Tuesday, July 8, 2025

पुस्तक समीक्षा | आत्मोत्थान के लिए प्रेरित करते विचारों का विशेष संग्रह | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण


आज 08.07.2025 को 'आचरण' में 


पुस्तक समीक्षा

आत्मोत्थान के लिए प्रेरित करते विचारों का विशेष संग्रह
- समीक्षक डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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विचार संग्रह - विचार शक्ति
लेखिका एवं संपादक - डॉ. वन्दना गुप्ता
प्रकाशक - डॉ. वन्दना गुप्ता, शिवराम शिशु चिकित्सालय, माती नगर वार्ड, सागर, मध्यप्रदेश- 740002
मूल्य - 165/-
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पृथ्वी पर पाए जाने वाले प्राणियों में मनुष्य सबसे अधिक विचारशील प्राणी है। उसमें सबसे अधिक निर्माण एवं आविष्कार की क्षमता है। विचार एक बड़ी शक्ति है। विचार शक्ति के द्वारा अद्भुत कार्य हो सकते हैं। अतः व्यक्ति को अपनी विचार शक्ति को पहचानना आवश्यक है। यह हमारी मानसिक स्थिति, निर्णय, और कार्यों को संचालित करती है। विचार केवल मानसिक क्रियाएं नहीं होतीं, बल्कि वे मानव के व्यक्तित्व का निर्माण करती है। ‘‘अथर्ववेद’’ में विचार-शक्ति (मेधा) को महाशक्ति कहा गया है- ‘‘त्वं नो मेधे प्रथमा’’ अर्थात सद-विचार ही संसार की सर्वप्रथम सर्वश्रेष्ठ वस्तु है। ऋषियों का मानना था कि विचार हमारे जीवन की आधारशिला हैं। हमारे विचार ही हमारे कार्यों और कर्मों को प्रेरित करते हैं और हमारे जीवन के अनुभवों को निर्धारित करते हैं। ऋषियों ने विचारों की शक्ति को पहचाना और इसे जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए उपयोग करने पर जोर दिया। उनका मानना था कि विचार ही हैं जो मनुष्य को देवता या राक्षस बना सकते हैं। ऐसी विचार शक्ति पर आधारित संग्रह का लेखन एवं संपादन किया है लेखिका डाॅ. वंदना गुप्ता ने। उनकी पुस्तक का नाम है-‘‘विचार शक्ति’’।

डाॅ. वंदना गुप्ता ने आत्मकथन में लिखा है कि ‘‘ विचारों की शक्ति अनंत होती है। यह शक्ति हमें आत्मचिंतन, आत्मविश्लेषण और आत्मसुधार की दिशा में प्रेरित करती है। जब एक विचार मन में जन्म लेता है, तो वह कर्म का रूप धारण करता है और समाज में परिवर्तन की नींव रखता है। मेरी पुस्तक ‘विचार शक्ति’ भी इसी उद्देश्य से लिखी गई है कि पाठकों को उनकी आंतरिक शक्ति का अहसास कराया जा सके और जीवन के हर पहलू पर सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए जा सकें। इस पुस्तक में आत्मशक्ति, लक्ष्य, जीवन, नारी, संकल्प, अनुशासन, आस्था, नेतृत्व, न्याय, चिकित्सा सेवा, सफलता, आलोचना, स्वावलंबन, संगठन, वृद्धजन, समस्या, समाधान, परिवर्तन, इतिहास और पूर्वाग्रह जैसे अनेक विषयों पर विचार प्रकट किए गए हैं। हर विषय केवल एक चर्चा नहीं, बल्कि एक प्रेरणा है जो पाठकों को अपने भीतर झांकने और सोचने के लिए मजबूर करती है। मेरा मानना है कि जीवन केवल भौतिक उपलब्धियों से नहीं, बल्कि विचारों की उत्कृष्टता और मानसिक स्वच्छता से समृद्ध होता है। जब तक हमारी सोच सकारात्मक और सशक्त नहीं होगी, तब तक समाज में वास्तविक परिवर्तन संभव नहीं है।’’

लेखिका वंदना गुप्ता स्त्रीरोग विशेषज्ञ होने के साथ ही योग विशेषज्ञ एवं समाजसेवी भी हैं। उनके लेखन के केन्द्र में मनुष्य के आत्मोत्थान की आकांक्षा रहती है। अपनी इसी आकांक्षा से प्रेरित हो कर उन्होंने ‘‘विचार शक्ति’’ जैसी पुस्तक का लेखन एवं संपादन किया है। लेखिका ने 35 शीर्षकों के अंतर्गत उन विचारों का लेखन एवं संग्रहण किया है जिन्हें समझने और आत्मसात करने से प्रत्येक व्यक्ति का जीवन संवर सकता है। जैसे मनुष्य को सबसे अधिक विचलित करती है निराशा। कहा भी गया है कि ‘‘मन के हारे, हार है’’, तो लेखिका ने इस बात सुझाया है कि किन विचारों के द्वारा निराशा से उबरा जा सकता है। इसी तारतम्य में एक बिन्दु और है जिसमें लेखिका ने स्त्री के अबला से सबला होने के लिए आवश्यक विचार तत्व सामने रखे हैं। संग्रह में जिन वैचारिक बिन्दुओं पर विचार किया गया है, वे हैं- आत्म शक्ति, आत्म संवाद, लक्ष्य, जीवन, नारी, शुभकामना, बेटी, प्रकृति, संकल्प,अनुशासन, आस्था, दीपावली शुभकामना, मां/ मातृभाषा/ मातृभूमि, मन पर विजय, नशा, संस्कार, पगकंटक, नेतृत्व, न्याय, चिकित्सा सेवा, वक्त/लम्हे/पल, भविष्य की चिंता, प्रयास/ सफलता, आलोचना/कमजोरी/धोखा/ दबाव/डर,  शक्ति/सशक्तिकरण/स्वावलंबन/संगठन, नेत्रदान/ वृद्धजन, समस्या/ समाधान/ परिवर्तन, इतिहास /पूर्वाग्रह तथा अंतिम शीर्षक है विविध।

पुस्तक की विशेषता यह भी है कि यह द्विभाषी है। अर्थात हिन्दी के साथ अंग्रेजी में भी उसका अनुवाद साथ में प्रस्तुत किया गया है। इससे उन युवाओं के लिए भी यह पुस्तक उपयोगी है जो अंग्रेजी माध्यम से पढ़े हुए हैं तथा जिन्हें अंग्रेजी भाषा में समझना आसान लगता है। इस तरह पुस्तक के पाठकों का समुचित विस्तार भी मिलेगा। वैसे भी आत्मोत्थान को प्रेरित करने वाली सूक्तियों एवं प्रेरक वाक्यों की सबसे अधिक आवश्यकता विद्यार्थियों को होती है। यह पुस्तक उनकी इस आवश्यकता की पूर्ति सुगमता से कर सकती है। किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि यह पुस्तक अन्य आयु वर्ग के लोगों के लिए नहीं है, वस्तुतः यह पुस्तक हर आयु वर्ग के पाठकों के लिए उपयुक्त है। इस पुस्तक में अंतःप्रेरणा जगाने वाले सूत्रवाक्य एवं संदेश हैं। डाॅ. हरीसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. सुरेश आचार्य ने पुस्तक के प्राक्कथन में लिखा है कि -‘‘विचार शक्ति एक ऐसी प्रेरणादायक पुस्तक है, जो सकारात्मकता और समाजोपयोगी विचारों का भंडार है। यह पुस्तक जीवन के हर पहलू को स्पर्श करती है। चाहे वह व्यक्तिगत विकास हो, समाज सेवा हो, या मानवता की बेहतरी का मार्ग। इसे पढ़ते हुए ऐसा प्रतीत होता है मानों जीवन की हर समस्या का हल हमारे भीतर छिपा है और इस पुस्तक के विचारों के माध्यम से उसे पहचानने की दिशा दिखाई जाती है। विचारों की शक्ति का महत्व प्राचीन समय से ही स्वीकार किया गया है। यह हमारे जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं। एक महान विचार हमारी सोच, हमारे कार्य, और अंततः हमारे भाग्य को भी बदल सकता है।’’

लेखिका का यह सौभाग्य है कि उन्हें अपनी पुस्तक के पर अपनी विदुषी माताश्री विजय लक्ष्मी गुप्ता के आशीर्वचन भी प्राप्त हुए हैं। उन्होंने लिखा है कि -‘‘इस पुस्तक में जिन विषयों को स्पर्श किया गया है - आत्मशक्ति, नारी सशक्तिकरण, अनुशासन, न्याय, चिकित्सा सेवा, स्वावलंबन, नेतृत्व, समस्या, समाधान-वे न केवल समाज के लिए प्रासंगिक हैं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का सामर्थ्य भी रखते हैं। तुम्हारी लेखनी ने इन सभी विषयों को जिस संवेदनशीलता और गहराई से प्रस्तुत किया है, वह निश्चय ही समाज के लिए प्रेरणादायक सिद्ध होगी।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निवृतमान न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केशरवानी ने संग्रह के प्रति अपने ‘‘उद्गार’’ व्यक्त करते हुए सही लिखा है कि -‘‘पुस्तक में आत्मशक्ति, लक्ष्य, नारी सशक्तिकरण, अनुशासन, न्याय, चिकित्सा सेवा, स्वावलंबन, संगठन, नेतृत्व, समस्या, समाधान, इतिहास, पूर्वाग्रह जैसे विषयों पर गंभीर विमर्श किया गया है। इन विषयों पर लेखिका के गहन चिंतन और अनुभवजन्य दृष्टिकोण को पढ़कर यह स्पष्ट होता है कि यह पुस्तक केवल विचारों का संकलन नहीं, बल्कि समाज और व्यक्तित्व विकास की दिशा में एक सार्थक पहल है। आज के युग में जब भौतिकता एवं त्वरित सफलता की होड़ में नैतिकता और आत्मविश्लेषण पीछे छूटते जा रहे हैं, तब ऐसी पुस्तकें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।’’

लेखिका डाॅ. वंदना गुप्ता मानती हैं कि मनुष्य के आत्मोत्थान में आत्म शक्ति का सर्वाधिक महत्व होता है। संग्रह के पहले शीर्षक ‘‘आत्मशक्ति’’ में उन्होंने जो प्रेरक वाक्य दिए हैं उनमें से एक है-‘‘मनुष्य के अन्दर ईश्वर ने असीम ऊर्जा का केन्द्र आत्मशक्ति के रूप में स्थापित कर रखा है। हमारा प्रयास उसे निरंतर जागृत करने का होना चाहिए।’’ उनका कथन सही है। तब तक कोई भी अभियान अथवा प्रयास सफल नहीं हो सकते हैं जब तक मनुष्य में अंतःप्रेरणा जागृत न हो। अंतःप्रेरणा का ही प्रखर स्वरूप है आत्मशक्ति। इस तथ्य के समर्थन में लेखिका ने एक पद्यांश भी दिया है-
‘‘गुलाब का सफर अब शुरू हुआ है/कंटकों की कतारों का साथ लेकर/मुस्कुराना है हमेशा उसको चोटी पर/आत्मविश्वास की खुशबू का साथ लेकर।’’

इसके आगे के शीर्षक में वे ‘‘आत्म संवाद’’ को रखती हैं। उनका मानना है कि -‘‘हमारे प्रत्येक प्रश्न का सही उत्तर हमारी अन्तरात्मा के पास है। मन की जब तक सुनोगे न मंजिल की राहें मिलेंगी और न मंजिल मिलेगी। अन्तरात्मा की सुनोगे तो वहां बैठा परमात्मा हमें सदैव सही राह दिखाता है। उसकी सुनो और सुनकर कार्य करते जाओ। मानव जीवन बड़े पुण्य से मिला है उसे भटकने में व्यर्थ मत गवांओ।’’

जीवन में जब भटकाव की स्थिति समाप्त हो जाती है तब लक्ष्य प्राप्ति भी सुनिश्चित हो जाती है। सुग्रह में एक शीर्षक है ‘‘लक्ष्य’’। व्यक्ति को यह स्वयं तय करना चाहिए कि उसके जीवन का लक्ष्य क्या है? फिर उसे लक्ष्य प्राप्ति के लिए हरसंभव श्रम करना चाहिए। इस श्रम की अवधि दीर्घ भी हो सकती है। इसीलिए लेखिका ने सूत्रवाक्य में कहा है कि -‘‘कोई भी लक्ष्य पूर्ण करने के लिए निरन्तर समय की गति के साथ उसके पीछे दौड़ना पड़ता है।’’ फिर इसके बाद वे बहुत अच्छा सुझाव देती हुई लिखती हैं कि- ‘‘प्रतिदिन तुम्हारी स्पर्धा स्वयं से होनी चाहिए। चाहे वह स्वयं की आदतों को सुधारने की हो या किसी बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने में तुम्हारे प्रयास की। तुमसे ही तुम्हारी स्पर्धा तुममें कई गुना शक्ति का संचार करती है।’’ वस्तुतः यह पद्धति स्वयं की क्षमताओं को विकसित करके श्रेेष्ठता पाने की है। जीवन के बारे में डाॅ. वंदना गुप्ता लिखती हैं कि-‘‘जीवन की सांसें निश्चित हैं अतः समय के साथ अपनी दिनचर्या का निर्धारण करो। इस दिशा में पशु-पक्षी तुम्हारे सबसे बड़े प्रेरणा स्रोत हैं।’’

समाज स्त्री और पुरुष दोनों की सहभागिता से चलता है। किन्तु दुर्भाग्यवश नारी को अपनी सहभागिता बनाए रखने के लिए सतत संघर्ष करना पड़ता है। सरकारें भी चाहती हैं कि समाज में नारी उत्कृष्ट अवस्था में रहे किंतु इसके लिए समाज में नारी के प्रति सकारात्मक विचारों का होना भी आवश्यक है। ‘‘नारी’’ शीर्षक से वे लिखती हैं कि- ‘‘जिस दिन समाज से मां-बहन-बेटी की गालियां समाप्त हो जायेंगी उस दिन से ‘बेटी-बचाओ बेटी पढ़ाओ’ जैसे अभियान को चलाने की सरकार को आवश्यकता नहीं रहेगी।’’ लेखिका नारियों को भी याद दिलाती हैं कि-‘‘जब तक नारी अबला स्वरूप का परित्याग नहीं करेगी, वह बलहीन बनी रहेगी।’’

संग्रह में शुभकामना के महत्व की भी चर्चा की गई है क्योंकि शुभकामना अर्थात सकारात्क विचारों का प्रसार करके वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भरना। पुस्तक में बेटियों की शिक्षा के महत्व को भी रेखांकित किया गया है। संग्रह में कुल मिलाकर उन सभी बिन्दुओं को समाहित किया गया है जिनसे मनुष्य का आत्मोत्थान हो सकता है। यही इस पुस्तक की अर्थवत्ता भी है। चूंकि सूत्रवाक्यों यानी  सूक्तियों के रूप में विचारों को प्रस्तुत किया गया है अतः इसमें कही गई बातें स्मरण रखने में सुविधाजनक हैं। पुस्तक लेखिका के चिंतन के विस्तार को भी प्रतिबिंबित करने में सक्षम है, साथ ही यह पठनीय, संग्रहणीय एवं प्रेरक तत्वों से भरपूर है।
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