Tuesday, July 13, 2021

पुस्तक समीक्षा | कविता के कैनवास पर गहन संवेदना के रंग | समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

पुस्तक समीक्षा
कविता के कैनवास पर गहन संवेदना के रंग
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह - कभी ये सोचता हूं मैं
कवि     - आनन्द कुमार शर्मा
प्रकाशक - सान्न्ध्यि बुक्स, एक्स/3282, गली नं.4,रघुबरपुरा नं.2,
           गांधी नगर, नई दिल्ली-110031
मूल्य - 250/-
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कविता का सृजन भावनाओं का वह प्रस्फुटन होता है जिसमें अभिव्यक्ति की कोमलता के साथ जीवन के तमाम सरोकार होते हैं। आचार्य मम्मट ने ‘‘काव्यप्रकाश’’ में तीन प्रकार के काव्य की चर्चा की गई है, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र। ध्वनि वह है जिस, में शब्दों से निकले हुए अर्थ की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय व्यंग्य प्रधान हो। गुणीभूत व्यंग्य वह है जिसमें गौण हो। चित्र या अलंकार वह है जिसमें बिना व्यंग्य के चमत्कार हो। इन तीनों को क्रमशः उत्तम, मध्यम और अधम भी कहते हैं। आचार्य मम्मट ने  रस के उद्रेक के स्थान पर छिपे हुए भावों को महत्व दिया है। कवि के प्रथम काव्य संग्रह ‘‘कभी ये सोचता हूं मैं’’ एक ऐसा काव्य संग्रह है जिसमें आंतरिक और बाह्य दोनों भावों पर समान दृष्टि डाली हैं। अपने समय और समाज की विसंगतियों का रेखांकन इस संग्रह की कविताओं की विशेषता है। यह काव्य संग्रह एक ख़ूबसूरत लैण्डस्कैप की तरह है। आनन्द कुमार शर्मा के कवित्व का कैनवास विस्तृत है। इनमें गहन संवेदना के अनेक रंग मौजूद हैं। कवि ने अपनी इस कृति के माध्यम से समाज में जीवन मूल्यों की स्थापना करने का आह्वान करते हुए जीवन विसंगतियों के प्रति चिंता प्रकट की है।
कवि आनन्द कुमार शर्मा भारतीय प्रशासनिक सेवा में रहे हैं तथा वर्तमान में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के सचिव का पदभार सम्हाल रहे हैं। उनकी प्रशासनिक कत्र्तव्यस्थता एवं काव्य सृजन के परस्पर तालमेल के संबंध में संग्रह का पुरोवाक् लिखते हुए डाॅ. मोहन गुप्त ने लिखा है कि ‘‘श्री आन्न्द कुमार शर्मा एक संवेदनशील, कुशल तथा कर्मठ प्रशासक हैं। जहां संवेदनशीलता है तथा भाषा के प्रति राग और कौशल है, वहां भावनाओं का अतिरेक होने पर काव्य का स्फुटित होना अवश्यमभावी है। यों प्रशासक का यह आदर्श होता है उसके मन की बात उसका घनिष्ठतम व्यक्ति भी न जान पाए किन्तु यह काव्य ही है जहां एक संवेदनशील व्यक्ति अपने मन को उंड़ेलता है। श्री शर्मा ने इन कविताओं के माध्यम से अपने अंतर्मन की यात्रा को काव्यमय शब्द दिए हैं।’’  
आनन्द कुमार शर्मा की सृजनात्मकता का उद्देश्य उनकी प्रत्येक कविता में स्पष्ट दिखाई देता है। कवि ने समाज, संस्कार, संस्कृति, आर्थिकता एवं राजनीतिक सतहीपन को भी अपनी कविताओं में पिरोया है। वैयक्तिक भावों के साथ ही लोक की पीड़ा कविताओं का विषय बनी है। बात जब लोक की आती है तो आधी दुनिया के जीवन की विसंगतियों से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है। दूसरे के घरों में काम करके अपने परिवार को पालने वाली स्त्री के जीवन की विडम्बना को कवि ने अपनी ‘‘आजादी’’ कविता में शब्दबद्ध किया है। आजादी का व्यंजनात्मक पर्याय गढ़ती इस कविता की अंतिम पंक्तियां देखिए -
देर शाम आते ही खटती है
घर भर का दर्द छान
आधे में पूरे को
पूरे में आधे को घोलकर
देर रात सबके सोने पर जब सोती है अम्मा
तब मिलती है उसको आजादी।

जीवन के झंझावात में अनेक उतार-चढ़ाव आते हैं। कुछ अपने पराए हो जाते हैं तो कुछ पराए सहसा अपने हो जाते हैं। परिस्थितिजन्य इस परिवर्तन पर एक छोटी लेकिन पुरअसर कविता है ‘‘तिलस्म’’ जिसका भावसौंदर्य बहुत गहराई लिए हुए है-
कब कैसे कोई बनता है
अपना।
चाहे हों कितनी पथरीली राहें
चलते-चलते पांव भर आएं
दूर तक दिखे न कोई ठौर
लगे कि अब नहीं कोई हमारे साथ
अचानक थामता है हाथ
अनजाना कोई
डूब करके तिरता है
सपना।

संग्रह में एक कविता है-‘‘तुमको मैं क्या दूं?’’यह कविता कवि ने अपनी शादी की पच्चीसवीं सालगिरह पर अपनी जीवनसंगिनी को संबोधित करते हुए लिखा है। इस कविता में एक स्वीकारोक्ति के साथ ही प्रेम की निश्छलता एवं निस्वार्थता का उद्घोष किया गया है। कविता का एक अंश देखिए-
तुमको मैं क्या दूं?
सोचता हूं मैं।
बीते बरस कई
तुमसे मिले हुए
अब तुझमें भी तुम हो मैं नहीं,
तुमको मैं क्या दूं?
जीवन में
जो कुछ भी था कठिन
तुमने छू कर
उसे सरल किया
बचपन लौटाया
बच्चों की किलकारी से
धूप सभी
छोव करी
चलकर के हर दुरूह पथ को संग-संग

कवि आनन्द कुमार शर्मा ने अपनी कविताओं में स्त्रीपक्ष को बखूबी बुना है। एक स्त्री अपने जीवन में कितने जीवन एक साथ जी लेती है इसे ‘‘परकाया प्रवेश’’ कविता से समझा जा सकता है। इस कविता में पौराणिक विद्वान मंडन मिश्र की कथा को आधार रूप में लिया गया है। मंडन मिश्र का शंकराचार्य से शास्त्रार्थ हुआ जिसमें निर्णायक की भूमिका मंडन मिश्र की पत्नी भारती ने निभाई। मंडन मिश्र पराजित हो गए। तब भारती ने शंकराचार्य से कहा कि मैं मंडन मिश्र की अद्र्धांगिनी हूं और आपने अभी मुझे तो पराजित किया नहीं है अतः मंडन मिश्र की पराजय और आपकी विजय अधूरी है। तब शंकराचार्य और भारती के मध्य शास्त्रार्थ चला। जब भारती को लगा कि शंकराचार्य जीत जाएंगे तो उसने ब्रम्हचारी शंकराचार्य से कामकला विषयक प्रश्न पूछ लिए। शंकराचार्य को इसका ज्ञान नहीं था। अतः उन्होंने भारती से कुछ समय मांगा और अमरुक नामक राजा की मृत देह में परकाया प्रवेश कर के कामकला का ज्ञान प्राप्त किया और भारती के प्रश्नों का उत्तर दे दिया और विजय प्राप्त की। इस कथा को पिरोते हुए लिखी गई कविता का एक अंश देखिए जिसमें एक स्त्री के परकाया प्रवेश को वर्णित किया गया है-
परकाया प्रवेश का सुना ही था कभी
जब मंडन मिश्र को हराने की ज़िद लिए
शंकर को करना पड़ा था
भारती के सवालों का हल ढूंढने
राजा अमरुक की मृत देह में।
विश्वास कभी हुआ नहीं
लगता था सब झूठ
मानव मन की काल्पनिक उड़ान
किस्से कहानियों की तरह।
देखा अब खुद
जब बेटी हुई बड़ी
कैसे उसकी देह में उतरती है
उसकी मां और उसकी दादी की आत्मा
एक साथ।

इस काव्य संग्रह की कविताओं के फलक पर उजागर होने वाली जीवनानुभूतियों में संसार की सुंदरता के साथ समाज में व्याप्त विषमता और इसकी अनेकानेक विसंगतियों का चित्रण भी समान रूप से अंकित हुआ है। ‘‘कौन है?’’ शीर्षक कविता-
मेरे सिवा कौन है यहां
चारो ओर फैली नीरवता के बीच
सरसराता फिर रहा
कोई तल्ख़ ,ख़याल?
या ठहरे सन्नाटे सी तुम्हारी
उदास उसांस,
अथवा मन में बसी कोई सांस

इस संग्रह में छंदमुक्त कविताओं के साथ ही कुछ नवगीत और ग़ज़लनुमा रचनाएं भी हैं। काव्य संग्रह की भाषा सरल,सहज है। संग्रह की कविताओं में हिंदी के अलावा उर्दू, देशज, इंग्लिश आदि शब्दों सहज प्रयोग हुआ है। कविताओं में आम बोलचाल की भाषा है किन्तु उनका शब्द-विन्यास उनकी कविताओं को सशक्त बनाता है। विश्वास है कि कवि का यह प्रथम काव्य संग्रह साहित्य-प्रेमियों को रुचिकर लगेगा और पाठकगण कविता के कैनवास पर चित्रित गहन संवेदना के रंग के भाव और विचार को साझा ग्रहण करते हुए कविताओं का रसास्वादन करेंगे।
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