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Wednesday, December 28, 2022

चर्चा प्लस | काश! हम सबक ले लें 2022 की घटनाओं से | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
काश! हम सबक ले लें 2022 की घटनाओं से
        - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                      
       हर साल यादों की झोली में कई खट्टे-मीठे अनुभव डाल जाता है। कोई अच्छी बात होती है तो कोई बुरी बात। कोई प्रफुल्लित कर देने वाली तो कोई आतंकित कर देने वाली। कई प्रश्न हल हो जाते हैं तो कई अनुत्तरित रह जाते हैं। वर्ष 2022 भी अनेक यादें छोड़ कर जा रहा है जिनमें वे सबक भी हैं जिनसे हमें सीख लेकर आगे बढ़ना चाहिए। इस पूरे साल में पूरी दुनिया में राजनीति, समाज, साहित्य, फिल्म, खेल, अर्थजगत आदि सभी जगह कुछ न कुछ विशेष घटित हुआ। कुछ प्रमुख घटनाएं जो हमारे लिए सबक की तरह हैं उन्हें हमें याद रखना ही होगा ताकि वर्ष 2023 सुखद रहे।  
 
वर्ष 2022 में 24 फरवरी को एक वैश्विक अशांति का श्रीगणेश हुआ जब रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत हुई। यह युद्ध आज भी छिड़ा हुआ है। रूस और यूक्रेन दोनों ही देशों के लिए यह युद्ध अत्यंत कष्टदायी रहा किन्तु आज भी (26 दिसंबर 2022 तक) दोनों आमने-सामने डटे हुए हैं। इस युद्ध के कारण  यूक्रेन के लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ा। रूस द्वारा युद्ध आरंभ करने के बाद से ही अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों ने उस पर कठोर प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए जिनमें से अधिकांश आर्थिक प्रतिबंध हैं। किन्तु अभी तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया। आशा यही की जानी चाहिए कि वर्ष 2023 में दोनों देश शांति से रहने के लिए सहमत हो जाएंगे। क्योंकि युद्ध आमजनता की नहीं बल्कि राजनेताओं की महत्वाकांक्षा का दुष्परिणाम होते हैं, जिनमें मारी जाती है निर्दोष आमजनता।
वर्ष 2022 की 8 सितंबर को ब्रिटेन के इतिहास में एक नया अध्याय आरंभ हुआ और ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय का 96 वर्ष की आयु में निधन के साथ एक युग का अंत हो गया। महारानी ऐलिजाबेथ द्वितीय के निधन के बाद उनके बेटे प्रिंस चार्ल्स ब्रिटेन के नए राजा बने। 14 नवंबर 1948, को जन्में प्रिंस चार्ल्स के दो बेटे प्रिंस विलियम और प्रिंस हैरी हैं। इनमें से प्रिंस विलियम क्राउन प्रिंस हैं।

ब्रिटेन में ही एक और ऐतिहासिक काम हुआ कि वहां भारतीयमूल के ब्रिटिश नागरिक ऋषि सुनक को प्रधानमंत्री चुना गया। यह कदम सारी दुनिया के लिए एक सबक के समान है कि नागरिकता के आधार पर देश का महत्वपूर्ण पद किसी भी मूल के व्यक्ति को सौंपा जा सकता है।

इस साल 14 अप्रैल को टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने ट्विटर खरीद लिया। उन्होंने ट्विटर के लिए टेक इट या लीव इट ऑफर में 44 अरब डॉलर (रु. 36,025 करोड़) की पेशकश की। एलन मस्क ने इस साल 13 अप्रैल को ट्विटर खरीदने का ऐलान किया था।
29 मई को पंजाबी सिंगर और कांग्रेस नेता सिद्धू मूसेवाला की गोली मारकर हत्या कर दी गई, जिससे पूरा देश सदमे में आ गया था। मानसा जिले में अज्ञात बंदूकधारियों ने 27 वर्षीय गायक की कार पर घात लगाकर हमला कर दिया, जिससे उनकी मौत हो गई।

वर्ष 2022 की 15 अगस्त को बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों को केंद्र से मंजूरी के बाद रिहा कर दिया गया। भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली गुजरात सरकार ने अक्टूबर में एक हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को बताया था। उस हलफनामे के अनुसार, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने छूट को मंजूरी दी क्योंकि दोषी 14 साल से जेल में थे और उनका व्यवहार अच्छा पाया गया था। जबकि दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी, लेकिन भारत सरकार ने उन्हें 14 साल जेल में बिताने के बाद रिहा करने की अनुमति दे दी। गुजरात दंगों के दौरान 11 लोगों ने 3 मार्च 2002 को अहमदाबाद के पास एक गांव में बानो के साथ गैंगरेप किया था। वह उस समय 19 वर्ष की थीं और गर्भवती भी थीं। हिंसा में उसके परिवार के चैदह सदस्य भी मारे गए थे, जिसमें उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी। जिसका सिर अपराधियों ने जमीन पर पटक दिया था।

दुनिया भर की महिलाएं समय-समय पर अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाती रहती हैं। वर्ष 2022 ईरान की ‘‘हिज़ाब क्रांति’’ के लिए याद रखा जाएगा। 16 सितंबर को ईरान की 22 वर्षीय महसा अमीनी की मौत के बाद हिजाब का विरोध शुरू हुआ था। अमीनी ने अपना सिर नहीं ढंका था इसलिए पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया था। पुलिस पर आरोप है कि उसने हिरासत के दौरान अमीनी को प्रताड़ित किया था जिससे उसकी मौत हो गई। इस घटना के बाद पूरे ईरान में हिजाब के खिलाफ विरोध की आग लग गई थी। ईरान में इस साल हुए हिजाब विवाद के चलते सैकड़ों लोगों की जान चली गई। हिज़ाब को जबरन लागू रखने के लिए इरान की सरकार ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और हिज़ाब के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन को खत्म करने के लिए सुरक्षा बलों द्वारा बल प्रयोग भी किया गया। फिर भी ईरानी महिलाओं ने अपना आंदोलन वापस नहीं लिया। दुनिया भर की महिलाओं ने उनके इस आंदोलन का समर्थन किया।

इसी वर्ष देश की राजधानी एक बार फिर एक जघन्य हत्याकांड से थर्रा उठी। दिल्ली में पुलिस ने 14 नवंबर को एक व्यक्ति को अपने लिव-इन पार्टनर की हत्या करने, उसके शरीर को 35 टुकड़ों में काटने और शहर के भीतर और आसपास के विभिन्न स्थानों पर शरीर के अंगों को ठिकाने लगाने के आरोप में गिरफ्तार किया। दिल्ली पुलिस के अनुसार आरोपी यह कहानी आफताब और श्रद्धा के प्रेम और विवाद की थी। मृतक श्रद्धा वाकर (28) मुंबई में एक कॉल सेंटर में काम करने के दौरान आफताब (28) से परिचय हुआ था। कुछ समय बाद दोनों में प्यार हो गया। वे मुंबई से दिल्ली चले आए और दिल्ली के छतरपुर इलाके में किराए के अपार्टमेंट में रहने लगे। उनके परिवारों ने उनके रिश्ते को स्वीकार करने से इंकार कर दिया था। प्रेम इतनी घनी नफरत में बदला कि इस घटना ने नृशंसता की सारी सीमाएं तोड़ दीं। प्रेम संबंधों पर इतना बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा दिया कि वह हमेशा एक कलंकित धब्बे की तरह देखा जाएगा।

वर्ष 2022 में कई हस्तियों ने इस संसार से विदा ले ली। 17 जनवरी को बिरजू महाराज, 6 फरवरी में को लता मंगेशकर, 15 फरवरी को बप्पी लहरी, 12 फरवरी को राहुल बजाज, 21 सितंबर को कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव का निधन हुआ।

इसी वर्ष गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘‘रेतसमाधि’’ के अंग्रेजी संस्करण को बुकर पुरस्कार मिला। इसी के साथ साहित्य में अंग्रेजी अनुवाद के बाज़ार गर्म होने की चिंता व्यक्त की गई। वहीं फिल्मी दुनिया विवादों से जूझती रही। वर्ष के अंतिम माह में फिल्म ‘पठान’ को ले कर हंगामा होता रहा और विवाद की राजनीति गर्माती रही।

खेल की दुनिया में भी उतार-चढ़ाव आए। इसी वर्ष 23 नवंबर को दुनिया के मशहूर क्रिस्टियानो रोनाल्डो ने पियर्स मॉर्गन के साथ अपने विस्फोटक साक्षात्कार के बाद आपसी सहमति से मैनचेस्टर यूनाइटेड छोड़ दिया। वहीं टेनिस की दुनिया के सितारे सर्बियाई खिलाड़ी नोवाक जोकोविच ने 10वें ऑस्ट्रेलियन ओपन के लिए जनवरी में मेलबर्न के लिए उड़ान भरी थी। लेकिन जोकोविच का वीजा वैक्सिन विवाद के कारण रद्द कर दिया गया। दरअसल जोकोविच ने कोरोना की वैक्सीन लगवाने से मना कर दिया था, जिसके कारण उन्हें यूएस ओपन से भी बाहर करते हुए, संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। यद्यपि जुलाई में ब्रिटेन पहुंचे और सातवें विंबलडन खिताब को जीतने में सफल रहे।

कतर में हुए फीफा वल्र्डकप में भी भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिला। दक्षिण कोरिया एक ऐसे ऐशियाई देश के रूप में उभरा जिसने अपनी भावी दावेदारी के संकेत दे दिए। इसी के साथ क्रोएशिया और मोरक्को ने तो दिग्गज टीमों के पसीने छुड़ा दिए। अंततः लियोनेल मेसी के नेतृत्व में अर्जेंटीना ने फ्रांस  के मुकाबले 4-2 से खिताब अपने नाम किया। वहीं यह प्रश्न गर्माता रहा कि 14 अरब से अधिक जनसंख्या वाला भारत क्वालीफाइंग मैच ही नहीं जीत पाया।
 
जो लोग ग्लोबल वार्मिंग को कपोलकल्पित कह कर इसकी गंभीरता को अनदेखा कर देते थे वे भी वर्ष 2022 में स्तब्ध रह गए। वर्ष 2022 में ग्लोबल वार्मिंग ने यूरोप और अमेरिका में जानलेवा दस्तक दी। जुलाई की शुरुआत में यूरोप के कुछ हिस्सों में पारा खतरनाक रूप से बढ़ गया था। पुर्तगाल, स्पेन, फ्रांस, ग्रीस और क्रोएशिया में जंगल की आग के कारण भीषण गर्मी की चपेट में थे। इस बीच, ब्रिटेन में झुलसा देने वाला तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। भीषण गर्मी की वजह से लोगों का दैनिक जीवन प्रभावित हुआ। भीषण गर्मी की वजह से यूरोप में ट्रेन सिग्नल पिघल गए। ट्रेन सिग्नल पिघल के कई फोटो सोशल मीडिया पर वायरल भी हुए। यूरोपियन कमीशन सैटेलाइट मॉनिटर ने कहा था कि 2022 की गर्मी यूरोप के रिकॉर्ड किए गए अब तक के इतिहास में सबसे गर्म थी। इस बार सदियों में सबसे अधिक सूखे के साथ रिकॉर्ड तोड़ हीटवेव का सामना करना पड़ा था। मई से सितंबर तक पूरे यूरोप में आग लगने की बड़ी घटनाएं दर्ज की गईं। पारे में आसामान्य उछाल देखने को मिला था। जिसके कारण कई जगहों पर सड़कें पिघलने की घटनाएं हुईं। एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्रेटर मैनचेस्टर के स्टॉकपोर्ट की सड़क पिघल कर चिपचिपी हो गई। क्योंकि सड़क पर बिछी डामर की पर्त पिघल गई। पटरियों में आग लगने के बाद कई ट्रेनों को भी स्थगित कर दिया गया। नेटवर्क रेल्स द्वारा शेयर की गई एक तस्वीर में दिखाया गया है कैसे आग लगने के बाद पटरी काली पड़ गई थी। इसमें यह भी दिखाया गया कि कैसे भीषण गर्मी के कारण ट्रेन का सिग्नल पिघल गया था। जुलाई 2022 में अमेरिका के कैलिफोर्निया के जंगलों में भीषण आग लगी। योशमिते नेशनल पार्क के पास लगी आग में 12 हजार एकड़ जंगल जलकर खाक हो गया। करीब 3 हजार लोग बेघर हो गए। आग ने भारत को भी प्रभावित किया। उत्तराखंड और हिमाचल में जंगलों में लगी आग बेकाबू हो कर जंगलों से होते हुए रिहायशी इलाकों तक जा पहुंची। उत्तराखंड के बागेश्वर जनपद के 6 रेंज के जंगल लगातार धधकते रहे। हिमाचल प्रदेश के सोलन में भी कुछ ऐसा ही हाल देखने को मिला। हरे-भरे जंगल जलकर राख हो गए। इससे करोड़ों रुपए की वन संपदा और वन्य जीवों  को भारी नुकसान पहुंचा। राजस्थान के अलवर जिले के सरिस्का बाघ अभ्यारण के पृथ्वीपुरा-बालेटा गांव के जंगल के पहाड़ों में 28 मार्च को आग लग गई थी। कुछ ही वक्त में आग देखते ही देखते कई किलोमीटर क्षेत्र में फैल गई थी। हां, एक सुखद बात यह रही कि इसी वर्ष कूनो नेशनलपार्क में चीता लाया गया।

वर्ष 2022 की ये घटनाएं हमें बहुत कुछ सिखा गई हैं कि कैसे हमारे सामाजिक व्यवहार में चिंताजनक परिवर्तन हो रहा है, कैसे वैश्विक राजनीति कहीं युद्ध तो कहीं शांति का खेल खेल रही है, किस तरह जलवायु में परिवर्तन हो रहा है और किस तरह हम हम एक साथ (यूनाईटेड) हो कर खुद को साबित कर सकते हैं और सुख-शांति स्थापित कर सकते हैं। ये तो हैं कुछ चुंनिंदा घटनाएं। सभी इसमें शामिल नहीं हैं लेकिन सभी से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है। क्योंकि अतीत और अनुभव से बड़ा और कोई शिक्षा या सबक नहीं होता है।
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Wednesday, June 17, 2020

विशेष लेख - एक सबक है सुशांत का जाना - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह, दैनिक जागरण में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh


दैनिक जागरण में प्रकाशित मेरा यह लेख ... आप भी पढ़िए...

❗हार्दिक आभार "दैनिक जागरण"🙏

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विशेष लेख
एक सबक है सुशांत का जाना
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

विशेषरूप से युवावर्ग सुशांत के इस तरह जाने से सबक ले और इस बात को गांठ में बांध ले कि अपनों से दूर रह कर पैसा और प्रसिद्धि अकेलापन और अवसाद देती है मन का सुकून नहीं। चांद पर प्लाट खरीदने की क्षमता भी कभी-कभी ज़िन्दगी जीने की इच्छा को मार देती है।


वह व्यक्ति मज़दूर या कामगार नहीं था जिसे लाॅकडाउन में अपने रोजगार और घर से विस्थापित हो कर सैंकड़ों किलोमीटर का पैदल सफ़र करना पड़ा हो। अपने अभिनय के दम पर उसने इतना धन कमा लिया था कि जिससे वह चांद पर भी प्लाट खरीद सका। जी हां, #बाॅलीवुड #अभिनेता #सुशांत_सिंह_राजपूत। एक करोड़पति अभिनेता। इंडियन #क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह #धोनी के जीवन पर बनी फिल्म में उन्होंने लीड रोल निभाया था। सुशांत सिंह राजपूत एक फिल्म के लिए 5 से 7 करोड़ रुपये लेते थे। वहीं, विज्ञापन के लिए 1 करोड़ रुपये तक लेते थे। उन्होंने कई रीयल एस्टेट प्रॉपर्टीज में भी निवेश किया हुआ था। बताया जाता है कि उनकी कुल संपत्ति 80 लाख डॉलर यानी 60 करोड़ रुपये से भी अधिक थी। उनकी फिल्म ‘एमएस धोनी’ ने कुल 220 करोड़ रुपये की कमाई की थी। सुशांत सिंह राजपूत ने 34 वर्ष की छोटी-सी आयु में फिल्मों, विज्ञापनों और निवेश के जरिए करोड़ों कमाए। बॉलीवुड के दूसरे सेलेब्रिटीज की तरह सुशांत भी मुंबई के पॉश इलाके बांद्रा में आलीशान घर में रहते थे। उन्हें कारों और बाइक्स का भी काफी शौक था। इसलिए उनके पास कारों की पूरी फ्लीट थी।


सफलता सुशांत सिंह राजपूत के कदम चूम रही थी। उनकी हर फिल्म कमाई का नया रिकॉर्ड बना रही थी। ऐसे में उनकी फीस भी लगातार बढ़ती जा रही थी। कहीं कोई आर्थिक तंगी का मसला नहीं। असफलता का मसला भी नहीं। फिर भी इस युवा अभिनेता ने आत्महत्या जैसा #पलायनवादी कदम उठाया। आखिर क्यों? इस ‘क्यों’ का उत्तर सब ढूंढ रहे हैं। इस ‘क्यों’ का उत्तर शायद ही कभी मिले। लेकिन इस घटना से एक सबक ज़रूर मिला है कि पैसा और प्रसिद्धि भी वह सुख और शांति नहीं दे सकते हैं जो ज़िन्दगी से प्रेम करना सिखा सके।

Ek Sabak Hai Sushant Ka Jana - Dr (Miss) Sharad Singh, Dainik Jagaran, 16.06.2020
कुछ समय पहले सुशांत सिंह राजपूत की मैनेजर #दिशा_सलियन ने भी मुंबई में 12वीं मंजिल से कूदकर खुदकुशी कर ली थी। बताया जा रहा था कि वह अपने मंगेतर संग मुंबई के मलाड में रहती थीं। घटना की जानकारी मिलते ही उन्हें बोरिवली के हॉस्पिटल ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था। आत्महत्या के पीछे अभी कोई भी वजह सामने नहीं आई। इससे पहले ‘क्राइम पेट्रोल’ एक्ट्रेस #प्रेक्षा_मेहता ने भी पंखे से लटककर खुदकुशी की थी। बॉलीवुड इस समय मुश्किल दौर से गुजर रहा है। कई #सेलेब्स ने काम न मिलने के चलते खुदकुशी की है। सोचने की बात है कि काम न मिलने की स्थिति में विस्थापित प्रवासी मज़दूरों ने आत्महत्या करने के बजाए डट कर संकट का सामना किया लेकिन ये सेलेब्स #हताशा और #अवसाद से घिर गए। आखिर इसकी वज़ह क्या हो सकती है?


आज के #बाजारवाद और #भौतिकतावाद के युग में हम जिस तरह पैसे और प्रसिद्धि के जाल में तेजी से जकड़़ते जा रहे हैं, वह हमें अपने आप से ही दूर करता जा रहा है। जिसके पास #पैसा या #प्रसिद्धि नहीं है, वह यही सोचता है कि इन दोनों से दुनिया की सारी खुशियां खरीदी जा सकती हैं, पाई जा सकती हैं। लेकिन सच्चाई यही है कि यह दोनों सबसे पहले अपनों से दूर करना शुरू कर देते हैं। इसके बाद खुद पर से भी ध्यान हटता जाता है क्योंकि लक्ष्य ‘‘स्वांतः सुखाय’’ आए नहीं बल्कि ‘‘दुनिया दिखाय’’ हो जाता है। प्रदर्शन का मोह हमें भला और बुरा सोचने का अवसर नहीं देता है। वहीं दूसरी ओर जब व्यक्ति इस प्रदर्शन के #मायाजाल में लिपटकर गलत-सही कर्मों में भेद करना भी छोड़ देते हैं, तब वे अनचाही परिस्थितियों के संजाल में उलझते जाते हैं। जहां से अवसाद की यात्रा शुरू होती है। अपने ही हाथों कमाया गया एकाकीपन व्यक्ति को वह अवसाद की ओर धकेलता जाता है। एक स्थिति वह आती है जब व्यक्ति आत्महत्या की ओर अपने क़दम बढ़ा देता है। अपने ही हाथों अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेता है। यही तो किया बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने। सुशांत ने पंखे में लटक कर आत्महत्या कर ली। वे पिछले छः माह से अधिक समय से अवसाद दूर करने की दवा खा रहे थे।



वह मानसिक स्थिति जब इंसान सही और गलत में भेद नहीं कर पाता है और अपने भ्रम पर ही अटूट विश्वास करने लगता है, उसी स्थिति में वह आत्मघात जैसे कदम उठाता है। #मनोवैज्ञानिक इस स्थिति को #सीजोफ्रेनिया कहते हैं। यह भ्रम को सच मान लेने की चरम स्थिति है। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि सीजोफ्रेनिया का मनोरोग आत्मीयता और प्रेम पा कर ठीक होने लगता है। लेकिन यह आत्मीयता भौतिकतावाद की दौड़ में तेजी से गुम होती जा रही है। अगर अवसाद (डिप्रेशन) की स्थिति घेरने लगे तो अपनी समस्याएं बेझिझक अपनो से साझा करें और अपनो के निकट रहें। आखिर सुशांत सिंह राजपूत ने जो आत्मघाती कदम उठाया उससे उनके करोड़ों फैन्स तो आहत हुए ही, वे अपनी बहनों और पिता के सीने पर दुखों का पहाड़ छोड़ जाने के अपराधी हैं। इसीलिए जरूरी है कि किसी भी प्रकार का आत्मघाती विचार आते ही पहले अपने परिवार और मित्रों के बारे में सोचना चाहिए कि वे इस दुख को कैसे झेलेंगे। यही समय है कि विशेष रूप से युवावर्ग सुशांत के इस तरह जाने से सबक ले और इस बात को गांठ में बांध ले कि अपनों से दूर रह कर पैसा और प्रसिद्धि अकेलापन और अवसाद देती है मन का सुकून नहीं।
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(दैनिक जागरण में 16.06.2020 को प्रकाशित)
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Late Sushant Singh Rajput Bolywood Actor

Wednesday, April 29, 2020

चर्चा प्लस ... वे सबक जो हमें याद रखने होंगे कोरोना के बाद भी - डाॅ शरद सिंह


Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस  
वे सबक जो हमें याद रखने होंगे कोरोना के बाद भी
- डाॅ शरद सिंह
      कोरोना लाॅकडाउन अभी ख़त्म नहीं हुआ है और कोरोना संकट भी। लेकिन एक न एक दिन इसपर विजय जरूर मिलेगी। तब हमें उन सारे सबक पर अमल करना होगा जो हमें इस दौरान मिले हैं। प्रकृति ने हमारे जैसे इंसानों द्वारा ही हम इंसानों को सबक सिखाया है। यदि हम ऐसी आपदा दुबारा देखना नहीं चाहते हैं तो इनमें से कुछ सबक तो हमें याद रखने ही होंगे ।
       कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव व सुरक्षा के लिए पहले लाॅकडाउन-एक, फिर लॉकडाउन-टू और अब लॉकडाउन- थ्री की बारी है। यदि आरम्भिक ग़लतियों से ही हम सीख ले लेते तो टू और थ्री की बारी नहीं आती। एक बार फिर सागर नगर का ही उदाहरण लें तो यह शहर 10 अप्रैल के पहले तक कोरोना से मुक्त था लेकिन 10 अप्रैल के बाद पूरा शहर सकते में आ गया जब पहला कोरोना पाॅजिटिव पाया गया। मरीज की काॅन्टेक्ट हिस्ट्री भी खंगाली गई जिससे उसके ऐसे दोस्त का भी पता चला जो संक्रमित था। यह जानते हुए भी कि कोरोना संक्रमण की श्रृंखला से फैलता है, लाॅकडाउन लागू होने पर भी उन युवकों द्वारा लापरवाही बरती गई और अनेक लोगों के जान से खिलवाड़ की गई। समाचारों की मानें तो अभी पी-1 अपने नागरिक  कर्तव्य नहीं बल्कि दोस्ती निभा रहा है और अपने उन दोस्तों के नाम नहीं बता रहा है जिनमें से कुछ संक्रमित भी निकल सकते हैं। वह शादीशुदा युवक कोई बच्चा नहीं है कि वह स्थिति की गंभीरता को न समझे। कहीं कोई भ्रम की स्थिति अभी भी शेष है। बहरहाल, हमें उन सबकों के बारे में सोचना चाहिए जो लाॅकडाउन के दौरान हमें मिले हैं और अत्यंत बुनियादी हैं।
Charcha Plus Column of Dr (Miss) Sharad Singh, 29.04.2020

सबक 1-खांसने और छींकने के दौरान मुंह पर कपड़ा या हाथ रखना जरूरी होता है जो हम अधिकांश भारतियों के लिए अब तक गैरजरूरी रहा है।

सबक 2-खांसने या छींकने के बाद अपने हाथ अच्छे से धोंए, उसके बाद ही किसी से हाथ मिलाने की सोचें।

सबक 3-साफ़-सफ़ाई से रहने की आदत डालें, चाहे घर पर हों, दफ़्तर पर हों या शहर में हों। उस हवा को साफ़ रखना हमारी अपनी जिम्मेदारी है जिसमें हम सांस लेते हैं।

सबक 4-बड़े रोचक तरीके से यह बात सामने आ रही है कि दिल्ली वालों ने बरसों बाद आसमान में तारे देखे। ज़ाहिर है कि जहां शाम के चार बजते-बजते प्रदूषण का धुंधलका फैल जाता हो वहां आसमान में तारे नज़र ही कहां आएंगे? इस मामले में एक बात और भी है कि दिल्ली वालों को लाॅकडाउन से पहले आसमान देखने की फ़ुर्सत भी कहां मिली? लाॅकडाउन ने उन्हें शाम के बाद की होटलिंग, पब और पार्टियों से दूर जो कर दिया। अब फ़ुर्सत मिली तो अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ उन्होंने आसमान में चांद-तारों की ओर देखा। यानी सबक की बात यह कि दिल्ली के साथ ही सभी शहर प्रदूषणमुक्त रहें और लोग पैसों या चमक-दमक के पीछे भागने के बजाए अपने परिवार को समय देने की आदत बनाए रखें, कोरोनाबंदी के बाद भी।

सबक 5- अकारण गाड़ियां दौड़ाना भी बंद रखें। गाड़ियों की अनावश्यक दौड़ से ध्वनि और वायु का प्रदूषण-स्तर बढ़ता है, ट्रैफिक व्यवस्था जटिल हो जाती है और कीमती डीज़ल-पेट्रोल की क्षति होती है। सरकारें कभी कार-पूल का आग्रह करती हैं तो कभी ऑड-ईवेन की व्यवस्था लागू करती हैं। वे पब्लिक ट्रांसपोर्ट को भी बढ़ावा देती हैं लेकिन हमारी दिखावा पसंद फितरत हमें घर के हर सदस्य के लिए दो पहिया या चार पहिया गाड़ी लेने को उकसाती है। जिस युवा उम्र में सायकिल चलाना सेहत को दुरुस्त रख सकता है, उस उम्र में चार पहिया या नए माॅडल की धांसू दो पहिया पर चढ़ कर हम जिम के चक्कर लगाते नज़र आते हैं। कोरोनाबंदी के बाद हमें चुनना होगा अपनी सेहत और दिखावे में से किसी एक को।

सबक 6- कोरोनाबंदी यानी लाॅकडाउन ने हमें सिखाया कि बताया कि हम अपने बुजुर्गों के लिए कितने जरूरी हैं या यूं कहा जाए कि कोरोनाबंदी ने हमें हमारे बुजुर्गों से एक बार फिर जोड़ दिया है। इस जुड़ाव को कोरोना के बाद भी हमें यूं ही बनाए रखना है। हमें याद रखना होगा कि बुजुर्गों को युवाओं की और युवाओं को बुजुर्गों की जरूरत है।

सबक 7- हमें अपनी लपरवाहियों और ढिठाई पर काबू पाना होगा। कोरोनाबंदी के बीच मिली छूटों का बेजा लाभ उठाते हुए नियमों की धज्जियां उड़ाने की अनेक घटनाएं देश भर में सामने आईं। तो कोरोना के बाद भी हमें जरूरी नियमों का पालन करने की आदत को मजबूत करना होगा। यह हमारी हर प्रकार की सुरक्षा के लिए जरूरी है।

सबक 8- भीड़ के बजाए कतार के अनुशासन को अपनाए रखना होगा कोरोनाकाल के बाद भी। जीवन में अनुशासन ही संवेदनाओं को भी बढ़ाता है और हम संवेदनशील संस्कृति का अहम हिस्सा हैं।

सबक 9- कोरोना आपदा ने उस भावना को पुनः जगा दिया जो धीरे-धीरे कम सोती जा रही थी, परस्पर एक-दूसरे की मदद की भावना। स्थिति यहां तक जा पहुंची थी कि लोग घायल को सम्हालने के बजाए मोबाईल पर उसके कष्टों की वीडियो बनाने को पागल हो उठते थे। यह घातक प्रवृत्ति समाज से संवेदना को तेजी से घटा रही थी। कोरोना आपदा के दौरान लोग जिस प्रकार विस्थापित मजदूरों, बुजंर्गों और बच्चों की मदद के लिए आगे आए वह एक सुखद अहसास है। परेशान लोगों की मदद की यह भावना कोरोना संकट के बाद भी बनाए रखनी है।

सबक 10- कोई भी आपदा जाति, धर्म अथवा सम्प्रदाय में भेद नहीं करती है, यह कोरोना आपदा ने याद दिला दिया है। अतः कोरोना आपदा के बाद भी हमें जाति, धर्म अथवा सम्प्रदाय से ऊपर उठ कर मानवीय भावनाओं को बनाए रखना होगा। उद्दंड किसी भी जाति, धर्म में हो सकते हैं। अतः ऐसे लोगों के मंसूबों को हवा देने के बजाए आपसी भाईचारे पर ही डटे रहना होगा, जैसा कि कोरोनाबंदी के दौरान हमने किया।  
          बहुत सारे सबकों में से ये कुछ सबक हैं जो कोरोना आपदा ने हमें सिखाए हैं और इन सबकों को हमें कोरोना आपदा के बाद भी याद रखना होगा। यह अच्छी बात है कि अन्य देशों की अपेक्षा हमारे हालात बहुत बेहतर रहे। इन्हें हमें और बेहतर बनाते जाना है।
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(दैनिक सागर दिनकर में 29.04.2020 को प्रकाशित)
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Monday, May 21, 2018

चर्चा प्लस ... कर्नाटक चुनाव से सभी को लेने होंगे सबक ... डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस
कर्नाटक चुनाव से सभी को लेने होंगे सबक
- डॉ. शरद सिंह
कर्नाटक ने यह साबित कर दिया कि कांग्रेस ने अभी भी अपना होमवर्क ठीक से नहीं किया है। जोश और जमीनी सच्चाई में अंतर होता है, यह अंतर कांग्रेस को समझना होगा यदि वह भावी चुनाव में खुद को बचाए रखना चाहती है तो। वहीं दूसरी ओर भाजपा को अपनी जीत का जश्न मनाते हुए चिन्तन करना होगा कि उन्होंने जो सीटें गंवाईं, वे क्यों गंवाईं। साथ ही यह भी मनन करना होगा कि प्रदेशिक चुनावों के लिए यदि हर बार उसे अपने बड़े-बड़े महारथी ही सामने लाने पड़ रहे हैं तो कहीं उसके प्रादेशिक ढांचे में आत्मबल की कमी तो नहीं है? कुलमिला कर कर्नाटक का यह चुनाव-परिणाम भावी लोकसभा चुनाव पर असर डालने वाला साबित हो सकता है यदि पक्ष और विपक्ष दोनों ही इससे सबक ले कर आगे की रणनीति तैयार करें।

 
कर्नाटक चुनाव से सभी को लेने होंगे सबक - डाॅ. शरद सिंह ... चर्चा प्लस  Article for Column - Charcha Plus by Dr Sharad Singh in Sagar Dinkar Dainik

समूचा देश कर्नाटक के चुनाव की ओर कटकी लगाए देख रहा था। जब से चुनाव की रणभेरी बजी थी तब से अटकलों का बाजार भी गर्म हो गया था। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के एक्जिट पोल अपने-अपने राग अलापने लगे थे। कुछ ने तो त्रिशंकु सरकार की संभावना भी व्यक्त कर दी थी। किन्तु परिणामों ने एक झअके में सब कुछ स्पष्ट कर दिया। मतगणना के प्रथम चौथाई दौर में ही यह बात खुल कर सामने आ कई थी कि कर्नाटक में भाजपा को बहुमत मिलने जा रहा है। बेशक कांग्रेस को पिछली बार से ज्यादा वोट मिले, फिर भी उसने अपनी आधी सीटें गंवाई दीं।
कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों में से 222 पर चुनाव 12 मई को हुए थे। इस दौरान 72.13 प्रतिशत मतदान हुआ। जबकि पिछली बार 71.45 प्रतिशत हुआ था। 2008 में हुए चुनावों के परिणामस्वरूप प्रदेश में सरकार बदल गई थी और भाजपा ने पहली बार राज्य में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई थी। इस बार भी ऐसा ही हुआ। कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। कर्नाटक विधानसभा की 224 में से 222 सीटों पर हुए चुनावों पर भाजपा को बहुमत मिलना जहां प्रदेश में एक राजनीतिक स्थिरता का संकेत देता है वहीं इस बात को साबित करता है कि भाजपा के प्रति जनता का रुझान अभी भी कायम है। मतगणना के शुरुआती आधे घंटे में कांग्रेस ने बढ़त बनाई थी। इसके बाद एक घंटे तक उसकी भाजपा से कड़ी टक्कर देखने को मिली। लेकिन साढ़े नौ बजे के बाद भाजपा आगे निकलकर बहुमत तक पहुंच गई। मानो कोई तेज आंधी चली हो और जिसने मजबूत दिखने वाले पेड़ों की जडे़ं हिला दी हों। राज्य में भाजपा से ज्यादा वोट शेयर हासिल करने के बाद भी कांग्रेस उसे पराजित नहीं कर पाई। वहीं सत्ताधारी पार्टी की सीटें पिछली बार से आधी रह गईं। कर्नाटक हारने के बाद कांग्रेस की सरकार पंजाब, मिजोरम और पुडुचेरी में बची है। वहीं, भाजपा अब 31 राज्यों में से 21 में सत्ता में पहुंची है। राजराजेश्वरी, जयनगर मात्र इन दो स्थानों के चुनाव रोके गए हैं।
राजनीतिक आकलनकर्ताओं के त्वरित आकलन के अनुसार जिन दो कारणों से भाजपा ने कांग्रेस पर बढ़त बनाई वे हैं- (1) कर्नाटक की जनता पर येदियुरप्पा का प्रभाव जो खनन घोटाले के बाद भी कम नहीं हुआ। कर्नाटक में भाजपा ने जब पहली बार अपने बूते सरकार बनाई थी तो 2008 में कमान येदियुरप्पा को सौंपी थी। लेकिन बाद में खनन घोटालों में आरोपों के चलते येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। उन्होंने कर्नाटक जनता पक्ष नाम से अलग पार्टी बना ली और 2013 का चुनाव अलग लड़ा। 2013 के चुनाव में भाजपा के हाथ से सत्ता निकल गई। येदियुरप्पा की पार्टी को 9.8 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 6 सीटें मिलीं। माना गया कि इससे भाजपा को नुकसान हुआ। उसका वोट शेयर सिर्फ 19.9 प्रतिशत रहा और वह 40 सीटें ही हासिल कर सकी। इस बार येदियुरप्पा की भाजपा में वापसी हुई। उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया तो पार्टी का वोट शेयर 35 प्रतिशत से ज्यादा हो गया। यानी इसमें येदियुरप्पा की पार्टी का वोट शेयर जुड़ गया जिसने भाजपा को सीधे लाभ पहुंचाया। (2) भाजपा की जीत का दूसरा कारण माना जा रहा है सिद्धारमैया का लिंगायत कार्ड उलटा पड़ना। सिद्धारमैया ने चुनाव की तिथियों के घोषित होने से ठीक पहले राज्य में लिंगायत कार्ड खेला। इस समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने का विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर केंद्र की मंजूरी के लिए भेजा। किन्तु इसका लाभ उन्हें नहीं मिल सका। राज्य में लिंगायतों की आबादी 17 प्रतिशत से घटाकर 9 प्रतिशत मानी गई। इस कदम से वोक्कालिगा समुदाय और लिंगायतों के एक धड़े वीराशैव में भी नाराजगी थी। इससे उनका झुकाव भाजपा की तरफ बढ़ा।
उपरोक्त दो कारणों के अलावा एक और कारण है जिसने भाजपा को लाभ दिलाया, वह है प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की धुंआधार रैलियां। प्रधान मंत्री मोदी ने इस चुनाव में 21 रैलियां कीं। कर्नाटक में किसी प्रधानमंत्री की सबसे ज्यादा रैलियां थीं। इसके अलावा उन्होंने दो बार ‘नमो एप’ के माध्यम से जनता को संबोधित किया। उन्होंने अपनी रैलियों के दौरान लगभग 29 हजार किलोमीटर की दूरी तय की। यदि तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो पता चलता है कि भाजपा ने कर्नाटक चुनाव को कितनी गंभीरता से लिया। लगभग 20 करोड़ की जनसंख्या और 403 सीट वाले उत्तरप्रदेश में प्रधान मंत्री मोदी 24 रैलियां की थीं। वहीं 6.4 करोड़ की जनसंख्या और 224 सीटों वाले कर्नाटक में 21 रैलियां कीं। उल्लेखनीय है कि इस दौरान प्रधान मंत्री मोदी एक भी धार्मिक स्थल पर नहीं गए।
भाजपा के दूसरे महारथी अर्थात् भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 27 रैलियां और 26 रोड शो किए। करीब 50 हजार किलोमीटर की यात्रा की। 40 केंद्रीय मंत्री, 500 सांसद-विधायक और 10 मुख्यमंत्रियों ने कर्नाटक में प्रचार किया। भाजपा नेताओं ने 50 से ज्यादा रोड शो किए। 400 से ज्यादा रैलियां कीं। भाजपा के इस तूफानी अभियान के विरुद्ध कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 20 रैलियां और 40 रोड शो एवं नुक्कड़ सभाएं कीं। वैसे राहुल गांधी ने कांग्रेस के पक्ष में प्रचार के लिए 55 हजार किमी की यात्रा करते हुए प्रधान मंत्री मोदी से दो गुना अधिक दूरी तय की। उत्तरप्रदेश के चुनाव-प्रचार में सोनिया गांधी ने हिस्सा नहीं लिया था किन्तु कर्नाटक चुनाव-प्रचार में वे भी शामिल हुईं।
यदि राजनीतिक धड़ों के प्रभाव के अनुसार कुल परिणाम देखे जाएं तो विगत 4 साल में भाजपा-एनडीए 8 से 21 राज्यों में पहुंची, वहीं कांग्रेस 14 से घटकर 3 राज्यों में सिमट गई।
कर्नाटक के नवीन परिदृश्य में यह माना जा रहा है कि येदियुरप्पा ने ’कर्नाटक के किंग’ का दर्जा हासिल कर लिया है क्योंकि कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा एक ऐसा नाम जिसके बिना बीजेपी का अस्तित्व अधूरा माना जा रहा है। राजनीतिक समीकरण हों या फिर जातीय जोड़-तोड़ येदियुरप्पा ने खुद को राज्य में स्थापित करने और विकसित करने में किसी तरह की कमी नहीं छोड़ी है। मांड्या जिले के बुकानाकेरे में 27 फरवरी 1943 को लिंगायत परिवार में जन्में येदियुरप्पा छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे। सन् 1965 में सामाजिक कल्याण विभाग में प्रथम श्रेणी क्लर्क के रूप में नियुक्त येदियुरप्पा नौकरी छोड़कर और शिकारीपुरा चले गए जहां उन्होंने वीरभद्र शास्त्री की शंकर चावल मिल में एक क्लर्क के रूप में कार्य किया। अपने कॉलेज के दिनों में वे आरएसएस में सक्रिय हुए। सन् 1970 में उन्होंने आरएसएस की सार्वजनिक सेवाएं शुरू की, जिसके बाद उन्हें कार्यवाहक नियुक्त किया गया। येदियुरप्पा भाजपा के एक ऐसे नेता हैं, जिनके बल पर भाजपा ने पहली बार दक्षिण भारत में ना सिर्फ जीत का स्वाद चखा बल्कि सत्ता पर शासन भी किया था। यूं भी, शिकारीपुरा सीट को येदियुरप्पा का गढ़ कहा जाता है। येदियुरप्पा इस सीट से 1983 से जीतते आ रहे हैं। मात्र एक बार सन् 1999 में उन्हें कांग्रेस के महालिंगप्पा से हार का सामना करना पड़ा था।
खनन घोटाले पर मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने के बाद येदियुरप्पा भाजपा से अलग हो गए। इसके बाद मोदी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने के बाद जनवरी 2013 में पार्टी में दोबारा उनकी वापसी हुई। इतना ही नहीं 2018 में भाजपा ने दोबारा येदियुरप्पा पर ही दांव खेला और उन्हें सीएम पद का उम्मीदवार बनाया।
कर्नाटक ने यह साबित कर दिया कि कांग्रेस ने अभी भी अपना होमवर्क ठीक से नहीं किया है। जोश और जमीनी सच्चाई में अंतर होता है, यह अंतर कांग्रेस को समझना होगा यदि वह भावी चुनाव में खुद को बचाए रखना चाहती है तो। कांग्रेस को उस वजह को समझना होगा कि इतिहास के बारे में गलतबयानी करके भी भाजपा जंग कैसे जीत ली? क्या कांग्रेस ने अपने उम्मींदवारों को चुनने में गलती कर दी या वे अपने पक्ष को प्रभावशाली ढंग से जनता के सामने नहीं रख पाए? अब कांग्रेस के लिए महाआत्ममंथन का समय आरम्भ हो चुका है। यदि कांग्रेस सचमुच नहीं चाहती है कि वह अतीत के पन्नों में समा जाए तो उसे बड़ी कठोरता से अपने उम्मींदवारों, अपने नेतृत्व और अपनी योजनाओं का पुनःआकलन करना होगा। यह ध्यान रखना जरूरी है कि प्रजातंत्र में एक मजबूत विपक्ष भी बहुत मायने रखता है। वहीं दूसरी ओर भाजपा को अपनी जीत का जश्न मनाते हुए चिन्तन करना होगा कि उन्होंने जो सीटें गंवाईं, वे क्यों गंवाईं। साथ ही यह भी मनन करना होगा कि प्रादेशिक चुनावों के लिए यदि हर बार उसे अपने बड़े-बड़े महारथी ही सामने लाने पड़ रहे हैं तो कहीं उसके प्रदेशिक ढांचे में आत्मबल की कमी तो नहीं है?
कुलमिला कर कर्नाटक का यह चुनाव-परिणाम भावी लोकसभा चुनाव पर असर डालने वाला साबित हो सकता है यदि पक्ष और विपक्ष दोनों ही इस चुनाव से सबक ले कर आगे की रणनीति तैयार करें।
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( दैनिक सागर दिनकर, 16.05.2018 )
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