कोरोना की दूसरी लहर ने जो तबाही मचाई उसके लिए कोरोना के डेल्टा वेरिएंट को जिम्मेदार माना जा रहा है। यह बात जीनोम सिक्वेंसिंग के द्वारा पता चली। क्या सचमुच जिनोम सिक्वेंसिंग अगली तबाही को रोक सकती सकती है? आखिर है क्या यह जीनोम सिक्वेंसिंग? यह प्रश्न इन दिनों आम चर्चा में है।
कभी प्लस, कभी अल्फा तो कभी बीटा। कोरोना के नए-नए वेरिएंट से सामना हो रहा है। इन दिनों डेल्टा और डेल्टा प्लस चर्चा में है। कोरोना वायरस में हुए बदलाव के बाद नए स्ट्रक्चर के साथ यह एक प्रकार का नया वायरस है, जिसे मेडिकली नया वेरिएंट कहा जाता है। वैज्ञानिक यह मान रहे हैं कि नए वेरिएंट का पता लगाने में जीनोम सिक्वेंसिंग कारगर उपाय है। लेकिन आम लोग यह भी नहीं जानते हैं कि जीनोम क्या होता है? दरअसल किसी भी प्राणी के डी.एन.ए. में विद्यमान समस्त जीनों का अनुक्रम जीनोम कहलाता है। मानव जीनोम में लगभग 30000-35000 तक जीन होते हैं। वस्तुतः मानव कोशिकाओं के भीतर आनुवंशिक पदार्थ होता है जिसे डीएनए, आरएनए कहते हैं. इन सभी पदार्थों को सामूहिक रूप से जीनोम कहा जाता है। वहीं स्ट्रेन को वैज्ञानिक भाषा में जेनेटिक वैरिएंट कहते हैं। सरल भाषा में इसे अलग-अलग वैरिएंट भी कह सकते हैं। इनकी क्षमता अलग-अलग होती है। इनका आकार और इनके स्वभाव में परिवर्तन भी पूरी तरह से अलग होता है। वैज्ञानिको के अनुसारं देश में कोरोना वायरस के अब तक एक दर्जन से ज्यादा स्ट्रेन की जानकारी मिल चुकी है। इनमें सार्स कोविड से लेकर कोरोना वायरस तक के स्ट्रेन शामिल हैं।
जीनोम मैपिंग के माध्यम से हम जान सकते हैं कि किसको कौन सी बीमारी हो सकती है और उसके क्या लक्षण हो सकते हैं। इससे यह भी पता लगाया जा सकता है कि हमारे देश के लोग अन्य देश के लोगों से किस प्रकार भिन्न हैं या उनमें क्या समानता है। इससे पता लगाया जा सकता है कि गुण कैसे निर्धारित होते हैं तथा बीमारियों से कैसे बचा जा सकता है। बीमारियों का समय रहते पता लगाया जा सकता है और उनका सटीक इलाज भी खोजा जा सकता है। क्यूरेटिव मेडिसिन के द्वारा रोग का इलाज किया जाता है तथा प्रिकाशनरी मेडिसिन के द्वारा बीमारी न हो इसकी तैयारी की जाती है, जबकि जीनोम के माध्यम से प्रिडीक्टिव मेडिसिन की तैयारी की जाती है। इसके माध्यम से पहले से पता लगाया जा सकता है कि 20 साल बाद कौन सी बीमारी होने वाली है। वह बीमारी न होने पाए तथा इसके नुकसान से कैसे बचा जाए इसकी तैयारी आज से ही शुरू की जा सकती है। जीनोम मैपिंग से बच्चे के जन्म लेने से पहले उसमें उत्पन्न होने वाली बीमारियों के जीन का पता लगाया जा सकता है और सही समय पर इसका इलाज किया जा सकता है या यदि बीमारी लाइलाज है तो बच्चे को पैदा होने से रोका जा सकता है। कुछ ऐसी बीमारियां हैं जो सही समय पर पता चल जाएं तो उनकी क्यूरेटिव मेडिसिन बनाई जा सकती है तथा व्यक्ति के जीवनकाल को बढ़ाया जा सकता है।
अब प्रश्न उठता है कि क्या है जीनोम सिक्वेंसिंग? सरल शब्दों में कहा जाए तो जीनोम सीक्वेंसिंग एक तरह से वायरस का बायोडाटा होता है। कोई वायरस कैसा है, किस तरह दिखता है, इसकी जानकारी जीनोम से मिलती है। वायरस के बारे में जानने की विधि को जीनोम सीक्वेंसिंग कहते हैं. इससे ही कोरोना के नए स्ट्रेन के बारे में पता चला है। जीनोम सिक्वेंसिंग जीन का एक स्ट्रक्चर होता है। इनदिनों जीनोम मेपिंग भी चर्चा में है। लेकिन, जब वायरस रिप्लिकेट करता है तो यह अपनी कॉपी बनाता है। जीनोम सिक्वेंसिंग जीन का एक स्ट्रक्चर होता है। जब कोरोना आया था तो इस वायरस के बारे में 11 जून 2020 को चीन और ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने इसके जीनोम सिक्वेंसिंग के बारे में बताया था। हर वायरस के जीन का डेटा खास प्रकार के सिक्वेंस में होता है। लेकिन, जब वायरस रिप्लिकेट अर्थात् स्वयं को दोहराता हैै तो यह अपनी कॉपी बनाता है। लेकिन, कई बार यह अपनी कॉपी बनाने में गलती कर जाता है और वह पहले वाले की तरह नहीं होता है, उसमें कुछ मिसिंग रह जाता है, जो उसके ऑरिजिनल यानी बेस पेयर से अलग होता है। जिससे नया वेरिएंट बनता है। अपने मूल चरित्र या बेस पेयर अलग होने को ही म्यूटेशन कहा जाता है। अभी तक यह माना जाता रहा है कि आमतौर पर नए रूप में वायरस आने के बाद उसके व्यवहार में बड़ा बदलाव नहीं होता है, इसलिए अधिकतर यह देखा गया था कि म्यूटेशन के बाद भी वायरस ज्यादा खतरनाक नहीं होता है। लेकिन, कोरोना में खासकर डेल्टा और डेल्टा प्लस में देखा जा रहा है कि म्यूटेशन के बाद यह वायरस पहले से ज्यादा खतरनाक हो गया है।
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद द्वारा एक परियोजना के अंतर्गत भारत के युवा छात्रों के जीनोम का अनुक्रमण किए जाने की योजना तैयार की गई है। इस परियोजना का उद्देश्य जीनोमिक्स की उपयोगिता के बारे में छात्रों की अगली पीढ़ी को शिक्षित करना है। जीनोम को रक्त के नमूने के आधार पर अनुक्रमित किया जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति जिसके जीनोम का अनुक्रमण किया जाएगा उसे एक रिपोर्ट दी जाएगी। प्रतिभागियों को बताया जाएगा कि क्या उनमें जीन वेरिएंट हैं जो उन्हें कुछ वर्गों की दवाओं के प्रति कम संवेदनशील बनाते हैं। उदाहरण के लिये एक निश्चित जीन होने से कुछ लोग क्लोपिडोग्रेल अर्थात् स्ट्रोक और दिल के दौरे को रोकने वाली एक प्रमुख दवा के प्रति कम संवेदनशील हो जाते हैं। इस परियोजना में इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटेड बायोलॉजी नई दिल्ली तथा सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी मिलकर काम कर रहे हैंे
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हमारी कोशिका के अंदर आनुवंशिक पदार्थ (जेनेटिक मटेरियल) होता है जिसे हम डीएनए और आरएनए कहते हैं। यदि इन सारे पदार्थों को इकठ्ठा किया जाए तो उसे हम जीनोम कहते हैं। एक जीन के स्थान और जीन के बीच की दूरी की पहचान करने के लिये उपयोग किये जाने वाले विभिन्न प्रकार की तकनीकों को जीन मैपिंग कहा जाता है। जीनोम में एक पीढ़ी के गुणों का दूसरी पीढ़ी में ट्रांसफर करने की क्षमता होती है। ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट के मुख्य लक्ष्यों में नए जीन की पहचान करना और उसके कार्य को समझने के लिये बेहतर और सस्ते उपकरण विकसित करना है। जीनोम मैपिंग इन उपकरणों में से एक है।
बीएलके सुपर स्पेशलिटी के हॉस्पिटल लैब सर्विसेज के सीनियर डायरेक्टर डॉक्टर अनिल हांडू का कहना है कि जहां तक नए वेरिएंट की जांच या पहचान की बात है तो इसे ऐसे समझा जा सकता है। हर वायरस का एक जेनेटिक सिक्वेंस होता है, आसान शब्दों में एक फिक्स नंबर या स्ट्रक्चर होता है। जिसे उस वायरस का बेस पेयर कहा जाता है। हम सभी जानते हैं कि जो वायरस सबसे पहले आया था उसे अल्फा, फिर बीटा, गामा, डेल्टा और डेल्टा प्लस है। यहां पर हर वायरस का एक स्ट्रक्चर है, जो लैब में मौजूद है। वेरिएंट की पहचान के लिए वायरस के आरएनए को बढ़ाया जाता है, इसके लिए इसे सिक्वेंसिंग मशीन पर डाला जाता है। इसके लिए आजकल एनएसजी प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल किया जा रहा है, क्योंकि यह नेक्स्ट जेनरेशन का है। जब किसी मरीज का सैंपल लिया जाता है तो उसके छोटे से हिस्से को पीसीआर के जरिए बड़ा करके यह पता लगाते हैं कि कोरोना है या नहीं। लेकिन जीनोम सिक्वेंसिंग में आरएनए को बड़ा करके बेस पेयर के स्ट्रक्चर से मिलान किया जाता है।
आज हर व्यक्ति यह सोचने को विवश है कि क्या कभी कोरोना महामारी से बाहर निकल सकेंगे? हर व्यक्ति परेशान हो गया है। ऐसे समय में जीनोम सिक्वेंसिंग ने एक उम्मींद जगा दी है। यह माना जा रहा है कि यदि समय रहते नए स्ट्रेन का पता चल जाए तो उसी के अनुरुप वैक्सीन तैयार की जा सकता है। हमारे देश की विशाल जनसंख्या को देखते हुए जीनोम सिक्वेंसिंग एक बड़ी चुनौती है। इसके लिए जरूरी है कि सरकार जीनोम सिक्वेंसिंग के काम में तेजी दिखाए ताकि हर व्यक्ति की जीनोम सिक्वेंसिंग हो सके और तीसरी लहर तबाही न मचा सके।
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(सागर दिनकर, 07.06.2021)
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