जो जित्तो पन्नी बगराहे, ऊको उत्तई पाप परहे
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
अबई अपन सबई ने पर्यावरण दिवस मनाओ रओ। सबई ने पढ़ो, सुनो हुइए के ई दफा यूनाईटेड नेशन्स की तरफी से बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन की थीम रखी गई आए। मने जो तै करो गओ आए के दुनिया भरे में सबई खों प्लास्टिक को यूज कम से कम करने की आदत पारने, जीसे प्लास्टिक से होबे वारो पॉल्यूशन कम करो जा सके। पर अपन कैसे करबी? काए से के अपन ओरें तो प्लास्टिक प्रेमी आएं। अपने इते तो जो होटल से चाए बी लानी होए तो बा पन्नी में लाई जात आए। वा बी सिंगल यूज़ पन्नी, जोन को सरकार कैत आए के ने यूज़ करो। मनो अपन ओरन के खाबे के दांत और औ दिखाबे के और। औ जो हमने कल्लई देखो।
का भऔ के कल संझा को घूमत टेम पे हमाई एक पैचान वारी मिलीं। बे अपने मोड़ा खो कुरकुरे दिवा के लौट रईं हतीं। हमसे मिलीं सो बतान लगीं के बे पर्यावरण दिवस मनाबे गई रईं। उते उन्ने अच्छो भाषण पेलो औ सबको ठेन खरी के जे पनी-मनी नाएं-माएं ने मैके करो। बे अफनी सुना रईं तीं औ उनको मोड़ा ने कुरकुरे खा ऊको खाली पैकेट उतई मैक दओ। हमने अपनी पैचान वाली खों टोंको। मने बे बोली, इत्तो तो चलत आए। हमसे नईं रओ गओ, सो हमें कै आई के - "जो जित्तो पन्नी बगराहे, ऊको उत्तई पाप परहे!” ईपे बे अपनो मों बना के चली गईं। मनो, आपई बताओ के हमने का गलत कई? जेई पन्नियां तो अबईं नाली-नरदा खों चोक कर दैहे, फेर घरे नरदा को पानी घुसहे औ अपनई रोत फिरबी। सो, ऐसो कामई काए करो जाए? जेई पन्नियां खा के तो गइयां मर रईं। कचरा सोई बढ़ रओ। सो, पन्नियों से करो जाए तौबा!
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