Wednesday, July 28, 2021

चर्चा प्लस | कभी न रुकने वाले ओलम्पिक खेलों के जज़्बे को सलाम | डाॅ शरद सिंह

चर्चा प्लस            
कभी न रुकने वाले ओलम्पिक खेलों के जज़्बे को सलाम !
 - डाॅ शरद सिंह
        टोक्यो में चल रहे ओलम्पिक गेम्स में भारत ने अपना खाता खोल दिया है और उस जीवटता का हिस्सा बन गया है जो कोरोना की विश्व-आपदा जैसी विपरीत परिस्थितियों में भी खेलों को जारी रखे हुए है। इससे पहले भी ऐसे तीन अवसर आ चुके हैं जब ओलम्पिक पर संकट के बादल मंडराए थे। लेकिन हर बार ओलम्पिक ने खुद को संकट से उबार लिया और आगे बढ़ता गया।  
 आज कोई विश्व युद्ध नहीं चल रहा है लेकिन एक युद्ध अवश्य है जिसमें पूरा विश्व कोरोना आपदा से युद्ध कर रहा है। सन् 2019 के अंतिम महीनों में कोरोना वायरस कोविड-19 ने पूरी दुनिया को हिला दिया। सन् 2020 आरम्भ होते ही कोरोना वायरस की भयावहता से पूरा विश्व थर्रा उठा। योरोपीय देशों में हज़ारों लोगों की जानें गईं। लोगों को अपनी सामान्य गतिविधियां स्थगित कर देनी पड़ी। यहां तक कि शादी-विवाह भी थम गए। ऐसी परिस्थिति में स्टेडियम में जाने, खोलने या खेल देखने की कल्पना करना भी कठिन हो गया था। जबकि सन् 2020 का वर्ष था ओलम्पिक खेलों का। कोरोना की भयावहता को देखते हुए ओलम्पिक संघ ने ओलम्पिक खेलों को स्थगित करने का निर्णय लिया। यह चैथी बार था जब ओलम्पिक खेलों को रोका गया। इससे पहले ओलम्पिक खेलों के इतिहास में ऐसे तीन अवसर आए थे जब इन खोलों को स्थगित करना पड़ा था। लेकिन ओलम्पिक खेलों ने अपनी हर बाधा को पार कर के सिद्ध किया कि उसमें ‘‘वसुधैवकुटुम्बकम’’ का जज़्बा है। जब दुनिया के सारे देश एक साथ खड़े हो जाएं ता कोई बाधा हरा नहीं सकती है, मिटा नहीं सकती है। ओलम्पिक खेल भी कुछ समय के लिए स्थगित किए गए और स्थितियां सुधरने पर पुनः आयोजित किए गए।
प्रत्येक चार वर्ष में होने वाले ओलम्पिक खेलों का इतिहास लगभग 124 साल पुराना है। सन् 1896 में ग्रीस के शहर एथेंस में पहला आधुनिक ओलम्पिक खेल शुरू हुए थे। उस समय मात्र 14 देशों ने इसमें भाग लिया था। कुल 42 खेल स्पर्धा में इसमें 250 पुरुष खिलाड़ियों ने इसमें भाग लिया था। सन् 1916 तक सब कुछ ठीक रहा लेकिन सन् 1916 में जर्मनी  की राजधानी बर्लिन में ओलम्पिक होने थे। तब तक यूरोप प्रथम विश्व युद्ध के शिकंजे में फंस चुका था। 28 जुलाई 1914 को पहला विश्व युद्ध शुरू हो चुका था।  इस युद्ध मे लगभग 16 मिलियन लोग मारे गए। यह युद्ध चार वर्ष तक चला। ओलम्पिक खेल रद्द कर दिए गए।  इसके बाद सन् 1936 में ओलम्पिक खेल हुए। जिसकी मेजबानी की जर्मनी ने।
अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति के सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि तत्कालीन बढ़ते नाजीवाद के कारण ओलम्पिक का आयोजन जर्मनी की राजधानी बर्लिन में हो पाएगा या नहीं। अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति के सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि बढ़ते नाजीवाद के कारण ओलम्पिक का आयोजन बर्लिन में हो पाएगा या नहीं। अमेरिका ने बर्लिन ओलम्पिक के बहिष्कार किए जाने का प्रस्ताव रखा किन्तु वह अमान्य कर दिया गया और अमेरिका ने ओलम्पिक में अपने खिलाड़ी भेजे। मात्र स्पेन ही ऐसा देश था जो बर्लिन ओलम्पिक में भाग नहीं ले पाया क्योंकि वह अपने गृहयुद्ध में उलझा हुआ था।
एडोल्फ हिटलर ने ओलम्पिक खेलों का उदघाटन किया और कई टीमों ने उन्हें नाजी सैल्यूट भी दिया। लेकिन उदघाटन समारोह से ब्रिटेन और अमरीका की टीमें अनुपस्थित रहीं। लेकिन बर्लिन ओलम्पिक के स्टार रहे अमरीका के अश्वेत खिलाड़ी जेसी ओवंस। ओवंस ने चार स्वर्ण पदक जीते। उन्होंने 100 मीटर, 200 मीटर, लंबी कूद में स्वर्ण जीता और 4 गुणा 100 मीटर रिले दौड़ में भी वे अमरीकी टीम में शामिल थे जिसने गोल्ड जीता था। जर्मनी की टीम मेडल तालिका में सबसे ऊपर रही। उसने 33 स्वर्ण पदक जीते। अमरीका के हिस्से में 24 और हंगरी के हिस्से में 10 स्वर्ण पदक आए।
विश्व युद्ध के कारण 1916 में ओलम्पिक खेलों का आयोजन नहीं हुआ। लेकिन 1920 में बेल्जियम के एंटवर्प को मेजबानी का अवसर मिला। यद्यपि विश्व युद्ध की पीड़ा बेल्जियम को भी झेलनी पड़ी थी लेकिन इसके बावजूद आयोजकों ने जरूरी व्यवस्था पूरी कर ली। प्रथम विश्व युद्ध में शामिल होने के कारण जर्मनी, ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया, हंगरी और तुर्की को ओलम्पिक का आमंत्रण नहीं दिया गया। लेकिन फिर भी इसमें बड़ी संख्या में एथलीटों ने हिस्सा लिया। एंटवर्प ओलम्पिक से ही ओलम्पिक खेलों का आधिकारिक झंडा सामने आया। इस झंडे में आपस में जुड़े पाँच गोलों को दिखाया गया जो एकता और मित्रता का प्रतीक है। पहले ओलम्पिक की तरह इस ओलम्पिक में भी देशों के बीच शांति प्रदर्शित करने के लिए कबूतर उड़ाए गए। किसी दक्षिण अमेरिकी देश ने पहली बार 1920 में स्वर्ण पदक जीता। ब्राजील के गिलहेर्म पैरेंस ने रैपिड फायर पिस्टल प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता। अमेरीका के ऐलिन रिगिन सबसे कम उम्र में स्वर्ण जीतने वाले खिलाड़ी बनें। उन्होंने गोताखोरी में गोल्ड मेडल जीता सिर्फ 14 वर्ष और 119 दिन की आयु में। 1500 मीटर में ब्रिटेन के फिलिप नोएल बेकर ने सिल्वर मेडल जीता और बाद में वे ब्रिटेन के एमपी भी बने। 1959 में वे पहले ऐसे ओलंपियन बनें जिन्हें शांति पुरस्कार नोबेल पुरस्कार से सम्मानित गया।ं
द्वितीय विश्व युद्ध सितंबर 1939 से लेकर सितंबर 1945 तक यानी कुल 6 साल चला। करीब 70 देशों की सेनाएं इस युद्ध में शामिल थीं। इस भयावह युद्ध में करीब 7 करोड़ लोगों की जान गई थी। इस बीच दो ओलम्पिक खेलों का आयोजन होना था। 1940 और 1944 में होने वाले ओलम्पिक खेल दूसरे विश्व युद्ध की बलि चढ़ गए। उन्हें स्थगित करना पड़ा। इसमें 1940 का ओलम्पिक की संयुक्त मेजबानी जापान और फिनलैंड पर थी। जबकि 1944 में होने वाले ओलम्पिक खेल लंदन में होना था। द्वितीय विश्व युद्ध के कारण ये दोनों ओलम्पिक्स रद्द करने पड़े थे। इस प्रकार तीन बार ओलम्पिक खेलों को स्थगित होना पड़ा।
इस बार सन् 2020 में टोक्यो में आयोजित होने वाले ओलम्पिक खेलों को कोरोना महामारी के कारण स्थगित करना पड़ा। लेकिन जापान ने हौसला दिखाया और एक मेजबान की हैसीयत से उसने तैयारी जारी रखी। महामारी का प्रकोप थोड़ा कम होता दिखने पर दुनिया के और भी देशों ने साहस दिखाया और आज सन् 2021 में ‘‘टोक्यो ओलम्पिक-2020’’ का आयोजन किया जा रहा है। टोक्यो ओलम्पिक में हिस्सा लेने के लिए 205 देशों से 11 हजार एथलीट जापान पहुंचे हैं। 17 दिनों तक यहां 33 अलग-अलग खेलों के 339 इवेंट्स होंगे। इस बार ओलम्पिक में मैडिसन साइकलिंग, बेसबॉल और सॉफ्टबॉल की वापसी हुई है। वहीं अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, रूस, जापान और जर्मनी मेडल सूची में टॉप पर रहने के लिए कड़ी टक्कर करती दिखेंगे।
ओलम्पिक के इतिहास में यह पहली बार हुआ कि उद्घाटन समारोह में दर्शकदीर्घा खाली थी। दर्शकों के बिना खेलों का आयोजन करने का साहस जापान ने दिखाया जो किउसकी जीवटता का परिचायक है। साथ ही ओलम्पिक खेलों का हर बाधा को पार करते हुए 124 साल तक जारी रहना इस बात का संदेश देता है कि संकट चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, यदि दुनिया के सारे देश एकता दिखाएं तो फिर से उठ खड़ा हुआ जा सकता है।    
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(सागर दिनकर, 28.07.2021)
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1 comment:

  1. ओलंपिक की प्रासंगिकता दर्शाता सुंदर आलेख। सभी खिलाड़ियों को मेरी शुभाकामनाएं ।

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