Showing posts with label विनीशा. Show all posts
Showing posts with label विनीशा. Show all posts

Friday, November 12, 2021

चर्चा प्लस | भारत को कितनी राहत देगी पीएम मोदी और स्कूली छात्रा विनीशा की ललकार | डाॅ शरद सिंह

चर्चा प्लस
भारत को कितनी राहत देगी
पीएम मोदी और स्कूली छात्रा विनीशा की ललकार
 - डाॅ. शरद सिंह                                                                           
 ‘‘बातें बहुत हो चुकीं, अब काम करना आरम्भ करें!’’ यही तो कहा दुनिया भर के देशों से भारतीय छात्रा विनीशा उमाशंकर ने। यह सिर्फ़ उसकी आवाज़ नहीं बल्कि हर युवा की आवाज़ है जो खुली हवा में सांस लेना चाहता है और स्वस्थ तथा लम्बा जीवन जीना चाहता है। कार्बन के बेतहाशा उत्सर्जन ने हवा का दम घोंट रखा है। इसी चिंता को ले कर ग्लास्गो में कोप 26 सम्मेलन आयोजित किया गया। सम्मेलन में पीएम मोदी ने भी इसके लिए सभी देशों से आह्वान किया। आशा की जानी चाहिए कि सम्मेलन में लिए गए निर्णय भारत की जलवायु-दशा में भी सुधार लाएंगे। 
15 साल की तमिलनाडु में पढ़ने वाली भारतीय स्कूली छात्रा विनीशा उमाशंकर ने कोप-26 सम्मेलन में अपने भाषण में कहा कि ‘‘मैं केवल भारत की लड़की नहीं हूं बल्कि मैं इस धरती की बेटी हूं। मैं और मेरी पीढ़ी आज आपके कार्यों के परिणामों को देखने के लिए जीवित रहेंगे। फिर भी आज हम जो चर्चा करते हैं, उनमें से कोई भी मेरे लिए व्यावहारिक नहीं है। आप तय कर रहे हैं कि हमारे पास रहने योग्य दुनिया में रहने का मौका है या नहीं। हम लड़ने लायक हैं या नहीं? अब वक्त आ गया है कि हम बातें करना बंद करें और काम करना शुरू करें।’’
विनीशा के भाषण पर टिप्पणी करते हुए प्रिंस चाल्र्स ने कहा कि विनीशा ने जो कुछ कहा उससे हम युवापीढ़ी के आगे लज्जित हैं। हमें अपने पृथ्वी को बचाने की दिशा में प्रयासों पर ध्यान देना होगा। ग्लासगो में आयोजित ‘‘वल्र्ड लीडर समिट ऑफ कोप-26’’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत का पक्ष दुनिया के सामने रखा. क्लाइमेट चेंज पर इस वैश्विक मंथन के बीच पीएम ने पंचामृत की सौगात दी।
ग्लासगो में पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि आज मैं आपके बीच उस भूमि का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं जिस भूमि ने हजारों वर्षों पहले ये मंत्र दिया था ‘‘संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम’’ आज 21वीं सदी में ये मंत्र और भी ज्यादा प्रासंगिक हो गया है। ये सच्चाई हम सभी जानते हैं कि क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर आज तक किए गए वादे, खोखले ही साबित हुए हैं। जब हम सभी क्लाइमेट एक्शन पर अपने एम्बीशन बढ़ा रहे हैं, तब क्लाइमेट फाइनेंस पर विश्व के एम्बीशन वहीं नहीं रह सकते जो पेरिस अग्रीमेंट के समय थे। क्लाइमेट चेंज पर इस वैश्विक मंथन के बीच मैं भारत की ओर से इस चुनौती से निपटने के लिए पांच अमृत तत्व रखना चाहता हूं, पंचामृत की सौगात देना चाहता हूं।
पहला- भारत, 2030 तक अपनी नाॅन फाॅसिल इनर्जी केपीसिटी को 500 गीगावाट तक पहुंचाएगा। 
दूसरा- भारत, 2030 तक अपनी 50 प्रतिशत इनर्जी की जरूरत को ‘‘गैर-जीवाश्म ऊर्जा’’ रिनीवल इनर्जी से पूरी करेगा।
तीसरा- भारत अब से लेकर 2030 तक के कुल प्रोजेक्टेड कार्बन एमिशन में एक बिलियन टन की कमी करेगा। 
चौथा- 2030 तक भारत, अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन इंटेन्सिटी को 45 प्रतिशत से भी कम करेगा।
पांचवा- वर्ष 2070 तक भारत, नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करेगा।
         ये सच्चाई हम सभी जानते हैं कि क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर आज तक किए गए वादे, खोखले ही साबित हुए हैं। जब हम सभी क्लाइमेट एक्शन पर अपनी महत्वकांक्षा बढ़ा रहे हैं, तब क्लाइमेट फाइनेंस पर विश्व की महत्वकांक्षा वही नहीं रह सकते जो पेरिस अग्रीमेंट के समय थे। मेरे लिए पेरिस में हुआ आयोजन, एक समिट नहीं, सेंटीमेंट था, एक कमिटमेंट था। भारत वो वादे विश्व से नहीं कर रहा था, बल्कि वो वादे सवा सौ करोड़ भारतवासी अपने आप से कर रहे थे। पीएम ने कहा कि दुनिया को एडप्टेशन पर ध्यान देना चाहिए, लेकिन एडप्टेशन पर ध्यान नहीं दिया गया। जलवायु पर वैश्विक बहस में एडप्टेशन को उतना महत्व नहीं मिला है। ये उन विकासशील देशों के साथ अन्याय है जो जलवायु परिवर्तन से ज्यादा प्रभावित हैं। एडप्टेशन के तरीके चाहे लोकल हों पर पिछड़े देशों को इसके लिए ग्लोबल सहयोग मिलना चाहिए। लोकल एडप्टेशन के लिए ग्लोबल सहयोग के लिए भारत ने कोएलिशन फॉर डिजास्टर रेजिस्टेंस इंफ्रास्ट्रक्चर पहल की शुरूआत की थी। मैं सभी देशों को इस पहल से जुड़ने का अनुरोध करता हूं। पीएम मोदी ने कहा कि भारत में नल से जल, स्वच्छ भारत मिशन और उज्जवला जैसी परियोजनाओं से हमारे जरूरतमंद नागरिकों को अनुकूलन लाभ तो मिले ही हैं उनके जीवन स्तर में भी सुधार हुआ है। कई पारंपरिक समुदाय में प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने का ज्ञान है। हमारी अनुकूलन नीतियों में इन्हें उचित महत्व मिलना चाहिए। स्कूल के पाठ्यक्रम में भी इसे जोड़ा जाना चाहिए।
भारत की अर्थव्यवस्था वर्ष 2070 तक कार्बन न्यूट्रल हो जाएगी, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को ग्लासगो में कोप 26 जलवायु शिखर सम्मेलन में घोषणा की।  मोदी ने यह भी कहा कि भारत ‘‘गैर-जीवाश्म ऊर्जा’’ की स्थापित क्षमता के लिए अपने 2030 के लक्ष्य को 450 से बढ़ाकर 500 गीगावाट करेगा।
ग्लासगो में पीएम मोदी के अपने संबोधन में कहा कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जो पेरिस समझौते के तहत जलवायु परिवर्तन से निपटने की प्रतिबद्धताओं को अक्षरशः पूरा कर रहा है।  मेरे लिए, पेरिस का कार्यक्रम एक शिखर सम्मेलन नहीं बल्कि एक भावना, एक प्रतिबद्धता थी और भारत दुनिया से वादे नहीं कर रहा था, बल्कि 125 करोड़ भारतीय खुद से वादे कर रहे थे।  मुझे खुशी है कि भारत जैसा विकासशील देश करोड़ों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने का काम कर रहा है।  जब मैं पहली बार क्लाइमेट समिट के लिए पेरिस आया था, तो दुनिया भर के अन्य वादों में अपना खुद का वादा जोड़ने का मेरा कोई इरादा नहीं था।  ‘‘सर्वे सुखिनः भवन्तु’’ का संदेश देने वाली संस्कृति के प्रतिनिधि के रूप में मैं मानवता की चिंता के साथ आया था।  कई विकासशील देशों के अस्तित्व के लिए जलवायु परिवर्तन एक बड़ा खतरा है।  हमें दुनिया को बचाने के लिए बड़े कदम उठाने चाहिए।  यह समय की मांग है और यह इस मंच की प्रासंगिकता को साबित करेगा।  मुझे उम्मीद है कि ग्लासगो में लिए गए फैसले हमारी अगली पीढ़ियों के भविष्य को बचाएंगे। भारत को उम्मीद है कि विकसित देश जल्द से जल्द 1 ट्रिलियन डॉलर का जलवायु वित्त उपलब्ध कराएंगे।  आज जलवायु वित्त को ट्रैक करना महत्वपूर्ण है जैसे हम जलवायु शमन की प्रगति को ट्रैक करते हैं।  उन देशों पर दबाव बनाना उचित न्याय होगा जो जलवायु वित्त के अपने वादों को पूरा नहीं करते हैं। दुनिया आज स्वीकार करती है कि जलवायु परिवर्तन में जीवनशैली की प्रमुख भूमिका है।  मैं आप सभी के सामने एक शब्द आंदोलन का प्रस्ताव करता हूं।  यह शब्द ‘‘जीवन’’ है जिसका अर्थ है पर्यावरण के लिए जीवन शैली।  आज जरूरत है कि हम सब एक साथ आएं और जीवन को एक आंदोलन के रूप में आगे बढ़ाएं।’’
उल्लेखनीय है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सितंबर में कहा था कि उनका देश 2060 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो करने के लक्ष्य को हासिल कर लेगा। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी 2060 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन हासिल करने का वादा किया है। भारत ने 2070 तक का लक्ष्य रखा है।
नेट जीरो का अर्थ है कार्बन डाइऑक्साइड के घातक उत्सर्जन को पूरी तरह से ख़त्म कर देना जिससे धरती के वायुमंडल को गर्म करनेवाली ग्रीनहाउस गैसों में इसकी वजह से और वृद्धि न हो। भारत, इंडोनेशिया, फिलीपींस और दक्षिण अफ्रीका कोयले से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 15 फीसदी के लिए जिम्मेदार हैं। इस योजना का मकसद उत्सर्जन में कटौती की गति तेज करना है ताकि 2050 तक नेट जीरो उत्सर्जन हासिल करने के लक्ष्य के और करीब पहुंचा जा सके।
इंडोनेशिया के ऊर्जा मंत्री अरिफिन तसरीफ ने कहा कि उनका देश कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को बंद कर उनकी जगह नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों पर निर्भरता बढ़ाने को लेकर प्रतिबद्ध है। एक बयान जारी कर उन्होंने कहा, जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक चुनौती है जिससे निपटने के लिए सभी पक्षों उदाहरण पेश करने होंगे। सीआईएफ ने कहा कि एक्सलरेटिंग कोल ट्रांजीशन (एसीटी) योजना के तहत सबसे पहले ऐसे विकासशील देशों को लक्ष्य किया जा रहा है जिनके पास कोयले पर निर्भरता कम करने के लिए समुचित साधन नहीं हैं। दक्षिण अफ्रीका ने मंगलवार को कहा था कि वह एसीटी से लाभान्वित पहला देश होगा। सीआईएफ के अनुसार इस नई योजना को सात सबसे विकसित समर्थन दे रहे हैं और अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, कनाडा और डेनमार्क ने इसके लिए वित्तीय समर्थन दिया है। डेनमार्क ने कहा है कि वह इस योजना के लिए 1.55 करोड़ डॉलर यानी लगभग एक अरब 15 करोड़ रुपये का अनुदान देगा ताकि ष्कोयला बिजली संयंत्रों को खरीदकर बंद किया जा सके और नए ऊर्जा स्रोतों में निवेश किया जा सके। डेनमार्क के विदेश मंत्री येप्पे कोफोड ने कहा, कोल ऊर्जा संयंत्रों को बंद करने के लिए हमें एक स्थायी और स्थिर योजना की जरूरत होगी। मिसाल के तौर पर हमें यह सुनिश्चित करना होगा स्थानीय आबादी के लिए वैकल्पिक रोजगार और उन्हें दोबारा ट्रेनिंग उपबल्ध हो।
वैसे प्रधानमंत्री मोदी कार्बन उत्सर्जन पर काबू पाने की दिशा में ठोस कदम उठाएंगे ही पर हमें याद रखना चाहिए कि पृथ्वी को बचाने का विनीशा का आह्वान हर देश, हर नागरिक के लिए है। भारतवासी और पृथ्वीवासी होने के नाते विनीशा का समर्थन करना हमारा नैतिक कर्तव्य है।
           --------------------
#शरदसिंह  #DrSharadSingh #miss_sharad #चर्चाप्लस #दैनिक #सागर_दिनकर