Wednesday, June 18, 2025

चर्चा प्लस | भारत के घरेलू बजट को बिगाड़ सकता है ईरान-इजराइल युद्ध | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर


चर्चा प्लस (सागर दिनकर)

भारत के घरेलू बजट को बिगाड़ सकता है ईरान-इजराइल युद्ध        
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                
     ईरान और इजरायल के बीच इस समय जिस तरह हुआ है वह पूरी दुनिया को करने लगा है। इस युद्ध में सबसे बड़ा नुकसान पहुंच रहा है कच्चे तेल के उत्पादन को। कच्चा तेल दुनिया के हर देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। यदि यह युद्ध लंबा चला तो यह भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था कमर तोड़ सकता है। कच्चे तेल के दाम भी अन्य वस्तुओं के दाम को तय करता है। तेल के कुओं को क्षति पहुंचने तथा देश में तेल की आपूर्ति बाधित होने से जरूरी सामानों की कीमतें तेजी से बढ़ेंगी। भारतीय घरेलू अर्थव्यवस्था भी फिर आर्थिक परेशानियों से मुक्त नहीं रहेगी। यद्यपि यह आशा की जा रही है कि जी-7 में प्रधानमंत्री मोदी भारत के लिए कोई हल ढूंढ सकेंगे।


दुनिया के किसी भी कोने में किसी भी देश में युद्ध हो लंकिन उसका असर दुनिया के हर देश पर किसी न किसी रूप में पड़ता है। फिर जब दुनिया के वे दो देश आपस में युद्धरत हों जिनके पर कच्चे तेल का भंडार है तो पूरी दुनिया पर सीधा असर पड़ना स्वाभाविक है। आज दुनिया भर के आर्थिक विशेषज्ञों को यही सबसे बड़ी चिंता है कि यदि इजरायल-ईरान युद्ध लंबा चला तो कच्चे तेल की पर्याप्त उपलब्धता को ले कर सारी दुनिया संकट में पड़ सकती है। भारत के लिए भी यह चिंता का विषय बन सकता है। विशेष रूप से कच्चे तेल के आयात के संबंध में महत्वपूर्ण चुनौतियां नजर आ रही हैं। एक ओर जहां युद्ध के माहौल के कारण क्रूड ऑयल यानी कच्चे तेल में लगातार वृद्धि हो रही है, तो वहीं निर्यात बाधित होने की संभावना बढ़ती जा रही है। भैगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो दुनिया का सबसे व्यस्त तेल मार्ग होर्मुज जलडमरूमध्य जलमार्ग में किसी भी तरह की बाधा आने पर भारत के तेल आयात में समस्या उत्पन्न हो सकती है। यदि पर्याप्त सप्लाई नहीं हो सकेगी तो देश में पेट्रोल, डीजल के भाव पर असर पड़ेगा।  महंगाई में इजाफा करने वाली साबित हो सकती हैं। विशेषज्ञों की मानें तो दोनों देशों पर परस्पर मिसाइल अटैक का सीधा असर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों पर देखने को मिलने लगा है। ये कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। हाल ही में ब्रेंट क्रूड का दाम  75 डॉलर प्रति बैरल के पार निकल गया, जबकि डब्ल्यू ई टी क्रूड का जुलाई वायदा भाव भी 73.99 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गया है और इसमें और भी तेजी की संभावना जताई जा रही है। इसीलिए आशंका जताई जा रही है कि अगर युद्ध बढ़ता है, तो कच्चे तेल की कीमतें 120 डॉलर प्रति बैरल के पार जा सकती हैं। इसका असर भारत पर भी पड़ेगा। इससेे देश में मंहगाई बढ़ेगी और साथ ही देश का चालू खाता घाटा भी बढ़ेगा। तेल का निर्यात प्रभावित होने की वजह से तेल और गैस की कीमतों में भी बढ़ोतरी की आशंका है। पिछली बार भी जब इजरायल और ईरान के बीच तनाव बढ़ा था तो कीमतें बढ़ी थीं
इसराइल और ईरान में तनाव की स्थिति कोई नई नहीं है। इन दोनों देशों के बीच तनाव और टकराव के कारण मध्य-पूर्व में हमेशा अनिश्चितता को माहौल बना रहता है। ईरान ने कई बार अपनी यह इच्छा प्रकट की है कि वह दुनिया के पक्शें से इजरायल को मिटा देना चाहता है। इसके लिए ईरान के पास तर्क है कि इजराय मध्य-पूर्व में अमेरिका की घुसपैंठ का माध्यम बना रहता है। ईरान अमेरिका को ‘‘बिग डेविल’’ और इजरायल को ‘‘लिटिल डेविल’’ कहता है। वह साफ तौर पर अमेरिका को भी मध्य-पूर्व की जमीन पर नहीं देखना चाहता है। वहीं दूसरी ओर इजरायल के अपने तर्क हैं। वह ईरान को यहूदी विरोधी मानसिकता का मानता है तथा उसके आरोप रहते हैं कि ईरान इजरायल के विरुद्ध आतंकी संगठनों को सहायता देता है। दोनों देशों के इस टकराव में सबसे अधिक पिसता आ रहा है गाजा क्षेत्र। जिसे गाजा पट्टी के नाम से भी जानते हैं। गाजा हमेशा युद्ध क्षेत्र बना रहता है।

मुझे याद है कि जब मैं स्कूली कक्षा पूरी करके कालेज के प्रथम वर्ष में पहुंची थी तब मुझे विश्व की राजनीतिक खबरों में रुचि आने लगी थी। उस समय हमारे घर उत्तर प्रदेश के वाराणसी से प्रकाशित दैनिक ‘‘आज’’ डाक से आया करता था। दो दिन पुराना हो जाने पर भी वह अखबार जब हाथ में आता तो मैं सबसे पहले संपादकीय पन्ना खोलती। उसमें गाजा क्षेत्र की खबरे रहतीं। उस समय मुझे ठीक-ठीक पता भी नहीं था कि यह गाजा क्षेत्र है कहां और वहां के लोग कैसे हैं? लेकिन यह पढ़ कर आश्चर्य होता कि वहां वर्षों से लडाई चल रही है। तब से आज तक स्थिति इतनी ही बदली है कि अब लड़ाई पहले से अधिक संहारक और दुनिया पर प्रभाव डालने वाली हो गई है। तब टीवी नहीं था अतः विभीषिका की वही कुछ चंद तस्वीरें सामने आती थी जो अखबारों में छपती थीं। अब तो सीएनएन, बीबीसी, अलजजीरा आदि अनेक ऐसे टीवी चैनल्स हैं जो युद्ध की लाईव घटनाएं दिखाते रहते हैं। सब उफ, उफ करते हैं उन दृश्यों को देख कर लेकिन कोई भी युद्ध रोकने का कारनामा नहीं दिखा पा रहा है। चाहे संयुक्त राष्ट्रसंघ हो या मानवाधिकार संगठन सभी स्वयं को असमर्थ पाते हैं।   

बीच में कभी-कभार स्थितियां नरम भी पड़ीं। जब ईरान और ईराक का युद्ध छिड़ा तो इजरायल से उसका ध्यान हट गया। अयातुल्लाह खोमैनी के समय इसराइल और ईरान के संबंध 1979 तक अपेक्षाकृत शांत रहे। सन् 1948 में अस्तित्व में आए इजराइल को सबसे पहले तुर्की ने और फिर ईरान ने मान्यता दी थी। यद्यपि यह माना जाता है कि इस मान्यता देने के पीछे ईरान फलस्तीन के टुकड़े करना चाहता था। ईरान पर उस समय राजतंत्र था और पहलवी वंश के शासक सत्तासीन थे। ईरान का राजतंत्र अमेरिकी मित्रता में विश्वास करता था। इसीलिए इजरायल ने ईरान की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया। कुछ समय की शांति क बाद सन 1979 में अयातुल्लाह खोमैनी की क्रांति के द्वाराईरान में राजतंत्र का तख़्ता पलट दिया और एक इस्लामी गणतंत्र स्थापित किया। इसके बाद आशा से परे जा कर अयातुल्लाह खुमैनी की सरकार ने इजराइल के साथ संबंध तोड़ लिए। उसने उसके नागरिकों के पासपोर्ट की वैधता को मान्यता देना बंद कर दिया और तेहरान में इजराइली दूतावास को जब्त कर फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) को सौंप दिया। उस समय अलग फलस्तीन राज्य के लिए इसराइल के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व पीएलए कर रहा था। वहीं से कटुता गहरानी शुरू हो गई। ईरान बार-बार फलस्तिीनी मुद्दे को इजरायल के विरुद्ध थोंपने का प्रयास करता रहा। लेकिन सद्दाम हुसैन को नाम आते ही ईरान और इजरायल में नरमी का आ जाती थी। फिर भी यह नरमी लंबे समय तक कभी नहीं चली। आपसी टकराव बाकायदा जारी रहा।

ईरान मुख्य रूप से फारसी और शिया हैं, वहीं अधिकांश अरब देश सुन्नी हैं। लेबनान का हिजबुल्लाह इन संगठन भी हमेशा सक्रिय रहता है। कहा जाता है कि आज ईरान का तथाकथित ‘‘एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस’’ लेबनान, सीरिया, इराक और यमन तक फैला हुआ है। दूसरी ओर इजरायल ने भी अपने समर्थ जुटा रखे हैं। ईरान के अनुसार इजरायल का सबसे बड़ा समर्थ अमरीका है। वहीं अमरीका का तर्क है कि वह  ईरानी परमाणु कार्यक्रम को रोकना चाहता है, इसीलिए इजरायल को समर्थन देता है। यद्यपि ईरान का कहना है कि उसके परमाणु कार्यक्रम उसके अपने देश के विकास के लिए है, वह किसी पर आक्र्मण नहीं करना चाहता है। लेकिन कुल मिला कर ईरान और इजरायल परस्पर युद्ध को झेल रहे हैं।

1947 और 1949 के बीच निर्वासित किए गए 750,000 फिलिस्तीनियों में से, लगभग 200,000, मुख्य रूप से दक्षिणी और मध्य फिलिस्तीन से, गाजा पट्टी में शरण लेने आए। पहले 80,000 लोगों का घर, गाजा पट्टी की आबादी तीन गुना से भी ज्यादा हो गई। आज, ये शरणार्थी और उनके वंशज गाजा पट्टी की आबादी का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा हैं।
संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक आकलन में कहा गया है कि गाजा की लगभग 2.1 मिलियन फिलिस्तीनी आबादी अकाल के ‘‘गंभीर खतरे’’ में है और ‘‘खाद्य असुरक्षा के चरम स्तर’’ का सामना कर रही है। इजरायल द्वारा घेरे गए गाजा पर हमले तेज करने से फिलिस्तीनियों को और अधिक कष्ट झेलना पड़ रहा है, 17 मई 2025 को गाजा में इजरायली हमलों में 100 से अधिक लोग मारे गए, जबकि 7 अक्टूबर 2023 से अब तक इस क्षेत्र में मरने वालों की संख्या 53000 के पार हो गई थी।

यदि भारत पर पड़ने वाले आर्थिक असर की बात की जाए तो ईरान दुनिया का चैथा सबसे बड़ा तेल उत्पादक और मिडिल ईस्ट में नंबर एक उत्पादक है। 2023 में 2023 में 2.4 मिलियन बैरल क्रूड ऑयल का हर दिन प्रोडक्शन हुआ था। तेल भंडार का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि अपने उत्पादन का लगभग आधा कच्चा तेल ईरान दूसरे देशों को बेचता है और सबसे बड़ा खरीदार चीन है। ईरान में तेल की 10 बड़ी रिफाइनरी हैं, जिनमें से सिर्फ तीन से प्रति दिन 3,70,000 बैरल तेल का उत्पादन होता है. ईरान से कच्चे तेल के अलावा सूखे मेवे, केमिकल और कांच के बर्तन भारत आते हैं। वहीं भारत की ओर से ईरान पहुंचने वाले प्रमुख सामानों की बात करें, तो बासमती चावल का ईरान बड़ा आयातक है। ईरान वित्त वर्ष 2014-15 से भारतीय बासमती चावल का दूसरा सबसे बड़ा आयातक देश रहा है और वित्त वर्ष 2022-23 में 998,879 मीट्रिक टन भारतीय चावल खरीदा था. बासमती चावल के अलावा भारत ईरान को चाय, कॉफी और चीनी का भी निर्यात करता है। ईरान वित्त वर्ष 2014-15 से भारतीय बासमती चावल का दूसरा सबसे बड़ा आयातक देश रहा है और वित्त वर्ष 2022-23 में 998,879 मीट्रिक टन भारतीय चावल खरीदा था। बासमती चावल के अलावा भारत ईरान को चाय, कॉफी और चीनी का भी निर्यात करता है। ईरान वित्त वर्ष 2014-15 से भारतीय बासमती चावल का दूसरा सबसे बड़ा आयातक देश रहा है और वित्त वर्ष 2022-23 में 998,879 मीट्रिक टन भारतीय चावल खरीदा था. बासमती चावल के अलावा भारत ईरान को चाय, कॉफी और चीनी का भी निर्यात करता है। आंकड़े देखें तो भारत हर साल ईरान को 4 करोड़ किलो चाय का निर्यात करता है. इसके अलावा कुल चावल निर्यात का 19 प्रतिशत के आस-पास ईरान को निर्यात होता है, जो करीब 60 करोड़ डॉलर का होता है। भारत का व्यापारिक भागीदार सिर्फ ईरान ही नहीं बल्कि इजरायल भी है। साल 2023 में भारत का इजरायल के साथ 89000 करोड़ रुपये का कारोबार रहा। भारत इजराइल को तराशे हुए हीरे, ज्वेलरी, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स और इंजीनियरिंग सामान सप्लाई करता है. वहीं इजरायल भारत को बड़ी मात्रा में सैन्य हथियार निर्यात करता है। अतः यदि यह युद्ध लंबा चला तो ईरान और भारत के बीच का व्यापार लड़खड़ा जाएगा, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ेगा। डीजल, पेट्रोल की कमी अथवा बढ़ी हुई वैश्विक कीमतें भारत के घरेलू बजट पर चोट करेंगी। इससे आम आदमी के दैनिक उपयोग की वस्तुएं भी मंहगी हो जाएंगी।

अब आशा इस बात पर टिकी हुई है कि जी-7 में पहुंच कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत के लिए कोई रास्ता निकाल लेंगे जिससे देश की अर्थव्यवस्था अधिक न बिगड़ने पाए और आम आदमी के घरेलू बजट पर गहरा असर न पड़े।
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