बतकाव बिन्ना की
अब मामुलिया नोंईं मोबाईल झमकत आएं
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
जबे मैं भैयाजी के इते पौंची तो भौजी आंगन में बैठीं भैयाजी की बुश्शर्ट में बटन टांक रई हतीं औ संगे कछू गुनगुना सो रई तीं। मैंने तनक ध्यान दे के सुनो तो मोए पता परी के बे मामुलिया को गानो गा रई हतीं। बा सुन के मोए अपने लरकपन के दिन आ गए।
‘‘आओ बिन्ना! का हाल-चाल आए?’’ भौजी ने पूछी।
‘‘चाल तो ठीक आए मनो हाल ऐसो ई सो ठैरो।’’ मैंने कई।
‘‘काए का हो गओ?’’ भौजी ने पूछी।
‘‘कछू नईं, आप अबे बा मामुलिया गा रई हतीं सो ऊको सुन के मोए अपने लरकपन के दिना याद आ गए।’’ मैंने भौजी खों बताई।
‘‘अरे बा, बा तो हमें ऊंसई याद आ गओ। अबई कछू दिनां बाद बोई मौसम आओ जा रओ जीमें अपन ओरें मामुलिया ले के घूमत्ते। तुम सोई सजाऊत्तीं मामुलिया?’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ! मैंने सोई खूब सजाई।’’ मैंने कई।
‘‘मनो तुम तो बचपने में सरकारी क्वार्टर में रैत्तीं, सो उते को करत्तो जे सब?’’ भौजी को तनक अचरज भओ।
‘‘सरकारी क्वार्टर में तो रैत्ती मनो ऊ टेम पे हमाई काॅलोनी में सबरे बुंदेली त्योहार मनाए जात्ते। मैंने सोई मुतकी मामुलियां सजाईं। उते मोरे घर के लिंगे धरम सागर नांव को तला रओ सो उतई हम ओरे सब जने मामुलिया ले के जात्ते।’’ मैंने बताई।
‘‘सब जने? बाकी मामुलिया तो मोड़ियन को त्योहार रओ।’’ भौजी ने कई।
‘‘ऐसो कछू नईं हतो उते। मोरी काॅलोनी में छै ठईंयां क्वार्टर रए जीमें सबई टीचरें रैत्तीं। मनो बे सबई क्वार्टर लेडी टीचरन खों ई एलाट करो जात्तो। काए से के उत्ते अच्छी बाउन्डरी हती औ एक अच्छो बड़ो सो फाटक रओ। उते घुसबे में लोग डरात्ते ऊ टेम पे। सो, उते छै क्वार्टर में रैबे वालियन के इते मोड़ा बी हते औ मोड़ियां बी हतीं। हम ओरे सबई संगे खेलत्ते। आप यकीन ने करहो, पर हम ओरें ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ घांईं नाटक बी करत रैत्ते। औ जो मामुलिया को टेम आउत्तो तो हम सबई जरवा वारी डगरिया कऊं-कऊं से ले आउत्ते। औ जो हम ओरें ने जुटा पाउत्ते तो कोऊ ने कोऊ काम वारी के मोड़ा-मोड़ी अच्छी बबूल की डगरिया लान देत्ते। हमाए कैम्पस में चांदनी औ चम्पा के पेड़े लगे हते, सो फूलन को कोनऊं कमी ने होत्ती। हम मोड़ी-मोड़ा मने बच्चा हरें सबई मिल के मामुलिया सजाउत्ते। औ जबे मामुलिया सज जात्ती तो ऊको उठा के सबई के दोरे घूमत्ते। बाकी तला जात बेरा कोनऊ बड़ो संगे जाउत्तो। पैले तो मोरी नन्ना जू मोय तला ने जान देत्तीं। मोए कैम्पस के दोरे से वापस लौटने परत्तो। फेर तनक बड़े होने पे तला लौं जाबे की छूट मिल गई रई, पर जे कसम दे के मोए तला की छिड़ियां नईं उतरने। आपको गाबो सुन के मोए जा सगरी बातें याद आन लगीं।’’ कैत-कैत मोरो गला सो भर आओ।
‘‘अरे, दुखी ने होओ। समै के संगे भौत कछु बदल जात आए। अब जेई देखो के पैले आंगन लिपत्ते, ढिग धरी जात्ती, औ अब टाईल्स वारे आंगन में बा स्टीकर वारे मोडने चिपका के काम चला लओ जात आए। मनो करो बी का जाए। पैले लुगाइयन खों खाली धरे के काम देखने परत्ते, मनो अब तो घर औ बायरे सबई कछू देखने। अब बे बी कां लौं आंगन लीपहें? जेई दसा पुराने वारे त्योहरन की आए। अब की मोड़ा-मोड़ियन खों कोचिंग जाबे से फुरसत नईयां, औ जोन टेम बचो सो बा मोबाईल खों चढ़ जात आए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘सई कै रईं भौजी! अब मामुलिया नोंईं मोबाईल झमकत आए।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ, अब तो मोड़ियन खों जेई नईं पतो के मामुलिया होत का आए? कऊं-कऊं देहात में फेर बी दिखा जात आएं, ने तो बाकी सहर में तो कोऊ खों पतो नईं।’’ भौजी बोलीं।
‘‘सई कई! बाकी वेलेंटाईन के सबरे दिनन के बारे में पूछ लेओ के कोन दिनां कोन सो डे परत आए तो बे सबरे गिना दैहें। बा कैनात आए ने के अपनी छोर दूजे की भावै, घिसी छुरी से नाक कटावै। सो, जेई हो रओ आजकाल। मनो चाएं तो मामुलिया टाईप के त्योंहरन खों कछू नओ रंग दे के मनाओ जा सकत आए। पर आजकाल के माई-बाप हरें खुदई अंग्रेजी स्कूल में पढ़े कहाने, सो उने देसी त्योहरन से का लेबो-देबो?’’ मोय तनक गुस्सा सो आन लगो।
‘‘सब चलत आए बिन्ना। अब देखो न, इंटरनेट पे इत्ते बुंदेली पकवान बनाबे की वीडियो लौं डरी रैत आएं मनो कोऊ बनाए औ खाए तब ने। आजकाल घी को बनो सामान लोगन खों ‘‘रिच फूड’’ लगत आए। सबरे अपने खाबे में कैलोरी नापत फिरत आएं। औ बाजार को पाम आयल औ न जाने कोन-कोन से तेल को फास्ट फूड औ कुरकुरे खाबे में कछू नईं सोचत।’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ, आजकाल जोन खों देखो जिम की तरफी दौड़त दिखात आए। का पैले के लोग अच्छे न दिखत्ते का? के उनकी हेल्थ अच्छी ने रैत्ती?’’ मैंने कई।
‘‘का हतो के पैले के लोग चाए धर को होए, चाए बायरे को होए, खूब काम करत्ते। मैनत वारे काम। मनो अब लोगन खों चार पईया पे चलने औ दिन भरे कुर्सियन पे बिराजे रैने। सो, मुटापा तो चढ़हे ई। सो अब मुटापा घटाबे के लाने जिम ने जाएं तो कां जाए? काए से के घर के काम करबे में तो बे छोटे होन लगत आएं।’’ भौजी बोलीं।
‘‘सई में भौजी! मैं तो जब सेकेंड ईयर में उते पन्ना के छत्रसाल काॅलेज में पढ़त्ती, ऊ टेम पे बी अपनी सायकल के पांछू पिसी की पिकिया धर के आटा चक्की चली जात्ती। मोए लगत्तो के अपने धर को काम करबे में काए की सरम? अब तो स्कूल में पढ़े वारे मोड़-मोड़ी से तो ऐसी कोनऊं आसा करई नईं जा सकत।’’ मैंने कई।
‘‘मोड़ा-मोड़ी खों छोड़ों, उनके बाप-मताई से आसा नई करी जा सकत। कछू जने तो ऐसे रैत आएं के बे कछू को बी मोल-भाव करे बिना सामान खरीद के ले आऊत आएं। बे जे लाने ऐसो नईं करत के कोनऊं गरीब को ईसे भलो हो जैहे, बे ओरे जे लाने ऐसो करत आएं के उनको बड़ो आदमी समझें। न जाने कित्तो दिखाबे खों मरे जात आएं सबरे।’’ भौजी बोलीं।
हऔ, मनो जो घरे के दोरे कोनऊं सब्जी की ठिलिया वारो आ जाए तो ऊसे मोल-भाव करत भए खूब गिचड़त आएं, ऊ टेम पे उने जे नई लगत के बा बिचारों घर के दोरे लौं ठिलिया लाओ आए, अखीर ऊको बी तो पईसा लगो हुइए।’’ मैंने कई।
‘‘अरे, अब का कओ जाए बिन्ना, जा दुनिया ऐसई चलत आए। समै के संगे सब कछू बदल जात आए। पैले बड़े लोगन के इते किटी चलत्ती। हम ओरन खों तो पतोई नई रओ के जे किटी होत का आए? हम ओरे तो बचपने में बी अपनी मताई, मौसी, मामी हरों खों सूटर बुनत, कढ़ाई करत, बरी बनाऊत देखत रए। हम जब तनक बड़े भए तो उनई ओरन के संगे जेई सब काम करन लगे, पर आज काल चाए मोड़ियां होंए चाए बहुएं होंए, उने जा सब के बदले मोबाईल पे रील बनाबे में ज्यादा जी लगत आए। औ तनक तुमाए घांई लिखबे-पढ़बे वारी हुईं तो बे आॅन लाईन बतकाव में ऐसी डटी रैत आएं मनो उनके कए से कोनऊं क्रांति आ जैहे। बुरौ ने मानियो!’’ भौजी बोलीं।
‘‘ईमें बुरौ मानबे की का आए? सई तो कै रईं आप। मनो कछू बी कओ पर आज जबे पुराने त्योहार याद आन लगत हैं तो जी में कछू-कछू होन लगत आए। अबई आपको गाबो सुन के जी करन लगो रओ के दौड़ के कऊं जे बबूल की डगरिया ले आऊं औ मामुलिया सजान लगूं। संगे गाऊं के -
झमक चली मोरी मामुलिया।
मामुलिया के आए लिवौआ, झमक चलीं मोरी मामुलिया।।
ले आओ-ले आओ चम्पा चमेली के फूल, सजाओ मोरी मामुलिया।
ले आओ-ले आओ घिया, तुरैया के फूल, सजाऔ मोरी मामुलिया।।
जहां राजा अजुल जू के बाग, झमक चलीं मोरी मामुलिया।
मामुलिया ! मोरी मामुलिया ! कहां चलीं मोरी मामुलिया।।
मोरे सुर में भौजी बी सुर मिलान लगीं औ हम दोई देर तक गात रए। बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लौं जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में के बदलाव खों रोको नईं जा सकत जा सई आए, लेकन जे बी तो याद राखने जरूरी आए के हमाई परम्पराएं का रईं। सांची कई के नईं?
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