बुंदेलखंड की कुरैया सिखाती है अन्न का सम्मान और सामाजिकता
- डाॅ. शरद सिंह
(नवभारत, 05.12.2019 में प्रकाशित)
- डाॅ. शरद सिंह
(नवभारत, 05.12.2019 में प्रकाशित)
बुन्देलखण्ड में प्रचलित कुरैया, कहने को तो महज एक बरतन होता
है। यह पीतल की बनाई जाती है जो कि पारम्परिक बरतन विक्रेताओं की दूकानों
पर उपलब्ध रहती है। कुरैया से छोटा भी एक माप होता है जिसे चैथिया कहते हैं
जो एक किलो माप का होता है। यह पीतल के अलावा लकड़ी का भी बनाया जाता है।
किन्तु कुरैया सिर्फ़ पीतल का ही बनाया
जाता है। कुरैया का आकार-प्रकार विशिष्ट होता है। अर्द्धगोलाकार आकृति के
ऊपरी भाग में चौड़ा पाट बिठा कर इसे आकार दिया जाता है। यह चौड़ा पाट दोहरे
पट्टे का होता है जिससे पकड़ते समय असुविधा न हो। यह एक ऐसा बरतन है जो
प्रत्येक किसान के जीवन से जुड़ा रहता है। कुरैया अनाज मापने का एक बरतन
होता है जिसके द्वारा अनाज को माप कर यह पता लगाया जाता है कि खेत में कुल
कितनी फसल हुई। कुरैया से मापे जाने के बाद ही अनाज के बोरों को तराजू पर
तौला जाता है। इस तरह माप का पहला विश्वास भी कुरैया ही होता है।
Navbharat - Bundelkhand Ki Kuraiya Sikhati Hai Ann Ka Samman Aur Samajikta - Dr Sharad Singh, 05.12.2019 |
कुरैया को प्रयोग में लाने के भी कुछ नियम होते हैं। आमतौर पर खेत पर पुरुष
ही इसका उपयोग करते हैं। यह अथक श्रम से जुड़ा हुआ बरतन है। कुरैया को कभी
भी जूता या चप्पल पहन कर उपयोग में नहीं लाया जाता है। इसका प्रमुख कारण यह
भी है कि जिस स्थान पर इसे काम में लाते हैं वहां अनाज का ढेर अर्थात्
अन्नदेव उपस्थित रहते हैं। जूते और चप्पल को उस स्थान से दूर उतार दिया
जाता है। कुरैया से माप करने वाला व्यक्ति कभी नंगे सिर इससे माप नहीं करता
है। सिर पर गमछा, साफ़ा या किसी भी प्रकार का कपड़ा बांध कर ही कुरैया को
उपयोग में लाया जाता है। इसके पीछे यह विचार निहित रहता है कि कुरैया
पवित्रा बरतन है जो अन्नदेव की सेवा में संलग्न है। कुरैया को अनाज मापने
के अतिरिक्त किसी अन्य काम में नहीं लाया जाता है। कुरैया की मापक क्षमता
पांच किलो अर्थात् एक पसेरी रहती है। अन्न का माप करते समय कुरैया को ऊपर
तक पूरी तरह भरा जाता है। अन्न की यह ऊपर तक भरी हुई मात्रा पांच किलो मानी
जाती है। कुरैया द्वारा मापा हुआ अन्न तराजू द्वारा तौल करने पर पांच किलो
ही निकलता है। बीस कुरैया का एक बोरा होता है अर्थात् सौ किलो माप का।
अनाज को कुरैया से मापते समय अन्न के खेप की गिनती भी विशेष प्रकार से की
जाती है। पहली माप को ‘एक’ न कह कर ‘राम’ कहा जाता है। दूसरी माप करते समय,
जब तक कुरैया ऊपर तक भर नहीं जाती तब तक ‘राम-राम-राम’ का ही उच्चारण किया
जाता है। कुरैया ऊपर तक भरने के पश्चात दूसरी माप से ‘दो-दो-दो’ का
उच्चारण किया जाता है। इसके बाद इसी क्रम में तीन-तीन-तीन, चार-चार-चार,
पांच-पांच-पांच आदि सामान्यतौर पर माप की जाने वाली गिनती बोली जाती है। इस
प्रकार अनाज की पहली माप ‘राम’ नाम से आरम्भ होती है जो शुभ-लाभ का पर्याय
है।
कुरैया के प्रति जुड़ा हुआ यह सम्मान भाव उस लोक विश्वास का परिचायक है जो अन्न की महत्ता को स्थापित करता है। कुरैया अनाज का सम्मान करना सिखता है। इस सम्मान की भावना को बलवती बनाने के लिए उन सभी वस्तुओं को सम्मान दिया जाता है जो अन्नदेव से जुड़ी होती हैं। कुरैया भी उनमें प्रमुख वस्तु है। कुरैया का एक दूसरा पक्ष भी है जो पारस्परिक सौहार्य को सुदृढ़ता प्रदान करता है। यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक फसल उत्पादक के पास अपना कुरैया हो। यदि उसके पास कुरैया नहीं है तो वह दूसरे व्यक्ति से कुरैया मांग लेता है। एक कुरैया को एक से अधिक किसान उपयोग में लाते हैं। कई बार एक गांव के लोग दूसरे गांव से कुरैया मांग कर लाते हैं। माप का काम हो जाने के बाद पूरी ईमानदारी के साथ कुरैया उसके वास्तविक स्वामी के पास पहुंचा दिया जाता है। कई बार कुरैया को लौटाए जाने में देर होने पर उसके स्वामी के घर की महिलाएं इस प्रकार उसका स्मरण करती हैं जैसे उनकी छोटी बहन या बेटी ससुराल गई हो और बहुत अरसे से मायके न आई हो। इसी भाव को व्यक्ति करता यह लोकगीत कुरैया के प्रति आत्मीयता को दर्शाता है-
मोरी बिन्ना सी कुरैया अबे लों ने आई
कोऊ जाओ तो ले आओ, लेवउआ बन के
मोरी बिन्ना सी कुरैया अबे लों ने आई....
गहूं के लाने गई थी,
चना के लाने गई थी
कोऊ जाओ तो ले आओ, लेवउआ बन के
मोरी बिन्ना सी कुरैया अबे लों ने आई....
कुरैया मानो परिवार का सदस्य हो, कुरैया मानो अन्नदेव तक संदेश पहुंचाने वाला देवदूत हो। किसान कुरैया से अनुनय-विनय करता है कि उसका संदेश अन्नदेव तक पहुंचा दे-
कहियो, कहियो कुरैया! जा के नाजदेव से
अगले बरस सोई भर-भर आइयो
हमरी खबर मालिक ना बिसराइयो
कुइयां न सूकें, सूकें न नदियां
कहियो, कहियो कुरैया! जा के नाजदेव से.....
इस तरह धातु से बना मूक बरतन किसी सजीव व्यक्ति की भांति संदेशवाहक बन जाता है। यही तो जीवन्त विश्वास और मान्यता है जो प्रत्येक जड़-चेतन के महत्व को स्थापित करती है। कुरैया आपसी सौहार्य एवं भाईचारे का माध्यम बनता ही है किन्तु इससे से भी बढ़ कर महत्वपूर्ण तथ्य है कि प्रायः ग्राम्य अंचलों में जातीय भेद-भाव प्रभावी रहता है किन्तु कुरैया का उपयोग इसका अपवाद है। यह प्रत्येक जाति-धर्म के लोगों के बीच परस्पर आदान-प्रदान के रूप में काम में लाया जाता है। कुरैया मानव विश्वास और सामाजिकता का प्रतीक है।
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#नवभारत #बुंदेलखंड #शरदसिंह #कुरैया
कुरैया के प्रति जुड़ा हुआ यह सम्मान भाव उस लोक विश्वास का परिचायक है जो अन्न की महत्ता को स्थापित करता है। कुरैया अनाज का सम्मान करना सिखता है। इस सम्मान की भावना को बलवती बनाने के लिए उन सभी वस्तुओं को सम्मान दिया जाता है जो अन्नदेव से जुड़ी होती हैं। कुरैया भी उनमें प्रमुख वस्तु है। कुरैया का एक दूसरा पक्ष भी है जो पारस्परिक सौहार्य को सुदृढ़ता प्रदान करता है। यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक फसल उत्पादक के पास अपना कुरैया हो। यदि उसके पास कुरैया नहीं है तो वह दूसरे व्यक्ति से कुरैया मांग लेता है। एक कुरैया को एक से अधिक किसान उपयोग में लाते हैं। कई बार एक गांव के लोग दूसरे गांव से कुरैया मांग कर लाते हैं। माप का काम हो जाने के बाद पूरी ईमानदारी के साथ कुरैया उसके वास्तविक स्वामी के पास पहुंचा दिया जाता है। कई बार कुरैया को लौटाए जाने में देर होने पर उसके स्वामी के घर की महिलाएं इस प्रकार उसका स्मरण करती हैं जैसे उनकी छोटी बहन या बेटी ससुराल गई हो और बहुत अरसे से मायके न आई हो। इसी भाव को व्यक्ति करता यह लोकगीत कुरैया के प्रति आत्मीयता को दर्शाता है-
मोरी बिन्ना सी कुरैया अबे लों ने आई
कोऊ जाओ तो ले आओ, लेवउआ बन के
मोरी बिन्ना सी कुरैया अबे लों ने आई....
गहूं के लाने गई थी,
चना के लाने गई थी
कोऊ जाओ तो ले आओ, लेवउआ बन के
मोरी बिन्ना सी कुरैया अबे लों ने आई....
कुरैया मानो परिवार का सदस्य हो, कुरैया मानो अन्नदेव तक संदेश पहुंचाने वाला देवदूत हो। किसान कुरैया से अनुनय-विनय करता है कि उसका संदेश अन्नदेव तक पहुंचा दे-
कहियो, कहियो कुरैया! जा के नाजदेव से
अगले बरस सोई भर-भर आइयो
हमरी खबर मालिक ना बिसराइयो
कुइयां न सूकें, सूकें न नदियां
कहियो, कहियो कुरैया! जा के नाजदेव से.....
इस तरह धातु से बना मूक बरतन किसी सजीव व्यक्ति की भांति संदेशवाहक बन जाता है। यही तो जीवन्त विश्वास और मान्यता है जो प्रत्येक जड़-चेतन के महत्व को स्थापित करती है। कुरैया आपसी सौहार्य एवं भाईचारे का माध्यम बनता ही है किन्तु इससे से भी बढ़ कर महत्वपूर्ण तथ्य है कि प्रायः ग्राम्य अंचलों में जातीय भेद-भाव प्रभावी रहता है किन्तु कुरैया का उपयोग इसका अपवाद है। यह प्रत्येक जाति-धर्म के लोगों के बीच परस्पर आदान-प्रदान के रूप में काम में लाया जाता है। कुरैया मानव विश्वास और सामाजिकता का प्रतीक है।
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