"लोकसंगीत ज्ञान परंपरा का बुनियादी संवाहक हैं। लोक कलाओं का जन्म लोक से होता है। इसीलिए इन कलाओं में परंपराएं, जातीय स्मृतियां एवं लोकाचार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ज्ञान के रूप में हस्तांतरित होती रहती हैं। और, जब हम लोकपर्व मनाते हैं तो इसका अर्थ होता है कि हम लोक की ज्ञान परंपरा का उत्सव मनाते हैं, उसका पोषण करते हैं, उसका संरक्षण करते हैं। लोक पर्व 2025 वस्तुतः लोक परंपरा के संरक्षण का उद्घोष है।" बतौर मुख्य अतिथि मैंने लोक कलाओं और विशेष रूप से उसमें लोकसंगीत के महत्व को परिभाषित करते हुए अपने विचार व्यक्त किए।
❗️अवसर था लोक कला निकेतन सोशल वेलफेयर सोसायटी, सागर एवं सागर की अग्रणी संस्था श्यामलम द्वारा आयोजित पर्व 2025 का।
❗️अध्यक्षता की वरिष्ठ रंगकर्मी राजेन्द्र दुबे जी ने विशिष्ट अतिथि थे बुंदेली संग्रहालय के संस्थापक दामोदर अग्निहोत्री जी ।
🚩वरिष्ठ एवं ख्यातिलब्ध लोक गायक शिवरतन यादव जी एवं उनके शिष्य कपिल चौरसिया जी ने लोकगीतों की अपनी सुंदर प्रस्तुति दी।
🚩आयोजन की सफलता पर श्यामलम अध्यक्ष आदरणीय बड़े भाई उमाकांत मिश्रा जी, भाई अतुल श्रीवास्तव एवं प्रिय रचना तिवारी जी को हार्दिक बधाई 💐
20.09.2025
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