Monday, September 8, 2025

मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के कहानी पाठ में डॉ (सुश्री )शरद सिंह द्वारा अध्यक्षता

कल दोपहर मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन की सागर इकाई के द्वारा "सागर के कथाकार" कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मुझे इस आयोजन की अध्यक्षता करने का सुअवसर मिला, जिसके लिए मैं आभारी हूं मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन तथा भाई पलाश सुरजन जी की, साथ ही प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य महेश प्रकाश श्रीवास्तव जी, सागर इकाई के अध्यक्ष भाई आशीष ज्योतिषी जी एवं सागर इकाई के सचिन भाई पुष्पेंद्र दुबे जी की 🌹🙏🌹

🚩 अपना अध्यक्षीय श्री उद्बोधन देते हुए मैंने कहा कि कथाकारो द्वारा पढ़ी गई कहानियों में स्त्री विमर्श का गाढ़ा रंग तथा समाज विमर्श, वृद्ध विमर्श आदि कई शेड्स देखने को मिले। कहानी वाचिक परंपरा की विधा है। यूं कहानी कही जाती है लिखी नहीं जाती। किंतु कहानी को सुनाने की जो वाचिक परंपरा रही उसमें एक वाचक से दूसरे वाचक तक कहानी के प्रवाह में मूल कथानक बदलता चला जाता था और वह कहानी अपना मूल स्वरूप खो कर लोक कथा में परिवर्तित हो जाती थी। मूल स्वरूप को सुरक्षित रखने के लिए कहानी को लिपिबद्ध किया जाने की आवश्यकता महसूस की गई होगी और तभी से कहानी को लिखने का चलन आरंभ हुआ होगा। 

       एक बात और जो मैं व्यक्तिगत रूप से मानती हूं की कथानक कहानीकार को स्वयं चुनता है कहानीकार कथानक को नहीं और कथानक ही अपनी लंबाई-चौड़ाई निर्धारित करता है, जिससे कोई कथानक लघु कथा में सिमट जाता है तो कोई उपन्यास का आकार ले लेता है।
        सागर में कथा लेखन की समृद्ध परंपरा रही है शिवकुमार श्रीवास्तव, रमेश दत्त दुबे, ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी, ज़हूर बख़्श, अनिलचंद्र मैत्रा और अकिंचन जी आदि कथाकारों की कथाएं तत्कालीन सागर  के परिवेश से परिचित कराती हैं। इन्हें पढ़ा जाना चाहिए।"
    होटल सुकून के सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम का कुशल संचालन किया भाई पुष्पेंद्र दुबे कुमार सागर ने, स्वागत उद्बोधन दिया भाई आशीष ज्योतिषी जी ने तथा आभार प्रदर्शन किया भाई महेश प्रकाश श्रीवास्तव जी ने।
(07.09.2025)

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