Wednesday, July 9, 2025

चर्चा प्लस | योगनिद्रा की पौराणिक कथाएं और वैज्ञानिक उपलब्धि | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर


दैनिक, सागर दिनकर में 09.07.2025 को प्रकाशित


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चर्चा प्लस
योगनिद्रा की पौराणिक कथाएं और वैज्ञानिक उपलब्धि
    - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह        

     
          चातुर्मास आरम्भ हो चुका है। भगवान विष्णु चार माह के लिए योगनिद्रा में चले गए हैं। सभी मांगलिक कार्य स्थगित रहेंगे इन चार मास में। कहा जाता है कि इस दौरान विश्व का संचालन भगवान शिव के हाथों में आ जाता है। क्यों जाते हैं विष्णु योगनिद्रा में और क्या है यह योगनिद्रा? वस्तुतः पुराणों में विष्णु के योगनिंदा में जाने संबंधी विविध रोचक कथाएं हैं। साथ ही योगनिद्रा का वैज्ञानिक महत्व भी है। यह गूढ़ विषय है जिसे पाश्चात्य दार्शनिकों एवं वैज्ञानिकों ने अपने-अपेन ढंग से व्याख्या की है किन्तु वे निद्रा और योगनिद्रा के गहराई से अंतर नहीें बता सके हैं क्योंकि प्राचीन भारतीय ज्ञान वर्तमान ज्ञान से भी अधिक परिष्कृत था जिसे समझना आसान नहीं है।   

आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक का समय वह समय होता है जब माना जाता है कि भगवान विष्णु जो इस संसार के नियंता हैं चार मास के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। उनकी अनुपस्थिति में सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। अब प्रश्न उठता है कि भगवान विष्णु चार मास के लिए क्यों सोते हैं? यह उनकी नींद किस प्रकार की है? क्योंकि यदि ईश्वर ही सो जाएंगे तो ईश्वरीय संरचनाओं का क्या होगा? विष्णु की योग निद्रा की गूढ़ता में जाने तथा उससे संबद्ध पौराणिक कथाओं का आनंद लेने से पहले पहले यह समझ लेना जरूरी है कि इसमें वैज्ञानिकता एवं प्रकृति विज्ञान शामिल है। आषाढ़ मास से वर्षारम्भ होती है। चार मास वर्षा ऋतु का माना गया है। इस दौरान सूर्य की प्रखरता कम हो जाती है तथ कई बार सूर्य कई-कई दिन तक बादलों के पीछे अदृश्य रहता है। जल की बहुलता रहती है। वृष्टि के कारण नदियों में बाढ़ की स्थिति रहती है तथा सभी जलाशय जल से आप्लावित हो जाते हैं। प्राचीनकाल में इस अवधि में यात्राएं संभव नहीं थीं। बड़े यज्ञ-अनुष्ठान एवं वैवाहिक कार्यक्रम संभव नहीं थे। अतः छोटे यज्ञ-अनुष्ठानों, एक स्थान पर ठहरे हुए ऋषियों-मुनियों से ज्ञान की प्राप्ति आदि कार्यों का समय इसे माना गया। क्योंकि इस अवधि में ऋषि-मुनि भी बाढ़ आप्लावित नदियों को पार कर के यात्राएं नहीं कर सकते थे। उनका एक स्थान पर ठहर कर चार मास की अवधि को व्यतीत करना आवश्यक था। इस अवधि में वे जन सामान्य को ज्ञान प्रदान करते थे। इसका दूसरा पक्ष यह है कि ऋतु परिवर्तन के कारण अर्थात वर्षा ऋतु के कारण ब्रह्मांडीय गतिविधियां बदल जाती हैं। इसीलिए माना जाता है कि भगवान विष्णु की उस योग निद्रा में चले जाते हैं जो ब्रह्मांडीय शिथिलता की अवधि है। इसीलिए कहा जाता है कि इस अवधि में विष्णु अपनी ऊर्जा वापस ले लेते हैं, जिससे ब्रह्मांड ब्रह्मांडीय जल में विलीन समा जाता है।

योगनिद्रा के संबंध में कई पौराणिक कथाएं मिलती हैं जो अत्यंत रोचक हैं। एक कथा है राजा बलि की।

राजा बलि और भगवान विष्णु की कथा:
पद्म पुराण और भागवत पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु की निद्रा से जुड़ी सबसे प्रचलित कहानियों में से एक राजा बलि की है। राजा बलि को ये वरदान था कि जो भी उनके सामने युद्ध करने आएगा उसकी दुगनी शक्ति राजा बलि के पास आ जाएगी। देवताओं ने उसके बढ़ते प्रभाव से भयभीत होकर, भगवान विष्णु से ब्रह्मांड में संतुलन बनाने का आग्रह किया। भगवान विष्णु ने वामन अर्थात बौने का रूप धारण किया और राजा बलि के पास गए। उनसे तीन पग भूमि का दान मांगा। राजा बलि तुरंत सहमत हो गए। वामन रूप में विष्णु ने अपने पहले पग से पूरी पृथ्वी लोक को नाप लिया। दूसरे पग सेे स्वर्ग नाप लिया। राजा बलि तब तक विष्णु को पहचान गए थे अतः उन्होंने तीसरे पग के नीचे अपना शीष रख दिया। अब भगवान विष्णु ने राजा बलि के भक्ति भाव से प्रभावित होकर उनसे वर मांगने को कहा, बलि ने भगवान विष्णु से अपने साथ पाताल चलकर हमेशा वहीं रहने का वर मांगा। अब भगवान विष्णु राजा बलि के साथ पाताल लोक में रहने लगे। ऐसा होने से देव लोक के सभी देवी-देवता चिंतित हो गए। अब माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को छुड़ाने के लिए एक चाल चली। माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को पाताल लोक से निकालने के लिए एक साधारण स्त्री का रूप धारण किया और राजा बलि को राखी बांधी। राखी बांधने के बाद उन्होंने भगवान विष्णु को पाताल लोक मुक्त करने का वचन मांगा। ऐसे में भगवान अपने भक्त को उदास नहीं करना चाहते थे। इसलिए भगवान विष्णु ने राजा बलि को वचन दिया कि वह आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तक वे पाताल लोक में निवास करेंगे। यही कारण है कि भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में रहते हैं। चातुर्मास के दौरान योग निद्रा में रहकर पाताल लोक में बलि के साथ समय व्यतीत करने लगे। शेष समय वे वैकुंठ में रह कर सृष्टि का संचालन करते हैं।

योग निद्रा और विष्णु की कथा:
17वीं शताब्दी में रामभद्र दीक्षित द्वारा रचित ऋषि पतंजलि की कथा ‘‘पतंजलि चरितम’’ में है। कहानी भगवान विष्णु के योग निद्रा या लौकिक निद्रा में विश्राम से शुरू होती है, जहां वे ब्रह्मांड का ध्यान करते हैं। मान्यता है कि भगवान विष्णु योग निद्रा के दौरान भारी हो जाते हैं। इस विशेष समय में विष्णु योग निद्रा की इतनी गहरी अवस्था में प्रवेश कर गए थे, वे बहुत भारी हो गए। इतने भारी हुए कि हजार सिर वाला शेषनाग उनका भार सहन नहीं कर सका और फुफकारने लगा। उसके मुख से विष निकलने लगा। शेषनाग के फुफकारने से उत्पन्न विष ने देवताओं को भयभीत कर दिया। उन्होंने ब्रह्मा से प्रार्थना की कि वे विष्णु को योग निद्रा से जागाएं। ब्रह्मा ने योग निद्रा नामक देवी की स्तुति की और उनसे अनुरोध किया कि वे भगवान विष्णु की आंखों से दूर चले जाएं ताकि वे शेषनाग को अपने भार से मुक्त कर के सभी की रक्षा करें। तब देवी योग निद्रा ने विष्णु के नेत्रों से विदा ली और विष्णु जाग गए।

मधु और कैटभ से रक्षा और देवी योग निद्रा की कथा:
देवी योग निद्रा की ही एक कथा और मिलती है जिसमें शेषनाग के स्थान पर राक्षस द्वय मधु और कैटभ का उल्लेख है। सृष्टि के आरंभ में चारों ओर केवल आदि सागर था। भगवान विष्णु योगनिद्रा के प्रभाव में शेषनाग पर गहरी नींद में लेटे थे। जब भगवान विष्णु सो रहे थे, तब भगवान विष्णु के दोनों कानों के मैल से मधु और कैटभ नामक दो असुरों का जन्म हुआ। इन असुरों ने देवी की हजारों वर्षों तक घोर तपस्या की। देवी उनकी भक्ति से प्रसन्न हुईं, उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें वरदान दिया कि उनकी मृत्यु तभी होगी जब वे इसकी इच्छा करेंगे। वर पा कर दोनों असुर अभिमानी हो गए। उन्होंने ब्रह्मा पर आक्रमण किया और उनसे चारों वेद छीन लिए। तब ब्रह्मा ने विष्णु को जगाने के लिए योगनिद्रा की स्तुति की और उन्हें प्रसन्न किया। योगनिद्रा ने विष्णु से इस शर्त पर विदा ली कि वे चार मास उसके वश में रहेंगे। विष्णु ने शर्त स्वीकार की और जाग्रत हो कर मधु एवं कैटभ का संहार किया। मधु और कैटभ की कथा में, देवी दुर्गा को ‘‘योग निद्रा’’ के रूप में माना जाता है।

सृष्टि के संतुलन की कथा:
एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान विष्णु सृष्टि के संचालन में संतुलन बनाए रखने के लिए योग निद्रा में जाते हैं। सृष्टि का निर्माण ब्रह्मा, पालन विष्णु और संहार भगवान शिव करते हैं। चातुर्मास के दौरान, जब वर्षा ऋतु होती है, सृष्टि में नई हरियाली और जीवन का संचार होता है। इस समय भगवान विष्णु विश्राम लेकर सृष्टि को स्वयं संतुलित होने का अवसर देते हैं भगवान शिव जल के सहयोग से संहार द्वारा सृष्टि का संतुलन बनाते हैं।
शेषनाग और क्षीर सागर की कथा:
पुराणों में यह भी वर्णित है कि विष्णु द्वारा सृष्टि के संचालन कार्यों में व्यस्त रहने के कारण दुखी हो कर शेषनाग ने रोष प्रकट किया कि वे उन पर ध्यान ही नहीं देते हैं। तब भगवान विष्णु शेषनाग को आश्वस्त किया कि वे चार मास योगनिद्रा में रहते हुए क्षीर सागर में शेषनाग के साथ रहेंगे तथा उन्हीं की शारीरिक शैय्या पर सोएंगे।

योग निद्रा का वैज्ञानिक पक्ष:
उपनिषदों और महाभारत में योग निद्रा नामक एक अवस्था का उल्लेख किया गया है, जबकि ‘‘देवीमहात्म्य’’ में योगनिद्रा नामक एक देवी का उल्लेख है। शैव और बौद्ध तंत्रों में योग निद्रा को ध्यान से जोड़ा गया है। वहीं कुछ मध्यकालीन हठ योग ग्रंथों में समाधि की गहन ध्यान अवस्था के पर्याय के रूप में ‘‘योगनिद्रा’’ का उपयोग किया गया है। पश्चिम के आधुनिक काल में 19वीं और 20वीं सदी में एनी पेसन कॉल और एडमंड जैकबसन जैसे चिकित्सकों ने इसे ‘‘प्रोप्रियोसेप्टिव रिलैक्सेशन’’ कहा। इसे चिकित्सा के रूप में भी अपनाया गया। इसे अमेरिकी सेना द्वारा पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से सैनिकों की रिकवरी में सहायता के लिए लागू किया जाता है। इंटीग्रेटिव रिस्टोरेशन अर्थात आईरेस्ट प्रोटोकॉल का इस्तेमाल इराक और अफगानिस्तान से लौटने वाले सैनिकों के साथ पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर  से पीड़ित होने पर किया गया था। संयुक्त राज्य अमेरिका की सेना के सर्जन जनरल ने 2010 में पुराने दर्द के लिए पूरक वैकल्पिक चिकित्सा (सीएएम) के रूप में योग निद्रा का समर्थन किया था। योग निद्रा की क्रिया के वैज्ञानिक प्रमाण एकमत नहीं हैं किन्तु अभी तक किए गए शोधों ने पश्चिम जगत को चैंकाया है। सन 2019 में पार्कर ने एक प्रसिद्ध योगी का एकल-अवलोकन अध्ययन किया था। इसमें, स्वामी राम ने योग निद्रा के माध्यम से एनआरईएम डेल्टा तरंग नींद में सचेत प्रवेश का प्रदर्शन किया था जिसमें एक शिष्य ने आंखें खुली और बात करते हुए भी डेल्टा और थीटा तरंगें उत्पन्न कीं। सन 2017 में एक चिकित्सीय मॉडल दत्ता और सहकर्मियों द्वारा विकसित किया गया था और यह अनिद्रा के रोगियों के लिए उपयोगी रहा। फिर 2022 में दत्ता और सहकर्मियों ने पैंतालीस पुरुष एथलीटों की नींद की समस्या पर योग निद्रा आजमाया। इसके सकारात्मक परिणाम उन्हें मिले।

यद्यपि योगनिद्रा को सामान्य निद्रा मानने की भूल पश्चिम जगत करता आया है तथा पश्चिम से प्रभावित भारतीय भी यही भूल कर बैठते हैं किन्तु वस्तुतः योगनिद्रा सामान्य निद्रा नहीं वरन एक सजग अवचेतन की स्थिति है जिसे योग की एक अवस्था कहना अधिक उचित होगा। वर्तमान समय में जब इंसान मानसिक तनाव से प्रतिदिन जूझ रहा है, उचित शिक्षक के निर्देशन में योगनिद्रा का अभ्यास उसे आराम पहुंचा सकता है।
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