Dr (Miss) Sharad Singh |
बुंदेलखंड में कहां से आई बुंदेली?
- डाॅ. शरद सिंह
(#नवभारत, 12.12.2019 में प्रकाशित)
बुंदेली बोली है या भाषा? बुंदेलखंड में कहां से आई बुंदेली? बुंदेलखंड के पढ़के-लिखे तबके को बुंदेली बोलना चाहिए या नहीं? जैसे गहन-गंभीर प्रश्न कभी-कभी चाय की चुस्कियों के साथ चर्चा एवं विचार-विमर्श के विषय बन जाते हैं। प्रत्येक बुंदेलखंडी को अपनी बुंदेली पर गर्व है और वह इसे भाषा के रूप में मान्यता दिलाने की प्रबल इच्छा रखता है। लेकिन का स्वरूप क्या है? यह सारी चर्चा एक छोटे से विचार-विमर्श के रूप में उभरी जब मैं, मेरी दीदी डाॅ वर्षा सिह और स्थानीय कवि वीरेन्द्र प्रधान हिन्दी साहित्य और क्षेत्रीय साहित्य पर चर्चा करते हिन्दी से बुंदेली की चिंतन-यात्रा पर निकल पड़े। चाय की चुस्कियों के समापन तक वार्ता का विषय बदल गया किन्तु मेरे मानस में बुंदेली का अस्तित्व उथल-पुथल मचाता रहा। मुझे अपने वे दिन याद आ गए जब मैंने खजुराहो की मूर्तिकला पर पीएच. डी. करने के दौरान बुंदेलखंड की प्राचीनता का अध्ययन कर रही थी। अभी दो माह पहले मेरे मानस में बुंदेलखंड की प्राचीनता के वे पन्ने एक बार फिर खुल गए थे जब मैं अपना चैथा उपन्यास लिख रही थी।
बुंदेलखंड प्राचीन काल में वत्स तथा मध्ययुग में जेजाकभुक्ति के नाम से जाना जाता था। बुन्देलखंड नाम की प्राचीनता भले ही संक्षिप्त है, किन्तु इस भू-भाग की प्राचीनता मानव सभ्यता के विकास के प्राक्युग से जुड़ी हुई है। पूर्व पाषाण युगीन मानव के उपकरण सागर, दमोह तथा बुन्देलखंड के अन्य क्षेत्रों में मिले हैं। ये बिल्लौर पत्थर, बलुआ पत्थर तथा सोपानाश्म (ट्रप) के बने हुए हैं। इनका काल लगभग पांच लाख ईस्वी पूर्व माना गया है। ये सामग्री उस सभ्यता की धरोहर है जब मनुष्य बड़े, भोथरे औजार-उपकरण बनाता था। अर्थात् बुंदेलखंड प्रगैतिहासिक मनुष्यों का निवास स्थान रहा। रहा भाषा का सवाल तो महाकाव्य काल के दो प्रसिद्ध ग्रंथों ‘रामायण’ एवं ‘महाभारत’ के रचयिता बुन्देलखण्ड की धरती से जुड़े थे। इन ग्रंथों में चेदि, दशार्ण एवं कारुष के रूप में बुंदेलखंड का ही उल्लेख है। बुंदेलखंड में अनेक जनजातियां निवास करती थीं। इनमें कोल, निषाद, पुलिन्द, किरार, नाग आदि थे जिनकी अपनी स्वतंत्र भाषाएं थी। जहां संस्कृत विद्वानों की भाषा थी वहीं जनपदीय भाषा ‘विंध्येली’ थी। विंध्य पर्वत श्रृखंला के कारण यह नाम पड़ा। भरतमुनि के ‘नाट्य शास्त्र’ में ‘विंध्येली’ का उल्लेख है। भाषाविदों का मानना है कि भवभूति ‘उत्तर रामचरित’ के ग्रामीणजनों की भाषा ’विंध्येली’ वस्तुतः प्राचीन बुन्देली ही थी। प्राचीन बुन्देली अर्थात् ‘विंध्येली’ के ‘काल्पी सूत्र’ काल्पी में प्राप्त हुए हैं। माना जाता है कि चन्देल नरेश गण्डदेव (सन् 940 से 999 ई.) तथा उसके उत्तराधिकारी विद्याधर (सन् 999 ई. से 1025 ई.) के काल में बुन्देली भाषा के रूप में सामने आई। बुंदेली भाषा रासो काव्य धारा के माध्यम से विकसित हुई। जगनिक ‘आल्हखण्ड’ तथा ‘परमाल रासो’ प्रौढ़ भाषा की रचनाएं हैं।
भाषा काव्य की परम्परा दशवीं शती से प्रारम्भ हो गई थी। बुन्देली के आदि कवि के रुप में प्राप्त सामग्री के आधार पर जगनिक एवं विष्णुदास सर्वमान्य हैं जो बुन्देली की समस्त विशेषताओं से मण्डित हैं। पं. किशोरीलाल वाजपेयी लिखित हिन्दी ‘शब्दानुशासन’ के अनुसार - ‘‘हिन्दी एक स्वतंत्र भाषा है, उसकी प्रकृति संस्कृत तथा अपभ्रंश से भिन्न है। जबकि बुन्देली की जननी प्राकृत (शौरसेनी) तथा संस्कृत भाषा है। दोनों भाषाओं में जन्मने के उपरांत भी बुन्देली भाषा की अपनी चाल, अपनी प्रकृति तथा वाक्य विन्यास को अपनी मौलिक शैली है।’’
बुंदेलखंड में कहां से आई बुंदेली? - डाॅ. शरद सिंह, नवभारत, 12.12.2019 में प्रकाशित
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