Wednesday, March 22, 2023

चर्चा प्लस | बदलती जलवायु और संकट से घिरता मानवाधिकार | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
बदलती जलवायु और संकट से घिरता मानवाधिकार
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                   
       दोनों ज्वलंत विषय हैं - जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकार। क्या दोनों विषयों के बीच कोई संबंध है? हां, हम कह सकते हैं कि मानव जीवन उनकी जलवायु पर निर्भर करता है। लेकिन केवल एक ही संबंध नहीं है। जलवायु और मानव जीवन कई तरह से संबंधित हैं। जलवायु में परिवर्तन मानव अधिकारों को हर तरह से प्रभावित कर रहा है। अतः यदि जलवायु में हानिकारक परिवर्तन होते हैं, तो मानव जीवन में गंभीर परिवर्तन स्वतः ही हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि जलवायु परिवर्तन मानव जीवन और उसके अधिकारों के लिए अच्छा नहीं है।    
मध्यप्रदेश के सागर जिले में एक गांव है पटना बुजुर्ग। बहुत छोटा-सा। प्यारा-सा। उस गांव से गुजरते समय मुझे सड़क के दोनों ओर मौजूद छोटे-छोटे खेतों की सुंदरता को देखने का मौका मिला। गेहूं की बालियां अपनी छटा बिखेर रही थीं। मार्च का मध्य और बादलों से ढंका आसमान। बारिश की प्रबल संभावना। यह मौसम बारिश का नहीं होता है फिर भी बादलों का इस तरह घुमड़ना बारिश की चेतावनी दे रहा था। घूमने के हिसाब से मौसम मनोरम था। न गरमी और न ठंड। हल्की नमी लिए हुए हवाएं। मैंने खेतों में गेहूं की उस फसल को देखा जो कहीं पक कर तैयार हो चुकी थी, तो कहीं अधपकी थी। किसान अपनी पकी हुई दिख रही फसल की कटाई नहीं कर पाए थे। वहीं गेहूं की अधपकी बालियों में हरापन साफ दिखाई दे रहा था। उनके पकने में अभी समय था। मुझे उन फसलों को देखते हुए इस बात की चिन्ता हुई कि यदि तेज बारिश हुई तो इन फसलों का क्या होगा? और कहीं अगर ओले गिर गए तो ये फसल तो पूरी तरह से मिट जाएगी। यह सोच कर भी मुझे सिहरन हुई। मैं देख रही थी वहां की जमीन को। पथरीली जमीन को खेती लायक बनाने में किसानों ने कितनी अधिक मेहनत की होगी, इसका अंदाज़ा भी मैं नहीं लगा सकती थी। लाल मुरू जैसी मिट्टी वाली पथरीली जमीन। पुराने जंगल की पथरीली जमीन को खेती योग्य बना कर खेती करने वाले किसान की मेहनत को हर कोई नहीं समझ सकता है। जो फसल मौसम के आसन्न संकट तले मेरे सामने लहलाहती दिखाई पड़ रही थी उसे उगाने में भी किसानों का अथक श्रम और पूंजी लगी होगी। कुछ छोटे किसानों को तो अपनी पूरी पूंजी लगानी पड़ी होगी। उन्हें आशा होगी कि जब अच्छी फसल आएगी तो उनकी पूंजी उन्हें लाभ के साथ वापस मिल जाएगी। लेकिन मौसम में होने वाले अप्रत्याशित परिवर्तन के कारण उनकी यह आशा पूरी हो सकेगी? सच तो यह है कि इस बारे  में सोचने में भी मुझे डर लगता है।

एक समय था जब मैं फील्ड जर्नलिज्म में थी। उस दौर में मैंने मध्यप्रदेश के ही पन्ना जिले में नेताओं और अधिकारियों के समूह के साथ मौसम प्रभावित खेतों के दौरे किए थे। उन दिनों मौसम में इतने अधिक परिवर्तन नहीं होते थे। फिर भी चने और गेहूं के पौधों को टूट कर मिट्टी में मिलते हुए मैंने देखा था। वह स्मृतियां आज भी मुझे डराती हैं। मुरझाए चेहरे और आंखों में आंसू भरे किसान। जिनका सबकुछ लुट चुका हो। सरकारी सहायता उन्हें सांत्वना ही दे सकती थी, उनकी नष्ट हुई फसल और मेहनत उन्हें नहीं लौटा सकती थी। मैं ऐसे दृश्य और नहीं देखना चाहती हूं क्योंकि एक फसल एक किसान का जीवन तो होती ही है, साथ ही हर व्यक्ति की भूख का ईलाज और देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती भी होती है।
जिन्दा रहने के लिए भोजन और पानी मिलना मनुष्य का सबसे पहला अधिकार है। अतः यदि जलवायु परिवर्तन के कारण फसलों के चक्र पर प्रभाव पड़ रहा है। मौसम के अचानक परिवर्तन के कारण फसलों को नुकसान पहुंच रहा है तो मनुष्य को भोजन मिलने का उसका पहला और प्राथमिक अधिकार ही नहीं मिल पाएगा। मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ावा देने के पीछे यह भी एक कारण है कि परिवर्तित होती जलवायु में फसल की उपलब्धता बनी रहे। जिन फसलों को उगाने में कम पानी की जरूरत पड़ती है तथा जिनको एक साल में दो या तीन बार उगाया जा सकता है, उन फसल को किस्मों को अपनाने के लिए किसानों को प्रेरित किया जा रहा है। ताकि फसल की उपलब्धता बनी रहे और किसी को भूखा न रहना पड़े।

कड़वी सच्चाई यह है कि प्रत्येक वर्ष होने वाली मानव मौतों में से लगभग एक-तिहाई के लिए गरीबी संबंधी कारण जिम्मेदार होते हैं। जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव के कारण भविष्य में यह स्थिति और भी बदतर होगी। गरीबों में महिलाओं और लड़कियों का अनुपात भी अधिक है, जिसके कारण वे इस समस्या के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। उदाहरण के लिए, ग्रामीण भारत में, भोजन और पानी प्रदान करना विशेष रूप से महिलाओं की जिम्मेदारी है। अतः जलवायु परिवर्तन का भूमि की उपज, जल की उपलब्धता और खाद्य सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभावों का सीधा प्रभाव महिलाओं पर पड़ता है। यानी जिस उम्र में लड़कियों को अपनी पढ़ाई और बचपन की गतिविधियों पर ध्यान देना चाहिए, उन्हें अपने घरों में दूर के जलाशयों से पानी लाना पड़ता है। गर्भवती महिला या प्रसूता को जब आराम की जरूरत होती है तो उसे अपने सिर पर पानी का घड़ा ढोना पड़ता है। भले ही राज्य सरकारें नलकूप खोदती हों, लेकिन जलवायु और मौसम में बदलाव के कारण हर साल जल स्तर गिर रहा है। यह स्थिति जहां एक ओर महिलाओं के मानवाधिकारों पर आघात कर रही है, वहीं दूसरी ओर पुरुषों के पेयजल के प्राथमिक अधिकार पर भी संकट बढ़ा रही है।
भले ही जलवायु के प्रभाव धीरे-धीरे हमारे लिए आम बात होते जा रहे हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली प्राकृतिक आपदाएं और चरम मौसम की घटनाएं पहले से ही उन आबादी पर कहर बरपा रही हैं और आने वाले समय में बढ़ेंगी। इसलिए, अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वार्ताओं को पर्यावरण की रक्षा और भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक संसाधनों को बचाने पर ध्यान देना चाहिए। यह भी महत्वपूर्ण है कि वे दुनिया भर में जोखिम वाली आबादी की तत्काल विकास चुनौती को संबोधित करें। इसके लिए किसी भी देश को विशेष बंधनों में नहीं बांधा जाना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि जलवायु परिवर्तन पर बहस समानता, ऊर्जा तक पहुंच और साझेदारी पर केंद्रित हो। विकास न केवल एक आर्थिक और सामाजिक आवश्यकता है, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन के संबंध में अपनाया गया सबसे अच्छा समाधान भी है। कमजोर आबादी के जीवन, स्वास्थ्य और आजीविका के मौलिक मानवाधिकारों की रक्षा के लिए, यह जरूरी है कि हम ऐसे विकास को बढ़ावा दें जो ऐसे विशेष समूहों और उनकी संपत्तियों के लचीलेपन को बढ़ाता है, जबकि साथ ही वह जलवायु परिवर्तन के उपायों को सफलतापूर्वक लागू कर सकता है। .
वास्तव में, जलवायु परिवर्तन हमारी पीढ़ी के मानवाधिकारों के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है, जो दुनिया भर में जीवन, स्वास्थ्य, भोजन और व्यक्तियों और समुदायों के जीवन के पर्याप्त स्तर के मौलिक अधिकारों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है। इसी वर्ष फरवरी 2023 में दोहा, कतर में आयोजित जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकार-प्रभाव और उत्तरदायित्व पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, एनएचआरसी, भारत के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने सभी देशों को बताया कि ग्रीनहाउस मानव-प्रेरित विकास जलवायु परिवर्तन का कारण बन रहा है जो मानवाधिकारों के बारे में गंभीर चिंता पैदा करता है। विकासशील देशों से समान उत्सर्जन मानकों का कड़ाई से पालन करने की अपेक्षा करना अनुचित है। उन्हें अक्सर अधिक संसाधनों और प्रौद्योगिकी की आवश्यकता होती है। इसे पूरा करने के लिए वैश्विक समुदाय को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण क्षमता निर्माण को प्राथमिकता देनी होगी। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि एक समावेशी जलवायु परिवर्तन कार्रवाई में ऐसी नीतियां बनाना शामिल है जो निष्पक्ष और सुलभ और न्यायसंगत हों। इसके लिए सबसे कमजोर और सीमांत लोगों सहित सभी हितधारकों की जरूरतों और दृष्टिकोणों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।

कृषि कार्यों से पलायन और विस्थापन के परिणामों का ही विकराल रूप हैं जलवायु शरणार्थी। सूडान जैसे देश इस समस्या को झेल रहे हैं। आफ्रिकी देशों से ही नहीं, बलिक अब लगभग हर देश में कमोबेश यही स्थिति बनती जा रही है कि जलवायु परिवर्तन के कारण लोगों को अपनी मूल भूमि छोड़ कर दूसरी जगह जा कर शरण लेनी पड़ रही है।
पर्यावरण संरक्षण आमतौर पर मानवाधिकार संधियों में शामिल नहीं रहा है। बल्कि पर्यावरण संरक्षण उन अधिकारों से प्राप्त होता है जो उन संधियों की रक्षा करते हैं, जैसे जीवन, भोजन, पानी और स्वास्थ्य के अधिकार। इसीलिए अब यह आवश्यकता महसूस की जाने लगी है कि जलवायु परिवर्तन नीति-निर्माण के संदर्भ में मानवाधिकार कानून बुनियादी मानवाधिकारों के न्यूनतम मानकों को स्थापित करने में मदद मिल सकती है, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय जलवायु समस्याओं के अनुकूलन उपायों के रूप में अपनाया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के संदर्भ में स्थानीय ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को बढ़ावा देने के साथ जलवायु संबंधी नीतियों और कार्यक्रमों में मानवाधिकार के मुद्दों को भी शामिल करना होगा। अगर अब भी इस पर गौर नहीं किया गया और इसे यूं ही अनदेखा किया गया तो आने वाले समय में तापमान इस कदर बढ़ जाएगा कि मानव जीवन पर संकट आ सकता है। भयावह सूखा पड़ सकता है, समुद्री जल स्तर बढ़ सकता है और इन सब प्राकृतिक आपदाओं के फलस्वरूप कई प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं। आज पूरी दुनिया पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पड़ रहा है। जलवायु में होने वाला यह परिवर्तन ग्लेशियर व आर्कटिक क्षेत्रों से लेकर उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों तक को प्रभावित कर रहा हैं। यह प्रभाव अलग-अलग रूप में कहीं ज्यादा तो कहीं कम पड़ रहा है। भारत का सम्पूर्ण क्षेत्रफल करीब 32.44 करोड़ हेक्टेयर है। इसमें से 14.26 करोड़ हेक्टेयर में खेती की जाती है। अर्थात देश के सम्पूर्ण क्षेत्र का 47 प्रतिशत हिस्से में खेती होती है। मौसम परिवर्तन देश की 80 प्रतिशत जनसंख्या को प्रभावित कर सकता है।

जलवायु परिर्वतन का एक और क्षेत्र पर गंभीर असर पड़ रहा है जिसकी ओर कम ही लोगों का ध्यान जाता है। यह क्षेत्र है पशुपालन का। भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या का पोषण करने में कृषि के साथ-साथ हमारे पशुधन का बहुत बड़ा योगदान रहा है, परन्तु निरंतर हो रहे जलवायु परिवर्तन से तापमान में काफी तबदीली हुई है जिससे भारत ही नहीं, दुनिया भर के पशुधन गंभीर रूप से प्रभावित हो रहे हैं। वातावरणीय तापमान में तीव्र परिवर्तन से जानवरों का स्वास्थ्य, प्रजनन, पोषण इत्यादि प्रभावित होता है, जिससे पशु उत्पाद तथा इनकी गुणवत्ता में भी गिरावट होती है। अन्य जानवरों की तुलना में संकर डेयरी मवेशी जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील होते हंै जिनकी संख्या भारत में अधिक है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ते हुए तापमान, अनियमित मानसून, भयंकर ठंड, ओले, तेज हवा आदि जानवरों के स्वास्थ्य, शारीरिक वृद्धि और उत्पादकता को प्रभावित करते हैं। मौसम में तनाव के कारण डेयरी पशुओं की प्रजनन क्षमता कम हो रही है। परिणामस्वरूप गर्भधारण दर में भी काफी गिरावट हो रही है। जलवायु परिवर्तन प्रतिरक्षा प्रणाली कार्यक्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। इससे थनैला रोग, गर्भाशय की सूजन तथा अन्य बीमारियों के जोखिम में वृद्धि हो रही है। भारत में उष्मीय तनाव पशु उत्पादकता को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कारक है। द फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाईजेशन (एफएओ) के शोध के अनुसार, ‘‘पशुपालकों को पिछड़ा और अनुत्पादक माना जाता है और ऐतिहासिक रूप से प्रतिकूल कानूनों की वजह से उन्हें कम कर के आंका गया है। पशुचारक संसाधन की कमी और गतिशीलता पर प्रतिबंधों के प्रति संवेदनशील होते हैं। चूंकि उन्हें उत्पादक क्षेत्रों से बाहर कर दिया जाता है, इसलिए उन्हें सीमित उपलब्ध चराई संसाधनों पर निर्भर होना पड़ता है। गतिशीलता की रक्षा और विनियमन करने वाले कानून के अभाव में, पशुचारक अन्य संसाधन उपयोगकर्ताओं और राज्य के साथ संघर्ष में फंस जाते हैं।’’

देखा जाए तो जलवायु में इस तरह के भयावह परिवर्तनों के लिए हम खुद ही जिम्मेदार हैं। वास्तव में हमें जलवायु परिवर्तन और मानव अधिकारों के बीच के अंतर्संबंध को समझना होगा और उसी के अनुसार सरकारी और व्यक्तिगत योजनाएं बनानी होंगी। क्योंकि हम मानें या न मानें, जलवायु परिवर्तन के कारण मानवाधिकारों का क्षरण होना शुरू हो गया है और इस क्षरण को रोकना जरूरी है।   
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नवरात्रि, गुड़ी पड़वा एवं नववर्ष विक्रम संवत की हार्दिक शुभकामनाएं - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

मित्रों, माता के नौ रूप और नवसंवत्सर आप सभी को शुभफलदायी हों 🙏🚩💐🌷
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Tuesday, March 21, 2023

पुस्तक समीक्षा | सोलह आने सच | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण


प्रस्तुत है आज 21.03.2023 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई लेखक ख़ुर्रम शहज़ाद नूर के कहानी संग्रह "सोलह आने सच" की समीक्षा...
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पुस्तक समीक्षा
दैनिक जीवन के सच से उद्वेलित करती कहानियां
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कहानी संग्रह - सोलह आने सच
लेखक       - ख़ुर्रम शहज़ाद नूर
प्रकाशक     - सत्साहित्य प्रकाशन, 205 बी, चावड़ी बाज़ार, दिल्ली-110006
मूल्य           - 250/-
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        हिन्दी कथाजगत के लिए ख़ुर्रम शहज़ाद नूर एक नया नाम हो सकता है लेकिन उनके प्रथम कहानी संग्रह ‘‘सोलह आने सच की कहानियां’’ किसी भी तरह से किसी नए हस्ताक्षर की कहानियां नहीं कही जा सकती हैं। ये कहानियां आम आदमी के दैनिक जीवन के सच का ऐसा प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करती हैं जिनमें हर पाठक खुद की उपस्थिति अनुभव कर सकता है। संग्रह में कुल 18 कहानियां हैं। कहानियों की चर्चा करने से पहले कथाकार के जीवनानुभव पर दृष्टिपात करना दिलचस्प रहेगा। जैसा कि बल्र्ब पर परिचय दिया गया है कि ख़ुर्रम शहज़ाद नूर भारतीय नौसेना में ‘‘कमोडोर नूर’’ के नाम से प्रसिद्ध रहे हैं। वे नौसेना की शिक्षा शाखा में रहते हुए पनडुब्बी-रोधी युद्धशैली के महाप्रशिक्षक रहे हैं। नवंबर 2022 में कमोडोर नूर के सागर प्रवास के दौरान मेरी उनसे अनौपचारिक भेंट हुई। उस समय वे एडमिरल के पद से सेवानिवृत्त हो चुके थे तथा पूर्णकालिक साहित्य सेवा का मन बना चुके थे। एक सहज, सरल स्वभाव के व्यक्ति के रूप में कमोडोर नूर से भेंट उल्लेखनीय रही। लेकिन जब मैंने उनका कहानी संग्रह ‘‘सोलह आने सच’’ पढ़ा तो हिन्दी और कथाशिल्प पर उनकी पकड़ ने मुझे चैंका दिया। वैसे वे बेहतरीन ग़ज़लकार है, कवि हैं और उनके तीन काव्य संग्रह ‘‘ख़्वाब, ख़्याल और ख़्वाहिशें’’, ‘‘रेशा-रेशा रेशम सा’’ तथा अंग्रेजी कविताओं का संग्रह ‘‘नाॅस्टेल्जिया’’ प्रकाशित हो चुका है।
‘‘सोलह आने सच’’ की कहानियां जीवन की रोज़मर्रा की घटनाओं से जोड़ती हैं। हर कहानी का अपना एक अलग रंग है, अलग संवाद है लेकिन आधारभूत रूप से ये सभी कहानियां उन छोटी-बड़ी परिस्थितियों को रेखांकित करती हैं जिन पर झुंझलाते, खींझते और कभी-कभी मुस्कुराते हुए व्यक्ति पार पा लेता है। संग्रह की पहली कहानी है ‘‘पार्किंग’’। दैनिक जीवन से जुड़ा हुआ एक बड़ा मसला। महानगरों में अपने चैपहिया वाहन के लिए पार्किंग-स्थल में सही जगह हथिया लेना किसी गलाकाट प्रतियोगिता से कम नहीं होता है। इस चक्कर में अच्छा-भला इंसान भी ढीठ बन जाता है। लेकिन कभी-कभी यह ढिठाई कितनी मंहगी पड़ती है, इस सच्चाई को घटनाक्रम को मोड़ देते हुए इसे बड़े ही रोचक ढंग से कथाकार ने प्रस्तुत किया है। बिना किसी उपदेशात्मक भाव के यह कहानी बहुत कुछ सिखा जाती है।
दूसरी कहानी है ‘‘संयोग’’। यह एक छोटी कहानी है लेकिन इसमें संवेदनाओं का एक ऐसा बड़ा धमाका है कि जो विचारों की चूलें हिला देने की दम रखता है। एक युवा अपनी वृद्धा मां से छुटकारा पाने के लिए उसे वृद्धाश्रम में छोड़ने जाता है। वहां वृद्धाश्रम के साथ ही अनाथश्रम भी था। इस अनाथाश्रम से उस युवक को जो जानकारी मिलती है वह उसे उसके जीवन के संयोग के उस दरवाज़े पर ला खड़ा करती है जिसके भीतर झांकते ही वह अवाक रह जाता है।
तीसरी कहानी है ‘‘कर्ज’’। यह कहानी सत्तर के दशक के परिवेश का स्मरण कराती हुई दो भाइयों के परस्पर प्रेम का कथानक प्रस्तुत करती है। आज चार पहिया गाड़ियों की भीड़ के समय में सत्तर के दशक की लूना मोपेड के महत्व को समझ पाना भले ही कठिन हो लेकिन एक बड़े भाई का अपने छोटे भाई के प्रति प्रेम को समझना कठिन नहीं है, बशर्ते हृदय की पारिवारिक संवेदनाएं मरी नहीं हों। भौतिक सुख और भाई के सुखद भविष्य में से किसी एक को चुनना हो तो एक भाई से यही अपेक्षा की जाती है कि वह अपने छोटे भाई के सुखद भविष्य को ही चुनेगा। इस कहानी का कथानक बेशक़ नूतन नहीं है लेकिन इसका शिल्प इसे नूतन बनाता है।
      संग्रह में एक कहानी है ‘‘शब्बो’’। इस कहानी में बालमन की अवधारणाओं के दीर्घकालिक प्रभाव को बड़ी सुन्दरता और स्वाभाविकता से सामने रखा गया है। यह कहानी एक ऐसे भाई की ओर से है जिसकी एक छोटी बहन ‘लिजु’ का डिलेवरी आॅपरेशन उसकी दूसरी छोटी बहन डाॅ. शीबू कर रही है। उसकी बहनें उसे ‘भय्यू’’ कह कर पुकारती हैं। आॅपरेशन थियेटर के बाहर बैठे भय्यू को याद आता है कि -‘‘बचपन में मेरी दोनों बहनों शीबू और लिजु के बीच खेल-खेल में बड़ा ही कमाल का बंटवारा हुआ था।
पापा शीबू के-मम्मी लिजु की
भैय्यू शीबू के - भाईजी लिजु के
शीबू ददिहाल वालों की चहेती - लिजु ननिहाल वालों की
खुली कमांडर जीप शीबू की - कार लिजू की
कुत्ता जैकी शीबू का - बिलाव मीकू लिजु का
.... ओर नवीनतम खिलौनों में -
गिटार शीबू का- और गुड़िया शब्बो लिजु की।’’
- यह बचपने भरा बंटवारा कब भावनात्मक विकृति का रूप ले बैठा, इसका अहसास उन बच्चों को नहीं हुआ। अब उसी विकृति का भय आॅपरेशन थियेटर के बाहर बैठे भय्यू को डरा रहा था कि कहीं बहनों के बीच का भयावह मतभेद जीवन पर भारी न पड़ जाए। यह कहानी एक सस्पेंस के साथ चर्मोत्कर्ष पर पहुंचती है।
‘‘कशिश’’ एक शिक्षक, एक शिक्षिका और एक छात्रा के बीच ‘‘लव क्रश’’ की दिलचस्प कहानी है। शिक्षक को छात्रा की काॅपी में रखा हुआ प्रेमपत्र मिलता है जिसके अंत में पूरा नाम लिखने के बजाए मात्र एक अक्षर ‘‘के’’ लिखा गया था। अपने युवा शिक्षक के प्रति किसी छात्रा के मन में प्रेमभाव जाग उठना कोई अपवाद घटना नहीं है। कच्ची आयु में इस तरह के ‘‘क्रश’’ हो जाते हैं जो समय के साथ समाप्त भी हो जाते हैं। लेकिन कहानी में बहुत कुछ ऐसा है जो नेपथ्य में चलता रहता है और अंत में प्रकट होता है। और साथ ही भेद खुलता है ‘‘के’’ का।
‘‘काले तिल वाली लड़की’’ यह कहानी सच का गहरा शेड किए हुए हैं। इस कहानी में मुंबई के कुलाबा के उन गलियों का दृश्य है जो मानवीय गिरावट को बेनकाब करता है। कहानी में एक दृश्य है -‘‘इन सबसे अलग कुलाबा की इन गलियों का एक काला और खिलौना सच भी-  यहां की वेश्यावृत्ति।  यह सब को दिखता है,  फिर भी कोई कुछ नहीं बोलता।  यह इस शहर के दोहरे मापदंडों की सच्चाई है। विक्टोरियन जमाने की इमारतों के ऊंचे ऊंचे स्तंभों से चिपक कर खड़ीं, भड़कीले कपड़ों में और सस्ते में कबसे पुती र्हुइं,  अंधेरी सीढ़ियों वाले और घंटे के हिसाब से कमरा देने वाले,  घटिया होटलों के पास मंडराती और  अपनी ओर भद्दे तरीके से आकर्षित करती यह बदनसीब लड़कियां शाम होते ही दिखाई देने लगती हैं।  ना चाहते हुए भी नजर उन पर पड़ ही जाती है और आपकी नजर जरा सी भी ज्यादा देर को पड़ गई तो समझिए कि आप गए काम से.. क्योंकि कहीं अंधेरे में से एक बीमार सा लड़का प्रगट हो जाएगा और आपसे उस लड़की का मोल भाव ऐसे करने लगेगा जैसे वह लड़की इंसान ना होकर कोलाबा के फुटपाथ पर बिकता हुआ कोई बिकाऊ माल हो।’’
कुलाबा के देह बाजार में बिकने वाली एक लड़की का यह कथन पढ़ने वाले के मन को झकझोर देता है जब वह कहती है - ‘‘जब  बच्ची थी तब वहां नौकरानी का काम किया।  फिर वहीं पर यह बदन बेच बेचकर अम्मा से अपनी आजादी वापस खरीदी।  अब आजाद तो हूं, मगर अब इस शरीर को जिंदा रखने के लिए इसी शरीर को रोज बेचती हूं।’’
यह कहानी उस युवक की भी कहानी है जिसकी बहन बचपन में खो गई थी। वह वैश्या संभावना प्रकट करती है कि वह उसकी खोई हुई बहन हो सकती है। लेकिन युवक जानता है कि यह सच नहीं है। यह कहानी लेखक की मानवीय संवेदना के घनीभूत पक्ष को बखूबी रेखांकित करती है।
‘‘टेढ़ी उंगली’’, ‘‘रिश्ता’’, ‘‘घांेसला’’, ‘‘गायब’’ जैसी कहानियां संग्रह की महत्ता को बढ़ाती हैं। इन सभी कहानियों में समाजविमर्श के साथ ही मनोवैज्ञानिक विमर्श है। पारस्परिक संबंधों की उपादेयता के साथ ही वर्तमान परिवेश का आकलन किया गया है।
संग्रह की शीर्षक कहानी है ‘‘सोलह आने सच’’। यह कहानी टेरो काड्र्स पढ़ कर भविष्य बताने वाले राजू रमानी नामक पात्र के उल्लेख से आरम्भ होती है। राजू रमानी द्वारा की गई दो भविष्यवाणियां सच होने के बाद भी कथानायक टेरो काडर््स की भविष्यवाणियों को सच मानने को तैयार नहीं है। इस कहानी में टेरो के समानांतर समुद्रविज्ञान से जुड़ी कई ऐसी बातों की जानकारी बड़ी सहजता से दी गई है जो किसी भी पाठक के मन में समुद्रविज्ञान और पर्यावर्णीय ऊर्जा के प्रति उत्सुकता जगा सकती है। कथानायक लक्षद्वीप समूह के कवारत्ती द्वीप पर आयोजित समारोह में सम्मिलित होने के लिए पहुंचा है। जहां उस संयंत्र को मंत्रीजी द्वारा देश को समर्पित किया जाना है ‘‘जो इस टापू पर नमकीन समुद्री जल को एल.टी.टी.डी. (अर्थात् लो टेम्प्रेचर थर्मल डी सैलीनेशन) प्रणाली से पेयजल में परिवर्तित करता है।’’ कथाकार ने इस एल.टी.टी.डी. की प्रक्रिया को भी संक्षेप में चंद पंक्तियों में सहजता से बता दिया है कि -‘‘इस संयंत्र द्वारा समुद्र में उठती लहरों की ऊर्जा से बनी बिजली से चलने वाले एक बड़े निर्वात चैंबर में समुद्र की ऊपरी सतह का गरम पानी कम ताप पर खौलाया जाता है और बनी वाष्प को इकट्ठा कर के गहरे समुद्र से निकले बहुत ठंडे पानी की सहायता से ठंडा कर के बिना नमक वाले पेयजल में परिवर्तित किया जाता है। यह साथ-साथ बिजली भी बनाता है और आसपास की इमारतों में वातानुकूलन भी करता है।’’ यह वैज्ञानिक जानकारी छोटी-छोटी अन्य जानकारियों के साथ बढ़ती हुई एक बार फिर टेरो कार्ड्स रीडर राजू रमानी से होती हुई एक और पात्र जेम्स मैथ्यूज़ तक जा पहुंचती है। फिर एक बार टेरो काडर््स के सच-झूठ का द्वंद्व चलता है जिसे कथानायक अनुभूत तो करता है किन्तु उसका तार्किक वैज्ञानिक मन मानने को तैयार नहीं होता है। अंततः उसके लिए यह तय करना कठिन है कि जो वह देख रहा है, अनुभव कर रहा है वह सोलह आने सच है या नहीं। इस कहानी का रंग संग्रह की अन्य कहानियों से तनिक भिन्न होते हुए भी शिल्प में अन्य कहानियों की भांति ही है।         
कथाकार ख़ुर्रम शहज़ाद नूर के कथालेखन की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि वे कथानक के अंत से ठीक पहले एक ऐसा अनूठा मोड़ देते हैं जिसे ‘‘कहानी में ट्विस्ट’’ कहा जा सकता है। जिससे साधारण-सा लगने वाला कथानक अचानक महत्वपूर्ण बन जाता है, चकाता है और बहुत सारे बिन्दु छोड़ जाता है विचार करने के लिए। उनका यही शिल्प उन्हें हिन्दी के नवोदित कथाकारों के बीच विशिष्ट बनाता है। ‘‘सोलह आने सच’’ कहानी संग्रह निश्चित रूप से पठनीय है। यदि कथाकार नूर अपने कथालेखन को आगे भी ज़ारी रखते हैं तो उनके सफल कथाकार बनने के भविष्य के बारे में उनकी इन कहानियों के आधार पर आश्वस्त हुआ जा सकता है।         
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Monday, March 20, 2023

बड़े भाई स्व. अशोक रायकवार जी को विनम्र श्रद्धांजलि - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

जो चले जाते हैं उनकी
स्मृतियां रह जाती हैं
हमारे साथ, 
और इन्हीं स्मृतियों में रहते हैं
हमारे अपने
तो, हम क्यों सोचें कि वे चले गए
नहीं वे कहीं नहीं गए
वे थे हमारे साथ
वे हैं हमारे साथ
वे रहेंगे हमारे साथ
अपने विचारों के रूप में
हमारे मार्ग दर्शक बन कर...। 🙏

... ये शब्द मेरे अंतर्मन के वे शब्द है जिन्होंने मात्र 13 दिन के अंतराल में मेरी मां और दीदी के जाने के बाद मुझे हिम्मत दी ... ये मेरे भीतर से ही उपजे शब्द जिन्होंने मुझे टूटने से बचाया आज इन्हीं शब्दों को अपनी हार्दिक संवेदनाओं के साथ मैंने सौंपा रायकवार परिवार को ... 
    आज शाम थी स्थानीय रवींद्र भवन में बड़े भाई स्व.अशोक गोपीचंद रायकवार जी श्रद्धांजलि सभा... जिन्हें एक सड़क दुर्घटना ने असमायिक हमसे छीन लिया था.... अशोक भैया मेरी वर्षा दीदी के सहकर्मी रहे, इन दिनों पेंशनर्स समाज का कार्यभार संभाल रहे थे, साथ ही साहित्य और समाज सेवा में भी उनकी गहन रुचि थी... हर व्यक्ति के सुख-दुख में सदा साथ खड़े रहने वाले....
🙏 आपकी उपस्थिति मेरे मानस में सदा बनी रहेगी अशोक भैया 🙏
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🙏 हार्दिक आभार प्रिय बहन Usha Verman इन महत्वपूर्ण पलों को अपने मोबाईल कैमरे से सहेजने के लिए 🙏

पं. ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी जन्मजयंती समारोह | मुख्य अतिथि डॉ (सुश्री) शरद सिंह

"कल (19.03.2023) 115 वें जन्म जयंती पर्व पर पण्डित ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी को सागर साहित्यकार संघ ने याद किया। पण्डित श्री ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी के 115 वें जन्म स्मरण दिवस आदर्श संगीत महाविद्यालय सागर से जे जे फाऊँडेशन वा संस्था श्यामलम सागर ने कवि सम्मेलन का आयोजन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार टीकाराम त्रिपाठी रूद्र ने की तथा मुख्य आतिथ्य सुश्री डा.शरद सिंह का रहा। स्वागत भाषण में साहित्यकार आशीष ज्योतिषी ने दादा ज्योतिषी के जीवन संघर्ष पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में काव्यपाठ करने वाले कवि सुश्री डा.शरद सिंह, पी आर मलैया,पैट्रिस फुसकेले, देवीसिंह राजपूत, अंबर चतुर्वेदी चिंतक,सुनीला सर्राफ, डा चंचला दवे,नम्रता फुसकेले,मुकेश तिवारी,पुष्पेन्द्र दुबे कुमार सागर, आशीष ज्योतिषी,डा नलिन जैन, टीकाराम त्रिपाठी रूद्र रहे।बेहतरीन गीत,गजल,क्षर छंद वा प्रगतिशील कविताओ की प्रस्तुति देकर कवियो ने ज्योतिषी जो को याद किया। कार्यक्रम का संचालन डा नलिन जैन ने किया तथा कार्यक्रम में उपस्थित साहित्यकारो के प्रति आभार श्यामलम अध्यक्ष उमाकांत मिश्र जी ने किया।"
    (- यह समाचार भाई डॉ नलिन जैन की फेसबुक वॉल से साभार 🙏)
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Sunday, March 19, 2023

मुनि क्षमा सागर जी का स्मरण समारोह | मुख्य अतिथि डॉ (सुश्री) शरद सिंह

"मुनि क्षमा सागर की कविताएं समय से संवाद करती हैं। मुनिश्री पूर्णतः आत्मान्वेषी थे।  मुनिश्री ने भारी-भरकम उपदेश नहीं दिए बल्कि अपने अनुभवों से यह बताया कि व्यक्ति किस तरह से आत्मसाक्षात्कार कर सकता है। वे प्रकृति प्रेमी थे इसीलिए उनकी कविताओं में सूर्य, हवा, चिड़ियां बिम्ब के रूप में मौजूद हैं। लेकिन उनकी रचनाओं में प्रकृति के इन तत्वों की उपस्थिति  गहन जीवन दर्शन कराती है। वस्तुतः जिसने मुनि क्षमा सागर की कविताओं में चिड़िया की उपस्थिति के महत्व को समझ लिया मानो उसने मानव जीवन के मूल दर्शन को समझ लिया।" मुख्य अतिथि के रूप में मैंने ये विचार प्रस्तुत किए। 
    अवसर था मुनि क्षमा सागर जी की दो पुस्तकों "आत्मान्वेषी" और "Mind Your Karma" का लोकार्पण तथा उनकी चुनी हुई कविताओं का संग्रह "अपना घर" पर चर्चा समारोह का। 
    यह मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे मुनिश्री से कई बार विभिन्न स्थानों पर भेंट करने का तथा साहित्य चर्चाएं करने का अवसर मिला जैसे सागर में ही अंकुर मंदिर, मोराजी मंदिर, खुरई में, बीना बारह में तथा शाहपुर में उनसे भेंट हुई थी। व्हिच इतने बड़े दार्शनिक थे उतने ही उम्दा साहित्यकार एवं कवि। उनकी कविताओं में चिड़िया की उपस्थिति बहुतायत रही है।  बारे में मैंने कई बार सोचा। चिड़िया ही क्यों? तितली अथवा कोई और पंखोंवाला प्राणी क्यों नहीं? इस चिंतन-मनन किया और मुनिश्री की कविताओं को बार-बार पढ़ा। फिर मुझे समझ में आया कि चिड़िया के रूप में उन्होंने एक अद्भुत बिम्ब तलाशा था। उनकी कविताओं की चिड़िया के मूल में गौरैया है। एक घरेलू पक्षी। जिसे मनुष्यों के बीच रहना है और अपनी अलग दुनिया बसाना है। गौरैया जो बहुत नन्हां, कोमल और असहाय-सा प्रतीत होने वाला सुंदर जीव है, अपनी कर्मठ प्रवृत्ति और लगन से सबको चकित करता रहता है। मुनि क्षमा सागर चिड़िया के बहाने बहुत गहन बातें कही हैं।
       शाहपुर में जब मेरी उनसे अंतिम भेंट हुई थी उस समय वे तपस्या की उस पराकाष्ठा में पहुंच चुके थे जहां उनके लिए बातचीत करना संभव नहीं था। वे कृषकाय हो चुके थे। फिर भी मैं उनसे यह पूछे बिना नहीं रह सकी कि उन्हें कैसा महसूस हो रहा है? मेरे प्रश्न के उत्तर में उन्होंने उस कक्ष के उस रोशनदान की ओर संकेत किया था जहां  एक चिड़िया बैठी थी अर्थात वे स्वयं को एक चिड़िया की भांति महसूस कर रहे थे। 
        आज का यह समारोह पूर्व सांसद दादा श्री लक्ष्मी नारायण यादव के सानिध्य में तथा व्यंग्य विधा के पुरोधा डॉ सुरेश आचार्य की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। समारोह की मुख्य अतिथि थी मैं डॉ (सुश्री) शरद सिंह। डॉ आशुतोष मिश्र एवं श्रीमती निरंजना जैन ने मुनि श्री के काव्य संग्रह पर अपने विशिष्ट वक्तव्य दिए। श्यामलम संस्था तथा पं. ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस समारोह का संचालन किया डॉ अमर जैन ने। 
आचरण 20.03.2023⬇️
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Article | Relation Between Climate Change & Human Rights | Dr (Ms) Sharad Singh | Central Chronicle


Article
Relation Between Climate Change & Human Rights
     -    Dr (Ms) Sharad Singh
Writer, Author & Social Activist
Blogger - "Climate Diary Of Dr (Ms) Sharad Singh"

*Both are burning topics - climate change and human rights. Is any relation between both topics? Yes we can say it that human life depends on their climate. But not only one relation is. Climate and human life relates in many ways. So, if there is climate gets harmful changes, human life get serious changes automatically. In the other words we can say that climate change not good for human life and his rights.*


Patna Buzurg is a small village in Sagar district of Madhya Pradesh. While passing through that village, I got a chance to see the beauty of the small farms on both sides of the road. Mid March and overcast skies, strong chance of rain. The weather was lovely to visit. I saw that crop of wheat in the fields which was ripe and ready at some places, and at some places it was half-ripe. The farmers were not able to harvest their crops which looked ripe. At the same time, greenness was clearly visible in the half-ripe ears of wheat. There was still time for them to ripen. Looking at those crops, I was worried that what would happen to these crops if it rains heavily? And if hail falls somewhere, then this crop will be completely destroyed. I shudder even thinking about it. I was looking at the land there. I could not even imagine how much effort the farmers must have put in to make the rocky land cultivable. Not everyone can understand the hard work of the farmer who makes the stony land of the old forest cultivable. The crop which was seen flourishing in front of me under the impending crisis of the weather, must have taken tireless labor and capital of the farmers to grow it. Some small farmers may have had to invest their entire capital. They will hope that when a good harvest comes, they will get their capital back with a profit. But will this hope be fulfilled due to the unexpected change in weather? In fact, I am scared to even think about it.
       There was a time when I was in field journalism. During that period, I had visited weather-affected farms in Madhya Pradesh's Panna district with a group of leaders and officials. In those days there were not so many changes in the weather, yet I had seen gram and wheat plants breaking and mixing in the soil. Those memories still scare me. I don't want to see such scenes anymore because a crop is not only the life of a farmer, but also cures the hunger of every person and strengthens the country's economy.
Getting food and water to stay alive is the first right of a human being. So if the cycle of crops is being affected due to climate change. If crops are getting damaged due to sudden change of weather, then man will not be able to get his first and primary right to get food. This is also one of the reasons behind promoting the production of coarse grains so that the availability of the crop remains in the changing climate. Farmers are being motivated to adopt varieties of crops which require less water to grow and which can be grown two or three times in a year. So that the availability of the crop remains and no one has to go hungry.
The bitter reality is Poverty-related causes account for about one-third of human deaths each year. This situation will only get worse in the future due to the increasing impact of climate change. The proportion of women and girls is also high among the poor, due to which they are more vulnerable to the problem. For example, in rural India, it is especially the responsibility of women to provide food and water. Therefore, the effects of climate change on land yields, water availability and food security have a direct impact on women. That is, at the age when girls should concentrate on their studies and childhood activities, they have to bring water from distant reservoirs to their homes. When a pregnant woman or child is in need of rest, she has to carry pitchers of water on her head. Even though the state governments dig tube wells, but due to the changes in climate and weather, the water level is falling every year. Where on one hand this situation is hurting the human rights of women, on the other hand it is also increasing the threat to the primary right of man to drinking water.
Even though the effects of climate are slowly becoming common to us, the natural disasters and extreme weather events caused by climate change are already wreaking havoc on those populations and will increase in the coming times. So, while international climate negotiations must focus on protecting the environment and saving natural resources for future generations, it is also important that they address the immediate development challenge of at-risk populations around the world. Don't bet. For this, it is necessary that the debate on climate change is focused on equity, access to energy and partnership. Development is not only an economic and social necessity, it is also the best solution adopted regarding climate change. In order to protect the fundamental human rights to life, health and livelihood of vulnerable populations, it is imperative that we promote development that enhances the resilience of such special groups and their assets, while at the same time Only he could successfully implement climate change measures.
Indeed, climate change is one of the greatest threats to human rights of our generation, posing a serious threat to the fundamental rights to life, health, food and an adequate standard of living of individuals and communities around the world. In this year, in February 2023, while addressing the International Conference on Climate Change and Human Rights-Impacts and Responsibilities held in Doha, Qatar, Justice Shri Arun Mishra, President of National Human Rights Commission, NHRC, India, told all countries that greenhouse gases Human-induced growth is causing climate change which raises serious concerns about human rights. It is unfair to expect developing countries to strictly follow the same emission standards. They often require more resources and technology. To accomplish this, the global community has to give priority to technology transfer capacity building. Justice Mishra said that an inclusive climate change action involves formulating policies that are fair and accessible and equitable. This requires prioritizing the needs and perspectives of all stakeholders, including the most vulnerable and marginalized.
     In fact we have to understand the interrelationship between climate change and human rights and make government and personal plans accordingly. Because whether we believe it or not, human rights have started eroding due to climate change and it is necessary to stop this erosion.
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(19.03.2023)
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