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Thursday, August 24, 2023

बतकाव बिन्ना की | हम सो चांद पे टमाटर उगाहें | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"हम सो चांद पे टमाटर उगाहें" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की  
हम सो चांद पे टमाटर उगाहें              
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
        ‘‘का सोच रए भैयाजी?’’ मैंने देखी के भैयाजी कछू गहरी सोच में डूबे हते।
‘‘कछू नईं!’’ भैयाजी बोले।
आप ओरन खों बता दें के जे हमाए बुंदेलखंड की रीत आए के कित्ती बी बड़ी सल्ल काए ने बिंधी होय, पैले जेई कहो जात आए के ‘कछू नईं’। मनो आप को पता परे के आपके कोनऊं चिनारी वारे को एक्सीडेंट हो गओ आए। सो आप उनको देखबे के लाने हस्पताले पौंचों और पलका पे डरे ऊ धनी से पूछो के ‘काए भैया का भओ? कछू ज्यादा तो ने लगी?’’
सो, बा बोलहे,‘‘कछू नई! तनक टांग टूट गई आए।’’
मने कैबे को मतलब जे के इते ‘‘कछू नई’’ के आगे सब कछू हो सकत आए।
‘‘जे का बताहें! हम बता रए।’’ इत्ते में भौजी सोई उतई आ गईं औ कैन लगीं,‘‘हमने तुमाए भैयाजी से कई के हमने पैले बी सुनो रओ के कोनऊं ने उते चांद पे प्लाट ले लओ हतो। बाकी पैले तो उते जा नईं सकत्ते। अब कछू टेम बाद हो सकत आए अपन ओरें सबई जने चांद पे जा-आ सकें। सो, जेई से हम इनसे कै रए के चांद पे अभई से एकाद प्लाट-म्लाट बुक करा लेओ। औ दो-चार एकड़ सब्जी-भाजी को बगीचा लाबे जोग जमीन मिल जाए सो बा सोई ले लेओ।’’
भौजी की बात सुन के मोय तो मनो चक्कर सो आ गओ। मूंड़ घूम गओ।
‘‘उते प्लाट ले के का करहो भौजी? इते तो इत्तो साजो सो मकान ठाड़ो तुमाओ!’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘बा हमने सब सोच लई आए। जे इते को जे मकान किराए पे चढ़ा देबी औ उते चांद पे जा के रैबी।’’ भौजी बड़ी सहूरी से बोलीं।
‘‘मनो आप किराया कैसे वसूलहो? मईना के मईना तो उते से इते ने आ पाहो।’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘का करने मईना के मईना इते आ के? पेटीएम या गूगलपे कछू से भी किराया मंगा लओ करहें। औ उते से नैचें अपनो जे घर सो दिखात रैहे। जो कोनऊं कछू घेरा-घारी करहे तो उतई से फोटू खेंच के एफआरई दर्ज़ करा देबी।’’ भौजी बोलीं।
सच्ची उन्ने सबई कछू सोच रखो हतो। बिलकुल साॅलिड प्लान तैयार हतो उनको।
‘‘जे ठीक सोचो आपने! बाकी आपने पता करो का के उते कित्ते वर्ग फुट जमींने बिक रईं?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘जेई तो हम तुमाए भैयाजी से बोल रए के जल्दी भाव-ताव पता करो, औ बुक करा लेओ। अबई सबई जने टूट परहें सो अपन ओरन खों ने मिल पाहे। तुम सोई एक प्लाट उते ले लेओ। अबे का आए के, अबे उते भीड़ ने हुइए, सो प्लाट सस्तो मिल जैहे। कल्ल खों उते स्कूले, काॅलेजें, माॅल खुलन लगें औ काॅलोनी बनन लगहे सो, कीमतें बढ़ जैहें।’’ भौजी चिंता करत भई बोलीं।
मोय तो जे देख के हैरत भई के मोरी भौजी प्राॅपर्टी के मामले में कित्ती चतुर आएं।
‘‘पैले आप ओरें पता करो, जो मोरे जोग दाम हुइए सो मैं सोई सोच सकत हूं।’’ मैंने भौजी को दिल राखबे खों कै दओ। काय से मोय तो पतो के बा चांद कोनऊं अपने इंडिया की प्राॅपर्टी नोंई के अपनई ओरें उते प्लाट खरीदबी। दुनिया भरे के धनी-धोरी पैलऊं ऊ पे दांत गड़ाए फिर रए।
‘‘भौजी, मोय जे सो बताओ के इते से तो आपको मकान किराया पौंचहे सो उते पइसा की कमी तो पड़ने नईयां। सो सब्जी-भाजी के लाने जमीन काय ले रईं? उते तो जा के आराम करियो!’’ मैंने भौजी से पूछीं।
‘‘नईं बिन्ना, तुम समझी नोंई! का है के अब सो हर साल कोनऊं ने कोनऊं सब्जी को भाव बढ़ो रैत आए। कभऊं प्याज मैंगी हो गई, सो कभऊं टमाटर मैंगे हो गए। ई बार देख लेओ, दो सौ औ ढाई सौ तक लौं पौंच गए रए टमाटर। सो हमने सोची आए के उते टमाटरें उगाहें। उते की टमाटरें इते औ मैंगी बिकहें।’’ कैत भईं भौजी की आंखें चमकन लगीं। मनो उन्ने चांद पे टमाटरें उगान शुरू कर दईंे होंय।
‘‘आपको बिचार सो अच्छो आए भौजी!’’ मैंने भौजी की बात पे हामी भरी।
‘‘बिन्ना, तुम सोई इन्हईं के सुर में बोलन लगीं। तुमाई भौजी को बस चले सो पूरौ चांद खरिदवा लेवें।’’ भैयाजी बोल परे।
‘‘सो ईमें गलत का आए?’’ मैंने भौयाजी से पूछी।
‘‘हऔ, जेई सो हम इनसे कै रए। मगर इने कछू समझ परे तब न!’’ भौजी बोलीं।
‘‘बाकी जबलौं चांद पे नईं मिल पा रई तब लौं इतई धरती पे दो-चार एकड़ खरीद लेओ आप! ऊंसे का हुइए, के ऊ पे आप एक-दो बेरा टमाटरें उगा लेहो, उत्ते में जमीन के पइसा वसूल हो जाने, फेर ऊंको बेंच दइयो। ऊसे जो पइसा मिलहे बा आपके लाने उते चांद पे जमीन खरीदबे के काम आहे।’’ मैंने सोई आपनो ज्ञान पेल दओ।
‘‘कै सो तुम ठीक रईं! काय सुन रए के नईं? तुम तो अबई उठो औ दोई जांगा पतों करो के चांद पे जमीन की बुकिंग को कर रओ औ इते कहूं दो-चार एकड़ सस्ती जमीन मिल रई का?’’ भौजी उचकत भईं बोलीं।
‘‘कां की सूझत रैत आए तुमें सोई! अरे उते को करओ बुकिंग? शेखचिल्ली घांई ने करो! रई इते की तो इते अब कां धरी सस्ती जमीनें? सबरे पहाड़ काट डारे, सबरे जंगल पटा दए। नाज जोग जमीने नई पड़ रईं औ तुमें दो-चार एकड़ की पर रई?’’ भैयाजी झुंझलात भए बोले।
‘‘तुम पे नई हो रओ, सो ऐसे बोलो! हम पता कर लेबी। बस, तुम सो पइसा को जुगाड़ बनाए राखो!’’ भौजी तिनकत भईं बोलीं।
‘‘अब जे इनकी सुन लेओ! अरे कुल्ल पइसा चाउने परहें मोरी मताई!’’ भैयाजी झुंझलात भए भौजी से बोले।
‘‘हम तुमाई मताई नोंई! पगला काय रए?’’ भौजी सोई आप से तुम पे उतर आईं। जो भौजी को मत्था पलट जाए सो ऐसई होत आए।
‘‘भैयाजी! मोय इते तो नई चाउंने, बाकी चांद पे अपनो प्लाट बुक करियो सो, छोटो सो मोरे लाने सोई बुक करा दइयो।’’ भोली बनत भई मैंने सोई भैयाजी कई। मनो भीतरे से मोय हंसी फूट पड़ रई हती, पर भैयाजी को मजा चखाबे में बड़ों मजो आ रओ हतो।
‘‘धन्न हो तुम दोई!’’ भैयाजी अपने दोई हाथ जोरत भए बोले,‘‘तुम दोई जैसी दो-चार औ मिल जाएं सो हमाओ तो बंटाढार हो जेहे।’’
‘‘काय को बंटाढार हो जेहे? हम तो सोच ई रए के अपनी सुंदरकांड की किटी वारी सहेलियन से औ पूछ लेंवें, जो उनमें चार-छः बी राजी हो गईं सो उनसे कमीशन ले के आप उनके लाने चांद पे प्लाट बुक करा दइयो।’’ भौजी भैयाजी की बात अनसुनी करत भई बोलीं।
‘‘सो भैयाजी, अब मोय देओ चलबे की इजाजत! जो चांद पे प्लाट की बात तै हो जाए सो मोय मोबाईल कर दइयो।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘रामधई, हमई काय नईं चले गए चंद्रयान के संगे, कम से कम तुम ओरन से तो पीछो छूट जातो! तुम ओरन घांई लोग आएं जो चांद को लों ने छोड़हें। उते पौंच के बी अतिक्रण करहें, नारी-नरदा बहाहें, इते-उते पनी फेंकहें।’’ भैयाजी खिजियात भए बोले।    
‘‘अबई से काय डरा रए? खैर, जो होय सो, आप मोय खबर करियो!’’ मैंने भैयाजी से कई औ उते से चल परी। काए से के बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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