दैनिक, सागर दिनकर में 03.09.2025 को प्रकाशित
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चर्चा प्लस
राजनीति को इतना भी न गिराएं कि मां अपमानित हो
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
हर प्राणी अपनी मां की कोख से ही जन्म लेता है। पिता की पहचान पर एक बार संशय हो सकता है किन्तु मां की पहचान सुनिश्चित रहती है। फिर हम एक मातृदेश के नागरिक हैं। हमारी सभ्यता एवं संस्कृति इस बात की कभी अनुमति नहीं देती है कि मां का अपमान किया जाए। पुत्र प्रेम में स्वार्थी बनी मां कैकयी को भी श्रीराम ने मान दिया था तथा राजसत्ता के अवसर को त्याग कर उनकी इच्छानुसार चौदह वर्ष के वनवास में चले गए थे। महाभारत काल में कर्ण ने मां कुंती के अपराध को जानते हुए भी उनके पांच पुत्रों के जीवन का वचन दिया था। अब इतनी गिरावट क्यों आती जा रही है कि राजनीति के मैदान में एक मां को अपशब्द कहे जा रहे हैं?
नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राणं, नास्ति मातृसमा प्रपा।।
अर्थात मां के समान कोई छाया नहीं, मां के समान कोई आश्रय नहीं, मां के समान कोई रक्षा नहीं और मां के समान कोई जीवन देने वाला नहीं है।
ऐसी मां के प्रति राजनीतिक लाभ के लिए अपशब्द बोला जाना हमारे सांस्कृतिक पतन का परिचायक है। प्रश्न यह नहीं है कि किस पक्ष ने किस पक्ष को निशाना बनाया, प्रश्न यह है कि एक बेटे ने एक मां को अपशब्द कहने का साहस कैसे किया? मां सबकी एक समान होती है। वह अपनी संतान के प्रति अपना सर्वस्व निछावर कर देती है। नौ माह गर्भ में पालित-पोषित करने के उपरांत अपने प्राणों को दांव पर लगा कर शिशु को जन्म देती है। रात-रात भर जाग कर शिशु का पालन करती है। शिशु की गंदगी भी प्रसन्नतापूर्वक साफ करती है। वह अपनी संतान को अच्छे संस्कार देती है। हर मां यही करती है, चाहे मित्र की मां हो या शत्रु की मां। इसीलिए मां के प्रति अपशब्द कहे जाने का अधिकार किसी को नहीं है। किन्तु कहीं न कहीं जाने अनजाने राजनीतिक स्वार्थ को उस सीमा तक पहुंचा दिया है जहां सभ्यवर्ग और मां-बहन की गाली देने वाले ‘टपोरी’ वर्ग में अंतर मिटता जा रहा है।
‘‘माता गुरुतरा भूमेः।’’
- अर्थात माता इस पृथ्वी से भी कहीं अधिक भारी और श्रेष्ठ होती है।
ऐसी मां के प्रति हल्के शब्द कैसे कहे जा सकते हैं? लेकिन समाज का एक बड़ा तबका अपनी दादागिरी जताने के लिए मां-बहन की गाली देता है। ऐसी गालियां जिन्हें सुन कर कान के पर्दे झनझना जाते हैं लेकिन अनेक औरतें प्रति दिन अपने शराबी पतियों के हाथों पिटती हुईं मां-बहन की गालियां सुनती हैं। उनके बच्चे भी अपने पिता का अनुकरण करते हुए उन गालियों को कंठस्थ कर लेते हैं, दोहराते हैं जबकि उन्हें उन गालियों का अर्थ भी पता नहीं होता है। हम अपने समाज से उन गालियों को तो नहीं मिटा पाए हैं लेकिन उन गालियों के एक नए संस्करण को विस्तार दे दिया जो राजनीतिक हलके में कुछ समय पहले से चलन में आ चुका है। जब कोई बुराई चलन में शामिल होती है तो उसे और अधिक विकृत होते देर नहीं लगती है। इसका उदाहरण प्रधानमंत्री की दिवंगत मां के लिए कहे गए अपशब्द के रूप में सामने आया है। यह आपत्तिजनक है। इसलिए नहीं कि यह प्रधानमंत्री की मां के लिए कहे गए अपितु इसलिए कि एक मां के लिए कहे गए। मां चाहे किसी की भी हो, वह जीवित हो या दिवंगत, उसका सम्मान यथावत एवं यथोचित ही रहना चाहिए।
हम उस देश के नागरिक हैं जिसे मातृदेश कहा जाता है। अतः जब एक मां को गाली दी जाती है तो वह देश को भी गाली देने के समान है। मां किसकी है यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण यह है कि जिसे अपशब्द कहे गए वह एक मां (दिवंगत ही सही) है। यूं भी माना जाता है कि मां कभी मरती नहीं है। वह दैहिक रूप से भले ही मृत्यु को प्राप्त हो जाए किन्तु उसका अंश रक्त और मज्जा के रूप में उसकी संतानों में सदैव रहता है। उसका आशीष सदा संतानों के सिर पर रहता है। फिर हम तो उस देश के नागरिक हैं जहां श्रीराम जैसे पुत्र हुए। माता कैकयी ने अपने पुत्र भरत को लाभ पहुंचाने के स्वार्थ में पड़ कर राजा दशरथ के द्वारा श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास दिला दिया। श्रीराम चाहते तो सबसे बड़े पुत्र होने के नाते राजगद्दी पर अपने अधिकार का दावा करते हुए वनवास में जाने से मना कर सकते थे। किन्तु उन्होंने पिता के वचन और सौतेली माता की इच्छा को शिरोधार्य माना और चौदह वर्ष के वनवास पर सहर्ष चले गए।
स्त्री की अवमानना का सबसे धृणित उदाहरण जिस महाभारतकाल में मिलता है, भरी सभा में द्रौपदी के चीरहरण के रूप में, उस काल में भी माता का अपमान नहीं किया गया। माता कुंती की आज्ञा मानते हुए द्रौपदी ने पांच भाइयों की पत्नी बनना स्वीकार किया। वही कुंती माता जब अपने त्यागे गए पुत्र कर्ण के पास अर्जुन के प्राणों की भिक्षा मांगने पहुंचती हैं तो कर्ण सब कुछ जाने हुए भी कि मां के एक कमजोर निर्णय ने उसे आजीवन सूतपुत्र बन कर जीने को विवश किया, मां को निराश नहीं करता है। वह यही कहता है कि मां आपके पांच पुत्र जीवित रहेंगे, यह मैं आपको वचन देता हूंै।’’ वह जानता था कि उसके और अर्जुन के बीच युद्ध अवश्यमभावी है अतः उसमें और अर्जुन दोनों में से जो जीवित रहेगा वह मां के पांच पुत्रों की संख्या को बनाए रखेगा। कर्ण ने भी माता कुंती को अपशब्द नहीं कहा था।
28 अगस्त, 2025 को भाजपा ने बिहार में विपक्षी दलों की ‘‘वोटर अधिकार यात्रा’’ को लेकर को निशाना साधते हुए उनपर गंभीर आरोप लगाए। पार्टी ने दावा किया कि बिहार चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी स्वर्गीया मां हीराबेन मोदी के खिलाफ बेहद अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया। कार्यक्रम में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और आरजेडी प्रमुख तेजस्वी यादव के पोस्टर लगे थे। भाजपा ने सोशल मीडिया ‘‘एक्स’’ पर पोस्ट करते हुए विपक्षी नेताओं पर राजनीति में निम्न स्तर पर गिरने का आरोप लगाया। भाजपा ने कहा, राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की यात्रा के मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वर्गीय मां के लिए बेहद अभद्र भाषा का प्रयोग किया गया। भाजपा ने यह भी कहा कि राजनीति में ऐसी अभद्रता पहले कभी नहीं देखी गई। यह यात्रा अपमान, घृणा और स्तरहीनता की सारी हदें पार कर चुकी है।
भाजपा ने ‘‘एक्स’’ में पोस्ट में आगे लिखा, ‘‘तेजस्वी और राहुल ने पहले बिहार के लोगों का अपमान करने वाले स्टालिन और रेवंत रेड्डी जैसे नेताओं को अपनी यात्रा में बुलाकर बिहारवासियों को अपमानित कराया। अब उनकी हताशा की स्थिति यह है कि वे प्रधानमंत्री मोदी की स्वर्गीय मां को गाली दिलवा रहे हैं।’’
यह विवाद तब शुरू हुआ, जब कांग्रेस के एक स्थानीय नेता नौशाद के नेतृत्व में कांग्रेस और आरजेडी कार्यकर्ताओं ने पीएम मोदी के खिलाफ अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया और पार्टी के झंडे लहराए। हालांकि कांग्रेस ने वीडियो और अभद्र भाषा के आरोपों से खुद को अलग कर लिया था। किन्तु भाजपा नेता सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा, ‘‘राहुल गांधी की यात्रा विफल हो रही है, इसलिए इसके लिए उन्होंने कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को फोन करना शुरू कर दिया है। तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने बिहारियों को गाली दी थी तो उन्हें फोन करके वह बिहार के लोगों को क्या संदेश देना चाहते हैं?’’
इसके बाद एक कदम और आगे बढ़ कर प्रधानमंत्री की दिवंगत मां को अपशब्द कहे गए। इस घटना ने सभी को विचलित कर दिया है। यदि चुनाव विशेषज्ञों का मानें तो इस घटना का चुनाव के परिणामों पर सीधा असर पड़ेगा। इससे उपजी सहानुभूति की लहर विपक्ष को डुबो सकती है।
इस घटना पर सभी नैतिक मूल्यों की दुहाई दे रहे हैं लेकिन यह भूलने की बात नहीं है कि इसकी शुरुआत पिछले कुछ वर्षों में हो चुकी है। मां चाहे देशी हो या विदेशी, उसकी संतान चाहे योग्य हो या अयोग्य, उसके प्रति भी निरादर का भाव नहीं होना चाहिए। जोकि पिछले कुछ वर्षों में बार-बार छलक कर बाहर आया है। यह सच है कि पलटवार में सीमाएं लांघी गई हैं और किसी भी मां के मातृत्व पर अपशब्द नहीं कहे जाने चाहिए। पुलिस सक्रिय है। जांच जारी है। जांच में परिणाम जो भी सामने आए किन्तु यह तो तय करना ही होगा कि राजनीतिक लाभ की बिसात पर मां की गरिमा को दांव पर नहीं लगाया जाना चाहिए। इस प्रकार के आचरण से कोई एक प्रदेश मात्र नहीं, वरन पूरा देश, पूरा समाज एवं पूरी संस्कृति लांछित होती है। जब एक प्रधानमंत्री की दिवंगत मां को सार्वजनिक स्थान पर अपशब्द कहा जा सकता है तो आम नागरिक की मां की प्रतिष्ठा को कहां तक सुरक्षित माना जाए? राजनीति की ओर से ऐसी मिसालें स्थापित किया जाना सर्वथा अनुचित है। भारतीय राजनीति से इस प्रकार के आचरण को विलोपित किए जाने पर गंभीरता से विचार किए जाने की आवश्यकता है।
यह स्मरण रखना आवश्यक है कि -
सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमयः पिता
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत।
- अर्थात माता का स्थान सभी तीर्थों से भी ऊपर होता है और पिता का स्थान सभी देवताओं के भी ऊपर होता है इसीलिए हर मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह अपने माता-पिता का सदा सम्मान करे।
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