Thursday, June 12, 2025

बतकाव बिन्ना की | ज्यादा ने इतराओ, सोनम घांईं मिलहे तो पता परहे | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
ज्यादा ने इतराओ, सोनम घांईं मिलहे तो पता परहे
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
        ‘‘देख तो बिन्ना! कित्ते नखरे आएं ई मोड़ा के।’’ भौजी बोलीं।
‘‘ईमें नखरे की कोनऊं बात नोईं। आपने पूछी सो हमने बता दई। अब आप खों ने पुसाए सो आप जानों!’’ भौजी को भनेज मों बनात भओ बोलो।
‘‘हो का गओ? काए की गिचड़ चल रई आप दोई में?’’मैंने पूछी।
‘‘देखो ने बुआ, पैले तो इन्ने हमसे हमाई पसंद पूछी औ अब बोल रईं के हम नखरा दिखा रए। जो कोन सो ढंग आए?’’ भनेज भिनभिनात भओ मोसे बोलो।
‘‘जे नखरा नईं तो का आए? ऐसईं नईं ऊंसई, ऊंसई नईं ऐसईं, इत्ते भाव नईं खाए जात।‘‘ भौजी भनभनात भईं बोलीं।
‘‘कोन चीज की पसंद? काय की बात कर रए आप ओरें?’’ मोए कछू समझ नईं परी।
‘‘हम बता रए तुमें बिन्ना!’’ बीच में कूंदत भए भैयाजी बोले, ‘‘का आए के जे अपने भनेज साब के ब्याओ के लाने लड़किया ढूंढी जा रईं। मनो अबे लौं जित्ती ढूंढी ऊमें एकऊ इने ने पुसाई। जेई लाने तुमाई भौजी इने समझा रईं के मोड़ी में इत्ती ज्यादा कमी-बेसी नईं निकारी जात आए।’’
‘‘औ का! अब तुमई बताओ बिन्ना के मनो कोनऊं मोड़ी तनक दबे रंग की होय पर ऊको चाल-चलन सब कछू अच्छो होय तो का ऊको खाली जे लाने रिजेक्ट करो जाओ चाई के ऊको रंग दबो कहानो? का जे ठीक आए?’’ भौजी ने मोसे पूछी।
‘‘बिलकुल नईं! मोड़ी के रंग से कछू फरक नईं परत। बा कैनात आए ने के सूरत भले अच्छी ने होए पर सीरत अच्छी होनी चाइए। मोड़ी को ब्यौहार अच्छो होय तो सब कछू अच्छो कहानो।’’ मैंने कई।
‘‘जेई तो हम इने समझा रए के, भैया! फेयर एंड लवली वारी मोड़ी के जो काम फेयर ने भए तो रोऊत फिरहो। ज्यादा नखरे ने दिखाओ, जो सोनम घांईं मिलहे तो पता परहे।’’ भौजी ने फेर भनेज को ताना मारो।
भौजी को भनेज साफ्टवेयर इंजीनियर आए बेंगलुरू में। कोनऊं अच्छी मल्टी नेशनल कंपनी में। सो मोय जेई लगो के भौजी जबरिया ऊको ठेन कर रईं। अरे, ऊकी कोनऊं अपनी पसंद हुइए, सो ऊको अपनी पसंद की छांटन देओ।
‘‘बुरौ ने मानियो भौजी, पर एक बात कएं के इनखों अपनी पसंद की छांट लेन देओ। काए से के ऊके संगे जिनगी इने बितानी आए, आप ओरों को नोंईं।’’ मैंने भौजी से कई। मैंने देखी के मोरी बात सुन के भनेज जू को मों कुम्हड़ा के फूल घांई खिल गओ। ऊको कोऊ ऊकी तरफी से बोलने वारो जो मिल गओ, ने तो भैयाजी औ भौजी दोई अपनी मनवाने खों पिले परे हते।
‘‘सो हम ओरें कोन खूंटा गाड़े दे रए? पूछई तो रए के तुमें कैसी मोड़ी चाइए तो महराज जू को कैबो आए के इने दूद घांईं गोरी, अंग्रेजी वारी पढ़ी-लिखी, नौकरी करत भई, बा बी कोनऊं मल्टी नेशनल कंपनी में, ऊको खानो बनाऊत बनत होए, घर सम्हार सके, रिश्तेदारी सम्हार सके, ऐसी टाईप की मोड़ी चाऊने। कऊं मिलहे ऐसी मोड़ी? जोन मल्टी नेशनल कंपनी में नौकरी कर रई हुइए, ऊको का खाना बनानो आऊत हुइए? नौकरी पाबे के पैले तो पढ़त-पढ़त ऊकी जिनगी कढ़ गई हुइए, बा भला खाना बनाबो औ घर सम्हारनो कबे सीख पाई हुइए? औ जोन ज्यादई सुंदरी भई सो ब्यूटी पार्लर में सबरो पइसा फूंकत रैहे। जे बात जे महाराज समझई नईं पा रए।’’ भौजी ने खुल के बता दई जो सल्ल हती।
‘‘अरे नईं आप ने डराओ! ऐसो बी नइयां के बड़ी नोकरी करबे वारी मोड़ी घर ने सम्हार पाहे। मोड़ियां तो सबई कछू सम्हार लेत आएं। आप तो समझतई हो।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘जेई तो हम इन ओरन से कै रए के हमें इते-उते मोड़ी ने दिखाओ। उन मोड़ियन खों मना करबे में हमें सोई बुरौ लगहे। हमें जोन टाईप की मोड़ी चाउने, बा हमें ढूंढन देओ, आप ओरें ने परेसान हो।’’ भनेज तुरतई मोसे बोलो। ऊके जा कैतई सात मोय सबरी किसां समझ में आ गई।
‘‘सो अब बेटा, तुम तनक सई-सई बता देओ के जोन तुमने पसंद कर राखी आए बा कां की आए औ का करत आए? का बो तुमाई कंपनी में आए?’’ मैंने सूदे-सूदे भनेज से पूछो।
‘‘बुआ आप बी!’’ भनेज झेंपत भओ बोलो।
‘‘जे अब तुम सई के नखरा दिखा रए। काए से के इन ओरन खों परेसान ने करो। जब तुमने अपने लाने मोड़ी पसंद कर राखी आए तो इने बता देओ। जे ओरें फालतू में नाएं-माएं ने भटकें। एक तरफी तुमई कै रए के तुमें मोड़ी वारों खो मना करत में जी दुखहे तो पैलई उन ओरन से बात चलवा के उनकी आसा काए जगा रए? जे बी तो गलत आए। काए सई बात आए के नईं?’’ मैंने भनेज साब की क्लास ले लई।
‘‘हऔ बुआ आप सई कै रईं। हमें एक मोड़ी पसंद आए औ बा हमाए संगे काम करत आए।’’ भनेज हिचकत भओ बोलो।
‘‘औ बा तुमें पसंद करत आए के नईं? के एकई तरफी को खेल चल रओ?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘हऔ, बा बी हमें भौत लाईक करत आए।’’ भनेज तुरतईं बोलो।
‘‘कोन सो वारो लाईक? असली वारो के सोसल मीडिया वारो?’’ भैयाजी ने तनक चुटकी लई।
‘‘असली वारो।’’ भनेज तुरतईं बोल परो। फेर तनक झेंप सोई गओ।
‘‘तो बा सब कछू कर लेत आए? मने खाना बना लेत आए? झाडूं-पोंछा कर लेत आए?’’ भौजी ने पूछी।
‘‘हऔ! बा तो छुट्टी के दिनां हमाए फ्लैट में आ के सब कछू ठीक-ठाक कर जात आए। औ हम संगे खाना बना लेत आएं। बड़ी नोनी आए बा।’’ भनेज अपनी पसंद की तारीफ करत भओ बोलो।
‘‘देखो भौयाजी, औ देखो भौजी! जे आए असल बात, जोन के कारण ने बेटा जी मोड़ी में छत्तीस के बदले बहत्तर गुन की डिमांड कर रए हते। काए से के इने घर सम्हारने वारी पैलई मिल गई आए, सो कोनऊं औ इने चाइए नईं।’’ मैं हंसत भई बोली।
‘‘सो जे पैले काए नईं बताई? हम ओरन को मूंड़ पिरा गओ तुमाए जोग मोडी ढूंढत-ढूंढत।’’ भौजी भनेज खों लाड़ से डपटत भई बोलीं।
‘‘कछू नईं! कर लेन देओ ईको पसंद बाकी ब्याओ तो बईं हुइए जां हम तै करबी।’’ भैयाजी ने जे कै के कम सबई खों चैंका दओ।
‘‘जो का कै रए?’’ भौजी ने पूछी।
‘‘हम सई कै रए। इनके बाप-मताई ने जे जिम्मा अपन ओरन खों सौंपो आए के अपन इनके लाने इतई की अच्छी सी मोड़ी देख लेबें। सो अब तो इतई की औ हमाए पसंद की मोड़ी से इनको ब्याओ हुइए। देख लइयो!’’ भैयाजी मनो अपनो फाईनल डिसीजन बताऊत भए बोले।
‘‘आप से हमें जे उमींद ने हती। अब जो हमने सब बता दओ, फेर बी आप अपनी पसंद की मोड़ी से हमाओ ब्याओ कराहो। इट इज़ नाॅट फेयर।’’ भैयाजी की बात सुन के भनेज इत्तो घबड़ानों के बुंदेली बोलत-बोलत अंग्रेजी बोलन लगो।
‘‘अब तुम कछू करो। हमें जो करने बा हम कर के रैबी। औ तुमें सोई पतो आए के तुमाएं बाप-मताई हमाओ कहो कभऊं ने टालहें।’’ भैयाजी अपनी अड़ी लगा के बैठ गए।
‘‘जे आपको का हो गओ भैयाजी? जोन मोड़ी ईको पसंद आए, ऊके संगे जे खुस रैहे, आप काए कोनऊं औ मोड़ी ईके गले पाड़ रए?’’ मोए बी भैयाजी से पूछने परी।
‘‘अब तुम बीच में ने परो! हमने सोच बी लई आए के ईके लाने कोन सी मोड़ी ठीक रैहे।’’भैयाजी बोले।
‘‘कोन-सीे मोड़ी?’’ भौजी सोई अचरज करत भई पूछ बैठीं।
‘‘बो छुन्ने महराज जू की लोहरी मोड़ी।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बा? बा तो पूरी तोपचंद आए। ऊसे तो कोनऊं खों पिटवा लेओ, मनो आप ऊसे पानी को गिलास नईं मंगा सकत।’’ भौजी आंखे फाड़त बोलीं।
‘‘हऔ, सुनी तो हमने बी आए के बा बड़ी दादा टाईप की मोड़ी आए। बा तो बेटा जू खों एक लपाड़ा लगा के चुप करा दैहे।’’ मैंने बी कई।
‘‘जेई से तो! बा मोड़ी सबसे ठीक रैहे ईके लाने। बाकी हमाओ तो जोई कैबो आए के मोड़ी पसंद करबे में ऐसो नखरा दिखाबे वारे औ अपनी पसंद छिपाबे वारे मोड़ा खों सोनम घांई मोड़ी मिलो चाइए। जोन पता परी के ब्याओ करा के ले गई, औ फेर लगा आई ठिकाने।’’ भैयाजी हंसत भए बोले।
बे हंसे तो हम ओरन खों समझ परी के बे अबे लौं भनेज की टांग खिचाई आ कर रए हते।
‘‘सई कई भैयाजी आपने! इनके लाने तो सोनम घांई सई रैहे।’’ मैंने सोई हंस के कई।
जा सब सुन के भनेज की जान में जान आई, ने तो ऊकी जान कढ़ी जा रई ती।                
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लौं जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में के एक सोनम के चलत भए सबई मोड़ियन पे उंगरिया नईं उठानी का ठीक आए? अपने इते सीता औ सावित्री होत आएं, बा एक सोनम तो अपवाद ठैरी। जेई नांव की एक से एक अच्छी मोड़ियां आएं अपने इते। काए, सई कई के नई?  
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