बतकाव बिन्ना की
जे ओरें मरबे खों उधारे फिरत आएं
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘लूघरा छुबे ई रील बनाबे वारन खों!’’ भैयाजी बर्राया रए हते।
भैयाजी को बर्रयानों सुन के मोए झटका सो लगो। काए से के मैंने भुनसारे ई अपनी एक रील सोसल मीडिया पे पोस्ट करी हती। मोय लगो के कऊं भैयाजी मोए तो नईं सुना रए?
‘‘का हो गओ भैयाजी? कोन खों गरिया रए?’’ मैंने पूछी।
‘‘अरे जे रील बनाबे वारन खों।’’ भैयाजी ने बिगैर गोलमोल करे सीदे-सुट्ट बोल दओ।
‘‘रील तो कभऊं-कभऊं मैं सोई बना लेत हों। आप कऊं मोए तो नईं कै रए?’’ मैंने सोई सीदे पूछ लओ।
‘‘अरे नईं, तुम ऊ टाईप की रील बनाबे वारी नईयां।’’ भैयाजी बोले।
‘‘कोन टाईप की? आप कओ का चा रए?’’ मैंने पूछी।
‘‘अरे, जोन पगलात रैत आएं रील बनाबे के लाने। चाए जान भले चली जाए मनो रील बनाबे के लाने बे कछू बी कर सकत आएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, जो तो आप सई कै रए।’’ मैंने कई।
‘‘तुम रील बनाबे के लाने कभऊं रेल के आंगू दौड़ी?’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘‘नईं!’’
‘‘कभऊं रेल के पटरी पे चलत रेल के नैंचे लेटीं?’’ भैयाजी ने फेर के पूछी।
‘‘का कै रए आप? जो मैंने ऐसो करो होतो तो आज इते ने दिखाती। मोरी ऊपरे की टिकट कट गई होती।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘जेई तो बात आए के तुम ऊ टाईप की रील बनाबे वारी नईयां। बे जो रील बनाबे के लाने मरे जात आएं उने औ कछू नईं दिखात। चाए प्रान कढ़ जाएं, मनो ऐसी रील बनो चाइए के पोस्ट करत साथ वायरल हो जाए।’’भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, सई कई आपने!’’मैंने फेर के भैयाजी बात पे मुंडी हलाई।
‘‘मनो, हमें तो जे समझ में नई आत के ईसे इन ओरन खों का मिल जात आए? अबई एक वीडियो वायरल हो रओ आए जीमें एक पतरो सो लड़का रेल की पटरियन के बीच में लेट जात आए औ ऊके ऊपरे से रेल कढ़ जात आए। रेल जाबे के बाद बा उठ के नाचन लगत आए। बताओ, जा कोन सी बात भई? कऊं कछू गड़बड़ हो जाती तो उतई कटो डरो रैतो। जा रील तुमने सोई देखी हुइए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, देखी न! कोनऊं ने मोए व्हाट्सएप्प करी रई। ईके कछू मईना पैले जेई टाईप की एक औ रील आई रई जीमें एक मोड़ा दो चलत जीप में से एक से दूसरे में कुद्दी लगाऊत आए। फिल्मी स्टाईल। जो कऊं चूक जातो तो हो जाने तो राम नाम सत्त!’’ मैंने सोई भैयाजी खों बताई।
‘‘हऔ, हमने सोई देखी रई। को जाने का मिलत आए इन ओरन खों? इनके बाप-मताई इने मना नईं करत? जो हमाओ मोड़ा ऐसो करतो तो हम ऊको इत्ती बत्ती देते के बा मोबाईल रखबो बी भूल जातो।’’ भैयाजी गुस्सा होत भए बोले।
‘‘का हो गओ? कोन खों बत्ती दे रए?’’ भौजी ने आतई साथ पूछी।
‘‘अरे, बा नासमिटे रील बनाबे वारन खों।’’ भैयाजी ने भौजी खों बताई।
‘‘हऔ, चाए मोड़ा होए, चाए मोड़ी होय, सबई गजबई कर रईं। अबई बा एक मोड़ी रील बनात-बनात नदी में गिर गई औ डूब के मर गई।’’ भौजी बोलीं।
‘‘सई आए भौजी! ऊ दिनां मैं राजघाट बांध गई रई, उते का मोड़ा-मोड़ी औ का बड़े, सबरे खतरा वारी जांगा पे रील बनाउत फिर रए हते। मोय तो देखत में ई डर लग रओ तो, सो मैं तो ऊ तरफी लौं नई गईं। औ हमाई एक संगवारी कैन लगीं के इते परसासन कछू ध्यान नई दे रओ? कोनऊं नइयां इते जो इने रोके-टोंके। सो, मैंने उनसे कई के बैना, परसासन जे बी तो नई कै रओ के जे ओरें उते खतरा वारी जांगा पे जा के प्रान देबें। अपनी जान के बारे में तो इने खुदई सोचो चाइए।’’ मैंने ऊ संगवारी से कई।
‘‘सई आए! अब बिजली को नंगो तार छूहो तो करंट तो लगहे ई। अब कओ के बिजली विभाग वारन ने तो बताओ नईं के बिजली के नंगे तार छूबे से कंरट लगत आए। भला जे कोन सी बात भई!’’ भौजी बोलीं।
‘‘बिलकुल सई भौजी!’’ मैंने कई।
‘‘जेई से तो हम कै रए के ई टाईप के लोगन खों लूघरा छुबे। जे ओरें खुद के प्रान के लाने दुस्मन बनत आएं औ अपने घरवारन के लाने दुख को पहाड़ तोड़त आएं। अरे, पर की साल बा एक मोड़ा नईं रओ, जेई ऐसई मौसम में बा राहतगढ़ वाटरफाल देखबे के लाने गओ रओ। औ देखबे के लाने का, असल में तो ऊको अपनी रील बनाने रई। सो बा उते रील बनात-बनात फाल में टपक गओ। औ ऊकी लहास लौं ने मिल पाई रई।’’ भैयाजी ने याद कराई।
‘‘पर उते तो अब फाल के लिंगे कोनऊं पौंच नईं सकत? बा कैसे उते पौंच गओ?’’ भौजी ने पूछी।
‘‘जोन मरबे खों उधारे फिरत आएं न, बे कोनऊं ने कोनऊं रस्ता ढूंढ लेत आएं। बा मोड़ा के संगवारे ने बताओ रओ के बे दोई नदी की दूसरी तरफी से निंगत-निंगत हारे के इते से फाल के लिंगे पौंच गए रए।’’भैयाजी बोले।
‘‘जा कओ के ऊकी मौत ऊको उते खेंच लाई रई।’’भौजी ने कई।
‘‘मौत काए खेंच लाई रई? वोई अपनी मौत खों खेंच लाओ रओ। बा बाद में अपने लोकल चैनल पे ऊके घरे को हाल दिखाओ गओ रओ, ऊकी मताई को रो-रो के बुरौ हाल हो रओ तो। तीन बैनों में बा एक भैया रओ। ऊके बाप के मों से तो बोल नईं फूट रए हते। बा न रो रओ हतो औ ने कछू बोल पा रओ हतो। ऊको भारी सदमा लगो रओ। मोसे तो उन ओरन की दसा नई देखी गई रई।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जेई तो बात आए! के जे ओरें जान जोखम में डारत समै अपने घवारन के बारे में तनकऊ खयाल नईं करत। काए से के बे तो पगलाए रैत आएं।’’ मैंने कई।
‘‘अरे, तो बा मोड़ियन खों तनक देख लेओ, फरिया सो हुन्ना पैन्ह के ऐसी नचत आएं के का कओ जाए। सई में कैसे बाप-मताई आएं के उने रोकत नइयां। अरे, रील बनाने ई आए तो ऊ टाईप की बनाओ जैसी अपने इते के बे दो मोड़ा हरें बनाऊत आएं। का नावं आए उनको, हऔ एक आशीष उपाध्याय आए औ दूसरो बिहारी उपाध्याय। दोई के संगे एक छोटो मोड़ा और दो-तीन बिन्ना हरें सोई रैत आएं। कित्ती अच्छी रील बनाऊंत आएं। हंस-हंस के पेट दुखन लगत आए। ऊमें कोनऊं रिस्क ने कहाओ। ने रेल के नैचे लेटने औ ने झरना पे कूंदने। ई टाईप की औ बी मुतकी रीलें देखी हमने। कछू जने तो कुत्ता की, बिल्ली की बी रील बना-बना के डारत आएं। बे बी खूबई नोनीं रैत आएं। कछू नाचत वारी बी अच्छी रैत आएं। मनो कछू जरूर ऐसी रैत आएं के देखबेई में खराब लगत आएं।’’ भौजी बतान लगीं।
‘‘बा खराब औ अच्छी की तो ऐसी के ऊमें जान को खतरा तो नोंई, मनो जे ई टाईप की रीलन में तो बनाबे वारे मरे जा रए। अब ऐसो बी का पगलौंटापना।’’ भैयाजी बोले।
‘‘असल में का आए के लाईक औ कमेंट के लाने जे ओरें मरे जात आएं। उने लगत आए के कछू जोखिम भरी रील बनाहें तो तुरतईं वायरल हो जाहे। औ होत बी जेई आए। जेई लाने तो आजकाल आत्महत्या करबे वारे सोई सोसल मीडिया पे लाईव सुसाईट करत आएं। बाकी बे खुद नईं जान पात आएं के उनके मरबे की बीडियो पे उने कित्ती लाईक मिली। काए से के बे तो टें बोल चुकत आएं। जे बी तो एक पगलापना आए।’’ मैंने कई।
‘‘हमने सुनी आए के जोन की रील सबसे ज्यादा वायरल होत आए उने कंपनी कछू पइसा देत आए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘को जाने! बाकी कित्ताऔ पइसा मिल जाएं पर जान से ज्यादा थोड़े हुइएं। जान सो एक बार गई, मने गई, फेर लौट के नईं मिलत। पईसा की तो आनी-जानी लगी रैत आए। औ कम से कम बीस-तीस हजार को फोन पे रीलें बनाबे वारे कोन से भूके मारे जा रै के उने जान हथेली पे लेने परत आए। जे तो पूरो पागलपन आए। हमाओ कैने को मतलब जे के बनाओ, खूब रीलें बनाओ, मनों ऐसी वारी नईं जीमें तुमाई जान जाबे को रिस्क होय। जो कभऊं ऐसो मन होय तो तनक अपने घरवारन को खयाल कर लओ चाइए, के बे तुमाए बिना कैसे जीहें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सई बात आए भैयाजी! मनोरंजन खों मनोरंजन घांई राखो चाइए। अपनी सेफ्टी सबसे पैली ध्यान रखबे की चीज आए।’’ मैंने कई।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लौं जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में के जान जोखम में डारबे वारी रीलें बनाबे वारन खों रोको जाओ चाइए के नईं? औ ईके लाने का पैले घरवारन की जिम्मेवारी नईं ठैरती आए?
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