चर्चा प्लस
डाॅ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने गर्वनर सर जाॅन हरवर्ट को लिखा था करारा पत्र
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
देश स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्षरत था। अंग्रेजों को भी समझ में आता जा रहा था कि अब उन्हें भारत से जाना होगा किन्तु शासक कभी स्वयं को भयभीत या डरा हुआ प्रकट नहीं करता है। 1947 के पूर्व अंग्रेज सरकार इतनी सक्षम थी कि वह उनका विरोध करने वाले किसी भी व्यक्ति केा बेझिझक दण्डित कर सकती थी। किन्तु उस दौर में भारतीय राजनीति में भी वह नेता थे जो अन्याय अथवा अनुचित के विरुद्ध झुकना नहीं जानते थे। उन्हें अपने परिणाम की चिन्ता नहीं थी। उन्हें चिन्ता थी तो देश और देशवासियों की। इसका सबूत दिया डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने सर जान हरवर्ट को करारा पत्र लिख कर।
जिस समय श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने प्रजा कृषक पार्टी में सम्मिलित हो कर उन्हें अपना समर्थन दिया उस समय द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ चुका था और बंगाल पर जापानी आक्रमण का खतरा मंडराने लगा था। जबकि ब्रिटिश सरकार बंगाल की सुरक्षा की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही थी। यदि बंगाल जापान के कब्जे में आ जाता तो भारत के अन्य भागों में उसे अधिकार करने में देर नहीं लगती। यदि जापान बंगाल पर अधिकार नहीं कर पाता तब भी अपार जनहानि सुनिश्चित थी। इन दोनों परिस्थितियों से बचने के लिए आवश्यक था कि बंगाल में एक सेना गठित की जाए जो हर परिस्थिति में जापानी सेना को सीमा पर ही रोक दे।
बंगाल के प्रशासन की ओर से सुरक्षा व्यवस्था की अनदेखी किए जाने पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी चिन्तित हो उठे। पहले उन्होंने विभिन्न माध्यमों से इस मुद्दे को उठाया किन्तु अंग्रेज सरकार द्वारा ध्यान नहीं दिए जाने पर उन्होंने बंगाल के गर्वनर सर जाॅन हरवर्ट को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने बंगाल में सेना का गठन किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने बिना किसी संकोच के ‘‘नौकरशाही तथा प्रशासन के हानिप्रद स्वरूप’’ का भी अपने पत्र में स्पष्ट उल्लेख किया तथा इस बात का भी संकेत दिया कि अब अंग्रेजी शासन के आधीन भारत की यात्र अपने अंतिम पड़ाव पर है। इतना सब लिखना किसी जोखिम से कम नहीं था। किन्तु डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी डरना तो जानते ही नहीं थे।
डाॅ. मुखर्जी ने जो पत्र सर जाॅन हरवर्ट को लिखा उसका मुख्य अंश इस प्रकार था -‘‘आप गवर्नर जनरल से कहें कि इतना विलम्ब होने पर भी इंग्लैण्ड और भारत में तत्काल समझौता हो जाना चाहिए जिससे भारतीय यह अनुभव कर सकें कि यह सचमुच जनता का युद्ध है और यदि हमें इस युद्ध में विजय प्राप्त करनी है तो अविलम्ब ही एक प्रतिनिधि राष्ट्रीय सरकार बनानी चाहिए जो भारत के हितों की दृष्टि से भारतीय प्रतिरक्षा की नीतियों का अधिकारपूर्वक संचालन करे। चीनी जनता को अंतिम सांस तक शत्रु से टक्कर लेने की प्रेरणा चीनी सेनानायक च्यांग काई शेक ही दे सकते हैं और आपके देशबंधु चर्चिल संकट की स्थिति में शंखनाद कर आप लोगों का आह्वान कर सकते हैं। किन्तु यहां इसके ठीक विपरीत वास्तविक शक्ति उस लापरवाह शासन के हाथों में है जिसे हम अपने देशहित के लिए हटाना आवश्यक समझते हुए भी हटा नहीं सकते।
मैं आपके सम्मुख कई बार यह प्रस्ताव रख चुका हूं कि हमें बंगाल की रक्षा के लिए गृहसेना के निर्माण का अधिकार मिलना चाहिए। संकटपूर्ण परिस्थिति में भी बंगाल में गृहसेना के निर्माण में आपको यह आपत्ति थी कि यह भारतीय सैन्य-नीति के सर्वथा प्रतिकूल है। मेरा उत्तर है कि नीति में भारत का हित ही सबसे ऊपर होना चाहिए। नीति निर्धारण में भारत के हितों को ही प्रमुख आधार बनने दीजिए और भारतवासियों को स्वयं सोचने दीजिए कि जिस संकट में आपने उन्हें झोंक दिया है वे उससे कैसे बचें।
व्यावहारिक दृष्टि से इसमें कई अड़चनें आएगीं, जैसा कि मैं पूर्व में भी निवेदन कर चुका हूं। फिर भी मेरी आपसे और आपके द्वारा वायसराय से यह प्रार्थना है कि इस नौकरशाही तथा प्रशासन के हानिप्रद स्वरूप का मोह त्याग दें। आपसे कई बार निवेदन कर चुका हूं कि ऐसे कई भारतीय हैं जो नहीं चाहते हैं कि यहां ब्रिटिश शासन सदा बना रहे, किन्तु भारत कोई भी सहृदय शुभचिन्तक नहीं चाहेगा कि भारत जापान के अधीनस्थ हो कर विदेशी परतंत्रता का नया इतिहास आरम्भ करे। इंग्लैण्ड से जहां तक हमारे संबंधों का प्रश्न है, हम यात्र के अंतिम पड़ाव तक पहुंच सके हैं और अब यह समझने की आवश्यकता है कि भारत के सपूत ही उसके भाग्यनिर्मता होंगे। इस तथ्यात्मक वास्तविकता पर आधारित उदार राजनीति अपेक्षित है।’’
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने इस पत्र के माध्यम से बंगाल के गवर्नर को ही नहीं वरन भारत स्थित ब्रिटिश सरकार को भी इस सच्चाई से अवगत कराने का प्रयास किया कि भारत पर ब्रिटेन का आधिपत्य अपने अंतिम चरण में चल रहा है, वह अधिक समय तक भारत को अपने आधीन नहीं रख सकेगा। अतः भारतीयों को सौहाद्र्य एवं सुरक्षा भरा प्रशासन उपलब्ध कराया जाना चाहिए। अन्यथा जापान के आक्रमण के संकट से निपटना दुरूह हो जाएगा।
दूसरी ओर श्यामा प्रसाद मुखर्जी यह आकलन कर चुके थे कि भारत पर ब्रिटिश आधिपत्य अधिक दिन तक नहीं रह सकेगा, ऐसे में यदि देश एक नए आक्रमणकारी के आधीन हो जाएगा तो डेढ़ शताब्दी से भी अधिक समय से किए जा रहे स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रयासों पर पानी फिर जाएगा।
बंगाल के गर्वनर सर जाॅन हरवर्ट को लिखे अपने इस पत्र में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने गवर्नर जनरल का ध्यान आकृिष्ट करते हुए लिखा कि -
‘‘विश्व में हो रहे परिवर्तनकारी उथल-पुथल को ध्यान में रखते हुए वे भारतीय स्थिति की वास्तविकता को परखें तथा उचित निर्णय लें।’’
अपने इसी पत्र में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारत-इंग्लैण्ड के मध्य समझौते के लिए कुछ आवश्यक सुझाव दिए जो कि इस प्रकार थे -
1. ब्रिटिश सरकार इस बात की घोषणा करे कि भारत की स्वतंत्रता को औपचारिक रूप से मान्यता दे दी गई है।
2. वाइसराय या ब्रिटिश सरकार के किसी भी अन्य प्रतिनिधि को यह अधिकार दिया जाएगा कि वह भारत के राजनीतिक दलों से भारत की राष्ट्रीय सरकार के निर्माण के विषय में, जिसे सत्ता हस्तांतरित होगी, बातचीत करे।
3. इंडियन नेशनल कांग्रेस पूरी शक्ति से जर्मन एवं जापान गुट से युद्ध करने की घोषणा करेगी।
4. भारत के प्रतिनिधित्व में भारत की युद्धनीति ‘एलाईड वार कौंसिल’ द्वारा निर्धारित होगी।
5. एलाईड वार कौंसिल द्वारा निर्धारित युद्धनीति का पालन भारत की ओर से कमांडर-इन-चीफ के हाथों में होगा।
6. राष्ट्रीय सरकार का स्वरूप बहुदलीय सरकार का होगा जिसमें देश के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि होंगे। यही स्वरूप प्रांतों द्वारा भी अपनाया जाएगा।
7. जो लोग देश की नीतियों में प्रभावी रूप से सहायक हो सकते हैं तथा जो युद्धकाल में विशेष सहायक हो सकते हैं, उन्हें भी केन्द्रीय एवं प्रांतीय मंत्रीमंडलों में सदस्यता दी जाएगी।
8. राष्ट्रीय सरकार देश के आर्थिक उत्थान एवं विकास पर विशेष ध्यान देगी जिससे युद्धकाल में आर्थिक सहायता में किसी भी प्रकार की कोई कमी न हो।
9. ‘इंडिया आॅफिस’ को अनुपयोगी मानते हुए बंद कर दिया जाएगा।
10. भारतीय राष्ट्रीय सरकार भविष्य में एक ‘कांस्टीट्यूएंट एसेम्बली’ का गठन करेगी जिसके अंतर्गत भविष्य में संविधान का निर्माण हो सकेगा। इसी तारतम्य में भारत तथा ब्रिटेन के मध्य एक संधि होगी अल्पमत दलों के अधिकारों के संबंध में भी विशेष धाराएं होंगी।किसी भी अल्पमत दल को यह अधिकार होगा कि वह अपने न्यायोचित अधिकारों की रक्षा के लिए भावी संविधान संबंधी अपने विकल्प को वैचारिक मध्यस्थता के लिए पटल पर रख सके। पटल पर रखने के बाद विचार किए जाने पर निए गए निर्णयों को राष्ट्रीय सरकार तथा संबंधित अल्पमत दल को स्वीकार करना होगा।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने इन सुझावों के साथ ही पत्र में लिखा कि -
‘‘ब्रिटिश क्राउन के प्रतिनिधि के रूप में आपको यह अधिकार होना चाहिए कि आप भारतीय समस्याओं पर ब्रिटिश सरकार के निश्चित आदेश के अनुसार कार्य कर सकें। इस विषय पर अन्य सुझाव भी रखे जा सकते हैं। मुख्य बात तो यह है कि ब्रिटिश सरकार को इस विषय पर चर्चा करने से पूर्व इस बात को स्वीकार कर लेना चाहिए कि अब उसे सत्ता का हस्तांतरण करना है।
मैं बंगाल के गवर्नर को ब्रिटिश सरकार तथा उसके प्रतिनिधियों द्वारा संकटकाल में अपनाई गई नीतियों के प्रति अपनी असहमति दे चुका हूं। मैं आपसे इस आशा से प्रार्थना कर रहा हूं आप झूठी प्रतिष्ठा के भ्रम में न पड़ते हुए इस गतिरोध को दूर करने हेतु आवश्यक कदम उठाएंगे तथा तत्काल कार्यवाही करेंगे। यदि आपका यह विचार हो कि ब्रिटिश सरकार को इस गतिरोध की सर्वथा उपेक्षा कर निष्क्रिय बने रहना चाहिए तो मुझे खेदपूर्वक अपने गवर्नर से कहना पड़ेगा कि वे मुझे मंत्रीपद के कार्यभार से मुक्त करें जिससे मैं स्वतंत्रतापूर्वक समझौते की मांग के प्रति आम जनता में जागृति ला सकूं।’’
डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का उपरोक्त पत्र अंग्रेज सरकार के मुंह पर तमाचा के समान थी किन्तु उस समय नौकरशाही इतनी चरम पर थी कि उनके इस कठोर पत्र पर भी गवर्नर या वायसराय ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। अंग्रेज सरकार न तो उनके पत्र पर अपनी सहमति देने का साहस जुटा पाई और न उन्हें दण्डित करने का। इससे डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के समक्ष यह खुलेतौर पर स्पष्ट हो गया था कि अब अंग्रेजी शासन की बागडोर सम्हाले जो आका बैठे हैं उन्हें मात्र ‘‘निज चिन्ता’’ है, यही समय है जब बड़े और कड़े कदम उठाए जाएं और अंग्रेजों को वापसी का रास्ता दिखा दिया जाए। डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं ने ही देश की झोली में स्वतंत्रता का उपहार डालने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस पत्र पर भले ही प्रतिक्रिया नहीं हुई किन्तु इसने साबित कर दिया कि राजनीति भी साहसियों को सलाम करती है, कायरों को नहीं। एक साहसी राजनीतिज्ञ ही युग निर्माता बनता है।
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(दैनिक, सागर दिनकर में 23.07.2025 को प्रकाशित)
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