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Wednesday, June 22, 2016

चर्चा प्लस ... कैराना‬ का कड़वा सच ... - डॉ. ‪शरद सिंह‬

Dr (Miss) Sharad Singh
मेरा कॉलम ‪#‎चर्चा_प्लस‬ "दैनिक सागर दिनकर" में (22. 06. 2016) .....
 
My Column ‪#‎Charcha_Plus‬ in "Dainik Sagar Dinkar" .....


चर्चा प्लस 
कैराना‬ का कड़वा सच
- डॉ. शरद सिंह‬
पक्ष और विपक्ष कैराना के मामले में कोई भी तर्क दें अथवा अपनी सफाई प्रस्तुत करें किन्तु इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता है कि कहीं कोई चूक तो जरूर हुई है। बिना आग के धुंआ नहीं निकलता है। यदि यह मान लिया जाए कि भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव को ध्यान में रख कर शोर मचा रही है तो यह भी मानना पड़ेगा कि अखिलेश सरकार और मायावती के स्वर भी उसी चुनावी परिदृश्य को ध्यान में रख कर आपस में मिल रहे हैं। लेकिन इस राजनीतिक विवाद के माहौल में कैराना का कड़वा सच कहीं धुंधला न पड़ जाए।

राजनीति वो पर्दा है जो सच को इस तरह अपने भीतर छुपा लेता है कि बड़े से बड़ा सच भी झूठा और बड़े से बड़ा झूठ भी सच दिखाई देने लगता है। एक भ्रम की स्थिति निर्मित हो जाती है। इस भ्रम वे कारण गुम होने लगते हैं वे तथ्य जिन पर सबसे पहले ध्यान जाना चाहिए। कैराना मामले में भी यही सब कुछ हो रहा है। राजधानी दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के कैराना में हिंदू परिवारों के पलायन के मामले ने एक बार फिर अखिलेश सरकार और उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कैराना में कथित रुप से बढ़ते अपराध के चलते 346 हिंदू परिवारों का अपने गांव से पलायन हो गया है। पलायन के पीछे का सच कांग्रेस भी जानना चाहती है और इसीलिए वह जांच की मांग कर रही है। इसके साथ ही कांग्रेस का मानना है कि कैराना मामले का लाभ उठा कर भाजपा हिंदू वोटों को अपनी मुट्ठी में कर लेना चाहती है जिससे उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में भी लाभ मिल सके। मामला गंभीर है। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में धर्म के आधार पर पलायन का समाचार चिन्ता में डालने वाला ही कहा जाएगा। मामले की गंभीरता को देखते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी आगे आना पड़ा।
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper

शुरुआत कहां से हुई?
इस मामले की शुरुआत स्थानीय बीजेपी सासंद हुकुम सिंह के उस आरोप से हुई जिसमें उन्होंने खुलाया किया कि कैराना से हिन्दू परिवार बड़ी संख्या में पलायन कर चुके हैं और शेष पलायन करने के लिए बाध्य हैं। सासंद हुकुम सिंह ने कैराना से पलायन करने वाले 346 हिंदू परिवारों की सूची सौंपते हुए यह आरोप लगाया कि कैराना को कश्मीर बनाने की कोशिश की जा रही है। हुकुम सिंह ने कहा कि यहां हिंदुओं को धमकाया जा रहा है, जिससे हिंदू परिवार बड़ी संख्या में पलायन कर रहे हैं। हुकुम सिंह के इतना कहते ही भारतीय जनता पार्टी ने अखिलेश सरकार पर निशाना साधा। भारतीय जनता पार्टी ने अखिलेश सरकार की सोची समझी रणनीति भी करार दिया। प्रत्युत्तर में अखिलेश यादव और मायावती ने भारतीय जनता पार्टी पर आरोप जड़ने आरम्भ कर दिए। इस राजनीतिक नूराकुश्ती में कैराना की पीड़ा को गहराई से महसूस करने का किसी को मानो ध्यान नहीं रहा। अपने घर से विस्थापित होना और वह भी भय के कारण, किसी भी परिवार के जीवन का सबसे दुखद पहलू हो सकता है। अखिलेश सरकार ने सांसद हुकुम सिंह के आरोप को झूठ करार दिया। दूसरी ओर सांसद हुकुम सिंह ने दावा किया है कि उन्होंने कैराना से पलायन करने वाले हर घर का सत्यापन कराया है। विभिन्न संचार माध्यमों ने भी अपने-अपने स्तर पर कमर कस ली और अपने स्तर पर जांच करने निकल पड़े। कुछ ने आरोप को सच पाया तो किसी ने कहा कि इस लिस्ट में ऐसे भी नाम शामिल हैं जो आर्थिक और कारोबारी वजह से पलायन कर चुके थे।
पक्ष और विपक्ष कैराना के मामले में कोई भी तर्क दें अथवा अपनी सफाई प्रस्तुत करें किन्तु इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता है कि कहीं कोई चूक तो जरूर हुई है। बिना आग के धुंआ नहीं निकलता है। यदि यह मान लिया जाए कि भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव को ध्यान में रख कर शोर मचा रही है तो यह भी मानना पड़ेगा कि अखिलेश सरकार और मायावती के स्वर भी उसी चुनावी परिदृश्य को ध्यान में रख कर आपस में मिल रहे हैं। लेकिन इस राजनीतिक  विवाद के माहौल में कैराना का कड़वा सच कहीं धुंधला न पड़ जाए।
    
कैराना का इतिहास
कैराना सामान्य जगह नहीं है। प्राचीन काल में कर्णपुरी के नाम से जाना जाता था और माना जाता है कि महाभारत काल में कर्ण का जन्म यहीं हुआ था। विद्वानों के अनुसार कैराना प्राचीन काल में कर्णपुरी के नाम से जाना जाता था जो कालान्तर में बिगड़ कर कैराना हो गया। यद्यपि यह पूरी तरह से प्रमाणिक नहीं है। कैराना के नाम को ले कर एक कथा और भी प्रचलित हैै कि कैराना का नाम ‘कै और राणा’ नाम के राणा चैहान गुर्जरों के नाम पर पड़ा और माना जाता है कि राजस्थान के अजमेर से आए राणा देव राज चैहान और राणा दीप राज चैहान ने कैराना की नींव रखी।  कैराना के आस-पास कलश्यान चैहान गोत्र के गुर्जर समुदाय के 84 गांव हैं। सोलहवीं सदी में मुगल बादशाह जहांगीर ने अपनी आत्मकथा ‘‘तुजुक-ए-जहांगीरी’ में कैराना की अपनी यात्रा के बारे में लिखा है।
राजधानी दिल्ली से करीब 100 किलोमीटर और उत्तर प्रदेश के मुझफ्फरनगर से 50 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिम में हरियाणा की सीमा पर यमुना किनारे बसा कैराना का ऐतिहासिक महत्व रहा है। उत्तर प्रदेश के शामली जिले का कैराना तहसील पहले मुजफ्फरनगर जिले की तहसील थी। 2011 में मायावती ने शामली को एक अलग जिला घोषित किया। जिसमें कैराना भी शामिल हो गया। कैराना एक लोकसभा और विधानसभा सीट भी है। इसी कैराना में शास्त्रीय गायक अब्दुल करीम खां हुए जिन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत के मशहूर कैराना घराना की स्थापना की। भारत रत्न से सम्मानित होने वाले पंडित भीमसेन जोशी भी कैराना घराने के गायक हैं। यह घटना किंवदंती बन चुकी है कि एक बार संगीतकार मन्ना डे जब किसी काम से कैराना पहुंचे। कैराना की सीमा में प्रवेश करने से पहले उन्होंने अपने जूते उतारकर हाथों में पकड़ लिए। इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि यह धरती महान संगीतकारों की है और इस धरती पर वो जूतों के साथ नहीं चल सकते।
पंडित भीमसेन जोशी और रोशन आरा बेगम जैसे बड़े शास्त्रीय संगीतकार देने वाले कैराना आज राजनीतिक विवाद की चक्की में पिस रहा है।

कैराना के आंकड़े
सासंद हुकुम सिंह ने कैराना से पलायन करने वाले 346 हिंदू परिवारों की सूची प्रस्तुत कर के एक ऐसा आंकड़ा सामने रख दिया कि जिनके बाद सभी कैराना के तमाम आंकड़ों को खंगालने को विवश हो उठे। 2011 जनगणना के अनुसार कैराना तहसील की की जनसंख्या एक लाख 77 हजार 121 थी जिसमें कैराना नगर पालिका की आबादी करीब 90 हजार थी। कैराना नगर पालिका परिषद के इलाके में 81 प्रतिशत मुस्लिम, 18 प्रतिशत हिंदू हैं तथा एक प्रतिशत अन्य धर्मों को मानने वाले लोग हैं।

और कड़वा सच है ....
कैराना मामले में बड़ी संख्या में हिन्दुओं के पलायन का सच जो भी हो किन्तु एक अकाट्य सच तेजी से उभर कर सामने आया, वह है कैराना में कानून व्यवस्था की बिगड़ी दशा। एसपी शामली विजय भूषण के अनुसार मुकीम गैंग के 29 सदस्य पुलिस के रेकॉर्ड में पंजीकृत हैं। इनमें से चार लोग पुलिस मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं, जबकि मुकीम सहित बाकी 25 सदस्य जेल में हैं। इसके अलावा वहां फुरकान गैंग सक्रिय रहा है, लेकिन उसके गिरोह के भी सभी सदस्य इस समय जेल में हैं। मुकीम खूंखार अपराधी है। अभी वह जेल में है, लेकिन अधिकतर व्यावसायियों का आरोप है कि वह पुलिस की मदद से जेल से ही अपना गैंग चलाता है और अपने लड़कों को रंगदारी लेने के लिए भेजता है। जेल से फिरौती की मांग की जाती है, फोन पर धमकी दी जाती है। अगर पैसे नहीं दिए जाएं तो हत्या करा दी जाती है। वहीं, अन्य व्यापारियों का कहना है कि कैराना में हत्याएं लूट और अपहरण आम बात हो गई है। एक स्थानीय महिला के अनुसार-‘‘हम डर में हैं। हमारे बच्चे भी डरते हैं। शाम को निकल नहीं सकते। जब चाहे अपराधी लूट करते हैं। हमारे पड़ोसी तंग आकर जा चुके हैं। पुलिस कुछ करती नहीं जिससे माहौल और खराब हो रहा है। अपराधी किसी भी धर्म के हों, उन्हें सजा मिले।’’ इसी तरह एक अन्य स्थनीय नागरिक का कहना है कि ‘‘पिछले कुछ सालों से कैराना और आसपास के इलाकों में अपराध बढ़ा है। व्यवसायी वर्ग खौफजदा है।’’ कुछ अन्य कैराना निवासियों ने याद दिलाया कि इस इलाके में जिन अपराधों के बाद खौफ का माहौल है, उसमें दो मुस्लिम लड़कियों से बलात्कार के बाद हत्या  का मामला है और इस अपराध के अपराधी भी मुस्लिम हैं।
कुल मिला कर जो सच सामने आता जा रहा है उसका स्याह पक्ष यही है कि कैराना पर साम्प्रदायिकता का नहीं बल्कि अपराधियों के आतंक का ग्रहण लगा हुआ है। प्रश्नचिन्हों से घिरी हुई कैराना की कानून व्यवस्था और अपराधियों की दबंगई ने ही वहां के नागरिकों को अपना घर-द्वार छोड़ कर पलायन करने को विवश कर दिया है। इस कड़वे सच को स्वीकार करते हुए अखिलेश सरकार केा क़दम उठाने होंगे, सिर्फ़ राजनीतिक बचाव से कैराना की दशा नहीं सुधरेगी।
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