आज 24.06.2025 को 'आचरण' में
पुस्तक समीक्षा
जीवन के संवेदनाजन्य सरोकारों की काव्यात्मक अभिव्यक्ति
- समीक्षक डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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कविता संग्रह - साथ आपका पाकर
कवयित्री - सुनीला सराफ
प्रकाशक- जवाहर पुस्तकालय, सदर बाजार, मथुरा - 281001 (उप्र)
मूल्य - 350/-
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प्रत्येक रचनाकार इसी समाज में रहता है। इसी समाज के अनुभवों को जीता है और उन्हीं को अपने अंतर्मन में महसूस कर अपने शब्दों में अभिव्यक्त प्रदान करता है। इस अभिव्यक्ति में निजी अनुभव, पर-अनुभव तथा समाज एवं विश्व के अनुभव शामिल होते हैं। इन अनुभवों से उसके निजी सरोकार गहरे तक जुड़े होते हैं जब वह दूसरों के दुख-सुख को भी अपना मान लेता है तो उसकी व्याकुलता कविता बनाकर फूट पड़ती है। कवयित्री सुनीला सराफ ने अपने काव्य संग्रह ‘‘साथ आपका पाकर’’ में अपनी जिन कविताओं को संजोया है, उनमें उनके उन्हीं सरोकारों की रचनाएं हैं जिन्हें उन्होंने प्रत्यक्ष या मानसिक आधार पर अनुभव किया है, इसीलिए इस संग्रह की सभी कविताएं एक आईने की तरह समाज, परिवार और व्यक्ति के चरित्र को उसकी चेटाओं को, प्रकृति के साथ उसके तादात्म्य को बखूबी प्रतिबिंबित करती हैं। यूं भी, कविता का आकाश अनंत है। इसमें क्षितिज की कोई सीमा रेखा नहीं है। क्योंकि काव्य का संबंध सीधे हृदय और मन से होता है और मन की उड़ान के लिए कविता सबसे अच्छा माध्यम है।
डॉ सुरेश आचार्य ने भूमिका में सटीक टिप्पणी करते हुए लिखा है कि- ”सुनीला सराफ की कविताएँ मूलतः विसंगतियों से सवाल पूछती प्रश्नाकुल रचनाएँ हैं। यही इन कविताओं की शक्ति है। जब आप इन्हें आद्यन्न पढ़ेंगे तो इन रचनाओं का अर्थ आपको बेचैन कर देगा। मुख्यतः हिन्दी की बेटी, किरण, देश हमारा, हाय पैसा, अजन्मी बेटी की अभिलाषा, बड़ौ मचैना, चुनाव आ गए, निर्भया कांड, पुलवामा में आतंकी हमला, के अतिरिक्त बसंत, शीत वर्षा से संबंधित ऋतु गीत, कोरोना, पर्यावरण और होली से संबंधित कविताएँ आपको प्रभावित करेंगी। कुछ हायकू और कतिपय भक्ति गीत सुनीला जी को सशक्त कवियत्री घोषित करते हैं। साथ आपका पाकर, मेरा बचपन जैसी संवेदन शील रचनाएँ पाठक को आर्काित करती हैं।”
सुनीला सराफ की इस संग्रह की समस्त कविताओं पर टिप्पणी करते हुए वरिठ साहित्यकार टीकाराम त्रिपाठी ने विस्तृत विचार व्यक्त किए हैं जिनमें उन्होंने इन कविताओं के मनोवैज्ञानिक पक्ष को भी रेखांकित किया है। वे लिखते हैं- “मनोवैज्ञानिक विवेचन के लिए कुछ कविताएँ संग्रह में हैं हौसला, आगे बहुत आगे, जब हम न होंगे, विदाई और मन की सीमा। हौसला में कवयित्री कहती है-माँ तो माँ होती है। वह बेटे का दर्द समझती है। आगे बहुत आगे में कठिन परिश्रम और सकारात्मक सोच से ही प्रगतिकामी व्यक्ति अपना और अपने समाज का विकास कर सकता है। विदाई कविता अंतिम विदाई पर केन्द्रित है जहाँ जीवन और मरण की द्वन्द्वात्मक स्थिति में कण रस का चित्रण है। मन की सीमा में नातिन के प्रति उमड़ा निस्सीम प्रेम मन को सपन-हिंडोला रूपक में परिवर्तित करने /होने के प्रति आश्वस्त है।”
वस्तुतः मनोवैज्ञानिक पकड़ कविता के कथ्य को और प्रभावी बना देती है। जैसे सुनीला सराफ ने अपनी “प्रोत्साहन” कविता में एक ऐसे लड़के का विवरण दिया है जो माता-पिता की कमजोर आर्थिक स्थिति में हौसला नहीं हारता बल्कि अपनी क्षमता अनुसार परिवार को आर्थिक मदद करने के लिए अखबार बांटने वाले होकर का काम करने लगता है साथ ही वह प्रयास करता है कि उसके पिता की छूटी हुई नौकरी उन्हें फिर मिल जाए। उसे लड़के की पारिवारिक पीड़ा को सुनीला सराफ ने बहुत बारीकी से समझा और व्यक्त किया है। इस कविता को लिखते हुए वह अपने ‘कंफर्ट जोन से बाहर निकल कर दूसरे की पीड़ा को महसूस करती हैं और उसे अभिव्यक्ति देती हैं। इस कविता की कुछ पंक्तियां देखिए-
गरीबी के ंझंझावात
उसे निगलने को आतुर
सतरंगी सपनों को
पूरा करने की खातिर
प्रतियोगी परिक्षाएँ खड़ीं हो गई
प्रश्न बनकर
गरीबी के वितान पर
जीवन की सुनामी पार करने के लिए
पसीने का समुद्र तैरता
उसकी समूची देह पर
इस संग्रह में एक बहुत ही मार्मिक और संवेदनात्मक कविता है “मेरी मां”। जब कोई स्त्री उस अवस्था में पहुंचती है जहां कभी उसकी मां थी तब उसे एहसास होता है कि उसने अपनी मां के प्रति कैसा अच्छा-बुरा व्यवहार किया और बदले में मां ने उसे कितना अािक प्रेम किया। ऐसी स्थिति में हर स्त्री को अपनी मां की बहुत याद आती है। यह वह अवस्था होती है जब उसके समक्ष उसकी अपनी बेटी दिखाई देती है तब वह अपनी मां की परिस्थितियों को भली-भांति महसूस करती है और बार-बार मां का स्मरण करती है। कविता की कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं-
उम्रदराज होने पर
माँ की याद बहुत आती है
उनके कोमल-कोमल हाथों का स्पर्श
सुधियों में सुकून भरता था
जब सहलाती मेरे बालों को
मैं सो जाती उनके आंचल में सिमट कर
जब खाना खाने में दिखाती नखरे
तो माँ दाल चावल मिलाकर
उसके लड्डू बनाकर
खिलाती बहला-बहलाकर
गुदगुदे हाथों से मेरा मुंह धुलवाती
आह वो प्यारा स्पर्श, याद आती माँ
“सुहानी सुबह” एक मानी कविता है। इसमें कवयित्री ने मनोभावनाओं को बड़े आत्मीयता और कोमल ढंग से प्रस्तुत किया है-
सुहानी सुबह के आने से पहले
कहीं खो गया था
मेरा हाथ थामों लगा लो गले से
सुबह का नजारा सुखद बन पड़ेगा
यह बहती समीर यूँ जाने ना देंगी
सुधियाँ सुखद है भूलाने ना देंगी
कहाँ खो गया था बिना साथ तेरे
अंधेरों ने घेरा मुझको घनेरे
उमंगे यहीं थी तरंगे यहीं थी
फिर क्यों ढूंढता था इन वादियों में खुशियाँ
तेरा साथ ना हो तो कुछ भी नहीं है
एक स्त्री उसे स्थिति में अधिक उड़ान भर सकती है अधिक से अधिक उपलब्धियां प्राप्त कर सकती है और अपनी समस्त क्षमताओं को जी सकती है यदि उसे समाज का परिवार का या किसी अपने विशेष व्यक्ति का साथ मिले। देखा जाए तो इस संग्रह का शीर्षक गीत “साथ आपका पाकर” संग्रह के सभी गीतों का सार प्रस्तुत करता है क्योंकि जीवन में माता-पिता संतान पड़ोसी सहयोगी परिचित अपरिचित हर किसी के साथ की आवश्यकता होती है और इन्हीं में से कोई एक साथ जीवन को पूर्णता प्रदान कर देता है। इस कविता की कुछ पंक्तियां देखिए-
साथ आपका पाकर
मैंने सीखा आगे बढ़ना
बीच राह में रुकी हुई थी
भूल गई थी लिखना।
साथ आपका पाकर सीखा
इन राहों पे चलना
बड़े-बड़े विद्वानों के संग
वाचन लेखन पढ़ना
और मुक्त होकर रचनाओं
की अभिव्यक्ति करना
कवयित्री सुनीला सराफ एक कहानीकार और उपन्यासकार भी हैं। उनकी 71 कविताओं के इस काव्य संग्रह “साथ आपका पाकर” में समाज के प्रति उनके अपने सरोकारों हैं और घनीभूत संवेदनाएं हैं जो किसी भी पाठक को प्रभावित करने में सक्षम हैं। शिल्प की दृष्टि से इन काव्य रचनाओं में कहीं-कहीं कच्चापन महसूस हो सकता है किंतु कथ्य के स्तर पर ये हर कसौटी पर खरी हैं। यह काव्य संग्रह निश्चित रूप से पाठकों को रुचिकर लगेगा।
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