Monday, September 22, 2025

डॉ. (सुश्री) शरद सिंह द्वारा नाटक रश्मिरथी की नाट्य समीक्षा

🎭 मेरी नाट्य समीक्षा प्रकाशित करने के लिए हार्दिक आभार दैनिक भास्कर 🙏🏻
🎭 कल आरंभ हुए तीन दिवसीय नाट्य समारोह में प्रथम दिवस रश्मिरथी नाटक का मंचन किया गया। इस एकल नाटक को मुंबई की नाट्य संस्था सुरभि बेगूसराय ने प्रस्तुत किया जिसके परिकल्पनाकार, निर्देशक एवं अभिनेता थे हरीश हरिऔध।
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नाट्य समीक्षा
 “रश्मिरथी” : जन्म से नहीं, कर्म से व्यक्ति का महत्व होता है। 
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
नाट्य कला समीक्षक
          
     संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से सागर की रंगप्रयोग नाट्य संस्था द्वारा तीन दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य समारोह का शुभारंभ स्थानीय रविंद्र भवन में “रश्मिरथी” नाटक से हुआ।  राष्ट्रीय कवि रामधारीसिंह दिनकर के खंडकाव्य “रश्मिरथी” पर आधारित  इस एकल नाटक को मुंबई की नाट्य संस्था सुरभि बेगूसराय ने प्रस्तुत किया जिसके परिकल्पनाकार, निर्देशक एवं अभिनेता थे हरीश हरिऔध।
      ‘रश्मिरथी' रामधारी सिंह दिनकर की वह कालजयी रचना है जो हमेशा समय और समाज को चुनौती देती आई है। ‘रश्मिरथी' का अर्थ है सूर्य की किरणों के रथ का सवार। यह रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा रचित एक प्रसिद्ध खंडकाव्य है, जो महाभारत के एक प्रमुख पात्र कर्ण के जीवन के उतार-चढ़ाव को वर्णित करता है। इस खंडकाव्य में कर्ण के जीवन, वीरता, निष्ठा, अपमान, प्रतिकार के साथ ही उस सामाजिक भेदभाव का चित्रण किया गया है, जिसे अनेक मनुष्य ने पीढ़ियों तक झेला है। ‘रश्मिरथी' नाटक में भी कर्ण के बहाने मूल संदेश यही है कि जन्म से नहीं, कर्म से व्यक्ति का महत्व होता है।     
    ‘रश्मिरथी' नाटक के निर्देशक हरीश हरिऔध को मंच और फिल्मों में अभिनय का भी अनुभव है। एकल अभिनय यूं भी चुनौती भरा होता है। ‘रश्मिरथी' में उनका एकल अभिनय है। एकल अभिनय नाटक अपने आप में चुनौती भरे होते हैं। दर्शकों को बांधे रखना और पूरी कहानी को एक ही अभिनेता द्वारा संचालित करना, मानसिक रूप से थका देने वाली प्रक्रिया के लिए भावनात्मक और मानसिक दृढ़ता की आवश्यकता, कोई सह-अभिनेता न होने के कारण निरंतर प्रदर्शन दबाव, और दर्शकों की प्रतिक्रिया या समर्थन के अभाव में भी अपनी कला का विश्वसनीय और प्रभावी प्रदर्शन करना। इससे भी बड़ी चुनौती होती है अगर संवाद कविता के रूप में हों। इस चुनौती को एक निर्देशक और अभिनेता के रूप में हरीश हरिऔध ने बखूबी स्वीकार किया एवं अपने बेहतरीन अभिनय और प्रभावी संवाद अदायगी से “रश्मिरथी” की एक-एक पंक्ति को जीवंत कर दिया। हरीश हरिऔध ने मूल पात्र कर्ण के  अभिनय के अतिरिक्त दुर्योधन, भीम, परशुराम आदि पात्रों का भी भावपूर्ण अभिनय किया जिसमें लगभग सभी रसों का समावेश था। इस  एक घंटा 40 मिनट की प्रस्तुति में ‘महाभारत’ के महापात्र कर्ण के जीवन, संघर्ष, और चेतनाओं का संजीव एवं सटीक चित्रण किया गया। हरीश हरिऔध ने एकल अभिनय की सीमाओं को पार कर कर्ण के अंतर्द्वंद, गर्व, पीड़ा और साहस को जिस सजीवता से मंच पर उतारा। पूरे नाटक के दौरान कई बार हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। उनके चेहरे के हाव-भाव, स्वर की उतार-चढ़ाव भरी अभिव्यक्ति, और संवाद अदायगी उनके एक मंजे हुए अभिनेता होने का प्रमाण दे रही थी। 
         "नहीं पूछता है कोई, तुम व्रती, वीर या दानी हो? सभी पूछते मात्र यही, तुम किस कुल के अभिमानी हो?" जैसे संवाद काव्यात्मक होते हुए भी दर्शक के विचारों को झकझोरने वाले थे। 
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