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बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
गणेश जू ने मताई के लाने अपनों मूंड़ कटवा लओ रओ
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘देख तो बिन्ना, कैसे-कैसे दिन आ गए!’’ भैयाजी बोले।
‘‘काए का हो गओ भैयाजी?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘देख नईं रईं के का मचो आए!’’ भैयाजी बोले।
‘‘का मचो? अच्छो-भलो गणेशजू को उत्सव मन रओ। जगां-जगां झाकियां सजीें। कित्तो नोनो लग रओ। बाकी जा सोच के अब दुख होन लगत आए के चतुरदशी के बाद जा सब नईं रैने।’’ मैंने कई।
‘‘हम झांकियन की बात नईं कर रए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘फेर काए की कै रए?’’ मैंने पूछी।
‘‘बा तुमने पढ़ी-सुनी हुइए के अपने परधानमंत्री जू की मताई के लाने कोऊ ने कछू उल्टो-पुल्टो बोल दओ। बा बी ऐसी मताई जो अब सुरग सिधार गईं आएं। कित्ती बुरई बात आए न!’’ भैयाजी बोले।
‘‘सई कै रए भैयाजी, भौतई बुरी आए जा बात। मताई कोऊ की होए, ऊके बारे में बुरौ नईं बोलो जाओ चाइए।
‘‘अरे बिन्ना! तनक सोचो के जे गणेशजू के दिन चल रए औ ऐसे टेम पे मताई के लाने बुरौ बोलो गओ। जब के खुद गणेशजू ने अपनी मताई के लाने अपनो मूंड़ कटा डारो हतो।’’ भौजी बोल परीं।
‘‘का कैबो चा रईं तुम?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘हम जे कै रए के तुमें बा किसां तो याद हुइए के पार्वती मैया जू खों नहाबे के लाने गुसलखाने में जाने रओ। उते कोऊ हतो ने, के जोन खों कैतीं के कोनऊं खों भीतरे ने आन दइयो। सो अब का करो जाए? जा सोचत-सोचत बे हल्दी, चंदन औ दूद को उबटन लगान लगीं। उबटन छुड़ाबे में जो मसाला निकरो सो ऊसे उन्ने एक पुतरा बना दओ। पुतरा देख के उने सूझी के जो ई पुतरा में जान डार दई जाए तो जेई इते पहरेदारी कर लैहे। सो उन्ने ऊ पुतरा में जान डार दई। जैसेई पुतरा में जान परी सो बा पुतरा बोल उठो के मताई पाय लागूं! हमाए लाने का हुकुम आए, बोलो। जा सुन के पार्वती बोलीं के तुमाओ काम तो हम बतेहे ही, मनो पैले जे बताओ के तुमने हमें मताई काए बुलाओ। सो बा पुतरा कैन लगो के आपने हमें बनाओ, हममें प्रान डारे, सो आप हमाई जननी भईं, मताई भईं! सो, अब हम मताई खों मताई ने कएं तो का कएं? जा सुन के पार्वती मैया इत्ती खुस भईं के उन्ने बा पुतरा बालक खों अपने गले से लगा लओ। औ बोलीं के बेटा तुम सई कै रए, तुम हमाए बेटा आओ। आज से तुमें गणेश के नांव से जानो जैहे। जा सुन के गणेशजू बोले के अम्मा बताओ के मोए का करने है? सो, पार्वती जू ने गणेश से कई के काम इत्तो सो आए के हम जा रए नहाबे के लाने, सो तुम इते दरवाजा पे ठाढ़े हो जाओ औ कोनऊं खों महल में पिड़न ने दइयो। चाए कोऊ होए। जा सुन के गणेश जू ने कई हऔ! सो, पार्वती मैया चली गईं नहाबे के लाने औ गणेश जू पहरा देन लगे।
कछू देर में महादेव जू आ टपके। बे महल में भीतरे पिड़न लगे सो गणेश जू ने उने रोको। महादेव जू ने पूछो के तुम को आ? तो गणेश जू ने बता दओ के हम पार्वती मैया के पूत आएं। हमाई मताई ने कई आए के कोऊ खों हम भीतरे पिड़न ने दें, सो आप भीतरे नईं जा सकत। जा सुन के महादेव जू पैले तो सोच में पर गए के जो जे पार्वती को मोड़ा आए, मनो हमाओ मोड़ा कहानो, औ हमें पतो नईं के जो हमाओ मोड़ा ठैरो? जो का मजाक आए? जो कोऊ बदमास हुइए। ऐसी उन्ने सोची औ बोले के तुम हमें जानत नइयां, जे हमाओ महल आए औ जोन खों तुम अपनी मताई कै रए बा हमाई लुगाई आए। ईपे गणेश जू बोले के चलो हमने मान लओ के तुम हमाए बापराम आओ, मगर हमाई मताई ने कई आए के चाए कोऊ आए ऊको भीतरे पिड़न ने दइयो। सो हम तो आपखों भीतरे ने पिड़न दैहें।
जा सुन के महादेव जू खों भौतई गुस्सा आओ औ उन्ने गुस्सा में आ के कओ के ज्यादा मों ने चलाओ। फालतू की पकर-पकर करी तो हम तुमाओ मूंड़ काट दैहें। जा सुन के गणेश जू सोई ताव खात भए बोले के सो काट देओ न मूंड़। जे धमकियन से हम डरात नइयां। हम तो बेई करहें जो हमाई मताई ने हमसे कई आए। फेर का हती महादेव जू ने फरसा चलाओ औ गणेश जू को मूंड़ काट दओ। उनको मूंड़ को जाने कां फिका गओ। धड़ उतई छटपटात सो डरो रओ। इत्ते में पार्वती मैया सपर-खोेर के बायरे आईं। उन्ने देखी के महादेव जू खून से सनो फरसा ले के ठाड़े औ गणेश जू को धड़ उते डरो, पर मूंड़ नदारत आए। जा देख के मैया चिल्या परीं। बे महादेव जू से बोलीं के जा तुमने का करी? अपने मोड़ा को मूंड़ काट दओ? हमाओ इत्तो नोनो मोड़ा। हाय! फेर उन्ने महादेव जू खों गणेश जू के पैदा होबे की किसां सुनाई औ बोलीं के अब तुम अभईं के अभईं ईको फेर के जिन्दा करो ने तो हम अपने प्रान त्याग देबी। जा सुन के महादेव जू घबड़ा गए। उन्ने गणेश जू को मूंड़ ढूंढो के ऊको फेर के जोड़ो जा सके, लेकन मूंड़ ने मिलो तब उन्ने तुरतईं मरे हाथी के बच्चा को मूंड़ काट लओ औ ऊको गणेशजू के धड़ से जोड़ के मंतर पढ़ो। गणेश जू फेर के जी उठे। बाकी अब उनको मूंड़ सूंड़ वारे हाथी को हतो। गणेश जू ने महादेव जू खों परनाम करो और बोले के अब के आपने हमें प्रान दए सो आप हमाए पिता भए। जा सुन के महादेव जू बड़े खुस भए। पार्वती मैया ने तो गणेश जू खों अपने सीने से लगा लओ। काए से के मोड़ा-मोड़ी दिखात में कैसे बी होंए, मताई के लाने सबईं प्यारे होत आएं। पार्वती मैया बोलीं के तुमें हमाओ सबसे प्यारो बेटा मानो जैहे औ तुमाओ नांव सबरे देवताओं से पैले लओ जैहे।
अब तुमई ओरें बताओ के जोन गणेश जू ने अपनी मताई को मान राखबे के लाने अपनो मूंड़ कटा दओ, उनई के रैत भए एक मताई खों बुरौ-बुरौ कओ गओ, जा कित्ती बुरी बात आए।’’ भौजी ने गणेशजू की पूरी किसां सुना के कई।
‘‘जे आजकाल की राजनीति में जो ने होए सो कम आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो ऐसी-कैसी राजनीति? का ई के पैले राजनीति ने हती? के जो आज ई टाईप से बाप-मताई की एक कर के ईको राजनीति कै रए?’’ भौजी बमकत भईं बोलीं।
‘‘सई कै रईं। जेई तो हम बिन्ना से कै रए हते के देखों कोन टाईप को गिलावो मचो आए, सबई एक-दूसरे पे गिलावो उछारत-उछारत बाप-मताई लौं पौच गए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बाकी भैयाजी, जित्ती बुरई बतकाव आजकाल राजनीति में चल रई, उत्ती पैले कभऊं नईं रई। हमाई अम्मा बताऊत तीं के बाबू जगजीवन राम औ इंदिरा जू के बीच बरहमेस घमासान छिड़ी रैत्ती, मनो दोई ने एक-दूसरे के लाने कभऊं कोनऊं ऐसी भद्दी बातें ने कईं। ई के कछू बाद की राजनीति तो हमने खुदई देखी, पर अब तो राजनीति को राजनीति कहबे में सरम आऊत आए। जे राजनीति नोंईं कुंजड़याऊ से बी गओ बीतो आए।’’ मैंने कई।
फेर हम तीनों जने कुल्ल देर जेई सब पे अपनो खून जलाऊत रए।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लौं जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में के तनक सो राजनीतिक फायदा के लाने कोऊ के मताई-बाप पे गिलाबो उछारबो अपराध आए के नईं?
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