Wednesday, July 16, 2025

चर्चा प्लस | जान बचाने का पूरा दायित्व मात्र प्रशासन का नहीं है | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस           
जान बचाने का पूरा दायित्व मात्र प्रशासन का नहीं है
 - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                 
       यह शीर्षक अजीब लग सकता है किन्तु इस पर चिन्तन करने के बाद इसे नकारा नहीं जा सकता है कि- जान बचाने का दायित्व मात्र प्रशासन का नहीं है। अभी कुछ दिन पहले ही एक युवती का वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वह रील बनाने के चक्कर में पीछे की ओर चलती हुई नदी में जा गिरी और जान से हाथ धो बैठी। यह भी वर्तमान का कटु सत्य है कि आज किसी को डूबते या मरते हुए देख कर अधिकांश लोग उसकी रील शूट करने में जुट जाएंगे, उसे बचाने के लिए दो-चार लोग ही आगे आएंगे। कभी- कभी कोई भी आगे नहीं आता है या फिर इतनी जल्दी सबकुछ घटित होता है कि बचाने वालों के पास इतना समय नहीं होता है कि वे संकटग्रस्त व्यक्ति को बचा सकें। ऐसी स्थिति में प्रशासन जिम्मेदार है या जोखिम ले उठा कर प्राण गंवाने वाला व्यक्ति जिम्मेदार है? जरा सोच कर देखिए।
         हाल ही में एक ऐसी रील वायरल हुई जिसमें एक युवक रेल आती देख कर रेल की दोनों पटरियों के बीच लेट गया। रेल उसके ऊपर से धड़धड़ाती हुई निकल गई और रेल गुजरने के बाद वह युवक उठ कर नाचते हुए खुशियां मनाने लगा। क्या प्रशासन यह चेतावनी नहीं देता है कि रेलगाड़ी आ रही हो तो पटरियां पार न करें? मगर यहां तो वह युवक रील बनाने के चक्कर में पटरियों के बीच लेट गया। अब प्रशासन को दोष दिया जा सकता है कि उसने यह चेतावनी नहीं दी थी कि रेल आ रही हो तो पटरियों के बीच न लेटें। अर्थात स्वयं की सुरक्षा स्वयं की नहीं प्रशासन की जिम्मेदारी है। यानी कुल मिला कर किस्सा यह कि आप कुएं में कूदिए, यदि नहीं डूबते तो आप ‘डेयरिंग’ हैं और अगर डूब गए तो प्रशासन हत्यारा है।  

अभी पिछले रविवार को मुझे राजघाट बांध देखने जाने का अवसर मिला। उस दिन रुक-रुक कर बारिश हो रही थी। अच्छा सुहाना मौसम था। राजघाट पहुंच कर यह देख कर सुखद आश्चर्य हुआ कि वहां दर्शकों की भारी भीड़ थी। सभी राजघाट को लबालब भरा हुआ देखने और बंधान से ओव्हरफ्लो करते पानी को देखने आए थे। एक पिकनिक स्पाॅट जैसा माहौल था। बंाध के किनारे बने रास्ते पर भुट्टे बेचने वालों की टेम्परेरी दूकानें लगी हुई थीं। यह सब देख कर तत्काल मन में विचार आया कि उस मार्ग पर उमड़ने वाली भीड़ को देखते हुए वहां मरम्मत और मार्ग के चैड़ीकरण किए जाने की आवश्यकता है। सड़कों के दोनों ओर खरपतवार-सी उग आई झाड़ियां सड़क के लिए नुकसानदायक हैं। साफ-सफाई की दृष्टि से भी उन्हें हटाया जाना जरूरी है। सड़क पर बड़े-बड़े गढ्ढे बन गए हैं जो आगे चल कर किसी दिन कोई बड़ी आपदा का कारण बन सकते हैं। सभी जानते हैं कि बारिश के मौसम में बांध, झरने, नदियां आदि पिकनिक स्पाॅट में ढल जाते हैं। अतः ऐसे स्थानों को एक सुचारु शहरी पर्यटन क्षेत्र का रूप दे दिया जाए तो इससे प्रशासन को रेवेन्यू भी मिलेगा और लोगों को सुविधाएं एवं सुरक्षा भी मिलेगी। राजघाट बांध के पास एक भी रेस्टोरेंट नहीं है और न ही कोई सुविधाघर। विधिवत सुरक्षा व्यवस्था भी नहीं है। यह जरूर है कि बांध के द्वार से भीतर जाने की अनुमति नहीं दी जाती है किन्तु ओव्हरफ्लो वाले क्षेत्र में कोई रोक-टोक नहीं है। एक निश्चित दूरी तक यानी जहां तक संभव है, लोग अपने वाहन ले जाते हैं फिर वहां से उफनती धाराओं के पास तक पैदल जा पहुंचते हैं। यूं भी आजकल रील बनाने का जमाना है अतः जुनून की हद पार करते हुए लोगों को उफनती धाराओं के पास जाते मैंने अपनी आंखों से देखा। उस दृश्य को देख कर एक आम नागरिक की भांति मेरे मन में यही पहला विचार आया कि इन्हें कोई रोकता क्यों नहीं? प्रशासन इस ओर ध्यान क्यों नहीं देता? फिर तत्काल मेरे मन ने मुझे टोंका कि क्या सारा ठेका प्रशासन का ही है? क्या प्रशासन ने इन्हें कहा है कि उफनती धाराओं के पास जा कर रील बनाओ? ये लोग स्वयं क्यों नहीं समझते हैं कि वे कितना बड़ा जोखिम मोल ले रहे हैं। अरे, उफनती धाराओं के साथ रील बनानी ही है तो एक सुरक्षित दूरी पर रह कर भी बनाई जा सकती है, जान हथेली पर ले कर बनाने से क्या लाभ?

जरा सोचिए कि कोई युवा रील बनाने की धुन में उफनती धाराओं के पास जा खड़ा होता है। ऐसे समय स्पष्ट है कि धाराओं की तरफ उसकी पीठ होगी ताकि उसका चेहरा और चेहरे के पीछे से धाराएं दिखाई दे जाएं। एंगल सही करने के चक्कर में यदि उसका पांव लड़खड़ा जाए या वह फिसल जाए तो वह अपने प्राण भी गवां सकता है। चाहे युवा हों या प्रौढ़ या बुजुर्ग - किसी भी आयुवर्ग के क्यों न हों, ऐसे समय उन्हें सोचना चाहिए कि यदि वे अपनी लापरवाही से किसी दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं तो उनके परिवारवालों का क्या हाल होगा? किसी युवक की मां भोजन की थाली परोसे उसकी प्रतीक्षा कर रही होगी, किसी युवती का पिता अपनी बेटी के सुरक्षित घर लौटने का बेसब्री से इंतेज़ार कर रहा होगा, कोई पत्नी अपने पति की वापसी की बाट जोह रही होगी, लेकिन जब उन्हें एक हृदयविदारक सूचना मिलेगी तो उन पर कैसी गाज गिरेगी? इस बात को भी सोचना चाहिए। किसी भी सेल्फी, रील अथवा वीडियों के वायरल होने की खुशी आप तभी महसूस कर सकते हैं जब आप स्वयं जीवित हों। यदि आपको कुछ हो गया तो आपके बाद आपके परिजन भी आपकी कलाकारी की खुशियां कभी नहीं मना सकेंगे। 

अकसर होता यही है कि जब किसी बांध, नदी, तालाब या झरने में कोई युवक या युवती फोटोग्राफी या वीडियोग्राफी के चक्कर में जान से हाथ धो बैठते हैं तो सबसे पहले दोष दिया जाता है प्रशासन को कि उसने उस स्थान पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाए अथवा सुरक्षा व्यवस्था क्यों नहीं की? निःसंदेह, यह होना चाहिए। लेकिन अधिकांश स्थानों पर जहां दुर्घटना संभावित क्षेत्र घोषित कर के प्रतिबंध लगाया जाता है वहां भी घुस कर जोखिम लेते हुए लोग दिख जाते हैं। पिछले साल की बात है मैं राहतगढ़ वाटरफाॅल देखने गई थी। वहां लोहे की जालियां लगा कर उस पूरे क्षेत्र को प्रतिबंधित कर दिया गया है, जहां दर्शकों के लिए जान का खतरा हो सकता है। किन्तु मैंने देखा कि कुछ युवक वनक्षेत्र से चक्कर लगा कर फाॅल के इतने निकट पहुंच कर फोटोग्राफी कर रहे थे कि कभी भी कोई भी दुर्घटना घट सकती थी। जब वहां के एक सुरक्षाकर्मी ने उन्हें ललकारा तो वे दौड़ के वहां से जाने लगे। यह दूसरा जोखिम था जो वे उठा रहे थे। पांव फिसलते ही वे अथाह जल में लापता हो सकते थे। अब यह ढिठाई नहीं तो और क्या है? इस हरकत के लिए प्रशासन को जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है? 
प्रशासन सुरक्षा की व्यवस्था कर सकता है, मरने पर मुआवजा दे सकता है किन्तु वह जीवन नहीं लौटा सकता है। अपने जीवन की सुरक्षा की पहली जिम्मेदारी खुद हर इंसान की होती है। वह कहावत भी है न कि ‘‘जान है तो जहान है।’’ सारी डेयरिंग, सारा दुस्साहस, सारा जोखिम प्राणों पर संकट तो ला सकता है, प्राण नहीं लौटा सकता है। इसलिए बारिश के मौसम में ऐसे स्थानों पर जहां जोखिम अधिक हो अपनी सुरक्षा का ध्यान पहले रखना चाहिए। 

राजघाट पर युवाओं, महिलाओं और बच्चों को उफनती धाराओं के निकट मंडराते देख कर मुझे उत्तराखंड की वह घटना याद आ गई जब कुछ युवक पिकनिक मनाने गए थे और बंाध से छोड़े गए पानी के चपेट में आ गए थे। उस समय प्रशासन को भी कोसा गया था कि उसने समय रहते चेतावनी नहीं दी किन्तु यह भी तो सभी को पता रहता है कि बांध से जुड़ी हुई नदियों में बारिश के दिनों में कभी भी बांध के दरवाजे खोलने की नौबत आ सकती है। बांध पर दरार आदि की भी स्थिति निर्मित हो जाती है। कोई भी आपदा संदेश दे कर नहीं आती है, वह अचानक ही आती है और इसीलिए हर दुर्घटना संभावित क्षेत्र पर बोर्ड पर चेतावनी लिखी जाती है जिसे लापरवाह पर्यटक कभी नहीं पढ़ते हैं। अब इस लापरवाही का जिम्मेदार किसे ठहराया जा सकता है?
हाल ही में हिमाचल प्रदेश के ऊना में सोशल मीडिया के लिए रील बनाने का शौक युवकों पर भारी पड़ गया। चार युवक नहर में नहाने और रील बनाने पहुंचे। एक युवक नहाने के लिए गंगनहर में उतर गया। इस दौरान उसका दोस्त मोबाइल से उसका वीडियो बनाने लगा। इसी बीच नहाने वाला युवक तैरते हुए रेलिंग पार कर आगे की तरफ जाने लगा। जैसे ही वह कुछ ही दूरी पर पहुंचा वहां पानी का बहाव बहुत तेज था। वह पानी के बहाव से खुद को बचा न सका और कुछ ही सेकंड में डूबकर लापता हो गया। दूसरा युवक उसे बचाने के लिए लपका किन्तु वह भी तेज धार में जा गिरा और लापता हो गया। जीवित बचे दोस्त कुछ भी न कर सके।
उत्तराखंड में हरिद्वार के गोविंदपुरी घाट में इसी तरह का एक दर्दनाक हादसा हो गया जब रील बनवाने के चक्कर में एक व्यक्ति गंगनहर में उतरा और पलक झपकते तेज धाराओं में डूब गया। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के सीमावर्ती क्षेत्र की सौल खड्ड में रील बनाने और सेल्फी लेने के चक्कर में दो लड़के पानी में डूब गए। अजमेर जिले के मसूदा थाना क्षेत्र के ग्राम देवपुरा में रील बनाने के चक्कर में दो किशोर तालाब में गए और फिल्मी गानों पर रील बनाने लगे। तभी एक किशोर रील बनवाने की धुन में गहरे पानी की ओर चला गया और तालाब में डूब गया। 

रील बनाने के चक्कर में ही गुजरात के अहमदाबाद के सरखेज स्थित फतेहवाड़ी नहर में एक स्कॉर्पियो कार जा गिरी। वह स्कार्पियों तीन दोस्तों ने मिल कर 4 घंटे के लिए 3500 रुपए दे कर किराए पर ली थी। उनका उद्देश्य था फतेहवाड़ी नहर में रील बनाना। नहर के पास पहुंच कर रील बनाने के चक्कर में स्कार्पियों अनियंत्रित हो कर नहर में जा गिरी। उस समय उसके भीतर तीनों युवक मौजूद थे। स्कॉर्पियो जैसे ही नहर में गिरी उसके तुरंत बाद वहां मौजूद उनके दूसरे दोस्तों ने रस्सी डालकर तीनों युवकों को बचाने की कोशिश की वे लेकिन असफल रहे। जिसके बाद आसपास के स्थानीय लोग मौके पर इकट्ठा हुए। नहर में स्कॉर्पियो कार गिरने और तीन युवकों के डूबने की जानकारी फायर ब्रिगेड और पुलिस को दी गई और रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ। लेकिन उन युवकों को बचाया नहीं जा सका।
बहुधा यह देखा गया है कि रील और वीडियो बनाने के चक्कर में युवाओं को होश ही नहीं रहता कि वह किस तरफ बढ़ रहे हैं। पहले भी ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं जब रील और वीडियो बनाने के चक्कर में लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। सागर में ही राहतगढ़ वाटर फाल में ऐसी कई घटनाएं घट चुकी हैं। फिर भी हर युवा इसी भ्रम में रहता है कि उस पर कभी कोई आपदा नहीं आ सकती है। यह लापरवाही भरा दुस्साहस ही उनकी जान ले लेता है। यह सच है कि प्रशासन लापरवाहियां करता है लेकिन रील बनाने के चक्कर में लोग इतने लापरवाह हो जाते हैं कि प्रशासन को भी कई मील पीछे छोड़ देते हैं। हर व्यक्ति को यह ध्यान रखना चाहिए कि अपनी ज़िन्दगी को सुरक्षित रखने की पहली जिम्मेदारी उसकी स्वयं की है, फिर दूसरे नंबर पर प्रशासन की।
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(दैनिक, सागर दिनकर में 16.07.2025 को प्रकाशित)  
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