Wednesday, July 28, 2021

चर्चा प्लस | कभी न रुकने वाले ओलम्पिक खेलों के जज़्बे को सलाम | डाॅ शरद सिंह

चर्चा प्लस            
कभी न रुकने वाले ओलम्पिक खेलों के जज़्बे को सलाम !
 - डाॅ शरद सिंह
        टोक्यो में चल रहे ओलम्पिक गेम्स में भारत ने अपना खाता खोल दिया है और उस जीवटता का हिस्सा बन गया है जो कोरोना की विश्व-आपदा जैसी विपरीत परिस्थितियों में भी खेलों को जारी रखे हुए है। इससे पहले भी ऐसे तीन अवसर आ चुके हैं जब ओलम्पिक पर संकट के बादल मंडराए थे। लेकिन हर बार ओलम्पिक ने खुद को संकट से उबार लिया और आगे बढ़ता गया।  
 आज कोई विश्व युद्ध नहीं चल रहा है लेकिन एक युद्ध अवश्य है जिसमें पूरा विश्व कोरोना आपदा से युद्ध कर रहा है। सन् 2019 के अंतिम महीनों में कोरोना वायरस कोविड-19 ने पूरी दुनिया को हिला दिया। सन् 2020 आरम्भ होते ही कोरोना वायरस की भयावहता से पूरा विश्व थर्रा उठा। योरोपीय देशों में हज़ारों लोगों की जानें गईं। लोगों को अपनी सामान्य गतिविधियां स्थगित कर देनी पड़ी। यहां तक कि शादी-विवाह भी थम गए। ऐसी परिस्थिति में स्टेडियम में जाने, खोलने या खेल देखने की कल्पना करना भी कठिन हो गया था। जबकि सन् 2020 का वर्ष था ओलम्पिक खेलों का। कोरोना की भयावहता को देखते हुए ओलम्पिक संघ ने ओलम्पिक खेलों को स्थगित करने का निर्णय लिया। यह चैथी बार था जब ओलम्पिक खेलों को रोका गया। इससे पहले ओलम्पिक खेलों के इतिहास में ऐसे तीन अवसर आए थे जब इन खोलों को स्थगित करना पड़ा था। लेकिन ओलम्पिक खेलों ने अपनी हर बाधा को पार कर के सिद्ध किया कि उसमें ‘‘वसुधैवकुटुम्बकम’’ का जज़्बा है। जब दुनिया के सारे देश एक साथ खड़े हो जाएं ता कोई बाधा हरा नहीं सकती है, मिटा नहीं सकती है। ओलम्पिक खेल भी कुछ समय के लिए स्थगित किए गए और स्थितियां सुधरने पर पुनः आयोजित किए गए।
प्रत्येक चार वर्ष में होने वाले ओलम्पिक खेलों का इतिहास लगभग 124 साल पुराना है। सन् 1896 में ग्रीस के शहर एथेंस में पहला आधुनिक ओलम्पिक खेल शुरू हुए थे। उस समय मात्र 14 देशों ने इसमें भाग लिया था। कुल 42 खेल स्पर्धा में इसमें 250 पुरुष खिलाड़ियों ने इसमें भाग लिया था। सन् 1916 तक सब कुछ ठीक रहा लेकिन सन् 1916 में जर्मनी  की राजधानी बर्लिन में ओलम्पिक होने थे। तब तक यूरोप प्रथम विश्व युद्ध के शिकंजे में फंस चुका था। 28 जुलाई 1914 को पहला विश्व युद्ध शुरू हो चुका था।  इस युद्ध मे लगभग 16 मिलियन लोग मारे गए। यह युद्ध चार वर्ष तक चला। ओलम्पिक खेल रद्द कर दिए गए।  इसके बाद सन् 1936 में ओलम्पिक खेल हुए। जिसकी मेजबानी की जर्मनी ने।
अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति के सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि तत्कालीन बढ़ते नाजीवाद के कारण ओलम्पिक का आयोजन जर्मनी की राजधानी बर्लिन में हो पाएगा या नहीं। अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति के सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि बढ़ते नाजीवाद के कारण ओलम्पिक का आयोजन बर्लिन में हो पाएगा या नहीं। अमेरिका ने बर्लिन ओलम्पिक के बहिष्कार किए जाने का प्रस्ताव रखा किन्तु वह अमान्य कर दिया गया और अमेरिका ने ओलम्पिक में अपने खिलाड़ी भेजे। मात्र स्पेन ही ऐसा देश था जो बर्लिन ओलम्पिक में भाग नहीं ले पाया क्योंकि वह अपने गृहयुद्ध में उलझा हुआ था।
एडोल्फ हिटलर ने ओलम्पिक खेलों का उदघाटन किया और कई टीमों ने उन्हें नाजी सैल्यूट भी दिया। लेकिन उदघाटन समारोह से ब्रिटेन और अमरीका की टीमें अनुपस्थित रहीं। लेकिन बर्लिन ओलम्पिक के स्टार रहे अमरीका के अश्वेत खिलाड़ी जेसी ओवंस। ओवंस ने चार स्वर्ण पदक जीते। उन्होंने 100 मीटर, 200 मीटर, लंबी कूद में स्वर्ण जीता और 4 गुणा 100 मीटर रिले दौड़ में भी वे अमरीकी टीम में शामिल थे जिसने गोल्ड जीता था। जर्मनी की टीम मेडल तालिका में सबसे ऊपर रही। उसने 33 स्वर्ण पदक जीते। अमरीका के हिस्से में 24 और हंगरी के हिस्से में 10 स्वर्ण पदक आए।
विश्व युद्ध के कारण 1916 में ओलम्पिक खेलों का आयोजन नहीं हुआ। लेकिन 1920 में बेल्जियम के एंटवर्प को मेजबानी का अवसर मिला। यद्यपि विश्व युद्ध की पीड़ा बेल्जियम को भी झेलनी पड़ी थी लेकिन इसके बावजूद आयोजकों ने जरूरी व्यवस्था पूरी कर ली। प्रथम विश्व युद्ध में शामिल होने के कारण जर्मनी, ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया, हंगरी और तुर्की को ओलम्पिक का आमंत्रण नहीं दिया गया। लेकिन फिर भी इसमें बड़ी संख्या में एथलीटों ने हिस्सा लिया। एंटवर्प ओलम्पिक से ही ओलम्पिक खेलों का आधिकारिक झंडा सामने आया। इस झंडे में आपस में जुड़े पाँच गोलों को दिखाया गया जो एकता और मित्रता का प्रतीक है। पहले ओलम्पिक की तरह इस ओलम्पिक में भी देशों के बीच शांति प्रदर्शित करने के लिए कबूतर उड़ाए गए। किसी दक्षिण अमेरिकी देश ने पहली बार 1920 में स्वर्ण पदक जीता। ब्राजील के गिलहेर्म पैरेंस ने रैपिड फायर पिस्टल प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता। अमेरीका के ऐलिन रिगिन सबसे कम उम्र में स्वर्ण जीतने वाले खिलाड़ी बनें। उन्होंने गोताखोरी में गोल्ड मेडल जीता सिर्फ 14 वर्ष और 119 दिन की आयु में। 1500 मीटर में ब्रिटेन के फिलिप नोएल बेकर ने सिल्वर मेडल जीता और बाद में वे ब्रिटेन के एमपी भी बने। 1959 में वे पहले ऐसे ओलंपियन बनें जिन्हें शांति पुरस्कार नोबेल पुरस्कार से सम्मानित गया।ं
द्वितीय विश्व युद्ध सितंबर 1939 से लेकर सितंबर 1945 तक यानी कुल 6 साल चला। करीब 70 देशों की सेनाएं इस युद्ध में शामिल थीं। इस भयावह युद्ध में करीब 7 करोड़ लोगों की जान गई थी। इस बीच दो ओलम्पिक खेलों का आयोजन होना था। 1940 और 1944 में होने वाले ओलम्पिक खेल दूसरे विश्व युद्ध की बलि चढ़ गए। उन्हें स्थगित करना पड़ा। इसमें 1940 का ओलम्पिक की संयुक्त मेजबानी जापान और फिनलैंड पर थी। जबकि 1944 में होने वाले ओलम्पिक खेल लंदन में होना था। द्वितीय विश्व युद्ध के कारण ये दोनों ओलम्पिक्स रद्द करने पड़े थे। इस प्रकार तीन बार ओलम्पिक खेलों को स्थगित होना पड़ा।
इस बार सन् 2020 में टोक्यो में आयोजित होने वाले ओलम्पिक खेलों को कोरोना महामारी के कारण स्थगित करना पड़ा। लेकिन जापान ने हौसला दिखाया और एक मेजबान की हैसीयत से उसने तैयारी जारी रखी। महामारी का प्रकोप थोड़ा कम होता दिखने पर दुनिया के और भी देशों ने साहस दिखाया और आज सन् 2021 में ‘‘टोक्यो ओलम्पिक-2020’’ का आयोजन किया जा रहा है। टोक्यो ओलम्पिक में हिस्सा लेने के लिए 205 देशों से 11 हजार एथलीट जापान पहुंचे हैं। 17 दिनों तक यहां 33 अलग-अलग खेलों के 339 इवेंट्स होंगे। इस बार ओलम्पिक में मैडिसन साइकलिंग, बेसबॉल और सॉफ्टबॉल की वापसी हुई है। वहीं अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, रूस, जापान और जर्मनी मेडल सूची में टॉप पर रहने के लिए कड़ी टक्कर करती दिखेंगे।
ओलम्पिक के इतिहास में यह पहली बार हुआ कि उद्घाटन समारोह में दर्शकदीर्घा खाली थी। दर्शकों के बिना खेलों का आयोजन करने का साहस जापान ने दिखाया जो किउसकी जीवटता का परिचायक है। साथ ही ओलम्पिक खेलों का हर बाधा को पार करते हुए 124 साल तक जारी रहना इस बात का संदेश देता है कि संकट चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, यदि दुनिया के सारे देश एकता दिखाएं तो फिर से उठ खड़ा हुआ जा सकता है।    
            ----------------------------   
(सागर दिनकर, 28.07.2021)
#शरदसिंह  #डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह #miss_sharad #चर्चाप्लस #दैनिक #सागर_दिनकर

Tuesday, July 27, 2021

पुस्तक समीक्षा | अनगढ़पन के स्वाभाविक सौंदर्य की कविताएं | समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

पुस्तक समीक्षा
अनगढ़पन के स्वाभाविक सौंदर्य की कविताएं
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
---------------------------
काव्य संग्रह - उद्गार
कवयित्री    - श्रीमती शशि दीक्षित
प्रकाशक    - जे.टी.एस. पब्लिकेशन, बी-508, गली नं.17, विजय पार्क, दिल्ली-53
मूल्य       - 350/-
---------------------------
समीक्ष्य पुस्तक ‘‘उद्गार’’ नवोदित कवयित्री श्रीमती शशि दीक्षित का पहला काव्य संग्रह है। ‘उद्गार’ शब्द से ही प्रकट होता है कि इस संग्रह की कविताएं मन से निकली हुई भावनाओं की मधुर अभिव्यक्ति होगी। जिस प्रकार भूमिगत जलश्रोत किसी उद्गम से फूट पड़ने पर बाहर आते हैं और नदियों के रूप में प्रवाहित होने लगते हैं। ये नदियां अपने आरम्भिक रूप में संकरी, सीमित जलयुक्त और अनिश्चित आकार-फैलाव में होती हैं किन्तु ये जैसे-जैसे आगे बढ़ती हैं, वैसे-वैसे इनका रूप और स्वरूप निखरता जाता है। ये नदियां लम्बाई-चैड़ाई में निरंतर विस्तार पाती जाती हैं और कहीं-कहीं तो अथाह पा लेती हैं। दो तटों के बीच बहती नदी की भांति काव्य का भी अस्तित्व होता है। मन के भीतर उमड़ते-घुमड़े भाव जब लेखनी के माध्यम से बाहर आते हैं तो आरम्भ में उनमें विस्तार और गहराई उतनी नहीं होती है जितनी कि निरंतर सृजन के बाद वह विस्तार और गहराई पाती है। मन और मस्तिष्क - इन दो तटों के बीच बहती हुई कविता अपने आरम्भिक स्तर पर परिष्कार की स्वतः मांग करती है लेकिन इन कविताओं में एक अनघढ़पन, एक सोंधापन होता है जो चित्ताकर्षक होता है। यह प्रभावित करता है और काव्य के सिद्धांतों से परे जा कर संवाद स्थापित करता है।
श्रीमती शशि दीक्षित एक गृहणी हैं। उन्होंने अपने अब तक का अधिकांश जीवन परिवार-प्रबंधन में व्यतीत किया। किन्तु उनके मन में काव्यात्मकता के तत्व मौजूद थे जो उन्हें कुछ न कुछ लिखने की प्रेरणा देते रहते थे। लिहाज़ा, कवयित्री शशि दीक्षित ने कलम उठाई और अपनी डायरी के पन्नों पर काव्य के रूप में पनी भावनाओं को सहेजती गईं। यही कविताएं अब ‘‘उद्गार’’ काव्य संग्रह के रूप में प्रकाशित हो कर पाठकों के हाथों में पहुंचा है। संग्रहीत कविताओं में विचारों-भावनाओं की लहरें हिलोरे मारती दिखाई देती हैं। कहा जाता है कि कोई भी काम आरम्भ करने के पूर्व ईश्वर का स्मरण करना चाहिए। ‘‘उद्गार’’ का आरम्भ सरस्वती वंदना से किया है। इसके उपरांत सहज काव्ययात्रा आरम्भ होती है जो ‘समय परिंदा’ शीर्षक कविता के द्वारा समय का आकलन के रूप में सामने आती है-
समय परिंदा उड़ता जाता
हम सब पीछे-पीछे हैं।
जीवन का शैशव धरा अंक में
यौवन चंचल जल-सा है
उम्र ढली तो पाया मैंने 
हुनर सलीका जीने का
समय परिंदा उड़ता जाता
हम सब पीछे-पीछे हैं।

ईश्वर और समय के बाद उस भूमि, उस देश के प्रति अपनी भावनाओं का उद्घोष स्वाभाविक है। 
मित्राणि धन धान्यानि प्रजानां सम्मतानिव ।
जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥
यह श्लोक वाल्मीकि रामायण में है, जिसमें भारद्वाज मुनि श्रीराम को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि  ‘‘मित्र, धन्य, धान्य आदि का संसार में बहुत अधिक सम्मान है। किन्तु माता और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है।’’ यदि मातृभूमि दासत्व की श्रृंखला से बंधी रही हो तो उसके द्वारा श्रृंखलाएं तोड़ कर मुक्त होना सबसे सुखद पक्ष होती है। कविता ‘‘भारत मां’’ की यह पंक्तियां देखिए-
भारत मां जब मुक्त हुई थीं
दो सौ वर्षों के बंधन से 
तीन रंग से हुआ था स्वागत
धानी, धवल और केसरिया।
धानी आंचल धरती का था
ममता का आंचल फैलाए
केसरिया सूरज का रंग था
मुखड़े की आभा बन आए।

शशि दीक्षित के सृजन में तरलता और सरलता दृष्टिगोचर होती है। देश में व्याप्त अव्यवस्थाएं कवयित्री के मन को प्रभावित करती हैं और वह इसकी पड़ताल में लग जाती हैं। पड़ताल के बाद अव्यवस्था का एक कारण असहिष्णुता के रूप में सामने आता है। ‘‘असहिष्णुता’’ शीर्षक से कविता लि1खती हुई कवयित्री देश के भीतर उत्पन्न वातावरण को लक्षित करती हैं-
धरती प्यासी, अम्बर सूखा
हैरान परेशान फिरते हम सब
आओ हम तुम मिल कर सोचें
क्या बिगड़ा है? देश के अंदर,
कुछ अपने, कुछ बहुत पराए
फैलाएं हैं बाहें अपनी
जकड़ रहे सारी खुशियों को
रौंद रहे ताज़ा फूलों को
फिर भी ख़ुशबू नहीं हाथ में
लहू भरे हाथों से देखो
तिलक लगाते मां लक्ष्मी को।

पिता पर दो कविताएं हैं जिनमें पिता की महत्ता को शब्दांकित किया गया है। कवयित्री रक्तसंबंधों के साथ ही दिल के रिश्तों की भी बात करती दिखाई देती हैं। उनकी दृष्टि में दिल के रिश्ते अटूट होते हैं तथा समय या परिस्थिति भी उन्हें तोड़ नहीं पाती है। ‘‘दिल के रिश्ते’’ कविता की यह पंक्तियां ध्यानाकर्षित करती हैं कि -
हम सब मिलते खुश होते हैं
कोई तो बात निराली है
रंग लहू का गाढ़ा होता
दिल का रिश्ता भी गाढ़ा है
सावन के मौसम जैसा है
हम सब का मन पावन है
दूरी अपना क्या छीनेगी
दिल से जब हम दूर नहीं
इस संग्रह की एक महत्वपूर्ण कविता है ‘‘अपनी ख़ातिर’’। यह एक गृहणी के सच्चे उद्गार हैं जो अपने विशेष दायित्वों से लगभग निवृत्त हो कर स्वयं के बारे में चिंतन करती है। उसे लगता है कि घर-परिवार अर्थात् दूसरों के लिए जीते हुए जीवन का अधिकांश समय व्यतीत कर दिया। अब बचा हुआ समय स्वयं के लिए होना चाहिए। यही भारतीय परिवेश में एक गृहणी के जीवन का सच है कि वह अपना पूरा जीवन अपने परिवार के लिए समर्पित कर देती है और स्वयं की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं को भुलाती चली जाती है। जबकि जीवन की दूसरी पारी में यानी अपने मूल दायित्वों को पूर्ण करने के बाद वह अपने सपनों को साकार करने की दिशा में प्रयत्न कर सकती है। यह स्वार्थ नहीं अपितु स्वचेतना का विस्तार है जो स्वयं पर ध्यान देने का आग्रह करता है। 
सबकी ख़ातिर जिया है अब तक
कुछ अपनी ख़ातिर भी जी लो।
व्यर्थ गंवाया सारा जीवन 
अब आंचल खुशियों से भर लो
समय गति बड़ी तेज है प्यारे 
जल्दी-जल्दी सब कुछ कर लो
सबकी ख़ातिर जिया है अब तक
कुछ अपनी ख़ातिर भी जी लो।

इस संग्रह की एक और महत्वपूर्ण कविता है ‘‘नन्हीं चिड़िया’’। यह चिड़िया के बहाने उन स्त्रियों को लक्षित करके लिखी गई कविता है जो अपनी उच्चाकांक्षाओं के चलते छोटी-छोटी सफलताओं के भ्रम में पड़ कर आकाश में इतनी ऊंची उड़ान भरती चली जाती हैं कि उनसे उनकी ज्त्रमीन और उनकी जड़ें बहुत पीछे छूट जाती हैं। इस कविता में ऐसी ही ऊंची उड़ान भरने वाली एक नन्हीं चिड़िया को सचेत करते हुए चिड़वा कहता है कि इतनी ऊंची उड़ान भी मत भरो कि जब तुम नीचे गिरो तो मैं तुम्हें सम्हाल भी न सकूं। बड़ी सहज औा सुंदर कविता है यह। इसकी कुछ पंक्तियां देखें-
सुनो सखी मैं एक कहानी
तुमको आज सुनाती हूं
व्यथा नहीं यह कथा समझना
जो भी आज सुनाती हूं
बहुत समय की बात नहीं
यह घटना ताज़ी-ताज़ी है
एक नन्हीं सी चिड़िया थी
और बहुत ही प्यारी लगती थी
बहुत ही कोमल पंख थे उसके
फिर भी उड़ना मांगती थी

जीवन साथी, प्रेम, पर्यावरण और कोरोना जैसे विषयों पर भी कविताएं इस संग्रह में है। पुस्तक के आरम्भिक पृष्ठों पर कवयित्री द्वारा लिखी गई संग्रह की भूमिका, श्रीमती सुनीला चैरसिया द्वारा दी गई शुभकामनाएं तथा विदुषी कवयित्री डाॅ. सरोज गुप्ता द्वारा संग्र की कविताओं की गई समीक्षा दी गई है। श्रीमती शशि दीक्षित का यह प्रथम काव्य संग्रह भावनाओं और विचारों का एक सुंदर सम्मिश्रण है तथा संग्रह की कविताएं अपने अनघगढ़पन का स्वाभाविक, प्रकृतिक सौंदर्य लिए हुए हैं। इन्हें पढ़ कर लगता है कि ये कविताएं सप्रयास नहीं लिखी गई वरन् स्वतः उघोषित हुई हैं। निःसंदेह इस संग्रह में पठनीयता के तत्व मौजूद हैं।    
                  --------------------------
#पुस्तकसमीक्षा #डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह #BookReview #DrSharadSingh #miss_sharad #आचरण 

Friday, July 23, 2021

बुंदेली व्यंग्य | जै हो पेगासस भैया की | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह


ब्लॉग साथियों, आज 23.07.2021 को #पत्रिका समाचार पत्र में मेरा बुंदेली व्यंग्य "जै हो पेगासस भैया की " प्रकाशित हुआ है... आप भी पढ़ें...आंनद लें....
#Thank you #Patrika
-------------------
बुंदेली व्यंग्य    
  जै हो पेगासस भैया की
              - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
नोने भैया मूंड़ औंधाए भये बैठे हते अपने दुआरे पे। भौजी ने कही हती के जा के भटा-मटा ले आओ, सो तुमाये लाने भर्त बना देवें।
‘‘हऔ, लाए देत हैं। पैले अच्छी-सी चाय-माय तो पिला देओ। जब देखों बस काम ई की कैत रैत हो। कछु तो सरम कर लौ करे।’’ नोने भैया ने भौजी से कही।
‘‘जे देखो, कछु करत न धरत के औ बोल ऐसे रै के मनो घर-बाहरै को सबई काम जे ई तो करत होंए। हुंह! चाय पी के भटा ले अइयो, ने तो आज सब्जी न मिलहे खाबे खों।’’ भौजी ने सोई ठोंक के सुना दई।
‘‘हऔ तो, चलो चाय तो देओ, मंत्री हरन की घोषणा घंई बोल के न रै जाओ।’’ नोने भैया ने कहीं और ताज़ो अख़बार ले के बैठ गए। पैलई ख़बर पढ़ के उनको मत्था घूम गओ। ख़बर हती पेगासस फोन हैकिंग की।
जो का, जे पेगासस लिस्ट में सोई सबरे बड़े-बड़े नाम दए हैं। ग़रीब की तो कोई पूछ-परख करत ई नईयां। ग़रीबन के इते ने तो कभऊं कोई छापा-वापा पड़त आए, ने तो कोनऊ मंत्री-मिनिस्टर आउत है औ अब जे देखो, पेगासस से भी बड़े लोगन की जासूसी कराई जा रई। अरे, कभऊं कोनऊ गरीबन की बातें सुन लओ करे। छोटो-मोटो सस्तो सो एंडरायड फोन तो गरीबन के एऐंडर सोई पाओ जात आए। मनो उनको तो कोनऊं स्टेटस ई नइयां। नोने भैया चाय सुड़कत भए सोसत रये। चाय ख़तम भई सो कप-बसी उतई छोड़ के बाहरे दुआरे पे पसर गए।
दरअसल, नोने भैया ने भौजी को ‘हऔ’ तो कै दई बाकी बे भटा-मटा लेबे कहूं गए नईं। अखबार पढ़ के उनको मन उदास हो गओ। मोए का पतो रहो के नोने भैया उदासे डरे हैं। नोने भैया के दुआरे से निकलत भए मैंने उनसे राम-राम कर लई। बे तो मनो कोनऊं से बतकाव करन चाह रए हते।
‘‘काए भैया सब ठीक आए।’’ मैंने नोने भैया से का पूछी, मनो भिड़ के छत्ते में अपनों हाथ दे दओ।
‘‘बिन्ना हमाए इते छापो पड़वा देओ।’’ नोने भैया मोए चौंकात भए बोले।
‘‘का? का कै रए?’’ मोए कछु समझ में न आओ।
‘‘अरे बिन्ना, ई दुनिया में हमाई तो कोनऊं पूछ-परख है नईं। मनो हमाए इते बी छापो-वापो पड़ जातो तो बिरादरी में तनक इज्जत बढ़ जाती।’’ नोने भैया बोले।
‘‘जो का कै रए, भैया? सुभ-सुभ बोलो!’’
‘‘अरे बिन्ना, हम सुभ-सुभ ई बोल रए। तुम देखत नईयां का, के जोने के इते छापो पड़ जात है, उनकी इज्जत बढ़ जात है। सबई समझ जात आएं के जे खतो-पीतो पिरानी आए। एक हम आएं ठट्ठ, कोनऊं पूछ-बकत नईं।’’ नोने भैया कलपत भए बोले।
‘‘जो का उल्टो-सूधो बक रए हो भैया! ऐसो कहूं नईं होत।’’ मैंने विरोध करी।
‘‘चलो, छापो-वापो को छोड़ो, हमाई आज की पीड़ा सुनो।’’ नोने भैया ने कही।
‘‘हऔ, बोलो!’’
‘‘बोलने का आए, जे देखो हमाए पास सोई एंडरायड मोबाईल फोन आए, पर हमाई बात कोई ने न सुनी।’’ नोने भैया ने दूसरो सुर पकड़ लओ।
‘‘एंडरायड फोन से का होत है, तुम सोई कभऊं कोनऊं खों फोव-वोन कर लओ करे। तुम ने लगेओ सो, दूसरो ई कहां तक तुमाए लाने घंटी मारत रैहे?’’ मैंने नोने भैया को समझाई।
‘‘अरे, हम तो दो-तीन दिना से खटोले कक्का से रोजई बतकाव कर रै आएं पर जे देखो नासपिटे पेगासस की, हमाई ने तो कोनऊं न बात सुनी, ने तो फोन हैक करो और तो और हमाओ डाटा तक ने चुराओ, नासपिटे ने।’’ नोने भैया मों लटकात भए बोले।
‘‘उदास न हो भैया! बड़े-बड़े लोगन को फोन हैक करो जात है। हमाए-तुमाए फोन में का रखो? अपन ओरन के पास बेई घिसी-पिटी बातें रैत आएं कि आज डीजल मैंहगो हो गओ तो कल पेट्रोल के दाम बढ़ गए। आज टमाटर पचास रुपए किलो बिको तो गिल्की साठ रुपए किलो। हमाई इन बातन से कोनऊं को कोऊ मतलब नईयां।’’ मैंने नोने भैया को समझाई।
‘‘बात तो सही कै रईं बिन्ना, बाकी मैंहगाई के बारे में कोऊ काए नहीं बात करत है। अपन ओरन के कष्टन की कोनऊं को फिकर नईयां।’’ नोने भैया दुखी होत भए बोले।
‘‘मैंहगाई-फहंगाई में कछु नई रखो, पेगासस में तुमें अपना नाम जुड़वाने है तो मंत्री-मिनिस्टर से सांठ-गांठ करो। उनसे ऐसे बतियाओ के मनो कोई भेद की बात कर रए। तुमाओ रसूख जम जाए, तब कहीं काम बनेगा।
‘‘अरे, का बिन्ना! तुमने का हमें बाबाजी को ठुल्लू समझ रखो है? हमने बताई न कि हम दो-तीन दिना से खटोले कक्का से राजनीति पे बहसें कर रैं हैं, पर बात नईं बनी। खटोले कक्का राजनीति से संन्यास ले चुके हैं, बाकी, बे ठैरे मंत्री जी के चच्चा, सो हमने बोल-चाल के लाने उनई को पकड़ रखो है। काए से के मंत्री जी सो हमने बोलहें न।’’ नोने भैया ने अपनी चतुराई बघारी।
‘‘गम्म न करो भैया, कोन जाने अगली लिस्ट में तुमाओ नाम सोई दिखा जाए।’’ मोए उनको झूठी तसल्ली देनी पड़ी।
‘‘नासपिटे जे पेगासस को, इसे जो न बनो के ऊपरे के बजाए तरे से लिस्ट बनाए। जोन को देखो ऊपरई वालन खों देखत आए। नाम ऊपर वारे कमाएं औ मैंहगाई के मोटे-मोटे दाम हम चुकाएं। अभ्भई हमने भी सोच लई कि हमें व्हाट्सएप्प अनवरसिटी में भर्ती हो जाने है, कछु उल्टो-सूधो लिखबो सीख जाएं तो कहो काम बन जाए।’’ नोने भैया ने अपनी परेसानी को खुदई हल निकार लओ।
‘‘भली सोची भैया! सो, अब तुम लग जाओ पोस्ट-मोस्ट में औ हमें जान देओ।’’ मैंने नोने भैया से कही औ चलबे को हुई कि नोने भैया बोल उठे,‘‘देख लइयो, नासपिटे पेगासस की अगली लिस्ट में हमाओ नाम सोई हुइए। औ हम सोई कछु बड़े कहान लगहें।’’
‘‘हऔ भैया, मोरी दुआ तुमाए संगे है।’’ मैंने कही औ वहां से दौड़ लगा दई।
बाकी नोने भैया खों बड़ी आसा है पेगासस से कि उनको फोन कोई हैक कर के उनको रसूख दिला देगा। जै हो सेंधमार पेगासस भैया की!   
        ------------------------------

#DrSharadSingh #miss_sharad #डॉसुश्रीशरदसिंह #पत्रिका #बुंदेली #बुंदेलीव्यंग्य #व्यंग्यलेख #बुंदेलीसाहित्य #बुंदेलखंड #जयबुंदेलखंड #लेख #patrikaNewspaper #BundeliSatire #satire #BundeliLitrature #Bundelkhand #अपनीबोलीअपनेबोल #पेगासस #हैकर #सेंधमार

Thursday, July 22, 2021

चर्चा प्लस | बुंदेलखंड तक आ पहुंची पेगासस की आंच | डाॅ शरद सिंह

चर्चा प्लस            

बुंदेलखंड तक आ पहुंची पेगासस की आंच
- डाॅ शरद सिंह
बुंदेलखंड का क्षेत्र आमतौर पर राजनीतिक दृष्टि से शांत क्षेत्र है। यहां कोई बड़ी राजनीतिक हलचल कभी नहीं हुई। शायद पहली बार बुंदेलखंड किसी राजनीतिक मुद्दे पर दुनिया के नक्शे पर आ गया है। पेगासिस लिस्ट में बुंदेलखंड के एक राजनेता का नाम आना चौंकाने  वाला है। पेगासस यानी हैकिंग की दुनिया का वो ‘‘सफे़द घोड़ा’’ जो डेटा सुरक्षा की हर दीवार लांघ सकता है। सच-झूठ का पता तो बाद में चलेगा लेकिन फ़िलहाल इस मुद्दे ने बुंदेलखंड में एक गर्म लहर दौड़ा दी है।


केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल का नाम भी पेगासस की नई लिस्ट में पाए जाने से बुंदेलखंड में राजनीतिक गरमागर्मी शुरू हो गई है। प्रहलाद सिंह पटेल मध्य प्रदेश में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं। वाजपेयी प्रशासन में एक पूर्व कोयला मंत्री, प्रहलाद सिंह पहली बार 1989 में 9 वीं लोकसभा के लिए चुने गए और फिर 1996 में 11 वीं लोकसभा (दूसरा कार्यकाल), 1999 में 13 वीं लोकसभा (तीसरा कार्यकाल), 16 वीं लोकसभा 2014 में (चैथा कार्यकाल) के लिए चुने गए। वे वर्तमान में मध्य प्रदेश में दमोह लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय संसद के सदस्य के रूप में कार्यरत हैं। वे कटनी जिले में नर्मदाखंड सेवा संस्थान, तहसील बहोरीबंद के संस्थापक हैं। वे नियमित रूप से विभिन्न रक्तदान और नेत्र दान शिविरों का संचालन करते हैं और गरीब बच्चों और व्यक्तित्व विकास पाठ्यक्रमों को शिक्षित करने के लिए विभिन्न वर्गों का संचालन भी करते हैं। लेकिन मानसून सत्र शुरू होने के ठीक एक दिन पहले प्रहलाद सिंह पटेल का नाम पेगासस की लिस्ट में पाया गया। क्या उनकी भी जासूसी की जा रही थी? यदि हां, तो कौन कर रहा था यह?
इजरायली कंपनी एनएसओ के पेगासस सॉफ्टवेयर से भारत में कथित तौर पर 300 से ज्यादा हस्तियों के फोन हैक किए जाने का मामला अब गंभीर हो चला है। संसद के मानसून सत्र की शुरुआत के एक दिन पहले ही इस जासूसी कांड का खुलासा हुआ है। दावा किया जा रहा है कि जिन लोगों के फोन टैप किए गए उनमें कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और प्रह्लाद सिंह पटेल, पूर्व निर्वाचन आयुक्त अशोक लवासा और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर सहित कई पत्रकार भी शामिल हैं। यद्यपि, सरकार ने इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज कर दिया है और रिपोर्ट जारी होने की टाइमिंग को लेकर सवाल खड़े किए हैं। इस बात के साक्ष्य मिले हैं कि इजराइल स्थित कंपनी एनएसओ ग्रुप के सैन्य दर्जे के मालवेयर का इस्तेमाल पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और राजनीतिक असंतुष्टों की जासूसी करने के लिए किया जा रहा है।
पत्रकारिता संबंधी पेरिस स्थित गैर-लाभकारी संस्था फॉरबिडन स्टोरीज एवं मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा हासिल की गई और 16 समाचार संगठनों के साथ साझा की गई 50,000 से अधिक सेलफोन नंबरों की सूची से पत्रकारों ने 50 देशों में 1,000 से अधिक ऐसे व्यक्तियों की पहचान की है, जिन्हें एनएसओ के ग्राहकों ने संभावित निगरानी के लिए कथित तौर पर चुना। वैश्विक मीडिया संघ के सदस्य श्द वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार, जिन लोगों को संभावित निगरानी के लिए चुना गया, उनमें 189 पत्रकार, 600 से अधिक नेता एवं सरकारी अधिकारी, कम से कम 65 व्यावसायिक अधिकारी, 85 मानवाधिकार कार्यकर्ता और कई राष्ट्राध्यक्ष शामिल हैं। ये पत्रकार द एसोसिएटेड प्रेस (एपी), रॉयटर, सीएनएन, द वॉल स्ट्रीट जर्नल, ले मोंदे और द फाइनेंशियल टाइम्स जैसे संगठनों के लिए काम करते हैं। एनएसओ ग्रुप के स्पाइवेयर को मुख्य रूप से पश्चिम एशिया और मैक्सिको में लक्षित निगरानी के लिए इस्तेमाल किए जाने के आरोप हैं। सऊदी अरब को एनएसओ के ग्राहकों में से एक बताया जाता है। इसके अलावा सूची में फ्रांस, हंगरी, भारत, अजरबैजान, कजाकिस्तान और पाकिस्तान सहित कई देशों के फोन हैं। इस सूची में मैक्सिको के सर्वाधिक फोन नंबर हैं। इसमें मैक्सिको के 15,000 नंबर हैं।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, भाजपा के मंत्रियों अश्विनी वैष्णव और प्रह्लाद सिंह पटेल, पूर्व निर्वाचन आयुक्त अशोक लवासा और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर उन लोगों में शामिल हैं, जिनके फोन नंबरों को इजराइली स्पाइवेयर के जरिए हैकिंग के लिए सूचीबद्ध किया गया था। एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने सोमवार को यह जानकारी दी।  पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे तथा तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसद अभिषेक बनर्जी और भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई पर अप्रैल 2019 में यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली उच्चतम न्यायालय की कर्मचारी और उसके रिश्तेदारों से जुड़े 11 फोन नंबर हैकरों के निशाने पर थे। गांधी और केंद्रीय मंत्रियों वैष्णव और प्रहलाद सिंह पटेल के अलावा जिन लोगों के फोन नंबरों को निशाना बनाने के लिये सूचीबद्ध किया गया उनमें चुनाव पर नजर रखने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के संस्थापक जगदीप छोकर और शीर्ष वायरोलॉजिस्ट गगनदीप कांग शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार सूची में राजस्थान की मुख्यमंत्री रहते वसुंधरा राजे सिंधिया के निजी सचिव और संजय काचरू का नाम शामिल था, जो 2014 से 2019 के दौरान केन्द्रीय मंत्री के रूप में स्मृति ईरानी के पहले कार्यकाल के दौरान उनके विशेष कार्याधिकारी (ओएसडी) थे। इस सूची में भारतीय जनता पार्टी से जुड़े अन्य जूनियर नेताओं और विश्व हिंदू परिषद के नेता प्रवीण तोगड़िया का फोन नंबर भी शामिल था।
पेगासस संबंधित फोन पर आने-जाने वाले हर कॉल का ब्योरा जुटाने में सक्षम है। यह फोन में मौजूद मीडिया फाइल और दस्तावेजों के अलावा उस पर आने-जाने वाले एसएमएस, ईमेल और सोशल मीडिया मैसेज की भी जानकारी दे सकता है। पेगासस स्पाइवेयर को जासूसी के क्षेत्र में अचूक माना जाता है। तकनीक जानकारों का दावा है कि इससे व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे एप भी सुरक्षित नहीं। क्योंकि यह फोन में मौजूद एंड टू एंड एंक्रिप्टेड चैट को भी पढ़ सकता है। पेगासस एक स्पाइवेयर है, जिसे इसराइली साइबर सुरक्षा कंपनी एनएसओ ग्रुप टेक्नॉलॉजीज ने बनाया है। इसका दूसरा नाम क्यू-सुईट भी है।
स्पाईवेयर का अर्थ है जासूूसी करने वाला टूल। स्पाई यानी जासूस और वेयर का मतलब टूल। सरल शब्दों कहें तो स्पाईवेयर उस सॉफ्टवेयर को कहते हैं जो डिवाइसेज की हैकिंग के काम आता है। इन्हें जासूसी के काम में लाया जाता  है। पेगासस स्पाईवेयर दुनिया में अब तक किसी प्राइवेट कंपनी का बनाया सबसे ताकतवर स्पाईवेयर माना जा रहा है। एक बार ये किसी फोन डिवाइस में घुस गया तो फोन यूज़र की रह बात जैसे वह किससे बात करता है, कहां जाता है, क्या मैसेज करता है, यहां तक कि चुपके से कैमरा ऑन करके वीडियो भी रिकॉर्ड किया जा सकता है। पेगासस वॉट्सऐप चैट, ईमेल्स, एसएमएस, जीपीएस, फोटो, वीडियोज, माइक्रोफोन, कैमरा, कॉल रिकॉर्डिंग, कैलेंडर, कॉन्टैक्ट बुक, इतना सब एक्सेस कर सकता है।
किसी फोन में सिर्फ मिस कॉल के जरिए इसे इंस्टॉल किया जा सकता है। इसे यूजर की इजाजत और जानकारी के बिना भी फोन में डाला जा सकता है। एक बार फोन में पहुंच जाने के बाद इसे हटाना आसान नहीं होता। ये एक ऐसा प्रोग्राम है, जिसे अगर किसी स्मार्टफोन फोन में डाल दिया जाए, तो कोई हैकर उस स्मार्टफोन के माइक्रोफोन, कैमरा, ऑडियो और टेक्सट मैसेज, ईमेल और लोकेशन तक की जानकारी हासिल कर सकता है। यह एक ऐसी खुफिया तकनीक है जो हर डिवाइस और सॉफ्टवेयर में सेंध लगा सकती है। चाहे एंड्रॉयड फोन हो या आई फोन, इससे कोई नहीं बच सकता है।
पेगासस नाम ग्रीस के देवता के सफेद घोड़े का है, जो अपने पंखों के सहारे किसी को भी धरती से पल भर में सातवें आसमान पर पहुंचा सकता है। अर्थात् पेगासस को कोई बाधा रोक नहीं सकती है। उसकी इसी विशेषता को ध्यान में रखते हुए इसका स्पाईवेयर का नाम पेगासस दिया गया। आज इस साफ्टवेयर ने पूरी दुनिया में तहलका मचा रखा है। बहरहाल, यह तय है कि भारतीय संसद के मानसून सत्र का केन्द्रबिन्दु पेगासस ही रहेगा और बुंदेलखंड को भी इसकी आंच झुलसाती रहेगी।   
            ----------------------------  

(सागर दिनकर, 22.07.2021)
#शरदसिंह  #डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह #miss_sharad #चर्चाप्लस #दैनिक #सागर_दिनकर

Tuesday, July 20, 2021

पुस्तक समीक्षा | छोटी कहानियों का जीवन्त रोचक संग्रह | समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह


प्रस्तुत है आज 20.07. 2021 को #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई लेखिका श्रीमती आशा मुखारया के कहानी संग्रह "ज़िंदगी के रंग अनेक" की  समीक्षा... 

आभार दैनिक "आचरण" 🙏


पुस्तक समीक्षा
छोटी कहानियों का जीवन्त रोचक संग्रह समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
---------------------------
काव्य संग्रह - ज़िंदगी के रंग अनेक
लेखिका     - आशा मुखारया
प्रकाशक    - पाथेय प्रकाशन, जबलपुर, मध्यप्रदेश
मूल्य       - 200/-
---------------------------

कहानी साहित्य की एक रोचक विधा है। कहानी में एक ऐसा कथानक होता है जो पात्र और संवाद के संयोग से आकार पाता है और अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच कर मनांरंजन के साथ ही विचारों को एक गुच्छा छोड़ जाता है, तालों की चाबी के गुच्छे की तरह। कहानी को पढ़ कर मन में उठने वाले सवालों के ताले की चाबी उस कहानी में घटित घटनाओं से ही चुन कर अलग करनी होती है जिससे कि वह कहानी के प्रति निजी निष्कर्ष पर पहुंच सके। जब कोई कहानी पाठक को अपने जीवन से जुड़ी हुई अनुभव होती है तो वह उसे तेजी से आत्मसात करता है। समीक्ष्य कहानी संग्रह ऐसी कहानियों का संग्रह है जिसमें मध्यमवर्गीय परिवारों से जुड़े कथानक हैं। ये कथानक अपने घर-परिवार तथा अपने आसपास के घरों की अंतर्कथा हैं। कहानी संग्रह का नाम है-‘‘ज़िंदगी के रंग अनेक’’। इसकी कहानीकार हैं आशा मुखारया।
संग्रह की कहानियों पर दृष्टिपात करने से पहले लेखिका के भारतीय परिवेश और सामाजिक सरोकार को जान लेना आवश्यक है। लेखिका आशा मुखारया 5 जुलाई 1942 को जबलपुर (म.प्र.) में जन्मीं, वहीं उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई, किन्तु सागर (म.प्र.) से भी उनका गहरा नाता है। सागर में उनके अनेक परिवारजन निवासरत् हैं। उनके पति डाॅ. प्रताप सिंह मुखारया इतिहास के प्रोफेसर रहे। पति की सेवा निवृत्ति के बाद उन्होंने अपने एकमात्र पुत्र विवेक मुखारया के पास अमेरिका के जैक्सनविल (फ्लोरिडा) में बसने का निर्णय लिया। वहीं आशा मुखारया को अपने पति का चिरविछोह सहना पड़ा किन्तु बेटे-बहू के अपनत्व से उन्हें सहारा दिया। अपनी इकलौती संतान अर्थात् पुत्र विवेक के साथ रहना उनका सही निर्णय था लेकिन भारत में मौज़ूद अपना गांव, घर, शहर हर प्रवासी भारतीय की तरह उनके दिल में भी बसा हुआ है। नागरिकता भले ही अमेरिका की हो लेकिन दिल है हिन्दुस्तानी। आशा मुखारया की प्रत्येक कहानी में इस तथ्य को शब्दशः अनुभव किया जा सकता है। समय-समय पर भारत में प्रवास के दौरान भारतीय समाज में तेजी से हो रहे परिवर्तन और स्मृतियों की तिजोरी में सुरक्षित पुराने अनुभव उनकी कहानियों में सजीव हो उठे हैं। सीधे-सरल शब्दों में, बिना किसी लाग-लपेट के लिखी गई ये कहानियां सहसा ही मन को छू जाती हैं।
‘‘ज़िंदगी के रंग अनेक’’ संग्रह की कहानियों का आकार बड़ा नहीं हैं। ये सभी कहानियां छोटी-छोटी हैं। कुल अट्ठाईस कहानियां भारतीय परिवारों के अटठाईस रंग (शेड्स) दिखाती हैं। ‘‘निर्णय’’ शीर्षक कहानी पारिवारिक संबंधों में आती जा रही संवेदनहीनता को सामने रखती है। यह कहानी एक ऐसी स्त्री के बारे में है जो परिवार में बुआ का दर्ज़ा रखती है। अपने आरम्भिक जीवन में सारी सुख-सुविधाओं का आनन्द उठाती है। किन्तु जैसे-जैसे उसकी वृद्धावस्था आती है वह पारिवारिक उपेक्षा की शिकार बनने लगती है। इस कहानी का अंत लेखिका ने एक नाटकीय मोड़ के साथ रोचक बना दिया है। जो सुखद भी लगता है। ‘‘चंदा’’ शीर्षक कहानी को पढ़ते हुए यह अनुभव करना अच्छा लगता है कि लेखिका अपनी ज़मीन से यानी बुंदेलखण्ड से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने कहानी में बुंदेली गीतों को पिरोया है। एक बानगी देखिए-
धुतिया ले दो बलम कलकतिया
जा में हरी-हरी पतियां
कांसरे को लोटा, फुहारे को पानी
धुतिया ले दो बलम कलकतिया

‘‘वरदान’’ कहानी एक ऐसे स्त्री पात्र के इर्द-गिर्द घूमती है जिसे परिस्थितिवश एक शक्की और क्रोधी व्यक्ति के साथ विवाह करना पड़ा और अनेक वर्ष घुटन भरा जीवन जीना पड़ा। किन्तु लंदन में बसे उसके बेटे ने उसका जीवन बदलने में मदद की और उसके हिस्से की खुशियां उसकी झोली में डाल दीं। यह एक ऐसी कहानी है जो स्त्री के पारिवारिक जीवन को एक नई पहचान देती है। इसे एक ज़रूरी-सी कहानी कहा जा सकता है। इस कहानी में स्त्री जीवन का वह पक्ष भी है जिसमें उसे निराधार लांछित किया जाता है। कहानी की नायिका दीपा का परिचय देते हुए लेखिका ने लिखा है-‘‘ये वही दीपा थी जो बचपन में मेरे यहां रोज़ ही आया करती थी। मेरी छोटी बहन की सहेली थी। ज़रूरत से ज़्यादा स्मार्ट और ख़ूबसूरत। महाराष्ट्रीयन परिवार से थी। पिता चीफ इंजीनियर थे। उसे किसी से भी बात करने में हिचक नहीं होती थी। उसकी इसी आदत को ले कर लोग तरह-तरह की बातें किया करते थे।जिन लोगों को लिफ्ट नहीं देती थी, वो उसके बारे में फ़ालतू बातें करते थे। पर वो एक बहुत अच्छे चरित्र वाली लड़की थी।’’
परिवारों में ज़ायदाद को ले कर होने वाले झगड़े और मनमुटाव आम बात है। मंा की मृत्यु पर बेटियों का उनके ज़ेवर को ले कर खींचातानी के सच्चे किस्से अकसर सुनने को मिल जाते हैं। यही मूल कथानक है, ‘‘मैं कहां हूं’’ कहानी का। इसी तरह ‘‘वापसी’’ कहानी उन माता-पिता की कहानी है जो विदेश में जा बसे अपने बच्चों के पास उत्साह से जाते हैं किन्तु वहां घोर उपेक्षा झेल कर अपने देश लौटने को विवश हो जाते हैं, जहां जीवन के नए अनुभव उनकी प्रतीक्षा में मुस्कुराते हुए खड़े हैं।
‘‘वी आर जस्ट फ्रेंड्स’’ एक दिलचस्प कहानी है। यह एक फ्र्लट करने वाले लड़के के प्रेम में पड़ जाने वाली लड़की की कहानी है। ‘‘ज़िन्दगी के रंग अनेक’’ संवेदनात्मक कहानी है। अपनों के होते हुए भी एकाकी जीवन जीने को विवश स्त्री की कहानी। इस कहानी में मन को भिगो देने वाला एक प्रसंग है-‘‘अपना बुढ़ापा उन्होंने अपनी किताबों के साहारे काट दिया। अपने कष्टों को छुपा कर वो अपना अकेलापन काटती रहीं। अपनी ज़िन्दगी से और अपनों से कभी शिकायत नहीं की और एक दिन चुपचाप मौत के आगोश में खो गईं।’’
संग्रह में एक कहानी है-‘‘ऐसी भी बहू’’। रोचक और सकारात्मक कहानी है जो ज़िदगी के एक ख़ास रंग को सामने रखती है। कहानी में एक ऐसी बहू का वर्णन है जो विखंडित होते आधुनिक परिवार की परिपाटी को अनदेखा कर के अपने परिवार के प्रति समर्पित रहने के लिए कृतसंकल्प है। ‘‘तीसरी पीढ़ी’’ उस पारिवारिक व्यवस्था को उजागर करती है जिसमें बेटियों को चाहे कितनी भी छूट दी जाए लेकिन जब विवाह की बात आती है तो माता-पिता पारम्परिक रुख अपना लेते हैं। लड़की चाहे विदेश में रह रही हो लेकिन उसके लिए विशुद्ध भारतीय दूल्हा और वह भी भारत में रह रहा हो तो और अच्छा है तथा दान-दहेज वाली शादी तय करने की मशक्कत शुरू हो जाती है। इस बात को अनदेखा कर दिया जाता है कि एक अलग परिवेश में रह रही लड़की ठेठ परंपरावादी परिवार या पति के साथ कैसे सुखी रह पाएगी? ऐसी लड़की की स्थिति ठीक उस पतंग की भांति होती है जिसे खुले आकाश में ऊचे- बहुत ऊंचे तक उडज्ञने दिया जाता है तथा अपनी खुशी प्रकट कर के उसका उत्साह बढ़ाया जाता है। जब वह लड़की समझने लगती है कि वह अपने जीवन का निर्णय लेने का अधिकार पा चुकी है, ऐन उसी समय उसकी डोर तेजी से लपेटे जानी लगती है। उड़ान समाप्त, स्वतंत्रता समाप्त, बाहरी दुनिया समाप्त, उसके निर्णय लेने का अधिकार समाप्त। उस पर माता-पिता अपने निर्णय को थोपना शुरू कर देते हैं तथा बाध्य करते हैं कि वह लड़की उनके निर्णय को माने। इस ट्रेजडी को कहानी की इन पंक्तियों में देखिए-‘‘इस बीच रिया को भी अपने साथ काम करने वाले एक जर्मन लड़के से प्यार हो गया और फिर इतिहास अपने को दोहराने लगा। और तीसरी पीढ़ी की कहानी शुरू हो गई। भारत में रिया के मां-बाप उसके लिए लड़का ढूंढने लगे।’’
संग्रह की एक और कहानी है जो समाज के बदलते माहौल की ओर संकेत करती है। कहानी का शीर्षक है-‘‘यहां से वहां’’। मेहमानों के चरित्र पर बुनी गई यह कहानी एक अलग ही खाका रचती है। कहानी के आरम्भिक पैरा देखिए- ‘‘आज के जमाने में लोग मेहमान-नवाज़ी से घबराने लगे हैं। पहले कैसे लोग मेहमान को भगवान मानते थे। ‘अतिथि देवो भवः’। पअ अब तो रात को घंटी बजते ही लोग घबराने लगते हैं कि पता नहीं कौन आ गया।’’
इसी कहानी के अगले पैरा में मेहमानों के बारे में भी लेखिका ने दिलचस्प विवरण दिया है-‘‘पर मुझे लगता है कि आज के मेहमान भी आरामपरस्त होते जा रहे हैं। जिसके घर भी जाएंगे, पांव पसार कर बैठ जाएंगे। बच्चों पर हुकंम चलाएंगे-पानी ले आओ, पेपर ले आओ, सिगरेट ले आओ। ये नहीं सोचते कि जिसके घर जाते हैं तो उसके काम में हााि बंटाएं जिससे मेहमान का आना न अखरे।’’
अमेरिका में बसे भारतियों के परिवेश का लेखाजोखा है कहानी ‘‘सिद्धपुरुष’’ में। भारतीय संस्कृति और धर्म विदेश में भी भारतीयों को संबल प्रदान करता है। इस कहानी का एक अंश है-‘‘कई सालों से हम लोग अमेरिका के न्यूयार्क शहर में अपने बेटे के पास सेटिल हो गए थे। कई लोग हम लोगों से पहले वहां रहते थे। इसी से हमउम्र लोगों से काफी जान-पहचान हो गई थी। वहां पर बहुत बड़ा व सुंदर मंदिर है। हम सब सीनियर सिटीजन महीने में एक बार मिलते हैं और आपस में दुनिया-जहान की बातें करते हैं। उसमें धार्मिक बातों के अलावा जनरल, कुछ घरेलू समस्याओं पर भी बातें होती हैं।.... हम बुजुर्गों के पास समय काटने का बस यही एक तरीका था। सोमवार से शुक्रवार तक हमारे बच्चे अपनी नौकरी में काफी व्यस्त रहते हैं फिर भी उनकी कोशिश रहती है कि हम लोगों को भी समय दें। यहां पार्टियां बहुत होती हैं तो वो हम लोगों को पार्टियों में ले जाते हैं। वहां तरह-तरह के लोग मिलते हैं। बच्चों के सभी दोस्त बहुत अच्छे हैं।’’
विदेश में रहते हुए देश के अस्तित्व को अपने भीतर जगाए रखना और अपनत्व की तलाश में आपस में जुड़ते रहना हर प्रवासी भारतीय के जीवन का अभिन्न पक्ष होता है। अपने अतीत और अपने वर्तमान के बीच तुलना करना, अपने अतीत को याद रखना और पराए परिवेश में रच-बस जाना प्रवासी भारतीयों की खूबी होती है। यही विशेषता लेखिका आशा मुखारया की कहानियों देखा जा सकता है। उनकी कहानियां प्रत्येक पाठक से संवाद करने में सक्षम हैं। संग्रह का आमुख जबलपुर निवासी वरिष्ठ साहित्यकार एवं पूर्व संपादक डाॅ. राजकुमार ‘सुमित्र’ ने लिखा है। वे लिखते हैं कि ‘‘लेखिका ने मध्यमवर्गीय परिवारों की रचना, स्थिति और मनःस्थितियों का सटीक चित्रण किया है। बेटे से बेटी भली, परिवारों की टूटन, वृद्धों की उपेक्षा और परदेश में देश की याद को बड़ी मार्मिकता से उकेरा है।’’ अपने कहानी लेखन के बारे में लेखिका आशा मुखारया ने स्वयं लिखा है कि ‘‘कई बार कई घटनाएं और पात्र अपनी छाप छोड़ जाते हैं जो सालों तक मन को सालते रहते हैं और जो अंत में काग़ज़ पर उतर कर कहानियों का रूप ले लेते हैं। चाहते हुए भी और न चाहते हुए भी लिख जाते हैं। कई सालों से अपने मन के भावों को काग़ज़ पर उतारती रही और अंत में देखा कि इन कहानियों ने कहानी संग्रह का रूप धारण कर लिया है।’’
कुलमिला कर यह कहा जा सकता है कि यह छोटी कहानियों का जीवन्त रोचक संग्रह है जिसे अवश्य पढ़ा जाना चाहिए।        
                  --------------------------
#पुस्तकसमीक्षा #डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह #BookReview #DrSharadSingh #miss_sharad #आचरण 

Thursday, July 15, 2021

चर्चा प्लस | इंसान के कारण देवता भी रह जाते हैं अधूरे | डाॅ शरद सिंह

चर्चा प्लस           
इंसान के कारण देवता भी रह जाते हैं अधूरे
- डाॅ शरद सिंह
   लगभग हर धर्म में मान्यता यही है कि इंसान को देवता ने बनाया है। मगर विडंबना यह कि इंसान ने देवता को ही पूरा नहीं होने दिया। इसका उदाहरण है पुरी की जगन्नाथ मंदिर की प्रतिमाएं। ये मूर्तियां अधूरी हैं, अधबनी हैं और साक्ष्य हैं इंसान उतावलेपन की। इंसान अपनी हठधर्मिता के कारण मानो सब कुछ खण्डित करने पर तुला है, मानवता से ले कर जंगल तक और विश्वास से ले कर भविष्य तक।

खण्डित या अधूरी मूर्ति की पूजा को अशुभ माना जाता है। खण्डित मूर्तियों की पूजा तो दूर, प्राणप्रतिष्ठा भी नहीं की जाती है। लेकिन जगन्नाथ धाम की मूर्तियां अधूरी हैं और उनकी पूजा भी की जाती है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है कि जिससे पता चलता है कि इंसान के कारण देवता भी अधूरे रह जाते हैं। कथा के अनुसार राजा इंद्रद्युम्न पुरी में मंदिर बनावा रहे थे तो भगवान जगन्नाथ की मूर्ति बनाने का कार्य उन्होंने देव शिल्पी विश्वकार्मा को सौंपा। लेकिन विश्वकर्मा ने शर्त रखी कि वे मूर्ति का निर्माण बंद कमरे में करेंगे और यदि किसी ने उन्हें मूर्त बनाते देखने की कोशिश की तो वो उसी क्षण कार्य छोड़ कर चले जाएंगे। राजा इंद्रद्युम्न ने शर्त मान ली और विश्वकर्मा ने मूर्ति निर्माण का कार्य प्रारंभ कर दिया। उत्सुकतावश राजा इंद्रद्युम्न रोज दरवाजे के बाहर से मूर्ति निर्माण की आवाज़ सुनने जाने लगे। एक दिन राजा इंद्रद्युम्न को कोई आवाज सुनाई नहीं दी तो उन्हें लगा कहीं विश्वकर्मा चले तो नहीं गए। राजा से रहा नहीं गया और अपना वादा भूल कर राजा ने दरवाज़ा खोल दिया। उन्होंने जैैसे ही दरवाजा खोला देवशिल्पी विश्वकर्मा वहां से चले गएऔर मूर्तियां वैसी ही अधूरी रह गई। आज भी भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियां वैसी ही अधूरी हैं। यदि राजा इंद्रद्युम्न ने धैर्य का परिचय दिया होता जो जगन्नाथ की प्रतिमा बन गई होती। एक इंसान के कारण भगवान को भी अपने भाई-बहनों सहित अधूरा रहना पड़ा।
इंसान के कारण ही मानवता भी अब खंडित हो रही है। वही मानवता जो ईश्वर की देन मानी जाती है। कोरोना वायरस का ख़तरा अभी टला नहीं है। देश में कोरोना वायरस की दो लहरें कहर ढा चुकी हैं। आज भी दुनिया के 200 से ज्यादा देश कोरोना वायरस  का कहर झेल रहे हैं। दुनिया भर में कोरोना वायरस से 2.8 करोड़ से ज्यादा लोग संक्रमित हैं, वहीं, 9 लाख 23 हजार से ज्यादा लोग अब तक इस जानलेवा वायरस के शिकार बन चुके हैं। विगत वर्ष कोरोना वायरस की शुरुआत चीन के वुहान शहर से हुई थी। ऐसा माना जाता रहा है कि कोरोना वायरस वुहान के लैब  में ही तैयार किया गया था, लेकिन चीन इससे साफतौर पर इनकार करता रहा। लेकिन अब यह सब जान चुके हैं कि कोरोना वायरस मानव निर्मित है। चीन की वीरोलॉजिस्ट डॉ. ली मेंग यान  का दावा है कि नोवल कोरोना वायरस वुहान में एक सरकार नियंत्रित लैबोरेटरी में बनाया गया था और उसके पास यह साबित करने के लिए पर्याप्त वैज्ञानिक सबूत हैं। लैब में वायरस बना कर पूरी दुनिया पर कहर बरपा देना मानवता को पंगु बना देने के समान है। कोरोना वायरस की दूसरी लहर में शायद कोई परिवार ऐसा होगा जिसने अपने किसी न किसी रिश्तेदार को कोरोना से न खोया। दूसरी लहर किसी सुनामी की तरह आई और हज़ारों लोगों को बहा कर ले गई। तीसरी लहर का आसन्न संकट सामने खड़ा है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने एक वीडियो सन्देश में कहा कि ‘‘कोई भी देश महामारी का मुकाबला अकेले नहीं कर सकता और ना ही प्रवासन स्थिति को पूरी तरह अकेले सम्भाल सकता है। लेकिन एकजुट होकर हम वायरस के फैलाव को रोक सकते हैं। सबसे निर्बल लोगों पर होने वाले असर को कम कर सकते हैं और बेहतर तरीक़े से उबर सकते हैं जिससे सभी का भला हो सके।” निसन्देह कोविड-19 महामारी ने दुनिया भर में लोगों की जिन्दगियों और आजीविकाओं पर भारी तबाही बरपा कर दी है, लेकिन सबसे ज्यादा प्रकोप सबसे निर्बल आबादी पर हो रहा है। महासचिव ने कहा कि इस आबादी में शरणार्थी, देशों के ही भीतर विस्थापित लोग और ख़तरनाक हालात में रहने को मजबूर प्रवासी शामिल हैं। ये आबादी एक ऐसे संकट का सामना कर रही हैं जिसकी तिहरी मार पड़ रही है।’’
महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि इसके अतिरिक्त प्रवासियों द्वारा अपने परिवारों और मूल स्थानों को भेजी जाने वाली धनराशि में कोविड-19 के कारण लगभग 109 अरब डॉलर तक की कमी आ सकती है। प्रवासियों द्वारा भेजी जाने वाली इस रकम पर लगभग 80 करोड़ लोगों की जिन्दगी निर्भर होती है।

जिस प्रकार सम्पूर्ण मानवता आहत् है ठीक उसी प्रकार बक्सवाहा के जंगल आहत होने जा रहे हैं। इंसान देवता के द्वारा निर्मित जंगल को खण्डित करने की तैयारी में है। वस्तुतः मध्यप्रदेश के बक्सवाहा में एक निजी कंपनी को हीरों के खुदाई करने का अधिकार मिल चुका है। इसके लिए कंपनी को 2.15 लाख जंगली पेड़ों को काटने का अधिकार भी मिल गया है। पर्यावरणविदों का कहना है कि इन जंगलों की कटाई से पर्यावरण और स्थानीय आदिवासियों को अपूर्णीय क्षति होगी। इससे केवल इस क्षेत्र में ही नहीं, बुंदेलखंड के इलाके में भी जल संकट गहराएगा क्योंकि इस क्षेत्र से होने वाला जल का बहाव ही बुंदेलखंड के क्षेत्रों तक जाता है। स्थानीय आदिवासियों ने इसे अपने जीवन पर संकट बताते हुए इस परियोजना पर रोक लगाने की मांग करते हुए एनजीटी में याचिका दाखिल कर दी है। मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में राज्य सरकार ने निजी कंपनी आदित्य बिरला ग्रुप की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड को बक्सवाहा के जंगलों की कटाई करने की अनुमति दे कर आॅक्सीजन के प्राकृतिक भंडार को हीरे की चकाचैंध पर बलि देना मंजूर कर लिया है।  अनुमान है कि 382.131 हेक्टेयर के इस जंगल क्षेत्र के कटने से 40 से ज्यादा विभिन्न प्रकार के दो लाख 15 हजार 875 पेड़ों को काटना होगा। इससे इस क्षेत्र में रहने वाले लाखों वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास पर भी असर पड़ेगा। यद्यपि कंपनी और सरकार का कहना है कि ये पेड़ एक साथ नहीं काटे जाएंगे, बल्कि 12 चरणों में काटे जाएंगे और इनकी जगह 10 लाख पेड़ भी लगाए जाएंगें। देश में जानलेवा कोरोना वायरस की दूसरी लहर में लोग ऑक्सीजन नहीं मिलने के कारण तड़प-तड़प कर मरे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि ऑक्सीजन की कीमत पर हीरे क्यों ज़रूरी? जबकि एक साधारण पेड़ चार लोगों को ऑक्सीजन देता है। जबकि एक पीपल का पेड़ 24 घंटे में 600 किलो ऑक्सीजन देता है।

स्थिति की गंभीरता के प्रति लापरवाही भरा रवैया हम इंसानों को उस धरती का गुनहगार बना रहा है जिस पर सदियों से रिहाइश रही है। औपनिवेशिक काल से ही साम्राज्यवादी देशों ने प्राकृतिक साधनों का अंधाधुंध दोहन किया। बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां, संयंत्र आदि स्थापित हुए। यूरोप अमेरिका आदि देशों में जीवाश्म इंधन की खपत बढ़ती चली गई। प्राकृतिक संसाधनों के धनी देश जैसे-भारत, अफ्रिका आदि बड़े और अमीर देशों की जरूरत को पूरा करने लिए शोषित होने लगे। एक ओर जहां औद्योगिकरण की बयार, धन, ऐशो-आराम, रोमांच और जीत का एहसास लाई, वहीं पृथ्वी की हवा में जहर घुलना शुरू हो गया। इसकी परिणती पर्यावरणीय असंतुलन के रूप में सामने आई। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघलने एवं वनों की अत्यधिक कटाई से नदियों में बाढ़ आ रही है। समुद्र का जलस्तर सन् 1990 के मुकाबले सन् 2011 में 10 से 20 सेमी. तक बढ़ गया है। जिससे तटीय इलाकों में मैंग्रोव के जंगल नष्ट हो रहे हैं। परिणाम स्वरूप समुद्री तुफानों की संख्या बढ़ती जा रही है। प्रतिवर्ष समुद्र में करोड़ों टन कूड़े-कचरे एवं खर-पतवार के पहुंचने से विश्व की लगभग एक चौथाई मुंगे की चट्टाने (कोरल रीफ) नष्ट हो चूकी है। जिसमें समुद्री खाद्य प्रणाली प्रभावित होने से परिस्थिति तंत्र संकट में पड़ गया है। अनियंत्रित औद्योगिक विकास के फलस्वरूप निकले विषाक्त कचरे को नदियों में बहाते रहने से विश्व में स्वच्छ जल का संकट उत्पन्न हो गया है। विश्व के लगभग 1 अरब से अधिक लोगों को पीने का पानी नहीं मिल पा रहा है। रासायनिक खादों और किट नाशकों के अधिक प्रयोग से कृषि योग्य भूमि बंजर हो रही है। देवताओं को अधूरेपन के जिम्मेदार हम इंसान स्वयं को भी अधूरा करते जा रहे हैं जो कि चिन्तनीय है।
            ----------------------------  

(सागर दिनकर, 15.07.2021)
#शरदसिंह  #डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह #miss_sharad #चर्चाप्लस #दैनिक #सागर_दिनकर

Tuesday, July 13, 2021

पुस्तक समीक्षा | कविता के कैनवास पर गहन संवेदना के रंग | समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

पुस्तक समीक्षा
कविता के कैनवास पर गहन संवेदना के रंग
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
---------------------------
काव्य संग्रह - कभी ये सोचता हूं मैं
कवि     - आनन्द कुमार शर्मा
प्रकाशक - सान्न्ध्यि बुक्स, एक्स/3282, गली नं.4,रघुबरपुरा नं.2,
           गांधी नगर, नई दिल्ली-110031
मूल्य - 250/-
---------------------------
कविता का सृजन भावनाओं का वह प्रस्फुटन होता है जिसमें अभिव्यक्ति की कोमलता के साथ जीवन के तमाम सरोकार होते हैं। आचार्य मम्मट ने ‘‘काव्यप्रकाश’’ में तीन प्रकार के काव्य की चर्चा की गई है, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र। ध्वनि वह है जिस, में शब्दों से निकले हुए अर्थ की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय व्यंग्य प्रधान हो। गुणीभूत व्यंग्य वह है जिसमें गौण हो। चित्र या अलंकार वह है जिसमें बिना व्यंग्य के चमत्कार हो। इन तीनों को क्रमशः उत्तम, मध्यम और अधम भी कहते हैं। आचार्य मम्मट ने  रस के उद्रेक के स्थान पर छिपे हुए भावों को महत्व दिया है। कवि के प्रथम काव्य संग्रह ‘‘कभी ये सोचता हूं मैं’’ एक ऐसा काव्य संग्रह है जिसमें आंतरिक और बाह्य दोनों भावों पर समान दृष्टि डाली हैं। अपने समय और समाज की विसंगतियों का रेखांकन इस संग्रह की कविताओं की विशेषता है। यह काव्य संग्रह एक ख़ूबसूरत लैण्डस्कैप की तरह है। आनन्द कुमार शर्मा के कवित्व का कैनवास विस्तृत है। इनमें गहन संवेदना के अनेक रंग मौजूद हैं। कवि ने अपनी इस कृति के माध्यम से समाज में जीवन मूल्यों की स्थापना करने का आह्वान करते हुए जीवन विसंगतियों के प्रति चिंता प्रकट की है।
कवि आनन्द कुमार शर्मा भारतीय प्रशासनिक सेवा में रहे हैं तथा वर्तमान में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के सचिव का पदभार सम्हाल रहे हैं। उनकी प्रशासनिक कत्र्तव्यस्थता एवं काव्य सृजन के परस्पर तालमेल के संबंध में संग्रह का पुरोवाक् लिखते हुए डाॅ. मोहन गुप्त ने लिखा है कि ‘‘श्री आन्न्द कुमार शर्मा एक संवेदनशील, कुशल तथा कर्मठ प्रशासक हैं। जहां संवेदनशीलता है तथा भाषा के प्रति राग और कौशल है, वहां भावनाओं का अतिरेक होने पर काव्य का स्फुटित होना अवश्यमभावी है। यों प्रशासक का यह आदर्श होता है उसके मन की बात उसका घनिष्ठतम व्यक्ति भी न जान पाए किन्तु यह काव्य ही है जहां एक संवेदनशील व्यक्ति अपने मन को उंड़ेलता है। श्री शर्मा ने इन कविताओं के माध्यम से अपने अंतर्मन की यात्रा को काव्यमय शब्द दिए हैं।’’  
आनन्द कुमार शर्मा की सृजनात्मकता का उद्देश्य उनकी प्रत्येक कविता में स्पष्ट दिखाई देता है। कवि ने समाज, संस्कार, संस्कृति, आर्थिकता एवं राजनीतिक सतहीपन को भी अपनी कविताओं में पिरोया है। वैयक्तिक भावों के साथ ही लोक की पीड़ा कविताओं का विषय बनी है। बात जब लोक की आती है तो आधी दुनिया के जीवन की विसंगतियों से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है। दूसरे के घरों में काम करके अपने परिवार को पालने वाली स्त्री के जीवन की विडम्बना को कवि ने अपनी ‘‘आजादी’’ कविता में शब्दबद्ध किया है। आजादी का व्यंजनात्मक पर्याय गढ़ती इस कविता की अंतिम पंक्तियां देखिए -
देर शाम आते ही खटती है
घर भर का दर्द छान
आधे में पूरे को
पूरे में आधे को घोलकर
देर रात सबके सोने पर जब सोती है अम्मा
तब मिलती है उसको आजादी।

जीवन के झंझावात में अनेक उतार-चढ़ाव आते हैं। कुछ अपने पराए हो जाते हैं तो कुछ पराए सहसा अपने हो जाते हैं। परिस्थितिजन्य इस परिवर्तन पर एक छोटी लेकिन पुरअसर कविता है ‘‘तिलस्म’’ जिसका भावसौंदर्य बहुत गहराई लिए हुए है-
कब कैसे कोई बनता है
अपना।
चाहे हों कितनी पथरीली राहें
चलते-चलते पांव भर आएं
दूर तक दिखे न कोई ठौर
लगे कि अब नहीं कोई हमारे साथ
अचानक थामता है हाथ
अनजाना कोई
डूब करके तिरता है
सपना।

संग्रह में एक कविता है-‘‘तुमको मैं क्या दूं?’’यह कविता कवि ने अपनी शादी की पच्चीसवीं सालगिरह पर अपनी जीवनसंगिनी को संबोधित करते हुए लिखा है। इस कविता में एक स्वीकारोक्ति के साथ ही प्रेम की निश्छलता एवं निस्वार्थता का उद्घोष किया गया है। कविता का एक अंश देखिए-
तुमको मैं क्या दूं?
सोचता हूं मैं।
बीते बरस कई
तुमसे मिले हुए
अब तुझमें भी तुम हो मैं नहीं,
तुमको मैं क्या दूं?
जीवन में
जो कुछ भी था कठिन
तुमने छू कर
उसे सरल किया
बचपन लौटाया
बच्चों की किलकारी से
धूप सभी
छोव करी
चलकर के हर दुरूह पथ को संग-संग

कवि आनन्द कुमार शर्मा ने अपनी कविताओं में स्त्रीपक्ष को बखूबी बुना है। एक स्त्री अपने जीवन में कितने जीवन एक साथ जी लेती है इसे ‘‘परकाया प्रवेश’’ कविता से समझा जा सकता है। इस कविता में पौराणिक विद्वान मंडन मिश्र की कथा को आधार रूप में लिया गया है। मंडन मिश्र का शंकराचार्य से शास्त्रार्थ हुआ जिसमें निर्णायक की भूमिका मंडन मिश्र की पत्नी भारती ने निभाई। मंडन मिश्र पराजित हो गए। तब भारती ने शंकराचार्य से कहा कि मैं मंडन मिश्र की अद्र्धांगिनी हूं और आपने अभी मुझे तो पराजित किया नहीं है अतः मंडन मिश्र की पराजय और आपकी विजय अधूरी है। तब शंकराचार्य और भारती के मध्य शास्त्रार्थ चला। जब भारती को लगा कि शंकराचार्य जीत जाएंगे तो उसने ब्रम्हचारी शंकराचार्य से कामकला विषयक प्रश्न पूछ लिए। शंकराचार्य को इसका ज्ञान नहीं था। अतः उन्होंने भारती से कुछ समय मांगा और अमरुक नामक राजा की मृत देह में परकाया प्रवेश कर के कामकला का ज्ञान प्राप्त किया और भारती के प्रश्नों का उत्तर दे दिया और विजय प्राप्त की। इस कथा को पिरोते हुए लिखी गई कविता का एक अंश देखिए जिसमें एक स्त्री के परकाया प्रवेश को वर्णित किया गया है-
परकाया प्रवेश का सुना ही था कभी
जब मंडन मिश्र को हराने की ज़िद लिए
शंकर को करना पड़ा था
भारती के सवालों का हल ढूंढने
राजा अमरुक की मृत देह में।
विश्वास कभी हुआ नहीं
लगता था सब झूठ
मानव मन की काल्पनिक उड़ान
किस्से कहानियों की तरह।
देखा अब खुद
जब बेटी हुई बड़ी
कैसे उसकी देह में उतरती है
उसकी मां और उसकी दादी की आत्मा
एक साथ।

इस काव्य संग्रह की कविताओं के फलक पर उजागर होने वाली जीवनानुभूतियों में संसार की सुंदरता के साथ समाज में व्याप्त विषमता और इसकी अनेकानेक विसंगतियों का चित्रण भी समान रूप से अंकित हुआ है। ‘‘कौन है?’’ शीर्षक कविता-
मेरे सिवा कौन है यहां
चारो ओर फैली नीरवता के बीच
सरसराता फिर रहा
कोई तल्ख़ ,ख़याल?
या ठहरे सन्नाटे सी तुम्हारी
उदास उसांस,
अथवा मन में बसी कोई सांस

इस संग्रह में छंदमुक्त कविताओं के साथ ही कुछ नवगीत और ग़ज़लनुमा रचनाएं भी हैं। काव्य संग्रह की भाषा सरल,सहज है। संग्रह की कविताओं में हिंदी के अलावा उर्दू, देशज, इंग्लिश आदि शब्दों सहज प्रयोग हुआ है। कविताओं में आम बोलचाल की भाषा है किन्तु उनका शब्द-विन्यास उनकी कविताओं को सशक्त बनाता है। विश्वास है कि कवि का यह प्रथम काव्य संग्रह साहित्य-प्रेमियों को रुचिकर लगेगा और पाठकगण कविता के कैनवास पर चित्रित गहन संवेदना के रंग के भाव और विचार को साझा ग्रहण करते हुए कविताओं का रसास्वादन करेंगे।
                  --------------------------
#पुस्तकसमीक्षा #डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह #BookReview #DrSharadSingh #miss_sharad #आचरण 

Thursday, July 8, 2021

टूटी हूं मगर हारी नहीं | डॉ शरद सिंह | जागरण सखी | जुलाई 2021

प्रिय ब्लॉग साथियों, "जागरण सखी" पत्रिका के जुलाई 2021 अंक में "यह नई शुरुआत का दौर है" शीर्षक से कोरोना आपदा से किसी न किसी रूप में प्रभावितों से चर्चा की गई है। मेरे विचार भी इसमें शामिल हैं। यह  अत्यंत संवेदनशील विषय पर महत्वपूर्ण चर्चा है इसके लिए #जागरणसखी को हार्दिक धन्यवाद 🌹🙏🌹
और हार्दिक धन्यवाद प्रिय विनिता जी को 🌹🙏🌹
इसे आप इस लिंक पर भी पढ़ सकते हैं पृष्ठ 40 पर....

Wednesday, July 7, 2021

चर्चा प्लस | डेल्टा प्लस वेरिएंट से बचा सकती है जीनोम सिक्वेंसिंग | डाॅ शरद सिंह

   कोरोना की दूसरी लहर ने जो तबाही मचाई उसके लिए कोरोना के डेल्टा वेरिएंट को जिम्मेदार माना जा रहा है। यह बात जीनोम सिक्वेंसिंग के द्वारा पता चली। क्या सचमुच जिनोम सिक्वेंसिंग अगली तबाही को रोक सकती सकती है? आखिर है क्या यह जीनोम सिक्वेंसिंग? यह प्रश्न इन दिनों आम चर्चा में है।
 
कभी प्लस, कभी अल्फा तो कभी बीटा। कोरोना के नए-नए वेरिएंट से सामना हो रहा है। इन दिनों डेल्टा और डेल्टा प्लस चर्चा में है। कोरोना वायरस में हुए बदलाव के बाद नए स्ट्रक्चर के साथ यह एक प्रकार का नया वायरस है, जिसे मेडिकली नया वेरिएंट कहा जाता है। वैज्ञानिक यह मान रहे हैं कि नए वेरिएंट का पता लगाने में जीनोम सिक्वेंसिंग कारगर उपाय है। लेकिन आम लोग यह भी नहीं जानते हैं कि जीनोम क्या होता है? दरअसल किसी भी प्राणी के डी.एन.ए. में विद्यमान समस्त जीनों का अनुक्रम जीनोम कहलाता है। मानव जीनोम में लगभग 30000-35000 तक जीन होते हैं। वस्तुतः मानव कोशिकाओं के भीतर आनुवंशिक पदार्थ होता है जिसे डीएनए, आरएनए कहते हैं. इन सभी पदार्थों को सामूहिक रूप से जीनोम कहा जाता है। वहीं स्ट्रेन को वैज्ञानिक भाषा में जेनेटिक वैरिएंट कहते हैं। सरल भाषा में इसे अलग-अलग वैरिएंट भी कह सकते हैं। इनकी क्षमता अलग-अलग होती है। इनका आकार और इनके स्वभाव में परिवर्तन भी पूरी तरह से अलग होता है। वैज्ञानिको के अनुसारं देश में कोरोना वायरस के अब तक एक दर्जन से ज्यादा स्ट्रेन की जानकारी मिल चुकी है। इनमें सार्स कोविड से लेकर कोरोना वायरस तक के स्ट्रेन शामिल हैं।

जीनोम मैपिंग के माध्यम से हम जान सकते हैं कि किसको कौन सी बीमारी हो सकती है और उसके क्या लक्षण हो सकते हैं। इससे यह भी पता लगाया जा सकता है कि हमारे देश के लोग अन्य देश के लोगों से किस प्रकार भिन्न हैं या उनमें क्या समानता है। इससे पता लगाया जा सकता है कि गुण कैसे निर्धारित होते हैं तथा बीमारियों से कैसे बचा जा सकता है। बीमारियों का समय रहते पता लगाया जा सकता है और उनका सटीक इलाज भी खोजा जा सकता है। क्यूरेटिव मेडिसिन के द्वारा रोग का इलाज किया जाता है तथा प्रिकाशनरी मेडिसिन के द्वारा बीमारी न हो इसकी तैयारी की जाती है, जबकि जीनोम के माध्यम से प्रिडीक्टिव मेडिसिन की तैयारी की जाती है। इसके माध्यम से पहले से पता लगाया जा सकता है कि 20 साल बाद कौन सी बीमारी होने वाली है। वह बीमारी न होने पाए तथा इसके नुकसान से कैसे बचा जाए इसकी तैयारी आज से ही शुरू की जा सकती है। जीनोम मैपिंग से बच्चे के जन्म लेने से पहले उसमें उत्पन्न होने वाली बीमारियों के जीन का पता लगाया जा सकता है और सही समय पर इसका इलाज किया जा सकता है या यदि बीमारी लाइलाज है तो बच्चे को पैदा होने से रोका जा सकता है। कुछ ऐसी बीमारियां हैं जो सही समय पर पता चल जाएं तो उनकी क्यूरेटिव मेडिसिन बनाई जा सकती है तथा व्यक्ति के जीवनकाल को बढ़ाया जा सकता है।
अब प्रश्न उठता है कि क्या है जीनोम सिक्वेंसिंग? सरल शब्दों में कहा जाए तो जीनोम सीक्वेंसिंग एक तरह से वायरस का बायोडाटा होता है। कोई वायरस कैसा है, किस तरह दिखता है, इसकी जानकारी जीनोम से मिलती है। वायरस के बारे में जानने की विधि को जीनोम सीक्वेंसिंग कहते हैं. इससे ही कोरोना के नए स्ट्रेन के बारे में पता चला है। जीनोम सिक्वेंसिंग जीन का एक स्ट्रक्चर होता है। इनदिनों जीनोम मेपिंग भी चर्चा में है। लेकिन, जब वायरस रिप्लिकेट करता है तो यह अपनी कॉपी बनाता है। जीनोम सिक्वेंसिंग जीन का एक स्ट्रक्चर होता है। जब कोरोना आया था तो इस वायरस के बारे में 11 जून 2020 को चीन और ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने इसके जीनोम सिक्वेंसिंग के बारे में बताया था। हर वायरस के जीन का डेटा खास प्रकार के सिक्वेंस में होता है। लेकिन, जब वायरस रिप्लिकेट अर्थात् स्वयं को दोहराता हैै तो यह अपनी कॉपी बनाता है। लेकिन, कई बार यह अपनी कॉपी बनाने में गलती कर जाता है और वह पहले वाले की तरह नहीं होता है, उसमें कुछ मिसिंग रह जाता है, जो उसके ऑरिजिनल यानी बेस पेयर से अलग होता है। जिससे नया वेरिएंट बनता है। अपने मूल चरित्र या बेस पेयर अलग होने को ही म्यूटेशन कहा जाता है। अभी तक यह माना जाता रहा है कि आमतौर पर नए रूप में वायरस आने के बाद उसके व्यवहार में बड़ा बदलाव नहीं होता है, इसलिए अधिकतर यह देखा गया था कि म्यूटेशन के बाद भी वायरस ज्यादा खतरनाक नहीं होता है। लेकिन, कोरोना में खासकर डेल्टा और डेल्टा प्लस में देखा जा रहा है कि म्यूटेशन के बाद यह वायरस पहले से ज्यादा खतरनाक हो गया है।

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद द्वारा एक परियोजना के अंतर्गत भारत के युवा छात्रों के जीनोम का अनुक्रमण किए जाने की योजना तैयार की गई है। इस परियोजना का उद्देश्य जीनोमिक्स की उपयोगिता के बारे में छात्रों की अगली पीढ़ी को शिक्षित करना है। जीनोम को रक्त के नमूने के आधार पर अनुक्रमित किया जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति जिसके जीनोम का अनुक्रमण किया जाएगा उसे एक रिपोर्ट दी जाएगी। प्रतिभागियों को बताया जाएगा कि क्या उनमें जीन वेरिएंट हैं जो उन्हें कुछ वर्गों की दवाओं के प्रति कम संवेदनशील बनाते हैं। उदाहरण के लिये एक निश्चित जीन होने से कुछ लोग क्लोपिडोग्रेल  अर्थात् स्ट्रोक और दिल के दौरे को रोकने वाली एक प्रमुख दवा के प्रति कम संवेदनशील हो जाते हैं। इस परियोजना में इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटेड बायोलॉजी नई दिल्ली तथा सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी मिलकर काम कर रहे हैंे
हमारी कोशिका के अंदर आनुवंशिक पदार्थ (जेनेटिक मटेरियल) होता है जिसे हम डीएनए और आरएनए कहते हैं। यदि इन सारे पदार्थों को इकठ्ठा किया जाए तो उसे हम जीनोम कहते हैं। एक जीन के स्थान और जीन के बीच की दूरी की पहचान करने के लिये उपयोग किये जाने वाले विभिन्न प्रकार की तकनीकों को जीन मैपिंग कहा जाता है। जीनोम में एक पीढ़ी के गुणों का दूसरी पीढ़ी में ट्रांसफर करने की क्षमता होती है। ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट के मुख्य लक्ष्यों में नए जीन की पहचान करना और उसके कार्य को समझने के लिये बेहतर और सस्ते उपकरण विकसित करना है। जीनोम मैपिंग इन उपकरणों में से एक है।

बीएलके सुपर स्पेशलिटी के हॉस्पिटल लैब सर्विसेज के सीनियर डायरेक्टर डॉक्टर अनिल हांडू का कहना है कि जहां तक नए वेरिएंट की जांच या पहचान की बात है तो इसे ऐसे समझा जा सकता है। हर वायरस का एक जेनेटिक सिक्वेंस होता है, आसान शब्दों में एक फिक्स नंबर या स्ट्रक्चर होता है। जिसे उस वायरस का बेस पेयर कहा जाता है। हम सभी जानते हैं कि जो वायरस सबसे पहले आया था उसे अल्फा, फिर बीटा, गामा, डेल्टा और डेल्टा प्लस है। यहां पर हर वायरस का एक स्ट्रक्चर है, जो लैब में मौजूद है। वेरिएंट की पहचान के लिए वायरस के आरएनए को बढ़ाया जाता है, इसके लिए इसे सिक्वेंसिंग मशीन पर डाला जाता है। इसके लिए आजकल एनएसजी प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल किया जा रहा है, क्योंकि यह नेक्स्ट जेनरेशन का है। जब किसी मरीज का सैंपल लिया जाता है तो उसके छोटे से हिस्से को पीसीआर के जरिए बड़ा करके यह पता लगाते हैं कि कोरोना है या नहीं। लेकिन जीनोम सिक्वेंसिंग में आरएनए को बड़ा करके बेस पेयर के स्ट्रक्चर से मिलान किया जाता है।

आज हर व्यक्ति यह सोचने को विवश है कि क्या कभी कोरोना महामारी से बाहर निकल सकेंगे? हर व्यक्ति परेशान हो गया है। ऐसे समय में जीनोम सिक्वेंसिंग ने एक उम्मींद जगा दी है। यह माना जा रहा है कि यदि समय रहते नए स्ट्रेन का पता चल जाए तो उसी के अनुरुप वैक्सीन तैयार की जा सकता है। हमारे देश की विशाल जनसंख्या को देखते हुए जीनोम सिक्वेंसिंग एक बड़ी चुनौती है। इसके लिए जरूरी है कि सरकार जीनोम सिक्वेंसिंग के काम में तेजी दिखाए ताकि हर व्यक्ति की जीनोम सिक्वेंसिंग हो सके और तीसरी लहर तबाही न मचा सके।
            ----------------------------      
(सागर दिनकर, 07.06.2021)
#शरदसिंह  #ऋथ #miss_sharad #चर्चाप्लस #दैनिक #सागर_दिनकर #कोरोना #कोविड19 #महामारी #जीनोम सिक्वेंसिंग

Tuesday, July 6, 2021

पुस्तक समीक्षा | लोककवि ईसुरी पर समग्र चर्चा करती महत्वपूर्ण पुस्तक | समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

पुस्तक समीक्षा
लोककवि ईसुरी पर समग्र चर्चा करती महत्वपूर्ण पुस्तक
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
---------------------------
काव्य संग्रह - लोककवि ईसुरी
लेखक - श्यामसुंदर दुबे
प्रकाशक - राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, नेहरु भवन, 5 इंस्टीट्यूशनल एरिया, फ़ेज़-2, वसंत कुंज, नई  दिल्ली-110070
मूल्य - 200/-
---------------------------
श्यामसुंदर दुबे की पुस्तक ‘‘लोक कवि ईसुरी’’ लोक सीमाओं से बाहर निकल कर प्रेम परक भावनाओं के उन्मुक्त आकाश में विचरण करने वाले कवि ईसुरी के समूचे व्यक्तित्व एवं कृतित्व का एक विशिष्ट सिंहावलोकन है। लोक कवि ईसुरी बुंदेलखंड अंचल में निवास करने वाले कवि रहे और उन्होंने बुंदेली में फाग रचनाएं लिखीं। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपनी अधिकांश रचनाएं अपनी प्रेमिका रजऊ को समर्पित करते हुए लिखी हैं। लोक संस्कृति के अध्येता तथा साहित्य मनीषी श्यामसुंदर दुबे ने ईसुरी की रचनाओं के लोक तत्व, सौंदर्य तत्व, अभिव्यक्ति और लोक भक्ति का सांगोपांग अध्ययन, विश्लेषण एवं विवरण प्रस्तुत करते हुए अपनी पुस्तक में अपने कुल आठ दीर्घ लेखों को पिरोया है। पहला लेख है व्यक्तित्व-अंतरीपों की अंतर यात्रा, दूसरा लेख है सौंदर्य पर प्रेम की प्रतीति, तीसरा- अपने समय समाज में, चैथा- लोक भक्ति की झलक, पांचवा- प्रकृति का लोक पक्ष, छठवां- लोक में मृत्यु-अभिप्राय, सातवां- रीतिकाल की लोक व्याप्ति और आठवां- अभिव्यक्ति प्रणाली का अंतर्विश्लेषण।

बुन्देलखण्ड में साहित्य की समृद्ध परम्परा पाई जाती है। इस परम्परा की एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं जनकवि ईसुरी। वे मूलतः लोककवि थे और आशु कविता के लिए सुविख्यात थे। रीति काव्य और ईसुरी के काव्य की तुलना की जाए तो यह बात उल्लेखनीय है कि भारतेन्दु युग में लोककवि ईसुरी को बुन्देलखण्ड में जितनी ख्याति प्राप्त हुई उतनी अन्य किसी कवि को नहीं। ईसुरी की फागें और दूसरी रचनाएं आज भी बुंदेलखंड के जन-जन में लोकप्रिय हैं। ईसुरी की फागें लोक काव्य के रूप में जानी जाती हैं और लोकगीत के रूप में आज भी गाई जाती हैं।  भारतेन्दु युग के लोककवि ईसुरी पं गंगाधर व्यास के समकालीन थे और आज भी बुंदेलखंड के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि हैं। ईसुरी की रचनाओं में ग्राम्य संस्कृति एवं सौंदर्य का वास्तविक चित्रण मिलता है। उनकी ख्याति फाग के रूप में लिखी गई रचनाओं के लिए है। ईसुरी की रचनाओं के माध्यम से उनकी योग्यता, व्यावहारिक ज्ञान का बोध होता है। ईसुरी की रचनाओं में  बुन्देली लोक जीवन की सरसता, मादकता, सरलता और रागयुक्त संस्कृति की झलक मिलती है। ईसुरी की रचनाएं जीवन, श्रंृगार, सामाजिक परिवेश, राजनीति, भक्तियोग, संयोग, वियोग, लौकिकता आदि पर आधारित हैं। यह कहा जा सकता है कि ग्राम्य संस्कृति का पूरा इतिहास केवल ईसुरी की फागों में मिलता है। उनकी फागों में प्रेम, श्रृंगार, करुणा, सहानुभूति, हृदय की कसक एवं मार्मिक अनुभूतियों का सजीव चित्रण है। अपनी काल्पनिक प्रेमिका रजऊ को संबोधित करके लिखी गई रचनाओं के लिए ईसुरी को आलोचना और लोकनिंदा का सामना भी करना पड़ा।

मानव मन की बाह्य प्रवृत्ति-मूलक प्रेरणाओं से जो कुछ विकास हुआ है उसे सभ्यता कहा जाता है और उसकी अन्तर्मुखी प्रवृत्तियों से जो कुछ बना है, उसे संस्कृति कहा जाता है। लोक का अभिप्राय सर्वसाधारण जनता से है, जिसकी व्यक्तिगत पहचान न होकर सामूहिक पहचान है। इन सबकी मिलीजुली संस्कृति, लोक संस्कृति कहलाती है। किसी क्षेत्र विशेष में निवास करने वाले लोगों के पारस्परिक धर्म त्योहार, पर्व, रीति ,रिवाज, मान्यताओं, कला आदि को लोक संस्कृति का नाम दिया जाता है। लोक संस्कृति किसी क्षेत्र विशेष को अन्य क्षेत्रों से स्वतंत्र पहचान प्रदान करती है। किसी भी कवि का लोककवि हो जाना बड़े गर्व की बात हो सकती है। वह मूलतः ध्वजवाहक होता है अपने लोक की संस्कृति का। लेकिन इसमें जो सबसे बड़ा संकट है, वह है कवि का नाम विलोपित हो जाना। जब कोई रचना लोक में प्रचलित हो जाती है तो वह एक मुख से दूसरे मुख आते-जाते उन व्यक्तियों की प्रस्तुति बन जाती है।  मूल कवि का नाम विस्मृत होने लगता है और एक लोक वचन की भांति वह रचना जन-जन में प्रवाहित होती रहती है। अपने पहले लेख ‘‘व्यक्तित्व: अंतरीपों की अंतर्यात्रा’’  में श्यामसुंदर दुबे लिखते हैं कि ‘‘लोक साहित्य में आत्मा व्यंजना की गुंजाइश खूब रहती है किंतु कवि-पहचान इसमें विलोपित हो जाती है। लोक साहित्य की अनेक विशेषताओं के साथ यह एक विशेषता जुड़ी है कि लोक साहित्य का रचयिता अनाम होता है, उसमें रचनाकार का नाम-धाम नहीं रहता है और इस आधार पर यह निश्चित कर लिया जाता है कि लोग कविता की रचना सामूहिक प्रतिभा का परिणाम है लेकिन यह सर्वथा सत्य नहीं है। रचना किसी एक के द्वारा ही की जाती है भले ही बाद में उसमें कुछ अन्य रचनाकारों का योगदान संभव होता रहा है। लोक में व्यक्ति केंद्रियता विगर्हणीय रही है। उसकी सामूहिकता ही उसकी पहचान रही है। लोक में ग्राम्य में धारणा का ही अर्थ है- समूह का जीवन’’

ईसुरी एक लोक कवि थे। फिर भी उनकी रचनाएं लोककाव्य की ख्याति पाते हुए भी अपने कवि के नाम से अलग नहीं हुईं। ईसुरी के काव्य और उसके देशकाल पर प्रकाश डालते हुए लेखक श्याम सुंदर दुबे ने लिखा है-‘‘ईसुरी की कविता लोक कविता के उस संधि स्थल की कविता थी, जहां कविता व्यक्ति केन्द्रित रचना के रूप में अपनी पहचान बनाने लगी थी। कविता में कविगणों के नाम की छाप का प्रयोग होने लगा था। एक तरह से यह लोककाव्य की वह उछाल थी जिसमें वह अपनी लोकधर्मिता से अलग होने की कोशिश में रत हो रहा था।’’ लेखक ने आगे लिखा हैं कि-‘‘ईसुरी के व्यक्तित्व की छाप उनकी कविता में स्पष्ट हो रही थी।’’
‘‘सौदर्यपरक प्रेम की प्रतीति’’-यह पुस्तक का दूसरा लेख है जिसमें लेखक श्याम सुंदर दुबे ने ईसुरी के काव्य के सौदर्यपरक पक्ष को रेखांकित किया है। वे लिखते हैं कि -‘‘ईसुरी की कविता क्रियाबिंबों की कविता है। वे बुंदेली व्यक्ति की सतत क्रिया विधि को अपनी कविता में ढालते हैं। उनकी कविता इसलिए स्थिर बिंबों के निर्माण में रुचि नहीं लेती है। एक चलित ऊर्जा काइनेटिक एनर्जी से परिचालित हो कर उनकी कविता बुंदेली चमक-दमक, बुंदेली ठस-मसक, बुंदेली लहक-चहक की धूप-छांही उजास फेंकती है। उनकी कविता केलेडिलक स्कोप जैसे दृश्यांकन निर्मित करती है। केलेडिलक स्कोप को ज़रा-सा घुमाया कि उसके आभ्यांतर की सौंदर्यसृष्टि परिवर्तित हो जाती है। ईसुरी की कविता का विलक्षण सौंदर्य चक्र इसी तरह के अपरूपों की रम्य रचना करता है।’’
ईसुरी के काव्यसौंदर्य का लेखक ने उदाहरण दिया है-
अंखियां जब काऊ से लगतीं, सब-सब रातन जगतीं
झपतीं नईं झीम न आवै, कां उस नींदी भगतीं
बिन देखे वे दरद दिमानी, पके खता-सी दगतीं
ऐसो हाल होत है ईसुर, पलक न पल तर दबतीं

ईसुरी के काव्य में प्रेम का एक ऐसा लोकाचारी रूप मिलता है जो सांस्कृतिक परम्पराओं का सुंदरता के साथ निर्वहन करता है किन्तु वर्जनाओं को तोड़ता भी चलता है। ‘‘अपने समय-समाज में’’ लेख में लेखक ने सामाजिक संदर्भ में ईसुरी की प्रेमाभिव्यक्ति का विश्लेषण किया है। लेखक ने लिखा है -‘‘ईसुरी का प्रेम-लोक अनुभूतियों के अनन्त विसतार वाला है। लोक की सीमित सामथ्र्य का दिगंतव्यापी प्रयोग ईसुरी अपनी इस प्रेम साधना के आधार पर करते हैं। ईसुरी का जीवन जिन घटनाओं का समुच्चय रहा है उनमें उनका प्रेमी व्यक्तित्व ही केन्द्र में है।’’ लेखक ने उदाहरण देते हुए आगे लिखा है-‘‘रजऊ की लगन ने उन्हें जिस विपरीत के समक्ष ला खड़ा किया, वह प्राणों की संासत का प्रामाणिक अनुभव है।’’
जा भई दशा लगन के मारें रजऊ तुमारे द्वारे
जिन तन फूल छड़ी न छूटी, तिनें चलीं तलवारें
हम तो टंगे नींम की डरियां, रजुआ करें बहारें
ठाड़ी हती टिकी चैखट से, अब भई ओट किवारें
कर का सकत अकेलो ईसुर सबरू गाज उतारें

लेखक श्यामसुंदर दुबे ने ईसुरी के काव्य में ‘‘लोकभक्ति की झलक’’ को भी निरूपित किया है। वस्तुतः लोक वह सर्वव्यापी सत्ता है जिसका निर्माण स्वयं मनुष्य ने किया है और जिसे वह अपने अस्तित्व के रूप में ढालने का सतत प्रयास करता रहता है। लोक में उपस्थित सारे मनुष्यों के सारे प्रयास लोक को विविधरंगी बना देते हैं और सौंदर्य की एक अलग परिभाषा गढ़ते हैं। इसमें भक्ति, व्रत-उपवास, पूजापाठ, तीर्थयात्रा से ले कर योग-आराधना तक शामिल होती है। जहां तक ईसुरी के काव्य में लोकभक्ति का प्रश्न है तो श्यामसुंदर दुबे मानते हैं कि -‘‘ईसुरी की भक्तिपरक कविताओं में शीर्ष स्थान राधा का है। वे राधा को ही जैसे अपना इष्ट मानते हैं।’’
  पुस्तक ‘‘लोक कवि ईसुरी’’ में समाहित लेखक के सभी दीर्घ लेखों को पढ़ते हुए ईसुरी के व्यक्तित्व, कृतित्व, प्रेम, लोक और प्रकृति को जानना सुगम हो जाता है। लेखक श्यामसुंदर दुबे कि यह अपनी साहित्यिक विशिष्टता है कि वे संस्कृत निष्ठ हिंदी का प्रयोग करते हुए सौंदर्यात्मक भाषा की एक ऐसी सरिता प्रवाहित करते हैं जिसकी छोटी-बड़ी लहरों का आनंद लेते हुए पाठक विषयवस्तु में नौकायन करते हुए अत्यंत सुख का अनुभव करता है। कवि ईसुरी के संदर्भ में इतनी विषद विश्लेष्णात्मक चर्चा करती हुई यह पुस्तक अद्वितीय है तथा ईसुरी के सम्रग को जानने के लिए नितान्त पठनीय है।
                  --------------------------
#पुस्तकसमीक्षा #डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह #BookReview #DrSharadSingh #miss_sharad #आचरण #ईसुरी #श्यामसुंदरदुबे #बुंदेलखंड

Sunday, July 4, 2021

डॉ (सुश्री) शरद सिंह वनमाली सृजन पीठ भोपाल के सागर केंद्र की अध्यक्ष मनोनीत

साहित्य, संस्कृति एवं सृजन के लिए समर्पित वनमाली सृजन पीठ भोपाल के सृजन केंद्र सागर की कार्यकारी समिति में अध्यक्ष के रूप में मुझे मनोनीत किए जाने पर वनमाली सृजन पीठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष आदरणीय संतोष चौबे जी तथा  केंद्र संयोजक परमआदरणीय उमाकांत मिश्र जी की मैं अत्यंत आभारी हूं। मुझे विश्वास है कि उमाकांत मिश्रा जी के अद्वितीय संयोजकत्व एवं निर्देशन में सृजन पीठ के सागर केन्द्र की महत्ता को पीठ के राष्ट्रीय मूल्यों के अनुरूप बनाए रख सकूंगी।
             प्रिय बंधुसम सर्वश्री कथाकार डॉ आशुतोष मिश्र, डॉ नवनीत धगट, कवि डॉ नलिन जैन, कवि अभिषेक ऋषि, कथाकार शुभम उपाध्याय को सदस्य के रूप में मनोनीत किए जाने पर मैं उन्हें हार्दिक बधाई देती हूं तथा विश्वास व्यक्त करती हूं कि इन अद्वितीय प्रतिभाओं के साथ मुझे साहित्य जगत की सेवा का अवसर मिलेगा, जो मेरे लिए सुखद और शिक्षाप्रद अवसर होगा।
04.07.2021


#VanmaliSrijanPeeth #VanmaliSrijanPeethBhopal
#VanmaliSrijanPeethSagarKendra
#HindiSahitya #HindiSrijan #SharadSingh #DrSharadSingh #DrMissSharadSingh
#वनमालीसृजनपीठ #वनमालीसृजनपीठभोपाल #वनमालीसृजनपीठसागरकेन्द्र