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पुस्तक समीक्षा | मांडवी का परिताप : अछूते विषय पर अनूठा उपन्यास | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण
आज 13.05.2025 को 'आचरण' में प्रकाशित - पुस्तक समीक्षा
पुस्तक समीक्षा
मांडवी का परिताप : अछूते विषय पर अनूठा उपन्यास
समीक्षक - डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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उपन्यास - मांडवी का परिताप
लेखिका - डाॅ. संध्या टिकेकर
प्रकाशक - जे.टी.एस. पब्लिकेशन्स, वी 508, गली नं.17, विजय पार्क, दिल्ली - 110053
मूल्य - 795/-
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प्रायः यह होता आया है कि बहु प्रचलित कथाओं एवं प्रसंगों के प्रमुख पात्र साहित्य की विभिन्न विधाओं में स्थान पा लेते हैं तथा उन पर बार-बार लिखा जाता है किन्तु कुछ पात्र अछूते रह जाते हैं। उनके प्रति किसी का ध्यान ही नहीं जाता है। श्रीराम कथा की ऐसी ही एक पात्र है मांडवी। मांडवी के जीवन पर बहुत कम लिखा गया। स्वतंत्र रूप से तो लगभग बिलकुल भी नहीं। किन्तु मराठी और हिन्दी की समर्थ लेखिका डाॅ संध्या टिकेकर ने मांडवी को साहित्य के केन्द्र में लाने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। डाॅ संध्या टिकेकर ने मांडवी पर उपन्यास लिख कर उसकी पीड़ा को गहराई से मुखर किया है। ‘‘मांडवी का परिताप’’ मांडवी के जीवन पर आधारित संवादात्मक शैली का उपन्यास है। यह उपन्यास मांडवी के तेजस्वी और धैर्यपूर्ण जीवन को मार्मिक, कारुणिक, और हृदयस्पर्शी ढंग से सामने रखता है।
डाॅ. संध्या टिकेकर जो मूलतः कवयित्री एवं अनुवादक हैं तथा मराठी भाषी हैं, उनके द्वारा अपने प्रथम उपन्यास के लिए ‘‘मांडवी’’ को चुनना और वह भी हिन्दी भाषा में लेखन के लिए, महत्वपूर्ण है। यूं भी जब एक लेखिका किसी स्त्री पात्र के बारे में लिखती है तो वह स्त्री मर्म की अतल गहराइयों तक सुगमता से जा पहुंचती है। उसके लिए अपने पात्र में कायान्तरित होना अधिक आसान होता है क्यों कि कहीं न कहीं वह अपने स्त्री पात्र की भावनाओं से सघनता से जुड़ जाती है। मैं व्यक्तिगत रूप से डाॅ. संध्या टिकेकर जी की साहित्यिक अभिरुचि से हमेशा प्रभावित रही हूं। फिर जब उन्होंने मेरे उपन्यास ‘‘शिखण्डी: स्त्री देह से परे’’ का मराठी में अनुवाद किया तो मैं उनकी शब्द संपदा की समृद्धि से और अधिक परिचित हुई। फिर जब उन्होंने मुझसे यह चर्चा की कि वे मांडवी पर एक उपन्यास लिख रही हैं तो मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई। मुझे पूरा विश्वास था कि जब वे मांडवी पर उपन्यास लिखेंगी तो पूरे लगन के साथ लिखेंगी और एक अच्छी कृति हिन्दी साहित्य को देंगी। डाॅ. संध्या टिकेकर ने मांडवी के अंतद्र्वन्द्व एवं मनोविश्लेषण को जिस तरह अपने इस उपन्यास में प्रस्तुत किया है वह मांडवी के व्यक्तित्व को बाखूबी व्याख्यायित करता है। लेखिका ने फ्लैशबैक पद्धति प्रयोग में लाते हुए मांडवी की बाल्यावस्था से युवावस्था तक के जीवन को सुंदर ढंग से पिरोया है। जबकि मांडवी रामकथा की एक ऐसी पात्र रही है जिसके बारे में बहुत विस्तार से विवरण नहीं मिलता है। अतः लेखिका के द्वारा मांडवी को सम्पूर्णता के साथ अपने उपन्यास में प्रस्तुत करना प्रशंसनीय कार्य है।
रामकथा एक ऐसी कथा है जिसे विश्व भर में रुचिपूर्वक पढ़ा गया तथा विभिन्न भाषाओं में, विविध संस्कृतियों में उसे अपने-अपने ढंग से लिखा गया। आदिकवि महर्षि वाल्मीकि द्वारा संस्कृत में ‘‘रामायण’’ की रचना के बाद विश्वभर में 300 से अधिक रामायण लिखी गईं। इनमें से कुछ संस्कृत में लिखी गईं तो कुछ अन्य भारतीय भाषाओं में, तो कुछ विश्व की चुनिंदा भाषाओं में।
बौद्ध तथा जैन में भी रामकथा को अपने रूप में अपनाया गया। अनेक लेखकों द्वारा लिखी जाने के कारण ही मुख्यतः मूल कथा में परिवर्तन तथा परिवर्द्धन होता रहा, जिससे कथानक का स्वरूप कुछ-कुछ बदलता भी रहा। इसके अतिरिक्त कुछ स्थानीय भावनाएं एवं प्रथाएं भी इन काव्यों में जुड़ती गईं जिसके कारण मूल-मूल कथा में परिवर्तन होते गए। रामकथा जिन प्रमुख भारतीय भाषाओं में लिखी गई, उनमें हिन्दी में लगभग 11, मराठी में 8, बांग्ला में 25, तमिल में 12, तेलुगु में 12 तथा उड़िया में 6 रामायणें मिलती हैं। इसके अतिरिक्त ‘‘रामायण’’ पर आधारित हिंदी में लिखित गोस्वामी तुलसीदास कृत ‘‘रामचरित मानस’’ को उत्तर भारत में विशेष स्थान प्राप्त है। संस्कृत, गुजराती, मलयालम, कन्नड, असमिया, उर्दू, अरबी, फारसी आदि भाषाओं में भी रामकथा लिखी गई। महाकवि कालिदास, भास, भट्ट, प्रवरसेन, क्षेमेन्द्र, भवभूति, राजशेखर, कुमारदास, विश्वनाथ, सोमदेव, गुणादत्त, नारद, लोमेश, मैथिलीशरण गुप्त, केशवदास, समर्थ रामदास, संत तुकडोजी महाराज आदि चार सौ से अधिक कवियों तथा संतों ने अलग-अलग भाषाओं में राम तथा ‘‘रामायण’’ के दूसरे पात्रों पर पद्य रचना की है। स्वामी करपात्री ने ‘‘रामायण मीमांसा’’ की रचना करके उसमें रामगाथा का एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विवेचन दिया। वर्तमान में प्रचलित बहुत से राम-कथानकों में आर्ष रामायण, अद्भुत रामायण, कृत्तिवास रामायण, बिलंका रामायण, मैथिल रामायण, सर्वार्थ रामायण, तत्वार्थ रामायण, प्रेम रामायण, संजीवनी रामायण, उत्तर रामचरितम्, रघुवंशं, प्रतिमानाटकम्, कम्ब रामायण, भुशुण्डि रामायण, अध्यात्म रामायण, राधेश्याम रामायण, श्रीराघवेंद्रचरितं, मन्त्र रामायण, योगवाशिष्ठ रामायण, हनुमन्नाटकं, आनंद रामायण, अभिषेकनाटकं, जानकीहरणं आदि मुख्य हैं। विदेशों में भी तिब्बती रामायण, पूर्वी तुर्किस्तानकी खोतानीरामायण, इंडोनेशिया की ककबिनरामायण, जावा का सेरतराम, सैरीराम, रामकेलिंग, पातानीरामकथा, इण्डोचायनाकी रामकेर्ति (रामकीर्ति), खमैररामायण, बर्मा (म्यांम्मार) की यूतो की रामयागन, थाईलैंड की रामकियेन आदि रामकथा पर आधारित हैं। वस्तुतः असत्य पर सत्य की और अन्याय पर न्याय की विजय की धारणा को सुदृढ़ करने वाली यह रामकथा सभी को प्रभावित करती है तथा हृदय में आशा का संचार करती है।
यूं तो रामकथा के पात्रों पर स्वतंत्र रूप से साहित्य भी रचे गए हैं किन्तु कई पात्र उपेक्षा के शिकार रहे। अधिकतर श्रीराम, सीता और लक्ष्मण पर गद्य और पद्य पुस्तकें लिखी गईं, शेष पात्र लगभग अनछुए रह गए। मैथिली शरण गुप्त द्वारा ‘‘साकेत’’ लिखे जाने तक उर्मिला भी एक उपेक्षित पात्र रही। जहां तक उपन्यास लिखे जाने का प्रश्न है तो मृदुला सिन्हा के ‘‘सीता पुनि बोल’’,‘‘परितप्त लंकेश्वरी’’ और ‘‘अहल्या उवाच’’, रामकिशोर मेहता का ‘‘पराजिता का आत्मकथ्य’’, आनंदनीलकंठन का ‘‘वानर’’ और डॉ. ममतामयी चौधरी का ‘‘वैश्रवणी’’ उपन्यास महत्वपूर्ण रहा। फिर भी रामकथा की एक विशिष्ट पात्र मांडवी बार-बार हाशिए पर रही। मांडवी अयोध्या के राजा दशरथ की पुत्रवधु और श्रीराम के भाई भरत की पत्नी थी। वह सीता की चचेरी बहन थी। रामकाव्य में उसका चरित्र यद्यपि संक्षेप में ही है, पर वह पति-पारायणा एवं साध्वी नारी के रूप में चित्रित की गई है। उसके चरित्र में अनुराग-विराग एवं आशा-निराशा का विचित्र द्वन्द्व है। वह संयोगिनी होकर भी वियोगिनी-सा जीवन व्यतीत करती है। वह भरत के त्याग को समर्थन देती है। इस संबंध में मैथिली शरण गुप्त ने ‘‘साकेत’’ में लिखा है-
और मैं तुम्हें हृदय में थाप, बनूंगी अर्ध्य आरती आप ।
विश्व की सारी कांति समेट, करूंगी एक तुम्हारी भेंट।।
लक्ष्मण की भांति भरत श्रीराम के साथ वनवास नहीं जा सके किन्तु उन्होंने उस दौरान न तो सिंहासन की ओर देखा और न तो अपने सुख को महत्व दिया। मांडवी ने भी भरत को पूरा सहयोग दिया। किन्तु परिस्थितियों और परिस्थितियों से उपजी विडम्बनाओं के प्रति मांडवी के मन में परिताप रहा कि काश! वह समूचे घटित प्रसंग को रोक पाती, वह अयोध्या के राजमहल से ले कर जन-जन तक का दुख मिटा पाती।
‘‘मांडवी का परिताप’’ एक ऐसी विलक्षण युवती की कथा है जो महाचरित्रों के बीच अपनी उपस्थित दर्ज़ कराती है। वह अपनी बाल्यावस्था से ही विशेष चिंतनयुक्त है। उसमें मानवीय चरित्र के विश्लेषण तथा पूर्वानुमान की अद्भुत क्षमता है। वह अपनी सबसे बड़ी बहन सीता के सुख और दुख दोनों से स्वयं को संबद्ध पाती है। वह अपनी बहनों उर्मिला और श्रुतिकीर्ति की भावनाओं को तत्काल पढ़ लेती है। श्रीराम, सीता एवं लक्ष्मण के वनगमन के बाद उर्मिला एवं श्रुतिकीर्ति के साथ ही अपनी तीनों सासू मांओं कौशल्या, सुमित्रा, और कैकेयी का भी ध्यान रखती है। वह दशरथ की अथाह पीड़ा को भी महसूस करती है और हर पल यही सोचती है कि जो घटित हुआ, वह नहीं होना चाहिए था। लेखिका ने मांडवी के बहाने तत्कालीन स्त्री समाज के चित्र को सुंदरता से वर्णित किया है। यह उपन्यास श्रीराम के युग में समाज और स्त्री के समीकरण को भी सुलझे हुए तरीके से सामने रखता है। शक्ति-संपन्ना एवं स्वाभिमानी मांडवी के चिंतन के विभिन्न पहलू पाठक बारीकी से जान सकेगा। उपन्यास का समूचा कलेवर पांच शीर्षकों में विभक्त है- प्रतीक्षा, स्मृतियां, व्याकुलता, प्रसन्नता एवं परिताप। इन्हीं पांचों अध्यायों में विस्तारित है मांडवी की जीवन-कथा। विविध घटनाक्रम के साथ स्त्री के वैचारिक अस्तित्व का सुंदर शब्दांकन है इस उपन्यास में। विवाह के पूर्व मांडवी के चरित्र में एक स्वाभाविक अल्हड़ता है। नटखटपन है। फिर भी वह विचारशील है। अपनी बहनों के प्रति चिन्तायुक्त। सभी के लिए शुभेच्छाएं है उसके हृदय में इसलिए वह सभी का भला चाहती है। विवाह के बाद अपने दायित्वों से युक्त गंभीरता उसमें आ जाती है और एक दायित्वबोध से परिपूर्ण पत्नी बन कर वह भरत के हर निर्णय में सहगामिनी बनती है।
इस उपन्यास में रोचकता है। प्रवाह है। इसकी शैली पाठक को बांधे रखने में सक्षम है। पात्रों की सटीक स्थापना है इस उपन्यास में। मुझे विश्वास है कि उनका यह प्रथम उपन्यास पाठकों को पसंद आएगा।
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