Monday, June 30, 2025

डॉ (सुश्री) शरद सिंह के काव्य संग्रह "तीन पर्तों में देवता" की डॉ श्याम मनोहर सिरोठिया द्वारा समीक्षा

"गीत ऋषि" की उपाधि से विभूषित देश के वरिष्ठ गीतकार डॉ श्याम मनोहर सिरोठिया जी ने मेरे कविता संग्रह "तीन पर्तों में देवता" की बहुत गहराई से सुंदर समीक्षा की है। अत्यंत आभारी हूं 🚩🙏🚩
       मेरे अनुरोध पर डॉ. सीरोठिया जी ने मुझे समीक्षा का टेक्स्ट भी प्रेषित किया है जिसे पठन सुविधा के लिए यहां साझा कर रही हूं... साभार... 🙏
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 *त्रासदी की कोख से जन्मी धैर्य, हिम्मत एवं जीवटता  की कविताएँ* 
  कविता संग्रह--- *तीन पर्तों में देवता* 
कवयित्री---डॉ (सुश्री) शरद सिंह 
प्रकाशक---बुक्स क्लिनिक पब्लिशिंग कुडूडांड, पंचमुखी हनुमान मंदिर के पास बिलासपुर (छ. ग.)495001
मूल्य---200/

समीक्षक ----डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया 

     
 आद सुश्री शरद सिंह जी का नाम हिंदी साहित्य जगत में स्त्री विमर्श को लेकर बेहद सम्मानित एवं चर्चित  है, पिछले पन्ने की औरतें,पचकौड़ी, कस्बाई सिमोन एवं शिखंडी उपन्यासों ने  हिंदी उपन्यास जगत में बड़ी हलचल पैदा की है।हिंदी, अंग्रेजी एवं बुंदेली में गद्य एवं पद्य में समान अधिकार से लेखन करने वाली डॉ शरद सिंह की 60 पुस्तकें प्रकाशित  हो चुकी हैं. कथा, कहानी, गीत, नवगीत, गजल, कविता, नाटक, समीक्षा एवं नियमित स्तंभ लेखन का एक यशश्वी  इतिहास डॉ शरद जी के साथ जुड़ा हुआ है. आपकी रचनाधर्मिता ने हमारे शहर सागर को पूरे देश में गौरवान्वित किया है। आपको पढ़ते हुए पाठक एक नए रचना संसार में विचरण करते हुए चिंतन के ऐसे आयामों का स्पर्श कर आता है जो साधारणतः उसकी कल्पनाओं से परे होते हैं.
         डॉ शरद सिंह का कविता संग्रह *तीन पर्तों में देवता* कोरोना काल की त्रासदी  से गुजरते हुए बेहद अवसाद के क्षणों में गहन मानवीय संवेदना की स्याही से लिखा गया है। यह विडंबना ही है कि कोरोना के दूसरे चरण में डॉ शरद सिंह ने पहले तो  अपनी पूज्य माताजी सुप्रसिद्ध रचनाकार डॉ विद्यावती मलाविका जी को हृदयाघात से खोया और उनकी सेवा करते हुए कोरोना से संक्रमित होने के बाद मात्र तेरह दिनों के अंतराल से सखी जैसी अपनी बड़ी बहन चर्चित गज़लकार  सुश्री डॉ वर्षा सिंह जी को खो दिया। इन दोहरे  वज्राघातों ने डॉ शरद सिंह को बुरी तरह तोड़ दिया था। इस त्रासदी ने डॉ शरद सिंह के अवचेतन में ईश्वर के प्रति अनास्था का भाव पैदा कर दिया था, ऐसे में ईश्वरीय सत्ता को नकारना केवल आक्रोश ही नहीं था वरन ईश्वर के प्रति नाराजी के साथ उपालंभ का उपक्रम भी था। जीवन के ऐसे भयावह, और अनिश्चित दौर में एकाकी मन ने क्या कुछ नहीं सहा होगा? जब दूर- दूर तक कोई अपना नहीं था तब शोक के उस भीषण दौर की पीड़ा की कल्पना मात्र से ही मन द्रवित हो उठता है,तब महाशोक के अथाह सागर में भटकती हुई अपनी इस प्रिय पुत्री को माँ सरस्वती ने अपने आशीष का संबल शब्दों के रुप में दिया और  फिर लिखा गया कविता संग्रह *तीन पर्तों में देवता*, चूँकि उन दिनों कोरोना के प्रोटोकाल को ध्यान में रखते हुए पार्थिव देह को तीन पर्तों में लपेट कर अंतिम संस्कार किया जाता था, अतः डॉ शरद सिंह द्वारा  *तीन पर्तों में देवता* को  लपेटने  का अर्थ उसकी सत्ता से विमुख होने का प्रयास जैसा भी रहा होगा 
वह लिखती हैं---
हाँ मुझसे छिन गया विश्वास 
छिन गई आस्था 
टूट गई देव प्रतिमा
हो गया दीपक औंधा
बह गया तेल
बची हुई, बुझी हुई बाती को 
तीन पर्तों में लपेट दिया है मैंने
अब कोई देवता 
न करे मुझसे
प्रार्थना की उम्मीद 
नहीं दी उसने मुझे 
मेरे अपनों के जीवन की भीख 
अब उसे भी नहीं मिलेगा 
कोई भी चढ़ावा मुझसे.....

     यह ईश्वर के प्रति अनास्था की पराकाष्ठा थी, इस संग्रह की यह कविता और ऐसी अनेक कविताएँ शोक गीत की तरह मार्मिक और हृदय को झकझोर देने वालीं हैं। इस कविता में उनका दर्प नहीं व्यथित हृदय की करुणा झलकती है।
हमारी संस्कृति में 
तीन अंक का बहुत महत्व है, तीन प्रमुख देवता- ब्रह्मा- विष्णु- महेश, तीन काल- भूत काल, वर्तमान काल,भविष्यकाल, तीन गुण- सतो गुण, रजो गुण, तमो गुण, मुख्यतः तीन लोक- स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक, पाताल लोक, जीवन की तीन अवस्थाएँ- बाल अवस्था, युवा अवस्था, वृद्धावस्था,और शिव जी का तीसरा नेत्र, तीन अंक का यह महत्व डॉ शरद सिंह के लेखन में चिंतन के नए स्वरूप में शब्दाकार हुआ है,मुझे लगता है *तीन पर्तों में देवता* कविता संग्रह के सृजन काल में डॉ शरद जी ने गहन शोक के सागर को भाव, भाषा और शिल्प के तीन आचमनों में समेट लिया है.
   *तीन पर्तों में देवता* की कविताएँ छंद मुक्त कविताएँ हैं लेकिन शिल्प कसा हुआ है ये कविताएँ भावों से मुक्त नहीं हैं, मेरा मानना है कि मानसिक प्रताड़ना के बोझिल क्षणों में ये कविताएँ डॉ शरद जी के अन्तःकरण में ऐसे ही बची रही होंगी जैसे अनेक ज्वालामुखियों के बीच भी पृथ्वी बचाकर रखती है अपने भीतर शीतल और मीठा जल।
      *तीन पर्तों में देवता* कविता संग्रह पढ़ते हुए, मैं अनेक बार डॉ शरद सिंह के कल्पना लोक की विराटता का अनुभव करते हुए आश्चर्यचकित हो जाता हूँ।संग्रह की 
प्रथम कविता "सपने" की एक पंक्ति देखिए-- नहीं आते सपने रतजगे में
जैसे अमावस में नहीं आता चाँद 
जैसे काले बादल से नहीं गिरती धूप 
जैसे पहले सा नहीं जुड़ता है
टूटा हुआ काँच / 
     - इस कविता की विंबधर्मिता अद्भुत है, यह दृष्टि मन को जोड़ती है कविता से।आपकी कविताओं में अर्थबोध ऐसे छुपा होता है जैसे पुष्प के भीतर सुगंध।
        *तीन पर्तों में देवता*कविता संग्रह की भूमिका में डॉ सर हरिसिंह गौर केंद्रीय वि. वि. सागर में हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ आनंद प्रकाश त्रिपाठी कहते हैं कि-- हमारे समय की मशहूर कथाकार शरद सिंह ने बहुत शिद्दत से अपनी बेचैनियों को  अपनी कविताओं में दर्ज किया है. कवयित्री की आंतरिक छटपटाहट, करुणा, प्रेम और कहीं आक्रोश के रुप में व्यक्त होती है।
 कविता संग्रह की एक कविता प्रेम के उस अलौकिक स्वरूप के खोज की कविता है जिसे सामान्य दृष्टि से नहीं देखा जा सकता है वह लिखती हैं --
उसे नहीं मिला प्रेम 
जेबें खाली करके भी 
आखिर 
सच्चा  साबुत प्रेम 
बाजारू जो नहीं होता

   -प्रेम की ऐसी  शोधपरक  अनमोल व्याख्या डॉ शरद सिंह के आत्म सौंदर्य बोध को उजागर करती है।
       कवयित्री डॉ शरद सिंह प्रेम के मूल तत्व की उपासिका हैं, उनकी यह उपासना *तीन पर्तों में देवता* कविता संग्रह में शब्दाकार हुई है। डॉ शरद सिंह का प्रेम रुमानी नहीं है -
वह रहना चाहता है  
सोनागाछी के तंग कमरों में, 
वह प्रेम छटपटाता है 
धारावी की स्लम बस्ती में रहने के लिए, 
वह प्रेम सीरिया, तंजानिया, 
एवं बुरुडी के 
शरणार्थी शिवरों में 
जीवन का संघर्ष करते हुए 
रहना चाहता है. 

        कविता देखिए --
वह (प्रेम) बोला 
छल करते हैं लोग 
मेरा मुखौटा लगाकर 
मुझे रहने नहीं देते
मेरी मनचाही जगह 
वह देर तक बोलता रहा 
मैं सुनती रही 
फिर रोते रहे 
गले लग कर 
हम दोनों 
नींद खुलने तक 

      डॉ शरद सिंह की कविता *रजस्वला* पाठक को चिंतन का अत्यंत संवेदनशील धरातल देती है यह ऐसा विषय है जिस पर चर्चा करने से लोग बचते हैं इस सामाजिक सच्चाई से आँख चुराते हैं लेकिन डॉ शरद सिंह खुले मन से ऐसे सामाजिक विषय पर चर्चा के लिए समाज का आव्हान करती हैं ----
क्या याद है उस कवि को 
कि कितनी बार ख़रीदा था 
सेनेटरी नेपकिन
अपनी रजस्वला पत्नी के लिए 
कि उसने कितनी बार 
डिस्पोज किया था 
पत्नी का इस्तेमाल किया हुआ 
सेनेटरी नेपकिन
कवि की कविता में मौजूद
स्त्रियों- सी 
क्या पत्नी भी एक स्त्री नहीं होती ...

डॉ शरद सिंह का यह एक प्रश्न समाज के संवेदनहीन गलियारों में भटक रहा है अनंतकाल से अनुत्तरित, और लगता है यह एक और प्रश्नचिन्ह हमारे मनुष्य होने पर।
 *तीन पर्तों में देवता* कविता संग्रह डॉ शरद सिंह की व्यष्टि से लेकर समष्टि तक की यात्रा का दस्तावेज भी कहा जा सकता है।
*टोहता है गिद्ध* कविता युद्ध की विभीषिका से परिचित कराने में समर्थ है --
एक उजाड़ संसार का देवता है युद्ध
युद्ध एक गिद्ध है 
जो टोहता है
विभीषिका को
लाशों को
और बच रहे उन अनाथों को 
जो कहलाते हैं शरणार्थी 
युद्ध नहीं चाहती माँ, पिता, नाना- नानी, दादा- दादी 
युद्ध नहीं चाहते बच्चे 

      जीवन के सत्य की सहज सरल निर्दोष ऐसी अभिव्यक्ति डॉ  शरद सिंह की लेखनी से ही संभव हो सकती है, कविताओं में संवेदनशील कवयित्री डॉ शरद सिंह ने संवेदनाओं की एक ऐसी भाव सलिला को प्रवाहित किया है जिसमें अवगाहन कर कोई भी पाठक मनुष्यता के शाश्वत सत्य का साक्षात्कार कर सकता है। यह कविता भावांजलि है, शब्दांजलि है धीरे -धीरे मरती जा रही सभ्यता, संस्कृति एवं मनुष्यता के लिए साथ ही अपनों के लिए और अपनेपन के लिए भी। कविता संग्रह का भाव पक्ष एवं कला पक्ष अत्यंत सशक्त है, भाषा उत्कृष्ट एवं गंभीर अर्थबोध से भरी है डॉ शरद सिंह ने अपनी बात को पूरी मजबूती से कहने के लिए हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी, उर्दू एवं फ़ारसी के शब्दों को भी सहजता से कविताओं में पिरोया है, कविताओं की संप्रेषणीयता बेजोड़ है, सीधे हृदय से संवाद करने में सिद्ध हैं ये कविताएँ। 
डॉ शरद सिंह शब्दों की महत्ता को जानती हैं वह लिखती हैं--
शब्द जोड़ भी सकते हैं 
शब्द तोड़ भी सकते हैं 
शब्द प्रेम में घुलें तो अमृत 
शब्द बैर में घुलें तो विष
शब्द कभी कह देते हैं बहुत कुछ तो
कभी छुपा लेते हैं सब कुछ 

     - शब्दों की असीम सत्ता को कितनी सहजता से लिख दिया है आपने इस छोटी सी कविता में जैसे समेट लिया हो गागर में अनंत विस्तारित सागर को।
      *तीन पर्तों में देवता*  कविता संग्रह की अनेक कविताएँ जैसे- हैरत, अपराधी, छापमार उदासी, त्वचा का आवरण, निर्लज्जता, रद्दीवाला,मुखौटे, सूखे हुए फूल के साथ, सीने में समुद्र,वस्त्र के भीतर, शाप की एक और किश्त जैसी तमाम कविताएँ केवल वाणी विलास का माध्यम नहीं हैं, ये और  लगभग ऐसी सभी कविताएँ समाज के देखे- अनदेखे,भोगे-अनभोगे यथार्थ की मूक पीड़ाओं को स्वर देती हैं। इन कविताओं में समसामयिक परिवेश की पथरा गई आँखों से छलकते आँसूओं को आत्मीयता के रुमाल से पोंछने का सारस्वत् दायित्व बोध है जिसे डॉ शरद सिंह ने पूरी ईमानदारी से निभाया है. आपकी कविताएँ भावनाओं को, विचारों को, नई दिशा एवं दशा देने में सक्षम हैं, इन कविताओं के माध्यम से डॉ शरद सिंह ने जीवन मूल्यों की पुनर्स्थापना, संरक्षण एवं संवर्धन का अभिनव कार्य किया है. आपकी दृष्टि में मानवता स्वमेव एक धर्म है। आपका यह वैचारिक चिंतन आपकी व्यवहारिकता में भी परिलक्षित होता है।
*तीन पर्तों में देवता* कविता संग्रह में सम्मिलित 53 कविताओं में से प्रत्येक कविता एक पूरी एवं विस्तृत समीक्षा के योग्य है जिन पर फिर कभी किसी अवसर पर यथा ढंग से साहित्य जगत चर्चा करेगा ऐसा मेरा विश्वास है।
         डॉ शरद सिंह का कविता संग्रह *तीन पर्तों में देवता* : आपकी यश पताका को हिंदी के साहित्याकाश में नई ऊचाईयों तक 
फहराएगा और आपको देश की कवत्रियों की अग्रिम पंक्ति में सादर स्थापित करेगा इन्हीं मंगल कामनाओं एवं अशेष बधाइयों सहित।
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 *डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया*
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, इंडियन मेडिकल एशोसिएसन  मध्य प्रदेश, सागर 
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1 comment:

  1. बहुत सुंदर समीक्षा, बहुत बहुत बधाई आपको

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