Thursday, July 3, 2025

बतकाव बिन्ना की | चल रओ असाढ़ को मंगल और बिटियां कर रईं अमंगल | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
चल रओ असाढ़ को मंगल और बिटियां कर रईं अमंगल
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

‘‘काए भौजी, ऐसी उदासी काए बैठीं?’’ मैंने देखी के भौजी अंगना में डरे पलका पे पांव सिकोड़े अपने हाथन में मूंड़ दए बैठी हतीं।
‘‘अरे का कएं बिन्ना, हमाओ आज जी जाने कैसो-कैसो हो रओ!’’ भौजी तनक बुझी-बुझी सी बोलीं।
‘‘काए का हो गओ? भैयाजी से रार हो गई का?’’ मैंने पूछी।
‘‘अरे, उनसे तो चलत रैत आए। बो का कहाऊत आए के उनकी तो कच्ची लोई ठैरी।’’ इत्तो कै के भौजी फेर के चुप हो गईं।
‘‘जो उनसे रार ने भई, तो फेर का भओ? अब तो आप बताई देओ। काए से के अब आपके लाने मोए चिंता होन लगी आए।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘बात ई चिंता करबे जोग आए, मनो हमाई नईं, उन ओरन की।’’ भौजी गोलमोल करत भईं बोलीं। जबलौं बे अच्छो-खासो सस्पेंस ने खड़ो कर देवें तब लौं बे आगे कछू ने बोलहें।
‘‘भैयाजी कां गए? बे नईं दिखा रए?’’ मैंने भैयाजी के बारे में पूछी।
‘‘बे गढ़पैरा गए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘मनो मंगल तो कढ़ गओ।’’ मैंने कई। काए से इते सागर में गढ़पैरा के हनुमान जू के इते असाढ़ को मेला भरत आए औ हरेक मंगल खों सबई उते पौंचत आएं। बड़ी मान्यता ठैरी उते की।
‘‘हऔ, मंगल को बी गए रए। मनो आज उनके कछू दोस्त हरें आ गए औ उने संगे लिवा ले गए।’’ भौजी ने बताई।
‘‘आप नईं गईं?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘नईं! हमने बताई न, के उनके दोस्त हरें आए रए, सो अब उन ओरन के संगे हम कां जाते।’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ सई कई आपने। बाकी असाढ़ के मईना में तो सबरे हनुमान मंदिरन में मेला सो लगो रैत आए। अब ऊ दिनां मंगलवार को मैं सिविल लाईन से आ रई ती तो उते कठवापुल वारे हनुमान जी के इते भारी भीड़ मची हती।’’ मैंने भौजी खों बताई।
‘‘हऔ री बिन्ना! इते असाढ़ को मंगल चल रओ औ उते बिटिया हरें अमंगल करत फिर रईं।’’ भौजी फेर के अपने पुराने मुद्दा पे जा पौंची।
‘‘असाढ़ को मंगल तो समझ में आओ मनो बिटिया अमंगल कर रईं? जे बात समझ ने पर रई।’’ मैंने भौजी से पूछी। काए से के मोए सई में समझ ने आ रई हती के भौजी कोन के लाने जे डायलाग बोल रईं।
‘‘तुमने आज को अखबार पढ़ो?’’ भौजी ने पूछी।
‘‘हऔ! बे अपने इते की, मने अपने प्रदेस की मंत्री जू के लाने जांच को आदेस दओ गओ आए। ऊमें लिखों रओ के मंत्री बाई जू ने एक हजार करोड़ की घूस लई। सई में, एक औ अखबार में उन्ने एक के आगे इत्ते सुन्न लगा के छापो रओ के मोए तो गिनत में टेम लगो। उने ऐसो नई करो चाइए। अरे, मुतकी पब्लिक ने एक लाख एक संगे नई गिने कभऊं, बा एक हजार करोड़ कां से गिन पाहे? हां, कछू ने बुद्धिमानी दिखाई औ शब्दन में एक हजार करोड़ छापो। इत्तो पइसा खा के कैसो लगो हुइए बा मंत्री बाई जू खों?’’ मैंने कई।
‘‘हऔ! बा तो हमने सोई पढ़ी। बाकी बे मंत्री बाई जू लुगाइन की नाक कटवा रईं। उने ऐसो नई करो चाइए हतो।’’ भौजी बोलीं।
‘‘मनो, हमें जे समझ ने परी, के आपके लाने ईमें दुखी होबे की का बात आए? अब तो उनकी जांच चलहे।’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘बा बात नइयां।’’ भौजी बोलीं।
‘‘फेर का बात आए?’’ मैंने पूछी।
‘‘तुमने औ कोनऊं न्यूज ने पढ़ी ऊमें?’’ भौजी झुंझलात भई बोलीं।
‘‘पढ़ी न! काए नई पढ़ी।’’ मैंने कई।
‘‘का पढ़ो?’’ भौजी ने पूछी।
‘‘तेलंगाना में दवा फैक्टरी में आग लग गई।’’ मैंने बताई।
‘‘बा नई, कछू औ पढ़ो?’’ भौजी ने फेर के पूछी।
‘‘हऔ भीतरे के पन्ना में लोकल खबरें रईं। आप कोन सी वारी की कै रईं?’’ मोए समझ ने आ रई हती के भौजी कोन सी खबर को ले कर दुखी बैठी हतीं।
‘‘बा सरप्राईज वारी खबर ने पढ़ी का?’’ भौजीे बोल ई परीं।
‘‘अरे हऔ! बा तो भयानक खबर आए। देखो तो भौजी कैसो करो बा मोड़ी ने।’’ मोए अब समझ परी के भौजी कोन सी खबर की बात कर रईं।
‘‘जेई तो हम कै रए के जे बिटियां कैसो अमंगल कर रईं। अभईं बा सोनम नांव की मोड़ी ने हनीमून पे अपने घरवारे खों निपटवा दओ औ अब जे देखो। दोई बचपन की सहेलियां। औ एक ने दूसरी खों धोखो दओ इत्तो बड़ो! सरप्राईज देबे के नांव पे मिलबे खों बुलाओ औ ऊके ऊपरे तेजाब डार दओ। मने हद्दई कर दई बा मोड़ी ने तो। अरे, जानी दुश्मनी में लौं बिटियां हरें ऐसो नईं करत। ऊने तो दुश्मनी खों बी शरमिंदा कर दओ। जिनगी खराब कर दई अपनी सहेली की। ई से तो बा ऊसे जनम भर की कुट्टी कर लेती, ऊको मों ने देखती, मनो ऐसो तो ने करती। बा बिटिया आए के राक्षसी आए? ऊको तनकऊं दया ने आई?’’ भौजी एक सांस में बोलत चली गईं। मनो, जी की भड़ास निकार रई होंए।
‘‘सई कई भौजी! बा खबर पढ़ के मो मोरो बी जी खराब हो गओ रओ।’’ मैंने कई।
‘‘नईं बिन्ना, हम तो जे सोचत आएं के जे बिटियां हरों को का होत जा रओ? इने घर से सई संस्कार नईं मिल रए के, इने इंटरनेट से जा सब सूझ रओ के, बो का कहाऊत आए ओटीटी, हऔ बा ओटीटी के सीरियल देख के बिगड़ रईं? मोए तो कछू कारण समझ नई ंपर रए। मनो, बिटिया हरें बा सब कर रईं जोन के बारे में कभऊं कोऊं ने सोचो बी ने रओ के बे ऐसो कर सकत आएं। मने, हम तरक्की बारे अच्छे कामन की बात नईं कर रए। हम तो जे अपराध वारे कामन की बात कर रए। पैले तो बिटियां ऐसी ने रईं। अरे, अपने ओरन की बी अपनी सहेलियन से लड़ाई होत्ती। कछू तो फेर के मेलजोल कर लेत्तीं औ एकाद गांठ बांध के बैठी रैत्तीं औ फेर अपने सासरे पौंच के सब भूल-भाल जात्तीं। ऐसो तो कोऊं ने करत्ती।’’ भौजी बोलीं।
‘‘सई कई भौजी! पैले ऐसो नई होत्तो। औ अबे बी सबरी ऐसो नई कर रईं। कछू जनी आएं जो मोड़ियन को नांव मिटा रईं।’’ मैंने कई।
‘‘अरे अभई मईना, डेढ़ मईना में ई देख लेओ के कित्तो बड़ो-बड़ो कांड कर डारो इन ओरन ने। औ जे कोनऊं दूद पीती बच्ची नोंई। सबरी री बालिग आएं। एक तो मंत्री जू ठैरीं, उनकी उमर की का कई जाए। दूसरी को ब्याओ भओ रओ, मने बा पूरी बालिग औ पढ़ी-लिखी रई। औ जे तेजाब वारी सोई इंजीनियरिंग में पढ़ रई हती। इनमें से कोनऊं अनपढ़ गंवार नोंई। सो, जबे पढ़ी-लिखी समझदार लुगाइयां, बिटिया ऐसो करहें तो बाकी को का कओ जाए?’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ भौजी, बात तो चिंता करबे जोग आए।’’ मैंने कई। मोए सोई चिंता भई।  
‘‘जेई चिंता में सो हम डूबे बैठे, जब से जा खबर पढ़ी।’’ भौजी बोलीं। 
मैं का कैती? उनको चिंता करबो वाजिब हतो। हम दोई चिंता करत भए मों बांधे कुल्ल देर बैठे रए।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लौं जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में के जे बिटियन में ऐसी खूंखारपना कां से आ रई? ईके जड़ में तो पौंचने ई परहे। सो, आप ओरे सोई सोचियो-बिचारियो!  
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