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Friday, November 22, 2024

शून्यकाल | बुंदेलखंड की कुरैया सिखाती है अन्न का सम्मान और सामाजिकता | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | नयादौर

दैनिक 'नयादौर' में मेरा कॉलम - 

शून्यकाल  
बुंदेलखंड की कुरैया सिखाती है अन्न का सम्मान और सामाजिकता
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                   
  बुंदेलखंड की संस्कृति अनूठी है। यहां कदम-कदम पर जीवन की शिक्षा रची-बसी है। बस, आवश्यकता है तो उसे ध्यान से जानने और समझने की। क्या कोई सोच सकता है कि एक निर्जीव बरतन भी कोई शिक्षा दे सकता है? तो यह सोचना भी अजीब  लगेगा। लेकिन बुंदेलखंड में सबकुछ संभव है। यहां जीवन से जुड़ी निर्जीव वस्तुएं भी समाज शिक्षा के बड़े-बड़े पाठ पढ़ाने की क्षमता रखती हैं। जी हां, ऐसा ही एक बरतन है कुरैया!
      आधुनिकता के इस दौर में पारम्परिक बरतनों का चलन धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। गड़ई अर्थात लोटा का स्थान जग और बोतल ने ले लिया है। परिवारों के विखंडन ने आटा गूंथने के पीतल के बड़े-बड़े कोपरों के बदले छोटे आटा-नीडर ने ले लिया है। जो बिजली से चलते हैं और महज दस फुलको का आटा गूंथ देते हैं। लेकिन ग्रामीण अंचल में अभी भी पारम्परिक बरतनों का चलन बचा हुआ है। वहां खेत हैं, खलिहान हैं संयुक्त परिवार हैं और पारंपराओं का खांटी सच्चा रूप अभी बचा हुआ है। यह कब तक बचा रहेगा, यह कहना कठिन है क्योंकि खेती का सिमटना और रोजगार की समस्या ग्रामीण परिवारों को भी तोड़ने लगी है। मोबाईल, टीवी, इंटरनेट ने आधुनिकता के सातिए गांवों के आंगन में भी काढ़ने शुरू कर दिए हैं। आधुनिक होना कोई बुरी बात नहीं है, यह तो विकास की सतत प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा है। गांव के लोगों को भी विकास करने और आधुनिक होने का पूरा अधिकार है। लेकिन इन सबमें परंपराओं का गुम होते जाना दुखद प्रसंग होता है। यदि आधुनिकता और परंपराएं साझा हो कर चलें तो जीवन अधिक रोचक हो जाता है। वस्तुतः स्वस्थ परंपराएं सही ढंग से जीवन जीना सिखाती हैं और बुंदेलखंड में तो निर्जीव बरतन भी जीवन का सलीका सिखा देते हैं। 

बुन्देलखण्ड में प्रचलित कुरैया, कहने को तो महज एक बरतन है। यह पीतल की बनाई जाती है जो कि पारम्परिक बरतन विक्रेताओं की दूकानों पर उपलब्ध रहती है। दरअसल यह एक मापक बरतन है। कुरैया से छोटा भी एक माप होता है जिसे चैथिया कहते हैं जो एक किलो माप का होता है। यह पीतल के अलावा लकड़ी का भी बनाया जाता है। किन्तु कुरैया सिर्फ पीतल का ही बनाई जाती है। कुरैया का आकार-प्रकार विशिष्ट होता है। अर्द्धगोलाकार आकृति के ऊपरी भाग में चैड़ा पाट बिठा कर इसे आकार दिया जाता है। यह चैड़ा पाट दोहरे पट्टे का होता है जिससे पकड़ते समय असुविधा न हो। यह एक ऐसा बरतन है जो प्रत्येक किसान के जीवन से जुड़ा रहता है। कुरैया अनाज मापने का एक बरतन होता है जिसके द्वारा अनाज को माप कर यह पता लगाया जाता है कि खेत में कुल कितनी फसल हुई। कुरैया से मापे जाने के बाद ही अनाज के बोरों को तराजू पर तौला जाता है। इस तरह माप का पहला विश्वास भी कुरैया ही होता है।

 कुरैया को प्रयोग में लाने के भी कुछ नियम होते हैं। आमतौर पर खेत पर पुरुष ही इसका उपयोग करते हैं। यह अथक श्रम से जुड़ा हुआ बरतन है। कुरैया को कभी भी जूता या चप्पल पहन कर उपयोग में नहीं लाया जाता है। इसका प्रमुख कारण यह भी है कि जिस स्थान पर इसे काम में लाते हैं वहां अनाज का ढेर अर्थात् अन्नदेव उपस्थित रहते हैं। जूते और चप्पल को उस स्थान से दूर उतार दिया जाता है। कुरैया से माप करने वाला व्यक्ति कभी नंगे सिर इससे माप नहीं करता है। सिर पर गमछा, साफा या किसी भी प्रकार का कपड़ा बांध कर ही कुरैया को उपयोग में लाया जाता है। इसके पीछे यह विचार निहित रहता है कि कुरैया पवित्रा बरतन है जो अन्नदेव की सेवा में संलग्न है। कुरैया को अनाज मापने के अतिरिक्त किसी अन्य काम में नहीं लाया जाता है। कुरैया की मापक क्षमता पांच किलो अर्थात् एक पसेरी रहती है। अन्न का माप करते समय कुरैया को ऊपर तक पूरी तरह भरा जाता है। अन्न की यह ऊपर तक भरी हुई मात्रा पांच किलो मानी जाती है। कुरैया द्वारा मापा हुआ अन्न तराजू द्वारा तौल करने पर पांच किलो ही निकलता है। बीस कुरैया का एक बोरा होता है अर्थात् सौ किलो माप का। अनाज को कुरैया से मापते समय अन्न के खेप की गिनती भी विशेष प्रकार से की जाती है। पहली माप को ‘एक’ न कह कर ‘राम’ कहा जाता है। दूसरी माप करते समय, जब तक कुरैया ऊपर तक भर नहीं जाती तब तक ‘राम-राम-राम’ का ही उच्चारण किया जाता है। कुरैया ऊपर तक भरने के पश्चात दूसरी माप से ‘दो-दो-दो’ का उच्चारण किया जाता है। इसके बाद इसी क्रम में तीन-तीन-तीन, चार-चार-चार, पांच-पांच-पांच आदि सामान्यतौर पर माप की जाने वाली गिनती बोली जाती है। इस प्रकार अनाज की पहली माप ‘राम’ नाम से आरम्भ होती है जो शुभ-लाभ का पर्याय है।

कुरैया के प्रति जुड़ा हुआ यह सम्मान भाव उस लोक विश्वास का परिचायक है जो अन्न की महत्ता को स्थापित करता है। कुरैया अनाज का सम्मान करना सिखता है। इस सम्मान की भावना को बलवती बनाने के लिए उन सभी वस्तुओं को सम्मान दिया जाता है जो अन्नदेव से जुड़ी होती हैं। कुरैया भी उनमें प्रमुख वस्तु है। कुरैया का एक दूसरा पक्ष भी है जो पारस्परिक सौहार्य को सुदृढ़ता प्रदान करता है। यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक फसल उत्पादक के पास अपना कुरैया हो। यदि उसके पास कुरैया नहीं है तो वह दूसरे व्यक्ति से कुरैया मांग लेता है। एक कुरैया को एक से अधिक किसान उपयोग में लाते हैं। कई बार एक गांव के लोग दूसरे गांव से कुरैया मांग कर लाते हैं। माप का काम हो जाने के बाद पूरी ईमानदारी के साथ कुरैया उसके वास्तविक स्वामी के पास पहुंचा दिया जाता है। कई बार कुरैया को लौटाए जाने में देर होने पर उसके स्वामी के घर की महिलाएं इस प्रकार उसका स्मरण करती हैं जैसे उनकी छोटी बहन या बेटी ससुराल गई हो और बहुत अरसे से मायके न आई हो। इसी भाव को व्यक्ति करता यह लोकगीत कुरैया के प्रति आत्मीयता को दर्शाता है-
मोरी बिन्ना सी कुरैया अबे लों ने आई
कोऊ जाओ तो ले आओ, लेवउआ बन के
मोरी बिन्ना सी कुरैया अबे लों ने आई....
गहूं के लाने गई ती,
चना के लाने गई ती
कोऊ जाओ तो ले आओ, लेवउआ बन के
मोरी बिन्ना सी कुरैया अबे लों ने आई....
चच्चा के इते गई ती
मम्मा के इते गई ती
कोऊ जाओ तो ले आओ, लेवउआ बन के
मोरी बिन्ना सी कुरैया अबे लों ने आई....
कुरैया मानो परिवार का सदस्य हो, कुरैया मानो अन्नदेव तक संदेश पहुंचाने वाला देवदूत हो। किसान कुरैया से अनुनय-विनय करता है कि उसका संदेश अन्नदेव तक पहुंचा दे-
कहियो, कहियो कुरैया! जा के नाजदेव से
अगले बरस सोई भर-भर आइयो
हमरी खबर मालिक ना बिसरइयो
कुइयां न सूकें, सूकें न नदियां
कहियो, कहियो कुरैया! जा के नाजदेव से.....
इस तरह धातु से बना मूक बरतन किसी सजीव व्यक्ति की भांति संदेशवाहक बन जाता है। यही तो जीवन्त विश्वास और मान्यता है जो प्रत्येक जड़-चेतन के महत्व को स्थापित करती है। कुरैया आपसी सौहार्य एवं भाईचारे का माध्यम बनता ही है किन्तु इससे से भी बढ़ कर महत्वपूर्ण तथ्य है कि प्रायः ग्राम्य अंचलों में जातीय भेद-भाव प्रभावी रहता है किन्तु कुरैया का उपयोग इसका अपवाद है। यह प्रत्येक जाति-धर्म के लोगों के बीच परस्पर आदान-प्रदान के रूप में काम में लाया जाता है। कुरैया मानव विश्वास और सामाजिकता का प्रतीक है। 
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Saturday, December 28, 2019

बुंदेलखंड की कुरैया सिखाती है अन्न का सम्मान और सामाजिकता - डाॅ. शरद सिंह ... नवभारत, 05.12.2019 में प्रकाशित

बुंदेलखंड की कुरैया सिखाती है अन्न का सम्मान और सामाजिकता
- डाॅ. शरद सिंह
(नवभारत, 05.12.2019 में प्रकाशित)
 
बुन्देलखण्ड में प्रचलित कुरैया, कहने को तो महज एक बरतन होता है। यह पीतल की बनाई जाती है जो कि पारम्परिक बरतन विक्रेताओं की दूकानों पर उपलब्ध रहती है। कुरैया से छोटा भी एक माप होता है जिसे चैथिया कहते हैं जो एक किलो माप का होता है। यह पीतल के अलावा लकड़ी का भी बनाया जाता है। किन्तु कुरैया सिर्फ़ पीतल का ही बनाया जाता है। कुरैया का आकार-प्रकार विशिष्ट होता है। अर्द्धगोलाकार आकृति के ऊपरी भाग में चौड़ा पाट बिठा कर इसे आकार दिया जाता है। यह चौड़ा पाट दोहरे पट्टे का होता है जिससे पकड़ते समय असुविधा न हो। यह एक ऐसा बरतन है जो प्रत्येक किसान के जीवन से जुड़ा रहता है। कुरैया अनाज मापने का एक बरतन होता है जिसके द्वारा अनाज को माप कर यह पता लगाया जाता है कि खेत में कुल कितनी फसल हुई। कुरैया से मापे जाने के बाद ही अनाज के बोरों को तराजू पर तौला जाता है। इस तरह माप का पहला विश्वास भी कुरैया ही होता है।
 Navbharat -  Bundelkhand Ki Kuraiya Sikhati Hai Ann Ka Samman Aur Samajikta  - Dr Sharad Singh, 05.12.2019
           कुरैया को प्रयोग में लाने के भी कुछ नियम होते हैं। आमतौर पर खेत पर पुरुष ही इसका उपयोग करते हैं। यह अथक श्रम से जुड़ा हुआ बरतन है। कुरैया को कभी भी जूता या चप्पल पहन कर उपयोग में नहीं लाया जाता है। इसका प्रमुख कारण यह भी है कि जिस स्थान पर इसे काम में लाते हैं वहां अनाज का ढेर अर्थात् अन्नदेव उपस्थित रहते हैं। जूते और चप्पल को उस स्थान से दूर उतार दिया जाता है। कुरैया से माप करने वाला व्यक्ति कभी नंगे सिर इससे माप नहीं करता है। सिर पर गमछा, साफ़ा या किसी भी प्रकार का कपड़ा बांध कर ही कुरैया को उपयोग में लाया जाता है। इसके पीछे यह विचार निहित रहता है कि कुरैया पवित्रा बरतन है जो अन्नदेव की सेवा में संलग्न है। कुरैया को अनाज मापने के अतिरिक्त किसी अन्य काम में नहीं लाया जाता है। कुरैया की मापक क्षमता पांच किलो अर्थात् एक पसेरी रहती है। अन्न का माप करते समय कुरैया को ऊपर तक पूरी तरह भरा जाता है। अन्न की यह ऊपर तक भरी हुई मात्रा पांच किलो मानी जाती है। कुरैया द्वारा मापा हुआ अन्न तराजू द्वारा तौल करने पर पांच किलो ही निकलता है। बीस कुरैया का एक बोरा होता है अर्थात् सौ किलो माप का। अनाज को कुरैया से मापते समय अन्न के खेप की गिनती भी विशेष प्रकार से की जाती है। पहली माप को ‘एक’ न कह कर ‘राम’ कहा जाता है। दूसरी माप करते समय, जब तक कुरैया ऊपर तक भर नहीं जाती तब तक ‘राम-राम-राम’ का ही उच्चारण किया जाता है। कुरैया ऊपर तक भरने के पश्चात दूसरी माप से ‘दो-दो-दो’ का उच्चारण किया जाता है। इसके बाद इसी क्रम में तीन-तीन-तीन, चार-चार-चार, पांच-पांच-पांच आदि सामान्यतौर पर माप की जाने वाली गिनती बोली जाती है। इस प्रकार अनाज की पहली माप ‘राम’ नाम से आरम्भ होती है जो शुभ-लाभ का पर्याय है।
कुरैया के प्रति जुड़ा हुआ यह सम्मान भाव उस लोक विश्वास का परिचायक है जो अन्न की महत्ता को स्थापित करता है। कुरैया अनाज का सम्मान करना सिखता है। इस सम्मान की भावना को बलवती बनाने के लिए उन सभी वस्तुओं को सम्मान दिया जाता है जो अन्नदेव से जुड़ी होती हैं। कुरैया भी उनमें प्रमुख वस्तु है। कुरैया का एक दूसरा पक्ष भी है जो पारस्परिक सौहार्य को सुदृढ़ता प्रदान करता है। यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक फसल उत्पादक के पास अपना कुरैया हो। यदि उसके पास कुरैया नहीं है तो वह दूसरे व्यक्ति से कुरैया मांग लेता है। एक कुरैया को एक से अधिक किसान उपयोग में लाते हैं। कई बार एक गांव के लोग दूसरे गांव से कुरैया मांग कर लाते हैं। माप का काम हो जाने के बाद पूरी ईमानदारी के साथ कुरैया उसके वास्तविक स्वामी के पास पहुंचा दिया जाता है। कई बार कुरैया को लौटाए जाने में देर होने पर उसके स्वामी के घर की महिलाएं इस प्रकार उसका स्मरण करती हैं जैसे उनकी छोटी बहन या बेटी ससुराल गई हो और बहुत अरसे से मायके न आई हो। इसी भाव को व्यक्ति करता यह लोकगीत कुरैया के प्रति आत्मीयता को दर्शाता है-
मोरी बिन्ना सी कुरैया अबे लों ने आई
कोऊ जाओ तो ले आओ, लेवउआ बन के
मोरी बिन्ना सी कुरैया अबे लों ने आई....
गहूं के लाने गई थी,
चना के लाने गई थी
कोऊ जाओ तो ले आओ, लेवउआ बन के
मोरी बिन्ना सी कुरैया अबे लों ने आई....
कुरैया मानो परिवार का सदस्य हो, कुरैया मानो अन्नदेव तक संदेश पहुंचाने वाला देवदूत हो। किसान कुरैया से अनुनय-विनय करता है कि उसका संदेश अन्नदेव तक पहुंचा दे-
कहियो, कहियो कुरैया! जा के नाजदेव से
अगले बरस सोई भर-भर आइयो
हमरी खबर मालिक ना बिसराइयो
कुइयां न सूकें, सूकें न नदियां
कहियो, कहियो कुरैया! जा के नाजदेव से.....
इस तरह धातु से बना मूक बरतन किसी सजीव व्यक्ति की भांति संदेशवाहक बन जाता है। यही तो जीवन्त विश्वास और मान्यता है जो प्रत्येक जड़-चेतन के महत्व को स्थापित करती है। कुरैया आपसी सौहार्य एवं भाईचारे का माध्यम बनता ही है किन्तु इससे से भी बढ़ कर महत्वपूर्ण तथ्य है कि प्रायः ग्राम्य अंचलों में जातीय भेद-भाव प्रभावी रहता है किन्तु कुरैया का उपयोग इसका अपवाद है। यह प्रत्येक जाति-धर्म के लोगों के बीच परस्पर आदान-प्रदान के रूप में काम में लाया जाता है। कुरैया मानव विश्वास और सामाजिकता का प्रतीक है।
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