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Wednesday, August 30, 2023

चर्चा प्लस | रक्षाबंधन की पौराणिक कथाएं और लोकगीत | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस 
रक्षाबंधन की पौराणिक कथाएं और लोकगीत
    - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                        
          हमारा देश त्यौहारों का देश है। जितने धर्म उतने त्यौहार। अकेले हिन्दू धर्म में ही अनेक त्यौहार हैं और उन त्यौहारों से जुड़ी असंख्य कथाएं हैं। इनमें रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है जो मानवीय संबंधों को सात्विक दृढ़ता प्रदान करता है। यह भाई-बहन का त्यौहार है। यह आवश्यक नहीं है कि भाई-बहन रक्तसंबंधी ही हों। मुंहबोले भाई बबहनोके लिए भी रक्षा बंधन का उतना ही महत्व है जितना रक्तसंबंधी भाई बहनों के लिए। दिलचस्प बात यह है कि यदि रक्षाबंधन की पौराणिकता को खंगालें तो पता चलता है कि जहां से रक्षाबंधन की परम्परा का आरम्भ माना जाता है, वे रक्तसंबंधी भाई-बहन नहीं थे। तो चलिए देखते हैं उन पौराणिक कथाओं को।
‘‘रक्षाबंधन’’ शब्द से ही स्पष्ट है कि रक्षा संकल्प के साथ जुड़ा रिश्ते का बंधन। बहन भाई को रक्षासूत्र अथवा राखी बांधती है तथा उससे यह आशा करती है कि उसका भाई चाहे सगा हो या मुंहबोला हो, उसकी राखी के वचन को निभाएगा तथा बहन पर संकट आने पर उसे बचाएगा, बहन की रक्षा करेगा। भारतीय संस्कृति में वचनों एवं प्रण का बहुत महत्व रहा है। किसी भी आयु का बालक, युवक या पुरुष जब किसी बालिका, युवती अथवा स्त्री को अपनी बहन मान कर राखी बंधवाता है तो वह जीवनपर्यन्त उसे अपनी सगी बहन की तरह मान देने तथा उसकी रक्षा करने के लिए वचनबद्ध हो जाता है। और किसी संस्कृति में रक्षाबंधन जैसा त्यौहार नहीं है। फिर भी कई बार यह प्रश्न उठता है कि रक्षाबंधन का त्यौहार कब से आरम्भ हुआ क्योंकि प्रचीन साक्ष्यों में इसके ठोस प्रमाण नहीं मिलते हैं। किन्तु यह याद रखा जाना चाहिए कि हमारा प्राचीन इतिहास वेदों और पौराणिक ग्रंथों में निहित है। हमारे प्रचीन भारत में इतिहास को इतिहास की भांति नहीं लिखा गया अपितु कथाओं की भांति सहेजा गया।

रक्षा बंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। उत्तरी भारत में यह त्यौहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है और इस त्यौहार का प्रचलन सदियों पुराना बताया गया है। इस दिन बहने अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती हैं और भाई अपनी बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हुए अपना स्नेहाभाव दर्शाते हैं।

देवासुर संग्राम की कथा
रक्षाबंधन के त्यौहार का आरम्भ कुछ लोग देवासुर संग्राम की कथा के आधार पर मानते हैं। वह समय जब सभी देवता और राक्षस स्वर्ग में अपना वर्चस्व स्थापित करने की योजना बना रहे थे। इसी वर्चस्व को सिद्ध करने के लिए समुद्र मंथन की योजना बनाई गई। महाभारत आदि पर्व अध्याय 19 के अनुसार देवताओं द्वारा असुरों के संहार की कथा का वर्णन इस प्रकार है- देवता और असुर दोनों ही प्रजापति की सन्तान हैं। इन लोगों का आपस में युद्ध हुआ था, जिसे ‘‘देवासुर संग्राम’’ कहा जाता है। समुद्र मंथन में अमृत घट निकलने पर भगवान नारायण ने मोहिनी रूप धारण करने के बाद केवल देवताओं को अमृत पान कराया तो इस कारण सभी दैत्य और दानव रुष्ट हो गये। वे अस्त्र-शस्त्र लेकर देवताओं पर टूट पड़े। इससे ठीक पहले जिस समय देवता उस अभीष्ट अमृत का पान कर रहे थे, ठीक उसी समय, राहु नामक दानव ने देवता रूप में आकर अमृत पीना आरम्भ किया। वह अमृत अभी उस दानव के कण्ठ तक ही पहुँचा था कि चन्द्रमा और सूर्य ने उसका भेद खोल दिया। तब चक्रधारी भगवान विष्णु ने अमृत पीने वाले उस दानव का मस्तक चक्र द्वारा काट दिया। यह देख कर देवताओं और दानवों के बीच युद्ध छिड़ गया। स्वर्गलोक पर असुरों का आक्रमण बहुत ही भयानक था। और, स्वर्ग में सभी देवताओं की हार के बाद, वे सभी भगवान शिव के पास गए और मदद की गुहार लगाई। यह श्रावण पूर्णिमा थी जब स्वर्ग से सभी देवता भगवान शिव के पास गए और इस समस्या का समाधान खोजने के लिए प्रार्थना की। देवी पार्वती प्रार्थना कर रही थीं कि इस देवसुर युद्ध में स्वर्ग के सभी देवताओं को विजय प्राप्त हो। इसलिए माता पार्वती ने सभी स्वर्गीय देवताओं की कलाइयों पर रक्षा का पवित्र धागा बांध दिया और उन्हें असुरों पर विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया। देवासुर का दांव स्वर्गीय देवताओं के साथ लगभग हजारों वर्षों तक जारी रहा। और अंत में, स्वर्ग से देवताओं को इस युद्ध में विजय प्राप्त हुई। इस प्रकार दुवासुर की लड़ाई जीतकर इंद्र को भी अपना सिंहासन वापस मिल गया। सभी देवता भगवान शिव और माता पार्वती को रक्षा धागा बांधने के लिए धन्यवाद देने के लिए कैलाश गए। उस दिन, भगवान शिव ने घोषणा की कि हर कोई पूर्णिमा दिवस को रक्षाबंधन के त्योहार के रूप में मनाएगा। और, इसलिए, हम सभी रक्षाबंधन का शुभ त्योहार मनाते हैं।

राजा बलि की कथा
प्राचीन काल में जब राजा बलि अश्वमेध यज्ञ करा रहे थे। उस समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को छलने के लिए वामन अवतार लिया और राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी। उस समय राजा बलि ने सोचा कि यह ब्राह्मण तीन पग में भला कितनी जमीन नापेगा और उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। देखते ही देखते वामन रुप धारण किए हुए विष्णु जी का आकार बढ़ने लगा और उन्होंने दो पग में ही सब नाप लिया। उस समय तीसरे पग में राजा बलि ने स्वयं को ही सौंप दिया और विष्णु जी ने राजा बलि को पाताल लोक दे दिया। उस समय बलि ने भगवान विष्णु से एक वचन मांगा कि वो जब भी देखें तो सिर्फ विष्णु जी को ही देखें और विष्णु जी ने तथास्तु कहकर वचन को पूर्ण कर दिया। अपने वचन के अनुसार भगवान ने तथास्तु कह दिया और पाताल लोक में रहने लगे। इस पर माता लक्ष्मी जी को अपने स्वामी विष्णु जी की चिंता होने लगी। उसी समय लक्ष्मी जी को देवर्षि ने एक सुझाव दिया जिसमें उन्होंने कहा कि वो बलि को अपना भाई बना लें और अपने स्वामी को वापस ले आएं। उसके बाद माता लक्ष्मी स्त्री का भेष धारण करके रोटी हुई पाताल लोक पहुंचीं।
इस पर राजा बलि ने उनके रोने का कारण पूछा उनके पूछने पर लक्ष्मी जी ने कहा कि मेरा कोई भाई नहीं, इसलिए में अत्यंत दुखी हूं। तब बलि ने कहा कि तुम मेरी धर्म बहन बन जाओ। इसके बाद लक्ष्मी जी ने राजा बलि को राखी बांधकर अपने स्वामी भगवान विष्णु को वापस मांग लिया। ऐसी मान्यता है कि उसी समय से रक्षाबंधन का त्योहार चलन में आया।

यम और यमुना की कथा
एक कथा यह भी प्रचलित है कि रक्षा बंधन का त्यौहार मृत्यु के देवता यम और नदी यमुना की भेंट से आरंभ हुआ। यह माना जाता है कि यम और यमुना परस्पर भाई-बहन हैं। किन्तु एक बार बारह वर्ष तक यम और यमुना की आपस में भेंट नहीं हो सकी। यमुना दुखी रहने लगी कि उसका भाई यम उससे मिलने क्यों नहीं आया। उसे लगा कि उसका भाई उसे भूल गया है। यमुना को दुखी देख कर गंगा ने उससे दुख का कारण पूछा। यमुना ने गंगा को अपने दुख का कारण बता दिया। उन्हीं दिनों गंगा की यम से भेंट हो गई। गंगा ने यम को यमुना के दुख का कारण बता दिया। तब यम को भी अपनी भूल का अहसास हुआ और वह यमुना से मिलने तत्काल चल पड़ा। जब यमुना ने यम को देखा तो उसकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। लेकिन उसने उलाहना दिया कि वह अपनी बहन को कैसे भूल गया? तब यम ने बताया कि उसे पृथ्वीलोक के इतने सारे मनुष्यों के बारे में सोचना पड़ता है कि वह कई दूसरी बातें भूल जाता है। तब यमुना को एक युक्ति सूझी और उसने यम की कलाई पर रेशमी धागे बंाधते हुए कहा कि ‘‘ये धागे तुम्हें अपनी इस बहन की याद दिलाते रहेंगे।’’ बदले में यम ने अपनी बहन यमुना को अमरता का आशीर्वाद दिया। तभी से रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाने लगा।

श्रीकृष्ण और द्रौपदी की कथा
कथा के अनुसार श्री कृष्ण ने महाभारत में द्रौपदी को अपनी बहन के रूप में स्वीकार किया और इसकी कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने जब अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया, तब उनकी कनिष्ठा ऊंगली कट गई जिससे भगवान कृष्ण की उंगली से रक्त की धार बहने लगी। उस समय द्रोपदी ने अपने साड़ी के चीर के एक टुकड़े को श्रीकृष्ण की ऊंगली पर बांध दिया। इसके बाद से ही श्री कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन के रूप में स्वीकार किया और हर संकट की परिस्थिति में उनकी रक्षा करने का वचन दिया। उसी वचन की वजह से भरी सभा में श्री कृष्ण ने द्रौपदी को दुर्योधन के द्वारा चीर हरण होने से बचाया था। बहन द्वारा बांधी गई कपड़े की छोटी-सी पट्टी के बदले कृष्ण ने द्रौपदी को अनंत चीर प्रदान किया था जिसे खंचते-खींचते दुश्शासन थक गया था किन्तु चीर समाप्त नहीं हुआ था।

ये सभी कथाएं अपने-अपने ढंग से लोक साहित्य में भी मौजूद हैं। बुंदेली लोकगीत में बड़े रोचक ढंग से इन कथाओं का उल्लेख किया जाता है। एक गीत के बोल देखिए जिसमें ससुराल में रह रही बहन अपने भाई के लिए निवेदन भरा गीत गा रही है कि -
चाए देव लड़े, चाए दानव
भैया तुम तो आ जइयो।।
अमरित पी के देव अमर भए
दानव लड़-लड़ मर गए
दद्दा-बऊ को ध्यान राखियो
उने सबई दे अइयो।
चाए देव लड़े, चाए दानव
भैया तुम तो आ जइयो।।
इसी तरह एक और बुंदेली लोकगीत है जिसमें कृष्ण और द्रौपदी की कथा कही गई है-
बहना को कभऊं ने बिसारियो
चाए भौजी को माउर बिसारियो।।
कान्हा की कट गई उंगरिया हती
सो रानी ने पटरानी, बहना द्रौपदी ने
अपनों पल्लू खों फाड़ पट्टी बांधी रई
सो, बहना को कभऊं ने बिसारियो
चाए भौजी को माउर बिसारियो।।
जेई से तो कान्हा ने लाज राख लई
खेंच-खेंच थक गओ दुस्सासन उते
कान्हा ने द्रौपदी की चीर बढ़ा दई
सो, बहना को कभऊं ने बिसारियो
चाए भौजी को माउर बिसारियो।।
इस प्रकार के अनेक लोकगीत हैं जिनमें इन पौराणिक कथाओं का स्मरण करा कर बहने अपने भाई से रक्षाबंधन पर राखी बंधवाने आने तथा रक्षा का  अपना वचन निभाने का आग्रह करती हैं। अर्थात् जब बात रक्षाबंधन जैसे त्यौहार की हो तो पुराण और लोक एकाकार हो जाते हैं।
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