Thursday, September 11, 2025

बतकाव बिन्ना की | पितर पूछ रए, सबरे कौव्वा हरें कां गए? | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

   
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बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
पितर पूछ रए, सबरे कौव्वा हरें कां गए?
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

‘‘काए भौजी, भैयाजी नईं दिखा रए?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘बे कारी बरिया लौं गए।’’ भौजी ने बताई।
‘‘कारी बरिया? उते काए खों गए? हमने तो सुनी आए के उते तांत्रिक-मांत्रिक कछू उल्टो-सूदो पूजा-पाठ करत आएं। सो, भैयाजी उते का करबे के लाने गए?’’ मोए जा सुन के अचरज भऔ के भैयाजी कारी बरिया के इते गए आएं? का आए, के ऊको कारी बारिया जे लाने कओ जात आए के उते एक भौत पुरानो बरिया को पेड़ आए। ऊ पेड़ के नैंचे कारी जू की एक मूरत धरी आए। उते मनौती वारी लुगाइयां मनौती को धागा बांधवे जात आएं औ अमावस औ पूरनमासी को उते तांत्रिक हरें कछू स्पेशल पूजा करत आएं। सो अमावस औ पूरनमासी को रात की बेरा ऊ तरफी कोनऊं नईं फटकत। मनो आज तो ऐसो कछू आए नईं औ फेर जे दिन को टेम ठैरो, सो भैयाजी काए के लाने गए हुइएं?
‘‘सो भैयाजी काए के लाने उते गए?’’ मैंने फेर के भौजी से पूछी।
‘‘अरे उनकी ने कओ! बे हमाई कोन सुनत आएं। तुम तो जानत आओ के आजकाल करै दिन मने पितरों के दिन चल रए। अब ईमें कौब्बा खों भोग देनो जरूरी आए। औ कौव्वा हरें दिखात लौं नइयां। हमने तो कई तुमाए भैयाजी से के छत पे बरा औ पुड़ी डार देओ। जो कौव्वा आहें सो बे खा लैहें ने तो कोनऊं औ पंछी खा लैहे। अब तुमई बताओ के जो कौव्वा नईं दिखा रए तो अपन ओंरे का कर सकत आएं। पर तुमाए भैयाजी खों तो जो दिमाक में चढ़ गई सो चढ़ गई। कोनऊं ने उनको बता दओ के उते कारी बरिया पे कौव्वा आत आएं, सो बे बड़ा-पुड़ी ले के कारी बरिया खों चले गए। बाकी हमने उने समझाई रई के आप जा तो रए हो मनो उते बारा बजे के टेम पे ने रुकियो।’’ भौजी बोलीं।
‘‘काए बारा बजे का होत आए?’’ मैंने पूछी।
‘‘ऐसो कओ जात आए के दुफारी के बारा बजे बरिया को भूत उठ बैठत आए। अब रामजाने का सांची औ का झूठी? बाकी तुमें याद हुइए के पर की साल बा हल्के को मोड़ा खेलत-खेलत कारी बरिया के इते पौंच गऔ रऔ औ दुफारी के बारा बजतई सात ऊपे भूत चढ़ गओ। ईके बाद बा छै मईना बीमार रओ। वा तो ऊकी मताई ने उते बालाजी जा के झरवाओ, तब कऊं जा के ऊपे से भूत भागो।’’ भौजी ने कई।
‘‘आप मानत आओ भूत-प्रेत खों?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘मानत तो नईयां, बाकी रिस्क को ले? कऊं सई में कोनऊं भूत-वूत भओ तो?’’ भौजी बोलीं।
हम ओरें बतकाव करई रई तीं के इत्ते में भैयाजी हांपत-हांपत घरे लौटे।
‘‘का भओ? कौव्वा मिले?’’ भौजी ने उने देखतई सात पूछी।
‘‘तनक पानी तो पिलाओ पैले। गाला सूको जा रओ। भौतई गरमी आए। ऐसी सड़ी गरमी के का कई जाए!’’ भैयाजी अपने गमछा से अपने मों पे पंखा सो करन लगे। 
‘‘पंखा चल रओ भैयाजी!’’ मैंने भैयाजी खों याद दिलाओ।
‘‘हऔ! बाकी पतो सो नई पर रओ।’’ भैयाजी ऊंसई पंखा झलत से बोले। 
‘‘तनक देर में ठंडो लगहे। अभईं आप बायारे से निंगत आ रए न, जेई से ज्यादा गरमी लग रई हुइए।’’ मैंने भैयाजी खों तनक सहूरी बांधगे को प्रयास करो।
इत्ते में भौजी पानी ले आईं। भैयाजी की दसा ऐसी हती के बे एकई घूंट में पूरो गिलास भर पानी गटक गए। ईके बाद भैयाजी की दसा ठीक भई।
‘‘सो का भओ? कौव्वा मिले?’’ भौजी ने फेर के पूछी।
‘‘कां मिले? उते बरिया तरे ठाड़ें-ठाड़े गोड़े औ दुखन लगे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘उते आपई भर पौंचे हते के औ बी कोनऊं रओ?’’ भौजी ने पूछी।
‘‘दो-चार जने औ रए। हम ओरें उते कुल्ल देर ‘कां-कां’ पुकारत ठाड़े रए, बाकी उते कौव्वा तो कौव्वा, कौव्वा की छायारीं लौं ने आई।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हमने तो पैलेई कई रई के सुनी-सुनाई पे ने भगत फिरो। अब कौव्वा ने मिल रए तो जे बात अपने पुरखा लौं जानत आएं। बे बुरौ ने मानहें। आप तो हमाई कई मानो औ छत पे धर दओ करे। जो इते से कोनऊं कौव्वा कड़हे तो खा लैहे, ने तो कछू औ पंछी खा लैहे। काए से जब कौव्वाप ने मिलें तो करो का जाए?’’ भौजी ने भौयाजी खों समझाओ।
‘‘भौजी सई कै रईं, भैयाजी! नाएं-मांए भगत फिरबे को मौसम ने आए जे। यां तो पानी गिरत आए ने तो भड़भडावे वारी धूप कढ़ आत आए। ईमें बीमार पड़बे को डर रैत आए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सो तो सई कै रईं तुम! भारी गरमी आए। इत्तो पानी गिरो मनो ठंडक ने आई।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अब तो पितर हरें सोई हेरत हुइएं के सबरे कौव्वां कां बिला गए?’’ भौजी बोलीं।
‘‘का आए भौजी के कौव्वा हरें ऊंचे पेड़न पे अपनो घोसला बनात आएं। अब अपने धनी-धोरी हरों ने मकान औ कालोनी बनाबे के चक्कर में सबरे पेड़े कटा दए। अब कौव्वा कां रएं? कां अपनो घोंसला बनाएं? जेई लाने तो इते कौव्वा नईं दिखात। अबई ओरें सोचो के जोन से ऊको घर छीन लओ जाए तो बो उते काए खों रैहे? बा उते जाहे जिते ऊके बाल-बच्चा पल सकें।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘सई कै रईं बिन्ना! हमें याद ठैरी के हमाए उते मायके में नीम को ऊंचो सो पेड़ रओ, ऊपे कौव्वा को घोंसला रओ। औ हमाई मताई बतात रईं के कोयल सोई अपनो अंडा कौव्वा के घोसला में दे के चली जात आए। कौव्वा ऊको अंडा बी अपनो अंडा समझ के पालत-पोसत रैत आए औ अंडा फूटबे पे कौव्वा के बच्चा तो कां-कां करत आए औ कोयल के बच्चा कूं-कूं करन लगे आएं। तब कौव्वा खों पतो परत के ऊके संगे का धांधली करी गई।’’ भौजी ने कई।
‘‘जे सई आए भौजी। बाकी अप ओरें चाओ तो मोसे पूछ सकत आओ के सबरे कौव्वा कां मिलहें।’’ मैंने भैयाजी औ भौजी दोई से कई।
‘‘कां मिलहें?’’ दोई ने एक संगे पूछी।
‘‘सबरे कौव्वा टीवी चैनल में मिलहें। कछू एंकर के रूप धरे तो कछू डिस्कन वारे पाउना के रूप में। आप ओरन ने देखो हुइए के उते कित्ती कांव-कांव होत आए। इत्ती कांव-कांव तो असली वारे कौव्वा बी नईं करत आएं।’’मैंने हंस के कई।
‘‘जा तुमने सई कई बिन्ना। बरा-पुड़ी के ले हमें कोनऊं टीवी चैनल पे जाओ चाइए रओ।’’ भैया सोई हंसन लगे।
‘‘अबे बी कछू नईं बिगरो! अबे तो करै दिन चलहें। औ भौजी, जो कोनऊं दिनां पुरखां हरें पूछें के सबरे कौव्वा कां हिरा गए सो उने बोल दइयो के बे सबरे टीवी प्रोगराम में बैठे।’’ मैंने भौजी से कई। फेर मैंने कई के, ‘‘ बात असल में जे आए के जे जो सबरे रीत-रिवाज बनाए गए, ले जेई के लाने के अपन ओरें पेड़-पौधा, पसु-पक्छी सबई की परवा करें। सो सबके लाने कोनऊं ने कोनऊं त्योहार बना दए गए। अब अपने ओरन खों कौव्वा खों तो भोग लगाने, मनो कौव्वा खों रैन नई देने, सो कैसे काम चलहे?’’ मैंने कई।
‘‘तुम कछू कओ, अब हम तो जा रए कोनऊं टीवी चैनल वारों के इते। काए से हमें कौव्वा तो जिमानेंई आए।’’ भैयाजी बोले औ हंसन लगे। 
 बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लौं जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में के कौव्वा के घोंसला के लाने हमने कित्ते पेड़ लगाए? औ संगे जे सोई सोचियो के जबें पितरों के इते पौंचबी तो उनें का जवाब देबी?    
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