Tuesday, August 15, 2017

आजादी के बाद ही मिल सकी महिलाओं को स्वतंत्रता ... डॉ विद्यावती 'मालविका'

स्वतंत्रता दिवस पर मेरी मां का साक्षात्कार आज "पत्रिका" समाचार पत्र में...15 अगस्त 2017
         धन्यवाद "पत्रिका" !
यह मेरा सौभाग्य है कि मैं विदुषी वरिष्ठ साहित्यकार डॉ विद्यावती 'मालविका' जी की बेटी हूं ... यह सौभाग्य हर जन्म में मुझे मिले यही कामना है।
Dr Vidyawati 'Malavika' Senior Author and mother of writers sister Dr Varsha Singh and Dr Sharad Singh



Monday, August 14, 2017

पाठकमंच की समीक्षा गोष्ठी में डॉ शरद सिंह

पाठक मंच की सागर (मध्यप्रदेश) इकाई में डॉ (सुश्री) शरद सिंह ने डॉ सुरेश शुक्ल ‘चन्द्र’ द्वारा लिखित नाट्य-पुस्तक ‘भूमि की ओर’ की समीक्षा की। दिनांक : 13.08.2017
Dr Sharad Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017
Dr Sharad Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017
Dr Sharad Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017
Dr Sharad Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017
Dr Sharad Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017
Dr Sharad Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017
Dr Sharad Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017

Dr Sharad Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017
Dr Sharad Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017
Dr Sharad Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017
Dr Sharad Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017
Dr Sharad Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017
Dr Sharad Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017
Dr Sharad Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017

Dr Sharad Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017

Dr Sharad Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017

Dr Varsha Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017

Dr Varsha Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017

Dr Varsha Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017

Dr Varsha Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017

Dr Varsha Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017

Dr Varsha Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017

Dr Varsha Singh at Pathak Manch Sagar MP, 13.08.2017

Wednesday, August 9, 2017

चर्चा प्लस ... आज भी प्रासंगिक है भारत छोड़ो आंदोलन ... डॉ शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
"आज जब एक ओर से पाकिस्तान और दूसरी ओर से चीन आतंक और धमकियों का सहारा ले कर प्रभावी होने की निरंतर कोशिश कर रहा है, ऐसे समय में ‘‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’’ के नारे की भांति ‘‘पड़ोसी देशो आतंक और दीदीगिरी छोड़ो’’ का नारा बुलंद करने का समय है और इस आज के नारे को अपनी प्रभुता के साथ दुनिया के सामने रखने के लिए हम ‘‘भारत छोड़ो आंदोलन’’ से बहुत कुछ सीख सकते हैं, प्रेरणा ले सकते हैं।" दैनिक सागर दिनकर में  प्रकाशित मेरे कॉलम #चर्चा_प्लस में आज (09.08.2017 को ) पढ़िए.... 
चर्चा प्लस
भारत छोड़ो आंदोलन (9 अगस्त) के 75 वें वर्ष पर विशेष :
आज भी प्रासंगिक है भारत छोड़ो आंदोलन                                                                                                                          - डॉ. शरद सिंह                                                                        

आज युवावर्ग स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्ष को इतिहास की चंद घटनाओं या फिर सिलेबस में दिए गए एक चैप्टर की तरह याद कर के भूलने लगता है। आज जब एक ओर से पाकिस्तान और दूसरी ओर से चीन आतंक और धमकियों का सहारा ले कर प्रभावी होने की निरंतर कोशिश कर रहा है, ऐसे समय में ‘‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’’ के नारे की भांति ‘‘पड़ोसी देशो आतंक और दीदीगिरी छोड़ो’’ का नारा बुलंद करने का समय है और इस आज के नारे को अपनी प्रभुता के साथ दुनिया के सामने रखने के लिए हम ‘‘भारत छोड़ो आंदोलन’’ से बहुत कुछ सीख सकते हैं, प्रेरणा ले सकते हैं।  
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper
 
नौ अगस्‍त 2017 को भारत छोड़ो आंदोलन के 75 साल पूरे होने पर संसद के दोनों सदनों में एक दिन की विशेष बैठक का आयोजन रखा गया। इस दिन सदन में और कोई दूसरा काम नहीं होगा, यह तय किया गया। इस दिन भारत छोड़ो आंदोलन को याद करते हुए देश की आज़ादी में आंदोलन की भूमिका के महत्व पर चर्चा होगी। चर्चा आरंभ करने का दायित्व लोक सभा में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राज्य सभा में वित्त मंत्री अरुण जेटली का तय किया गया है। लोक सभा में विपक्ष की तरफ़ से मल्लिकार्जुन खड़गे, मुलायम सिंह यादव और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा समेत सभी एनडीए के घटक दल और विपक्षी दलों के सभी प्रमुख नेता चर्चा में भाग लेंगे। राज्य सभा में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, नेता विपक्ष ग़ुलाम नबी आज़ाद, राम गोपाल यादव, शरद यादव, सीताराम येचुरी, सतीश चंद्र मिश्रा समेत सभी दलों के प्रमुख नेता भी चर्चा में भाग लेंगे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘मन की बात’ रेडियो कार्यक्रम में देश के युवाओं का आह्वान किया था कि वे ‘संकल्प से सिद्धि’ का अभियान छेडें। असल में यह आंदोलन भारत से गरीबी, भ्रष्टापचार, आतंकवाद, जातिवाद और सांप्रदायिकता को मार भगाने का संकल्प होगा। उन्होंने कहा था कि 1942 से 1947 तक के पांच वर्षों में समूचा राष्ट्र अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट हो गया था। प्रधानमंत्री मोदी कहा करते हैं कि वह देश की स्वतंत्रता के बाद पैदा हुए और उन्हें  स्वरतंत्रता संग्राम में भाग लेने का सुअवसर नहीं मिला। यही बात देश के अधिकांश युवाओं पर भी लागू होती है। भारत छोड़ो आंदोलन की 75 वीं जयंती ‘देश की खातिर अपना जीवन उत्सर्ग करने से वंचित रहे’ उन सब युवा भारत वासियों के लिए इस बात का एक मौका होगा कि वे ‘देश के लिए जिएं’ और उन सपनों को पूरा करें जो हमारे स्वततंत्रता सेनानियों ने इसके बारे में देखे थे।
संसद द्वारा ‘‘भारत छोड़ो आंदोलन’’ को यूं सम्मान दिया जाना इस अर्थ में बहुत महत्वपूर्ण है कि आज युवावर्ग स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्ष को इतिहास की चंद घटनाओं या फिर सिलेबस में दिए गए एक चैप्टर की तरह याद कर के भूलने लगता है, ऐसे उपभोक्तावादी दौर में किसी ऐसे आंदोलन के प्रति युवाओं का ध्यान आकर्षित किया जाना अर्थपूर्ण है जिस आंदोलन ने देश की स्वतंत्रता प्राप्ति में अहम् भूमिका निभाई। यह वही आंदोलन था जिसमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने प्राणों को दांव पर लगा दिया था और ब्रिटिश सरकार को यह जता दिया था कि अब किसी भी अहिंसात्मक तरीके से आजादी ले कर रहेंगे।
गांधीजी ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद का रक्तहीन अंत कर एक नए युग की शुरुआत करना चाहते थे। गांधीजी ने समाचारपत्र ‘‘हरिजन’’ में अंग्रेजों का आह्वान करते हुए लिखा था कि “भारत को ईश्वर के भरोसे छोड़ कर चले जाओ और यदि यह अधिक हो तो उसे अराजकता की स्थिति में छोड़ दो” । इसी आह्वान को क्रियाशील रूप में लाने के लिए सन् 1942 ई. में गांधीजी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन  चलाया। उन्होंने नारा दिया “अंग्रेजों भारत छोड़ो” । भारत छोड़ो आन्दोलन चलाए जाने की स्थिति उत्पन्न होने के कई कारण थे -
क्रिप्स मिशन की असफलता से यह स्पष्ट हो गया कि अंग्रेजों का लक्ष्य भारत को स्वतंत्र करने का नहीं है। विश्व जनमत को अपने पक्ष में लाने के लिए अंग्रेजों ने इस नाटकीय स्वांग का प्रदर्शन किया था। प्रसिद्ध राजनीतिक विचारक लास्की ने भी स्पष्ट रूप से लिखा था कि चर्चिल की सरकार ने सर स्टेफर्ड क्रिप्स को भारत की समस्या का हल करने के लिए सच्चे इरादे से नहीं भेजा था। असली विचार भारत को स्वाधीनता देना नहीं, बल्कि मित्र राष्ट्रों की आंखों में धूल झोंकना था।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान की सेना निरंतर आगे बढ़ रही थी इससे भारतीय प्रदेशों को भी खतरा उत्पन्न हो गया था। गांधीजी ने यह अनुभव किया कि हम भारत की सुरक्षा तभी कर सकते हैं जब अंग्रेज भारत छोड़ देंगे। उनका कहना था कि “अंग्रेजों, भारत को जापान के लिए मत छोड़ो। भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप में छोड़ जाओ”। ब्रिटिश सरकार जापान की सेनाओं  का मुकाबला करने में असफल रही।
बर्मा में रह रहे भारतीयों के साथ अंग्रेज दुर्व्यवहार करते थे। बर्मा से आने वाले भारतीय शरणार्थियों के साथ पशुवत व्यवहार किया जा रहा था। गांधीजी ने सन् 1942 में लिखा था, “भारतीय और यूरोपीय शरणार्थियों के व्यवहार में जो भेद किया जा रहा है और सेनाओं का जो बुरा व्यवहार है उससे अंग्रेजों के इरादों और घोषणाओं की तरफ अविश्वास बढ़ रहा है” ।
पूर्वी बंगाल में बहुत से लोगों को बिना मुआवजा दिए उनकी जमीनों से वंचित किया गया। सेना के लिए किसानों के घर जबरदस्ती खाली करवाए गए जिससे भारतीयों में असंतोष फैला।
देश की असंतोषजनक आर्थिक स्थिति ने भी महात्मा गांधी को भारत छोड़ो आंदोलन चलाने के लिए बाध्य किया।देश में महँगाई बहुत तेजी से बढ़ रही थी, जिससे आम जनता का जीवन दूभर हो गया था।  देश की दयनीय स्थिति के लिए गांधीजी ने अंग्रेज सरकार को जिम्मेदार माना।
देश का तत्कालीन वातावरण अंग्रेजों के विरुद्ध था।  27 जुलाई, 1942 को अंग्रेजी सरकार ने लंदन के एक ब्राडकास्ट में यह घोषित किया कि भारत को युद्ध का आधार बनाया जायेगा और इसके लिए सभी सम्भव एवं आवश्यक कारवाई की जाएगी। इससे अंग्रेजों का ध्येय और स्पष्ट हो गया। ऐसी स्थिति में कांग्रेस ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ आरम्भ करने का निश्चय किया।
मुम्बई में 7 अगस्त, 1942 को कांग्रेस का अधिवेशन प्रारम्भ हुआ। महात्मा गांधी ने समिति के समक्ष 8 अगस्त को भारत छोड़ो का अपना ऐतिहासिक प्रस्ताव पेश किया। उस प्रस्ताव में कहा गया कि भारत में ब्रिटिश शासन का तात्कालिक अंत मित्र राष्ट्रों के आदर्शों की पूर्ति के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसी पर युद्ध का भविष्य, स्वतंत्रता तथा प्रजातंत्र की सफलता निर्भर है।  अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने पूरे आग्रह के साथ ब्रिटिश सत्ता को हटा लिए जाने की मांग की है। कांग्रेस के इसी अधिवेशन में महात्मा गांधी ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’  का नारा बुलंद किया तथा देश को करो या मरो  का संदेश दिया। महात्मा गांधी ने 140 मिनट के अपने लम्बे भाषण में कहा, “मैं फौरन आजादी चाहता हूं, आज रात को ही, कल सवेरे से पहले आजादी चाहता हूं।“
महात्मा गांधी के उस भाषण पर टिप्पणी करते हुए पट्टाभि सीतारमैय्या ने लिखा कि “गांधीजी उस दिन एक अवतार एवं पैगम्बर की प्रेरक शक्ति से प्रेरित होकर बोल रहे थे।”
गांधीजी ने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में 13 सूत्रीय कार्यक्रम रखे। दिनांक 8 अगस्त को भारत छोड़ो प्रस्ताव पास हुआ। 9 अगस्त को महात्मा गांधी सहित सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। गांधीजी को आगाखां महल में कैद रखा गया और अन्य नेताओं को अहमदनगर किले में ले जाया गया। गिरफ्तारी की बात गुप्त रखी गयी। फिर भी ख़बर आग की तरह फैल गई। सरकार की दमन नीति ने जनता में विद्रोह की भावना पैदा कर दी।  जनता ने विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया। रेलवे और पुलिस थानों को जला दिया गया। गांधीजी की जय, गांधीजी को छोड़ दो और अंग्रेजों  भारत छोड़ों के नारों से आकाश गूंज उठा। सरकार ने शांतिपूर्ण जुलूस पर लाठी चार्ज करवा दिया। एक लाख से अधिक आंदोलनकारी जेल में बंद कर दिए गए। 
सरकार का दमन चक्र बहुत कठोर था और क्रांति को दबाने के लिए पुलिस राज्य की स्थापना की गई। जनता के हिंसात्मक कार्यों और सरकारी दमन से गांधीजी का हृदय चीत्कार उठा। अतः उन्होने आत्मशुद्धि के लिए जेल में ही उपवास शुरू कर दिया। तेरह दिन के बाद गांधीजी की हालत दयनीय हो गई । किंतु गांधीजी ने सफलतापूर्वक उपवास समाप्त किया। 6 मई, 1944 को गांधीजी को जेल से रिहा करना पड़ा।
भारत छोड़ो आंदोलन का यह पूरा घटनाक्रम भले ही घटनाओं और तारीखों का एक क्रम मात्र प्रतीत हो लेकिन जरूरत है इस आंदोलन में मौजूद भावना को पहचानने की। इस आंदोलन ने भारतीयता को समूचे विश्व में प्रतिष्ठापित करते हुए दमनकारियों को खुल कर ललकारने और उनका विरोध करने की भावना को जगाया। आज जब एक ओर से पाकिस्तान और दूसरी ओर से चीन आतंक और धमकियों का सहारा ले कर प्रभावी होने की निरंतर कोशिश कर रहा है, ऐसे समय में ‘‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’’ के नारे की भांति ‘‘पड़ोसी देशो आतंक और दीदीगिरी छोड़ो’’ का नारा बुलंद करने का समय है और इस नारे को अपनी प्रभुता के साथ दुनिया के सामने रखने के लिए हम ‘‘भारत छोड़ो’’ से बहुत कुछ सीख सकते हैं, प्रेरणा ले सकते हैं। निःसंदेह, देश की आजादी और प्रभुसत्ता के संदर्भ में ‘‘भारत छोड़ो’’ आंदोलन हमेशा प्रासंगिक रहेगा।
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#भारतछोड़ोआंदोलन #आतंकवाद #महात्मागांधी #पड़ोसीदेश #डॉशरदसिंह #प्रभुसत्ता #मुंबईअधिवेशन #प्रासंगिक

Thursday, August 3, 2017

Dr (Miss) Sharad Singh with Greenery

सावन और हरियाली हो तो मन बाग-बाग हो जाता है...!   (03. 08. 2017)
Dr (Miss) Sharad Singh with Greenery
Dr (Miss) Sharad Singh with Greenery
Dr (Miss) Sharad Singh with Greenery
Dr (Miss) Sharad Singh with Greenery
Dr (Miss) Sharad Singh with Greenery
Dr (Miss) Sharad Singh with Greenery
Dr (Miss) Sharad Singh with Greenery
Dr (Miss) Sharad Singh with Greenery
 

Between Sagar to Bina ... एक रेलवे क्रॉसिंग का बंद फाटक.... रेल के इंतज़ार में हवाखोरी ... (02.08.2017)

Between Sagar to Bina ... एक रेलवे क्रॉसिंग का बंद फाटक .... रेल के इंतज़ार में हवाखोरी ... Dr (Miss) Sharad Singh (02.08.2017)

A Selfie via Mirror - Dr (Miss) Sharad Singh - 29.07.2017

Selfie via Mirror - Dr (Miss) Sharad Singh - 29.07.2017 at Bhopal, MP, India
During Dr (Miss) Sharad Singh at Pavas Vyakhyan Mala 2017
A Selfie via Mirror - Dr (Miss) Sharad Singh - At Bhopal - 29.07.2017

Dr (Miss) Sharad Singh at Pavas Vyakhyanmala 2017 Bhopal - 2




Dr (Miss) Sharad Singh at Pavas Vyakhyan Mala 2017, Bhopal, M.P. India with Dr Shyam Sundar Dubey
पावस व्याख्यानमाला में डॉ. शरद सिंह का व्याख्यान

      सागर। मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति भोपाल द्वारा 28 से 30 जुलाई 2017 तक हिन्दी भवन, भोपाल में आयोजित तीन दिवसीय 24वीं पावस व्याख्यानमाला में ‘‘त्रिलोचन : गांव के कवि का सॉनेट शिल्प’’ विषय पर सागर की प्रतिष्ठित उपन्यासकार एवं समालोचक डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने अपने व्याख्यान में शोधपरक लेखन पर बल देते हुए कहा कि त्रिलोचन के सॉनेट की तुलना शेक्सपियर के सॉनेट से करते हुए ही नहीं ठहर जाना चाहिए बल्कि सॉनेट के मूल स्थान ग्रीस, इटली और सिसली के सॉनेट की प्रवृत्तियों से तुलना करना चाहिए। क्योंकि शेक्सपीयर का सॉनेट एलीटवर्ग का सॉनेट था जबकि सिसली का सॉनेट कृषक और मजदूरवर्ग का था और इस प्रकार के सॉनेट ही त्रिलोचन ने लिखे हैं। यह भी याद रखा जाना चाहिए कि त्रिलोचन के सॉनेट में आयरिश और कैल्टिक प्रवृत्तियां भी हैं। त्रिलोचन के सॉनेट पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए डॉ. शरद सिंह ने मुक्तिबोध सृजन पीठ, सागर के अध्यक्ष रहे कवि त्रिलोचन से जुड़े अपने संस्मरणों को भी श्रोताओं से साझा किया।
     कार्यक्रम में देश भर से आए विद्वानों में डॉ. डी. एन. प्रसाद, डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र, डॉ. स्मृति शुक्ला, श्री सूर्यप्रकाश जोशी, प्रो. रमेश दवे, मनोज श्रीवास्तव, रमेशचंद्र शाह, डॉ उर्मिला शिरीष, डॉ नीरजा माधव, राजकुमार सुमित्र, सुमन चौरे सहित मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति भोपाल के मंत्री संचालक कैलाशचन्द्र पंत, देवेन्द्र दीपक, डॉ. संतोष चौबे, रक्षा सिसोदिया, महेश सक्सेना, युगेश शर्मा आदि की उपस्थिति महत्वपूर्ण रही। अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार रमेश दवे ने की तथा संचालन डॉ. सुनीता खत्री ने किया।
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Dr (Miss) Sharad Singh at Pavas Vyakhyan Mala 2017, Bhopal, M.P. India
Dr (Miss) Sharad Singh at Pavas Vyakhyan Mala 2017, Bhopal, M.P. India
Dr (Miss) Sharad Singh at Pavas Vyakhyan Mala 2017, Bhopal, M.P. India
Dr (Miss) Sharad Singh at Pavas Vyakhyan Mala 2017, Bhopal, M.P. India
Dr (Miss) Sharad Singh at Pavas Vyakhyan Mala 2017, Bhopal, M.P. India

Dr (Miss) Sharad Singh at Pavas Vyakhyanmala 2017 Bhopal -1


Dr (Miss) Sharad Singh at Pavas Vyakhyanmala 2017 Bhopal, M.P. India
पावस व्याख्यानमाला में डॉ. शरद सिंह का व्याख्यान

      
सागर। मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति भोपाल द्वारा 28 से 30 जुलाई 2017 तक हिन्दी भवन, भोपाल में आयोजित तीन दिवसीय 24वीं पावस व्याख्यानमाला में ‘‘त्रिलोचन : गांव के कवि का सॉनेट शिल्प’’ विषय पर सागर की प्रतिष्ठित उपन्यासकार एवं समालोचक डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने अपने व्याख्यान में शोधपरक लेखन पर बल देते हुए कहा कि त्रिलोचन के सॉनेट की तुलना शेक्सपियर के सॉनेट से करते हुए ही नहीं ठहर जाना चाहिए बल्कि सॉनेट के मूल स्थान ग्रीस, इटली और सिसली के सॉनेट की प्रवृत्तियों से तुलना करना चाहिए। क्योंकि शेक्सपीयर का सॉनेट एलीटवर्ग का सॉनेट था जबकि सिसली का सॉनेट कृषक और मजदूरवर्ग का था और इस प्रकार के सॉनेट ही त्रिलोचन ने लिखे हैं। यह भी याद रखा जाना चाहिए कि त्रिलोचन के सॉनेट में आयरिश और कैल्टिक प्रवृत्तियां भी हैं। त्रिलोचन के सॉनेट पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए डॉ. शरद सिंह ने मुक्तिबोध सृजन पीठ, सागर के अध्यक्ष रहे कवि त्रिलोचन से जुड़े अपने संस्मरणों को भी श्रोताओं से साझा किया।
     
कार्यक्रम में देश भर से आए विद्वानों में डॉ. डी. एन. प्रसाद, डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र, डॉ. स्मृति शुक्ला, श्री सूर्यप्रकाश जोशी, प्रो. रमेश दवे, मनोज श्रीवास्तव, रमेशचंद्र शाह, डॉ उर्मिला शिरीष, डॉ नीरजा माधव, राजकुमार सुमित्र, सुमन चौरे सहित मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति भोपाल के मंत्री संचालक कैलाशचन्द्र पंत, देवेन्द्र दीपक, डॉ. संतोष चौबे, रक्षा सिसोदिया, महेश सक्सेना, युगेश शर्मा आदि की उपस्थिति महत्वपूर्ण रही। अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार रमेश दवे ने की तथा संचालन डॉ. सुनीता खत्री ने किया।
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Dr (Miss) Sharad Singh at Pavas Vyakhyanmala 2017 Bhopal, M.P. India
Dr (Miss) Sharad Singh at Pavas Vyakhyanmala 2017 Bhopal, M.P. India
Dr (Miss) Sharad Singh at Pavas Vyakhyanmala 2017 Bhopal, M.P. India


Dr (Miss) Sharad Singh at Pavas Vyakhyanmala 2017 Bhopal, M.P. India
Dr (Miss) Sharad Singh at Pavas Vyakhyanmala 2017 Bhopal, M.P. India