

Thursday, January 24, 2019

बुंदेलखण्ड में पिछड़ते महिलाओं के मुद्दे - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
 समाचार पत्र #नवभारत में बुंदेलखंड की महिलाओं के मुद्दों की उपेक्षा पर मेरा आज 24.01.2019 को प्रकाशित लेख ... इसे आप भी पढ़िए...
🙏हार्दिक आभार #नवभारत 🙏
Bundelkhand me pichharate mahilaon ke mudde - Dr (Miss) Sharad Singh in Navbharat newspaper, 24.01.2019
बुंदेलखण्ड में पिछड़ते महिलाओं के मुद्दे  
   - डॉ. शरद सिंह 
   इसमें कोई संदेह नहीं है कि बुंदेलखण्ड ने अपनी स्वतंत्रता एवं अस्मिता के लिए लम्बा संघर्ष किया है और इस संघर्ष के बदले बहुत कुछ खोया है। अंग्रेजों के समय में हुए बुंदेला संघर्ष एवं स्वतंत्रता आंदोलन के कारण इस भू-भाग को विकास के मार्ग से बहुत दूर रखा गया। यहां उतना ही विकास कार्य किया गया जितना  अंग्रेज प्रशासकों अपनी सैन्य सुविधाओं के लिए आवश्यक लगा। जब कोई क्षेत्र विकास की दृष्टि से पिछड़ा रह जाता है तो उसका सबसे बुरा असर पड़ता है वहां की स्त्रियों के जीवन पर। अतातायी आक्रमणकारी आए तो स्त्रियों को पर्दे और सती होने का रास्ता पकड़ा दिया गया। उसे घर की दीवारों के भीतर सुरक्षा के नाम पर कैद रखते हुए शिक्षा से वंचित कर दिया गया। यह बुंदेलखण्ड की स्त्रियों के जीवन का सच है। मानो अशिक्षा का अभिशाप पर्याप्त नहीं था जो उसके साथ दहेज की विपदा भी जोड़ दी गई। नतीजा यह हुआ कि बेटी के जन्म को ही पारिवारिक कष्ट का कारण माना जाने लगा। जब बेटियां ही नहीं होंगी तो बेटों के लिए बहुएं कहां से आएंगी?   
एक सर्वे के अनुसार प्रति हजार लड़कों के अनुपात में लड़कियों की संख्या पन्ना में 507, टीकमगढ़ में 901, छतरपुर में 584, दमोह में 913 तथा सागर में 896 पाया गया। यह आंकड़े न केवल चिंताजनक हैं अपितु इस बात का भी खुलासा करते हैं कि बुंदेलखंड अंचल में ओडीसा से लड़कियां ब्याह कर क्यों लाई जा रही हैं। बुंदेलखण्ड के विकास के लिए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों राज्यों में वर्षों से पैकेज आवंटित किए जा रहे हैं। जिनके द्वारा विकास कार्य होते रहते हैं। लेकिन विकास के सरकारी आंकड़ों से परे ऐसे कड़वे सच भी हैं जो पिछड़ेपन की एक अलग ही कहानी कहते हैं। जहां तक कृषि का प्रश्न है तो औसत से कम बरसात के कारण प्रत्येक दो-तीन वर्ष बाद बुंदेलखंड सूखे की चपेट में आ जाता है। कभी खरीफ तो कभी रबी अथवा कभी दोनों फसलें बरबाद हो जाती हैं। जिससे घबरा कर कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या जैसा पलायनवादी कदम उठाने लगते हैं। इन सबके बीच स्त्रियों की दर और दशा पर ध्यान कम ही दिया जाता है। उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के लगभग बारह जिलों में फैला बुंदेलखंड आज भी जल, जमीन और सम्मानजनक जीवन के लिए संघर्षरत है। महिलाओं की दुखगाथाएं एक अलग ही तस्वीर दिखाती हैं। क्या इन सबके लिए सिर्फ सरकारें ही जिम्मेदार हैं अथवा बुंदेलखण्ड के नागरिक भी अपने दायित्वों के प्रति कहीं न कहीं लापरवाह हैं? यह एक अहम् प्रश्न है। 
बुंदेलखण्ड में  पिछले दशकों में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का अनुपात तेजी से घटा और इसके लिए कम से कम सरकारें तो कदापि जिम्मेदार नहीं हैं। यदि कोई जिम्मेदार है तो वह परम्परागत सोच कि बेटे से वंश चलता है या फिर बेटी पैदा होगी तो उसके लिए दहेज जुटाना पड़ेगा। बुंदेलखण्ड में औरतों को आज भी पूरी तरह से काम करने की स्वतंत्रता नहीं है। गांव और शहरी क्षेत्र, दोनों स्थानों में आर्थिक रूप से निम्न तथा निम्न मध्यम वर्ग के अनेक परिवार ऐसे हैं जिनके घर की स्त्रियां आज भी तीज-त्यौहारों पर ही घर से बाहर निकलती हैं और वह भी घूंघट अथवा सिर पर साड़ी का पल्ला ओढ़ कर। जिन तबकों में शिक्षा का प्रसार न्यूनतम है, ऐसे लगभग प्रत्येक परिवार की एक ही कथा है कि आमदनी कम और खाने वाले अधिक। आर्थिक तंगी के कारण अपने बच्चों को शिक्षा के बदले काम में लगा देना इस प्रकार के अधिकांश व्यक्ति अकुशल श्रमिक के रूप में अपना पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं। ठीक यही स्थिति इस प्रकार के समुदाय की औरतों की रहती है। ऐसे परिवारों की बालिकाएं अपने छोटे भाई-बहनों को सम्हालने और अर्थोपार्जन के छोटे-मोटे तरीकों में गुज़ार देती हैं। इन्हें शिक्षित किए जाने के संबंध में इनके माता-पिता में रुझान रहता ही नहीं है। ‘लड़की को पढ़ा कर क्या करना है?’ जैसा विचार इस निम्न आर्थिक वर्ग पर भी प्रभावी रहता है। इस वर्ग में बालिकाओं का जल्दी से जल्दी विवाह कर देना उचित माना जाता है। ‘आयु अधिक हो जाने पर अच्छे लड़के नहीं मिलेंगे’, जैसे विचार अवयस्क विवाह के कारण बनते हैं। छोटी आयु में घर-गृहस्थी में जुट जाने के बाद शिक्षित होने का अवसर ही नहीं रहता है। 
अन्य प्रदेशों की भांति बुंदेलखण्ड में भी ओडीसा तथा आदिवासी अंचलों से अनेक लड़कियां  को विवाह करके लाया जाता हैं। यह विवाह सामान्य विवाह नहीं है। ये अत्यंत ग़रीब घर की लड़कियां होती हैं जिनके घर में दो-दो, तीन-तीन दिन चूल्हा नहीं जलता है, ये उन घरों की लड़कियां हैं जिनके मां-बाप के पास इतनी सामर्थ नहीं है कि वे अपनी बेटी का विवाह कर सकें, ये उन परिवारों की लड़कियां हैं जहां उनके परिवारजन उनसे न केवल छुटकारा पाना चाहते हैं वरन् छुटकारा पाने के साथ ही आर्थिक लाभ कमाना चाहते हैं। ये ग़रीब लड़कियां कहीं संतान प्राप्ति के उद्देश्य से लाई जा रही हैं तो कहीं मुफ़्त की नौकरानी पाने की लालच में खरीदी जा रही हैं। इनके खरीददारों पर उंगली उठाना कठिन है क्योंकि वे इन लड़कियों को ब्याह कर ला रहे हैं। इस मसले पर चर्चा करने पर अकसर यही सुनने को मिलता है कि क्षेत्र में पुरुष और स्त्रियों का अनुपात बिगड़ गया है। लड़कों के विवाह के लिए लड़कियों की कमी हो गई है।
यदि परिवार की स्त्री पढ़ी-लिखी होगी, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होगी तो वह अपने बच्चों के उचित विकास के द्वारा आने वाली पीढ़ी को एक विकसित दृष्टिकोण दे सकेगी। इसी विचार के साथ ‘बेटी बचाओ’ और ‘बालिका शिक्षा’, ‘जननी सुरक्षा’ जैसे सरकारी अभियान चलाए जा रहे हैं। फिर भी बुंदेलखंड में स्त्रियों के विकास की गति धीमी है। बुंदेलखण्ड का वास्तविक विकास तभी हो सकता है जब बेटियों के अस्तित्व को बचाया जाए और उन्हें एक गरिमापूर्ण सुरक्षित वातावरण प्रदान किया जाए। बुंदेलखण्ड में किए गए लगभग सभी आंदोलनों एवं विकास की तमाम मांगों के बीच स्त्रियों के लिए अलग से कभी कोई मुद्दा नहीं उठाया गया जिससे विकास की वास्तविक जमीन तैयार हो सके।
                        ---------------------
(दैनिक ‘नवभारत’, 24.01.2019)
#शरदसिंह #नवभारत #दैनिक #Navbharat #Daily
#SharadSingh #Bundelkhand #Women #बुंदेलखंड #महिलाएं #बेटियां #विकास #महिलाओं_के_मुद्दे

Thursday, February 12, 2015

"शरद सिंह को साहित्य अकादमी सम्मान"....नवभारत

Dr Sharad Singh awarded by Sahitya Academy Samman "Balkrishna Sharma Naveen Puraskar" by Sahitya Academy Madya Pradesh Sanskriti Parishad, Bhopal, India.... Navbharat, Sagar MP,12.02.2015