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Thursday, November 7, 2024

बतकाव बिन्ना की | जो का हो रओ औ काए हो रओ | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
जो का हो रओ औ काए हो रओ?
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
      ‘‘का हो गओ भैयाजी? इत्ते उदासे से काए दिख रए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी। बे अपने घर के बाहरे चैंतरे में बैठे हते और उनके हाथन में अखबार हतो।
‘‘कछू नईं! जे खबरें पढ़ के अच्छो सो नईं लगत।’’ भैयाजी ऊंसई दुखी-दुखी से बोले।
‘‘हऔ भैयाजी, आप सांची कै रए। आजकाल मानुस की जान को कोनऊं मोल नई रै गओ। कोऊ दारू पी के रस्ता चलत पे गाड़ी चढ़ा देत आए तो कोऊ लुगाइयन औ बच्चियन खों नुकसान पौंचात आए। ऐसईं खबरे पढ़बे से जी सो दुखहे ई।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ बिन्ना! ने तो मानुस की जिनगी को कोनऊं मोल आए औ ने शेर औ हाथियन की जिनगी को। अबे कछू दिनां पैले हम अपने इते के बृंदाबन बाग मंदिर गए रए, हमने उते एक हाथी देखो। ऊको एक पांव जंजीर से बंधो रओ। जा देख के हमें पीरा-सी भईती, के देखो तो जंगल में घूमबे वारो हाथी कैसो बंधो खड़ो। मनो अब जब से हमने बा दस हाथियन के मरबे की खबरें पढ़ीं तब से हमें लगन लगो के बा बृंदाबन बाग को हाथी मनो जिंदा को आए। भले बा जंजीर से बंधो ठाड़ो पर ऊको खाबे को दओ जात आए। ऊकी देख-भाल करी जात आए। पर बे जंगल के हाथी बे कीड़ा-मकोड़ा से मर गए। कोऊ जे बताबे वारो नइयां के बे मरे काय से? देख तो बिन्ना, कैसी जिनगी पाई उन ओरन ने। उन्ने कभऊं ने सोची हुइए के बे ऐसी मौत मरहें।’’ कैत-कैत भैयाजी को गलो भर आओ।
‘‘दुखी ने हो भैयाजी! जे दुनिया आए। जे एसई चलत आए। आप तो हमसे बड़े हो, हमसे ज्यादा सयाने हो। आप अपनो जी छोटो ने करो। काए से के अपन ओरें कछू नईं कर सकत।’’मैंने भैयाजी खों समझाओ।
‘‘हऔ बिन्ना! सई कई। अपन ओरें का कर सकत आएं? जोन खों करने चाइए, बे जिम्मेदार हरें तो पइसा की पल्ली ओढ़ के सोत रैत आएं।’’ भैयाजी गुस्सा करत भए बोले।
‘‘गम्म खाओ भैयाजी! गम्म खाओ!’’ मैंने भैयाजी खों सहूरी बंधाबे की कोसिस करी।
‘‘जे देखो, आजई पढ़ी के सबसे ज्यादा शेर अपने इते मरे। कैसे मरे? कोनऊं खों पतो नईं। कोनऊं खों उनकी फिकर नईं। जोन शेर देखबे के लाने पइसा खरच कर के पार्कन में जात आएं बे बी नईं सोचत के उते के शेर काए मर गए? उने तो शेर दिखे तो ठीक, ने तो पेड़-पौधा के संगे सेल्फी ले के बढ़ा गए अपनी दुकान।’’ भैयाजी गुस्सा में हते, सो उने सबई पे गुस्सा आ रओ हतो।
‘‘भैयाजी! इत्तो ने सोचो! का हुइए अपनो जी दुखा के?’’ मैंने उने फेर के समझाई।
‘‘हऔ बिन्ना, कछू ने हुइए। अबे जांच के लाने कमेटी बैठहे। जो इंसान को मामलो होतो तो उनके घरवारन खों मुआवजा दे के सहूरी बंधा दई जाती। इते तो बा बी नई करने परहे।’’ भैयाजी बोले। उनको बोलबो सई हतो।
इत्तो बड़ो कोरोना को समै गुजरो। मुतके लोग मरे। मोरी तो सोई जिनगी मिट गई। मने का कओ गओ के ‘‘आपदा में अवसर’’! जा सुन के ऐसो लगत्तो मनो कोनऊं की कबर पे कोऊ पार्टी करे के नच रओ होय के हम तो बच गए। रामधई! ऐसोई लगत्तो मोय जा सुनके। जां हजारों-लाखों लोग मरे उते कोऊ बी खुसी कैसी मानाई जा सकत आए? मगर ऐसो खूब भओ! जब कभऊं बुद्धिजीवी कहाबे वारे मूंड़ ऊंचो कर के कैत आएं के ‘‘हमने कोरोना लाक डाउन को फायदो उठाओ औ जा-जा लिख डारो, बा-बा लिख डारो, सो बा समै हमाए लाने अच्छो रओ।’’ सई में ऊ टेम पे ऐसो लगत आए के बे ओरें कोविड वायरस से कम नोईं जो दूसरों के मरे में अपनी जिनगी की शान ढूंढत आएं। सो, भैयाजी को जा सोचबो का गलत नईं आए के उन हाथियन की, उन शेरन की कोनऊं खों फिकर नईं।
‘‘बिन्ना का सोचन लगीं?’’ भैयाजी ने मोय सोचत भए देखों सो पूछ बैठे।
‘‘कछू नईं भैया! कोरोना वारे दिन याद आ गए।’’ कैत भए मोरो बी जी भारी हो गओ।
‘‘अब तुम दुखी ने हो बिन्ना! अभईं तुमई कै रईं हतीं के जा दुनिया ऐसई चलत आए औ अब तुमई सोस-फिकर में पर गईं।’’ भैयाजी अब मोय समझान लगे।
‘‘भैयाजी, मैंने जोन दिनां बा वारी खबर पढ़ी रई के अपने दस साथियन को मरत भए देखे रए हाथी ने सोई दम तोड़ दओ, सांची कै रई, ऊ दिनां मोए लगो रओ के मोरो करेजा सई में पथरा को हो  गओ आए ने तो मोए सोई....’’ भैया जी ने मोय बात पूरी ने करन दी।
‘‘ऐसो उल्टो-सूदो ने सोचो बिन्ना! जित्ती जिनगी उते से लिखी गई, बा तो जीनई परत आए औ जीनी चाइए। हम तो जे सोच रए हते के सबने हाथियन के मरबे की खबर पढ़ी हुइए औ ने तो टीवी पे तो देखी हुइए। मनो पब्लिक को ऊनसे कोनऊं लेबो-देबो नइयां। जबके अभईं दिवारी निकरी आए, जोन पे सबई ने अपने-अपने घरे लछमी जी के संगे उनके हाथियन की पूजा करी हुइए, फेर बी इत्तो नई हो रओ के मरबे वारे हाथियन के लाने अपने शहर के चैराहा पे एक ठइया मोमबत्ती जला देवें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘खूब कई भैयाजी! इते इंसान के मरे पे ऊ टेम तक कोनऊं माचिस की तिली लौं नईं जलाऊत आए जब लौं ऊपे राजनीति ने होन लगे। सो, इते हाथियन के लाने मोमबत्ती को जलाहे?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘बिन्ना, तुमें याद हुइए के स्कूल टेम पे अपन ओरन खों एक निबंध लिखाओ जात रओ के ‘पराधीन सपनेहुं सुख नाहीं’, मने गुलामी में रैबे वारो सपनों में बी सुखी नईं रै सकत आए। पर अब मोय जा खबरें पढ़ के लगत आए के बा निबंध फिजूल को रओ। काए से के जोन हाथीं कऊं पले डरे, उते बे जिंदा तो आएं। कछू तो सुखी आएं। उनके मरबे पे कोनऊं जे तो ने कैहे के बे कोदो-कुटकी खा के मर गए। मने तनक सोचियो के अकसर जे होत के सरकार मामले को ढांकत फिरत आए, मगर इते तो सरकार ने बी कओ के जे झूठी रिपोर्ट ने सुनाओ। ऐसो कभऊं ने भओ के कोदो-कुटकी खाए से हाथी मर गए होंए। सो अब तो लगत आए के पराधीन में सुख की तनक तो भरोसो करो जा सकत आए, ने तो इते तो बेमौत की मौत आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बात तो सांची कै रए आप! मनो ऊ टेम के निबंधन को रियल लाईफ से कोनऊं खास लेबो-देबो नईं रैत्तो।’’ मैंने कई।
‘‘मने?’’भैयाजी ने पूछी।
‘‘मने जे, के ऊ टेम पे तो जे निबंध बी लिखाओ जात्तो के ‘‘यदि मैं प्रधानमंत्री होती या होता’’। अब आपई बताओ के ई निबंध को असल की जिनगी में कोऊ का करहे? सो आप ईमें ने परो के स्कूल टेम पे का पढ़ाओ गओ औ अब का पढ़ने पड़ रओ! राजी खुसी रओ औ भौजी खों खुस राखो! जिनगी आसानी से कट जैहे।’’मैंने भैयाजी खो समझाई।
भैया जी मोरी बात सुन के मुस्काए। उन्ने अखबार मोड़-माड़ के एक तरफी धरो औ बोले-‘‘सई कई के जो तुमाई भौजी खुस रए तो हमाई जिनगी तो ऊंसई मजे में कट जैहे।’’    
सो, बतकाव कर के भैयाजी को जी हल्को हो गओ। बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर के जे का हो रओ औ काए हो रओ। हाथी बी अपने घांई जीव आएं। उने सोई जिए को अधिकार आए। सो बोलो, ऐरावत जू की जै!
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Thursday, May 25, 2023

बतकाव बिन्ना की | काए भैया, जो का हो रओ? | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"काए भैया, जो का हो रओ?" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की  
काए भैया, जो का हो रओ?              
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
     ‘और बिन्ना! कैसी हो?’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘‘मोरी छोड़ो! आप तो जे बताओ के जो का हो रओ?’’मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘का हो रओ को का मतलब? हमें कछू समझ में ने आ रई के तुम का आ पूछ रईं?’’ भैयाजी अपनो मूंड़ खुजात भए बोले।
‘‘जे ई, के जो बुखार एक पार्टी वारन को चढ़त्तों, बा दूसरी पार्टी वारन खों चढ़न लगो।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘कोन सो बुखार? कोन सी पार्टी? कछू साफ-साफ बोलो! हमें कछू समझ में ने आ रई।’’ भैयाजी फेर के बोले।
‘‘मैंने सुनी के अपने इते के दो मंत्रियन ने बड़े भैयाजी से कै दई के हमाई कई नईं सुनी, तो हम ओरें एकई संगे इस्तीफा दे देहैं।’’ मैंने कई।
‘‘अच्छा बो! सो तुम वा ऊ बारे में कै रईं! अब समझ में आई।’’ भैयाजी ने तनक चैन की सांस लई।
‘‘हऔ, मैं वोई की कै रई। आप ई सोचो, के जे सो उते होत्तो, बोई अब इते होन लगो! मने जे कोनऊं छूत की बिमारी कहाई।’’ मैंने कई।
‘‘अरे, जे सब होत रैत आए! तुम टेंशन ने लेओ। आज जे ओरें ऐसो कै रए, काल वैसो कैन लगहें। तुम जे सब ने सोचो।’’ भैयाजी सोई हंसत भए बोले।
‘‘काए ने सोचो? अपनई ने सो वोट दे के उन ओरन खों जिताओ औ अब आप बोल रए के उन ओरन के बारे में ने सोचो?’’ मोय भैयाजी की बात ने पोसाई।
‘‘अरे, वोट सो सबई देत आएं, सो का सब ओरें सोच फिकर कर रए?’’ भैयाजी बोले।
‘‘जे का बात हुई? सब ओरें ने सोचें, सो का मोय सोई नईं सोचो चाइए?’’ मैंने पूछी।
‘‘औ का? बे ओरें अपन से पूछ के कर रए का? उने जो ठीक लगो, सो करन लगे।’’ भैयाजी बड़े निष्फिकर से बोले।
‘‘नईं, मने जे तो गलत आए?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘काए को गलत?’’भैयाजी ने पूछी।
‘‘जे ई के दो जने मिल के एक जने खों धमकान लगे। ऊ में एक सो पैलऊं नाएं से माएं वारे ठैरे।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘राम-राम, जो का कै रईं! कछू तो डरो! ऐसो नईं कहो जात आए!’’ भैयाजी मोए समझान लगे।
‘‘सो, मैंने का गलत कै दई?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘देखो बिन्ना, टकला खों टकला नईं कओ जात आए! रई कहबे सुनने की, सो तुमने बा कहनात नई सुनी का, के लड़ाई औ मोहब्बत में जब जायज होत आए। बो कहाऊत आए अंग्रेजी में - एवरी थिंग जायज इन लव एंड वार!’’ भैयाजी बोले।
‘‘भैयाजी, जो अंग्रेजी वारी कहनात अंग्रेजी में बोल रए सो पूरी अंग्रेजी में बोलो! बो कहनात ऐसी आए- एवरी थिंग इज़ फेयर इन लव एंड वार!’’ मैंने भैयाजी की कहनात सुधारी।
‘‘जे बताओ बिन्ना के जो हमने कहनात बोली, बा तुमें समझ में आई?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘हऔ! तभईं तो मैंने सुधारी।’’ मैंने कई।
‘‘बस, जेई सो सल्ल आए के जबरन के सुधारा-सुधूरी करन लगत हो! अरे, बिन्ना! भाषा को का मतलब भओ? के हमने जो कई, तुमें समझ में आ गई। औ तुमने जो कई, बा हमें समझ में आ गई। अब ऊमें सुधरयाई करबे से का बदल जेहे?’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो का? जो कछू गलत बोलो जा रओ होय, सो ऊको सुधारो ने जाए? आप कहबो का चा रए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘काए खों सुधारने? चलन देओ ऊंसई!’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे वा! ऐसे-कैसे? जो मोय गलत लगहे सो मोय सौ दारे टोंकने।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ, जे खूब चला रईं बिन्ना! तुम टोकों सो ठीक, औ कोनऊं औ टोंके सो तुमाओ पेट पिराए। जे कोन सी बात आए?’’ भैयाजी मोरो मजाक उड़ात भए बोले।
‘‘इते तो मैंने ई आप के लाने टोंकी आए, इते औ को दिखा रओ आपको? औ कोन टोंक रओ आप लाने?’’ मोय भैयाजी की कई समझ में ने आ रई हती।
‘‘औ बे दो जने टोंका-टाकीं कर रए सो तुमें रहाई नई पड़ रई!’’ भैयाजी हंसत भए बोले।
‘‘जेल्लो! आप सोई कां की कां ले गए!’’ कैत भई मैं सोई हंसन लगी। बतकाव खों गोल-गोल घुमाबे में भैयाजी घांई एक्सपर्ट कोनऊं नईयां।
‘‘बाकी भैयाजी आपने बताई नईं के आप के इते कित्ते नोट निकरे दो हजार वारे?’’मैंने भैया जी से पूछी।
‘‘एकऊं नई निकरे! अब कां धरे हजार-दो हजार वारे? हमने सो तुमाई भौजी से सोई पूछी के कऊं पिछली बेर घांईं लुका के धरो तो नईयां, के बाद में हमें जा के लेन से लगने परे। सो बे बोलीं के अब कां घरे धरे रुपैया? काए से, के घरे में धरे से कऊं चोरन खों डर, सो कऊं सरकार को डर। ईमानदारी के पईसा होत भए बी रद्दी बना दओ जात आए। सो, तब हमने तुमाई भौजी से कई के, धना! ई बेर सो मुतको टेम दओ गओ आए। तनक अच्छे से, फुरसत से थथोल लइयो, कऊं कोनऊं बटुआ में तुमने न दबा रखे होंएं! तुमाई भौजी बिचारी डरा गई औ एक बेर फेर के ऊने सबरे बटुआ झरा डारे!’’ भैयाजी बतान लगे।
‘‘हऔ, भैयाजी! मोय सोई पतो रओ के मोरे एंगर एक्कऊ ठइया दो हजार को नोट नईंयां, मनो पिछली बेर को जरो, ई बेरा बी फूंक-फूंक के पीहे! मैंने सोई अपने सबरे बटुआ झरा-झरा के देखे। पिछली बेर का भओ रओ के दस-बारा पांच सौ के नोट निकरे रए सो बे जा के बैंक में जमा करा दए रए। हम ओरें निष्फिकर हो गए रए। जे कछू चार-छै मईना बाद, एक दिना मैंने अपनी स्कूटी को डब्बा खोलो, जीमें स्कूटी के कागज धरे रैत्ते, बा खोलतई संगे मोरे होस उड़ गए। ऊमें ससुरो एक पांच सौ को नोट दबो मिलो। बा मैं ईसे रखत्ती के कोनऊं दिना बटुआ घरे भूल जाऊं, सो पेट्रोल डरवाने के लाने मोय कोनऊं से उधारी ने करनी परे। बा नोट मनो ऊ कागजन में दबो रै गओ। तब लौं जमा कराबे की डेट निकर गई हती। सो, बा नोट फटा के फेंकने परो। आज लौं बा नोट मोय सपना में दिखात आए। ऊको याद कर के करेजा दुखन लगत आए। बड़ो बुरौ भओ रओ! बा खून-पसीना की कमाई रई। करिया वारन की निकरी, ने निकरी मनो अपनी सो निपट गई।’’ बा नोट याद कर के मोरो जी दुखन लगो।
‘‘अरे गम्म खाओ बिन्ना! जो हो गओ, सो हो गओ! अब बा नोट सो फेर के आहे ना, सो काय के लाने अपनों जी दुखा रईं। दुखी ने होओ!’’ भैयाजी मोय समझान लगे। फेर बोलो,‘‘तुम अपनो एक नोट को दुखी मना रईं, हमाए सो पांच नोट चले गए रए। दो हमाए कोट के पाकेट से निकर आए रए औ तीन तुमाई भौजी की रमायण में दबे धरे हते। बे सोई जाने कां, कां लुकात रईं। हमने सो तुमाई भौजी से कई रई के जे पांचों हम मंदिर की दान पेटी में डारे आ रए, सो बे बमक परीं। बे बोलीं, तुमें पाप परहे! चलत भओ पईसा चढ़ाओ जात आए, ऐसो वारो नोंईं। हमने पूछी के ऐसो कां लिखो? जे सो मन की बात आए, के हमें जो जैसो चढ़ाने आए, सो चढ़ाबी! सो बे ठेन के बोलीं, हम तुमें ऐसो ने करन देंहैं! अब उनके आगूं हमाई कां चलती।’’ भैयाजी बोले।
‘‘खैर, बे नोटों की छोड़ो भैयाजी! हमें सो जे बताओ के जो का हो रओ?’’ मैंने भैयाजी से फेर पूछी।
‘‘का हो रओ?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘जेई, के दो मंत्री हल्ला बोल रए औ दो विधायक मों बांधे!’’ मैंने पूछी।
‘‘हमने का समझाई के ईमें ने परो! अबे सो देखत चलो, चुनाव आत-आत का-का हुइए। बस, मजो लेत चलो! कोन की बिमारी कोन खों लग रई, ईसे अपन को का? का समझीं?’’ भैयाजी हंसन लगे। मोय सोई हंसी फूट परी।
 मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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